सोमवार, 29 मार्च 2010

हिंदी ब्लोग्गिंग भी करवट बदल रही है , कुछ पोस्ट झलकियां …….

 

अब कोई कह के दिखाए कि हिंदी ब्लोग्गिंग में गंभीरता नहीं दिखती । पिछले कुछ दिनों में आई पोस्टों और उनपर हुई बहस ने बता और जता दिया है कि आने वाले समय में हिंदी ब्लोग्गिंग पर हो रही हलचल, विमर्श , बहस और उसका निष्कर्ष के बहुत बडे मायने होंगे । और इतना ही नहीं सबसे खुशी की बात तो ये है कि हिंदी ब्लोग्गिंग को विस्तार देने के लिए ..एक साथ ही बहुत सारे प्रयास शुरू किए जा रहे हैं । अभी ज्यादा कहना थोडी जल्दबाजी होगी मगर हमने विचार किया है कि भविष्य में एक ब्लोग्गर कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा , जो बहुत सी तकनीकी बातों को साझा करने के लिए जाना जाएगा । खैर, अब आज की कुछ पोस्टों की झलकियां देखिए ….

 

Sunday, 28 March 2010

We all shit, we all pee but never talk about it - 2

बंबई में फिल्‍म रिपोर्टिंग करते हुए जब तक मैं खुद इस दिक्‍कत से नहीं गुजरी थी, मेरे जेहन में ये सवाल तक नहीं आया था। पब्लिक टॉयलेट यूज करने की कभी नौबत नहीं आई, इसलिए उस बारे में सोचा भी नहीं। लेकिन अब अपनी दोस्‍त लेडी डॉक्‍टर्स से लेकर अनजान लेडी डॉक्‍टर्स तक से मैं ये सवाल जरूर पूछती हूं कि औरतों के बाथरूम रोकने, दबाने या बाथरूम जाने की फजीहत से बचने के लिए पानी न पीने के क्‍या-क्‍या नतीजे हो सकते हैं? कौन-कौन सी बीमारियां उनके शरीर में अपना घर बनाती हैं और आपके पास ऐसे कितने केसेज आते हैं। मेरे पास कोई ठीक-ठीक आंकड़ा नहीं है कि लेकिन सभी लेडी डॉक्‍टर्स ने यह स्‍वीकारा किया कि औरतों में बहुत सी बीमारियों की वजह यही होती है। उन्‍हें कई इंफेक्‍शन हो जाते हैं और काफी हेल्‍थ संबंधी कॉम्‍प्‍लीकेशंस। कई औरतें प्रेग्‍नेंसी के समय भी अपनी शर्म और पब्लिक टॉयलेट्स की अनुपलब्‍धता की सीमाओं से नहीं निकल पातीं और अपने साथ-साथ बच्‍चे का भी नुकसान करती हैं। यूं नहीं कि ये रेअरली होता है। बहुत ज्‍यादा और बहुत बड़े पैमाने पर होता है। खासकर जब से औरतें घरों से बाहर निकलने लगी हैं, नौ‍करियां करने लगी हैं और खास तौर से ऐसे काम, जिसमें एक एयरकंडीशंड दफ्तर की कुर्सी नहीं है बैठने के लिए। जिसमें दिन भर इधर-उधर भटकते फिरना है।

 

