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सोमवार, 15 जुलाई 2024

तो क्या फेसबुक भी बंद हो जाएगा ???

 



                      
 
                                            



रविवारीय चिंतन 

ब्लॉग्गिंग के जमाने में एक शब्द बहुत प्रचलित हुआ था या किया गया था और फिर उस पर भारी बहस चली थी। 

वो शब्द था -घेटो।  जी हाँ घेटो 

किसी भी बने हुए बड़े समूह , संस्था से जुड़े लोगों में से , सिर्फ कुछ गिने चुने लोगों द्वारा , जाने अनजाने आपसी संवाद और विमर्श का एक घोषित अघोषित सा बना या बन गया एक विशेष गुट।  

इस गुट के बनते ही समूह के बाकी सदस्यों , साथियों की बातों पोस्टों प्रतिक्रियाओं आदि से इस घेटो को कोई लेना देना नहीं रहता।  जाने अनजाने ये गुट,  प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सिर्फ एक दुसरे की गतिविधियों और बातो में ही रूचि रखता और दिखाता है।  

घेटो की दूसरी खासियत ये होती है कि घेटो के किसी भी सदस्य से कोई भूल चूक लेनी देनी हो जाए तो फिर पूरा घेटो या तो उस पर चुप्पी लगा जाता है या फिर लामबंद हो जाता है।  

ब्लॉग्गिंग के दिनों में हुई ब्लॉग बैठकों में भी काफी कुछ हुआ और होता रहा , और कहने को आभासी दुनिया में परिचित हुए , मित्र बने लोग जल्दी ही एक दूसरे के ऐसे कट्टर विरोधी हो जाते कि फिर उनकी दिशा और दशा ही बदल जाती।  

इन दिनों फेसबुक का कर फेसबुक पर विभिन्न समूहों का समय चल रहा है , अच्छा या बुरा जो भी , और इन सबमें भी धीरे धीरे ठीक वही सब देखने पढ़ने सुनंने को मिल रहा है जो कभी हमें हिंदी ब्लॉग्गिंग करते हुए महसूस हुआ करता था।  

अपने इन्हीं अनुभवों के आधार पर एक बात मैंने कहीं लिखा था कि सच कहूँ तो मैं अपने किसी भी आभासी मित्र से कभी प्रत्यक्ष रूप से नहीं मिलना चाहता।  असल में किसी के भी शब्दों और छवियों को देखकर हमारे मन में किसी की भी जो छवि बनती है या हम जाने अनजाने बना लेते हैं वास्तविकता जरूर उससे कहीं न कहीं थोड़ा अंतर रखती है और यही अंतर कब मतान्तर बन जाता है पता ही नहीं चलता।  

ऑरकुट , गूगल बज , जैसे जाने कितने ही सोशल नेट्वर्किंग मंच आए और कालान्तर में अपना जो भी जैसा भी प्रभाव छोड़ कर सब समय की गर्त में चले गए और भुला दिए गए , एक दिन ये फेसबुक भी चला जाएगा और हम भी।  

गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

तो क्या बीते जमाने की बात हुई ब्लॉग लेखन

 







पिछले काफी समय से एक व्हाट्स एप समूह से जुड़ा हुआ हूँ जो अपने ही ब्लॉगर मित्र बंधुओं ने बनाया था और उसमें  सौ से अधिक संख्या में ब्लॉगर साथी न सिर्फ जुड़े हुए हैं बल्कि नियमित रूप से कुछ न कुछ साझा भी करते हैं , हाँ ये देख कर अब हैरानी या हताशा भी नहीं होती कि साल भर में भी कोई इक्का दुक्का पोस्ट , सिर्फ ब्लॉग पोस्ट लिखी और साझा की जाती तो और भी आनंद आता लेकिन अब ब्लॉग लेखन वो भी हिंदी ब्लॉग लेखन भी अन्य माध्यमों के आने से आउट डेटेड हो गया है क्या ??






