विशेष पुलिस अधिकारियों
(एस0पी0ओ0) की नियुक्ति एवं सेवा शर्तें
28. कोया कमांडो की कार्यप्रणाली के सम्बन्ध में वादियों के द्वारा कई आरोप लगाए गए। इस अदालत के द्वारा पूछे जाने पर कि कोया कमांडो कौन है और क्या है छत्तीसगढ़ राज्य ने अपने दो हलफनामों एवं लिखित टिप्पणी के माध्यम से निम्नलिखित तथ्य प्रकट किए हैं-
क. 2004 और 2010 के दौरान राज्य में 2298 नक्सलवादी हमले हुए, 538 पुलिस एवं सुरक्षा बलों के कर्मी मारे गए। इन आक्रमणों में 169 विशिष्ट पुलिस अधिकारी मारे गए एवं 32 सरकारी अधिकारी एवं 1064 ग्रामीण मारे गए। राज्य के नक्सल प्रभावित जिलांे में विशिष्ट पुलिस अधिकारी सम्पूर्ण सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। दांतेवाड़ा जिले का चिंतलनारि क्षेत्र सर्वाधिक नक्सलियों से प्रभावित क्षेत्र है। यहाँ पर एक घटना में 76 सुरक्षा कर्मी मारे गए थे।
09 October 2011
प्रेस नोट
जानी-मानी लेखिका और स्त्री अधिकार कार्यकर्ता शीबा असलम फहमी के घर पर दिल्ली में हुए इमाम बुखारी समर्थकों के बर्बर हमले का हम कडा विरोध करते हैं. साम्प्रदायिक कट्टरता के खिलाफ खुलकर लिखने वाली शीबा को धमकियां लंबे समय से मिल रही थीं और इसके पहले भी उन पर हमले हुए हैं. देश में लगातार सर उठा रहे दक्षिणपंथी कट्टरपंथ को रोकने में सरकार की नाकामयाबी ने जनपक्षधर लेखकों के लिए तमाम मुश्किलात खडी कर दी हैं और लोकतंत्र के समक्ष यह एक बड़ी चुनौती है.
वैसे तो अंगरेजी भाषा की क्रिया -"टू वेजिटेट'' एक निष्फल सी, झाड झंखाड़ सी उगती जाती ज़िंदगी की ओर इशारा करती है मगर एक आम जुझारू ज़िंदगी के साथ भी बहुत से खर पतवार किस्म की चीजें इकठ्ठा होती चलती हैं , वे इसलिए और भी इकठ्ठा होती जाती हैं कि उनके प्रति हम एक आसक्ति भाव लिए रहते हैं ...जबकि कुदरत का एक 'जीवनीय' सूत्र हमें हमेशा अनेक माध्यमों से सन्देश देता रहता है कि बहुत कुछ पुराने धुराने को हमें टिकाते भी रहना चाहिए ....इसलिए कि 'पुराणमित्येव न साधु सर्वं' (यह पुराना है इसलिए श्रेष्ठ है यह बात हमेशा सही नहीं है)...प्रकृति में भी तो देखिये कई जीव जंतु तो अपने पुराने चोले को हर वर्ष त्यागते रहते हैं और त्यागकर और अधिक आकर्षक हो उठते हैं -सांप समुदाय इसमें निष्णात है ..पुरानी केंचुली उतारी नयी ओढ़ ली .....और भी कातिल सौन्दर्य हासिल कर लिया ....हमें कुदरत से बहुत बातों को सीखते रहना चाहिए खुद अपनी बेहतरी के लिए ...दत्तात्रेय नामके ऋषि ने तो इसलिए पशु पक्षियों को अपना गुरु मान लिया था ....इस पुरानी धुरानी चीजों की साफ़ सफाई को आप जानते ही हैं अंगरेजी में वीडिंग कहते हैं ...दीपावली के पूर्व घरों में वीडिंग अभियान जोरो शोरों से चलाया जाता है ..आफिसों में लाल फीतों में लिपटे कबाड़ को वीड करने के तरीकों पर तो बाकायदा शासनादेश हैं ....
