गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

जस्ट एन कटपिटिया चर्चा जी …झा जी कहिन

 

बुधवार, १४ अप्रैल २०१०

परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 का भव्य शुभारंभ

मैं समय हूँ , मैंने देखा है वेद व्यास को महाभारत की रचना करते हुए , आदि कवि वाल्मीकि ने मेरे ही समक्ष मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा को अक्षरों में उतारा...सुर-तुलसी-मीरा ने प्रेम-सौंदर्य और भक्ति के छंद गुनगुनाये, भारतेंदु ने किया शंखनाद हिंदी की समृद्धि का. निराला ने नयी क्रान्ति की प्रस्तावना की, दिनकर ने द्वन्द गीत सुनाये और प्रसाद ने कामायनी को शाश्वत प्रेम का आवरण दिया .....!

मैं समय हूँ, मैंने कबीर की सच्ची वाणी सुनी है और नजरूल की अग्निविना के स्वर. सुर-सरस्वती और संस्कृति की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाली महादेवी को भी सुना है और ओज को अभिव्यक्त करने वाली सुभाद्रा कुमारी चौहान को भी, मेरे सामने आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री की राधा कृष्णमय हो गयी और मेरे ही आँगन में बेनीपुरी की अम्बपाली ने पायल झनका कर रुनझुन गीत सुनाये ....!

 

बीबीसी ब्लोग्स से देखिए

थरुर पिच पर रहें कि जाएं...

राजेश प्रियदर्शी राजेश प्रियदर्शी | बुधवार, 14 अप्रैल 2010, 22:03 IST

देश में हरियाली के लिए ज़िम्मेदार मंत्री क्रिकेट की लहलहाती फ़सल संभाल चुके हैं, जब इतने सारे विदेशी खिलाड़ी आईपीएल में खेल रहे हैं तो विदेश राज्यमंत्री को अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास नहीं होगा?

यूएन में ऊँचे ओहदे पर रह चुके मंत्री जी ने विवादों की लड़ी से जूझने के बाद कहा था कि उन्हें अभी भारतीय राजनीति के 'तौर-तरीक़े' अच्छी तरह सीखने की ज़रूरत है.

शायद उन्होंने शरद पवार और सुरेश कलमाडी जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से नए 'तौर-तरीक़े' सीखे हैं, खेल की सियासत और सियासत का खेल.

 

नवभारत ब्लोग्स से ……….

उन्हें तो लड़ने का बहाना चाहिए           image

संजय खाती Thursday April 15, 2010

उनका मकसद सोसायटी को तोड़ना और अपने हवाई सपनों को लागू करना है। वे आज से सौ हजार या लाख साल पीछे चले जाना है। दुनिया के हर कोने में उग्रवादी-आतंकवादी एक जैसे होते हैं, लेकिन हर मामले में एक जैसे नहीं। और उनके ये फर्क हमें सोसायटी के बारे में कुछ नया बता सकते हैं, जिसमें वे पैदा होते हैं। लोकल टेररिजम एक ऐसा सब्जेक्ट है, जिससे हमें इंसानी सभ्यता के विकास या विनाश का अंदाजा हो सकता है।

 

गुरुवार, १५ अप्रैल २०१०

भारत ने कबड्डी विश्व कप जीता , IPL की चीयर गर्ल्स ने दावत दी


खबर :-भारत ने कबड्डी विश्व कप जीता
नज़र:-अच्छा अबे ये कब हो गया यार । बताओ भला विश्व कप जीत लाए और यहां रत्ती भर भी हलचल नहीं , कोई स्वागत सत्कार नहीं । जब पुरस्कार , सम्मान राशि की भी कोई बात नहीं है तो फ़िर उन्हें विज्ञापन कौन देने की सोचेगा । बताओ भला ये भी कोई खेल है , विश्व कप भी जीत लाए तो भी धेले भर की पूछ नहीं । अच्छा क्या कहा .....ऐसा नहीं है । उनका भी स्वागत करने की पूरी योजना बनाई गई है । IPL की एक चीयर गर्ल ने अपने एक दिन के मैच में मिली फ़ीस से ही पूरी टीम को शानदार जलसा दावत देने की सोची है । सुना है कि सभी चीयर गर्ल्स ने ये पेशकश की है कि वे अपने अपने गुल्लक को फ़ोड के उसमें से जो भी चिल्लर चुनमुच निकलेगा उसीसे , कबड्डी टीम के लिए घर बार, कार सबका इंतज़ाम करवा लेंगे । ये सब देखते हुए बहुत से कबड्डी खिलाडियों ने अगले साल IPL में चीयर गर्ल्स बनना ही बढिया औपश्न समझा है । ये भी ठीक है ...यार कबड्डी के विश्व कप जीतेने से तो अच्छा ही है

