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शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

हमको हीरो बनने में बडा मजा आता है जी ......सच्ची कसम से ..

हमारा शुरू से ही आदत रहा है कि ..जब देखो ..फ़टाक से आगे कूद जाते हैं ....गली मोहल्ला का लडाई सुलटाना होता था चाहे ...कि निगम , पुलिस के पास शिकायत करने की बात ....या फ़िर कि स्कूल कॉलेज के दिनों में .....पूरी लडकी गैंग को ....पिकनिक पर ले जाने के लिए निमंत्रण देने की ...मैं बाय डिफ़ाल्ट ही सबसे आगे हो जाता था ...और कमबख्त ये आदत अब तक नहीं छूटी ...कुछ हुआ न हुआ ...दन्न से सबसे आगे ...रही सही कसर ..हो गए श्रीमती जी मिलन से ..वे हमसे भी एक कदम ..हम दन्न तो वे दनाक से ..। बस जी फ़िर तो ऐसा लगा हमें कि हीरो की हीरोइन भी मिल गई है ..एकदम मैंचिंग ...।

ये हीरोगिरी मुझे तब और भी भाती है जब मैं ऐसे काम करता हूं ..कभी रास्ते में स्कूटर खडा करके ...किसी बडी ईंट को उठा कर रास्ते से बाहर हटा देता हूं ...कभी अचानक भरी हुई बस में सीट से उठ कर किसी महिला को अपनी सीट दे देता हूं ..कभी किसी अनजान व्यक्ति को भी .....एक या दो रुपए की चेंज ( जिसके लिए वो बेचारा फ़ंस जाता है दुकानदार के सामने या कहीं और ) उसे तपाक से ऑफ़र कर देता हूं ...या फ़िर कि ...रास्ते में खडी भीड के बीच पहुंच कर देखता हूं कि माजरा क्या और देखने के बाद फ़िर वही हीरोगिरी ..। मानता हूं कि कई बार गले पडता है बहुत कुछ ....मगर यकीन मानिए सैकडों बार जो ....अनुभूति होती है ....उससे रोमांच और खुशी मिलती है ..आह उस सुख को कैसे लिख पाऊंगा मैं



अभी कुछ वर्षों पहले ही एक दिन अचानक देखा कि अदालत परिसर में ही रक्त दान का कैंप लगा हुआ है ..अधिवक्ता मंच द्वारा आयोजित इस कैंप में कोई भी कर्मचारी जाने में रुचि नहीं दिखा रहा था ...बस जी हम और हमारी पलटन जी ने संभाल लिया मोर्चा ..देखिए कैसे लंमलेट पडे हैं और कर रहे हैं रक्त दान ....असर ये हुआ कि तब से अब तक ...रक्त दान कैंप में ..कर्मचारियों की भागीदारी देखने वाली होती है ..

अभी पिछले साल ही ...सपरिवार यहीं पास में ही रामलीला ग्राऊंड में ..देखा कि नेत्र दान कैंप लगा हुआ है ...बस जी देखिए आ गए हीरो हीरोईन एक साथ ....



सोचता हूं कि ये हीरोगिरी चलती रहनी चाहिए ..कल को बच्चे बडे होंगे तो खुशी से कह सकेंगे ...कि हां हमारे मम्मी पापा ..सच में हीरो थे ........कितनी तृप्त होगी आत्मा ....है न

शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

सॉरी ....जी , डॉक्टर ने जवाब दे दित्ता है .......... अजय कुमार झा











तो हुआ ये कि एक बीमार पत्नी ..अपने बहुत बीमार पति को लेकर डॉक्टर के पास गई ...

डॉक्टर ने पति की जांच पडताल करने के बाद उसे बाहर भेज दिया और पत्नी को अंदर बुलाया ,,,

क्या बात है डॉक्टर साहब ?

देखिए यदि आप............ एक साल तक , अपने पति को बोलने दें और आप सिर्फ़ सुनें , उनका पर्स में कुछ पैसे भी छोड दें , उन्हें सुबह स्वास्थवर्धक नाश्ता दें , हमेशा खुश वाले मूड में रहें ,रात को स्वादिष्ट खाना बनाएं , अपनी समस्याएं उनके सिर पर न पटकें , नए कपडे और शॉपिंग की मांग न करें ..और आखिर में बस ये कि सीरीयल न देखें तो ...शायद सब ठीक हो सकता है , "


वापसी में रास्ते में पति ने पत्नि से पूछा ..डॉक्टर ने क्या कहा

पत्नि ने कहा ," सॉरी ! डाक्टर ने जवाब दे दिया है ..."







एक लडका ..बाहर कहीं से पिट कर आया ..घर पहुंचने पर ..उसे बुरी तरह पिटा हुआ , टुंडा पुंडा ..सर पर गूमड निकला हुआ ..देख कर सबके क्या क्या रिएक्शन रहे देखिए ,

लडके की मां " हाय ! मेरे लाल को किसने ऐसे मारा , उसके हाथ क्यों नहीं टूट गए , हे भगवान आखिर तेरी मुझसे क्या दुश्मनी है "

लडके की दीदी " , ये तो होना ही था , मैं तो पहले ही कह रही थी कि इसकी संगत ठीक करो , जाने कहां कहां फ़िरता रहता है , आज पिट कर भी आ गया , हो गई ये हसरत भी पूरी "

लडके के पापा " कल से तेरा जेबखर्च आधा , आज पता चला है कि तू ये इतनी इतनी देर कौन से क्लासेस में रहता था ...मैं यहां तेरे लिए ..जाने क्या क्या ...जी तोड मेहनत कर रहा हूं और तू , निकल जा मेरी नज़रों के सामने से


लडके की प्रेमिका :- बस , आ गए कुत्ते की तरह पिट कर , कब से कह रही थी कि जिम शिम ज्वाईन करो , तुम्हारे अंदर तो कोई गट्स ही नहीं है , अब पडे रहना बिस्तर पर अगले चार दिनों तक , कल का दबंग का शो तो गया

और अंत में लडके के दोस्त " , अभी चल निकल , चल देखें तो कौन थे साले ..उनकी ...................एक करके आते हैं , सालों ने तुझे हाथ कैसे लगा दिया .....या पीटेंगे ..या पिट कर आएंगे


और अब एक सूक्त वाक्य ..अबे इसे मजाक में लेना भाई लोगों और सब माता जी लोग भी ...वैसे भी मैंने नहीं कहा ....रुकिए बताता हूं किसने एसएमएस किया है ..तब तक आप पढिए .

"आपकी जिंदगी में दो स्त्रियों का महत्व बहुत सबसे अधिक होता है , एक आपकी मम्मी जो इस संसार में आपको रोते हुए लेकर आती है , दूसरी आपकी पत्नि ....जो ये सुनिश्चित करती है कि ..आप जिंदगी भर रोते रहें ...""

चलिए अब कल .........

बुधवार, 22 सितंबर 2010

फ़िर ले लाया मैं झलकियां , पोस्टों तक पहुंचने की खिडकियां ……..झा जी फ़िर कहिन ……

 

 

 

बत्तख पकड़ो !!

