गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

आओ बात करें ............१

कार्टून गूगल से साभार


इस पोस्ट के साथ ही मैं चुनाव पूर्व एक आम आदमी के रूप में , अपने विचार यहां बांटता जाऊंगा , मेरी कोशिश होगी कि बात उन पांच राज्यों के बहुत ही बडी जिम्मेदारी उठाने वाले साथियों के साथ अन्य दोस्तों के लिए भी एक सलाह और विमर्श के रूप में सामने आए । विश्व की राजनीति बहुत तेज़ गति से बदल रही है और देश बदलता है नागरिकों की सोच बदलने से । देश पिछले साठ बरसों से एक ही करवट पर है और बहुत गहरी नींद में था , अब ज़रा सा खटका हुआ है और करवट बदलने का वक्त है । चुनाव से पहले तक अब इस ब्लॉग पर बातें होंगी , बहस होगी , सिर्फ़ इस बात पर कि लोकतंत्र में हम कहां हैं , हम कौन हैं । इसलिए अबसे रोज़ यहां आओ बात करें ............................................

आओ बात करें ......१

देश को इस साल क्या मिला , और क्या नहीं मिला ये तो भविष्य के दिनों में ही ठीक ठीक फ़ैसला हो सकेगा , किंतु इतना तो यकीनन तय है कि ये फ़र्क अब आ चुका है कि , देश के सबसे बडे रुतबे , ओहदे और पद वाला व्यक्ति भी जबरिया एक ठेलागाडी वाले को ये समझा नहीं सकता कि कि उसके लिए सोचने करने का अधिकार उसके ही पास है , और ठेलागाडी वाले के पास सिर्फ़ एक रास्ता है , वो है मान जाने का । अब लोगों को बहुत अच्छी तरह से पता है कि पांच वर्षों में एक बार पूरी लकदक और सपनों के सौदागरी रूप को लेकर उनके बीच आने वाले का कर्म और धर्म चुनाव जीतते ही कैसे बदल जा रहा है । और उस पर तुर्रा ये कि , वे उलट कर जनता को ही आंखें दिखा रहे हैं , चोप्प अब जब तुमने ये अधिकार हमें दे दिया है तो फ़िर चोप्प करके उस अधिकार का उपयोग होता देखो । हम जैसा जो भी बनाएंगे वो जाहिर है कि जनता की सोच , उनकी काबलियत , उनकी ईमानदारी से बेहतर ही होगा ।


वर्ष २०११ के लिए यदि ये बात विस्फ़ोटक रही है कि बरसों से जंग खा रहा जनांदोलनी स्वरूप एकाएक जाग गया , और अब जबकि वर्ष २०१२ के लिए पहले ही ये माना और कहा जा रहा है कि ये महाप्रलय का वर्ष होगा तो फ़िर भला इससे बेहतर वक्त और क्या हो सकता है भारतीय जनतंत्र की व्यवस्था को ठोक पीट कर सही करने का । पूरा विश्व ये तय कर रहा है कि , उन्हें कल कैसा चाहिए तो फ़िर भारत ही पीछे क्यों रहे खुद को अभिव्यक्त करने में । पिछले कुछ दिनों में देश के जनप्रतिनिधियों ने जो भी कहा , सुना , बताया , समझा , आरोप लगाए वो किसी भी तर्क और कारण से भारतीय जनमानस की अभिव्यक्ति नहीं कही जा सकती । आज जो जनता महंगाई के साथ अपने जीवन के सारे क्षणों को जोर से जोर लगा कर खुद को बचा पाने के लिए संघर्षरत है , वो जब देखती है कि देश का , देश के लोगों का , देश की मिट्टी , खनिज , संसाधनों का दोहन करके निकाले गए पैसे को सिर्फ़  कुछ लोगों ने अपने हित ही नहीं बल्कि विलासितापूर्ण जीवन के लिए लगा रखा है और ऐसा लगातार हो रहा है तो फ़िर कहीं किसी सीमा पर जनता भी प्रतिक्रिया देने को उद्धत हो गई है ।


ये तो पहले ही तय था कि सत्ता के खिलाफ़ लडाई , वो भी किसी ऐसे वैसे मुद्दे पर नहीं बल्कि बनने जा रहे एक ऐसे कानून पर , जिसके बनने में ज़रा भी असावधानी या ढील दी जाए तो मामला आत्मघाती हो सकता है , तो ऐसे मुद्दे पर सीधे सीधे आम जनता के बीच से कुछ लोग इकट्ठे होकर , न सिर्फ़ सरकार की गलतियों को बाहर ले आते हैं बल्कि उससे बेहतर विकल्प प्रस्तुत करके , सरकार को उसके खिलाफ़ अपना नज़रिया व्यक्त करने पर मज़बूर कर देते हैं तो फ़िर ऐसा करने वालों के लिए ये बडा आसान सा नहीं होगा । पिछले दिनों लगातार एक के बाद सिविल सोसायटी के सभी सदस्यों को ,गैर जनलोकपाल विवाद की सुर्खियों में बनाए रखने की पूरी कोशिश की गई और बहुत हद तक कामयाब भी रहा गया । अतंत: अन्ना हज़ारे का ताज़ातरीन आंदोलन अनापेक्षित रूप से टल गया । सिविल सोसायटी के सदस्य  और इस मुहिम से जुडे लोग अब नए सिरे से ये सोचेंगे कि आगे की लडाई कैसे लडी जाएगी । हालांकि , ईशारा तो दे ही दिया गया है कि , आगामी विधानसभा चुनाव में इस बात को प्रमुख मुद्दे के रूप में देखने की अपील की जाएगी कि जनलोकपाल के मुद्दे पर किसका कैसा रूख रहा । ज़ाहिर है कि कांग्रेस सत्तारूढ और सबसे प्रमुख दल होने के कारण सभी जगह निशाने पर होगी ही ।

