शनिवार, 15 मई 2010

जाने क्या क्या पढ गया , जो पढा सब यहां धर गया …(पोस्ट झलकियां)

 

 

 

पहले नवभारत टाईम्स ब्लोग से देखिए कि, 

जो है सो है

होमवर्क खरीदने का जमाना

राजेश कालरा Friday May 14, 2010

मेरा आम तौर पर यह प्रयास रहा है कि मैं ब्लॉग के लिए ऐसे टॉपिक उठाऊं जो हमें, यानी आम लोगों को प्रभावित करे। मुझे यह लगता है कि इससे कहीं न कहीं थोड़ा असर जरूर पड़ता है। पर शायद ही मैंने कभी किसी विषय पर इतने उत्तेजित मन से कभी कुछ लिखा है, जैसा कि इस पोस्ट में लिखा है।

यह पोस्ट मैंने उस पैम्फलेट से प्रेरित होकर लिखा है, जो आज सुबह मेरे अखबार से बाहर आ गिरा। इसपर एक नजर डालें और खुद आप जान जाएंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं।

किसी के भी मन में इस बारे में शायद ही कोई संदेह हो कि हम सुविधाओं के गुलाम बन गए हैं। आप अपने आस-पास नजर डालिए और आपको पता चल जाएगा कि मेरा मतलब क्या है। खाना, कपड़ा, यात्रा, पढ़ाई-लिखाई, पज़ल सुलझाना और यहां तक कि खेल भी... सबके लिए क्विक-फिक्स समाधान चाहिए। कंप्यूटर और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और उपकरणों के आ जाने से इस ट्रेंड में और अधिक इजाफा ही हुआ है।

 

बीबीसी हिंदी ब्लोग्स से

मुकेश शर्मा मुकेश शर्मा | बुधवार, 12 मई 2010, 14:57 IST

ट्वेन्टी-20 विश्व कप में भारत की हार पर हो रही हाय-तौबा को देखते हुए मैंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के उपाध्यक्ष और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई में प्रभाव रखने वाले माननीय शरद पवार जी को एक खुला पत्र लिखने का फ़ैसला किया है.

आदरणीय शरद पवार जी,

आप जल्दी ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद की कमान सँभालने वाले हैं और क्रिकेट में.... नहीं-नहीं क्रिकेट के प्रशासन में जिस तरह का भारत का रुतबा है उसे देखते हुए मैं खेल में कुछ बदलाव की ज़रूरतों की ओर आपका ध्यान खींचना चाहूँगा.

भारत की एक अरब से अधिक की आबादी क्रिकेट के प्रति दीवानी है और अपना सब काम-धाम छोड़कर क्रिकेट में लगी रहती है, ऐसे में उसकी भावनाओं का ध्यान तो रखा ही जाना चाहिए.

- भारत के खिलाड़ियों को आईपीएल के तुरंत बाद हो रही प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने पिछले साल इंग्लैंड और इस साल वेस्टइंडीज़ जाना पड़ा. इस तरह की यात्राओं से टीम थक जाती है. इसके अलावा इन देशों से कहीं ज़्यादा दर्शक स्टेडियम में भारत में पहुँचते हैं इसलिए विश्व कप जैसी प्रतियोगिताएँ अब से सिर्फ़ भारत में ही कराई जाएँ तो अच्छा रहेगा.

 

जागरण जंक्शन से :-

 

हनुमान रास्ता भूल गए    

पोस्टेड ओन: May,13 2010 हास्य - व्यंग में

 

return-of-hanuman-launch-indiaज्ञानी सिंह की जेल में राम लीला हो रही थी. सुबह हवलदार बेवकूफ सिंह परेशानी में ज्ञानी सिंह के पास गया और बोला- सर कल रात कैदियों ने जेल में रामलीला की थी.
जेलर- तो इसमें इतने परेशान क्यों हो, यह तो बड़ी अच्छी बात है?
हवलदार- सर वह तो ठीक है लेकिन जो कैदी  हनुमान बना था  वह अब तक संजीवनी लेकर वापस नही आया है.