Sunday, October 9, 2011
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 761/2011/201
ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीले सफ़र में। और इस सुरीले सफ़र के हमसफ़र, मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ और आप सभी को साथ लेकर फिर से चल पड़ा हूँ एक और नई शृंखला के साथ। दोस्तों, किसी भी देश में जितने भी प्रकार के संगीत पाये जाते हैं, उनमें से सबसे ज़्यादा लोकप्रिय संगीत होता है वहाँ का लोक-संगीत। जैसा कि नाम में ही "लोक" शब्द का प्रयोग है, यह है ही आम लोगों का संगीत, सर्वसाधारण का संगीत। लोक-संगीत एक ऐसी धारा है संगीत की जिसे गाने के लिए न तो किसी संगीत शिक्षा की ज़रूरत पड़ती है और न ही इसमें सुरों या तकनीकी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। यह तो दिल से निकलने वाला संगीत है जो सदियों से लोगों की ज़ुबाँ से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती चली आई है। हमारे देश में पाये जाने वाला लोक-संगीत यहाँ की अन्य सब चीज़ों की तरह ही विविध है, विस्तृत है, विशाल है। यहाँ न केवल हर राज्य का अपना अलग लोक-संगीत है, बल्कि एक राज्य के अन्दर भी कई कई अलग तरह के लोक-संगीत पाये जाते हैं। आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर हम शुरु कर रहे हैं पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत के लोक गीतों और लोक-संगीत शैलियों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों से सजी हमारी नई लघु शृंखला 'पुरवाई'।
('जनसंदेश टाइम्स', 05 अक्टूबर, 2011 के
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
दुनिया के समस्त धर्म ग्रन्थ मुक्त कंठ से ईश्वर की प्रशंसा के कोरस में मुब्तिला नजर आते है। उनका केन्द्रीय भाव यही है कि ईश्वर महान है। वह कभी भी, कुछ भी कर सकता है। एक क्षण में राई को पर्वत, पर्वत को राई। इसलिए हे मनुष्यो, यदि तुम चाहते हो कि सदा हंसी खुशी रहो, तरक्की की सीढि़याँ चढ़ो, तो ईश्वर की वंदना करो, उसकी प्रार्थना करो। और अगर तुमने ऐसा नहीं किया, तो ईश्वर तुम्हें नरक की आग में डाल देगा। और लालच तथा डर से घिरा हुआ इंसान न चाहते हुए भी ईश्वर की शरण में नतमस्तक हो जाता है।
आदमी की लाचारी, उसकी बेबसी क्या प्रकृति प्रदत्त है? महिलाओं के प्रति उसका तीव्र आकर्षण यहाँ तक की महिला को पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने का पागलपन! शायद कभी समाज ने इसी प्रवृत्ति को देखकर विवाह संस्था की नींव डाली होगी। पुरुष के चित्त में सदा महिला वास करती है। उसका सोचना महिला के इर्द-गिर्द ही होता है। पुरुषोचित साहस, दबंगता, शक्तिपुंज आदि सारे ही गुण एक इस विकार के समक्ष बौने बन जाते हैं। वह महिला को पूर्ण रूप से पाना चाहता है, उसे खोने देना नहीं चाहता। पति के रूप में वह पत्नी को अपनी सम्पत्ति मानने लगता है और इसी भ्रम में कभी वह लाचार और बेबस भी हो जाता है। महिला भी यदि दबंग हुई तो उसकी बेचारगी और बढ़ जाती है। इसलिए आदिकाल से ही पुरुष का सूत्र रहा है कि अपने से कमजोर महिला को पत्नी रूप में वरण करो।
हमने इस बार दशहरा नहीं मनाया .....