अब ये उन पांच राज्यों के नागरिकों पर , बहुत बडी जिम्मेदारी होगी कि वे अपने रुख से , अपने माहौल से , और अपनी राजनीतिक प्रखरता से पूरे देश के सामने कम से कम अपना नज़रिया तो रख सकें । ये चुनाव इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि अब शायद पहली बार देश के इतिहास में लोग " इनमें से कोई नहीं " जैसे विकल्पों की न सिर्फ़ मांग रखें बल्कि उसका ही चुनाव भी करें । पिछले दिनों बार बार राजनीतिज्ञ दों बातों का दंभ भरते रहे हैं कि वे जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं इसलिए वे ही प्रतिनिधित्व करने का अधिकार रखते हैं और दूसरी ये कि किसी भी ऐसे जनांदोलन और जनसमर्थन वाले व्यक्ति को सीधे चुनाव में आकर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करानी चाहिए । नियति का चक्र देखिए कि आज वो स्थिति खुद चल कर आ गई है । पांच राज्यों के चुनावों में मुद्दे कौन से होंगे , और पार्टियां कौन सी होंगी ये अहम नहीं है अहम होगा एक आम आदमी का एक वोटर के रूप में प्रतिक्रिया देना ।

ये समय है जब आम जनता जो अब तक सडकों पर उतर कर अपनी बात कह रही थी , समाचार माध्यमों में , संचार माध्यमों में और हर उस जगह जहां अभिव्यक्ति दी जा सकती है अभिव्यक्ति दे रही थी और है वो अब आमने सामने अपने जनप्रतिनिधियों से सारा हिसाब किताब पूछे । और ये इसलिए भी महत्वपूर्ण होने जा रहा है क्योंकि अब जनता ये समझ रही है कि जब उनका चुना हुआ ही प्रतिनिधि बन सकता है तो फ़िर वो वैसा हो जैसे वे खुद हैं । आम जनता के लिए ये एक होने का समय है , एक होकर संगठित होकर आगे बढने का समय है । अब बरसों से चली आ रही तटस्थता और अक्रियाशीलता को तोडना होगा , और आम लोगों को दुनिया को ये साबित करके दिखाना ही होगा कि असल में देश के लोकतंत्र का स्वरूप कैसा होना चाहिए ।



सोमवार, 28 नवंबर 2011

जनता का गुस्सा








वर्तमान परिदृश्य में जिस तरह से जनता राजनेताओं और राजनीतिज्ञों के प्रतिअप ने गुस्से का इज़हार कर रही है , बेशक वो भारतीय जनता के स्थापित व्यवहार के बिल्कुल प्रतिकूल लग रहा हो किंतु पिछले दिनों हुए जनांदलनों में सडक पर उतरे हुए लोगों के चेहरों पर इस तरह की चेतावनी स्पष्ट दिख रही थी ।


देश का आम आदमी आज महंगाई और अनिश्चितता के जिस दौर से गुज़र रहा है , अब उसे ये भी स्पष्ट समझ आ रहा है कि इसकी एक बहुत बडी वजह देश के भ्रष्ट राजनीतिज्ञों व प्रशासकों का भ्रष्टाचार ही है । देश की अपनी कुल जमा पूंजी से ज्यादा जब भ्रष्टाचार से जमा होने लगे तो फ़िर देश की आर्थिक स्थिति का होना अपेक्षित ही था । अफ़सोस ये है कि देश की आर्थिक स्थिति का होना ही अपेक्षित ही था । अफ़सोस ये है कि देश के प्रधान विख्यात अर्थशास्त्री के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुके हैं ।

देश का समाज , राजनीतिक , बाज़ार , सब कुछ परिवर्तन के दौर में हैं । साप्ताहिक हाट बाजार से सजने वाला देश अब वालमार्ट की ज़द में आ रहा है । ऐसे में यदि राजनेता आम लोगों से वही पुरानी मासूमियत और सहनशीलता की अपेक्षा कर रहे हैं तो वे खुद को मुगालते में रख रहे हैं ।

सरकारें और इनसे जुडे हुए प्रभावकारी तत्व दिनों दिन भ्रष्ट व लालची होते हुए अब भ्रष्टाचार और लालच के उच्चतम स्तर पर हैं । जनता पहले सी भीड वाली प्रतिक्रियाहीन लोकतंत्र नहीं रही है । अब वो प्रतिकार करना चाहती है । और ज़ाहिर है ऐसे में विकल्प के रूप में किसी भी नेता पर जूते चप्पल फ़ेंक कर , उनके साथ मारपीट करके उन्हें सार्वजनिक रूप से बदनाम करना उनके लिए एक आसान विकल्प है ।

बेशक इस तरह की मारपीट को सकारात्मक प्रतिक्रिया न माना जाए किंतु जनता को एक विकल्प तो मिल ही गया है । आम जनता अब सरकार और सियासत की संवेदनहीनता को काफ़ी देख व परख चुकी है । जो भी हो आधुनिक राजनीतिक काल में ऐसी घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के रूप में ही दर्ज़ की जाएंगी और ये देखना भी जरूरी होगा कि जनता की ऐसी हिंसक प्रतिक्रिया का परिणाम क्या निकलेगा ???? 

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

सरकार की उगाही और घोटाले











 दिल्ली नगर निगम ,राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ,बहुत जल्दी ही , साफ़ सफ़ाई , स्वच्छता के लिए एक नया कर ,सैनिटेशन कर ,लाने की तैयारी कर रहा है । मौजूदा समय के राजनीतिक हालातों को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि ,थोडे बहुत हील हुज्जत के बाद सरकार ये कर आम लोगों पर थोप ही देगी । सबसे बडी विडंबना ये है कि ,जिस समाचार माध्यम पर इस आशय की खबर दिखाई सुनाई दे रही थी उसके साथ ही ये खबर भी थी कि ,एक दिन पहले पूर्वी दिल्ली में एक व्यवसायी की मौत ,  बीस फ़ीट गहरी सीवर लाईन के मैनहोल के खुले ढक्कन में गिर कर हो गई । और ऐसा नहीं है कि ये कोई इकलौती घटना है । इन दोनों बातों को देखते समझते हुए आम आदमी के सामने कुछ गंभीर प्रश्न उठ कर आ जाते हैं । पिछले एक दशक में सरकार नए नए करों, और करों पर उपकर लगाने की संभावना तलाश कर उन्हें मनमाने तरीके से आम लोगों पर थोप रही है उससे यही लग रहा  है कि सरकार किसी न किसी बहाने से आम लोगों के खून पसीने की गाढी कमाई में से हिस्सेदारी वसूल रही है । 