मम्मा मेरे लिए काँटा और बत्तख लाई....  मैं चला बत्तख पकडने... 

 

 

WEDNESDAY, 22 SEPTEMBER 2010

गणपति आये लन्दन में .[P7030130+shikha.JPG]

राष्ट्र मंडल खेल खतरे  में हैं क्यों?  क्योंकि एक जिम्मेदारी भी ठीक से नहीं निभा सकते हम .बड़े संस्कारों की दुहाई देते हैं हम. " अतिथि देवो भव : का नारा लगाते हैं परन्तु अपने देश में कुछ मेहमानों का ठीक से स्वागत तो दूर उनके लिए सुविधाजनक व्यवस्था भी नहीं कर पाए. इतनी दुर्व्यवस्था  कि  मेहमान भी आने से मना कर करने लगे. और कितनी शर्मिंदगी झेलने की शक्ति है हममें ? बस एक दूसरे  पर उंगली उठा देते हैं हम .हंगामा बरपा  है जनता कहती है कि ये राष्ट्रमंडल खेल बचपन खा गए , जनता को असुविधा हो रही है,अचानक से सबके अधिकारों का         हनन होने लगा है  और सरकार कहती है कि  शादी और खेलों के लिए ये समय अनुकूल नहीं ..वाह क्या लॉजिक   है. क्या आसान  तरीका है अपना पल्ला झाड़ने का ,अरे क्या ये  हमारा देश नहीं ? क्या  उसकी इज्जत की खातिर थोड़ी असुविधा नहीं झेल सकते हम ? मुझे याद है चीन जैसे देश में एक एक नागरिक ओलम्पिक की तैयारी में कमर कस  के जुट गया था, हर इंसान अंग्रेजी सीख रहा था कि आने वाले मेहमानों की सहायता कर सके .पर हम तो महान देश के महान नागरिक है.

बुधवार, २२ सितम्बर २०१०

क्या आप भी चखेंगे नई किस्म की वाइन है !!    [1+(52).JPG]

स्कूल के आखिरी दिन सभी बच्चे अपनी प्यारी मैडम के लिए कोई न कोई तोहफा लेकर आए थे...
फूल की दुकान चलाने वाले के बेटे के हाथ से पैकेट लेकर मैडम ने उसे हिलाया, और हंसकर बोलीं, "मुझे मालूम है, इसमें फूल हैं..."
बच्चा खुश होकर बोला, "बिल्कुल सही, मैडम..."
उसके बाद टॉफी बेचने वाले के बेटे के हाथ से पैकेट लेकर मैडम ने उसे भी हिलाया, और हंसकर बोलीं, "मुझे मालूम है, इसमें टॉफी हैं..."

 

Wednesday, September 22, 2010

भारतीय रेलवे अब बन गई है " यमदूत " |     [tulsi+small+jpg.jpg]

भारतीय रेलवे अब बन गई है " यमदूत " |

* क्या भारत में रेल्वे सफ़र सुरक्षित नहीं है ?

             * मध्यप्रदेश के बदरवास स्टेशन पर गुड्स रेल ..पेसेंजर रेल्वे से टकराई |

             * २३ की मौत और लगभग ५० घायल |

             * नसे में धुत था स्टेशन मास्टर, जिसके ऑफिस में से बरामद हुई शराब की बोतल |

             * दोष किसको दे " सरकार " या " रेल्वे अधिकारी " को  |

गणपति बाप्पा मोरया 

आज गणेश विसर्जन का दिवस है । दस दिन के बाद गणपति का वापिस लौट जाना कितना खलता है पर वे तो जाते हैं क्यूं कि अगले साल लौट सकें । हमें अपनी आंखों से जतन करने वाले, सूंड से सहलाने वाले, हमारे अपराधों को अपने पेट में डाल कर हमारे ऊपर करुणा बरसाने वाले भगवान गणेश, हमारे बाप्पा आज वापिस चले जायेंगे । उनकी विदाई भी आगमन की तरह ही शानदार होनी चाहिये । इस अवसर पर मेरे स्वर्गीय बडे भाई साहब द्वारा रचित हिंदी में गणेश आरती ( जो मराठी आरती का  अनुवाद है और तर्ज भी वही है ।) प्रस्तुत है ।

 

TUESDAY, SEPTEMBER 21, 2010

एक अनाम रिश्ता -- प्यार का --[zeal.jpg]

' आई लव यू '
ये वाक्य बहुत बार, बहुत लोगों को दोहराते सुना था , लेकिन कभी यकीन नहीं हुआ उनके शब्दों पर। क्या प्यार जैसा कुछ होता भी है ? क्या लोग प्यार के मायने समझते भी हैं ? क्या प्यार करने के पहले सोचते भी हैं , की निभा पायेंगे या नहीं ? क्या प्यार तपस्या नहीं ? क्या प्यार बलिदान नहीं ? क्या एक आदर्श प्रेम संभव है ?
क्या , आई लव यू कहने के पहले , कोई इनसे जुड़े दायित्वों के बारे में सोचता है?
प्यार की बहुत सी परिभाषाएं सुनीं और पढ़ी हैं । जाने क्यूँ कोई भी परिभाषा मन को उपयुक्त नहीं लगी। बहुत सोचा, मनन किया, की प्यार आखिर है क्या ? बस इतना ही समझी --
-प्यार एक एहसास है।
-इस रिश्ते का कोई नाम नहीं होता। अनाम है ये रिश्ता।

 

श्राद्ध---क्या, क्यों और कैसे ?    [panditastro25.jpg]

>> WEDNESDAY 22 SEPTEMBER 2010

भारतीय संस्कृ्ति एवं समाज में अपने पूर्वजों एवं दिवंगत माता-पिता का स्मरण श्राद्धपक्ष में करके उनके प्रति असीम श्रद्धा के साथ तर्पण, पिंडदान, यज्ञ तथा भोजन का विशेष प्रावधान किया जाता है. वर्ष में जिस भी तिथि को वे दिवंगत होते हैं,पितृ्पक्ष की उसी तिथि को उनके निमित्त विधि-विधान पूर्वक श्राद्ध कार्य सम्पन्न किया जाता है.हमारे धर्म शास्त्रों में श्राद्ध के सम्बन्ध में सब कुछ इतने विस्तारपूर्ण तरीके से विचार किया गया है कि इसके सम्मुख अन्य समस्त धार्मिक क्रियाकलाप गौण लगते हैं.श्राद्ध के छोटे से छोटे कार्य के सम्बन्ध में इतनी सूक्ष्म मीमांसा और समीक्षा की गई है कि जिसे जानने के बाद कोई भी विचारशील व्यक्ति चमत्कृ्त हो उठेगा. वास्तव में मृ्त पूर्वजों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किए गए दान को ही श्राद्ध कहा जाता है.

'पाबला डे' पर विशेष - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

>> WEDNESDAY, SEPTEMBER 22, 2010

प्रिय ब्लॉगर मित्रो,

प्रणाम !

