बागवानी मन्त्र
चलिए आज की इस कड़ी में हम बात करेंगे बागवानी से जुड़े उस विषय की जो होता तो सबसे जरूरी है मगर आश्चर्यजनक रूप से सबसे अधिक उपेक्षित विषय है और वो है जड़ों की निराई गुड़ाई , जड़ों की मिट्टी का ऊपर नीचे किया जाना। पिताजी किसान थे , वे अक्सर कहा करते थे जिस तरह सुबह उठ कर फेफड़ों की सफाई के लिए श्वास नलिका और नासिका में अवरुद्ध पित्त्त कफ्फ़ को साफ़ रख कर हम नित्य उन्हें अवरोध मुक्त रखते हैं इसी तरह से पौधों की जड़ों तक हवा ,पानी ,नमी और धूप के संतुलित आहार के लिए पौधों का निराई गुड़ाई बहुत जरूरी बात है।
मैंने अनुभव किया है और देखा पाया है कि अधिकाँश मित्र अक्सर जाने अनजाने पौधे के ऊपरी हिस्से पर बहुत अधिक श्रम और ध्यान देते हैं मगर अपेक्षाकृत- जड़ों की तरफ उदासीनता बनी रह जाती है बेशक कई बार ये जानकारी न होने के कारण भी होता है।
यदि मैं पूछूँ कि , आप अपने पौधों की जड़ों की मिट्टी को कितनी बार हाथ से छू कर देखते हैं , मौसम के अनुसार क्या आपको उनमें बदलाव महसूस होता है , क्या आपने सुनिश्चित किया है कि गमले में जितना पानी आप दे रहे हैं उसकी नमी उस गमले की सबसे नीचे की आखरी जड़ों और रेशों तक पहुँच रही है , जड़ों में अक्सर लग जाने वाली चीटीयों और अनेक तरह के कीटों का सबसे सटीक उपाय और इलाज - निराई गुड़ाई है। यदि मैं कहूँ कि मैं अपने पौधों में हर दूसरे दिन निराई गुड़ाई करता हूँ और क्यारियों में हर चौथे पाँचवे दिन तो शायद बहुत से दोस्तों को नई बात लगेगी क्यूंकि बकौल उनके वे सप्ताह या पंद्रह दिन में एक बार निराई गुड़ाई करते हैं।
निराई गुड़ाई जितनी जरूरी और लाभदायक नन्हें छोटे पौधों के लिए होती है उतनी ही जरुरी बड़े बड़े वृक्षों विशेषकर फल देने वालों के लिए भी होती है। आम लीची केले के बागानों में अक्सर जड़ों की निराई गुड़ाई और जड़ों की मिट्ठी दुरुस्त किए जाने का काम होता है। खीरे , कद्दू, लौकी , आदि तमाम बेलों की जड़ों पर अच्छी तरह से मिट्ठी चढ़ाते रहने का काम जरूरी होता है अन्यथा जड़ें कमज़ोर होकर गलने लगती हैं और कई बार बेलों के अकारण खिंच जाने से टूट भी जाती हैं।
धनिया ,पुदीना , पालक आदि साग पात में निराई गुड़ाई की गुंजाइश सिर्फ क्यारियों में ही उचित होती है गमलों में नहीं और अमरूद आँवला की जड़ें रेशेदार होती हैं इसलिए खुरपी चलाते समय ये डर न हो कि मिट्टी ऊपर नीचे करते समय वो रेशे कट रहे हैं। थोड़े दिनों में वे अपने आप अपनी जगह पकड़ लेते हैं।
खाद डालने से पहले निराई गुड़ाई उतनी ही जरुरी और लाभदायक होती है जितनी कि कोई पीने वाली दवाई की शीशी को उपयोग करने से पहले जोर जोर से हिलाना। खाद चाहे सूखी डालनी हो या गीली घोल वाली , मिटटी की निराई गुड़ाई किए रहने से वो जड़ों तक अधिक तेज़ी और प्रभावी रूप में पहुंचती है।
अब कुछ ध्यान देने वाली बातें , बरसातों में यथासंभव निराई गुड़ाई नहीं की जानी चाहिए जब तक कि जड़ों में अतिरिक्त पानी जमा होकर जड़ों को नुकसान पहुंचाने की संभावना न हो जाए। निराई गुड़ाई इस तरह से बिलकुल न करें कि जड़ों में अपना घर बनाए केंचुए और जोंक सरीखे मिटटी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाले जीव जंतु परेशान हों , उन गमलों में निराई गुड़ाई की जरुरत नहीं जीव खुद ब खुद कर लेते हैं
निराई गुड़ाई करें किससे -सबसे मजेदार उत्तर। किसी भी चीज़ से , खुरपी से लेकर चमच्च और कई बार काँटे छुरी तक से वैसे कायदे से तो ग्लव्स पहन कर पतली खुरपी से किया जाना चाहिए यही सुरक्षित भी होता है मगर जरूरी है की आप करें यदि ये न भी उपलब्ध हों तो भी
बढ़िया जानकारी .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी
हटाएंसैल्यूट सर जी
जवाब देंहटाएंप्रणाम सर जी
हटाएंसार्थक लेखन, सुन्दर जानकारी।
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्री जी।
हटाएंबहुत सही
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सर
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