देश के अर्थशास्त्र और उसे पूंजीवान बनाए रहने के लिए ये जरूरी है कि सरकार अपने नागरिकों से कर वसूलने के अधिकार का प्रयोग करे , उसमें किसी नागरिक को कोई आपत्ति भी नहीं है , किंतु यकायक ही बिना किसी आधार के , बिना आम लोगों की राय मंशा जाने सीधा एक कर उनपर थोप देना न्यायसंगत नहीं लगता ,खासकर उस शासन प्रणाली में तो कतई नहीं जो खुद को आधुनिक युग का सबसे सफ़ल प्रजातंत्र मानता हो । सरकार किसी भी नए कर के प्रस्ताव और उसे कानून बना कर जनता के ऊपर थोपे जाने के मामलों में उतनी ही और ठीक वैसी ही जल्दबाज़ी दिखाती है जितना कि सांसदों व विधायकों के वेतन वृद्धि के समय । 

इससे अलग और ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि , सरकार पुराने करों के साथ साथ नए नए कर उपकर भी आम लोगों पर लादे जा रही हैं । आम आदमी जो पहले ही दैनिक जरूरतों की वस्तुओं को पाने के लिए , अच्छा आवास , रोजी , शिक्षा ,स्वास्थ्य के लिए महंगाई से जूझ रहा होता है , सरकार व प्रशासन आम आदमी को तो कानून और कर चोरी के अपराध का डर दिखा कर उसे कर चुकाने पर मजबूर भी कर लेती है , किंतु लाखों करोडों अरबों रुपए का कर चोरी करने वाले बडे औद्यौगिक घराने , बडे बडे राजनीतिज्ञ ,खिलाडी ,अभिनेताओं आदि पर अपनी सख्ती नहीं दिखाती है । 


आम आदमी का गुस्सा इन करों को दिए जाने से ज्यादा तब फ़ूट पडता है जब वो देखता है कि उसकी गाढी कमाई से निकले हुए एक भाग को राजनीतिज्ञ व प्रशासक घोटाले गबन करके हडप कर जाते हैं ,और इसका परिणाम ये होता है कि इन करों के आधार पर आम लोगों के विकास और सुविधा के लिए जो योजनाएं और निर्माण कार्य     होने होते हैं वे सब इसकी भेंट चढ जाते हैं ।ज्ञात हो वाहनों को खरीदते समय ही ग्राहक से आजीवन पथकर के रूप में राशि वसूल ली जाती है और देश की सडकों का हाल वास्तविकता बयां करता है कि उस पथकर का उपयोग सडक के लिए कितना किया जाता है । खराब सडकों के कारण प्रतिवर्ष हादसे में सैकडों व्यक्तियों की मौत के लिए सरकार अपनी जिम्मेदारी लेना तो दूर , इन दुर्घटनाओं में पीडितों को मिलने वाले मुआवजे को देने में भी जैसी असंवेदनशीलता दिखाती हैं वो शर्मनाक और निंदनीय है । 


दिल्ली सरकार देर सवेर सैनिटेशन चार्ज़ वसूलने के लिए नया कानून तो ले ही आएगी , और यदि इस कानून के बाद जनता को शहर की स्वच्छता के कार्य में कुछ प्रतिशत भी सकारात्मक दिखता है तो यकीनन उसे अफ़सोस नहीं होगा बल्कि खुशी से वह कह सकेगा कि शहर की सुंदरता में उसका अपना भी कुछ योगदान है , हालांकि एक नागरिक के रूप में लोग स्वयं ही गंदगी को न फ़ैला कर , कूडे कचरे का सही और समुचित निस्तारण व्यवस्था में हाथ बंटा कर गलियों शहरों को सुंदर रखने में मदद करें तो ऐसे करों और उपकरों की नौबत ही नहीं आएगी । इसके अलावा सरकार को उन लोगों पर भी भारी जुर्माने और सज़ा का प्रावधान करना , न सिर्फ़ कानूनन बल्कि व्यावहारिक रूप में करना चाहिए । साठ सालों से बिगडती हुई तस्वीर को अगले साठ सालों में बिल्कुल लुप्त हो जाने से बचाने के लिए कुछ तो कठोर करना ही होगा । यदि इसी तरह से आम जनता द्वारा वसूले जा रहे कर धन को राजनीतिज्ञ अपने विदेशी बैंक खातों में भरते रहेंगे तो फ़िर जनता अपना रास्ता चुनने को बाध्य होगी , और नए जनांदोलनों की शुरूआत का बहाना भी । 



रविवार, 9 अक्टूबर 2011

कुछ पोस्ट झलकियां …झाजी कहिन

 

 

 

 

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय भाग 5

विशेष पुलिस अधिकारियों

(एस0पी0ओ0) की नियुक्ति एवं सेवा शर्तें

28. कोया कमांडो की कार्यप्रणाली के सम्बन्ध में वादियों के द्वारा कई आरोप लगाए गए। इस अदालत के द्वारा पूछे जाने पर कि कोया कमांडो कौन है और क्या है छत्तीसगढ़ राज्य ने अपने दो हलफनामों एवं लिखित टिप्पणी के माध्यम से निम्नलिखित तथ्य प्रकट किए हैं-
क. 2004 और 2010 के दौरान राज्य में 2298 नक्सलवादी हमले हुए, 538 पुलिस एवं सुरक्षा बलों के कर्मी मारे गए। इन आक्रमणों में 169 विशिष्ट पुलिस अधिकारी मारे गए एवं 32 सरकारी अधिकारी एवं 1064 ग्रामीण मारे गए। राज्य के नक्सल प्रभावित जिलांे में विशिष्ट पुलिस अधिकारी सम्पूर्ण सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। दांतेवाड़ा जिले का चिंतलनारि क्षेत्र सर्वाधिक नक्सलियों से प्रभावित क्षेत्र है। यहाँ पर एक घटना में 76 सुरक्षा कर्मी मारे गए थे।

 

09 October 2011

शीबा पर हमला अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है!

प्रेस नोट

जानी-मानी लेखिका और स्त्री अधिकार कार्यकर्ता शीबा असलम फहमी के घर पर दिल्ली में हुए इमाम बुखारी समर्थकों के बर्बर हमले का हम कडा विरोध करते हैं. साम्प्रदायिक कट्टरता के खिलाफ खुलकर लिखने वाली शीबा को धमकियां लंबे समय से मिल रही थीं और इसके पहले भी उन पर हमले हुए हैं. देश में लगातार सर उठा रहे दक्षिणपंथी कट्टरपंथ को रोकने में सरकार की नाकामयाबी ने जनपक्षधर लेखकों के लिए तमाम मुश्किलात खडी कर दी हैं और लोकतंत्र के समक्ष यह एक बड़ी चुनौती है.