 

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Wednesday, May 12, 2010       

पाकिस्तान का देशप्रेम, वो भी चुराया हुआ!!!

Youtube वेबसाईट के बारे में आप सब जानते होंगे। बड़ी अच्छी साईट है। कभी भी कोई भी गाना सुनना हो आराम से खोजें ओर बेफिक्र होकर सुने। ऐसे ही कई गाने, खासकर पुराने गाने सुनने का शौक़ीन हूँ। जब भी मन करता है Youtube पर जाता हूँ और गाने सुन भी लेता हूँ। एक रात यूँही बैठे-बैठे देशभक्ति का जज्बा दिल में उबाल मारने लगा। बचपन में स्कूल में स्वतंत्रा दिवस ओर गणतंत्र दिवस के दिन कई गाने गाया करता था। उनमे से जो मेरा सबसे प्रिय गाना था वो था, जागृति फिल्म का 'आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ झांकी हिन्दुस्तान की।' उस रात भी इसी गाने की खोज में मैं Youtube पंहुचा। गाने को खोजा और उम्मीद मुताबिक़ तुरंत मिल भी गया। एक गाने की लिंक भी साथ में आ रही थी। गाना थोडा अटपटा लग रहा था इस लिए उसकी तरफ भी मुखातिब हुआ। वही संगीत और हुबहू वैसे ही बोल, फर्क सिर्फ इतना कि उस गाने में सैर पाकिस्तान की हो रही थी। माथा ठनका। फिल्म का पता किया तो मालूम हुई की 'बेदारी' नाम की एक फिल्म पाकिस्तान में बनी थी 1957 में जो बिलकुल 'जागृति' को उठा कर उर्दू में बनाई गयी एक फिल्म थी।

 

Wednesday, May 12, 2010  को अंतर्मन पर एक कविता

बुनियादें बदल गईं

तुमने कहा के
करनी है कुछ बातें -
कहते हो कि
अब तुम नहीं जवाबदेह
अपने रिश्ते की
बदल गईं बुनियादें बेतरतीब
क्या करूँ नई शुरुआत
जब पुरानी बातें ही
ख़त्म न हो पाईं
अच्छा है के
न हो वो आखरी मुलाक़ात
न तुम्हें शर्मिंदा होना पड़ेगा
न हमें होना पड़ेगा जवाबदेह
के हम तुम्हारे
क्यों न हो सके.

 

Wednesday, May 12, 2010

 पार्ट टाइम टूर्नामेंट ! !         मस्तान सिंह की कूची से

और ये आउट !!

Posted by Mastan singh

 

बुधवार, १२ मई २०१०

 मेरे हाल चाल ………..कैसे हैं पढिए प्रतूल से

आज गुप्पा हो गया
................ मैं फूलकर इतना
............................लगने लगा भय
.......................................नोक से.
आसमान में उठा
................ मैं ऊलकर इतना
.......................... भगने लगा हय*
.................................... शोक से.
साथ तेरे थक गया
................ मैं झूलकर इतना
........................... जगने लगा मैं
................................... झोंक से.
उर को सभी कुछ दे दिया
.................. है मूल-कर इतना
.......................... ठगने लगी वय*
..................................... थोक से.
आप आते हो नहीं
................... मुँह खोलकर अपना
............................... पगने लगी लय
......................................... कोक* से.
हय — घोड़ा;
वय — आयु;
कोक — काम-वासना.

प्रस्तुतकर्ता PRATUL

 