जी, पिछले कई वर्षों से दशहरा का कार्यकर्म बहुत ही धूमधाम से मनाते आ रहे हैं... लगभग २०-२१ वर्षों से.. उस समय तो कई लड़के बहुत छोटे थे... और कई तो पैदा ही नहीं हुए थे ... खासकर जो शोभायात्रा में राम लक्ष्मण बनते है ... जुड़वाँ भाई, गोली सोनी... जैसा नाम वैसे ही चंचल. एक समय आया कि ये लव कुश बन कर सजे हुए घोड़े की लगाम पकड़ कर चलते थे, फिर वनवासी राम लक्ष्मण, और अब तक राजसी राम लक्ष्मण के स्वरुप में दशहरा की झांकी में अपना योगदान देते थे.
रणबीर कपूर की नई फिल्म रॉक स्टार की कव्वाली कुन फाया कुन सुनने पर ज़ेहन को बड़ा सुकून देने वाली है...जानने की इच्छा हुई कि कुन फाया कुन का अर्थ क्या है...नेट पर तलाशा तो इसका ये मतलब दिखाई दिया... 'Be! And it is'
इससे ज़्यादा समझ नहीं आया तो नेट को और खंगाला...हिंदी में एक जगह ही ज़िक्र दिखा-
"अल्लाह ताला जब किसी काम को करना चाहते हैं तो इस काम के निस्बत इतना कह देतें हैं कि कुन यानी हो जा और वह फाया कून याने हो जाता है"...
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 117)
इससे यही समझ आता है कि कुन फाया कुन दुनिया के बनने से जुड़ा है...गाने की एक पंक्ति भी है...जब कहीं पे कुछ नहीं भी नहीं था, वही था, वही था...कुन फाया कुन को और ज़्यादा अच्छी तरह अरबी के जानकार ही समझा सकते हैं...
प्रकाशन :रविवार, 9 अक्टूबर 2011
डॉ. अरविन्द मिश्र
आवश्यकता, उपयोगिता, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय दुनिया से सैकण्डों में अपनी बात के जरिए जुड़ने वालों की बढ़ती संख्या को देखते हुये आज ब्लॉगिंग जैसे द्रतगामी संचार माध्यम को पॉचवा स्तम्भ माना जाने लगा है। कोई इसे वैकल्पिक मीडिया तो कोई न्यू मीडिया की संज्ञा से नवाजने लगा है । हलांकि हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास महज ८ वर्ष का ही है मगर इसकी पैठ और प्रवृत्तियों पर लोगों की पैनी नजर है और नतीजतन इसके इतिहास लेखन की ओर रवीन्द्र प्रभात सरीखे जिम्मेदार साहित्यकर्मी का उन्मुख होना सहज ही है ...जबकि यह प्रश्न उठाया गया था कि क्या हिन्दी ब्लॉग लेखन इतनी परिपक्वता पा चुका है कि उसका इतिहास लेखन आरम्भ हो जाय? इतिहास का मतलब दिक्कालीय परिवेश और घटनाओं के दस्तावेजीकरण का है और इसके लिए इंतज़ार किया जाना प्रमाणिकता को बनाए रखने के लिहाज से जरुरी नहीं है। इतिहास द्रष्टा द्वारा सीधे खुद लिखने के बजाय जब भी कालान्तर में लोगों द्वारा बिखरे हुए साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर इतिहास लिखा जाता है प्रमाणिकता के साथ समझौता करना पड़ता है। कहना केवल यह है कि इतिहास का वस्तुनिष्ठ प्रस्तुतीकरण उसके समकालीन दस्तावेजीकरण से ज्यादा सटीक तरीके से हो सकता है। इस लिहाज से रवीन्द्र प्रभात की सद्य प्रकाशित पुस्तक "हिन्दी ब्लागिंग का इतिहास" एक स्वागतयोग्य प्रकाशन है। पुस्तक का प्रकाशन हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा किया गया है ।
Sunday, October 9, 2011
खूब छेड़-छाड़ की है, किसी ने मेरी खामोशियों से
सच ! अब न सिर्फ वो, सारा शहर जागा हुआ है !!
...
