मंगलवार, 28 जून 2011

एक बौराया , भन्नाया आम आदमी - झा जी कहिन





नेट पर टहलते हुए एक आम आदमी
कुछ तथ्य मिले पिछले दिनों , सोचा आपके साथ बांटता चलूं । इन्हें पढते हुए आपको ठीक ठीक अंदाज़ा हो जाएगा कि फ़िलहाल देश , दुनिया और समाज की स्थिति कैसी चल रही है ।देश में पिछले दस वर्षों में शराब की खपत में छ: गुनी वृद्धि हुई है । बताइए ये उस देश का हाल है जहां पर सुना है कि देश के सभी राजनीतिक दल और उसके नेता जी गांधी बाबा के दर्शन को मानते हैं । वे बेचारे क्या क्या सोच कर गए थे और अब सरकार जाने क्या क्या सोच रही है । यदि यही हाल रहा तो पूरी उम्मीद है कि सरकार जल्दी ही किसी नई योजना के तहत , पाईप लाईन द्वारा सीधे घरों में मदिरा सेवन की सुविधा दे सकेगी । आखिर अब देश विश्व का सबसे बडा बाज़ार बनने जा रहा है तो इतनी सुविधाओं का हक तो बनता ही है ।



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देश में आज स्वास्थ्य एवं चिकित्सा व्यवस्था सुना है कि , "हॉस्पीटल टूरिज़्म "तक के स्तर पर आ पहुंचा है , कमाल की सफ़लता है ये तो , अमरीका तक के बीमार चले आ रहे हैं और ओबामा जी को रोकने के लिए बैरिकेड लगाने पड रहे हैं । लेकिन इसके बावजूद एक आम आदमी जब ईलाज़ के किसी भी अस्पताल जाता है तो उसे जो भी दवाई की पर्ची मिलती है , उसमें से आधी दवा , अस्पताल के ठीक सामने खुली दवाई की दुकान से लाने के लिए कह दिया जाता है । अब इन दोनों के बीच का अर्थशास्त्रीय रिश्ता एक आम आदमी के पल्ले तो नहीं पडता , बेशक प्रधानमंत्री उच्च कोटि के अर्थशास्री हैं उनके पड जाता हो ।



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लो जी एक और सुना जाए प्रभु । एक अनुमान के अनुसार इस देश में धर्मस्थलों की संख्या , स्कूलों की कुल संख्या की साढे चार गुनी अधिक है । वाह वाह , वाह वाह , ये होता है , सभ्य , सुंसकृत , सदाचारी , धार्मिक , सुशील , सज्जन , मगर निरक्षर देश । वैसे एक अन्य हिसाब से भी प्रति धर्मस्थल के बेनिफ़िशयरी के हिसाब से प्रति स्कूल के कर्मचारी , रोजगार की संभावना भी कुछ कम नहीं है । देख नहीं रहे हैं , एक ट्रस्ट , पूरे भ्रष्ट को अकेला टक्कर दे रहा है । सवाल सबसे बडा ये है कि जब हमने पाप करने की रफ़्तार के बराबर ही धर्मस्थल बना लिए हैं तो फ़िर ,इसे कलियुग तो न ही माना जाए न ।


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सवाल नारी के अधिकारों का उठाइए तो जरा , अरे नहीं नहीं रिजर्वेशन को मारिए गोली । संसद में रिजर्वेशन लाने से कौन सा बडा तीर चलेगा ये किसी से छुपा नहीं है ,असली मुद्दा ये है कि आखिर ये समझा ही क्यों  जाए कि नारी को अधिकारों के लिए कुछ हासिल करना है । कुछ यूं महसूस कराइए न उन्हें या वे खुद ही महसूस कर लें कि बस जो सब हैं वो हम हैं , हाड मांस निर्मित मानुस जात । लेकिन आम आदमी ठिठक तब जाता है जब सुनता है कि अबला की रक्षा हेतु तैनात होने वाली सबलाएं और सशस्त्र सबलाएं भी किसी की हैवानियत का शिकार बन गईं , मतलब , अरे , ये क्या बात हुई भला । आखिर किस कारण ने उसे अपने पिस्तौल की छ: गोलियां उस हैवान के सीने में उतारने से रोका था , तो आरक्षण से कौन सी हिम्मत पैदा करोगे