क्या कोई भी सच में ही ब्लॉग लेखन नहीं कर रहा , पहली नज़र में देखें तो लगता तो ऐसा ही है , लेकिन जब मैं ब्लॉगर के अपनी पसंद के ब्लॉग पठन की सूची देखता हूँ तो पाता हूँ कि कोई तो है , बल्कि कई लोग हैं जो आज भी अब भी कभी नियमित अनियमित होकर या गाहे बेगाहे ही लिखते जरूर हैं।  

लिखने की बात से याद आया कि इन दिनों जापान कोरिया समेत कई देशों में लिखने पढ़ने और विशेषकर हाथ से लिखने पर दोबारा जोर देने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं।  असल में टाइपिंग , कंप्यूटर और मोबाइल तकनीक ने  आपसी सम्प्रेषण में लिखने की जगह टाइप करने या सिर्फ बोलने तक सीमित कर दिया है। 

इन देशों के शिक्षाविदों का ये भी मानना है कि आज भी दुनिया भर में पुस्तकों , ग्रंथो, , अखबारों और पत्रिकाओं का एक बहुत ही व्यापक प्रसार और प्रभाव है जिसे बचाए और बनाए रखने के लिए जरूरी है कि लोग लिखें और खूब लिखें और इसके लिए वे किसी भी यंत्र या तकनीक के मोहताज न बन कर रह जाएं।  

सरकारी दफ्तरों , और अन्य संस्थानों में तो अब हाथ से लिखने , रजिस्टर में दाखिला करने आदि की परम्परा कम्प्यूटरीकरण के बाद से बिलकुल ही समाप्त हो गई है या धीरे धीरे होती जा रही है , अलबत्ता बैंक के कई फ़ार्म और किताबों की पांडुलिपि अब भी बहुत लोग हाथ से ही लिख लेते हैं लेकिन देखना है कब तक।  


मैं खुद अपने किसी भी ब्लॉग पर पिछले एक साल से लगभग न के बराबर ही कुछ भी लिख पाया , और आप ?????


सोमवार, 27 नवंबर 2023

भयंकर बहू की मासूम सासू मां की व्यथा कथा

 



पूरे सवा दो घंटे से एक सासू माँ जी की कहानी सुन रहे थे जो घर पर आई हैं , श्रीमती जी की मंदिर मंडली में से किसी संगत आंटी जी ने भजन के दौरान कथा व्यथा साझा की तो उनने फटाक से बता दिया जे जो भजन के हिलकोरे पार रहीं हैं दोनों प्राणी और अब तो इनका सपूत भी तीनों ही क़ानून के कुनैन हैं बिलकुल , आंटी पूछते पाछते आ गईँ , घंटी बजाते ही बाय डिफ़ॉल्ट हम प्रकट हुए और उनकी आँखों को देख कर ही समझ गए लिल्लाह आज फिर से 

खैर आंटी ने बताया और दिखाया की बहु जो बहुत भयंकर टाईप सा बर्ताव करने लगी हैं उनसे अब सिर्फ और सिर्फ हमारी सलाह ही तार सकती है , हम आजकल इस काम के सबसे बड़े वैद्य हकीम माने बताए जाने लगे हैं तो तीर सीधा हमारे ऊपर ही चला।  खैर , 

अब कचहरी में न हम वकील  और ंना ही न्यायाधीश इसलिए उन बातों को भी देख समझ पाए जो दूसरा शायद ही समझ देख पाए , इसलिए सबसे पहला उसूल एक पक्ष को देख कर , उसकी सुन कर , रोना धोना देख कर भी , ये नहीं मान कर चलना है कि हमारे पास आया है तो ये मासूम और निर्दोष ही है , इसलिए कागज़ खंगाले 

पता चला विवाह के पंद्रह वर्ष बाद एक महिला जिसके तीन छोटे बच्चे हैं , जिन्हें वो आरक्षित सीट पर अलग अलग स्कूल से पढ़ा रही है , जिसका शराबी पति एक बार किसी अन्य के साथ एक साल के गायब हो गया था और शराब पीकर उसके साथ मार पीट भी करता है , उसके सास और ससुर की दूकान और मकान का किराया आने के बावजूद भी उसके हिस्से गुजारे की रकम भी शायद ठीक से न पहुँचती होगी , 

तो थक हार कर पंद्रह साल बाद उस बहू ने जब शिकायत दर्ज़ कराई तो वो तथाकथित बहू के भैंकर हो जाने की शिकायत करने और कुछ ठोस सा करने की सलाह मशवरा करना आई थीं आंटी , 