Wednesday, May 12, 2010 आलोक मोहन नायक पूछते हैं ,कि ,

क्या आपको याद आती हैं हाथ में पंखा लिए दादी-नानी। मैंने आज इनवर्टर ले लिया।

मुझे यकीन है। आपको याद होगा। कैसे कुछ सालों पहले तक जब हम अपने घरों में थे। कैसे हमारी दादी। कभी नानी। हाथ में पंखे लेकर डुलाया करती थी। कैसे वह ततुरी वाली गर्मी उस पंखे की हवा में काफुर हो जाती थी। छत पर सोते हम और बहुत देर तक नहीं आती थी नींद। गर्म हवा भी आधी रात तक चला करती थी। और ऐसे में ही हमारी दादी के बुढ़े हो चले हाथ लगातार चलते रहते थे। पंखा हिलाते रहते थे। उस समय यह भी था। दादी के सबसे नजदीक सोने के लिए भी तिकड़म भिढ़ानी पड़ती थी। वजह साफ थी जो दादी के पास सोएगा। वही सबसे ज्यादा पंखे की हवा का मजा उठा पाएगा। हांलाकि दादी इस बात का ध्यान रखती थी। कि हवा सबको बराबर मिले। उस हवा में कहानी बोनस होती थी। और दादी बीच बीच में ठोकती भी रहती थी। कि नींद जल्दी आ जाए। लेकिन हम तो अब दिल्ली में हैं।और मशीनों के सहारे जिंदगी काटते हैं। हर काम के लिए एक नई मशीन चाहिए हमें। कभी कभी लगता है कि शायद हम खुद भी तो एक मशीन ही बन गए हैं।

 

शुक्रवार, १४ मई २०१० दिवाकर मणि सूचित कर रहे हैं कि ,

मौत से जूझते एक ब्लॉगर को जरुरत है आपके शुभकामनाओं की..

ब्लॉगर मित्रों,

हमें पता होता है कि जीवन का हर क्षण बड़ा ही परिवर्तन भरा होता है, लेकिन उसे यथावत्‌ स्वीकारना कितना कठिन होता है, इससे आज मैं दो-चार हूं। मन यह मानने को तैयार नहीं होता कि जिसे हम कुछ घंटों पूर्व तक हँसते-मुस्कुराते देख रहे हैं, वो हमारे सामने जीवन को वापस पाने के लिए मृत्यु से संघर्षरत है। आज मैं बहुत ही ज्यादा दुःखी हूँ। मेरे कार्यालय सहकर्मी “राघवेन्द्र गुप्ता” जिन्होंने कुछ माह पूर्व ब्लॉग की आभासी दुनिया में “ओज-लेखनी” नामक ब्लॉग के साथ कदम रखा है, तीन दिन पहले सुबह-सुबह अपने कमरे में अचानक चक्कर खाकर गिर पड़े। सिर के पिछले हिस्से में अंदरुनी गहरी चोट लगने के कारण तुरंत ही बेहोश हो गए। कार्यालय के एक साथी के पास तुरंत ही उनकी श्रीमती जी का फोन आया। फोन सुनते ही आनन-फानन में तुरंत ही कुछ कार्यालय-सहकर्मी उनके निवास पर जाकर वहां से एक निजी क्लिनिक ले गए, जहां उनका प्रारंभिक इलाज आरंभ हो गया। रात्रि तक उनके हालात में कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ तो सहकर्मी-गण उन्हे लेकर पुणे के एक दूसरे प्रतिष्ठित चिकित्सालय में ले गए।

 

तुकबंदी-शोभना 'शुभि'      image

आज सोचा थोड़ी तुकबंदी कर ली जाये, तो पढो मेरी तुकबंदी
१. दुनिया बदल जाएगी
पर न बदलेगा

सवाल जवाब का सिलसिला

अगर ख़तम हो गया ये
तो रुक न जाएगी
आने वाली नई दुनिया

२. दुनिया चलती है जब हम चलते है
दुनिया रूकती है जब हम रुकते है
हमारा है ही कुछ अंदाज़ ऐसा कि
जो हम चाहें वो मुट्ठी में कैद कर लेते है

(ये ख्याल काफी लिखा जा चुका है, फिर भी ये मेरे मन में आया तो लिख डाला, वैसे भी तुकबंदी ही तो की है )

 

Thursday, May 13, 2010

 

 

