सोमवार, 15 जुलाई 2024

तो क्या फेसबुक भी बंद हो जाएगा ???

 



                      
 
                                            



रविवारीय चिंतन 

ब्लॉग्गिंग के जमाने में एक शब्द बहुत प्रचलित हुआ था या किया गया था और फिर उस पर भारी बहस चली थी। 

वो शब्द था -घेटो।  जी हाँ घेटो 

किसी भी बने हुए बड़े समूह , संस्था से जुड़े लोगों में से , सिर्फ कुछ गिने चुने लोगों द्वारा , जाने अनजाने आपसी संवाद और विमर्श का एक घोषित अघोषित सा बना या बन गया एक विशेष गुट।  

इस गुट के बनते ही समूह के बाकी सदस्यों , साथियों की बातों पोस्टों प्रतिक्रियाओं आदि से इस घेटो को कोई लेना देना नहीं रहता।  जाने अनजाने ये गुट,  प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सिर्फ एक दुसरे की गतिविधियों और बातो में ही रूचि रखता और दिखाता है।  

घेटो की दूसरी खासियत ये होती है कि घेटो के किसी भी सदस्य से कोई भूल चूक लेनी देनी हो जाए तो फिर पूरा घेटो या तो उस पर चुप्पी लगा जाता है या फिर लामबंद हो जाता है।  

ब्लॉग्गिंग के दिनों में हुई ब्लॉग बैठकों में भी काफी कुछ हुआ और होता रहा , और कहने को आभासी दुनिया में परिचित हुए , मित्र बने लोग जल्दी ही एक दूसरे के ऐसे कट्टर विरोधी हो जाते कि फिर उनकी दिशा और दशा ही बदल जाती।  

इन दिनों फेसबुक का कर फेसबुक पर विभिन्न समूहों का समय चल रहा है , अच्छा या बुरा जो भी , और इन सबमें भी धीरे धीरे ठीक वही सब देखने पढ़ने सुनंने को मिल रहा है जो कभी हमें हिंदी ब्लॉग्गिंग करते हुए महसूस हुआ करता था।  

अपने इन्हीं अनुभवों के आधार पर एक बात मैंने कहीं लिखा था कि सच कहूँ तो मैं अपने किसी भी आभासी मित्र से कभी प्रत्यक्ष रूप से नहीं मिलना चाहता।  असल में किसी के भी शब्दों और छवियों को देखकर हमारे मन में किसी की भी जो छवि बनती है या हम जाने अनजाने बना लेते हैं वास्तविकता जरूर उससे कहीं न कहीं थोड़ा अंतर रखती है और यही अंतर कब मतान्तर बन जाता है पता ही नहीं चलता।  

ऑरकुट , गूगल बज , जैसे जाने कितने ही सोशल नेट्वर्किंग मंच आए और कालान्तर में अपना जो भी जैसा भी प्रभाव छोड़ कर सब समय की गर्त में चले गए और भुला दिए गए , एक दिन ये फेसबुक भी चला जाएगा और हम भी।  

गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

तो क्या बीते जमाने की बात हुई ब्लॉग लेखन

 







पिछले काफी समय से एक व्हाट्स एप समूह से जुड़ा हुआ हूँ जो अपने ही ब्लॉगर मित्र बंधुओं ने बनाया था और उसमें  सौ से अधिक संख्या में ब्लॉगर साथी न सिर्फ जुड़े हुए हैं बल्कि नियमित रूप से कुछ न कुछ साझा भी करते हैं , हाँ ये देख कर अब हैरानी या हताशा भी नहीं होती कि साल भर में भी कोई इक्का दुक्का पोस्ट , सिर्फ ब्लॉग पोस्ट लिखी और साझा की जाती तो और भी आनंद आता लेकिन अब ब्लॉग लेखन वो भी हिंदी ब्लॉग लेखन भी अन्य माध्यमों के आने से आउट डेटेड हो गया है क्या ??






क्या कोई भी सच में ही ब्लॉग लेखन नहीं कर रहा , पहली नज़र में देखें तो लगता तो ऐसा ही है , लेकिन जब मैं ब्लॉगर के अपनी पसंद के ब्लॉग पठन की सूची देखता हूँ तो पाता हूँ कि कोई तो है , बल्कि कई लोग हैं जो आज भी अब भी कभी नियमित अनियमित होकर या गाहे बेगाहे ही लिखते जरूर हैं।  

लिखने की बात से याद आया कि इन दिनों जापान कोरिया समेत कई देशों में लिखने पढ़ने और विशेषकर हाथ से लिखने पर दोबारा जोर देने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं।  असल में टाइपिंग , कंप्यूटर और मोबाइल तकनीक ने  आपसी सम्प्रेषण में लिखने की जगह टाइप करने या सिर्फ बोलने तक सीमित कर दिया है। 

इन देशों के शिक्षाविदों का ये भी मानना है कि आज भी दुनिया भर में पुस्तकों , ग्रंथो, , अखबारों और पत्रिकाओं का एक बहुत ही व्यापक प्रसार और प्रभाव है जिसे बचाए और बनाए रखने के लिए जरूरी है कि लोग लिखें और खूब लिखें और इसके लिए वे किसी भी यंत्र या तकनीक के मोहताज न बन कर रह जाएं।  

सरकारी दफ्तरों , और अन्य संस्थानों में तो अब हाथ से लिखने , रजिस्टर में दाखिला करने आदि की परम्परा कम्प्यूटरीकरण के बाद से बिलकुल ही समाप्त हो गई है या धीरे धीरे होती जा रही है , अलबत्ता बैंक के कई फ़ार्म और किताबों की पांडुलिपि अब भी बहुत लोग हाथ से ही लिख लेते हैं लेकिन देखना है कब तक।  


मैं खुद अपने किसी भी ब्लॉग पर पिछले एक साल से लगभग न के बराबर ही कुछ भी लिख पाया , और आप ?????