 

फूली फूली चुन लिए काल्हि हमारी बार ....एक नए सदर्भ में ...!

वैसे तो अंगरेजी भाषा की  क्रिया -"टू वेजिटेट'' एक निष्फल सी, झाड झंखाड़ सी उगती जाती ज़िंदगी की  ओर इशारा करती है मगर एक आम जुझारू ज़िंदगी के साथ भी बहुत से खर पतवार किस्म की चीजें इकठ्ठा होती चलती  हैं , वे इसलिए और भी इकठ्ठा होती जाती हैं कि उनके प्रति हम एक आसक्ति भाव लिए रहते हैं ...जबकि कुदरत का एक 'जीवनीय' सूत्र हमें हमेशा अनेक माध्यमों से सन्देश देता रहता है कि बहुत कुछ पुराने धुराने को हमें टिकाते भी रहना चाहिए ....इसलिए कि 'पुराणमित्येव न साधु सर्वं' (यह पुराना है इसलिए श्रेष्ठ है यह बात हमेशा सही नहीं है)...प्रकृति में भी तो देखिये कई जीव जंतु तो अपने पुराने चोले को हर वर्ष त्यागते रहते हैं और त्यागकर और अधिक आकर्षक हो उठते हैं -सांप समुदाय इसमें निष्णात है ..पुरानी केंचुली उतारी नयी ओढ़ ली .....और भी कातिल सौन्दर्य हासिल कर लिया ....हमें कुदरत से बहुत बातों को सीखते रहना चाहिए खुद अपनी बेहतरी के लिए ...दत्तात्रेय नामके ऋषि ने तो इसलिए पशु पक्षियों को अपना गुरु मान लिया था ....इस पुरानी धुरानी चीजों की साफ़ सफाई को आप जानते ही हैं अंगरेजी में वीडिंग कहते हैं ...दीपावली के पूर्व घरों में वीडिंग अभियान जोरो शोरों से चलाया जाता है ..आफिसों में लाल फीतों में लिपटे कबाड़ को वीड करने के तरीकों पर तो बाकायदा शासनादेश हैं ....

 

Sunday, October 9, 2011

चाँद सो गया, तारे सो गए....मधुर लोरी में पुरवैया की महक लाये अनिल दा

 

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 761/2011/201
ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीले सफ़र में। और इस सुरीले सफ़र के हमसफ़र, मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ और आप सभी को साथ लेकर फिर से चल पड़ा हूँ एक और नई शृंखला के साथ। दोस्तों, किसी भी देश में जितने भी प्रकार के संगीत पाये जाते हैं, उनमें से सबसे ज़्यादा लोकप्रिय संगीत होता है वहाँ का लोक-संगीत। जैसा कि नाम में ही "लोक" शब्द का प्रयोग है, यह है ही आम लोगों का संगीत, सर्वसाधारण का संगीत। लोक-संगीत एक ऐसी धारा है संगीत की जिसे गाने के लिए न तो किसी संगीत शिक्षा की ज़रूरत पड़ती है और न ही इसमें सुरों या तकनीकी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। यह तो दिल से निकलने वाला संगीत है जो सदियों से लोगों की ज़ुबाँ से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती चली आई है। हमारे देश में पाये जाने वाला लोक-संगीत यहाँ की अन्य सब चीज़ों की तरह ही विविध है, विस्तृत है, विशाल है। यहाँ न केवल हर राज्य का अपना अलग लोक-संगीत है, बल्कि एक राज्य के अन्दर भी कई कई अलग तरह के लोक-संगीत पाये जाते हैं। आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर हम शुरु कर रहे हैं पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत के लोक गीतों और लोक-संगीत शैलियों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों से सजी हमारी नई लघु शृंखला 'पुरवाई'।

 

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ईश्‍वर के अस्तित्‍व पर सवाल उठाता 'नास्तिकों का ब्‍लॉग'

('जनसंदेश टाइम्स', 05 अक्‍टूबर, 2011 के

'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)

दुनिया के समस्‍त धर्म ग्रन्‍थ मुक्‍त कंठ से ईश्‍वर की प्रशंसा के कोरस में मुब्तिला नजर आते है। उनका केन्द्रीय भाव यही है कि ईश्‍वर महान है। वह कभी भी, कुछ भी कर सकता है। एक क्षण में राई को पर्वत, पर्वत को राई। इसलिए हे मनुष्‍यो, यदि तुम चाहते हो कि सदा हंसी खुशी रहो, तरक्‍की की सीढि़याँ चढ़ो, तो ईश्‍वर की वंदना करो, उसकी प्रार्थना करो। और अगर तुमने ऐसा नहीं किया, तो ईश्‍वर तुम्‍हें नरक की आग में डाल देगा। और लालच तथा डर से घिरा हुआ इंसान न चाहते हुए भी ईश्‍वर की शरण में नतमस्‍तक हो जाता है।

 

पुरुष की बेचारगी क्‍या और बढे़गी?

आदमी की लाचारी, उसकी बेबसी क्‍या प्रकृति प्रदत्त है? महिलाओं के प्रति उसका तीव्र आकर्षण यहाँ तक की महिला को पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने का पागलपन! शायद कभी समाज ने इसी प्रवृत्ति को देखकर विवाह संस्‍था की नींव डाली होगी। पुरुष के चित्त में सदा महिला वास करती है। उसका सोचना महिला के इर्द-गिर्द ही होता है। पुरुषोचित साहस, दबंगता, शक्तिपुंज आदि सारे ही गुण एक इस विकार के समक्ष बौने बन जाते हैं। वह महिला को पूर्ण रूप से पाना चाहता है, उसे खोने देना नहीं चाहता। पति के रूप में वह पत्‍नी को अपनी सम्‍पत्ति मानने लगता है और इसी भ्रम में कभी वह लाचार और बेबस भी हो जाता है। महिला भी यदि दबंग हुई तो उसकी बेचारगी और बढ़ जाती है। इसलिए आदिकाल से ही पुरुष का सूत्र रहा है कि अपने से कमजोर महिला को पत्‍नी रूप में वरण करो।