अब आखरी बात , उम्र और ज़िन्दगी से मिले अनुभव का तकाज़ा ये है कि अब लिहाज़ तो हम खुद भी नहीं करते , इसलिए सच सच कहें तो आंटी को सब कुछ समझने के बाद जाते जाते ये कह दिया कि आंटी अगर उन तीन बच्चों  की पढ़ाई लिखाई दवाई और माँ की भी ,  में कोई कोर कसर रही न तो इंसान ही नहीं उससे ऊपर के अदालत में भी हमें अपने खिलाफ ही पाना। 

बुधवार, 15 मार्च 2023

बिहार का दूल्हा , पंजाब की दुल्हन , चले गाँव की ओर , मगर रेल ही पलट गई

 





सच ही तो है न , इश्क मुहब्बत प्यार प्रेम , जिस नाम से इसे पुकार लीजिए , मगर ये तो धक्क से रह जाने , हाँ वही जब पहली बार आँखें मिलते ही , कई बार तो बोझिल आँखें बड़ों की मौजूदगी में एक दुसरे की नरमी गरमी महसूस भर लेते हैं , तो वो जो प्रेम है , उसका हमारे मामले में मामला कुछ ये रहा कि एक ही बैच में नियुक्त होने वाले हम मधुबनी बिहार से और हमारी सहकर्मी जालंधर पंजाब से के बीच दोस्ती , मुहब्बत से विवाह तक के निर्णय की दास्ताँ कुछ ऎसी रही की कम्बख्त अखबारों तक में छप कर बाद में भी छपती रही।

एक मई मजदूरी दिवस के दिन विवाह हुआ विवाह में शामिल होने आई हमारी दादी माँ पूरा परिवार विवाह के दो दिनों बाद वापस दल बल सहित रेल से पहुंच गया जाकर तयारी करनी थी , बिहारी मैथिल युवक अपनी गैर मैथिल पंजाब की वधू को गौना कराकर मधुबनी के एक छोटे से गाँव लेकर आने वाला था। इससे पहले श्रीमती जी के लिए रेल यात्रा का मतलब एक बार कभी किसी जनम में जालंधर से दिल्ली किसी ट्रेन में बैठ कर वे आई थीं बाकी तो बस सेवा ज़िंदाबाद।

इससे ठीक उलट हमारा जन्म ही रेल यात्राओं के लिए हुआ हो जैस , पहल पिताजी के फौजी जीवन वाली पोस्टिंग में फिर अपनी नौकरी वाली जेनरल डिब्बे वाली धधड़ाध यात्राओं ने कुल मिला कर रेल को घर आँगन जैसा ही फील देने वाला बना दिया था। मगर जब आप बात देश के किसी भी कोने से रेल से अपने बिहार जाने की बात करते हैं तो , बस भावनाओं को समझिये न , बहुत गजब ट्रेकिगं होती है रेल टिकट से लेकर आना जाना भी , तब तो और हुआ करता था।

हमें श्रमजीवी एक्सप्रेस से 11 मई को गाँव के लिए निकलने के लिए टिकट आरक्षित का एक बहुत बड़ा उपकार मिला। , पहली बार दुल्हन ससुराल चली तो जाहिर सी बात है की अटैची और नई नवेली दुल्हन के गहने जेवर मेरी इस यात्रा में इससे पहले की सारी बेफिक्री वाली यात्रा में मेरे लिए एक अलग कठिनाई कैसे बनने वाले वाले थे इसका भी रत्ती भर अंदाज़ा तब नहीं था मुझे , एक कठिनाई तो पहले ही श्रीमती जी को उनकी पहली लम्बी रेल यात्रा वो भी बीच मई की गर्मी में , खैर साथ बर्थ पर जो परिवार आया उसमें एक मेरे जैसा ही अपनी पत्नी और अपनी छोटी के बहन के साथ दरभंगा तक जाने वाला सहयात्री था।

