रविवार, 2 फ़रवरी 2014

बिहरिया पोलटिस स्टोरी -(ग्राम यात्रा -IV )





बिहार के लोगबाग राजनीतिक रूप से इतने अधिक जागरूक और सचेत होते हैं कि चाहे आज अपने अलग अलग किए प्रयोगों के कारण बिहार की ये स्थिति हो गई है कि आज प्रांत का मुखिया देश की सरकार के सामने बहुत सारा पैसा मांग रहा है ताकि सूबे को पटरी पे लाया जा सके । बडी सरकार छोटे सूबेदार के बदलते पलटते तेवर और अपने खजाने को देखते हुए उनकी इस मांग को कितना मांगेगी ये तो भविष्य की बात है मगर मेरे कहने का मतलब ये था कि , कोई भी चौक चौराहा , बाज़ार , हाट , दालान , और खेत तक राजनीति की बातों से पटे और भरे हुए होते हैं । और कमाल की बात ये है कि ग्राम स्तर की राजनीति से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों , परिवर्तनों पर अपनी टिप्पणियां जरूर करते हैं , बहस करते हैं , और एक दूसरे को बाकायदा अपने तर्क से खुद को पराजित करने की चुनौती देते हैं ।


दिल्ली से मधुबनी के रेल सफ़र में , मुझे एक मंडल जी (उन्होंने पूरी यात्रा में बार बार यही कहा कि किसी से भी मेरे बारे में पूछिएगा कि मंडल जी के यहां जाना है वो बता देगा ) ने पूरी यात्रा में न सिर्फ़ राजनीति ,समाज , अपने परिवार और बाल बच्चों की बात में बहुत सी बातें साझा कीं । जैसे कि उन्होंने बताया कि रेल सफ़र के दौरान आप आसानी से उत्तर प्रदेश से बिहार की सीमा में प्रवेश करने का फ़र्क महसूस सकते हैं , मुझे जानकर विस्मय और हर्ष हुआ जब उन्होंने बताया कि जहां से आपको कृषि भूमि कम और वनस्पति ज्यादा सघन दिखाई देने लगे समझ जाइए कि आप बिहार की सीमा में प्रवेश करने जा रहे हैं ।

बात राजनीति की चल निकली , मंडल जी पुराने कांग्रेसी थे उनके पास एक बडी ही मजेदार दलील थी जिसे उन्होंने पूरे सफ़र के दौरान बहुत बार दोहराया कि जो भी कहिए सरकार तो कांग्रेस को ही चलानी आती है ...............आखिरी बार मुझसे नहीं रहा गया और मुझे उनकी बात काटते हुए कहना ही पडा कि " हां सरकार तो कांग्रेस चला ही लेती है , मगर देश उससे नहीं चलाया जाता "।बात दिल्ली की नए नवेले राजनीतिक  प्रयोग से शुरू होकर आगामी  लोकसभा चुनावों पर जाकर अटक गई । रेल से शुरू हुई ये बहस , आगे गांव के चौराहे और दालानों तक भी खूब चली ।

बडे बूढे बुजुर्ग तक की पूरी राजनीतिक चर्चा का सार यही था इस बार मोदी ही राष्ट्रीय राजनीति के एकमात्र अगुआ साबित होंगे , और वे मुझसे इस तरह से पूछ रहे थे मानो सिर्फ़ आश्वस्त होना चाह रहे हों , बाकी उन्हें पता तो है कि होगा यही । जहां तक बिहार की वर्तमान प्रादेशिक सरकार और उसके राजनीतिक दृष्टिकोण पर मेरा मानना ये था कि नीतिश कुमार की टाइमिंग बहुत ही गलत रही , समर्थन वापस भी लिया तो उस पार्टी से जिसका भविष्य आगामी राष्ट्रीय राजनीति में सबसे प्रबल है , समर्थन वापस भी लिया तो किस मुद्दे पर , नरेंद्र मोदी को आगामी प्रधानमंत्री के रूप में नामित करने के कारण , दूसरी तरफ़ जिस केंद्रीय सरकार की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष छवि के साथ अपनी छवि चमकाने की कोशिश वे कर रहे हैं और जिस बडे खजाने को पाने के लिए कह और कर रहे हैं वो फ़िलहाल उन्हें मिलता नहीं दिख रहा है ।
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यहां बिहार में दिखते विकास और परिवर्तन को महसूसते हुए भी जो दो बातें मुझे अखर रही थीं वो ये थीं अब तक भी राज्य में औद्योगीकरण व व्यापार को वो दिशा दशा नहीं मिल पाई थी जो शायद एक बडा बदलाव ला सके । आज भी प्रांत के लोगों की पूरे देश में जाकर वहां काम करने , पढने , मजदूरी करने के लिए जाने को विवश होना पड रहा है , पलायन तो अब भी बदस्तूर जारी है , क्यों नहीं आज तक प्रांत के मुखियाओं ने पूरे देश से हिम्मत करके कहा कि ये जो हमारे लोग , आपके सबके प्रदेशों में , राजधानियों से लेकर छोटे मोटे शहरों में , बैंक , दफ़्तर , दुकान से लेकर सडकों तक पर अपनी मेहनत और अपने बूते पर अपना सर्वस्व आपको दे रहे हैं तो फ़िर क्यों नहीं उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए बनिस्पत इसके कि उन्हें क्षेत्रीयता और भाषाई निशाने पर रखा  जाए ।


ग्राम यात्रा सीरीज़ की आखिरी पोस्ट भी जल्दी ही पढवाऊंगा आपको .................

2 टिप्‍पणियां:

पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..