 

गुरुवार, १५ अप्रैल २०१०            image

के है कोई सबेरा

है कोई तो पहलू अँधेरा
के जिसकी तह में है कोई तो चेहरा
चलना है आँख मूँद कर
वरना क्या वक़्त है कभी ठहरा
साये सा उभरता है वो
तन्हाँ देखते ही लगता है पहरा

 

Thursday, April 15, 2010       image

लोकतन्त्र के बाराती

हम सात-आठ थे। सबके सब पूरी तरह फुरसत में। करने को एक ही काम था - भोजन करना। सबको पता था कि छः बजते-बजते भोजन की पंगत लग जाएगी। याने प्रतीक्षा करने का काम भी नहीं था। सुविधा इतनी और ऐसी कि माँगो तो पानी मिल जाए, चाय मिल जाए-सब कुछ फौरन। नीमच के डॉक्टर राधाकृष्णन नगर (जिसे इस नाम से शायद ही कोई जानता हो। सब इसे ‘शिक्षक कॉलोनी’ के नाम से जानते हैं) स्थित शिक्षक सहकार भवन में हम लोग जुड़े बैठे थे।

मेरे जीजाजी की पहली बरसी पर मेरे बड़े भानजे श्यामदास ने यह आयोजन किया था। सवेरे से भजन-कीर्तन चल रहे थे। महिलाओं ने मानो यह काम अपने जिम्मे ले लिया था। सो, हम सबके सब पुरुष पूरी तरह से फुरसत में थे।

 

Wednesday, April 14, 2010   जय कुमार झा

सामाजिक असंतुलन कि भयावहता और कमजोर चरित्र कहिं भारत को बर्बाद न कर दे ------?

जरा सोचिये जो व्यक्ति अपने धर्म पत्नी के प्रति बफादार नहीं हो सकता,वह व्यक्ति समाज और देश के प्रति क्या बफादारी निभाएगा ? सामाजिक असंतुलन कि भयावहता और उच्च पदों पर कमजोर चरित्र के लोगों कि आसान पहुंच से आज ह़र सच्चा,इमानदार,चरित्रवान और देशभक्त भारतीय नागरिक के मन में एक आशंका बलवती होती जा रही हैं कि कहीं ये सामाजिक असंतुलन कि भयावहता और कमजोर होता चरित्र भारत को बर्बाद न कर दे /

 

माचिस की तीली के ऊपर      गिरीश बिल्लोरे

अप्रैल 14, 2010

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माचिस की तीली के ऊपर

बिटिया की पलती आग

यौवन की दहलीज़ पे जाके

बनती संज्ञा जलती आग

************************

सभ्य न थे जब हम वनचारी

था हम सबका एक धरम

शब्द न थे संवादों को तब

नयन सुझाते स्वांस मरम .

हां वो जीवन शुरू शुरू का

पुण्य न था न पापी दाग…!

*************************

 

Thursday 15 April 2010          image

विवाद,ग्लैमर्स और पैसा

---- चुटकी----
विवाद
ग्लैमर्स
और
ढेर सारा पैसा,
हमारा
आईपीएल
है ही कुछ ऐसा।

 

Wednesday, April 14, 2010    image

॥ रोज रोज की गरीबी॥

(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : पांच)
रोज रोज की गरीबी कहो या नींद का मरण
मैं कबतक और कितनी इसकी चिंता में रहूं!
रोज रोज की झंझट कहो या जी का जंजाल
कितनी बार ओझा के दरवाजे दौड़ लगाऊं।
ओह, कबतक इन सबकी चिंता में जलूं?
घर की सारी भेड़-बकरियां
बेच-खाकर खत्म हो गईं
हाय, कितनी बार दौड़ूं ओझा के पास
घर के सब मुर्गी-चूजे बिला गए।

 

बुधवार, १४ अप्रैल २०१०       image

प्रणय का संभार कैसा !

