सबसे पहले देखते हैं कि बीबीसी ब्लॉग्स पर इन दिनों कौन क्या लिख रहा है आप भी देखिए
ये अंदाज़े गुफ़्तगू क्या है?
विनोद वर्मा | शुक्रवार, 08 अक्तूबर 2010, 15:22 IST
न्यूज़ीलैंड के स्टार टीवी एंकर पॉल हैनरी ने जो कुछ किया उससे आप चकित हैं? मैं नहीं हूँ.
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ जिस तरह के शब्दों का प्रयोग उन्होंने किया वह असभ्य, अभद्र और असंवेदनशील है.
इसे सुनने-देखने के बाद मैं भी अपमानित महसूस कर रहा हूँ. नाराज़ भी हूँ. लेकिन चकित मैं बिल्कुल भी नहीं हूँ.
चकित इसलिए नहीं हूँ क्योंकि यह एक व्यक्ति की ग़लती भर नहीं है. यह एक मानसिकता का सवाल है. जिसके दबाव में पॉल हैनरी शीला दीक्षित की खिल्ली उड़ाते हैं. इस मानसिकता से हज़ारों भारतीय हर दिन पश्चिमी देशों और अमरीका में रुबरू होते हैं.
यह मानसिकता पूंजीवादी और सामंतवादी मानसिकता है.
अब देखिए कि नवभारत टाईम्स ब्लॉग्स मंच पर आज कौन अपनी ताजी पोस्ट के साथ हाज़िर हैं …
दिल में है दिल्ली
गेम्स के बहाने सड़कों पर अनुशासन
दिलबर गोठी Monday October 11, 2010
'बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का'...सचमुच कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर दिल्ली की सड़कों की कल्पना करके दिल की धड़कनें बढ़ जाती थीं। सड़कें चलने लायक नहीं रहेंगी, हर तरफ जाम रहेगा, डेडिकेटेड गेम्स लेन से मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा - इन सब बातों ने वाकई दिल्ली को बहुत डरा दिया था। यह भी माना जा सकता है कि इतना डरा दिया जाए कि लोग अपनी गाड़ियों को गैराज के भीतर ही रखें या रात 8 बजने के बाद भी लेन में जाने से डरें। मेट्रो पर बोझ बढ़ गया और धक्का-मुक्की में इजाफा हुआ लेकिन सड़कों का हाल देखकर दिल बाग-बाग हो रहा है। अस्पताल में एक रिश्तेदार को देखने आए मित्र ने बताया कि साउथ दिल्ली से सेंट स्टीफंस महज 20 मिनट में पहुंच गया हूं तो आनंद विहार से तिलक नगर जाना सिर्फ 40 मिनट में संभव हो गया। गेम्स के दौरान सड़कों पर 20 साल पहले के खुलेपन का अहसास होने लगा।
तज़ार करूंगा ...हायं ...देखिए अमित जी मैं ज्यादा देर नहीं रुकूंगा ..झा जी बुलेटिन ...धू.. मर्दे ..नहीं पढे तो क्या पढे ?
खबर :आज रात नौ बजे मैं आपका इंतजार करूंगा : अमिताभ बच्चन
नज़र :- सर जी . आज रात को .....देखिए ओईसे तो अब हम किसी के जन्मदिन के पाल्टी उलटी में शरीक नहीं होते हैं ..का करें जी ..कामे इतना होता है कि ..कहा का जाए ...मगर अब आपका बात भी तो नहीं टाल सकते न ....काहे से आज तो आप बर्थडे बॉय हैं ....तो आज तो मानना ही पडेगा ...फ़िर आप रिटर्न गिफ़्ट भी तो बडा ही भारी भरकम रखे हैं ...ऊ का कहते हैं आप ...एक अरब दस करोड भारतीय ...कौन बनेगा करोड पति ....पूछिए मत एतना गुदगुदी होता है .....अरे ई सोच के नहीं कि करोड पति बन जाएंगे ..बल्कि ई सोच के कि दुनिया का एतना आबादी तो अपने ही देश में है ...तो फ़िर ई महाप्रलय किसी दूसरा देश का लोग कैसे ला सकता है ,.....अच्छा सुनिए न ..आ तो हम जईबे करेंगे ....मुदा तनिक फ़्री जल्दी कर दीजीएगा ....और हां ऊ ..नि:शब्द वाली हीरोईनी को बुलाए हैं न .....बंकिया तो आपकी जो भी हीरोईन साथिन होगी ...ऊ सबको तो हमको मौसी प्रणामे कह के आना पडेगा .....चलिए आते हैं ....तब तकले आपको ..जन्मदिन का बहुते बहुते मुबारकबाद जी ...काहे से कि रिशते में तो आप सबके बाप होते हैं ...नाम है ..शहंशाह ..... हायं ..।
>> सोमवार, ११ अक्तूबर २०१०
आज, 11 अक्टूबर को
का जनमदिन है।
अमित शर्मा जी परिचय करा रहे हैं आज देखिए किनसे
आज आप सभी का ब्लॉग-जगत की नई रौशनी की किरण या यूँ कह लीजिये की रश्मि रेख से परिचय करवाने की मंशा है, जिसका आमंत्रण ब्लॉग खुद देता है ..................