आज २१ सितम्बर है .....और आज से ह़र साल आज का दिन ब्लॉग जगत में 'पाबला डे' के रूप में मनाया जायेगा ! आज हम सब के चहेते पाबला जी का जन्मदिन है और सब को ब्लॉग जगत में मौजूद ब्लॉगर के जन्मदिन के बारे में बताने वाले पाबला जी के ब्लॉग पर इस की कोई सूचना नहीं है | जब पुछा गया ऐसा क्यों तो जवाब मिला,

 

उड़ान...मेरा फोटो

 

 

उसने फिर

अपने वज़ूद को

झाडा-पोंछा,

उठाया

दीवार पर टंगे

टुकडों में बंटें

आईने में

खुद को

कई टुकडों में पाया,

अपने उधनाये हुए

बालों पर कंघी चलायी,

तो ज़मीन कुछ

 

क्षमा उस भुजंग को शोभती जिसमें गरल भरा हो----- ललित शर्मा

ललित शर्मा, बुधवार, २२ सितम्बर २०१०    [lalit+50.jpg]

“क्षमा वीरस्य भूषणम्।“ एक सुक्ति कही जाती है। क्षमा वीरों का आभूषण है। कहा गया है कि "क्षमा उस भुजंग को शोभती जिसमें गरल भरा हो।" कहने का तात्पर्य यह है कि जो नुकसान करने में सक्षम है अगर वह क्षमा करे तो शोभायमान होता है। जिसमें नुकसान करने की क्षमता नहीं है और वह कहे कि जाओ तुम्हे क्षमा करता हूँ तो स्थिति हास्यास्पद ही होगी। अगर कोई सींकिया आदमी पहलवान से कहे कि जा तुझे माफ़ किया तो लोग हंसेगे ही।
अगर हम किसी विवाद की जड़ में जाएं तो इसका प्रमुख कारण गर्व, घमंड ही होता है। किसी को नीचा दिखाने की कोशिश करना और अपने को ऊँचा दिखाना भी लड़ाई को जन्म देता है। जब अहम टकराता है तो वह बड़ा नुकसान करवा देता है। लेकिन क्षमा एक बहुत बड़ा हथियार है शांति के लिए। इससे मन की शांति हो जाती है। मन की शांति इसलिए होती है कि क्षमा मांग लेने से गर्व का शमन हो जाता है।
लेकिन ध्यान यह भी रहे कि मूर्खों से क्षमा मांगना और उन्हे क्षमा करना भी बहुत बड़ी मूर्खता होती है। मूर्ख तो सिर्फ़ डंडे की भाषा समझता है।

 

ताकि बची रहे चाहत जीने की....

कुछ तो सपने

रहने दो आंखों में

जीने के लिए

केवल आंखें ही नहीं

सपनों का भी होना

आवश्यक है

जिससे अंतिम समय तक

भरी रहें उमंगें

तैरती रहे जिंदगी

मुस्कुराहटों के सागर में

बची रहे चाहत

 

WEDNESDAY, SEPTEMBER 22, 2010

अभिलाषाओं का टोकरा.

ख्वाहिशों के विस्तृत आकश को हर दिन टांगती हूँ बाहर , अपने खजाने से चाँद, सूरज निकालती

हूँ , तारों के धवल चादर पर मोहक सपने बिखेर देती हूँ ... कल्पनाओं के इस महासागर में मुझे

अपनी ज़िन्दगी के नन्हें-नन्हें मायने मिल जाते हैं ...

रश्मि प्रभा

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!! अभिलाषाओं का टोकरा.!!

अपनी अभिलाषाओं का

तिनका तिनका जोड़

मैने एक टोकरा बनाया था,

बरसों भरती रही थी उसे

अपने श्रम के फूलों से,

इस उम्मीद पर कि

 

 

 

भ्रष्टाचार! भ्रष्टाचार!!   

पोस्टेड ओन: September,22 2010 जनरल डब्बा, मस्ती मालगाड़ी, हास्य - व्यंग में

 

आज एकबार फ़िर अपने अस्तित्व पर खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है । बदलते फ़ैशन की आँधी थमने का नाम ही नहीं लेती । मेरी कमज़ोरियां एकबार फ़िर मुझपर हाबी होकर मुंह चिढ़ाए जाती हैं कि ले बेटा, अब सोच कि क्या लिखेगा और किसपर लिखेगा ! इस मौसम में अब कोई और धंधा ढूंढ ले, फ़िलहाल तो अपना पत्ता साफ़ ही समझ जंक्शन से’।
‘क्यों पत्ता साफ़ होगा!’ मैंने साहस बटोर कर अपनी कमज़ोरी की ओर आँख तरेरी, ‘जब तक ज्ञानी जी हैं गुरुद्वारे में, मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला, तू बस निकल ले यहां से, हांऽ!’
कमज़ोरी ने ज़ोरदार अट्टहास किया । छिछोरेपन से बोली, ‘जा, आजमा ले ।

 

Tuesday, September 21, 2010    [IMG2_0083.JPG]

विरक्ति पथ { अंतिम भाग }------------रानीविशाल

(अब तक : शालिनी और शची वर्षों के बाद दिल्ली में फिर से मिले है लेकिन इतने सालों में काफ़ी कुछ बदल चूका है ....दोनों सखियाँ शेष दिवस साथ बिता कर सुख दुःख बाटने लगती है । बातों ही बातों में पता चला शची अकेली रहती है उसका पति उसके साथ नहीं । कारण पूछने पर शची वृतांत सुना रही है कि किस तरह इम्तहान के बाद जब वो अपने पापा के साथ ससुराल मनाली पहुची तो सिद्धार्ट के व्यवहार में परिवर्तन आगया .....वह साधू सन्यासियों सी बातें कर रहा है । शची समेत संसार कि सभी स्त्रियाँ उसके लिए मातृवत है ......शची आपने सपनों के टूटने के दर्द से सारी रात तड़पती रही )
अब आगे : सिद्धार्थ के कक्ष से जाते समय शची अच्छे से समझ गई थी कि इसके बाद वो कभी इस कक्ष में उसके साथ नहीं हो पाएगी ....अब उसे यह ठीक से समझ आगया था कि शायद वह जिसे सिद्धार्थ का बड़प्पन समझ रही थी वह तो उसका अलगाव ही था . सुबह होते ही शची चाय लेकर आपने सास ससुर कि सेवा में पहुच गई शची के हाथों चाय कि प्याली लेते हुए वे एक टक खिड़की से सुनी राहों को निहार रहे थे . शची के चहरे पर उसकी व्यथा साफ़ नज़र आरही थी . भोर होने से पहले उन्होंने ही इस खिड़की से सिद्धार्थ को दूर सड़क पर जाते हुए देखा था ...मानो आज वो सच मुच ये सारे बंधन ये जिम्मेदारियां छोड़ कर सदा को जारहा है . आखिर वो उसके माता पिता थे उसमे आए इस बदलाव को वो पहले ही भांप चुके थे . शची की सास उसके सर पर हाथ रख कर हिम्मत दिलाती है ......धैर्य रख बेटा सब ठीक हो जाएगा

 

तीन गो बुरबक! (थ्री इडियट्स!)      [17022008058_edited.jpg]

तीन गो बुरबक! (थ्री इडियट्स!)