हो तुम्हीं यदि दूर तो यह प्रणय का सम्भार कैसा !
तुम लगा पाये न मेरे दु:ख का अनुमान साथी,
जान कर भी अब बने जो आज यों अनजान साथी,
है निराशा की धधकती आग एक महान साथी,
हो चुके हैं भस्म जिसमें छलकते अरमान साथी,
प्राण शीतल प्रेम में यह विरह का श्रृंगार कैसा !
हो तुम्हीं यदि दूर तो यह प्रणय का संभार कैसा !

 

Wednesday, April 14, 2010          image

कौन कहता है नक्सलवाद एक विचारधारा है ?

कौन कहता है नक्सलवाद समस्या नहीं एक विचारधारा है, वो कौनसा बुद्धिजीवी वर्ग है या वे कौन से मानव अधिकार समर्थक हैं जो यह कहते हैं कि नक्सलवाद विचारधारा है .... क्या वे इसे प्रमाणित कर सकेंगे ? किसी भी लोकतंत्र में "विचारधारा या आंदोलन" हम उसे कह सकते हैं जो सार्वजनिक रूप से अपना पक्ष रखे .... न कि बंदूकें हाथ में लेकर जंगल में छिप-छिप कर मारकाट, विस्फ़ोट कर जन-धन को क्षतिकारित करे ।
यदि अपने देश में लोकतंत्र न होकर निरंकुश शासन अथवा तानाशाही प्रथा का बोलबाला होता तो यह कहा जा सकता था कि हाथ में बंदूकें जायज हैं ..... पर लोकतंत्र में बंदूकें आपराधिक मांसिकता दर्शित करती हैं, अपराध का बोध कराती हैं ... बंदूकें हाथ में लेकर, सार्वजनिक रूप से ग्रामीणों को पुलिस का मुखबिर बता कर फ़ांसी पर लटका कर या कत्लेआम कर, भय व दहशत का माहौल पैदा कर भोले-भाले आदिवासी ग्रामीणों को अपना समर्थक बना लेना ... कौन कहता है यह प्रसंशनीय कार्य है ? ... कनपटी पर बंदूक रख कर प्रधानमंत्री, डीजीपी,कलेक्टर, एसपी किसी से भी कुछ भी कार्य संपादित कराया जाना संभव है फ़िर ये तो आदिवासी ग्रामीण हैं ।

 

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Wednesday, April 14, 2010       

युद्ध से ज्यादा घातक है खुद क़ी परेशानियां अमेरिकन सिपाहियों के लिए

सुनाने में अजीब लग रहा है पर अगर नीचे उल्लेखित वेबसाइट पर विश्वास किया जाए तो यह सत्य है की अमेरिका के जितने सिपाही युद्ध में नहीं मारे गए, जितने कि आत्महत्या कि वजह से ! इसमें सिर्फ वही आंकड़े शामिल है जब ये सैनिक नौकरी पर थे, अगर रिटायरमेंट के बाद के नंबर भी मिला दिए जाए तो ये आंकड़ा और भी अधिक होगा। इस वेबसाइट के अनुसार पिछले साल ही ३२० सैनिको ने नौकरी के दौरान आत्महत्या करके अपनी जान गंवाई।

 