"गुलजार चमन को करने को, आओ मिल कर लायें बहार।
सूखे मरुथल हित, बादल से, मांगें थोड़ी शीतल फुहार।
सूरज, चंदा, तारे, दीपक, जुगनू तक से ले रश्मि-रेख ;
जीवन में कुछ उजास भर लें, मेटें कुछ मन का अंधकार ।।"
- अरुण मिश्र
ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा इस ब्लॉग और इन ब्लोगर के बारे में. बस ब्लॉग का रस-पान ब्लॉग पर ही आकर कीजिये, बस आपके चखने के लिए कुछ बूंदे यहाँ रख देता हूँ >>>>>
हमेशा इन्तज़ार में तेरे मगर ऐ दोस्त,
रहेंगी आंखें बिछी और खुली हुई बाहें॥"
>>>>>>>>>>>>>>>>>>
केबीसी ने मेरी जिंदगी को नया मोड़ दिया : अमिताभ
मुंबई, 9 जुलाई
आर यू श्योर, कॉन्फिडेंट, लॉक कर दिया जाये। इन तीन जुमलों ने अमिताभ बच्चन और केबीसी को टेलीविजन जगत के सबसे बड़े गेम शो के तौर पर स्थापित कर दिया। अमिताभ के डूबते करियर को इस शो ने सहारा दिया और अमिताभ के अंदाज ने स्टार प्लस को टेलीविजन की टीआरपी की शिखर पर पहुंचा दिया। इस शो को अमिताभ के अलावा शाहरुख खान ने भी होस्ट किया, लेकिन वो अमिताभ सरीखा जादू नहीं बिखेर सके। अब अमिताभ केबीसी फोर लेकर आ रहे हैं। इस बार इस कार्यक्रम का प्रसारण सोनी पर होगा।
इस बार आप नए चैनल पर केबीसी की मेजबानी करेंगे। तीसरी बार आपके इस कार्यकम से जुड़ने की क्या वजह रही?
इस बार केबीसी के अधिकार सोनी के पास थे और उन्होंने मुझसे संपर्क किया। इससे जुड़े शोध और प्रस्तावित बदलावों के बारे में उन लोगों ने मुझे बताया। इसके बाद मैं इससे जुड़ने पर सहमत हो गया।
SATURDAY, OCTOBER 9, 2010
मेरी एक सहेली अपने जीवन में एक बड़ा परिवर्तन कर रही थी - ५० वर्ष से जिसके लिये वह कार्य करती रही, उसे छोड़कर अब वह एक नए काम के लिये जा रही थी। अपने सहकर्मियों से विदा लेते समय वह रोती भी जा रही थी और अपने आँसुओं के लिये क्षमा भी मांगती जा रही थी।
अपने आँसुओं के लिये हम कभी कभी खेदित क्यों होते हैं? शायद हम आँसुओं को कमज़ोरी की निशानी और हमारे चरित्र में किसी बात के लिये असहाय होने का सूचक मानते हैं और अपनी कमज़ोरी को लोगों के सामने लाना नहीं चाहते। या, हो सकता हो कि हमें लगता है कि हमारे आँसु दूसरों को दुखी कर रहे हैं इसलिये हम उनसे क्षमा मांगते हैं।
हमें स्मरण रखना चाहिये कि हमारी भावनाएं हमें परमेश्वर द्वारा दी गई हैं, हम उसके स्वरूप में सृजे गए हैं (उत्पत्ति १:२७)। परमेश्वर भी खेदित होता है, दुखी होता है - उत्पत्ति ६:६, ७ में बताया है कि वह अपने लोगों के पापों और उनके कारण जो उसमें और लोगों में विच्छेद आया, उससे वह दुखी और क्रोधित हुआ। देहधारी परमेश्वर, प्रभु यीशु, अपने मित्रों मरियम और मार्था के साथ उनके भाई लाज़र की मृत्यु पर शोकित हुआ, उसकी आत्मा दुखी हुई और इस दुख में वह सबके सामने रोया भी (यूहन्ना ११:२८-४४), किंतु अपने दुख के खुले प्रगटिकरण के लिये उसने किसी से क्षमा नहीं मांगी।
शनिवार, २ अक्तूबर २०१०
इंसानियत गढ़ती है स्त्री...........ये शब्द हैं राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के , जिनके विचार हर दौर में प्रासंगिक थे पर आज असमानता और हिंसा भरे समाज में कुछ ज्यादा ही प्रासंगिक प्रतीत हो रहे हैं। आज के दिन उन्हें नमन करते हुए उनके सद्विचारों की बात....