रात तीन बजे अचानक तक आवाज़ के साथ बहुत तेज़ धमाके की आवाज , रेल गाडी इतना जोर से उछली , और घुप्प अँधेरे के बीच मची चीख पुकार , बाहर इतना गहरा अंधेरा कि की खुद ही खुद को न देख पाएं। मैं धमाके की आवाज़ के साथ ही बीच बर्थ पर सोइ श्रीमती जी को संभाल चुका था इससे पहले कि वो कुछ समझतीं मैंने उन्हें अश्वस्थ किया किया कुछ नहीं हुआ सब ठीक है। मगर बाहर चीख पुकार की आवाज़ तेज़ होने लगी थी , हमारी धड़कने तेज़ हो गई थीं इस आशंका से कि जरूर रेलगाड़ी को लूटने के मकसद से बीच जंगल यूँ रोका गया ,
मेरी कनपटी एकदम गर्म हो चुकी थी , मगर अँधेरे के कारण हमने वहीँ रुकना ठीक समझा क्यंकि सामने भी एकदम चुप्पी थी।

लेकिन शोर इधर की तरफ नहीं आया ा, हम सब डब्बे वाले रुके रहे कोई अपनी चोट सहला रहा था तो कोई फुसफुसाहट से अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिए बोल रहा रहा। अँधेरा छँटा और थोड़ा थोड़ा उजाला हुआ तो हमने सबको वहीँ रुकने कह कर दो और लोगों के साथ डब्बे के दरवाजे की और बढ़ गए , खोल कर देखा तो आगे रेल दुर्घटना के कारण डब्बे पलट गए थे। बच खुच कर लोग बाग़ आस पास के खेतों में उतरते जा रहे थे।

हमने भी आनन फानन में यही निर्णय लिया कि इस डब्बे से उतर के खेत में ही चला जाए क्यूंकि , हम अब रेल के आखिर में साबुत बचे दो डब्बों में से एक थे और कहीं पीछे से किसी रेल ने आकर हमें जादू की झप्पी दे दी तो हमार हो जाना हैप्पी बर्थ दे। इसके बाद सर पर अटैची , दोनों कन्धों पर भरी बैग , मयुर जग और साथ में दस दिन पहले की ब्याहता , पहले डेढ़ किलोमीटर तक चल कर सड़क पर पहुंचे ,.

साथ में चल रहे भाई ने खेतों में चलते हुए बात बात में चिंता जताई कि उसके बाद बहुत ज्यादा पैसे नहीं तो कैसे जा पाएंगे , उन्हें दरभंगा जाना था , मैंने मुसीबत में एक से दो भले और फिर एक जैसे ही हालात वाले दोनों भाई बंधु इसलिए मैंने कहा आप पैसों की चिंता न करें , साथ चलेंगे। लेकिन सड़क पर आते ही जो पहला काम मैंने किया वो था बूथ से अपनी श्रीमती जी के यहां फोन करके सूचित करना कि , रेल खराब हो गई है हमने रेल बदल ली है ( मुझे पता था कि उन्हें बाद में समाचारों में पता चलना था रेल दुर्घटना का और कुशलनामा न होने पर वे परेशान होते ) , लेकिन इस फोन कॉल का एक अलग ही रोल हो गया इस पूरे घटनाक्रम में।

शादी के बाद पहली बार बिहार का दूल्हा अपनी पंजाब की दुल्हन को लेकर चला अपने गाँव , और श्रीमती जी की उस पहली लंबी रेलयात्रा का संयोग ऐसा रहा कि कम्बख्त रेल दुर्घटना हो गई , और फिर चौबीस घंटों की वो रेल यात्रा पूरे 72 घंटे की कार , बस और टैक्सी यात्रा में बदल गई। पिछले पोस्ट में आप पढ़ चुके हैं कि कैसे अचानक हुए इस भयानक रेल हादसे ने हमें बुरी तरह से संकट में डाल दिया। रेल की पटरियों को छोड़ खेतों के रास्ते तीन चार किलोमीटर सारा सामान कन्धों और सर पर उठा कर सड़क मार्ग तक पहुंचे और फिर वहां एस टी डी बूथ की लम्बी लाइन में लग कर अपनी ससुराल में फोन करके सिर्फ ये सूचना दी की ट्रेन में कुछ खराबी के कारण हम दुसरे रास्ते से जा रहे हैं।

