रविवार, 19 अप्रैल 2020

ज़िदंगी का फ्लैश बैक देखने को ;चाहिए एक रिवाइंड बटन









कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि कभी ऐसा भी दिन आएगा जब अचानक से कुदरत कहेगी , स्टैच्यू और हम सब ठिठक कर एक जगह रुक जाएंगे जो जहां है वहीं जड़ होकर रह जाएगा।  मैं और मेरी या मेरे से ज्यादा उम्र के सबके पास अपनी बीती हुई ज़िंदगी के एल्बम में से कितनी ही यादें ,कितनी ही बातें सबने अपने ज़ेहन में बसा कर छुपा कर रखी होंगी।  और इससे बेहतर और क्या वक्त हो सकता है उन पन्नों को पलटने का।  देख रहा हूँ मित्र अपनी बरसों पुरानी तस्वीरें ,अपनों के साथ की फोटो यहां अंतरजाल पर साझा कर के सहेज रहे हैं।  अच्छा ही है कल को जब हम न होंगे तो हमारी आने वाली नस्लें ,और उनके बाद वाले भी ये सब यदि बचा खुचा रह गया तो देख पढ़ पाएंगे और कम से कम समझ सकेंगे कि हमने अपनी ज़िंदगी में कौन कौन से रंग देखे थे।

हम बहुत ही खुशकिस्मत रहे हैं ,हम कंचे पतंगों लट्टू , से भी पहले सायकल के पुराने टायर और माचिस की डिब्बी के कवर से ढेरम ढेर खेलने वाली दुनिया से शुरू होकर आज एंग्री बर्ड्स और पब जी तक का सफर तय कर चुकने वालों में से रहे हैं। ये हम ही हैं जिसने दुनिया में रेडियो ,टीवी ,फ्रिज ,कुकर ,स्कूटर ,कंप्यूटर ,मोबाईल को अवतरित होते देखा है और जाने अभी और क्या क्या देखेंगे।  तो हम तो बहुत सारे मायनों में एकमात्र ऐसी नस्ल रहे और रहेंगे जिन्होंने दुनिया में वो देखा और देख चुके जो कल के इतिहास में किसी अजूबे से कम नहीं होगा।

मुझे याद है बाबूजी के साथ गर्मियों की छुट्टियों का वो कोयले के इंजन वाली रेल में किया हुआ साधारण डब्बों का यादगार सफर जब रास्ते में माँ के हाथ के बने भरवां करेले और पराठे के साथ सुराही का मीठा पानी कई दिनों के लम्बे रेल के सफर को भी ज़िंदगी के कुछ अनमोल दिनों में बदल देता था। मुझे याद है गाँव का वो कच्चा घर जहां दादी हमारे पहुँचते ही जाने क्या क्या मीठा खाने को और शरबत लेकर दालान पर ही अपना स्नेह लुटाने चली आती थी और मिनटों में ही पूरा टोला हमें देखने खैरियत पूछने चला आता था।


मुझे याद है सरस्वती पूजा , दुर्गा पूजा ,इंद्र पूजा ,जन्माष्टमी में लगने वाले वो छोटे छोटे मेले और उनमें गोले में पार्ले जी के बिस्किट को फंसाना ,गेंद मार कर स्टील के भारी ग्लास गिरा कर तालियाँ बटोरना ,मुझे याद है गाँव की काली पूजा में खेले गए नाटक में अभिनय करने वाले हम कुल 16 युवकों में अपने द्वारा निभाया गया  युवती का एक अकेला किरदार।  मुझे याद है गाँव की वो सत्यनारायण भगवान की पूजा में चावल और केले का मिलने वाला चौरठ प्रसाद भी और गाँव में केले के पत्तों पर खाए गए भोज भात का स्वाद भी।

मुझे याद है तीसरी कक्षा के दोस्त संजय सुथार के लखनऊ के तोपखाना बाज़ार में स्थित स्टूडियो के सामने की वो किताबों की दूकान जिसमें ऊपर रखी हुई ज्योमेट्री बॉक्स को स्कूल से आते जाते निहारना। मुझे याद है मेरे स्कूल में आने वाले जादू दिखाने वाले और स्कूल के रास्ते में कभी भालू कभी बन्दर और कभी सपेरे के इर्द गिर्द गोल खडी भीड़ में खुद को खड़ा देखना।  मुझे सर्कस याद है ,पटना जंक्शन से स्टीमर पकड़ कर गंगा पार करना भी याद है। मधुबनी रेलवे जंक्शन से गाँव तक ले जाने वाला ताँगा भी और दादी गाँव से मौसी के गाँव तक जाने वाली बैलगाड़ी भी। 


मुझे याद है मौसियों के साथ उनकी उंगलियां थामे पूरे ननिहाल के एक एक घर आँगन का चक्कर भी जिसमें जाने कितने प्यार करने वाले हाथ आशीर्वाद देने वाले हाथ एक साथ उठ जाते थे और बस माँ का नाम लेकर कहते ये निर्जला के बेटे हैं न। 

क्या क्या याद करूँ , आँखों के आँसू इस यादों के एलबम को बार बार धुँधला कर दे रहे हैं।  लेकिन मैं फिर लौटूंगा बार बार लौटूंगा इस एल्बम को लेकर इसके रंगों को लेकर ताकि मेरे जीवन का ये इंद्रधनुष उगता रहे हर दिन उगता रहे।




14 टिप्‍पणियां:

  1. इसमें कोई शक नहीं कि यादें अनमोल होती हैं और कीमती भी, क्योंकि कितने भी बड़े हो जाओ, मन अगर कहीं जाकर ठहरता है सबसे पहले वो बचपन ही होता है।
    माँ, बाबा, मौसी कितने प्यारे रिश्तों का आँगन ... जो भी पढ़ेगा एक बार अपना बचपन जरूर याद करेगा।

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    1. सच कहा आपने यादें अनमोल होती हैं और जीवन की धरोहर भी। स्नेह बनाए रखियेगा।

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  2. यादें वो पुरानी तस्वीरें अनमोल धरोहर होती हैं । पीढ़ियाँ जानती हैं इसी से ।

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    1. जी सही कहा दीदी हमें इन यादों को ही सुन्दर बनाना है

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  3. अनमोल यादें ही हमारी धरोहर हैं

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  4. अनमोल यादें ही हमारी धरोहर हैं

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  5. अब कम से कम सुविधा है, वीडियो बनाकर रखने की। पुराने कुछ पल तो उसी रूप में दिख जाते हैं

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    1. हाँ सर ,शाश्वत तो कुछ नहीं रहता सिर्फ यादों के अलावा। मगर सुविधा तो है ही निश्चित रूप से

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    1. और हमें इन्हें ही सहेज कर रखना है संभाल कर रखना है

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  7. हमारी यादें हमारी धरोहर हैं जो हम छोड़ जाएँगे. साथ ही छोड़ जाएँगे वह सब भी जो आज हो रहा है, जिसके साक्षी आज हम हैं.

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    1. वाकई हम आप बहुत बड़े बहुत महत्वपूर्ण समय के साक्षी बन रहे हैं आज

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..