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सोमवार, 28 नवंबर 2011

जनता का गुस्सा








वर्तमान परिदृश्य में जिस तरह से जनता राजनेताओं और राजनीतिज्ञों के प्रतिअप ने गुस्से का इज़हार कर रही है , बेशक वो भारतीय जनता के स्थापित व्यवहार के बिल्कुल प्रतिकूल लग रहा हो किंतु पिछले दिनों हुए जनांदलनों में सडक पर उतरे हुए लोगों के चेहरों पर इस तरह की चेतावनी स्पष्ट दिख रही थी ।


देश का आम आदमी आज महंगाई और अनिश्चितता के जिस दौर से गुज़र रहा है , अब उसे ये भी स्पष्ट समझ आ रहा है कि इसकी एक बहुत बडी वजह देश के भ्रष्ट राजनीतिज्ञों व प्रशासकों का भ्रष्टाचार ही है । देश की अपनी कुल जमा पूंजी से ज्यादा जब भ्रष्टाचार से जमा होने लगे तो फ़िर देश की आर्थिक स्थिति का होना अपेक्षित ही था । अफ़सोस ये है कि देश की आर्थिक स्थिति का होना ही अपेक्षित ही था । अफ़सोस ये है कि देश के प्रधान विख्यात अर्थशास्त्री के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुके हैं ।

देश का समाज , राजनीतिक , बाज़ार , सब कुछ परिवर्तन के दौर में हैं । साप्ताहिक हाट बाजार से सजने वाला देश अब वालमार्ट की ज़द में आ रहा है । ऐसे में यदि राजनेता आम लोगों से वही पुरानी मासूमियत और सहनशीलता की अपेक्षा कर रहे हैं तो वे खुद को मुगालते में रख रहे हैं ।

सरकारें और इनसे जुडे हुए प्रभावकारी तत्व दिनों दिन भ्रष्ट व लालची होते हुए अब भ्रष्टाचार और लालच के उच्चतम स्तर पर हैं । जनता पहले सी भीड वाली प्रतिक्रियाहीन लोकतंत्र नहीं रही है । अब वो प्रतिकार करना चाहती है । और ज़ाहिर है ऐसे में विकल्प के रूप में किसी भी नेता पर जूते चप्पल फ़ेंक कर , उनके साथ मारपीट करके उन्हें सार्वजनिक रूप से बदनाम करना उनके लिए एक आसान विकल्प है ।

बेशक इस तरह की मारपीट को सकारात्मक प्रतिक्रिया न माना जाए किंतु जनता को एक विकल्प तो मिल ही गया है । आम जनता अब सरकार और सियासत की संवेदनहीनता को काफ़ी देख व परख चुकी है । जो भी हो आधुनिक राजनीतिक काल में ऐसी घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के रूप में ही दर्ज़ की जाएंगी और ये देखना भी जरूरी होगा कि जनता की ऐसी हिंसक प्रतिक्रिया का परिणाम क्या निकलेगा ???? 
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