ससुरालियों ने समाचार अभी तक न देखा था न सुना था इसलिए वे समझ नहीं पाए कि ये रेल खराब हो गई , दुसरे रास्ते से जा रहे हैं , मगर कुल मिलाकर मैं जो समाचार देना चाह रहा था वो ये कि हम सकुशल हैं जब रेल दुर्घटना के बारे में पता चले तो घबराएं नहीं और सब समझ जाएं। मेरे साथ ही ऐसी ही मुसीबत में पड़ा एक और परिवार जिसमे एक भाई साहब , जिनका नाम शक्ल अब मुझे रत्ती भर ही याद नहीं , वे अपनी पत्नी और छोटी बहन के साथ थे वे भी जुड़ गए , उन्हें दरभंगा जाना था मुझे मधुबनी , दो मुसीबत के मारे बन गए एक दुसरे के सहारे। उन्होंने मुझे इशारे में बताया कि उनके पास आगे जाने के लिए पर्याप्त पैसे शायद नहीं हैं लेकिन घर पहुँचते ही वे सब संभाल लेंगे। मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि चलिए साथ चलेंगे। आगे की आगे देखी जाएगी। हमने टैक्सी ली और पहुँच गए बनारस।

बनारस से पटना और फिर पटना से सड़क मार्ग से ही होते हुए अगली रात को दरभंगा और फिर बहुत जयादा रात को मधुबनी , जहां अनुज ने पहले ही हमारे रुकने ठहरने का इंतज़ाम कर रखा था। मधुबनी पहुंचते पहुँचते हमारी हालत पस्त हो चुकी थी। मई की गर्मी अपने चरम पर थी। लेकिन इस बीच जो कुछ मेरे गाँव में घट रहा था वो सब मुझे गाँव पहुँच की पता चला।

अनुज जो कि विवाह के पश्चात गौने की रस्म , रीति , भोज आदि की तैयारी में लगा हुआ था और सभी बंधू बांधवों और रिश्तेदारों को निमंत्रण देने के लिए जब मेरी नानी गाँव पहुँचा तो किसी ने पूछ लिया कि किस रेल से आ रहे हैं भैया भाभी ??

श्रमजीवी से

क्या , श्रमजीवी से , लेकिन उसका तो एक्सीडेंट हो गया है

भाई ने चौंक कर गुस्से में उससे कहा ,' क्या बकवास कर रहा है झूठ कह रहा है या सच ??

नहीं भैया , सुबह ही समाचार में बता रहे थे।

अब घबराने की बारी अनुज की थी , उसे न हमारी कुशलता की जानकारी थी न ही कोई सूचना थी। सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि , एक तरफ जहाँ घर पर सभी समारोह , और दावत अदि की तयारी चल रही थी , उन्हें कैसे रोका जाए और कैसे न रोका जाए। अनुज पिताजी और माँ को अभी नहीं बताना चाह रहा था। लेकिन इस बीच मेरे ससुराल में किए गए उस फोन कॉल जिसमें मैंने अपने सकुशल होने की सूचना दे दी थी उसी फोन ने सब कुछ संभाल लिया। अनुज मधुबनी आकर एस टी डी से काफी मशक्कत के बाद मेरी ससुराल में बात कर सका और उसे इतना तो पता चल गया कि भैया भाभी ठीक हैं लेकिन कहाँ हैं , कब आएँगे कैसे आएँगे इसकी कोई जानकारी नहीं थी। मोबाइल का ज़माना था नहीं। खैर , मधुबनी में आधी रात या शायद् उससे भी अधिक समय में अनुज और अनुज मित्र , दोनों प्रतीक्षा रत मिले।

दरभंगा में हमने साथी परिवार को भी उनके घर पर उतारा और उन्होंने घर में जाते ही , अपने माँ या पिताजी से पैसे लेकर , उस समय तक का सारा खर्च जो भी मेरी तरफ से किया गया था वो सारा मुझे वापस करके बहुत सारा धन्यवाद करके विदा हुए।

गाँव में जब दूल्हा अपनी पंजाब वाली दुल्हन को लेकर पहुंचा तो लगभग आधा गाँव उमड़ पड़ा , कोई दिल्ली /पंजाबा की दुल्हन को देखने तो कोई ये देखने कि दुर्घटना के बाद बच्चे सकुशल तो हैं , और माँ चाची दादी सभी रह रह कर एक ही बात -दुल्हन किस्मत वाली है इतने बड़े दुर्घटना में भी अपने सुहाग को बचा लाई। दुल्हन की हो गई बल्ले बल्ले। 

