बुधवार, 28 अगस्त 2013

लिखतन लिखतन जग मुआ , हाय पोस्ट पढे न कोय ........





एक टैम हुआ करता था जब पोस्ट के आने से पहले ही टीप मिल जाया करती थी । अरे हंसिए मत जी एक वाकया तो हमें भी याद है । ये उन दिनों की बात थी जब ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत नाम के दो धुरंधर एग्रीगेटर न सिर्फ़ धुंआंधार आती पोस्टों बल्कि टिप्पणियों को भी मुख्य पेज पर दिखाता था । तो ऐसे ही एक समय में एक पोस्ट आई जिसमें गलती से सिर्फ़ शीर्षक भर ही था भीतर कुछ नहीं लिखा था , इससे पहले कि पोस्ट एडिट होकर दोबारा आती इधर दे धडाधड टिप्पणियों ने अपना काम कर दिया था । वो बेहद रोचक दौर था और मुझे ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि ब्लॉगवाणी पर दिखती उन दिलचस्प टिप्पणियों के कारण भी पाठक कई बार उन पोस्टों पर पहुंच जाते थे जिनपर शायद पहले नहीं पहुंचे होते थे । 


आज की तुलना में उन दिनों ब्लॉगों और ब्लॉगरों की संख्या कम थी लेकिन फ़िर भी कुछ ब्लॉगर जो न सिर्फ़ पोस्ट लिखने में बल्कि टिप्पणियों में भी बहुत नियमित हुआ करते थे जैसे कि आज भाई प्रवीण पांडेय जी अक्सर ब्लॉग पोस्टों पर टिप्पणीकर्ताओं की कतार में दिख ही जाते हैं वैसे ही । हम भी उस समय कुछ ऐसे ही कमर कस कर ब्लॉगिंग में लॉगिंग किए बैठे रहते थे कि या तो लिख रहे होते थे या  टीप रहे होते थे । और फ़िर होता भी क्यों नहीं , उस समय कौन सा ब्लॉगिंग की ये पैदा हुई सौतें , फ़ेसबुक , ट्विट्टर आदि इत्ती फ़ैशन में थीं ले देकर ऑरकुट और उसकी कम्युनिटीज़ थीं , मगर ब्लॉगिंग का तोड बनने का माद्दा कहां था उनमें । 

ऐसा नहीं था कि ब्लॉगिंग में मंदी का दौर नहीं आया,  आता जाता रहता था जी , लेकिन उसकी भरपाई के लिए हम सब ब्लॉगर खुदही कोई न कोई उठापटक वाला एंगल निकाल के दंगल शुरू कर लेते थे , फ़िर तो बात टिप्पणी और प्रतिटिप्पणी से शुरू होकर पोस्ट प्रतिपोस्ट , आरोप प्रत्यारोप तक पहुंच के माहौल को कुछ इस तरह से गर्म कर देती थी कि मज़ाल है जो कोई पोस्ट लिखने या टिप्पणी करने के अपने ब्लॉगरीय फ़र्ज़ से ज़रा भी चूक जाए । उन दिनों इसमें , होने वाली ब्लॉग बैठकियां , मिलन , आदि ने और बाद में पुरस्कार और पुरस्कार के तिरस्कार ने भी काफ़ी अहम भूमिका निभाई थी । हालांकि इन अचूक अस्त्रों पर तो हमें अब भी पूरा भरोसा है , यदा कदा बमबार्डिंग तो हो ही जाती है ।


इसमें कोई संदेह नहीं कि ब्लॉगिंग की इन सौतनों , खासकर फ़ेसबुक ने तो ब्लॉगरों के एक बडे समूह को जैसे हाइजैक ही करके रख लिया  , उनमें से तो एक हम खुद ही रहे । लेकिन ऐसा नहीं है कि ब्लॉगिंग की या ब्लॉगरों के आगमन की रफ़्तार थमी । कहते हैं न खाली हुए स्थान को भरने के लिए कोई न कोई आ ही जाता है । आज देखा जाए तो ब्लॉगरों की एक नई पीढी पूरी शिद्दत से महफ़िल जमाए हुए है । न सिर्फ़ खूब लिखा पढा जा रहा है बल्कि अब तो देखता हूं कि लिंक्स को सहेज़ कर एक साथ प्रस्तुत करने वाले प्रयास भी काफ़ी किए जा रहे हैं |


