पिछले दिनों अपने जयपुर प्रवास के दौरान एक समाचार पर मेरी नज़र ठिठक गई । खबर कुछ इस तरह की थी कि एक विधायक ने को कि विपक्षी पार्टी के थे उन्होंने अपने क्षेत्र की समस्याओं को आधार बना कर पिछले एक वर्ष में लगभग छ: हज़ार पत्र सरकार को और संबंधित अधिकारियों को लिख दिए और ये सिलसिला बदस्तूर जारी रखा हुआ है । इसका परिणाम ये हुआ है कि सरकार को मजबूर होकर शर्म के मारे उसमें से बहुत सारे कार्य , सुधार आदि करवाने पड गए । इस खबर ने मुझे अपने बीते दिनों की याद दिला दी ।
मैं कुछ दिलचस्प बातें आज आपके सामने बांट रहा हूं । मैंने खुद यही तरीका आज से लगभग बीस वर्ष पहले अपनाया था किंतु मैं संपादकों के नाम पत्र लिखता था । अपने छात्र जीवन से लेकर नौकरी के संघर्ष के दिनों में अपने संपादकीय पत्रों से न सिर्फ़ मैंने स्थानीय मुद्दों को उठाया बल्कि स्थानीय गडबडियों को प्रकाश में ला कर , ग्राम मुखिया एवं मंडल और जिला के अधिकारियों तक को मुश्किल में डाला था ।दिल्ली में आने के बाद भी कुछ समय तक ये सब चलता रहा और रोज़ दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों से लेकर दिल्ली सरकार को पत्र लिखने का काम मैं करता किंतु पिछले कुछ समय से ये सिलसिला थोडा धीमा पड गया था । लेकिन अब पुन: ये फ़ैसला किया है कि उस मुहिम को फ़िर से नए सिरे से शुरू किया जाए ।
आज से रोज़ एक चिट्ठी नाम के मिशन को शुरू करने जा रहा हूं और यदि आप सब इससे जुडें अपने अपने क्षेत्रों की समस्याओं को , कमियों को , गडबडियों को बार बार सरकार और उसके नुमाईंदों के सामने रखें तो यकीनन उसका प्रभाव और परिणाम जल्दी ही देखने को मिल जाएगा । ये रही मेरी पहली चिट्ठी