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

क्यूँ लिखा , क्या लिखा जाए -कश्मकश में हिंदी ब्लॉग्गिंग






यूँ तो सबका समय एक सा नहीं रहता और आनी जानी तो दुनिया की रीत है ही इस लिहाज़ से यदि एक समय पर दुनिया भर में समानांतर पत्रकारिता की सूत्रधार बनी ब्लॉग्गिंग जिसने और जिसमें लिखे कहे देखे गए सच ने कई देशों के तख्ता पलट तक कर दिए थे।  वहीँ से मुख्य पत्रकारिता को एक सीधी स्पष्ट चुनौती मिलनी शुरू हुई थी।  ब्लॉग्गिंग उन दिनों तीखे सच को सीधा सबके सामने जस का तस रख देने के कारण सबसे धारदार और प्रभावी प्लेटफॉर्म बन गया था।  

उन दिनों अंतर्जाल पर हिंदी में लेखन तो दूर की बात , पढ़ने को भी अधिकाँश सामग्री अंग्रेजी भाषा में ही मिलती व दिखती थी।  फिर हिंदी ब्लॉग्गिंग की शुरुआत , दखल और बढ़त ने धीरे धीरे हिंदी अंतर्जाल पर देवनागरी की सामग्री को बढ़ाने में खूब बढ़ चढ़ कर योगदान दिया। 


 इतना ही नहीं स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय समाचार पत्रों तक ने ब्लॉग पोस्ट को स्थान देना शुरू किया और पत्रकारिता सहित विभिन्न क्षेत्रों से खिलाड़ी अभिनेता राजनेता आदि भी ब्लॉग लेखन में आ गए।  इनमें से मनोज बाजपेयी , अमिताभ बच्चन और रवीश कुमार अपने ब्लॉग लेखन को लेकर काफी चर्चित रहा करते थे।  

ब्लॉग लेखन पठन का ये सिलसिला  तेज़ी से आगे बढ़ा नए नए लेखक और पाठक रोज़ जुड़ते गए , जल्दी ही न्यू मीडिया का एक हिस्सा बन कर उभरा ब्लॉग मुख्य मीडिया को अखरने भी लगा क्योंकि यहां बना किसी रोक टोक के बिना काट छांट के सब कुछ जस का तस लिखा पढ़ा जा रहा था । हर विषय , हर मुद्दे , पर हर क्षेत्र के लोग ब्लॉग लेखन करने लगे । 

यात्रा ,कुकिंग , कानून , समाचार ,हास्य , साहित्य ,अनुवाद सभी विधाओं में खूब सारा लेखन किया जाने लगा जो अब तक ब्लॉग्स पर मौजूद है। 

पोस्ट लंबी होती जा रही है , शेष बातें अगले पोस्ट में 


आप लिख रहे हैं क्या ब्लॉग , पढ़ भी रहे हैं या नहीं ???

बुधवार, 3 अगस्त 2022

सिर्फ चड्ढा ही अकेला लाल नहीं होगा :सनातन विरोधी बॉलीवुड को रसातल में पहुँचाएगी जनता





एक के बाद एक लगातार , बड़े बैनर और बड़े नामों की पिक्चरों का हाल कबाड़ी बाज़ार में रखे रद्दी के ढेर जैसा होता हुआ देख कर एक तरफ जहां लोगों के कलेजे को ठंडक मिल रही है और वे एक एक सिनेमा को , वो कहता हैं न चुन चुन कर मारूंगा , वैसे ही चुन चुन कर तलाश तलाश और इतना है नहीं खुलेआम पहले ही बता कर चेता दे रहे हैं कि , सड़क टू आई तो सड़क पर धुल चाटेगी और शेरा बकरी भी न बन सकेगा।  हालात ऐसे हैं तो फिर आमिर खान -जैसे दोहरे चरित्र और निजी जीवन में बेहद ही निम्न स्तरीय व्यवहार वाले -के उस फिल्म के लिए जिसे वो अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बता रहा हो लोगों ने यदि बहिष्कार की मुनादी कर दी है और जनाब पर्फेक्शिनस्ट मिमियते घूम रहें हैं तो ये दर्द अच्छा लगता है।  