चुराई हुई रचना है बच्‍चन की ‘मधुशाला’image

पोस्टेड ओन: April,13 2010 जनरल डब्बा में    

उस रात तो मैं हतप्रभ रह गया। अलीगढ़ के नुमाइश मैदान में स्थित गेस्‍टहाउस के कमरे में मैं था और फिल्‍मी दुनियां के जाने माने गीतकार संतोषानन्‍द। वह दैनिक जागरण द्वारा आयोजित कवि सम्‍मेलन में भाग लेने आए हुए थे। अभिरुचि के स्‍तर पर साहित्‍य का विद्यार्थी होने के नाते संतोषानन्‍द से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो छंदोबद्ध कविता से लेकर कविता, अकविता, नई कविता, गद्य काव्‍य और तेवरी आंदोलन तक पर चर्चा हुई। संतोषनन्‍द भी पूरे मूड में थे, लेकिन कहीं न कहीं उम्र की ढ़लान उतर रहे संतोषानन्‍द के अंदर कुछ ऐसा था जो उन्‍हें भीतर ही भीतर खाए जा रहा था। मैने भी उनके उसी दर्द को थोड़ा कुरेदने की कोशिश की तो नतीजा सामने था। डाक्‍टर हरिवंश राय बच्‍चन का जिक्र आते ही वो बिफर पड़े-‘ बच्‍चन भी कोई कवि थे ? बेसिकली वह प्रोफेसर थे और एक अच्‍छे अनुवादक। जिस मधुशाला के लिए बच्‍चन को पहचाना जाता है वह मधुशाला उन्‍होंने उमर खय्याम की शायरी के थाट्स चुरा कर लिखी।‘ सचमुच, संतोषानन्‍द की इस बात को सुनकर मैं हतप्रभ रह गया। जिस मधुशाला को काब्‍य जगत में एक कालजयी रचना के रूप में पहचान मिली उसके बारे में ऐसी टिप्‍पणी, मैं तो सोच भी नहीं सकता था। और, संतोषानन्‍द अपनी रौ में बोले जा रहे थे-‘अब कविता नहीं, कविता का धंधा हो रहा है। चुटकुलेबाज मजे ले रहे हैं। अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं से थाट्स चुरा कर गीत लिखे जा रहे हैं। चाहे नीरज हों या कुंवर बेचैन, सब चोर हैं। इनके पास अपना मौलिक कुछ भी नहीं है।‘ मैं चुपचाप संतोषानन्‍द के चेहरे को देख रहा था, क्‍योंकि जिन कवियों के बारे में उन्‍होंने इतनी तल्‍ख टिप्‍पणी की वह न सिर्फ मेरे लिए आदरणीय हैं बल्कि साहित्‍य में रुचि रखने वाले तमाम युवाओं का रोलमाडल भी हैं।

 

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गुरुवार, अप्रैल 15, 2010     

शब्दों के अर्थ: करे अनर्थ

पड़ोस, याने दो घर छोड़ कर एक ग्रीक परिवार रहता है. मियां, बीबी एवं दो छोटी छोटी बेटियाँ. बड़ी बेटी ऐला शायद ४ साल की होगी और छोटी बेटी ऐबी ३ साल की.

अक्सर ही दोनों बच्चे खेलते हुए घर के सामने चले आते हैं और साधना (मेरी पत्नी) से काफी घुले मिले हैं. साधना बगीचे में काम कर रही होती है तो आस पास खेलते रहते हैं और यहाँ की सभ्यता के हिसाब से उसे साधना ही बुलाते हैं. आंटी या अंकल कहने का तो यहाँ रिवाज है नहीं. जब कभी मैं बाहर दिख जाता हूँ तो मेरे पास भी आ जाते हैं और गले लग कर हग कर लेते हैं.

इधर दो तीन दिनों से हल्का बुखार था और साथ ही बदन दर्द तो न दाढी बनाई जा रही थी और न ही बहुत तैयार होने का मन था इसलिए आज सुबह ऐसे ही घर के बाहर निकल पड़ा. सर दर्द के कारण माथे पर हल्की सी शिकन भी थी. आप कल्पना किजिये कि कैसा दिख रहा हूँगा.