लो मियाँ, मुंह खुद-ब-खुद मीठा हो गया
उन्हें देखते ही, मुंह में पानी आ गया !!
...
ये करतब देखे हुए हैं, शायद यहाँ या कहीं और
सच ! कलम की, गजब जादूगरी है !!
...
क्या खूब, ठोक-ठोक के पीटा है
लोहे का टुकड़ा, चीमटा हुआ है !
रविवार, ९ अक्तूबर २०११
महकता गन्ध से उपवन,
धरा ने रंग विखराए।
खुशी से खिल उठे चेहरे,
दिवस त्यौहार के आए।।
सुशोभित कमल सुन्दर हैं,
सजे फिर से सरोवर हैं,
सिँघाड़ों की फसल फिर से,
हमारे ताल ले आये।
खुशी से खिल उठे चेहरे,
दिवस त्यौहार के आए।।
दो तीन दिन से टी वी पर खबर आ रही हैं की एक लड़की जिसकी शादी इस साल शायद मार्च में ही हुई थी उसको उसके ससुराल वालो ने छत से नीचे फ़ैक दिया और वो बहुत गंभीर हालत में अस्पताल में भरती हैं ।
घटना जयपुर की हैं लड़का डॉक्टर हैं लड़की भी डॉक्टर हैं । लड़की अपने माँ पिता की एक ही संतान हैं ।
लड़की के पिता का कहना हैं की लडके वाले दहेज़ की मांग कर रहे थे । और ससुराल वालो ने लड़की को छत से फैकने से पहले उस से सुसाइड नोट भी लिखवा लिया था ।
क्या एक डॉक्टर लड़की को छत से फैकने से पहले उसके माँ पिता को ज़रा भी आभास नहीं हुआ होगा की ये होने वाला हैं ??
क्या एक डॉक्टर लड़की के विवाह में दान दहेज़ की प्राथमिकता होती हैं ??
क्या एक डॉक्टर लड़की शादी से पहले बिलकुल अनभिज्ञ रहती हैं कि उसके विवाह में क्या क्या खर्च होगा ?
रविवार, ९ अक्तूबर २०११
हम भी दौड़ाते हैं रेल
कभी एक्स्प्रेस कभी सुपर फ़ास्ट
कभी लोकल
अपने कुनबे के सपनों को
नन्हीं सी ढोल में बन्द करके।
अम्मा बापू के सपने
हमारे सपने
सबके सपने
बन्द हैं हमारी छोटी सी ढोल में।
सबके सपनों का बोझ
भूख से कुलबुलाती अंतड़ियां
अलस्सुबह खींच ले जाती हैं हमें
भारतीय रेल की पटरियों पर।
रविवार, ९ अक्तूबर २०११
चौबे जी की चौपाल
आज चौबे जी कुछ शायराना मूड में हैं। देश के घटनाक्रम पर अपनी चुटीली टिप्पणी से गुदगुदाते हुए चौबे जी ने कहा कि " राजनैतिक निजाम भी ससुरा मौसम की तरह तिरछा हो गया है आजकल । कभी उपवास का मौसम तो कभी यात्राओं का । शुरू हो गया झांसी से रामलीला पार्ट टू । मीडिया भी चना जोर गरम बाबू मैं लायी मजेदार कह-कहके जनता जनार्दन को जीभ लपलपाने के लिए विवश कर रही है । अन्ना बुढऊ और सलवार वाले बाबा ने उपवास का अईसा चस्का लगाया, कि बरकऊ,मंगरुआ,ढोरयीं सब ससुरा बात-बात में उपवास रखने की धमकी देने लगे है। नेता परेशान कि आखिर माल कहाँ रखे और खाल कहाँ रखे । अब हर किसी के पास मोदी जईसन रुतवा तो है नाही कि एयरकंडीशंड कक्ष मा एकादशी ब्रत का उपवास ठोक दे और जब प्रतिक्रिया की बात आये तो अपने लालू भाई की तरह बिन मौसम बरसात हो जाए। गुड़गुडाने लगे हुक्का बिलावजह । ज़माना बदल गया है रामभरोसे, नेताओं की तरह रागदरबारी लेखक भी हाई टेक होने लगे हैं । एयरकंडीशंड कक्ष मा बैठके मेघ का वर्णन करने लगे हैं और बाबा लोगों की बात मत पूछो एक्सरसाईज के बदले रथ की साईज ठीक करवाने में लगे हैं । हम तो कहेंगे कि बाबाजी को रथयात्रा का पेटेंट करा ही लेना चाहिए । एक-दो और ट्रस्ट बन जायेंगे, एक-दो और बाल-गोपाल पैदा हो जायेंगे ।"
नारी आज भी कमजोर और पराधीन
क्यों ?