""एक बात जो सबसे ज्यादा खटक रही है वो ये कि सुबह से शाम तक जाने कितनी ही पोस्टें लिखी जा रही हैं , वो भी बेहतरीन और नायाब पोस्टें , एक से बढकर एक , अलग अलग विषयों और क्षेत्रों पर , मगर कई दिनों बाद भी उन पोस्टों पर पहुंचने के बाद भी वे अनछुई अनपढी सी लग रही हैं , हम पढ कम रहे हैं या टिप्पणी नहीं कर रहे हैं । कारण जो भी हो , मगर ब्लॉग लेखकों के ये कहने के बावजूद कि इससे कोई फ़र्क नहीं पडता कि कोई पढे न पढे टीपे न टीपे , मुझे लगता है फ़र्क पडता तो है । मैं अपनी पुराने अंदाज़ और रफ़्तार में आने जा रहा हूं , देर सवेर आपको अपनी पोस्टों में प्रतिक्रिया देता , कुछ कहता , लिखता , दिख ही जाउंगा , जो साथी नियमित हैं वे तो मिलेंगे ही , मुझे उम्मीद है कि आप सब कहीं न कहीं टिप्पणी प्रतिटिप्पणी में भी मिलेंगे ...................मिलेंगे न "

35 टिप्‍पणियां:

  1. अभी राह में कई मोड़ है कोई आएगा कोई जाएगा
    मिलेगें भई मिलते ही रहेगें !

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  2. हाँ,हाँ ,बिलकुल,जित्ता भी बन पड़े !

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  3. अब हम तो टिप्पणी की आस लगाना छोड़ चुके हैं, हमे तो बस अपने विचारों को अभिव्यक्ति कर देते हैं ।

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    1. नहीं जी मर्दे ई ठीक नहीं है हो , टिप्पणी की आस लगाना छोड चुके हैं इत्ता तक तो मामला फ़िर भी सहेबल है जी ,मुदा टीपना भी छोड दीजीएगा त नय न चलेगा , खैंच के ले आएंगे

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    2. सच में न जाने कब टिप्पणियाँ धीरे धीरे साथ छोडती चली गयीं...

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    3. अबे जाएंगी कहां धर के लिए आएंगे

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  4. ये तो है कि उपर्युक्त दोनों एग्रीगेटरों के चलते एक प्रतियोगिता सी बनी रहती थी जो अब खत्म हो गयी है.

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    1. हां सही कह रहे हैं आप भारतीय नागरिक जी , न सिर्फ़ प्रतियोगिता बल्कि रोचकता भी बनी रहती थी :)

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    2. हां शेखर सच कह रहे हो , वो दौर ही कुछ और था

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  5. कोई लौटा दे वो बीते हुए दिन...

    ब्लॉगिंग के भवसागर में टिप्पणियों की सरस्वती फिर झर-झर बहे, इसी कामना के साथ...

    जय हिंद...

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    1. जय हिंद खुशदीप भाई । जरूर लौटेंगे वे दिन या उससे भी बेहतर दिन

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  6. माहौल सकारात्मक अधिक है इन दिनों !!
    ब्लॉगर परिपक्व हो गए है , शांति से बात सुनते कहते हैं !!
    वही लिखा जा रहा है जो श्रेष्ठ है , कुछ अपवादों को छोड़ कर !

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  7. वो दौर कुछ और था। पर अब तो कह सकता हूँ मुझे तो अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था।

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  8. ब्लॉगिंग बाकई आपने आप में ज्ञान का अथाह सागर है...........मैं भी आजकल इसमें दिलचस्पी ले रहा हूँ और आपके अंदाज़ और रफ़्तार की प्रतिक्षा भी।

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  9. सभी तरह का वख्त कभी भी एक सा नहीं रहता अजय सर, समय के साथ कदमताल करनी ही होती है।

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  10. ऐसा लगता है की खाना खाकर---चुपचाप चल दिए

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  11. इसी उम्मीद पर तो ब्लॉगिंग है..

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  12. अभिव्यक्ति तो सदा ही बनी रहेगी, आप कितना चाह लें, लिखना कहाँ छोड़ पायेंगे।

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    1. कौन कम्बख्त लिखना छोडना चाहता है , हम तो जीते ही इसलिए हैं ताकि लिख सकें

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  13. तुम्हे कुछ याद हो न हो .... :-) ...

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..