गांधीजी हमेशा से ही सर्वोदय यानि समग्र विकास की सोच को लेकर आगे बढे, जिसमें पूरे समाज की उन्न्ति की बात की गई। बापू का मानना था कि ‘ महिला और पुरूष के बीच कोई भेद नहीं समझा जाना चाहिए, वे सिर्फ शारीरिक तौर पर एक दूसरे से भिन्न हैं। ’ गौरतलब है कि आज भी हमारे समाज में महिलाएं कई तरह के भेदभाव का शिकार होती है। ऐसे में उनकी यह प्रेरक विचारधारा पूरे समाज को नई राह दिखाने के लिए आज भी प्रासंगिक है। बापू के शब्दों में ‘ पत्नी पति की गुलाम नहीं बल्कि एक साथी और मददगार है जो उसके सुख-दुख में बराबर की भागीदार होने के साथ-साथ पति के समान ही अपने रास्ते स्वयं चुनने के लिए भी स्वतंत्र है। ’ हालांकि हमारे संविधान में भी महिलाओं को पुरुषों के समान ही अधिकार दिये हैं पर सच यह भी है कि इस दिशा में अभी लंबा सफर तय करना बाकी है । उनका मानना था की ‘ स्त्री जीवन के समस्त धार्मिक एवं पवित्र धरोहर की मुख्य संरक्षिका है। ’ जिसका सीधा सा अर्थ यह है कि औरत इंसानियत को गढ़ती है। उसके व्यक्तित्व में प्रेम, सर्मपण, आशा और विश्वास समाया हुआ है।
OCT 9, 2010
राही तू बस चलता चल ।
कलका देखना तू कल ॥
गांव, शहर और मफ्सल ।
पीछे छोड़, आगे बढ़ चल ॥
कोई सोये या जागे ।
सर पे धुन है बढ़ आगे ॥
राही पथ पे कितने छांव ।
फिरभी न रुकते हैं पांव ॥
पर्वत या नदीया नाले ।
पैरों में पढते छाले ॥
लेकर साथियों को बढ़ ।
सामने नज़रों को गढ़ ॥
धरती उठेगी थर्रा ।
09 OCTOBER 2010
आप के मन में कोई योजना है। आप प्रारम्भ करना चाहते हैं। दुविधा है कि अभी प्रारम्भ करें या थोड़ा रुककर कुछ समय के बाद। संशय में हैं आपका मन क्योंकि दोनों के ही अपने हानि-लाभ हैं।
अभी करने से समय की हानि नहीं होगी पर क्रियान्वयन के समय ऐसी समस्यायें आ सकती हैं जिन पर आपने पहले भलीभाँति विचार ही नहीं किया हो। ऐसा भी हो सकता है कि समस्यायें इतनी गहरी हों कि आपकी योजना धरी की धरी रह जाये।
वहीं दूसरी ओर भलीभाँति विचार करने के लिये समय चाहिये। जितना अधिक आप विचार करेंगे, भावी बाधाओं को उतना समझने में आपको सहायता होगी। आप विस्तृत कार्ययोजना बनाने लगते हैं पर जब तक कार्य प्रारम्भ करने का समय आता है तो बहुत संभावना है कि कोई अन्य व्यक्ति उस विचार पर कार्य प्रारम्भ कर चुका हो या परिस्थितियाँ ही अनुकूल न रहें।
Sunday, October 10, 2010
माँ होती है सबसे प्यारी
कभी न छोड़े साथ हमारा,
इस दुनिया में सबसे न्यारी!
हमको प्यार बहुत करती है,
माँ होती है सबसे प्यारी!
रावेंद्रकुमार रवि
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Monday, October 11, 2010
अस्थि-पंजर ढ़ीले हैं उन चौकियों के। बीच बीच के लकड़ी के पट्टे गायब हैं। उन्हे छोटे लकड़ी के टुकड़ों से जहां तहां पैबन्दित कर दिया गया है। समय के थपेड़े और उम्र की झुर्रियां केवल मानव शरीर पर नहीं होतीं। गंगा किनारे पड़ी चौकी पर भी पड़ती हैं।
शायद रामचन्द्र जी के जमाने में भी रही हों ये चौकियां। तब शिवपूजन के बाद रामजी बैठे रहे होंगे। अब सवेरे पण्डाजी बैठते हैं। पण्डा यानी स्वराज कुमार पांड़े। जानबूझ कर वे नई चौकी नहीं लगते होंगे। लगायें तो रातोंरात गायब हो जाये।
संझाबेला जब सूरज घरों के पीछे अस्त होने चल देते हैं, तब वृद्ध और अधेड़ मेहरारुयें बैठती हैं। उन चौकियों के आसपास फिरते हैं कुत्ते और बकरियां। रात में चिल्ला के नशेडी बैठते हैं। अंधेरे में उनकी सिगरेटों की लुक्की नजर आती है।
बस, जब दोपहरी का तेज घाम पड़ता है, तभी इन चौकियों पर कोई बैठता नजर नहीं आता।
दो साल से हम आस लगाये हैं कि भादों में जब गंगा बढ़ें तो इन तक पानी आ जाये और रातों रात ये बह जायें चुनार के किले तक। पर न तो संगम क्षेत्र के बड़े हनुमान जी तक गंगा आ रही हैं, न स्वराजकुमार पांड़े की चौकियों तक।
रविवार की शाम को कैमरा ले कर जब गंगा किनारे घूमे तो एक विचार आया - घाट का सीन इतना बढ़िया होता है कि अनाड़ी फोटोग्राफर भी दमदार फोटो ले सकता है।
Posted by AlbelaKhatri.com Sunday, October 10, 2010
प्रति,
सम्मान्य सूचना एवं प्रसारण मन्त्री,
भारत सरकार,
नयी दिल्ली
प्रसंग : हिन्दी चिट्ठों ( ब्लॉग ) के लिए विज्ञापनीय सहयोग तथा
चिट्ठाकारों के लिए अन्य सुविधाएँ प्राप्त करने के क्रम में ।
सन्दर्भ : अन्तरजाल पर हिन्दी चिट्ठाकारों ( ब्लोगर्स ) द्वारा सतत
किया जा रहा राजभाषा हिन्दी का विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार ।
आदरणीय महोदय,
जय हिन्द !