प्रश्न नारी की अस्मिता का नहीं
अबला घोषित करने का है
अपना जेहन टटोलो
और इस झूठ को
समझने ही कोशिश करो
समझ जाओ तो
जानने की कोशिश करो
क्यों ?
कोख से शुरू होकर
स्तन-पान और
फिल्म का प्रोमो यू ट्यूब पर चल रहा है, जिसे काफी पसंद किया जा रहा है
जयपुर. राजस्थानी फिल्मों के जाने-माने अभिनेता सन्नी अग्रवाल की नई फिल्म भक्त धन्ना जाट को फिल्म सेंसर बोर्ड ने पास कर दिया है। इसे यू सर्टिफिकेट दिया गया है। फिल्म की अवधि दो घंटे दस मिनट है।
सन्नी अग्रवाल ने बताया कि अब हम फिल्म के प्रमोशन में जुट गए हैं। फिल्म का प्रोमो यू ट्यूब पर चल रहा है, जिसे काफी पसंद किया जा रहा है। साथ ही सोशल साइट फेसबुक पर भी इसे काफी अच्छा रेस्पांस मिल रहा है। जल्द ही दर्शक अपने प्रिय भक्त धन्ना जाट को सिनेमा घरों में देख पाएंगे। प्रवक्ता ओपी भार्गव ने बताया कि नेहरिया फिल्म्स प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म के निर्माता हरिप्रकाश नेहरिया हैं। इसे निर्देशित किया है हुसैन ब्लॉच ने तथा कैमरा मैन हैं यूजिन डिसूजा। संगीत सतीश देहरा ने दिया है तथा कहानी एवं गीत सूरज दाधीच ने लिखे हैं। सन्नी अग्रवाल, मनीषा मुंगेकर, छाया जोशी, हास्य कलाकार ओपी भार्गव, रामकरण चौधरी, सोनू मिश्रा, मंजू अग्रवाल ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं।
भगत धन्ना जाट का प्रोमो यू ट्यूब पर देखने के लिए टाइप करें-राजस्थानी मूवीज भगत धन्ना जाट।
ठोकर न मारें
दिखाकर रोशनी, दृष्टिहीनों को,
और प्रदीप्यमान सूरज को,
रोशनी का तो अपमान मत कीजिए !!!
और न ही कीजिए अपमान,
सूरज का और दृष्टिहीनों का.
इसलिए डालिए रोशनी उनपर,
जिन्हें कुछ दृष्टिगोचर हो,
ताकि सम्मान हो रोशनी का,
और देखने वालों का आदर.
