गुरुवार, 24 नवंबर 2011

सरकार की उगाही और घोटाले











 दिल्ली नगर निगम ,राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ,बहुत जल्दी ही , साफ़ सफ़ाई , स्वच्छता के लिए एक नया कर ,सैनिटेशन कर ,लाने की तैयारी कर रहा है । मौजूदा समय के राजनीतिक हालातों को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि ,थोडे बहुत हील हुज्जत के बाद सरकार ये कर आम लोगों पर थोप ही देगी । सबसे बडी विडंबना ये है कि ,जिस समाचार माध्यम पर इस आशय की खबर दिखाई सुनाई दे रही थी उसके साथ ही ये खबर भी थी कि ,एक दिन पहले पूर्वी दिल्ली में एक व्यवसायी की मौत ,  बीस फ़ीट गहरी सीवर लाईन के मैनहोल के खुले ढक्कन में गिर कर हो गई । और ऐसा नहीं है कि ये कोई इकलौती घटना है । इन दोनों बातों को देखते समझते हुए आम आदमी के सामने कुछ गंभीर प्रश्न उठ कर आ जाते हैं । पिछले एक दशक में सरकार नए नए करों, और करों पर उपकर लगाने की संभावना तलाश कर उन्हें मनमाने तरीके से आम लोगों पर थोप रही है उससे यही लग रहा  है कि सरकार किसी न किसी बहाने से आम लोगों के खून पसीने की गाढी कमाई में से हिस्सेदारी वसूल रही है । 


देश के अर्थशास्त्र और उसे पूंजीवान बनाए रहने के लिए ये जरूरी है कि सरकार अपने नागरिकों से कर वसूलने के अधिकार का प्रयोग करे , उसमें किसी नागरिक को कोई आपत्ति भी नहीं है , किंतु यकायक ही बिना किसी आधार के , बिना आम लोगों की राय मंशा जाने सीधा एक कर उनपर थोप देना न्यायसंगत नहीं लगता ,खासकर उस शासन प्रणाली में तो कतई नहीं जो खुद को आधुनिक युग का सबसे सफ़ल प्रजातंत्र मानता हो । सरकार किसी भी नए कर के प्रस्ताव और उसे कानून बना कर जनता के ऊपर थोपे जाने के मामलों में उतनी ही और ठीक वैसी ही जल्दबाज़ी दिखाती है जितना कि सांसदों व विधायकों के वेतन वृद्धि के समय । 

इससे अलग और ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि , सरकार पुराने करों के साथ साथ नए नए कर उपकर भी आम लोगों पर लादे जा रही हैं । आम आदमी जो पहले ही दैनिक जरूरतों की वस्तुओं को पाने के लिए , अच्छा आवास , रोजी , शिक्षा ,स्वास्थ्य के लिए महंगाई से जूझ रहा होता है , सरकार व प्रशासन आम आदमी को तो कानून और कर चोरी के अपराध का डर दिखा कर उसे कर चुकाने पर मजबूर भी कर लेती है , किंतु लाखों करोडों अरबों रुपए का कर चोरी करने वाले बडे औद्यौगिक घराने , बडे बडे राजनीतिज्ञ ,खिलाडी ,अभिनेताओं आदि पर अपनी सख्ती नहीं दिखाती है । 


आम आदमी का गुस्सा इन करों को दिए जाने से ज्यादा तब फ़ूट पडता है जब वो देखता है कि उसकी गाढी कमाई से निकले हुए एक भाग को राजनीतिज्ञ व प्रशासक घोटाले गबन करके हडप कर जाते हैं ,और इसका परिणाम ये होता है कि इन करों के आधार पर आम लोगों के विकास और सुविधा के लिए जो योजनाएं और निर्माण कार्य     होने होते हैं वे सब इसकी भेंट चढ जाते हैं ।ज्ञात हो वाहनों को खरीदते समय ही ग्राहक से आजीवन पथकर के रूप में राशि वसूल ली जाती है और देश की सडकों का हाल वास्तविकता बयां करता है कि उस पथकर का उपयोग सडक के लिए कितना किया जाता है । खराब सडकों के कारण प्रतिवर्ष हादसे में सैकडों व्यक्तियों की मौत के लिए सरकार अपनी जिम्मेदारी लेना तो दूर , इन दुर्घटनाओं में पीडितों को मिलने वाले मुआवजे को देने में भी जैसी असंवेदनशीलता दिखाती हैं वो शर्मनाक और निंदनीय है । 