हमरे गांव में भी तीन गो बुरबक है। उ का है कि जब से एगो फ़िलिम का हिट हुआ गांव के पराइमरी ईसकूल के गुरुजी अपना नाम वीर सिंह से भायरस कर लिहिन हैं और उनका चेला रामचन्नर से नाम बदल कर रैन्चो रख लिहिस आ दूसरा त रजुआ था ही।

त एक दिन किलास में भायरस गुरुजी पूछे, "जिस सभा में एगो लोग  बोले और बांकी सब सुनें, उसे क्या कहते हैं, बोलो?

त टप्प से रैंचोआ बोला, "सोकसभा!"

भायरस गुरूजी परसन्न हुए और दोसरका प्रस्न दाग दिए, "आ ई बताओ कि जिस सभा में सब लोग बोले और कोई नहीं सुने, उसे का कहते हैं, बोलो-बोलो?”

राजुआ मुंह खोले इसके पहिले रैंचोआ फेर टपका बोला, "लोकसभा!

 

 

 

 

 

 

 

 

मिलिए अब कुछ नए ब्लॉग्स से

Wednesday, September 22, 2010

हरो जन की भीर   [mkc.jpg]

हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी चट बढ़ायो चीर॥
भगत कारण रूप नर हरि धर।ह्‌यो आप समीर॥
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो धर।ह्‌यो नाहिन धीर॥
बूड़तो गजराज राख्यो कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर चरणकंवल सीर॥

 

 

कुछ मित्रो के ब्लॉग- अच्छे है पढ़े जरुर  [1+(177).JPG]

जब तक कुछ लिखना शुरू नहीं करते तबतक इन मित्रो के ब्लॉग पर जाकर इनका आनंद ले :-
कुछ पुराने भारत के फोटो
ताऊ.इन
ओशो सिर्फ एक
कुछ जोक्स

थोडा मुस्कुराइए

 

अच्छा जी राम राम ……चलते हैं आज के लिए खिडकियां बहुत सी हैं ..घूमिए ब्लॉग नगरिया ………

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

ओ हैलो ! ब्लॉग जगत इस सेलिब्रेटिंग "हैप्पी पाबला डे "आपको पता है न ..तो "हैप्पी पाबला डे टू यू ऑल...."



इरफ़ान भाई द्वारा पाबला जी की जन्मचित्र
पिछले साल जब बात बात में अचानक ही पाबला जी मुंह से ये निकला कि आज यानि २१ सितंबर को उनका जन्मदिन है , तो फ़िर आननफ़ानन में एक पोस्ट लिखी थी ....और लिखता भी कैसे नहीं ....आखिर पूरे ब्लॉगजगत में एक ऐसा शख्श .....मुझे नहीं पता कि वे वाकई शख्श ही हैं या नहीं , क्योंकि उनके पिछले दिल्ली प्रवास के दौरान मैंने उनके अंदर चिप लगे हुए या फ़िर चार्ज़ होते नहीं देखा था ..........मगर यकीनन जो वे करते आ रहे हैं , पिछले कई सालों से वो किसी भी हालत में एक कंप्यूटर ही कर सकता है ...मगर जैसा कि पाबला जी खुद कहते हैं कि ...उनका और कंप्यूटर का जोड .....बेजोड है । और इस जोड में मैंने खुद को भी चुपके से फ़िट कर लिया है ।


अब
इनके बारे में क्या कहा जाए .......चैट करो ..चाहे रात के दो बजे या दिन के ढाई बजे ....सर वापस आएं तो ज़रा संपर्क करिएगा .....उधर से जवाब मिलेगा ..कहां से वापस ...मैं तो यहीं हूं ....फ़ोन करो तो ...सोते सोते भी उनके फ़ोन से आवाज़ आती है ....उठते ही संपर्क करूंगा ...और ऐसा नहीं है कि मैं कोई खास हूं ..ऐसा ब्लॉग जगत के नए पुरानी हर साथी के साथ ही होता है । कोई समस्या हो ....पाबला जी हैं न ....कोई लेख अखबार में छपा है ....पाबला जी हैं न ...कोई विशेष मौका है किसी ब्लॉगर के जीवन का तो भी पाबला जी हैं न । स्वभाव से जितने ही मृदुल ......उसूलों के उतने पक्के ।

सब जानते हैं कि यदि ठान ली तो ठान ली .....कमेंट तो कमेंट अपनी मर्जी के बगैर ...ली और दी गई बधाई भी वापस नहीं लेते । जब मैं किसी बात पर कोई सलाह लेता हूं उनसे ....तो उनका जवाब ये नहीं होता कि ...ऐसा कर लें आप । ये होता है कि ...यदि आपकी जगह पर मैं होता तो ऐसा करता ।
बहुत कुछ है ऐसा ...जो मुझे उनके साथ एक बार जोड के फ़िर हमेशा के लिए जोडे रखता है ......अक्सर मजाक में मैं उन्हें एक ही बात बोलता हूं कि ....सर "प्राजी विद झाजी .........ए डेडली कौंबो पैक "। इसी बात को , हम दोनों को ही चाहने वाले ने कुछ इस तरह से कहा था कि , आप दोनों तो वैसे हैं ब्लॉगजगत के लिए कि ..".एक आ बला हैं दूसरे पा बला हैं" कोई बचे तो कैसे बचे |

और मेरा तो पूछिए मत , पिछली बार इस पाबला डे को मनाने के चक्कर में इतना मशगूल हो गया मैं कि , अपनी श्रीमती जी का जन्मदिन , जो कि आज से ठीक पांच दिन बाद होता है ...वही भूल गया । अब आप मजे से ये कल्पना करें कि रात के बारह बजे ..अपने ब्लॉगर साथी को जन्मदिवस की मुबारकबाद देने वाला कोई मेरे जैसा ..अपनी श्रीमती जी का जन्मदिवस दिन के बारह बजे तक भूला बैठा हो तो ....फ़िर उस घर में उस दिन क्या हुआ होगा ??????वैसे इस बार मैं सतर्क हूं ..हा हा हा हा ॥
एक खास बात और , सभी ब्लॉगर्स को उनके जन्मदिवस पर ढेरों बधाईयां देने दिलाने वाले पाबला जी खुद अपना जन्मदिवस छुपा कर बैठ जाते हैं ...इसलिए हमने सोचा क्यों न आज के दिन को हिंदी ब्लॉगजगत को "पाबला डे " मनाने दिया जाए ..॥तो सर आपके साथ पूरे हिंदी ब्लॉगजगत को पाबला दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाई ............


रविवार, 12 सितंबर 2010

सभी छिछोरों से मुखातिब हूं .........