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लगभग एक साथ , एक ही पन्ने पर , प्रांत लिख कर नीचे खबर छपी होती हैं , और अक्सर छपी होती हैं । दाएं कॉलम में , जालंधर के सरकारी गोदामों में लाखों क्विटंल गेहूं बरसात के पानी में सड रहा है । बाएं कॉलम में , उडीसा के किसी जिले में दो परिवारों के भूख से मर जाने की खबर छपी होती है । आम आदमी फ़िर परेशान हो जाता है वो यही सोचता है कि जब एक जिले का रिपोर्टर अनाज की सडती बोरियों तक और दूसरा भूख से जाती जानों तक पहुंच ही जाता है तो फ़िर आखिर अन्न का दाना भूखे पेट तक क्यों नहीं पहुंचाया जा सका । अगर हो सकता तो खबर भी क्या कमाल हुआ करती , है कि नहीं ।

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आम आदमी साला चकरघिन्नी बनके घूम ही रहा होता है कि पता चलता है कि सरकार हर रोज़ अपनी नेकनीयती , अपनी ईमानदारी का सबूत खुद प्रधानमंत्री जी की ईमानदारी को कैश करवा के देने की कोशिश करती है , लेकिन शाम तक कोई न कोई मंत्री अपने कुकर्मों का कच्चा चिट्ठा खुलवा के बैठ जाता है । और करो भारत निर्माण । आम जनता जुटी तो नाम दे दिया सिविल सोसायटी , अबे ये अगर सिविल है तो तुम कौन मिलटरी सोसायटी हो , तुम भी इसी में से एक हो , और आज आगे इसलिए खडे हो क्योंकि आम जनता ने तुम्हें आगे जाने की जगह दे दी है । अगर आम लोगों का माथा फ़िर गया न तो कुचल के पीछे करेगी कुचल के ।
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फ़िलहाल आम आदमी सोच रहा है , सोचता ही जा रहा है

9 टिप्‍पणियां:

  1. " आम आदमी साला चकरघिन्नी बनके घूम ही रहा होता है "

    यह सिलसिला तो चलता ही रहेगा ...

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  2. हम तो यही कहेंगे शर्म आती है मगर इस देश में रहना होगा .......

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  3. इतनी इतनी बातें हैं कि शर्म आने लगे तो घर से निकल ही न पाएँ।

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  4. तथ्यों के माध्यम से सटीक चोट - विचारणीय भी.
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  5. यही तो हमारे यहाँ के आम आवाम की नियति में लिखा है मित्र...उसे पिसना है...पिसना है और सिर्फ पिसना है

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  6. क्या करें, माहौल ही नशे में झूम रहा है।

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  7. एक एक पंक्ति चोट करती हुई-सी, मगर सच को प्रदर्शित करती हुई आपकी ये रचना है. आशा करती हूँ कि इसे ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़े और अपने दबी-सोयी हुई उन विचारधाराओं को जगाए,जिनके जगने व सक्रिय होने से एक देश उन्नत देश कहलाता है.

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  8. । और आदमी सोचने के अलावा कुछ कर भी नही सकता।

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  9. बाकी सब तो ठीक है झा बाबू सोमरस पर प्रहार न किया करो बापू से लेकर तमाम लोग पीछे पड़े रहते हैं उसके वही बंद हो जायेगा तो दलो का दलदल न सूख जायेगा कहां से उसे गीला रखने के लिये रस आयेगा और बढ़ते अत्याचार मे हम लोग गम भी दूर न करे तो जीना मुश्किले हो जायेगा भाई

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..