उपरोक्त सन्दर्भ में सादर निवेदन है कि आज हिन्दी चिट्ठाकारी
( ब्लोगिंग ) अपने भरपूर यौवन पर है अर्थात तीव्रता से सक्रिय
एवं अत्यन्त लोकप्रिय है । दुनिया भर में लगभग 25 हज़ार हिन्दी
ब्लोगर्स लगातार इस पर काम कर रहे हैं तथा सामाजिक सरोकार
के अलावा, भारतीय संस्कृति, मानवीय एकात्मता, वैश्विक
उष्णता, पर्यावरण, खेल व स्वास्थ्य ही नहीं अपितु जीवन से जुड़े
हर पहलू पर अपने आलेखों के माध्यम से भारत व हिन्दी की
ध्वजा फहरा रहे हैं । इस विराट अभियान से हिन्दी बहुत
लोकप्रिय हो रही है और हिन्दी समाचार व साहित्य भी लोकप्रिय
हो रहा है ।
वैसे तो बरसात के मौसम की विदाई के साथ ....धूप की चटकीली चमक जैसे जैसे बढती जाती है .....उन तमाम लोगों के मन पर शायद मेरी तरह एक उदासी की पर्त जमने लगती है .....जो कहीं न कहीं ..अपने परिवार ....अपनी जडों से दूर कहीं जडें जमाने की जद्दोज़हद में लगे हुए हैं ....और वो चरम पर तब पहुंच जाती है जब हम जैसा कोई ..टेलिविजन पर दुर्गा पूजा की कवरेज देख देख ....उस पल को कोस रहा होता है ...जिसमें उसे ऐसे महानगरों में आने को अभिशप्त होना पडा था । खैर अब तो ये दस में नौ न सही तो आठ की नियति तो बन ही चुकी है ..।
बॉलीवुड ऐक्ट्रेस कैटरीना कैफ अपने शांत स्वाभाव के लिए जानी जाती हैं मगर हाल ही में उन्होंने अपने को स्टार इमरान खान को एक नहीं बल्कि 16 थप्पड़ जड़ दिए|घबराइए नहीं उनके और इमरान के बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ जो कैट ने ऐसा किया हो|दरअसल कैट ने इमरान को मेरे ब्रदर की दुल्हन की शूटिंग के दौरान एक सीन फिल्माने के दौरान इतने सारे थप्पड़ मारे|
कैटरीना इमरान केसाथ यशराज की अगली फिल्म में काम कर रही हैं जिसके एक इमोशनल सीन में कैटरीना को इमरान को थप्पड़ मारने थे|इमरान चाहते थेकि यह सीन रियल लगे इसलिए उन्होंने कैटरीना को कहा कि वह उन्हें थप्पड़ मारने से बिलकुल न डरें|
Sunday, October 10, 2010
हिन्दुस्तान में धर्म व जातिगत राजनीति कोई नया मुद्दा नहीं है आम बात है ! विगतदिनों मध्यप्रदेश दौरे पर टीकमगढ़ में कांग्रेस पार्टी के युवा सेनापति राहुल गांधी कायह स्टेटमेंट कि सिमी और आरएसएस दोनों एक जैसी विचारधारा के कट्टरवादीसंघठन हैं, दोनों में वैचारिक तौर पर कट्टरता में कोई फर्क नहीं है, राहुल बाबा नेस्पष्ट तौर पर अपने समर्थकों के समक्ष यह कह दिया कि संघ व सिमी जैसीविचारधारा रखने वालों की कांग्रेस पार्टी में कोई जगह नहीं है हालांकि राहुल गांधी केभाषाई तेवर देखकर यह स्पष्ट झलक रहा था कि वे मध्यप्रदेश में दिग्विजयसिंह कीबोली बोल रहे हैं। संघ की सिमी से तुलना करना निसंदेह एक विवादास्पद वक्तव्यकहा जा सकता है क्योंकि सिमी एक प्रतिबंधित संघठन है, और जो संघठनप्रतिबंधित हो उससे किसी जनसामान्य से जुड़े किसी संघठन की तुलना करना अपनेआप में विवाद को जन्म देता है, खैर तुलनात्मक स्टेटमेंट, नासमझी, समझदारी,समर्थन, विरोध, परिपक्वता, अपरिपक्वता, ये अलग मुद्दे हैं इन मुद्दों परचर्चा-परिचर्चा के लिए राजनैतिक दल सक्रीय व क्रियाशील हैं । हालांकि यह मुद्दाइतना बड़ा नहीं है कि इस पर चर्चा की जाए, लेकिन इस मुद्दे अर्थात राहुल गांधी केसिमी व आरएसएस के संबंध में दिए गए कथन के अन्दर छिपे रहस्यात्मककूटनीतिक भाव पर चर्चा करना लाजिमी है, यहाँ पर रहस्यात्मक भाव से मेरातात्पर्य जातिगत व धर्मगत राजनीति से परे है ।
अपना कोई चेहरा
नही होता है भीड़ का,
भीड़ में मगर
अनगिन चेहरे होते हैं.