कुछ भी पढने से पहले आप ये पोस्ट पढ लीजीए । ..और इसके बाद ..अंदाज़ा लगाईये कि ....इसके बाद जब ये पोस्ट आई है ...तो स्थिति कैसी होगी मेरी .........। तो मैं आप सबको और साथ ही उन तमाम छिछोरों को भी बताता चलूं कि आज मैं उन्हीं से मुखातिब हूं ......सरे शाम न सही .....सरे आम ही सही .........।

अब जैसे ही हरी बत्ती जलती है .....जलती क्या है ..कहिए कि जली ही रहती है हमेशा .....मगर ये हरी बत्ती का असर कुछ छिछोरों पर रेड लाईट .......की तरह का होता है ...और वे मुएं लपक लेते हैं । तो उन तमाम छिछोरों से आज यहीं कह डालता हूं कि .....अबे ए ....आई एम नॉट ए गे .........आई एम गेट वे और इंडिया , आई एम लाल किला , आई एम कुतुब मीनार........दफ़ा हो जाओ ....।


मगर किया क्या जाए जी .......अब तो पट्ठों को सुप्रीम कोर्ट तक से फ़ैसिलिटी मिल रही है ....परेड झांकियां तक निकल रही हैं ........रैली निकल रही हैं ......जुलूस भी निकल ही रहा है .....और और्कुट और फ़ेसबुक पर तो ऐसे छिछोरों ने बाकायदा जाल बिछा रखा है ..........और जरूरी तो नहीं कि छोछोरपने के साथ आप ब्लॉगिगंग नहीं कर सकते । मेरी हालत तो उन बालाओं से गई गुजरी हो गई है ......जिन्हें कम से कम छिछोरे तो सहेलियां नहीं मिले...मिले तो ....अरे मारिए गोली ......नाम लेना क्या ठीक लगता है ........लोगबाग उनके प्रेमपत्र तक छाप देते हैं ...(एंड विदाउट नोईंग दैट , इन छिछोरापन दीज़ थिंग्स आर नॉट अलाऊड यार ...........) मगर हम ऐसा नहीं करेंगे ।


हम तो बिल्कुल नहीं बताएंगे कि पट्ठे , पासपोर्ट साईज़ की फ़ोटो देख भी , जाने कैसे कंधे, और कमर तक की तारीफ़ कर जाते हैं ........इतना बढिया तो स्कैनर भी नहीं कर पाता .....। तो हे छोछोरों .......आप सबसे मेरी प्रार्थना है ....वैसे तो सुना है कि आप लोगों को फ़्रेंच किस्स से बात ज्यादा समझ में आती है .....कि आप किसी और को पकडिए ..........अरे यार कोई न कोई तो मिल ही जाएगा ....छिछोरापन इंज्वाय करने वाला .......................

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

कुछ पोस्ट झलकियां…..झा जी कहिन

 

 

 


आज अंजली सहाय, हिमांशु तथा मोहन वशिष्ठ का जनमदिन है

>> बुधवार, ३० जून २०१०

 

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30 जून 2010             

30 June 2010

आज का दिन मेरे लिये विशेष है । आज माँ सेवा-निवृत्त हो रही हैं । माँ के प्रति लाड़-प्यार के अतिरिक्त कोई और भाव मन में कभी उभरा ही नहीं पर आज मन स्थिर है, नयन आर्द्र हैं । लिख रहा हूँ, माँ पढ़ेगी तो डाँटेगी । भावुक हूँ, न लिखूँगा तो कदाचित मन को न कह पाने का बोझ लिये रहूँगा ।

कहते हैं जिस लड़के की सूरत माँ पर जाती है वह बहुत भाग्यशाली होता है । मेरी तो सूरत ही नहीं वरन पूरा का पूरा भाग्य ही माँ पर गया है । यदि माँ पंख फैला सहारा नहीं देती, कदाचित भाग्य भी सुविधाजनक स्थान ढूढ़ने कहीं और चला गया होता । मैंने जन्म के समय माँ को कितना कष्ट दिया, वह तो याद नहीं, पर स्मृति पटल स्पष्ट होने से अब तक जीवन में जो भी कठिन मोड़ दिखायी पड़े, माँ को साथ खड़ा पाया ।

 

Wednesday, June 30, 2010         

पहले जिंदगी सरकती थी , अब दौड़ लगाती है -image ----

पिछली पोस्ट के वादानुसार, प्रस्तुत है एक कविता अस्पताल में लिखी गई , आँखों देखी , सत्य घटनाओं पर आधारित ।
शहर के बड़े अस्पताल में ,खाते पीते लोग

भारी भरकम रोग का उपचार कराते हैं ।

तीन दिन बाद रोगी हृष्ट पुष्ट और रोगी से ज्यादा
उसके सहयोगी , बीमार नज़र आते हैं ।

यहाँ कर्मचारी तो सभी दिखते हैं ,पतले दुबले और अंडर वेट

पर कस्टमर होते हैं भारी भरकम , कमज़ोर दिल और ओवरवेट ।

 

बुधवार, ३० जून २०१०        image

:::: रोईद: ::.... 5

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जब भी घर मे आया था..

खुद को तन्हा..पाया था...

देखो सब तो जाग चुके..

सूरज अब क्यो लाया था..

नीम ये पूछे..आँगन का..

मैं किसका सरमाया था...

 

 

नींद के फेंस के इधर और उधर..     image        

No Comment - लजाइये नहीं, टिपियाइये

एक्‍चुअली किस बात से इस पूरे झमेले की शुरुआत हुई कहना मुश्किल है. पत्‍नी के बगल सोता न होता तो शायद यह दुर्दिन सामने न खुलते. लेकिन पत्‍नी को छोड़कर कहीं और सोने जाता तो फिर मेरी आदतों के बदलने का ख़तरा सिर मंड़राता. पीठ पीछे पत्‍नी शिकायत करती कि कहीं और जाकर सो रहे हैं. शायद इसीलिए कहते भी हैं आदतों से बंधा व्‍यक्ति चैन की नींद सोता है. जबकि सच्‍चाई है मैं तो सो भी नहीं रहा था. वह तो पत्‍नी करती थी, मैं छाती पर हाथ बांधे उसकी भारी सांसों का ऊपर-नीचे होना सुनता रहता. सुनते-सुनते उकताहट होने लगती तो गरदन मोड़कर चुपचाप सोती पत्‍नी को गौर से देखता रहता. कितनी रातें मैंने इस तरह सोई पत्‍नी को चुपचाप ताकते हुए गुजारी है. ऐसे मौकों पर बहुत बार कुछ वैसा दीख गया है जिसकी ओर पहले कभी ध्‍यान न गया होता. जैसे दायीं कान और गरदन के बीच पत्‍नी के एक मस्‍सा था मैं जानता नहीं था. या उसकी पसलियों के नीचे माचिस की तीली के आकार का एक कटे का निशान जिसे वह अब तक मुझसे छुपाये हुए थी. एकाएक मुझे विश्‍वास नहीं हुआ था कि माचिस की तीली के आकार के उस कटे के निशान को कमर पर सजाई हुई औरत मेरी पत्‍नी ही है. गहरे जुगुप्‍सा में मैं देर तक उस माचिस की तीली के आकार के कटे के निशान को पढ़ता रहा. पत्‍नी के चेहरे पर झुककर इसकी ताकीद की कि माचिस की तीली के आकार के कटे के निशान वाली वह स्‍त्री मेरी पत्‍नी है.