 

flower

अपनी एक पुरानी कविता पुनः

शब्द
जब निकल जाते हैं
मेरे
मेरे होठों के बाहर
तो बदल लेते हैं
अपने मानी
सुविधानुसार
समय के
और परिस्थित के साथ

 

ताऊ की नजर से : श्री अरविंद मिश्र

>> Thursday, April 15, 2010

प्रिय ब्लागर मित्रों, इस वार्ता मंच पर मुझे देखकर आपको आश्चर्य हो रहा होगा? असल मे शुरुआत से ही श्री ललित शर्मा का आग्रह था कि मैं उनके इस वार्ता मंच से वार्ता करूं. पर मुझे वार्ता करना सहज नही लगता और ना ही मैं इस काबिल हूं कि इस विधा के साथ न्याय कर पाऊं. अत: प्रत्येक गुरुवार को यह स्तंभ "ताऊ की नजर से" शुरु कर रहा हूं. जिसमे मैं आप में से ही किसी ब्लागर मित्र की मेरी पसंद की कुछ पोस्ट्स का जिक्र करुंगा और साथ ही कुछ एक दो छोटे से सवाल जवाब होंगे.
आशा है यह प्रयास आपको पसंद आयेगा. आईये इस स्तंभ की शुरुआत करते हैं श्री अरविंद मिश्र से
-ताऊ रामपुरिया

ताऊ से ब्लागिंग ज्ञान प्राप्त करता हुआ रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे"

ताऊ की चौपाल मे आपका घणा स्वागत सै भाई. इब भाई के सुणाऊं...मैं तो कलेवा करके हुक्का पीण लागरया था और म्हारा यो राम का प्यारा "रामप्यारे उर्फ़ प्यारे" मेरे सामने लेपटोप लेके बैठग्या और घणी जिद करण लाग ग्या और नू बोल्या - ताऊ मैं तो इस ब्लाग की दुनिया म्ह नया नया सूं और तू हो लिया पुराणा पापी..तो इब तू मन्नै जरा इसके बारे मे कुछ बता. इब मैं भी लेपटोप खरीद ल्याया और ब्लागिंग शुरु करुंगा.

 

Thursday, April 15, 2010

गब्बल थे बी खतलनाक इन्छान कताई मात्तर

लफ़त्तू की हालत देख कर मेरा मन स्कूल में कतई नहीं लगा. उल्टे दुर्गादत्त मास्साब की क्लास में अरेन्जमेन्ट में कसाई मास्टर की ड्यूटी लग गई. प्याली मात्तर ने इन दिनों अरेन्जमेन्ट में आना बन्द कर दिया था और हमारी हर हर गंगे हुए ख़ासा अर्सा बीत चुका था. कसाई मास्टर एक्सक्लूसिवली सीनियर बच्चों को पढ़ाया करता था, लेकिन उसके कसाईपने के तमाम क़िस्से समूचे स्कूल में जाहिर थे. कसाई मास्टर रामनगर के नज़दीक एक गांव सेमलखलिया में रहता था. अक्सर दुर्गादत्त मास्साब से दसेक सेकेन्ड पहले स्कूल के गेट से असेम्बली में बेख़ौफ़ घुसते उसे देखते ही न जाने क्यों लगता था कि बाहर बरसात हो रही है. उसकी सरसों के रंग की पतलून के पांयचे अक्सर मुड़े हुए होते थे और कमीज़ बाहर निकली होती. जूता पहने हमने उसे कभी भी नहीं देखा. वह अक्सर हवाई चप्पल पहना करता था. हां जाड़ों में इन चप्पलों का स्थान प्लास्टिक के बेडौल से दिखने वाले सैन्डिल ले लिया करते.

 

 

Thursday, April 15, 2010image

हमें गर्व है हिंदी के इस प्रहरी पर ....

कुसुम कुमार, अरविंद कुमार

.........मोनिअर-विलियम्स के ज़माने में अँगरेज भारत पर राज करने के लिए हमारी संस्कृति और भाषाओं को पूरी तरह समझना चाहते थे, इस लिए उन्हों ने ऐसे कई कोश बनवाए. आज हम अँगरेजी सीख कर सारे संसार का ज्ञान पाना चाहते हैं तो हम अँगरेजी से हिंदी के कोश बना रहे हैं. हमारे समांतर कोश और उस के बाद के हमारे ही अन्य कोश भी हमारे दैश की इसी इच्छा आकांक्षा के प्रतीक हैं, प्रयास हैं

 