 

 

लो भाई अपना रावण फूंको... हम चले - संजय कान्त

हमने इस बार दशहरा नहीं मनाया .....
जी, पिछले कई वर्षों से दशहरा का कार्यकर्म बहुत ही धूमधाम से मनाते आ रहे हैं... लगभग २०-२१ वर्षों से.. उस समय तो कई लड़के बहुत छोटे थे... और कई तो पैदा ही नहीं हुए थे ... खासकर जो शोभायात्रा में राम लक्ष्मण बनते है ... जुड़वाँ भाई, गोली सोनी... जैसा नाम वैसे ही चंचल. एक समय आया कि ये लव कुश बन कर सजे हुए घोड़े की लगाम पकड़ कर चलते थे, फिर वनवासी राम लक्ष्मण, और अब तक राजसी राम लक्ष्मण के स्वरुप में दशहरा की झांकी में अपना योगदान देते थे.

 

कुन फाया कुन का रूहानी सुकून...खुशदीप

 

रणबीर कपूर की नई फिल्म रॉक स्टार की कव्वाली कुन फाया कुन सुनने पर ज़ेहन को बड़ा सुकून देने वाली है...जानने की इच्छा हुई कि कुन फाया कुन का अर्थ क्या है...नेट पर तलाशा तो इसका ये मतलब दिखाई दिया... 'Be! And it is'
इससे ज़्यादा समझ नहीं आया तो नेट को और खंगाला...हिंदी में एक जगह ही ज़िक्र दिखा-
"अल्लाह ताला जब किसी काम को करना चाहते हैं तो इस काम के निस्बत इतना कह देतें हैं कि कुन यानी हो जा और वह फाया कून याने हो जाता है"...
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 117)
इससे यही समझ आता है कि कुन फाया कुन दुनिया के बनने से जुड़ा है...गाने की एक पंक्ति भी है...जब कहीं पे कुछ नहीं भी नहीं था, वही था, वही था...कुन फाया कुन को और ज़्यादा अच्छी तरह अरबी के जानकार ही समझा सकते हैं...

 

ब्लागिंग पर रवीन्द्र प्रभात की अनुपम पहल ....

प्रकाशन :रविवार, 9 अक्टूबर 2011

डॉ. अरविन्द मिश्र

आवश्यकता, उपयोगिता, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय दुनिया से सैकण्डों में अपनी बात के जरिए जुड़ने वालों की बढ़ती संख्या को देखते हुये आज ब्लॉगिंग जैसे द्रतगामी संचार माध्यम को पॉचवा स्तम्भ माना जाने लगा है। कोई इसे वैकल्पिक मीडिया तो कोई न्यू मीडिया की संज्ञा से नवाजने लगा है । हलांकि हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास महज ८ वर्ष का ही है मगर इसकी पैठ और प्रवृत्तियों पर लोगों की पैनी नजर है और नतीजतन इसके इतिहास लेखन की ओर रवीन्द्र प्रभात सरीखे जिम्मेदार साहित्यकर्मी का उन्मुख होना सहज ही है ...जबकि यह प्रश्न उठाया गया था कि क्या हिन्दी ब्लॉग लेखन इतनी परिपक्वता पा चुका है कि उसका इतिहास लेखन आरम्भ हो जाय? इतिहास का मतलब दिक्कालीय परिवेश और घटनाओं के दस्तावेजीकरण का है और इसके लिए इंतज़ार किया जाना प्रमाणिकता को बनाए रखने के लिहाज से जरुरी नहीं है। इतिहास द्रष्टा द्वारा सीधे खुद लिखने के बजाय जब भी कालान्तर में लोगों द्वारा बिखरे हुए साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर इतिहास लिखा जाता है प्रमाणिकता के साथ समझौता करना पड़ता है। कहना केवल यह है कि इतिहास का वस्तुनिष्ठ प्रस्तुतीकरण उसके समकालीन दस्तावेजीकरण से ज्यादा सटीक तरीके से हो सकता है। इस लिहाज से रवीन्द्र प्रभात की सद्य प्रकाशित पुस्तक "हिन्दी ब्लागिंग का इतिहास" एक स्वागतयोग्य प्रकाशन है। पुस्तक का प्रकाशन हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा किया गया है ।

 

 

Sunday, October 9, 2011

... मुहब्बत अच्छी नहीं होती !

खूब छेड़-छाड़ की है, किसी ने मेरी खामोशियों से
सच ! अब न सिर्फ वो, सारा शहर जागा हुआ है !!
...
लो मियाँ, मुंह खुद-ब-खुद मीठा हो गया
उन्हें देखते ही, मुंह में पानी आ गया !!
...
ये करतब देखे हुए हैं, शायद यहाँ या कहीं और
सच ! कलम की, गजब जादूगरी है !!
...
क्या खूब, ठोक-ठोक के पीटा है
लोहे का टुकड़ा, चीमटा हुआ है !

 

 

 

रविवार, ९ अक्तूबर २०११

" दिवस त्यौहार के आए" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

महकता गन्ध से उपवन,

धरा ने रंग विखराए।

खुशी से खिल उठे चेहरे,

दिवस त्यौहार के आए।।

सुशोभित कमल सुन्दर हैं,

सजे फिर से सरोवर हैं,

सिँघाड़ों की फसल फिर से,

हमारे ताल ले आये।

खुशी से खिल उठे चेहरे,

दिवस त्यौहार के आए।।

 

 

 

कहते हैं दहेज़ लेना और देना कानूनन अपराध हैं , क्या सच में

दो तीन दिन से टी वी पर खबर आ रही हैं की एक लड़की जिसकी शादी इस साल शायद मार्च में ही हुई थी उसको उसके ससुराल वालो ने छत से नीचे फ़ैक दिया और वो बहुत गंभीर हालत में अस्पताल में भरती हैं ।
घटना जयपुर की हैं लड़का डॉक्टर हैं लड़की भी डॉक्टर हैं । लड़की अपने माँ पिता की एक ही संतान हैं ।
लड़की के पिता का कहना हैं की लडके वाले दहेज़ की मांग कर रहे थे । और ससुराल वालो ने लड़की को छत से फैकने से पहले उस से सुसाइड नोट भी लिखवा लिया था ।
क्या एक डॉक्टर लड़की को छत से फैकने से पहले उसके माँ पिता को ज़रा भी आभास नहीं हुआ होगा की ये होने वाला हैं ??
क्या एक डॉक्टर लड़की के विवाह में दान दहेज़ की प्राथमिकता होती हैं ??
क्या एक डॉक्टर लड़की शादी से पहले बिलकुल अनभिज्ञ रहती हैं कि उसके विवाह में क्या क्या खर्च होगा ?