Sunday, 28 March 2010

We all shit, we all pee but never talk about it - 2

बंबई में फिल्‍म रिपोर्टिंग करते हुए जब तक मैं खुद इस दिक्‍कत से नहीं गुजरी थी, मेरे जेहन में ये सवाल तक नहीं आया था। पब्लिक टॉयलेट यूज करने की कभी नौबत नहीं आई, इसलिए उस बारे में सोचा भी नहीं। लेकिन अब अपनी दोस्‍त लेडी डॉक्‍टर्स से लेकर अनजान लेडी डॉक्‍टर्स तक से मैं ये सवाल जरूर पूछती हूं कि औरतों के बाथरूम रोकने, दबाने या बाथरूम जाने की फजीहत से बचने के लिए पानी न पीने के क्‍या-क्‍या नतीजे हो सकते हैं? कौन-कौन सी बीमारियां उनके शरीर में अपना घर बनाती हैं और आपके पास ऐसे कितने केसेज आते हैं। मेरे पास कोई ठीक-ठीक आंकड़ा नहीं है कि लेकिन सभी लेडी डॉक्‍टर्स ने यह स्‍वीकारा किया कि औरतों में बहुत सी बीमारियों की वजह यही होती है। उन्‍हें कई इंफेक्‍शन हो जाते हैं और काफी हेल्‍थ संबंधी कॉम्‍प्‍लीकेशंस। कई औरतें प्रेग्‍नेंसी के समय भी अपनी शर्म और पब्लिक टॉयलेट्स की अनुपलब्‍धता की सीमाओं से नहीं निकल पातीं और अपने साथ-साथ बच्‍चे का भी नुकसान करती हैं। यूं नहीं कि ये रेअरली होता है। बहुत ज्‍यादा और बहुत बड़े पैमाने पर होता है। खासकर जब से औरतें घरों से बाहर निकलने लगी हैं, नौ‍करियां करने लगी हैं और खास तौर से ऐसे काम, जिसमें एक एयरकंडीशंड दफ्तर की कुर्सी नहीं है बैठने के लिए। जिसमें दिन भर इधर-उधर भटकते फिरना है।

पेपरवेट

क्रिकेट तमाशा बनकर रह गया है

प्रसून जोशी Monday March 29, 2010

पिछले दिनों मैंने आईपीएल के कुछ मैच देखे। क्रिकेट के इस नए फॉर्मैट में पिछले साल की तुलना में और अधिक ग्लैमर जुड़ा हुआ देखकर मैं हैरान था। सोचता हूं कि हम किसी भी चीज का कितना बाजारीकरण कर सकते हैं? गौर किया जाए तो इस खेल का अपना एक चरित्र है। जिस तरह हर इंसान का डीएनए उसके मूल स्वरूप की पहचान होता है, उसी तरह हर खेल का भी एक डीएनए होता है।
मेरी नजर में क्रिकेट इंसान के चरित्र को निर्मित करता है। व्यक्ति में धैर्य, रणनीति, एकाग्रता, सूझबूझ पैदा करता है और उसकी मानसिक सोच को प्रभावित करता है। मगर जिस तेजी से इस खेल में बदलाव हो रहा है, ऐसे में क्या इसका मूल स्वरूप बचा रह पाएगा? यह सवाल उठाना स्वाभाविक भी है और जरूरी भी।

गलत हाथों में फंसकर बर्बाद हुई जिंदगीimage

किरन बेदी Monday March 29, 2010

वह लड़की कोलकाता से दिल्ली आई तो थी पैसा कमाने, पर वक्त ने कुछ ऐसी करवट बदली कि वह गलत हाथों में फंसकर रह गई। पूर्व महिला आईपीएस अधिकारी किरन बेदी बता रही हैं उसकी की कहानी, उसी की जुबानी...

मेरा नाम मीरा है। मेरी उम्र 26 साल है और मैं प्राइमरी पास हूं। मैं कोलकाता की रहने वाली हूं। मेरी मां सरकारी नौकरी करती है। मेरा एक छोटा भाई और एक बड़ी बहन है। वह दिल्ली में रहती है और घरों में काम करने के लिए लड़कियां उपलब्ध कराने वाला छोटा सा प्लेसमेंट ऑफिस चलाती है।

 