आमिर खान जैसे अभिनेता जिन्होंने इस देश में रहकर यहाँ के लोगों के प्यार और पैसे से , मिली शोहरत ऐशो आराम मिलने का एहसान इस तरह से चुकाया की दो दो शादियॉँ और तलाक के बाद तीसरे की तयारी में लगे इस खान को सार्वजनिक रूप से यह कहना पड़ता है कि भारत में बढ़ती असहिष्णुता के कारण ये देश रहने के लिए असुरक्षित लगता है।  लानत है ऐसी निर्लज्जता पर।  जाने फिर किस हिम्मत से किस मुँह से यही सत्यमेव जयते जैसा टेलीविजन धारावाहिक लाते हैं और फिर वही किसी के दर्द , किसी की मेहनत , किसी की सफलता सबको सिनेमा में डाल कर अपना एजेंडा घोल घाल के , फिर चाहे इसके लिए किसी का अपमान करना पड़े या इससे भी नीचे की कोई हरकत , करके पाँच सात सौ करोड़ कमा पर इसी देश के लोगों को भला बुरा कहना ही असली कल्ट है।  बताइये भला , सीधा सा सरल सा ही तो फंडा है।  

और अब तो कह भी रहे हैं कि भाई चड्डे को ऐसे मत लाल करो -इंडिया से तो बहुत प्यार है।  हो भी क्यों न , ऐसा और कौन सा देश होगा भला जहां एक मज़लिम कला के नाम पर कभी माँ सरस्वती की नग्न पेंटिंग बना कर भी महफूज़ रहता है तो दूसरा खुलेआम भगवान् शंकर सहित मंदिर पुजारी सबका अपमान करना मजाक बनाता है और यही सब बकवास दिखाते हुए करोड़ों कमाता है -ऐसे में किसी का भी मानसिक रूप दम्भी  होना समझ में आता है।  लेकिन पिछले पांच सात वर्षों में देश और दुनिया में हाल और हालात दोनों बहुत तेज़ी से बदले हैं।  

सिनेमा , धारावाहिक , वेब सीरीज़ , स्टैंड अप - एक को , किसी एक को भी नहीं बख्शा लोगों ने , हालाँकि अमन के पैगाम वाले मजहब के शांतिप्रिय लोगों की तरह -दूसरों का गला काटने जैसे हैवानियत की अपेक्षा हिन्दू समाज से कभी की भी नहीं जानी चाहिए लेकिन -कला और अभिव्यक्ति के नाम पर बार बार साजिशन हिन्दू और सनातन का अपमान , मंदिरों , पुजारीयों की गलत छवि का चित्रण आदि की सारी कलई लोगों के सामने धीरे धीरे खुल जाने से स्थिति आर पार जैसी हो गई।  

तो अब ये तय है अक्षय कुमार की फिल्म हो या आमिर खान की , या किसी भी अन्ने बन्ने की , हिन्दू विरोधी , देश विरोधी , सेना विरोधी , राम विरोधी - सत्य सनातन विरोधी हुई तो उसका भी हश्र यही और सिर्फ और सिर्फ यही होने वाला है जो पिछले दो सालों से बॉलीवुड सिनेमा की पिक्चरों का हो रहा है यानि -डब्बा गोल।  


रविवार, 17 अप्रैल 2022

गर्मियों में गमलों के पौधों के लिए बरती जाने वाली विशेष बातें : बागवानी मन्त्र

 





पूरी दुनिया में धीरे धीरे धीरे बढ़ती जंग और उनमें , धरती की छाती पर और पूरे वायुमंडल में दिन रात ज़हर घोलते बम बारूद , तेल , पेट्रोल , गैस , धुआँ , कचरा जो नास पीट रहा है वो अलग।  ऐसे में फिर यदि मार्च के अंतिम सप्ताह में सबको जून वाली तपिश और भयंकर लू का एहसास और नज़ारा देखने को मिल रहा है तो हैरानी भी आखिरकार क्यों हो ?? 