आयम स्टिल वेटिंग फॉर यू, शची (समापन किस्त ) …… रश्मि रविजा

शची के यहाँ से निकला....निरुद्देश्य सा इधर उधर भटकता रहा थोड़ी,देर...कुछ लोगों से बातें  की...मन में भले ही झंझावात चल रहें हों..पर प्रोफेशनल ड्यूटी तो निभानी ही है...जिस काम के लिए आया है,उसे तो अंजाम देना ही है.....भले ही दिल के  अंदर अरमानों की मौत हुई हो...पर नए विचार,आलेख के जन्म लेने के लिए तो जमीन तैयार करनी ही होगी.
थक हार कर गेस्ट हाउस लौटा. और प्रोफेशनल चोला उतार कर फेंकते ही एकदम कमजोर पड़ गया. सोचने लगा,किस मुहूर्त में यहाँ आने का फैसला लिया. कम से कम इतने दिनों, शची से मिलने की उम्मीद पर जिंदा था...अब तो वो भी गयी. पर शची के मन में भी क्या कोई भावना सर नहीं उठा सकी?.कैसे भूल गयी वह ,सबकुछ?..और एक वो है,उन्हीं दिनों की याद को सारी ज़िन्दगी भेंट कर दी. पर शची क्या सचमुच भूल गयी है?..फिर कैसे,जब वह 'कणिका ' को नहीं याद कर पा रहा था तो बड़ी गहरी मुस्कराहट के साथ बोली थी, "कभी तो तुम्हारी बड़ी गहरी छनती थी उस से " इसका अर्थ है,वह भूली नहीं है कुछ. फिर इस अभिनय का क्या अर्थ है? आखिर किस बात से बचना चाहती है?

 

इरफ़ान जी ने गडकरी पर कुत्ते छोडे …image

 

Thursday, May 13, 2010

'कुत्ते' भड़के गडकरी पर!

 

 

Friday, May 14, 2010

शुद्धतावादियों, आंखे खोलो…

भाषायी शुद्धतावाद के समर्थकों को इस बात का गुमान भी न होगा कि हिन्दी में बेरोजगार शब्द का कोई प्रचलित विकल्प ही नहीं है। ऐसे अनेक शब्द हैं जो अरबी, फारसी, तुर्की, पुर्तगाली, अंग्रेजी आदि भाषाओं से आकर हिन्दी में घुलमिल गए हैं और हम उनके साथ देशी बोलियों के घुले-मिले शब्दों जैसा ही बर्ताव करते हैं। कभी एहसास नहीं होता कि कुछ सौ साल पहले तक ये हमारे पुरखों के लिए अजनबी थे। साबुन के लिए हिन्दी में ढूंढे से कोई दूसरा शब्द नहीं मिलता। इसी तरह शर्त लगाने के लिए क्या हिन्दी के पास कोई आसान सी अभिव्यक्ति है? चाय पीने के लिए जिस पात्र का हम प्रयोग करते हैं उसके लिए फारसी मूल से प्याला, प्याली ( फारसी में पियालः) जैसे शब्द हिन्दी में बना लिए गए हैं मगर क्या हिन्दी में इनका कोई आसान विकल्प नजर आता है? सर्वाधिक लोकप्रिय जो शब्द इस संदर्भ में याद आता है वह कप है जो अंग्रेजी का है। संस्कृत का चषक शब्द जरूर हमारे पास है मगर वह ग्रंथों में है, दिल, दिमाग और जबान पर उसका कोई स्पर्श अब बाकी नहीं रहा। बोलचाल में सिफारिश ही की जाती है, शुद्धतावादियों के अनुशंसा जैसे शब्द से कलम को तो कोई परहेज नहीं पर जबान को जरूर है। अपने दिल से पूछ कर देखिए। शुद्धतावाद दरअसल एक किस्म की कट्टरता है जिससे न समाज का कल्याण होना है, न भाषा का और न ही साहित्य का। भाषा का भला होता है तभी संस्कृति भी समृद्ध होती है।

 

कबाड्खाने में आज पढिए

Thursday, May 13, 2010

कि जंगल आज भी उतना ही ख़ूबसूरत है

वेणु गोपाल (२२ अक्तूबर १९४२ - १ सितम्बर २००८) के निधन के बाद हमने वीरेन डंगवाल का एक मार्मिक संस्मरण यहां लगाया था. वेणुगोपाल बड़े कवि थे - आदमी की पक्षधरता और सतत उम्मीद उनकी कविताओं की ख़ासियत हैं. उनकी एक कविता प्रस्तुत है:

 

Friday 14 May 2010 जानिए आजकी कानूनी सलाह   image

ससुर पुलिस में हैं, क्या वे मुझे झूठे मुकदमे में फँसा सकते हैं ?