रविवार, २८ मार्च २०१०

परिकल्पना ब्लॉग उत्सव को प्रायोजक मिला

कहा जाता है कि यदि चाहत सबल हो तो लक्ष्य मुश्किल नहीं होता । जब मैंने परिकल्पना ब्लॉग उत्सव की उद्घोषणा की थी तब शायद मुझे भी यकीन नहीं था कि यह आयोजन अपने मुकाम को प्राप्त करेगा , क्योंकि यह धुंध में उगे लक्ष्य रुपी पेंड की मानिंद अस्पष्ट दिखाई दे रहा था । उस पेंड पर बैठी चिड़िया की आंख देखना तो दूर वह चिड़िया भी मुझे दिखाई नहीं दे रही थी । खैर मेल के माध्यम से प्राप्त आपके बहुमूल्य सुझाव और काफी संख्या में विभिन्न विषयों पर प्राप्त रचनाओं से मेरा मनोबल बढ़ा ....सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि इस उत्सव के परिप्रेक्ष्य में कई वरिष्ठ सृजनकर्मियों की शुभकामनाएं भी प्राप्त हुई है ।

Sunday, 28 March 2010

..और इस बार फ्लाईट छूटी..(केरल यात्रा : संस्मरण -१)

लीजिये ,एक अल्पान्तराल के बाद फिर हाजिर हूँ .इस बीच विभागीय कार्य  से केरल यात्रा कर आया .सोचा था कि इस बार यात्रा की अपनी परेशानियों जिनसे अपुन का  चोली दामन का साथ है से ब्लागर मित्रों को बिलकुल भी क्लांत नही करूंगा .घर में तो "जहाँ जाईं गग्घोरानी तहां  पड़े  पत्थर पानी ' के कहावत को चरितार्थ करने वाला तनखैया घोषित हो ही चुका हूँ अब ब्लागजगत में भी अपनी यह लंठ इमेज रूढ़ करना खुद के फेवर में नही - किसी के साथ यात्रा आमंत्रण का  स्कोप भी खत्म !-कौन चलेगा हमारे साथ, जहाँ पग पग प्रयाग की कौन  कहें पग पग परेशानियां मानो स्वागताचार के लिए खडी हों .मगर मैं इसे दूसरे नजरिये से भी देखता हूँ -अपनी परेशानियों से अगले को कुछ सीख मिल जाए तो चलो परेशानियाँ भी सार्थक हो जाएँ .हाँ अगर अगला पहले से ही होशियार हो और मेरी तरह ही गोबर गणेश न हो तो बात दीगर है -मगर वो कहते हैं न कि दूसरो के अनुभव से बुद्धिमान   सीखते हैं और अपनों से मूर्खजन!

 

Monday, March 29, 2010

मन की तरंग

आज से कुछ दिनों तक अपनी पुरानी डायरी से चुनी रचनाएँ ब्लॉग पर रख रहा हूँ .
देखिये भाती हैं या नही

अंतर्ज्ञान
ज्ञान से दृष्टिकोण बदलतें हैं
अंतर्ज्ञान से दृष्टि ही बदलती है
......................
जागना
जागना हो तो जगत की हर चीज पर जागो
सोना है तो विचारों से भी सो जाओ

 

तेरे अहसास से        image

 

Posted on March 29, 2010 by वीर

 

जकड़ता है दर्द अंदर मुझे,
पिघलता हूँ तेरे अहसास से…

बरसों से जमी है नमी आँखों में,
सिमटता हूँ तेरे अहसास से…

थी ख़ामोशी की आदत बरसों से मुझे,
थोडा डरता हूँ तेरी आवाज़ से…

कहीं बेखुदी मेरी ना पी जाये तुझे,
मैं बिखर ना जाऊं तेरे अहसास से..

 

मेजर जोगेन्दर की शहादत पर...