 

सपने दर सपने

रविवार, ९ अक्तूबर २०११

हम भी दौड़ाते हैं रेल

कभी एक्स्प्रेस कभी सुपर फ़ास्ट

कभी लोकल

अपने कुनबे के सपनों को

नन्हीं सी ढोल में बन्द करके।

अम्मा बापू के सपने

हमारे सपने

सबके सपने

बन्द हैं हमारी छोटी सी ढोल में।

सबके सपनों का बोझ

भूख से कुलबुलाती अंतड़ियां

अलस्सुबह खींच ले जाती हैं हमें

भारतीय रेल की पटरियों पर।

 

रविवार, ९ अक्तूबर २०११

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो......

चौबे जी की चौपाल

आज चौबे जी कुछ शायराना मूड में हैं। देश के घटनाक्रम पर अपनी चुटीली टिप्पणी से गुदगुदाते हुए चौबे जी ने कहा कि " राजनैतिक निजाम भी ससुरा मौसम की तरह तिरछा हो गया है आजकल । कभी उपवास का मौसम तो कभी यात्राओं का । शुरू हो गया झांसी से रामलीला पार्ट टू । मीडिया भी चना जोर गरम बाबू मैं लायी मजेदार कह-कहके जनता जनार्दन को जीभ लपलपाने के लिए विवश कर रही है । अन्ना बुढऊ और सलवार वाले बाबा ने उपवास का अईसा चस्का लगाया, कि बरकऊ,मंगरुआ,ढोरयीं सब ससुरा बात-बात में उपवास रखने की धमकी देने लगे है। नेता परेशान कि आखिर माल कहाँ रखे और खाल कहाँ रखे । अब हर किसी के पास मोदी जईसन रुतवा तो है नाही कि एयरकंडीशंड कक्ष मा एकादशी ब्रत का उपवास ठोक दे और जब प्रतिक्रिया की बात आये तो अपने लालू भाई की तरह बिन मौसम बरसात हो जाए। गुड़गुडाने लगे हुक्का बिलावजह । ज़माना बदल गया है रामभरोसे, नेताओं की तरह रागदरबारी लेखक भी हाई टेक होने लगे हैं । एयरकंडीशंड कक्ष मा बैठके मेघ का वर्णन करने लगे हैं और बाबा लोगों की बात मत पूछो एक्सरसाईज के बदले रथ की साईज ठीक करवाने में लगे हैं । हम तो कहेंगे कि बाबाजी को रथयात्रा का पेटेंट करा ही लेना चाहिए । एक-दो और ट्रस्ट बन जायेंगे, एक-दो और बाल-गोपाल पैदा हो जायेंगे ।"

 

नारी आज भी कमजोर ...?

नारी आज भी कमजोर और पराधीन  

क्यों ?

प्रश्न नारी की अस्मिता का नहीं   

अबला घोषित करने का है 

अपना जेहन टटोलो 

और इस झूठ को   

समझने ही कोशिश करो 

समझ जाओ तो 

जानने  की कोशिश करो

क्यों ?

कोख से शुरू होकर 

स्तन-पान  और  

 

 

सेंसर से पास हुई भक्त धन्ना जाट

 

फिल्म का प्रोमो यू ट्यूब पर चल रहा है, जिसे काफी पसंद किया जा रहा है

जयपुर. राजस्थानी फिल्मों के जाने-माने अभिनेता सन्नी अग्रवाल की नई फिल्म भक्त धन्ना जाट को फिल्म सेंसर बोर्ड ने पास कर दिया है। इसे यू सर्टिफिकेट दिया गया है। फिल्म की अवधि दो घंटे दस मिनट है।
सन्नी अग्रवाल ने बताया कि अब हम फिल्म के प्रमोशन में जुट गए हैं। फिल्म का प्रोमो यू ट्यूब पर चल रहा है, जिसे काफी पसंद किया जा रहा है। साथ ही सोशल साइट फेसबुक पर भी इसे काफी अच्छा रेस्पांस मिल रहा है। जल्द ही दर्शक अपने प्रिय भक्त धन्ना जाट को सिनेमा घरों में देख पाएंगे। प्रवक्ता ओपी भार्गव ने बताया कि नेहरिया फिल्म्स प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म के निर्माता हरिप्रकाश नेहरिया हैं। इसे निर्देशित किया है हुसैन ब्लॉच ने तथा कैमरा मैन हैं यूजिन डिसूजा। संगीत सतीश देहरा ने दिया है तथा कहानी एवं गीत सूरज दाधीच ने लिखे हैं। सन्नी अग्रवाल, मनीषा मुंगेकर, छाया जोशी, हास्य कलाकार ओपी भार्गव, रामकरण चौधरी, सोनू मिश्रा, मंजू अग्रवाल ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं।
भगत धन्ना जाट का प्रोमो यू ट्यूब पर देखने के लिए टाइप करें-राजस्थानी मूवीज भगत धन्ना जाट।

 

 

ठोकर न मारें...

 

ठोकर न मारें

दिखाकर रोशनी, दृष्टिहीनों को,

और प्रदीप्यमान सूरज को,

रोशनी का तो अपमान मत कीजिए !!!

और न ही कीजिए अपमान,

सूरज का और दृष्टिहीनों का.

इसलिए डालिए रोशनी उनपर,

जिन्हें कुछ दृष्टिगोचर हो,

ताकि सम्मान हो रोशनी का,

और देखने वालों का आदर.

 

 

प्यार तो बस प्यार है.....