भीड़ में
जब लोग बोलते हैं,
तब समवेत स्वर
संवाद से परे हो जाता है.
भीड़ गुनती नहीं है कुछ भी;
भीड़ सुनती नहीं है कुछ भी,
भीड़ में मगर
अनगिन कान होते हैं.
Monday, October 11, 2010
अंडमान में घूमने-फिरने का खूब मजा है. पिछले दिनों मैं मम्मा-पापा के साथ डिगलीपुर गई. पापा ने बताया यह दक्षिण अंडमान का सबसे अंतिम क्षोर है. पापा को आफिस विजिट करने जाना था, सो वह चले गए. फिर मैं गेस्ट-हॉउस से बाहर निकली तो वहां ढेर सारे फूल दिखाई दिए. फिर तो मैंने मम्मा को आवाज़ दी और खूब फोटोग्राफी कराई.वाह, यह पीले-पीले फूल कित्ते अच्छे लग रहे हैं. वह भी ढेर सारे. इन पर तो तितलियाँ भी छिप जायेंगीं.और यह लाला वाला फूल तो ऐसा लग रहा है, जैसे मधुमखी ने अपना घर बनाया हो.
SUNDAY, OCTOBER 10, 2010
नमस्कार मित्रों!
आज कोई चर्चा न करने का मन बन गया। बीते सप्ताह, और उसके कुछ पहले कुछ ऐसी बातें हुईं कि मन रुक कर कुछ बात करने का हो गया।
कुछ मित्र चर्चा के अंदाज़ पर आपत्ति करते रहें हैं। कुछ इसमें लिए गए ब्लॉग्स के चयन पर शंका करते रहे हैं। कुछ को सिर्फ़ लिंक लेने से आपत्ति रही है। तो कुछ चर्चा में प्रयुक्त शब्दों के प्रति आपत्ति उठाते रहे हैं। कुछ को आपत्ति होती है कि उनके ब्लॉग को आपने उनसे पूछे बगैर क्यों शामिल किया, तो कुछ इस बात से ख़फ़ा हो जाते हैं कि उनकी पोस्ट को क्यों छोड़ दिया गया? कुछ कहते हैं कि आप मेल करके अपने लिंक का प्रचार मत करो, कुछ कहते हैं कि करो। कुछ मोडरेशन का सहारा लेते हैं, कुछ नहीं। कुछ कहते हैं कि आप कटोरे लेकर भीख मांगते क्यों हो, कुछ कहते हैं कि मांगो, मन करेगा तो दान देंगे, नहीं तो नहीं देंगे। कुछ कहते हैं कि मेरे ब्लॉग पर ऐसी नहीं वैसी टिप्पणी करो, कुछ कहते हैं कि जैसी मन करे वैसी करो।
10.10.2010
जवान बेटी को बाप ने कहा
जाना होगा अब तुम्हे अपने घर ,
बी. ए की करनी वही पढाई
ढूंढ़ लिया तेरे लायक वर ,
अब तक तुम हमारी थी
पर अब यहाँ से जाना होगा
जुदा होकर हमसे
नया घर बसाना होगा ,
MONDAY, OCTOBER 11, 2010
इसमें हैरानी की क्या बात है! गोरी चमड़ी वाले विदेशी हम काले भारतीयों के साथ हमेशा ऐसा ही सलूक तो करते रहे हैं! आजादी के पहले गुलाम भारत में भी और आजादी पश्चात स्वतंत्र भारत में भी। आजादी के छह दशक बाद भी कोई दावे के साथ यह नहीं कह सकता कि हम कालों के प्रति गोरों की मानसिकता में कोई उल्लेखनीय बदलाव आया है। यह तो हमारी सहनशीलता है और संभवत: विरासत में प्राप्त संस्कृति है जो हमें जैसे को तैसा सरीखा जवाब देने से रोक देती है। लेकिन आखिर कब तक? आस्ट्रेलिया में पुलिस ने एक वीडियो टेप जारी कर प्रचारित किया कि भारतीय छात्रों को सबक सिखाने का यह एक उम्दा तरीका है। भारत के किसी भाग में फिल्माई गई उस टेप में एक ट्रेन में बिजली के करेंट से कुछ लोगों के हताहत होने के दृश्यों को दिखाया गया है। क्या यह गोरों की विकृत सोच व दंभी मानसिकता का परिचायक नहीं?