Monday 29 March 2010

सुना था कि सुबह सूर्य की प्रथम किरण निकलने से ठीक पहले की बेला सबसे शुभ बेला होती है पूरे दिन की। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं और शास्त्रों में भी लिखा है, तो शायद सही ही बात होगी। किंतु उस दिन...इस मनहूस बीस मार्च की सुबह की ये कथित शुभ-बेला उतनी शुभ नहीं थी और अब तो शायद ता-उम्र शुभ नहीं रही मेरे लिये। गहरी-से-गहरी नींद में डूबा हुआ मानव-शरीर हल्के शोर-शराबे या धमाके से जाग जाता है एकदम ही। किंतु बीस मार्च की सुबह की उस शुभ-बेला में हुआ एक धमाका सोये हुये जोगी को जगाने की बजाय एक चीर-निद्रा में सुला गया, कभी नहीं जगने के लिये। जोगी...जोगेन्द्र शेखावत...मेजर जोगेन्द्र शेखावत
अभी ही तो आया था वो इस सुलगती घाटी में पोस्टिंग पे। बस दो ही महीने तो हुये थे। ऊपर ऊँचे पहाड़ों पे जमी बर्फ की सफेद चादरों पर कुछ संदेहास्पद पद-चिह्न दिखे थे हैलीकाप्टर से। उन्हीं पद-चिह्नों की तहकीकात करने जोगी को भेजा गया था। सात घंटे की कठिन चढ़ाई के बाद सुबह तीन बजे सुस्ताने और चंद देर की झपकी मारने हेतु लिया गया विश्राम, जोगी को हमेशा के लिये छीन ले गया हमसब से। हमारे प्रशिक्षण के दौरान ही हमें अपने हथियारों-आयुधों को अपने शरीर का ही एक अंग- एक महत्वपूर्ण अंग मान कर चलने की सिखलाई दी जाती है। राइफल तो अक्सर ही अर्धांगिनी की उपाधि पाती है। शरीर के अंग बने उन्हीं चंद आयुधों में से एक ग्रेनेड का फट जाना जोगी के लिये प्राण-घातक साबित हुआ।

 

Saturday, March 27, 2010   

विवाह संस्था को अवैध घोषित किया जाय या कम से कम इसे मान्यता तो न दी जाय

विवाह संस्था नारी शोषण का मूल है। अब स्थापित पुरुष प्रधान समाज ने यह एक ऐसा हथियार हजारो साल पहले ढूढ़ा जिसने मातृसत्तात्मक समाज को पितृसत्तात्मक बना दिया । बहुकाजी स्त्री को बर्बर शारीरिक बल के अधीन कर दिया गया और यौन शुचिता की बेड़ियों में उसके अस्तित्त्व को इस तरह कस दिया गया कि उसे निहायत प्राकृतिक विधानों पर भी आत्मघृणा होने लगी - मासिकधर्म । पुरुष स्वप्नदोष या वीर्यपात पर कभी लज्जित नहीं रहा या हुआ लेकिन नारी का रजोस्राव काल उसे अपवित्र और जाने क्या क्या बना गया। सबके मूल में कारण एक है - विवाह संस्था द्वारा नारी स्वतंत्रता का तिरोहण। यह पुरुष का 'मास्टर स्ट्रोक' था।  

 

Sunday, March 28, 2010

माता पिता का सम्मान करें

कभी कभी हम आक्रोश में आकर अपने माता या पिता को इस कदर बुरा भला कर देते हैं की उनके ह्रदय को बहुत आघात होता है | पर उस समय हम ये क्यूँ भूल जाते हैंकि ये वही माता पिता हैं जिन्होंने हमे इस काबिल बनाया की हम इस समाज में सर उठाकर चल सकें | हम ये क्यूँ भूल जाते हैं की ये वही माता पिता हैं जिन्होंने अपनी खुशियों का गला घोंट कर हमारी खुशियों को पूरा किया | एक मात या पिता अपने औलाद स ये उम्मीद कभी नहीं करते हैं की ये बड़ा होकर हमारी झोली भर देगा वो सिर्फ यही सोचते हैं की जिस औलाद का हमने बचपन में हाँथ पकड़कर चलना सिखाया है वो बुढ़ापे में हमारा हाँथ थमेगा | अतः आप सभी स यही अनुरोध है की गुस्से में आकर कभी भी अपने माता पिता को बुरा भला न कहे |