 

 

एक पोस्ट .......आम भी , और खास भी !.....अजय कुमार झा







"अहि बेर गाम में आम खूब फ़रल अईछ , भोला भईया "(इस बार गांव में आम खूब फ़ले हुए हैं , भोला भईया ), जैसे ही फ़ोन पर चचेरे भाई ने ये कहा मैं हुलस पडा , ये जानते हुए भी कि उन आमों के स्वाद तो स्वाद इस बार तो उनकी सूरत भी देखने को नसीब न हो । और इस बार ही क्यों अब तो जमाना हो गया जब आम के मौसम में गांव जाना हुआ हो । और फ़िर अब आम ही कौन सा पहले जैसे रहे , वे भी हर दूसरे साल आने की बेवफ़ाई वाली रस्म ही निभाने में लगे हुए हैं , उसकी भी कोई गारंटी नहीं है । मगर जब चचेरे अनुज ने ये कह कर छेड दिया, तो फ़िर अगले दस मिनट तक तो फ़ोन पर आमों का ही ज़ायज़ा लिया गया । किस किस बाग में कौन कौन से आम फ़ले हैं , पिछले दिनों जो अंधड तूफ़ान आया था उसमें कितना नुकसान हुआ । फ़ोन करके जब बैठा तो अनायास ही वो आमों की दुनिया और उसके बीच पहुंचा हुआ मैं , बस यही रह गए कुछ देर के लिए ।


 

क्या आप भी बनाना चाहते है इन्डली व ब्लोगिरी जैसा ब्लॉग एग्रीगेटर ?

 

Ratan Singh Shekhawat, Jun 30, 2010

जब से सबका चहेता और लोकप्रिय हिंदी ब्लॉग एग्रीगेटर ब्लॉगवाणी की सांसे अटकी पड़ी है तब से हर किसी के मन में हलचल मच रही है कि काश हिंदी ब्लॉग एग्रीगेटर्स की संख्या ज्यादा हो ताकि कोई एक या दो एग्रीगेटर पर निर्भर ना रहना पड़े | ब्लॉग वाणी के बंद होने के बाद इन्डलीब्लोगगिरी नाम के दो एग्रीगेटर्स का अवतार भी हो चूका है |

 

बुधवार, ३० जून २०१०

एक अदृश्य सूली

हर सुबह समेटती हूँ ऊर्जाओं के बण्डल
और हर शाम होने से पहले
छितरा दिया जाता है उन्हें
कभी परायों के
तो कभी तथाकथित अपनों के हाथों..
कई बार तो.. कई-कई बार तो
भरनी चाही उड़ान
'हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं' सुनकर
पर ना तो थे असली पर
और न हौसलों वाले ही काम आये..
सिर्फ एक अप्रकट
एक अदृश्य सूली से खुद को बंधे पाया
हौसले के परों को बिंधे पाया
फिर भी हर बार लहु-लुहान हौसले लिए
बारम्बार उगने लगती हूँ 'कैक्टस' की तरह

 

30 June 2010              image

रिटायर होते, आपके घर के यह मुखिया - सतीश सक्सेना

आदरणीय ज्ञानदत्त पाण्डेय ने कुछ समय पहले प्रवीण पाण्डेय के रूप में एक बेहतरीन सोच और समझ रखने वाले लेख़क का परिचय कराया था , उनके पहले ही लेख से यह महसूस हुआ कि ब्लागजगत में एक ईमानदार ब्लाग जन्म लेने जा रहा है जो समय के साथ सही सिद्ध हुआ !
आज उन्होंने अपनी माँ के रिटायर होने के अवसर पर एक पुत्र की ओर से एक भावुक पोस्ट लिखी है ! अधिकतर हम लोग देखते हैं कि रिटायर होते ही, देर सवेर घर के अन्य सदस्य , उन्हें घर के मुखिया पोस्ट से भी रिटायर करने की तैयारी करने लगते हैं ! बेहद पीड़ा दायक यह स्थिति, आज सामान्यतः अधिकतर घरों में देखी जा सकती है ! "रिटायर" शब्द का प्रभाव प्रभावित व्यक्ति पर इतना गहरा पड़ता है कि रिटायरमेंट के  बाद वह अक्सर बुद्धि हीन, धनहीन और हर प्रकार से अयोग्य समझा जाता है ! छोटे बच्चे को खिलाने घुमाने के अलावा दूध सब्जी लाना और घर की चौकीदारी जैसे कार्य  आम तौर पर उनके लिए सही और उचित मान लिए जाते हैं !

 

Tuesday, June 29, 2010             image

अपने मोहल्ले की लड़कियों के बारे में

लगता है कि मैं एक बार फिर कविताओं की ओर लौटने लगा हूं। यह सही हो रहा है या गलत मैं नहीं जानता, बस इतना कह सकता हूं कि एक छटपटाहट ने घेर रखा है जिससे मुक्त होना थोड़ा कठिन लग रहा है। पिछले कुछ समय से मैं लगातार बेचैन चल रहा हूं। यह कब तक  चलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता। जो लोग कविता लिखते हैं वे मेरे बारे में अपनी यह राय जरूर कायम कर सकते हैं कि एक बेवकूफ था जो इधर-उधर अपनी फजीहत करवाने के बाद घर लौटकर आ गया है।

अपने मोहल्ले की लड़कियों के बारे में

एक लड़की
सीखने जाती है
सिलाई मशीन से

घर चलाने का तरीका



एक लड़की
दिनभर सुनती है
लता मंगेशकर का गाना


 

 

हम सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं या सुविधाओं का दास बन चुके हैं?

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Author: जी.के. अवधिया | Posted at: 10:11 AM | Filed Under: मोबाइल

घर से निकलने के कुछ देर बाद रास्ते में अचानक याद आया कि मैं अपना मोबाइल घर में ही भूल आया हूँ। एक बार सोचा कि चलो आज बगैर मोबाइल के ही काम चला लें किन्तु रह-रह कर जी छटपटाने लगा। घर से बहुत दूर तो नहीं पहुँचा था पर एकदम नजदीक भी नहीं था इसलिये घर वापस जाकर मोबाइल लाने की इच्छा नहीं हो रही थी पर मेरी छटपटाहट ने मुझे घर वापस जाकर मोबाइल लाने के लिये मुझे विवश कर दिया।
मैं सोचने लग गया कि यदि आज मेरे पास मोबाइल नहीं भी रहता तो सिर पर कौन सा पहाड़ टूट जाता? मोबाइल पर जिनसे भी और जो कुछ भी मेरी बात होती है वे कितनी आवश्यक होती हैं? क्या ललित शर्मा जी, राजकुमार सोनी जी, अजय सक्सेना जी आदि से मोबाइल में उनके पोस्ट और टिप्पणियों के बारें में बात करना बहुत ही जरूरी है? क्या एक दिन मोबाइल से अपनी पसंद के गाने सुने बिना रहा ही नहीं जा सकता?