सोमवार, ११ अक्तूबर २०१०
नवरात्र मातृ-शक्ति का प्रतीक है। एक तरफ इससे जुड़ी तमाम धार्मिक मान्यतायें हैं, वहीं अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराकर इसे व्यवहारिक रूप भी दिया जाता है। लोग नौ कन्याओं को ढूढ़ने के लिए गलियों की खाक छान मारते हैं, पर यह कोई नहीं सोचता कि अन्य दिनों में लड़कियों के प्रति समाज का क्या व्यवहार होता है। आश्चर्य होता है कि यह वही समाज है जहाँ भ्रूण-हत्या, दहेज हत्या, बलात्कार जैसे मामले रोज सुनने को मिलते है पर नवरात्र की बेला पर लोग नौ कन्याओं का पेट भरकर, उनके चरण स्पर्श कर अपनी इतिश्री कर लेना चाहते हैं। आखिर यह दोहरापन क्यों? इसे समाज की संवेदनहीनता माना जाय या कुछ और?
11.10.10
मुन्नी बदनाम ने एक बहुत उम्दा नस्ल का कुत्ता खरीदा . पहले दिन उस कुत्ते ने मुन्नी बदनाम के ड्राइंग रूम में बिछे कालीन पर पौटी कर दी . मुन्नी बदनाम ने उस कुत्ते को डाँटते हुए कहा - अगर तूने दुबारा पौटी की तो मैं तुझे खिड़की से बाहर फैंक दूंगी .वह कुत्ता रोज रोज कालीन पर पौटी करता रहा और मुन्नी बदनाम उठा उठाकर खिड़की से बाहर फैकती रही . यह देखते देखते आखिरकार उस कुत्ते के व्यवहार में तब्दीली आ गई और एक दिन उसने कालीन पर पहले पौटी की फिर खिड़की के रास्ते बाहर की और छलांग लगा दी .
००००००
और अब मिलिए रमेश सुथार जी के ब्लॉग से नाम है “ हम सब चोर हैं “
Monday, October 11, 2010
कभी सरकार ने यह जानने को कोशिश की - अदालतों में केस की संख्या दिन-बी-दिन क्या बढ रही है? किन-किन कारणोंन से अदालतों में केसों की संख बढ रही है?जिसके कारण आज देश की अदालतों में ४ करोड़ केस विचाराधीन है? केसों की संख्या कम की जा सकती है।कई केस तो एक दुसरे से जुड़े होते है. अगर इस प्रकार के केसों को मिला कर नई सिरे से सुनवाई की जाय तो? ७५% कासोने की संख्या कम हो जाएगी.
गंगा के बारे में लिखी गई कुछ बेहतरीन पोस्टों में से यकीनन ही एक ..
MONDAY, OCTOBER 11, 2010
गंगा पवित्रता का पर्यायसमझी जाती रही है। गंगाको पवित्र मानकर पूजाकरने अथवा उसमें स्नानकरने की प्रथा की कबशुरुआत हुई, इसकाठीक-ठीक विवरण देनाएक मुश्किल काम है।ऋग्वेद में गंगा की सिर्फएक बार चर्चा है। ऋग्वेदकी ‘गंगा’ सरस्वती है।फिर भी हम यह मान सकते हैं कि लगभग उत्तर वैदिक काल में गंगा महत्त्वपूर्ण हो चलीथी। पवित्रता की यह पूर्वपीठिका थी। निश्चित रूप से गंगा में स्नान करने की प्रथा कोएक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में मान्यता इसके बाद ही प्राप्त हुई होगी।
आर्ट गैलरी से
आर्ट गैलरी
प्रस्तुतकर्ता अल्पना
तुम
साभार : लोकसत्ता
सच बेहद खूबसूरत हो
नाहक भयभीत होते है
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा
प्रस्तुतकर्ता गिरीश बिल्लोरे
Sunday, October 10, 2010
आज मैं आपको एक परी की कहानी सुनता हूं. उस परी ने ख्वाब देखा आसमां में उड़ने का. उसके माता-पिता ने उसके पर को मजबूती देने के लिए हर नई कोशिश की. कोशिश, इसलिए कि उनके जैसे मामूली हैसियत की आदमी के लिए ख्वाब को सच्चाई में बदलना नामुमकिन सा था. लेकिन परी ने जुनून की हद तक मेहनत की और आज उसे झारखंड सहित पूरे देश को गर्व है. उस परी का नाम दीपिका है.
अग्निपक्षी अमिताभ
मादाम तुसाद के लंदन स्थित संग्रहालय में अमिताभ बच्चन का मोम का पुतला मौजूद है। इस पुतले को सुरक्षित रखने के लिए विशेष तापमान की जरूरत होती है। मोम के पुतले तो सुरक्षित रखे जा सकते हैं, लेकिन जिंदगी की तीखी और कड़ी धूप में हर तरह के पुतले पिघल जाते हैं।
अभी कुछ दिन पहले एक कामिक्स पढ़ रहा था "वेताल/फैंटम" का.. उसमे उसने एक ट्रक के पहिये को जैक लगा कर उठा दिया, वहाँ खड़े बहुत सारे जंगली लोगों ने एक नयी कहावत कि शुरुवात कर दी "वेताल में सौ आदमियों जितना बल है, उसने अकेले कई हाथियों जितना भारी मशीनी दानव को उठा लिया".. यह किस्सा बताने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि किवदंतियां अथवा दंतकथाओं में अतिशयोक्तियाँ शायद ऐसे ही अज्ञान कि वजह से आती है..