 

देश में एक पाठक्रम लागू करने के अभियान को जोर का झटका

29.3.10

देश में एक पाठक्रम लागू करने के मानव संसाधन विकास मंत्रालय व नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क (NCF-2005) के अभियान को जोर का झटका लगा है। राष्ट्रीय पाठक्रम के तहत पहले चरण में एनसीईआरटी ने विज्ञान, गणित और हिंदी की किताबें तैयार कीं लेकिन उसकी विषयवस्तु और भाषा को लेकर विवाद खड़ हो गया है। सरकार के सभी बदलाव पहले सीबीएसई स्कूलों में लागू होते हैं लेकिन इस बार मामला उलटा नजर आ रहा है। सीबीएसई स्कूलों ने एनसीईआरटी की नई किताबें पढ़ने से मना कर दिया है।

 

Monday, March 29, 2010

सवेरा ...

दूर क्षितिज में सूरज डूबा
साँझ की लाली बिखर गयी
रात ने आँचल मुख पर डाला
चाँद की टिकुली निखर गयी
ओस की बूँदें बनी हीरक-कणी
जब चन्द्र-किरण भी पसर गयी
तारे टीम-टीम मुस्काते नभ पर
जुगनू पूछे जुगनी किधर गयी ?

 

March 2010

आपके १८ वर्षीय बच्चे का आत्म विश्वास - सतीश सक्सेना

 

१८ वर्ष होने के अपने मायने हैं , वयस्क होते ही कानून से कुछ अधिकार अपने आप मिल जाते हैं ! इस उम्र तक आते आते बच्चों की अपेक्षाएं भी बढ़ी होती हैं  ! माँ बाप के उचित सहयोग से बच्चों में आत्मविश्वास और अपने बड़ों के प्रति आदर भावना विकसित होनी स्वाभाविक होती है !

 

रविवार, २८ मार्च २०१०

अल्पना के ग्रीटिंग्स की एक प्रदर्शनी-आर्ट गैलरी रायपुर मे-27मार्च से 31 मार्च तक

 

ललित शर्मा द्वारा निर्मित

सृजनशील हाथ सृजन कार्य मे निरंतर लगे रहते हैं, यह एक साधना है, इस साधना से नई कृतियों का जन्म होता है, जिसमें सृजनकर्ता की वर्षों की मेहनत लगी रहती है। जब उचित समय आता है तभी वह संसार के सामने आती हैं। आज एक ऐसी जुनुनी महिला सृजनकर्ता श्रीमति अल्पना देशपांडे जी से आपका परिचय कराते हैं, अल्पना जी जो हैंडमेड (हस्त निर्मि्त) ग्रीटिंग कार्ड के संग्रहण एवं निर्माण का दीवानगी की हद तक शौक है।

इनके संग्रह में अभी तक 12,345 के लगभग हस्त निर्मित ग्रीटिंग कार्ड हैं, जिसमें कुछ हजार इनके द्वारा निर्मित हैं, बाकी मित्रों द्वारा निर्मित हैं। अल्पना जी के ग्रीटिंग कार्डस में इतनी विभिन्नताएं हैं कि अगर हम उन्हे निर्माण सामग्री एवं उनकी विशेषताओं के आधार पर विभाजित करें तो कई हजार विभाग बन जाते हैं।

 

Sunday 28 March 2010

दुष्यंत और शंकुन्तला के बीच कौन सा संबंध था?

