रविवार, 19 अगस्त 2018

बुलबुल ने बचाया गोरैया को



नन्हीं गोरैया कुकू 


कल शाम तो दिल्ली में बहुत ही तेज़ बारिश हुई , हवा भी उतनी ही तेज़ होने के कारण और ज्यादा मारक साबित हुई | बारिश से हुए जलभराव ने कितना ताण्डव मचाया ये कहने सुनने की जरूरत नहीं | मगर अचानक ही बालकनी में पानी निकालते समय ,अचानक ही इस नन्हीं गोरैया पर पड़ी जो चोटिल होकर बिलकुल मरणासन्न अवस्था में थी |


घर में ढेर सारे खरगोश ,पहाड़ी मूषक ,तोतों ,और उनकी देखभाल करते रहने के कारण बिना देर किये उसे आराम से नर्म रुमाल से उठा कर ,पहले गरमाईश देने की कोशिश शुरू हुई | बुलबुल का हेयर ड्रायर इस समय बहुत काम आया चंद मिनट बाद उसने आँखें खोलीं | मगर पांव में ऊपर से गिरने के कारण ,शायद चोट लग गयी थी | उसकी तीमारदारी में पुत्र आयुष और बुलबुल (जिसने इसका नाम भी रख दिया कुकू ) भी जी जान से लगे हुए थे | अब जब ये नन्ही जान थोड़ी सी और सूख कर होश में आई तो पंख फ़ड़फडाने लगी | फ़ौरन ही इसके लिए रात में एक अस्थायी गर्म घर का इस्तेमाल किया गया और तोतों को दिया जाने वाला आहार और पानी रख दिया गया |


मैं लगभग पूरी रात ही जागता सोता रहा और इस नन्ही जान को देखता रहा | देखा तो आराम से इसी में बैठे बैठे सो गयी | सुबह अपने रंग में आ गयी थी और वही गोरैया वाली फुर्ररर फर्रर्र वाली फुर्ती | अब इसे ऊपर छत पर ले जाकर देखने का समय था | बाहर आते ही फुर्ररर , मगर फिर ठिठक कर बैठ गई | शायद इतनी ऊंची नहीं उड़ी हो ,मगर ये झिझक तोतों की किलकारी सुनते ही दूर ,और कुकू उड़ चली अपनी दुनिया में



मंगलवार, 14 अगस्त 2018

ये कुछ दिनों की बात थी





कुछ दिनों पूर्व

समय करीब शाम के आठ बजे
स्थान : पूर्व दिल्ली की कोई गली

पुत्र आयुष को जुडो कराटे की प्रशिक्षण कक्षा से वापस लेकर लौट रहा हूँ | तीन दिनों से लगातार हो रही बूंदाबांदी ने सड़क को घिचपिच सा कर दिया है | अचानक ही स्कूटी की तेज़ लाईट में सड़क के बीचों बीच कोई औंधा पड़ा है ,रौशनी सड़क पर सिर्फ आती जाती गाड़ियों से बीच बीच में पड़ती छुपती है | लोग आ जा रहे हैं , कोई देखने की ज़हमत नहीं कर रहा |

मैं अचानक ही ब्रेक लगाता हूँ पुत्र आयुष अकचका कर मुझे देखता है | दो मिनट में ही समझ जाता हूँ कि इस बारिश के मौसम में कोई युवक दिन से खूब सारी शराब उड़ेल उड़ेल के खुद को ऐसा कीड़ा/केंचुआ बना चुका है की अब उसे कोई फ़िक्र नहीं नाली में हो या सड़क पर और उसे कोई फर्क भी नहीं पड़ रहा | मैं आदतन तुरंत ही दिल्ली पुलिस को फोन करके पूरी स्थिति बताता हूँ साथ ही ये ताकीद की फ़ौरन ही इसे उठा कर अस्पताल पहुँचायें || मुझे बताया जाता है की पीसीआर की एक गाड़ी उसे देखने निकल चुकी है |

थोड़ी ही देर बाद मेरे फोन पर एक आरक्षी का फोन ,वो मुझसे जगह की बाबत पूछता है और अंदाज़ ये मानो सारी झल्लाहट इस बात की जैसे कोई गुनाह कर दिया गया हो | मेरा स्वर तल्ख़ और अंदाज़ खुरदुरा हो जाता है और फिर मजबूरन "कचहरीनामा खोल"(अपना परिचय देकर ) कर उसे डांटना पड़ता है | वो सॉरी सॉरी कह कर फोन रख देता है |
1 . शहरों में समाज मर चुका है | 
२. पुलिस जो इसी समाज से है ,वर्दी पहनते ही उसकी आत्मा भी मर जाती है (अपवाद के लिए पूरी गुंजाईश है ) | 
३. शराब आज देश की रगों में तेज़ाब बन के बह रहा है |
सोच रहा हूँ की शायद अदालत में कार्यरत होने के कारण स्वाभाविक रूप से निर्भय होकर पुलिस क़ानून मीडिया को बुला कर बात कर लेता हूँ ............