दिल्ली सरकार देर सवेर सैनिटेशन चार्ज़ वसूलने के लिए नया कानून तो ले ही आएगी , और यदि इस कानून के बाद जनता को शहर की स्वच्छता के कार्य में कुछ प्रतिशत भी सकारात्मक दिखता है तो यकीनन उसे अफ़सोस नहीं होगा बल्कि खुशी से वह कह सकेगा कि शहर की सुंदरता में उसका अपना भी कुछ योगदान है , हालांकि एक नागरिक के रूप में लोग स्वयं ही गंदगी को न फ़ैला कर , कूडे कचरे का सही और समुचित निस्तारण व्यवस्था में हाथ बंटा कर गलियों शहरों को सुंदर रखने में मदद करें तो ऐसे करों और उपकरों की नौबत ही नहीं आएगी । इसके अलावा सरकार को उन लोगों पर भी भारी जुर्माने और सज़ा का प्रावधान करना , न सिर्फ़ कानूनन बल्कि व्यावहारिक रूप में करना चाहिए । साठ सालों से बिगडती हुई तस्वीर को अगले साठ सालों में बिल्कुल लुप्त हो जाने से बचाने के लिए कुछ तो कठोर करना ही होगा । यदि इसी तरह से आम जनता द्वारा वसूले जा रहे कर धन को राजनीतिज्ञ अपने विदेशी बैंक खातों में भरते रहेंगे तो फ़िर जनता अपना रास्ता चुनने को बाध्य होगी , और नए जनांदोलनों की शुरूआत का बहाना भी । 



8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सार्थक सोच है आपकी.

    सरकार की उगाही और घोटालों ने अब
    तक तो जनता को त्रस्त ही किया है.

    आगे न करेगी,इसकी उम्मीद कम ही है.

    अच्छे लेखन के लिया आभार, अजय भाई.

    मेरे ब्लॉग पर आपने आना जाना बंद किया हुआ है.क्या कोई गल्ती हुई है मुझसे ?

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  2. "यदि इसी तरह से आम जनता द्वारा वसूले जा रहे कर धन को राजनीतिज्ञ अपने विदेशी बैंक खातों में भरते रहेंगे तो फ़िर जनता अपना रास्ता चुनने को बाध्य होगी , और नए जनांदोलनों की शुरूआत का बहाना भी । "

    कब ? क्या गुजरे ६५ सालों का दर्पण काफी नहीं था इस जनता को अपना रास्ता चुनने के लिए ? बहुत पहले मैंने अपने एक लेख में यह बताया था कि भला हो इन घोटालों का जो समय पर उजागर हो गए और दिल्ली सरकार की हर फ़्लाइओवर पर वाहनों से टैक्स वसूलने की योजना खटाई में पड़ गई, और अब वे कंजेशन टैक्स ला रहे है जल्दी ! जब आज की इस सरकार के किसी नुमाइंदे से पूछो कि भाई, जो टैक्स हने दिया उसका क्या किया आपने ? तो वह तुरंत सीना ठोककर कहता है देखिये कितनी सड़के और फ़्लैओवर बनाए है हमने....... लेकिन इनके इस दावे की हवा तब निकल जायेगी जब कभी आप दिल्ली से अमृतसर अपने वाहन से जाओ और पाओगे कि तमाम बी ओ टी प्रोजेक्ट पर जितने का टोल टैक्स आपने भरा, उतना तो आपकी गाडी ने इंधन भी नहीं खाया !..........झा साहब, यकीन मानिए ये बेवकूफ जनता कभी अपना रास्ता नहीं चुन पायेगी.....बस ऐसे ही चलेगा जैसे चल रहा है !

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  3. सरकार से उम्मीद करना मुश्किल काम है... फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है... :-)

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  4. देखते हैं क्या होता है आगे आगे ....!

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  5. सार्थक चिंतन ...

    सरकार बस क़ानून बना देती है उस पर अमल अपने फायदे के लिए करती है ..

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  6. सफाई के बहाने आप ही साफ हो जायेंगे।

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  7. मुझे तो सरकार से कोई शिकायत नहीं है। जनता यही डिजर्व करती है। अभी बहुत विरोध हो रहा है न,बस दो-चार ढंग का विधेयक आ जाने दीजिए,जनता फिर इन्हीं को बिठाएगी सर-आंखों पर।

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  8. नया कर??????????? तो फिर अब तक जो कर दे रहे हैं वो क्या कर’ने के लिए????????

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..