शकुन्तला के वचनों को सुनकर महाराज दुष्यंत ने कहा, “शकुन्तले! तुम क्षत्रिय कन्या हो। तुम्हारे सौन्दर्य को देख कर मैं अपना हृदय तुम्हें अर्पित कर चुका हूँ। यदि तुम्हें किसी प्रकार की आपत्ति न हो तो मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ।” शकुन्तला भी महाराज दुष्यंत पर मोहित हो चुकी थी, अतः उसने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। दोनों नें गन्धर्व विवाह कर लिया। कुछ काल महाराज दुष्यंत ने शकुन्तला के साथ विहार करते हुये वन में ही व्यतीत किया। फिर एक दिन वे शकुन्तला से बोले, “प्रियतमे! मुझे अब अपना राजकार्य देखने के लिये हस्तिनापुर प्रस्थान करना होगा। महर्षि कण्व के तीर्थ यात्रा से लौट आने पर मैं तुम्हें यहाँ से विदा करा कर अपने राजभवन में ले जाउँगा।” इतना कहकर महाराज ने शकुन्तला को अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में अपनी स्वर्ण मुद्रिका दी और हस्तिनापुर चले गये।

 

सोमवार, २९ मार्च २०१०

पत्र पत्रिकाओं के लिए ,ब्लोग पोस्टों पर आधारित मेरा साप्ताहिक स्तंभ "ब्लोग बातें" शुरू


पिछले काफ़ी समय से विचार करते करते आखिरकार आज जाकर हिंदी ब्लोग की पोस्टों पर आधारित और विभिन्न समाचार पत्रों के लिए मेरा नया कालम " ब्लोग बातें " शुरू हो ही गया । ये विचार तो काफ़ी पहले से मन में आ रहा था मगर हर बार कुछ अलग अलग कारणों से और कुछ अपने आलस्य के कारण योजना टलती जा रही थी । मगर अब जाकर ये सुनिश्चित हो ही गया है कि सोमवार के सोमवार मेरे द्वारा एक स्तंभ जो कि सप्ताह भर में किसी एक विषय या किसी एक खास मुद्दे के इर्दगिर्द लिखी गई पोस्टों का संकलन और विश्च्लेषण करता हुआ होगा । और बहुत जल्दी ही आपको उसकी छपी हुई प्रति ब्लोग औन प्रिंट पर देखने को मिलेगी । मेरा प्रयास ये होगा कि उन सभी ब्लोग्स को इसकी सूचना भी प्रेषित करूं ।

 

दैनिक जागरण में 'दुधवा लाईव'

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सोमवार, २९ मार्च २०१०

बुढ़ापा     image

-- मनोज कुमार

देवी मां के दर्शन के लिए पहाड़ की ऊँची चढ़ाई चढ़ कर जाना होता था। सत्तर पार कर चुकी उस वृद्धा के मन में अपनी संतान की सफलता एवं जीवन की कुछेक अभिलाषा पूर्ण होने के कारण मां के दरबार में शीष झुकाने की इच्‍छा बलवती हुई और इस दुर्गम यात्रा पर जाने की उसने ठान ली। चिलचिलाती धूप और पहाड़ की चढ़ाई से क्षण भर को उसका संतुलन बिगड़ा और लाठी फिसल गई।

 

लधुकथा - नकली मुठभेड़          image

डी.आई.जी. सुधांशु अपने कक्ष में आज अकेले बैठे हैं। तभी डी.वाय.एस.पी. शर्मा ने उनके कमरे में प्रवेश किया। शर्माजी आज बहुत खुश थे। उनकी प्रसन्नता छिपाए नहीं छिप रही थी। वे उत्साह में भरकर डी.आई.जी को बता रहे थे कि सर! आज हमें बहुत बड़ी सफलता हाथ लगी है। हमारी टीम ने दो आतंककारियों को पकड़ने में सफलता हासिल की है। इतना ही नहीं हमने उन्हें सारे सबूतों के साथ पकड़ा है।

 

बस जी आज के लिए इतना ही ………..उम्मीद है कि आपको ये पोस्टें पसंद आएंगी और मेरा प्रयास सफ़ल होगा …….