 

Monday, June 28, 2010

चरित्र और आवरणः लवली गोस्वामी

मई 2010 की यूनिकवि प्रतियोगिता की 14वीं कविता अत्यंत सक्रिय ब्लॉगर लवली गोस्वामी की है। लवली मनोविज्ञान का गहन ज्ञान रखती हैं और उसे अपने ब्लॉग संचिका पर बाँटती भी हैं। सकारात्मक परिवर्तनों की पक्षधर लवली ने हिन्दी ब्लॉगरों को वेब-निर्माण संबंधित प्रोग्रामिंग भाषाओं, टूलों (जैसे- एचटीएमएल, सीएसएस इत्यादि) की जानकारियाँ हिन्दी में दी है। धनबाद में रहती हैं और एक तकनीकी संस्थान में कम्प्यूटर विज्ञान पढ़ाती हैं। साँपों में भी इतनी गहरी दिलचस्पी है।
कविता: चरित्र और आवरण
रंगमंच में कलाकारों के चहरे हैं...
भाव पैदा करने की कोशिश करते
वो अपनी कला का सर्वोत्तम देना चाहते हैं
इन भाव भागिमाओं से
हर दर्शक को आश्चर्य चकित कर देना चाहते हैं
सफ़ेद रोशनी में भावों की कई तहों से लिपटे चेहरों में
मुझे कोई अभिनय नजर नही आता
यह सब सच-सा लगता है
जैसे वे लोग अपने अन्दर का कुछ उड़ेल कर सामने रख देना चाहते हैं

 

ऐसे चिकित्सक को क्या दंड मिलना चाहिए?

आज अखबार में समाचार था-

एक महिला रोगी के पैर में ऑपरेशन कर रॉड डालनी थी, जिस से कि टूटी हुई हड्डी को जोड़ा जा सके। रोगी ऑपरेशन टेबल पर थी। डाक्टर ने उस के पैर का एक्स-रे देखा और पैर में ऑपरेशन कर रॉड डाल दी। बाद में पता लगा कि रॉड जिस पैर में डाली जानी थी उस के स्थान पर दूसरे पैर में डाल दी गई। 

डॉक्टर का बयान भी अखबार में था कि एक्स-रे देखने के लिए स्टैंड पर लगा हुआ था। किसी ने उसे उलट दिया जिस के कारण उस से यह गलती हो गई। 

मुझे यह समाचार ही समझ नहीं आया। आखिर एक चिकित्सक कैसे ऐसी गलती कर सकता है कि वह जिस पैर में हड्ड़ी टूटी हो उस के स्थान पर दूसरे पैर में रॉड डाल दे। क्या चिकित्सक ने एक्स-रे देखने के उपरांत पैर को देखा ही नहीं? क्या ऑपरेशन करने के पहले उस ने भौतिक रूप से यह जानना भी उचित नहीं समझा कि वास्तव में किस पैर की हड्डी टूटी है? क्या एक स्वस्थ पैर और हड्डी टूट जाने वाले पैर को एक चिकित्सक पहचान भी नहीं सकता? या चिकित्सक इतने हृदयहीन और यांत्रिक हो गए हैं कि वे यह भी नहीं जानते कि वे एक मनुष्य की चिकित्सा कर रहे हैं किसी आम के पेड़ पर कलम नहीं बांध रहे  हैं?

 

Wednesday, June 30, 2010

लेखनी को आज ही कुदाल कीजिये....


फ़िज़ूल के न कोई अब सवाल कीजिये
कीजिये तो आज कोई कमाल कीजिये
बह गया सड़क पे देखिये वो लाल-लाल

कुछ सफ़े अब खून से भी लाल कीजिये
छुप गई उम्मीद क्यों, डरे हुए बदन

 

Wednesday, June 30, 2010

खुल गया स्कूल...

गर्मी की छुट्टियाँ ख़त्म. आज से मेरा स्कूल खुल गया. अब घुमाई कम, पढाई की बातें ज्यादा. वैसे मैंने तो इन दो महीनों में खूब इंजॉय किया. ढेर सारे आइलैंड्स की सैर, खूबसूरत बीच, रिमझिम बारिश का सुहाना मौसम. कीचड़ वाले ज्वालामुखी देखे तो INS राणा पर जाकर उसे भी नजदीक से देखा. साइंस सिटी भी गई. खूब ड्राइंग-पेंटिंग की, आपको भी दिखाउंगी. ढेर सारी मस्ती, हंगामा और शरारतें....कित्ता मजा आया. आज जब मैं स्कूल गई तो मुझे रोना आ रहा था. सही बताऊँ इत्ते दिन बाद स्कूल जाना बड़ा अटपटा सा लगा..कुछ-कुछ बोरिंग सा. 7:30 पर स्कूल है, सो सुबह ही जगना भी पड़ा. पहले कित्ता अच्छा था, देर तक सोने को मिलता. अब तो सब कम हड़बड़ी वाला लगता है. ...पर दो-चार दिन तक तो ख़राब लगता ही है, फिर सब नार्मल हो जायेगा. चलिए मेरी पहले दिन की स्कूल जाने की फोटो देखते हैं.

 

Wednesday, June 30, 2010

275 साल बाद फिर हुआ महायुद्ध...खुशदीप

जी हां, आज 93 मिनट में मैंने 275 साल पहले के काल को जिया..आप कह रहे होंगे कि क्या लंबी छोड़ने बैठ गया हूं...या मैं भी भूतकाल और आज के बीच झूलता हुआ भविष्यवक्ता बनने की राह पर चल निकला हूं...ऐसा कुछ भी नहीं है... भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट का 63 साल का इतिहास है...लेकिन मैं 63 साल की नहीं 275 साल की दुश्मनी की बात कर रहा हूं...स्पेन और पुर्तगाल भी भारत-पाकिस्तान की तरह यूरोप में दो पड़ोसी मुल्क है...और इनकी दुश्मनी का इतिहास 275 साल पुराना है..कल एक बार फिर स्पेन और पुर्तगाल आमने-सामने थे...वर्ल्ड कप फुटबॉल में सुपर एट में पहुंचने के लिए सब कुछ झोंक देने के इरादे के साथ....

 

 

Wednesday, 30 June 2010

फैशन या महंगाई ? (कार्टून धमाका)

******************************

 

तो आज के लिए बस इतना ही कल फ़िर मिलते हैं ..कुछ और धमाचौकडी के लिए …

मंगलवार, 29 जून 2010

कटौती का जमाना है ....एक लाईना से काम चलाईये (कुछ पोस्ट लिंक्स )

आज यकायक ही लगा कि भई कटौती का जमाना है तो फ़िर हम सबका फ़र्ज़ है कि इस जमाने के साथ चलने का कुछ न कुछ यत्न तो करें ही । तो फ़िर आज एक लाईना ही पेश किए देते हैं आपके लिए , अब दो लाईना में से इससे ज्यादा क्या कटौती करें भाई ....


तुम्हारा नाम लिखूं
..........हां अब कौन सा नाम देख कर माईनस प्लस का टंटा बचा है ।


तख्ता पलट दो ससुरों का .....और ऐसा सारे दामाद मिल कर करें ..


अब क्या करोगे राज भाई .....वेलेंटाईन डे भी चला गया जो प्रेमी प्रेमिका पीटते ..