Wednesday, April 14, 2010image

नेहरु प्लेनिटोरियम मुंबई की सैर और तारों की छांव में हमारी नींद

    सपरिवार बहुत दिनों से कहीं घूमने जाना नहीं हुआ था, और हमने सोचा कि इस भरी गर्मी में कहाँ घूमने ले जाया जाये तो तय हुआ कि नेहरु प्लेनिटोरियम, वर्ली जाया जाये। पारिवारिक मित्र के साथ बात कर रविवार का कार्यक्रम निर्धारित कर लिया गया। बच्चों को साथ मिल जाये तो उनका मन ज्यादा अच्छा रहता है और शायद बड़ों का भी।

 

गुरुवार, १५ अप्रैल २०१०

ब्लागोत्सव -2010 की कला दीर्घा में पाखी की अभिव्यक्ति

आज का दिन खुशियों भरा दिन है। पहली बार ब्लॉग की दुनिया से जुड़े लोग ब्लागोत्सव मना रहे हैं। ब्लागोत्सव-2010 आज से आरंभ भी हो चुका है, जरुर जाइएगा वहाँ पर। वहाँ पर कला दीर्घा में आज अक्षिता(पाखी) की अभिव्यक्ति भी देखिएगा। इस उत्सव के इस सूत्र वाक्य पर भी ध्यान दें- अनेक ब्लॉग नेक ह्रदय।

जब पहली बार मैंने इस उत्सव के बारे में सुना था तो बड़ी उदास हुई थी की हम बच्चों के लिए वहां कुछ नहीं है। फिर मैंने इसके मुख्य संयोजक रवीन्द्र प्रभात अंकल जी को लिखा कि- हम बच्चे इसमें अपनी ड्राइंग या कुछ भेज सकते हैं कि नहीं। जवाब में रवीन्द्र अंकल ने बताया कि अक्षिता जी! क्षमा कीजिएगा बच्चों के लिए तो मैने सोचा ही नही जबकि बिना बच्चों के कोई भी अनुष्ठान पूरा ही नही होता, इसलिए आप और आपसे जुड़े हुए समस्त बच्चों को इसमें शामिल होने हेतु मेरा विनम्र निवेदन है...देखा कितने प्यारे अंकल हैं रवीन्द्र जी। हम बच्चों का कित्ता ख्याल रखते हैं। अले भाई, जब बच्चे नहीं रहेंगे तो उत्सव कैसे पूरा होगा।

 

देख रहा हूं कि आप ये कटपिटिया अंदाज़ पसंद आ रहा है तो सोच रहा हूं कि इसे नियमित कर दिया जाए ……..>….क्यों क्या कहते हैं आप

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढिया रही चर्चा....
    अति सुन्दर!

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  2. झा जी आप बतियाते खूब हो...बढिया चर्चा

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  3. शुक्रिया
    लिंक देने का
    बाक लिंक को घूम आया कुछेक शेष हैं अच्छा हुआ यहां आ गया तो याद रहेगा

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  4. आप कटपिटिया कीजिए

    हम झटटिपिया करेंगे

    खूब पढ़ेंगे

    सबसे मिलेंगे
    ब्‍लॉगिंग में हिन्‍दी के

    मनमो‍हक पुष्‍प महकेंगे।

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  5. बेहतरीन चर्चा-इत्मिनान और विस्तार से.

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  6. आज तो अपने कई नए ब्लोग्स से परिचय करा दिया । आभार।

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  7. महत्वपूर्ण पोस्टों का संकलन किया है। बधाई!

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  8. बहुत बढ़िया है ये अंदाज़, इसे जरी रखें तो आभार होगा...बधाई

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  9. कटपिटिया तो जारी रहे
    बशर्ते कोई दांत न किटकिटाए

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  10. ई काटपिटिया चर्चा बहुते जोरदार लगा.

    रामराम.

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  11. शुरू से अंत तक बाँधने में समर्थ चर्चा के लिए बधाई

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  12. बहुत ही सुन्दर चित्रमय चर्चा।

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  13. ...चर्चा "पत्रिका" की भांति है ... पत्रिका उठाओ दो-चार लेख पढो ... आपका संपादन प्रसंशनीय है,बधाई व शुभकामनाएं !!!

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  14. बहुत अच्छे... अजय जी मजा आ गया... सारे महारथी एक ही जगह पर.. वाह वाह

    जवाब देंहटाएं

पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..