31 टिप्‍पणियां:

  1. अजय जी, आप का जवाब नहीं। आप हर बार चर्चा के लिए एक नया, अनोखा और रोचक तरीका ईजाद कर देते हैं। यह बहुत सुंदर लगा।

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  2. बहुत ही सुंदर चर्चा .. धन्‍यवाद !!

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  3. शुक्रिया सर ..हौसला अफ़जाई का । आप सबका स्नेह ही प्रेरित करता है कुछ न कुछ नया सोचने करने के लिए । सर "ब्लोग बातें" का पहला अंक लिव इन रिलेशनशिप पर आधारित होगा ....साथ और स्नेह बनाए रखिएगा ..
    अजय कुमार झा

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  4. बहुत अच्छी लगी आप की यह हिंदी ब्लांग की करवट जी, नये आंदाज मै, नये रुप मै.
    धन्यवाद

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  5. यह पोस्ट-मिलन आयोजन है, या चर्चा याकि पोस्ट-सम्मेलन.. ?
    इन बारीकियों को समझने का प्रयास फिर कभी कर लूँगा पर, जो दिख रहा है.. वह लिख रहा हूँ ।
    आहा, नया दिलकश कलेवर और नया इश्टाईल ?
    बढ़िया है..... अजय बाबू, बढ़िया है !

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  6. झा जी,
    चिट्ठों का चयन, रंग संयोजन, चिट्ठों को तरतीब से सरियाना, लिंक लगाना सब कुछ बहुत मनोरम लगा है...

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  7. बात तो कुछ कहे थे बज़ पर इतने घरेलू काम के बावज़ूद कित्ती उम्दा चर्चा गज़ब भिया बधाई

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  8. बहुत बढ़िया !

    हमारी फ्लाइट तो हर जगह ही लेट है!

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  9. ये अनोखा अंदाज बहुत पसंद आया!

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  10. आप हमेशा ही नूतन प्रयोग करते हैं. ई प्रयोगवा बहुते पसंद आया. घणा जोरदार.

    रामराम.

    -ताऊ मदारी एंड कंपनी

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  11. आप हमेशा ही नूतन प्रयोग करते हैं. ई प्रयोगवा बहुते पसंद आया. घणा जोरदार.

    रामराम.

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  12. आपने मनीषा की दो पोस्‍ट एक साथ लगाई हैं लेकिन फोटो एक ही लगाते तो चल जाता। कृपया देख ले। बाकि हम है तो सब है, इसके लिए आभार।

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  13. इस 'क्रान्ति' की सुगबुगाहट तो मुझे भी हो रही थी। आपने इसे अपनी विशिष्ट शैली में प्रस्तुत किया तो यह बात और साफ हो गयी। खुशी की बात है। 'क्वालिटी' वाली चीज ही अधिक दिनों तक 'बाजार' में टिक पाती है। हिन्दी चिट्ठाजगत की गुणवत्ता यों ही बढ़ती रहे, यही शुभकामना है।

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  14. झलकियां और शैली बढ़िया हैं

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  15. अम्मा अजय बाबू,

    इतनी मेहनत, इतनी क्रिएटिविटी, इतना समर्पण...

    कौन सा च्यवनप्राश खाते हो भाई...

    जय हिंद...

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  16. aapki blog se hamesha naveen evm rachanaatmak vicharo ka chalan shuru huaa hai.sirf aapke blog par jaa kar bhi pure blog jagat ki kabar rakhi jaa sakati hai.naye blogaro ko aapke blog padhanaa chahiye ...preranaa milati rahegi.

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  17. झा जी यक़ीनन आपका जवाब नहीं ..आपका प्रयास सार्थक सराहनीय और लाजवाब है बंधाई स्वीकारें

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  18. बहुत अच्छी चर्चा और उससे भी अच्छा ब्लॉग का कलेवर !!! मेरी बधाई स्वीकार कीजिये अजय जी.

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  19. यह अंदाज बहुत पसंद आया...सुंदर लगा।

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..