 

 

फिल्म समीक्षा : लव ब्रेकअप्‍स जिंदगी

लव ब्रेकअप्स जिंदगी: प्रोफेशन बनाम इमोशनप्रोफेशन बनाम इमोशन

-अजय ब्रह्मात्‍मज

साहिल संघा की इस फिल्म के हीरो-हीरोइन जायद खान और दीया मिर्जा हैं। दोनों फिल्मी टाइप किरदार हैं। उन्हें एक-दूसरे के प्रति प्यार का एहसास होता है और फिल्म के अंत तक अपनी झिझक और झेंप में वे उलझे रहते हैं। लव बेकअप्स और जिंदगी को थोड़े अलग नजरिए से देखें तो ध्रुव (वैभव तिवारी) और (राधिका) पल्लवी शारदा ज्यादा तार्किक और आधुनिक यूथ के रूप में उभरते हैं। अगर उन दोनों को नायक-नायिका के तौर पर पेश किया जाता तो बात ही अलग होती। दोनों इमोशनल होने के साथ समझदार भी हैं, लेकिन हिंदी फिल्मों में नायक-नायिका होने के लिए जरूरी है कि आप रोमांटिक हों। अगर आप व्यावहारिक, तार्किक और प्रोफेशनल हुए तो उसे निगेटिव और ग्रे बनाने-समझाने में हमारे निर्देशक और दर्शक नहीं चूकते।

 

Sunday, October 9, 2011

और मैं आधुनिक बन गया!

 

समय निरन्तर निर्बाध गति से आगे ही आगे चलता रहता है, न तो कभी मुड़ कर पीछे देखता है और न ही किसी के लिए क्षण मात्र ही रुकता है। समय की गति के साथ परिवर्तन भी लगातार होते रहते हैं। रीति-रिवाज, आचार-विचार, जीवन शैली सभी कुछ बदल जाते हैं। इन परिवर्तनों ने मुझे अपने घर के रसोईघर में पाटे पर बैठकर, परसी गई थाली का आचमन कर के भगवान का भोग लगाकर, भोजन करने वाले व्यक्ति से जूते-चप्पल पहने हुए, बगैर ईश्वर को याद किए, डायनिंग चेयर पर बैठकर डायनिंग टेबल पर छुरी-चम्मच से खाना खाने वाला इंसान कब और कैसे बना दिया, मैं समझ ही नहीं पाया। मैं जान ही नहीं पाया कि कैसे मैं ग्रामोफोन के जमाने से डी.वी.डी. के जमाने तक कैसे पहुँच गया?

 

 

तुम्हारा अंदाज़ बड़ा निराला

तुम्हारा

अंदाज़ बड़ा निराला

निरंतर

मन को लुभाता

दिख दिख कर

छिप जाना

हँस हँस कर रूठ जाना

खूब बात करना

फिर चुप्पी साध लेना

कभी मुंह चिढाना

फिर डर कर

माँ की गोद में मुंह

छुपाना

 

 

ग़ज़ल: दुनिया थोड़ी भली लगेगी

बज़्मे-ज़ीस्त सजाकर देख,
क़ुदरत के संग गा कर देख।


घर आएगा नसीब तेरा,
अपना पता लिखाकर देख।


रब तो तेरे दिल में ही है,
सर को ज़रा झुका कर देख।

 

 

एक छोटी सी लवस्टोरी--37

विरह की वेदना और तिरस्कार के दंश ने देह को जैसे जला दिया हो। किशोर मन पर सिनेमा का असर था और दैहिक सुख की अनुभूति के आनन्द को लेकर वह उद्धत भी। प्रतिबंध से युवा मन विद्रोह कर उठता है और जब वह विद्रोह करता है आगे पीछे की परवाह भी नहीं करता। यही युवा मन आज परवाह की लक्ष्मण रेखा को लांघ चुका था। मेरा भी मन अब विद्रोही हो गया था और इस विद्रोह को प्रकट भी करने लगा था। शाम मंे छत पर से टहलते हुए विद्रोही गीत गा रहा है-जब जब प्यार पे पहरा हुआ है, प्यार और भी गहरा, गहरा हुआ है। जब रात गहराने लगी तो मिलन की उम्मीद भी अपना दामन छुड़ाने लगा पर कभी कभी सबकुछ  उसी तरह नहीं होता जिस तरह आप सोंचते है। मैंने हौसला नहीं छोड़ा और आहिस्ते से अपनी छत से उतर कर रीना के घर की ओर चल दिया। पता नहीं कौन किस वक्त पकड़ ले। दिल घबड़ा रहा था और मन मचल रहा था। चल पड़ा। जिस कमरे में रीना सोती थी उसके खिड़की के पास जा कर एक ढेला फेंक दिया। शायद सो गई होगी तो जाग जाएगी। उधर से हल्की सी आहट हुई। वही है। 

 

 

तो पिरोगराम में थोडा चेंजमेंट ये है कि भोर में वन लाईनर केपसूल दिया जाएगा और शाम को बुलेटिन जारी होगा …देखिए बांचिए और जांचिए

चर्चा दो लाइना....इन झाजी इश्टाईल



पुराने थोबडे के साथ पुराने वाले ही चर्चाकार



टीवी मीडिया पर लगेगी लगाम , कैबिनेट ने मुहर लगाई
वो तो ठीक है लेकिन , कैबिनेट पर लगाम कब लगेगी भाई


यहां बता रहे हैं ओकील साहब , कौन सा विवाह करना उचित नहीं है ,
अरे ये दिल्ली के लड्डू हैं . हमरे हिसाब से तो कैसा भी विवाह करना उचित नहीं है

टिप्पणी चेपू ब्लॉगर का परिचय यहां दिया गया है
कैसा होता है ये ब्लॉगर , क्लीयर किया गया है


एक बार फ़िर रावण मारा गया व्यर्थ ,
डा. साहब की पोस्ट , पढ के लगाएं अर्थ


अरे इधर उधर कहां टहल रहे , डालिए एक नज़र इस ओर ,
आज मयंक भाई सिखा रहे , कैसे लगाएं ब्लॉग में Read More


स्वप्निल जी ने फ़िर शब्दों का जादू बिखेरा हुआ है ,
रुबाइयों के कोने में , सवेरा हुआ है ।


आप प्यार में जीते हैं , छि; गलत बात है सर !
सोचालय में मरियम से मिलवा रहे सागर ।


जो लफ़्ज़ों में नहीं बंधता , उसे बांध ,बना दी पोस्ट ,
तुम साथ साथ बह जाओगे , ये पूजा की लहरें हैं दोस्त