श्री शैल पूछते हैं ......


मेरी शादी मई 2003 में हुई थी और मेरी पत्नी मार्च 2004 से उस के मायके में रहती है। पहले नौ माह के दौरान वह मेरे पास दो माह भी नहीं रही है। एक सप्ताह वह हमारे पास रहती और दो माह उस के मायके में रहती। हम अभी तक चार बार लेने जा चुके हैं, लेकिन वह वापस नहीं आती। मेरे ससुर पुलिस विभाग में हैं। वे हम को झूठे केस में फँसाने की धमकी दे रहे हैं। हमारे घर में मेरे माता-पिता और मेरा छोटा भाई है जिस की शादी 2005 में हो चुकी है और एक बच्चा भी है। मेरी पत्नी कहती है, तुम्हारे माता-पिता से अलग रहो तो मैं तुम्हारे पास रहूंगी।  मेरी पत्नी कोई भी वजह बता कर मुझे माता पिता से अलग रहने की कहे तो क्या मुझे जाना पड़ेगा? वह पिछले छह वर्ष से मायके में रह रही है। मैं ने पिछले वर्ष धारा-9 की अर्जी कोर्ट में प्रस्तुत की है। क्या वे लोग मुझे झूठे मुकदमे में फँसा सकते हैं?

 

आज कौन कहां छपा

 

14 May 2010

राष्ट्रीय सहारा में 'हक़ बात'

8 मई 2010 को राष्ट्रीय सहारा के स्तंभ 'ब्लॉग बोला' में हक़ बात करते हुए कोडरमा की निरूपमा का सबक

 

Friday, May 14, 2010

एक जादुई गोली के पचास साल

राजकिशोर
उस गर्भनिरोधक गोली को, जिसे अंग्रेजी की दुनिया में पिल कहते हैं, आधिकारिक मान्यता मिले हुए पचास साल हो गए। यह अवसर खुशी मनाने का है। स्त्री स्वतंत्रता के पक्षधरों को कुछ खास खुशी होनी चाहिए, क्योंकि पिल ने स्त्री समुदाय को एक बहुत बड़ी प्राकृतिक जंजीर से मुक्ति दी है। अगर पिल न होता, तो यौन क्रांति भी न होती। यौन क्रांति न होती, तो स्त्री स्वतंत्रता के आयाम भी बहुत सीमित रह जाते।
बेशक यह जादुई गोली उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितना पेनिसिलिन का आविष्कार, जिसने चिकित्सा के क्षेत्र में एक चमत्कार का काम किया। पिल का महत्व एसपिरिन या पैरासिटामोल जितना भी नहीं है। लेकिन ये दवाएं हैं। पिल कोई दवा नहीं है। वैसे गर्भनिरोधक गोली का आविष्कार भी स्त्रियों में बांझपन का इलाज खोजने की प्रक्रिया में हुआ था। आज भी पिल का प्रयोग कई स्त्री रोगों का इलाज करने के लिए होता है, लेकिन अधिकतर मामलों में यह गर्भनिरोधक की तरह ही प्रयुक्त होता है और गर्भाधान कोई बीमारी नहीं है। लेकिन अनिच्छित गर्भाधान एक बहुत बड़ी समस्या जरूर है, जिसके कुफल स्त्री को ही भुगतने पड़ते हैं। कहा जा सकता है कि उसके लिए तो यह बीमारियों की बीमारी है। पिल ने उन्हें सुरक्षित और स्वतंत्र जीवन जीने का अवसर प्रदान किया है। इस मायने में यह छोटी-सी गोली जितनी जादुई है, उतनी ही क्रांतिकारी भी।

बस जी आज तो इतना ही पढा…………

19 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक कोशिस ,ब्लॉग ऐसे ही सोच से आगे बढेगा / आपको इस उम्दा अभिव्यक्ति के प्रस्तुती के लिए धन्यवाद /