इसका सीधा असर सबसे पहले धरती की वनस्पति पर ही पड़ना शुरू होता है।  आसपास , सब्जियों , फलों और साग पात के आसमान छूते भाव से इसका अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है।  ऐसे में , इन शहरों और कस्बों में रह रहे हम जैसे लोग जो , गमलों में मिटटी डाल कर कभी छत तो कभी बालकनी में साग सब्जियों फूलों पत्तों को उगाने लगाने का जूनून पाले हैं उनके लिए कोई भी मौसम अपने चरम पर पहुँचते ही उनके पौधों के लिए दुरूह हो उठता है।  चलिए गर्मियों में बात करते हैं -पौधों को गर्मियों और तेज़ धूप से बचाने की।  मैं आपके साथ वो साझा करूँगा जो मैं करता हूँ।  



गमलों का स्थान बदलना /कम धूप वाली जगह पर : गर्मियों के आते ही मेरा सबसे काम होता है , गमलों को पूरे दिन तेज़ धूप पड़ने वाले स्थान से हटा कर कम धूप वाले स्थानों पर रखना।  यदि ये संभव नहीं हो तो फिर कोशिश ये रहती है कि सभी गमलों को , या कहा जाए की पौधों की जड़ों को आसपास बिलकुल चिपका चिपका कर रखा जाए।  गर्मियों में अधिक वाष्पीकरण होने के कारण गमलों की मिट्टी सूखने लगती है जबकि एक साथ रखने पर जड़ों में नमी काफी समय तक बनी रहती है।  मैं बड़े पौधों की जड़ों में छोटे छोटे पौधे रख देता हूँ।  



जड़ों में सूखे पत्ते , सूखी घास आदि रखना : गर्मियों में , पौधों की जड़ों और मिट्टी में नमी बनाए रखना , इसके लिए उपलब्ध बहुत सारे उपायों में से एक भी सरल और कारगर उपाय होता है।  पौधे के सूखे पत्तों ,घास को अच्छी तरह से तह बना कर पौधे की जड़ में मिटटी के ऊपर बिछा दें।  ये गीले पत्ते जड़ों की नमी को बहुत समय तक बनाए रखेंगे।  


पानी ज्यादा देना : गर्मियों में अन्य जीवों की तरह वनस्पति को पानी की अधिक जरूरत पड़ती है , विशेषकर गमलों में तो और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है।  पानी कितना कब ,कितनी बार देना ये है सब पौधे , ,मिटटी , स्थान पर की जा रही बागवानी पर निर्भर करता है , मैं कई बार दिन में चार बार और रात को सोने से पहले भी पौधों को पानी देता हूँ।  किसी भी , खाद , दवाई , देखभाल से अधिक जरूरी और कारगर पौधों को नियमित पानी देना होता है। गर्मियों में तो ये अनिवार्य हो जाता है।  

हरी शीट /जाल आदि से ढकना :यदि पौधों के ऊपर तेज़ तीखी धूप पूरे दिन पड़ती है तो निश्चित रूप से , साग , धनिया ,पुदीना के अतिरिक्त नरम स्वभाव वाले सभी फूल पौधों के लिए मुशिकल बात है।  इससे पौधों को बचाने के लिए या धूप की जलन को कम या नियंत्रित करने के लिए ,हरी शीट , जाल , त्रिपाल का प्रयोग किया जा सकता है।  मेरे बगीचे के दोनों ही हैं।  



ड्रिपिंग प्रणाली का प्रयोग करना : शीतल पेय पदार्थ तथा पानी की बोतलों को गमलों में पौधों की जड़ के पास फिक्स करके ड्रॉपिंग प्रणाली वाली तकनीक से भी जड़ों में पानी और नमी को बचाए रखने में अचूक उपाय साबित होता है।  बोतल में छिद्र के सहारे , धीरे धीरे जड़ो में रिसता पानी , पौधों को हर समय तरोताजा बनाए रखता है।  



गर्मियों में खाद दवा आदि के प्रयोग से यथा संभव बचना चाहिए और सिर्फ और सिर्फ घर के बने खाद को ही जड़ों में डाला जाना चाहिए। 

जड़ों के साथ साथ , पत्तों टहनियों और पौधे के शीर्ष पर भी पानी का छिड़काव करना चाहिए , किन्तु कलियों फ़ूलों पर पानी  डालते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।  

गर्मियों में पौधों की काट छाँट और निराई गुड़ाई का काम जरूरत के अनुसार ही करना ठीक रहता है।  

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