रविवार, 30 जुलाई 2017

अरे ! क्या आपके साथ भी ???






कुछ रोचक बातें जो मैंने अनुभव की हैं और शायद मेरी तरह और भी दोस्तों ने की हो , क्योंकि इस समाज में रह रहे हम आप सब कहीं न कहीं किसी न किसी वक्त बिलकुल एक से होते और हो जाते हैं ...आइये देखते हैं पहले

बस स्टॉप पर खड़े होने पर थोड़ी ही देर में ऐसा लगने लगता है कि , बस एक वही बस कमबख्त सबसे बाद में आयेगी या आने वाली है शायद जिसमें हमें सवार होना है , हालांकि तेज़ी से कैब और टैक्सी की तरफ भागती दुनिया में अब शायद ये बहुत कम हो रहा हो 


अक्सर रेस्तरां में आर्डर देने से पहले आसपास नज़र बेसाख्ता चली जाती है कि देखें कि आस पड़ोस में क्या तर माल उड़ाया जा रहा है और फिर परोसे जाने पर ज़रा सा भी मन मुताबिक़ न होने पर पास दूर वाली टेबल पर मज़े से चाव लेकर खाते किसी को देख कर मन ही मन सोचना कि , धत यार , अपन भी यही आर्डर करते तो ठीक रहते , ये अलग बात है कि बहुत बार उस टेबल पर बैठा भी मन ही मन यही सोच रहा होता है|

और ऐसा ही महिलाओं के साथ सूट साड़ियाँ खरीदते समय , अपने द्वारा पसंद किये गए या फिर पसंद किये जा रहे कपडे से अधिक आजू बाजू वाली साथिन खरीददार के हाथों या कहिये कि चंगुल में फंसे कपडे पर यूं नज़र गडी होती है मानो कह रही हों , तू रख तो सही एक बार नीचे मजाल है जो फिर हाथ से जाने दूं |


दूसरों के घरों और रसोई से उठती खुशबू से अपने फूलते नथुनों से जल फुंक कर सोचना कि वाह भईया हमारे पड़ोसी की तो खूब ऐश है तरह तरह के पाक पकवान की दावत हो रही है , वहां अगला भी आपके घर की रसोई से निकल रही सरसों की साग की खुशबू से बौराया यही , बिलकुल यही सोच रहा हो ...



और भी जाने कितनी ही ऐसी बातें रोज़ या कभी कभी होती हैं हमारे जीवन में , और आपके .....??????

7 टिप्‍पणियां:

  1. दूसरे की थाली में घी ज्यादा ही नजर आता है

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  2. बिल्कुल ऐसा ही होता है सबके साथ.
    रामराम
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन तुलसीदास जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  4. हाँ,पर बहुत से लोग मानेंगे नहीं न !

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  5. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. कहा जाता हैं न कि दूर के ढोल सुहाने लगते हैं। सुंदर प्रस्तुति।

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..