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  2. झा जी,
    अभी तो वो पाकिस्तान वाली वीडियो डाउनलोड कर रहा हूं।
    जरा पाकिस्तान की देशभक्ति का भी आनन्द ले लूं। बाकी बाद में बात करता हूं।

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  3. झा जी,
    पाकिस्तान वाली वीडियो देखी, अच्छी लगी।
    पाकिस्तान की लोक-संस्कृति और सोच को बडी ही सफाई से पेश किया गया है। एक तरह से पूरे पाकिस्तान की सैर कर ली है।
    लेकिन एक भारतीय होने के नाते तिरंगे का जलना अच्छा नहीं लगा। लेकिन यह भी तो उनकी सोच ही है।

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  4. एक चीज और अच्छी लगी,
    पूरी वीडियो उर्दू में ना होकर सरल हिन्दी में है।

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  5. बहुत बढ़िया झा साहब, लगता है आपकी वो पुरानी चिट्ठा चर्चा की तलब नहीं गई अभी तक ,

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  6. का कहने भैया कहाँ कहाँ से ले कर आये है आज मसाले और बना डाली एक मस्त झालमुड़ी टाइप की चर्चा !! मज़ा आ गया आज तो !!

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  7. गोदियाल जी ,
    क्या करें सर , जब तक यहां लोगों की पोस्टें लिखने की तलब रहेगी ..तब तक झा जी कहिन उन्हें समेटने की जुगत में लगे रहेंगे , मगर हां चाहे दो लाईना हो या चार लाईना , या फ़िर पोस्टों की झलकियां ,....अपनी लाईन ज़रा अलग ही रहती है । साथ और स्नेह बनाए रखें

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  8. खूबसूरत झलकियाँ...और क्यूँ ना हों...दो प्यारे बच्चों की तस्वीर जो शामिल है इसमें...हा हा just joking
    तो आपने पढ़ ली मेरी नॉवेल?? और मैं आपके कमेंट्स वहाँ ढूंढ रही हूँ...
    वैसे काफी अच्छे लिंक्स हैं....आभार

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  9. कौन है श्रेष्ठ ब्लागरिन
    पुरूषों की कैटेगिरी में श्रेष्ठ ब्लागर का चयन हो चुका है। हालांकि अनूप शुक्ला पैनल यह मानने को तैयार ही नहीं था कि उनका सुपड़ा साफ हो चुका है लेकिन फिर भी देशभर के ब्लागरों ने एकमत से जिसे श्रेष्ठ ब्लागर घोषित किया है वह है- समीरलाल समीर। चुनाव अधिकारी थे ज्ञानदत्त पांडे। श्री पांडे पर काफी गंभीर आरोप लगे फलस्वरूप वे समीरलाल समीर को प्रमाण पत्र दिए बगैर अज्ञातवाश में चले गए हैं। अब श्रेष्ठ ब्लागरिन का चुनाव होना है। आपको पांच विकल्प दिए जा रहे हैं। कृपया अपनी पसन्द के हिसाब से इनका चयन करें। महिला वोटरों को सबसे पहले वोट डालने का अवसर मिलेगा। पुरूष वोटर भी अपने कीमती मत का उपयोग कर सकेंगे.
    1-फिरदौस
    2- रचना
    3 वंदना
    4. संगीता पुरी
    5.अल्पना वर्मा
    6 शैल मंजूषा

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  10. जाता हूँ अब एक एक करके सभी लिंक्स पर. :)

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  11. जब आप कुछ उत्पादित करते हैं तो उस में उत्तम गुणवत्ता होती है।

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  12. मै भी चला उस पाकिस्तानी प्रेम को देखने, चर्चा मजे दार जी, अब आग्या दे राम राम

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  13. अच्छी चर्चा। शुभकामनाएं! आज ही पता चला कि आपकी चर्चा में मेरा पाकिस्तानी विडियो वाला पोस्ट भी शामिल था। टिप्पणियों से पता चला कि कई लोगों ने इस पोस्ट को सराहा भी। आप सब को धन्यवाद!!!

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..