सियासत कमज़ोर है और डरपोक भी , सीना तान के अडा करिए ,
क्यों डिग जाता है विश्वास जरा से झटके से , विश्वास को खडा करिए ,
हर बार कोई क्यों लडे आपके लिए , आपकी लडाई है खुद लडा करिए,
लोकतंत्र में सबसे बडा है आम आदमी , तो आम आदमी को बडा करिए,
इतना बडा कि वो सब कुछ लील जाए , और सियासत की हर कुर्सी छील जाए
"अब जो होना है हो जाने दो , एक आध को भी खो जाने दो ,
जो जगे हैं उन्हें झिंझोडे रखो , जो उंघ रहें हैं उन्हें सो जाने दो,
नहीं होगा , नहीं होगा कब तक होगा ,अबकि तो ये हो जाने दो,
होती है कयामत तो हो जाए , अब क्रांति बीज़ को बो जाने दो ,"
9 अगस्त को ही क्यों 10 , 11 ,12 और तमाम तारीखों में नई नई क्रांतियों को जन्म लेने दो , जनलोकपाल ही क्यों , कालेधन का मुद्दा ही क्यों , भ्रष्टाचार , न्यायिक कदाचार , जमाखोरी , टैक्स चोरी ..सबको मुद्दा बनाओ और इतनी लडाइयां शुरू करो कि सियासत की रुह कांप उठे । निराशा से बाहर निकलो पागलों कि ये महज़ कुछ कुर्सियां हैं ,तोड डालो इनके पाए और धरती पर ले आओ इन्हें । उठो आगे बढो ,एक दूसरे का साथ दो और बढते चलो
ये क्यूं नहीं देखते आप कि इस उथल पुथल ने ,
आम आदमी को इक आम आदमी के साथ जोड दिया,
ये जो उठे हैं आज हाथ मुट्ठी बन के एक साथ , देखिएगा
कल बनके मुक्का इन्हीं मुट्ठियों ने , जो न सियासत का मुंह तोड दिया ।
और यकीन जानिए कि ऐसा होगा और जरूर होगा
जो ये हमारा ही कसूर है ,कि आज सियासत होके बैठी है मगरूर ,
तो तोडेगी अवाम ही इक दिन , और टूटेगा कुर्सी का ये गरूर ,
बेशक नए चेहरे होंगे और नई लडाई भी हो सकती है ,
बेशक हम रहें न रहें , लेकिन ये तय है ये सत्ता नहीं रहेगी जरूर ..
और उस दिन का इंतज़ार रहेगा
खडे रहो बुत बने हुए इसी तरह अगर तुम अपने साथ खुद चल नहीं सकते ,
खुद नहीं बदलना चाहते , कहते फ़िर रहे, वो ,व्यवस्था को बदल नहीं सकते
जो घुटने टेक दिए तुमने आज यहीं तो फ़िर लड तुम , कल नहीं सकते ,
जो सोना हो तो तप के कुंदन बनो , चंद चिंगारियों से यूं जल नहीं सकते,
सवाल उठाया/पूछा जा रहा है कि क्या अन्ना टीम को राजनीति में आना चाहिए ..जवाब सिर्फ़ एक ..क्यों नहीं ..मेरे ख्याल से तो हर ईमानदार , काबिल और क्षमतावान को राजनीति में आना चाहिए ....नहीं आ रहे हैं तभी तो ये हाल है ..लेकिन सवाल का उत्तर हां या ना में देने से इतर मैं सोच रहा हूं कि ..जनलोकपाल विधेयक ...ये मुद्दा और इस मुद्दे की लडाई आज कहां है ..अब बाबा रामदेव का .विदेशों से काला धन वापस लाने का मुद्दा लडा जाना प्रस्तावित है ..उसे भी हो जाने दिया जाए , इस सरकार को सांस लेने की फ़ुर्सत नहीं दी जानी चाहिए । व्यवस्था परिवर्तन ....ये बहुत बडा सवाल है ..हल करने में बरसों लगेंगे और लगें भी तो हल किया ही जाना चाहिए ..अभी तो सिर्फ़ एक बात घूम रही है दिमाग में ,
आज के सबक को आप कुछ यूं पढिए ,
अपनी अपनी लडाई अब खुद लडिए ,.....
कैसे ये तय करना होगा ..प्रश्न बहुत सारे हैं ..विस्तार से लिखने का प्रयास करता हूं जल्दी ही.........