हज़ामत!
खदेरन दाढी बनवाने नाई के पास पहुंचा। उसने बात करने की गरज़ से नाई से यों ही पूछ दिया, “तुमने कभी किसी गदहे की हज़ामत बनाई है?”
नाई ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, “नहीं साहब! आज पहली बार बना रहा हूं”
सोमवार, ११ अक्तूबर २०१०
आजकल मन में भावनाऒं का सैलाव उठा है। जब बात झकझोड़ती है तो मन उद्वेलित हो जाता है। फिर भावनाओं का आवेग सारे बांध तोड़ उमड़ पड़ता है। जैसे सुनामी!
प्राकृतिक आपदाओं में सुनामी अब बड़े पैमाने पर जान-माल की तबाही का पर्याय बनने लगी है। छह साल पहले 2004 में देश के पूर्वी तट पर आए सुनामी में लाखों लोगों की जिंदगी तबाह हो गई थी। लाखों लोगों ने अपना सब कुछ गंवा दिया था।
१४ अक्तूबर को वर्ल्ड डिजास्टर रिडक्शन डे (World Disaster Reduction Day) मनाया जाता है। उस दिन तो हम देसिल बयना लेकर आएंगे। इसलिए आज ही उस पर विशेष प्रस्तुति करने का मन बन गया। सुनामी के कहर के बाद एक कविता लिखी थी। आज वही प्रस्तुत है।
दुर्नामी लहरें
मनोज कुमार
हुई पुलिन1 पर मौन, 1. पुलिन :: जल के हट जाने से निकली जमीन
उदधि की प्रबल तरंगे
सिर धुनकर।
हतप्रभ है जग,
अब वसुधा की
विकल वेदना सुन-सुनकर।
Monday 11 October 2010
प्रस्तुतकर्ता नीरज जाट जी
पिछली बार पढा होगा कि मैने अमरनाथ बाबा के दर्शन कर लिये। दर्शन करते-करते दस बज गये थे। अब वापस जाना था। हम पहलगाम के रास्ते यहां तक आये थे। दो दिन लगे थे। अब वापसी करेंगे बालटाल वाले रास्ते से। हमारी गाडी और ड्राइवर बालटाल में ही मिलेंगे।
अमरनाथ से लगभग तीन किलोमीटर दूर संगम है। संगम से एक रास्ता पहलगाम चला जाता है और एक बालटाल। यहां अमरनाथ से आने वाली अमरगंगा और पंचतरणी से आने वाली नदियां भी मिलती हैं। यहां नहाना शुभ माना जाता है। लेकिन अब एक और रास्ता बना दिया गया है जो संगम को बाइपास कर देता है। यह रास्ता बहुत संकरा और खतरनाक है। इस बाइपास वाले रास्ते पर खच्चर नहीं चल सकते। घोडे-खच्चर संगम से ही जाते हैं। इस नये रास्ते के बनने से यात्रियों को यह लाभ होता है कि अब उन्हें नीचे संगम तक उतरकर फिर ऊपर नहीं चढना पडता। सीधे ऊपर ही ऊपर निकल जाते है। इस बाइपास रास्ते की भयावहता और संकरेपन का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पर कई जगह एक समय में केवल एक ही आदमी निकल सकता है। नतीजा यह होता है कि दोनों तरफ लम्बा जाम लग जाता है। इसी जाम में फंसने और निकलने की जल्दबाजी की जुगत में मैं इस खण्ड का एक भी फोटू नहीं खींच पाया।
Sunday, October 10, 2010
चेतना
हर रोज़
प्रत्यक्ष ज्ञान के पासे
खेलती है
अवचेतन मन
लाचार सा सबूत
तलाशता है
.......
साबित करना तो
मुमकिन नहीं...
पर अलख साये
अक्सर...
दम घोंटते हैं......
Posted by Beji
SUNDAY, OCTOBER 10, 2010
महीनों से पंडित जी सत्यनारायण की
कथा करा रहे हैं,
और हर बार साधू बनिया की कहानी सुना रहे हैं
कथा नहीं सुनने पर कितनी दुर्गति हो सकती है
इसके लिए दृष्टान्त कलावती, लीलावती का बता रहे हैं
मेरी विपदाएं आज भी वहीँ अचल खड़ी हैं
क्यूंकि पंडित जी ने वो कथा आज भी नहीं कही है
बस लगातार साधू बनिया की कहानी बांचे जा रहे हैं
कहा हमने
१० अक्तूबर २०१०
प्राचीन कहावत है कि लक्ष्मी और सरस्वती एक स्थान पर नहीं रह सकती, यानि कि एक ही व्यक्ति का ध्यान कला और ज्ञान के साथ साथ भौतिक तत्वों की ओर नहीं जा सकता , इसलिए प्राचीन काल में पैसे से किसी का स्तर नहीं देखा जाता था, बल्कि भौतिक सुखों का नकारकर किसी प्रकार की साधना करने वालों को , ज्ञान प्राप्त करने वालों को धनवानों से ऊंचा स्थान प्राप्त होता था। यहां तक कि उस वक्त राजा भी ऋषि महर्षियों के पांव पखारा करते थे और अपने पुत्रों को ज्ञान प्राप्ति के लिए उनके पास भेजा करते थे। उच्च पद में रहनेवाले लोगों की संताने हर प्रकार के ज्ञान के साथ साथ नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान भी अर्जित करते थे। पर क्रमश: भौतिकवादी युग के विकास के साथ ही संपन्न लोग कला और साधना में रत लोगों का शोषण करने लगे ।
रविवार, १० अक्तूबर २०१०
साठ की उम्र में माँ बनना और सास - बहू संवाद......