प्रोफेशन बनाम इमोशन
-अजय ब्रह्मात्मज
साहिल संघा की इस फिल्म के हीरो-हीरोइन जायद खान और दीया मिर्जा हैं। दोनों फिल्मी टाइप किरदार हैं। उन्हें एक-दूसरे के प्रति प्यार का एहसास होता है और फिल्म के अंत तक अपनी झिझक और झेंप में वे उलझे रहते हैं। लव बेकअप्स और जिंदगी को थोड़े अलग नजरिए से देखें तो ध्रुव (वैभव तिवारी) और (राधिका) पल्लवी शारदा ज्यादा तार्किक और आधुनिक यूथ के रूप में उभरते हैं। अगर उन दोनों को नायक-नायिका के तौर पर पेश किया जाता तो बात ही अलग होती। दोनों इमोशनल होने के साथ समझदार भी हैं, लेकिन हिंदी फिल्मों में नायक-नायिका होने के लिए जरूरी है कि आप रोमांटिक हों। अगर आप व्यावहारिक, तार्किक और प्रोफेशनल हुए तो उसे निगेटिव और ग्रे बनाने-समझाने में हमारे निर्देशक और दर्शक नहीं चूकते।
Sunday, October 9, 2011
समय निरन्तर निर्बाध गति से आगे ही आगे चलता रहता है, न तो कभी मुड़ कर पीछे देखता है और न ही किसी के लिए क्षण मात्र ही रुकता है। समय की गति के साथ परिवर्तन भी लगातार होते रहते हैं। रीति-रिवाज, आचार-विचार, जीवन शैली सभी कुछ बदल जाते हैं। इन परिवर्तनों ने मुझे अपने घर के रसोईघर में पाटे पर बैठकर, परसी गई थाली का आचमन कर के भगवान का भोग लगाकर, भोजन करने वाले व्यक्ति से जूते-चप्पल पहने हुए, बगैर ईश्वर को याद किए, डायनिंग चेयर पर बैठकर डायनिंग टेबल पर छुरी-चम्मच से खाना खाने वाला इंसान कब और कैसे बना दिया, मैं समझ ही नहीं पाया। मैं जान ही नहीं पाया कि कैसे मैं ग्रामोफोन के जमाने से डी.वी.डी. के जमाने तक कैसे पहुँच गया?
तुम्हारा
अंदाज़ बड़ा निराला
निरंतर
मन को लुभाता
दिख दिख कर
छिप जाना
हँस हँस कर रूठ जाना
खूब बात करना
फिर चुप्पी साध लेना
कभी मुंह चिढाना
फिर डर कर
माँ की गोद में मुंह
छुपाना
बज़्मे-ज़ीस्त सजाकर देख,
क़ुदरत के संग गा कर देख।
घर आएगा नसीब तेरा,
अपना पता लिखाकर देख।
रब तो तेरे दिल में ही है,
सर को ज़रा झुका कर देख।
विरह की वेदना और तिरस्कार के दंश ने देह को जैसे जला दिया हो। किशोर मन पर सिनेमा का असर था और दैहिक सुख की अनुभूति के आनन्द को लेकर वह उद्धत भी। प्रतिबंध से युवा मन विद्रोह कर उठता है और जब वह विद्रोह करता है आगे पीछे की परवाह भी नहीं करता। यही युवा मन आज परवाह की लक्ष्मण रेखा को लांघ चुका था। मेरा भी मन अब विद्रोही हो गया था और इस विद्रोह को प्रकट भी करने लगा था। शाम मंे छत पर से टहलते हुए विद्रोही गीत गा रहा है-जब जब प्यार पे पहरा हुआ है, प्यार और भी गहरा, गहरा हुआ है। जब रात गहराने लगी तो मिलन की उम्मीद भी अपना दामन छुड़ाने लगा पर कभी कभी सबकुछ उसी तरह नहीं होता जिस तरह आप सोंचते है। मैंने हौसला नहीं छोड़ा और आहिस्ते से अपनी छत से उतर कर रीना के घर की ओर चल दिया। पता नहीं कौन किस वक्त पकड़ ले। दिल घबड़ा रहा था और मन मचल रहा था। चल पड़ा। जिस कमरे में रीना सोती थी उसके खिड़की के पास जा कर एक ढेला फेंक दिया। शायद सो गई होगी तो जाग जाएगी। उधर से हल्की सी आहट हुई। वही है।
तो पिरोगराम में थोडा चेंजमेंट ये है कि भोर में वन लाईनर केपसूल दिया जाएगा और शाम को बुलेटिन जारी होगा …देखिए बांचिए और जांचिए