क्या इंडली में भी फ़र्जीवाडे की झलक दिख रही है ? .. क्या कहा नहीं ....फ़ौरन ही थ्रीडी चश्मा खरीद डालिए ..सब दिखता है ।


दिन हरज़ाई ........आज भी बारिश न आई ।


प्राईम टाईम ...जरा हंस लें मुस्कुरा लें ....... रोने के लिए टीवी प्राईम टाईम ही लगा लें ।


ब्लागवाणी को लेकर हम ...
तब तक लिखते रहेंगे जब तक वो वापस न आ जाए ।


जीवन के स्टेशन पे
..कभी भी एडवांस रिजर्वेशन नहीं मिलता


गड्ढा ..
बस गिरते ही ठहाके शुरू ।


ये पैरेंटिंग नहीं आसान ..खासकर जब उसके साथ साथ ब्लोग्गिंग भी करनी हो तो ।


उदास होके भी मैं क्या पाऊंगा ....कुछ नहीं , इसलिए ऐसे ही हंसते खेलते रहिए ..पोस्ट ठेलते रहिए ।



सर , आप तो बडे ही क्यूट हैं .. कोई ऐसा कहे तो फ़ौरन समझ जाईये कि ...आपके साथ वो गे आंदोलन शुरू करने वाला है ।



याद आते हैं दूरदर्शन के वे दिन ....ओह ये पढ कर तो हमें भी अपना पेजर याद आ गया ....देखता हूं कहां गया ??


पाप और पुण्य ..
प से पाप , प से पुण्य , प से पोस्ट , प से पाठक ......



ब्लागवाणी छुट्टी पर , अंगना में आई हमारवाणी ...बस फ़टाक से इस नए अंगना में उछल कूद शुरू करो


एसएमएस से मिलेगी सीट : फ़िलहाल तो पोस्ट ही नदारद मिली है


महंगाई मार गई ..बस ब्लोग लिखना ही सस्ता रह गया है अब तो


विरोध करने का तरीका कैसा होना चाहिए ....सिर्फ़ लिख कर बताएं ..यहां हडताल, जाम , बंदी वगैरह करने की गुंजाईश नहीं है


आज के लिए इतना ही ...डोज़ पसंद आया तो ..कहिएगा ...यही प्रेस्क्रिपशन जारी रहेगा अभी कुछ दिनों तक ।

शनिवार, 26 जून 2010

टू लाईना इज बैक ......जस्ट पोस्ट लिंक्स ....यार !



बहुत दिन हो गए , अपनी मनपसंद दो लाईनों की पटरियां बिछाए हुए । यूं तो वैसे भी आजकल ब्लोगवाणी के डिरेल होने के कारण बहुत सी पोस्टें पता नहीं कौन कौन सी बडी लाईन छोटी लाईन और लूप लाईन से होकर निकल रही हैं , कमबख्त समझ ही नहीं आ रहा है कि कौन सा वो ट्रैक पकडें कि सबसे मुलाकात हो जाए । इसी बहाने सभी पगडंडियों तक पर चले जा रहे हैं , तो देखिए आज उनमें से किन किन को पकड के पटरियों को बिछाया गया है ।



एक बार सुबह उठो तो योगा के अलावा कुछ करने नहीं दूंगा ,
कह रहे हैं प्रवीण , करोगे तो मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगा ॥


इस्तुतिमति का पिटारा, पंडियाईन इज हर नेम ,
देखिए भोजपुरी इज कैसे , बिल्कुल सेम टू सेम ॥


मिसर जी करके लौटे आरती भोलेनाथ की ,
आप यहां पर बांचिए , कथा इसके बाद की ।



आज पूछी वाणी ने अजब सी एक पहेली ,
बताईये कौन है उनकी जान , दोस्त या सहेली ।


बीबीसी ब्लोग्स की महिमा अपरंपार है ,
वहां आज नीति, राजनीति और बिहार है ॥


उसको लगे बडा ही पाप जो इसे पढने से रोके
,
जानिए आखिर क्या पाया हमने इंसां होके


धान के देश में मिला एक सार्थक लेख ,
इस लिकं को पकडिए और आप लीजीए देख ॥


आज देखिए अभय बाबू ने किन शब्दों की ,की धुलाई ,
हमें तो निर्मल आनंद मिल गया इसे पढ के भाई ॥


मधु चौरसिया ने डाली आज फ़ैशन पर है नज़र ,
इस पोस्ट पर पहुंचिए आपको पढना हो गर ॥


विवेक भाई के ब्लोग पर बीमे की है जानकारी ,
सबको पढनी चाहिए , जिन्हें जान हो , या न हो प्यारी ।


आशीष भाई ब्लोगर्स के लिए करते हैं कई जतन,
आज गजेट नहीं है , मगर आज है इक बटन ॥


इस पोस्ट में दिखा गजब का इक असर ,
क्यों न हो आखिर यहां चल रहा है इक सफ़र ॥



महफ़िल प्यार की मिसर जी को आ रही है याद ,
आपको भी आएगी , इस पोस्ट को पढने के बाद ॥


राम त्यागी हो गए चींटियों से परेशान ,
आप भी उनकी परेशानी में करिए कुछ योगदान ॥


अब कुछ नए ब्लोग्स से करिए मिलने की तैयारी ,
सबसे पहले देखिए क्यों अधूरी है नारी ॥


ये हैं मनीष आचार्य , लिख रहे हैं राजस्थान से ,
आज अपनी पोस्ट में कुछ कहते हैं आसमान से ॥

संजीव गौतम जी के ब्लोग से मिलिए , नाम है कभी तो ,
फ़िलहाल एक कविता आप पढिए अभी तो ॥



चलिए अब चलता हूं उम्मीद है कि ...........बहुत दिनों बाद ....प्रस्तुत आपको ये दो लाईना कुछ अलग सा फ़्लेवर दे सकेंगी ..........। अब देखिए अगली पोस्ट में कोई अगला फ़्लेवर .....

शुक्रवार, 25 जून 2010

सीता की दुविधा ऐसी जानी , हाय कैसी अटकी ब्लोगवाणी ........


( ललित शर्मा जी के पोस्ट से साभार )






बात नहीं ये बडी पुरानी ,
सुनिए जरा सब ज्ञानी ध्यानी ,

मणि रत्नम ने बुनी कहानी ,
राम सीता रावण की बानी

राम जी ने जाने इक दिन कैसी ठानी ,
सीता जी की दुविधा पहचानी ,


और दुविधा देख सिया की ,
जतन से लिखी इक पोस्ट सयानी ,

अब दिल थाम के सुने हर प्राणी ,
अटक गई उसी पर ब्लोगवाणी ,

हाय ऐसी बदली तब सबकी बानी ,
सब ब्लोग्गर्स की याद आई नानी ॥

हर ब्लोग्गर हाय हुआ दिवाना ,
और हर पोस्ट हो गई दिवानी ,

चलो माना कि कुछ गर्मी थी पहले ,
मगर अब आया बरसात और आया पानी ,

कब तक दुविधा में अटकी रहोगी ,
अब तो वापस आओ महारानी ॥

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