किया है तूने मुझे ज़िंदगी भर तंग
जी भर के अब बदले चुकाउंगी |
दादी और नानी तो मैं पहले ही से थी
माँ बन के तुझको फिर से दिखाउंगी |
डाल के तेरी गोद में ननद और देवर
क्लब और पार्टियों में मौज उड़ाउंगी |
कहा था मैंने एक दिन जब बहू !
हो गया है मुझको तो गठिया
तूने कहा था पागल तो पहले ही से थी
अब गई हो पूरी की पूरी सठिया
देख लेना जी भर के अब
शुगर और बी. पी. तेरा. कैसे मैं बढ़ाउंगी |
रविवार, १० अक्तूबर २०१०
जला जला कर खुद को,खाक करते हैं क्यों
ज़िन्दगी अनमोल खज़ाना,जीना तो सीख लें।
देख कर औरों की खुशियाँ,कुढ़ते हैं क्यों
गैरों की खुशी में भी, हँसना तो सीख ले॥
SUNDAY, OCTOBER 10, 2010
कल 11 अक्टूबर को अमिताभ बच्चन का 68वां जन्मदिन है और कल ही शुरू हो रहा है 'कौन बनेगा करोड़पति' का चौथा संस्करण। इस अवसर पर उनसे एक विशेष साक्षात्कार के अंश..
[कल आपका जन्मदिन है। प्रशंसकों को क्या रिटर्न गिफ्ट दे रहे हैं?]
उम्मीद करता हूं कि मेरा जन्मदिन मेरे चाहने वालों के लिए खुशियों की डबल डुबकी हो। जन्मदिन तो आते रहते हैं, पर इस बार कौन बनेगा करोड़पति मेरे जन्मदिन पर शुरू हो रहा है, यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है।
Sunday 10 October 2010
आज जीवन के समीकरण इतने बदल गए हैं कि वे कहां जाकर रुकेंगे कुछ पता नहीं । भागमभाग वाली जिंदगी में अपने घर पर ज्यादा समय नहीं दे पाते लेकिन जो भी समय देते हैं उसे बड़े ही कूल वातावरण में बिताने का प्रयास रहता है । अब चूंकि कूल वातावरण चाहिए तो घर की साजोसज्जा भी कूल बनानी पड़ेगी सो आज हर कोई अपने घर को उसी हिसाब से डिजायन करने लगा है । लिविंग एरिया ऎसा होना चाहिए तो बेडरूम वैसा ,माड्यूलर किचिन के तो कहने ही क्या । अब बारी है बाथरूम की सो यह भी हर मायने में कूल ही होना चाहिए। यहां बाथरूम के कुछ डिजायन दिए जा रहे हैं जिसमें से अपने लिए बाथरूम आप खुद ही चुन लें..........
OCTOBER 11, 2010
एक बात समझ में नहीं आती है की कुछ महिलाओ को दूसरे के जीवन में टाँग अड़ाने या दूसरों के घरों में ताका झाकी करने की आदत क्यों होती है | मैं तो बड़ी परेशान हुं एक ऐसी ही महिला से कुछ लोग उनको नारीवादी कहते है तो कुछ लोग उनको वो क्या कहते है हा याद आया घर तोडूऔरत | कहते है उनको दूसरों के घर तोड़ने की आदत है | तलवार जी की बहु का एक साल में दूसरी बार मिस कैरेज हो गया बेचारी को पहले से ही दो लड़कियाँ है | हमारी नारीवादी वहा चली गई कहने लगी क्या बात है मिसेज तलवार आपकी बहु के साथ दूसरी बार ये घटना हो गई किसी अच्छे डाक्टर को दिखाइये मिसेज तलवार ने कहा की नहीं भाई ऐसी कोई बात नहीं है हम तो खुद काफी अच्छे डाक्टर को दिखाते है | बेचारी बहु का उतरा सा मुँह देख कर उसे कह दिया की जब अगली बार फिर से प्रेग्नेंट होना तो अपने मायके चली लाना यदि बच्चा सुरक्षित चाहती हो | लो जी उनकी बहु ने तो सच में यही कर दिया अब तलवार परिवार का तो गुस्सा होना लाज़मी था |
चलिए अब आज के लिए इतना ही ……