देखिए यहां कौन , क्यों , रावण रावण पुकार रहा ,
बेशक जला डाले रावण , मगर जिंदा भ्रष्टाचार रहा


अमित भाई , ले चले ,आज किसी के रुख से रुखसार तक ,
इस दुनिया की एक कहानी , मुहब्बत से प्यार तक



यहां पाइए , आप अपने , राष्ट्रभाषा हिंदी के सुंदर रंग ,
आज मनोज जी ले कर आए , एक प्रेरक प्रसंग ।


बेटियों के प्रति रवैय्या बदलना होगा ,
बहुत गिर चुके नीचे तक , आखिर कभी तो संभलना होगा


रश्मि जी , अपनी यादों में से , एक टुकडा सुना रही हैं ,
क्या हुआ हाय नई दुल्हन का हाल , बता रही हैं ।


कविता जी ने प्रश्न किया .मिट्टी में दिया जिंदा दबा ,वो भी इंसान है ,
कोख कब्र बने ,कभी मिट्टी बेटी की , क्योंकि समाज पुरूष प्रधान है   

लेखनी जब फ़ुर्सत पाती है , वे कहर ढाते हैं ,
जो फ़ुर्सत और ज्यादा हो , प्यार को धोखे से चरस खिलाते हैं


देख प्रभु तेरी दुनिया , अब कैसा कैसा होता है ,
कहते श्यामल आज इसलिए , देख मेरा मन रोता है


शिव जी करा रहे , चंदू की पेरिस हिल्टन से चैट ,
पढिए , घुस के आप भी , बिना किए दिस एंड दैट
नवगीत की पाठशाला में आज दिन खनकता है,
इस बगिया में शब्दों का कोई फ़ूल रोज़ महकता है


कैलाश जी सजा लाए हैं , सूना इक आकाश ,
इनकी पंक्तियों में पाया है , एक अलग एहसास


एक शिक्षक , चुपचाप लीन , कर रहा शब्दों का सृजन ,
जज़्बात में आज जानिए , शब्दों की चुप्पी का गर्जन



एक लाइना बुलेटिन दोपहर में जारी किए जाएंगे

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

99 पे काहे अटका दिए हो .....फ़ालो काहे नय करते हो ...वन लाइनर









चर्चा बाबू , पोज में 






आपको पता है हिंदी ब्लॉगिंग में आपकी स्थिति क्या है :- अभी तो ई पता लगाने में बिजी हैं कि हिंदी ब्लॉगिंग की स्थिति क्या है 




न अब मुस्कुराते नहीं बनता : हां , यही कह रही है जनता 




वे दो : पढ लो 




अजीब या रोचक : हम रह गए भौंचक्क 







एक खबर एक दुविधा : के हिसाब से पर खबर एक दुविधा का एवरेज बन गया 



 उत्तर प्रदेश पुलिस में राजनीति : अच्छा , क्या बहिन जी जीप के बदले हाथी दे रही हैं पुलिस को 



 बारिश से ठीक पहले : लिखी पोस्ट को बारिश खत्म होने से पहले ही पढ जाना चाहिए 



 अन्ना हज़ारे और पीसी बाबू : बीमारे बेचारे दिग्गी बाबू 


 मैं जब भी अकेली होती हूं : एक धांसू पोस्ट का आइडिया आ ही जाता है 


 जीत को तरस रही टीम इंडिया : फ़ौरन ही बांग्लादेश के साथ मैच खेलना चाहिए 


 आखिर हम बांग्लादेश से हार गए : ल्यो इहां तो उलटा ही हो गया ..ई तो पहिले ही हार गए जी 


 अंक 100 के बारे में : बहुत मेथामेटिकल पोस्ट है भाई 


 अब हम वनडे सीरीज़ में तीर मारेंगे : अरिस्स साला , किरकेट से डायरेक्ट तीरअंदाज़ी ..केतना टेलेंटेड टीम है भाई 



 कबाडखाने की दो हज़ारवीं पोस्ट : ये कबाडखाना फ़लता फ़ूलता रहे दोस्त 


ये जो सामान रखा है  : बडा कमाल है , खुदे देखिए 




 ये तो मैं भी कर सकता हूं : मैं नहीं कर सकता , मैं तो गरिया सकता हूं खाली 



पीले जूते वाली लडकी : जहां भी मिले , उसके जूते फ़ौरन ब्लैक पॉलिश करवाए जाएं 


 कविता और बाज़ार : दुन्नो एक्के साथ 



 वो कुंभकरन की पोती है : और मेघनाद का नाती भी दिखा क्या कहीं 



 धत प्यार क्या होता है जी ? ये हम नहीं जानते : हट , ये कितना भी कह लें आप , हम नहीं मानते 
 


छोटी बात , बडी बात : दोनों को मिलाकर , एक अच्छी पोस्ट तैयार हो सकती है 




हमको यकीन है कि ई पोस्ट के बाद ....झा जी कहिन ..का अनुसरक सूची ..शतक मार लेगा ....जय हो आज के वन लाइनर देखिए हम फ़िर कल मिलते हैं  

सोमवार, 22 अगस्त 2011

पिछले अडताली घंटों की आंखों देखी ..झा जी ऑन स्पॉट



मैं पहले ही ये बात कह चुका था कि न सिर्फ़ सोलह अगस्त से अन्ना हज़ारे को दोबारा अनशन पर बैठना होगा बल्कि अपनी आदत से मजबूर सरकार इस फ़ुंसी को जब तक असाध्य फ़ोडा नहीं बना देखेगी तब तक उसकी समझ में कुछ नहीं आएगा । आंदोलन का रुख क्या होगा और परिणाम क्या ये तो आने वाला वक्त ही तय करेगा लेकिन उससे पहले उस सैलाब का हिस्सा बनकर इस क्रांति को भीतर से महसूसने का आनंद अवर्णनीय है । मैं अपना हिस्से की सारी बातें आपसे धीरे धीरे साझा करूंगा , किंतु फ़िलहाल आप पिछले दो दिनों में खींची गई लगभग एक हज़ार चित्रों में से कुछ देख कर महसूस करिए इस तपिश को



















































और जाने कितने ही चेहरे मिले , बहुत कुछ कहते हुए , कितने हाथों के तिरंगों ने जाने क्या क्या कह दिया , और अब भी कह रहे हैं , मैं बताता रहूंगा आपको