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गुरुवार, 1 जुलाई 2010

कुछ पोस्ट झलकियां…..झा जी कहिन

 

 

 


आज अंजली सहाय, हिमांशु तथा मोहन वशिष्ठ का जनमदिन है

>> बुधवार, ३० जून २०१०

 

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30 जून 2010             

30 June 2010

आज का दिन मेरे लिये विशेष है । आज माँ सेवा-निवृत्त हो रही हैं । माँ के प्रति लाड़-प्यार के अतिरिक्त कोई और भाव मन में कभी उभरा ही नहीं पर आज मन स्थिर है, नयन आर्द्र हैं । लिख रहा हूँ, माँ पढ़ेगी तो डाँटेगी । भावुक हूँ, न लिखूँगा तो कदाचित मन को न कह पाने का बोझ लिये रहूँगा ।

कहते हैं जिस लड़के की सूरत माँ पर जाती है वह बहुत भाग्यशाली होता है । मेरी तो सूरत ही नहीं वरन पूरा का पूरा भाग्य ही माँ पर गया है । यदि माँ पंख फैला सहारा नहीं देती, कदाचित भाग्य भी सुविधाजनक स्थान ढूढ़ने कहीं और चला गया होता । मैंने जन्म के समय माँ को कितना कष्ट दिया, वह तो याद नहीं, पर स्मृति पटल स्पष्ट होने से अब तक जीवन में जो भी कठिन मोड़ दिखायी पड़े, माँ को साथ खड़ा पाया ।

 

Wednesday, June 30, 2010         

पहले जिंदगी सरकती थी , अब दौड़ लगाती है -image ----

पिछली पोस्ट के वादानुसार, प्रस्तुत है एक कविता अस्पताल में लिखी गई , आँखों देखी , सत्य घटनाओं पर आधारित ।
शहर के बड़े अस्पताल में ,खाते पीते लोग

भारी भरकम रोग का उपचार कराते हैं ।

तीन दिन बाद रोगी हृष्ट पुष्ट और रोगी से ज्यादा
उसके सहयोगी , बीमार नज़र आते हैं ।

यहाँ कर्मचारी तो सभी दिखते हैं ,पतले दुबले और अंडर वेट

पर कस्टमर होते हैं भारी भरकम , कमज़ोर दिल और ओवरवेट ।

 

बुधवार, ३० जून २०१०        image

:::: रोईद: ::.... 5

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

जब भी घर मे आया था..

खुद को तन्हा..पाया था...

देखो सब तो जाग चुके..

सूरज अब क्यो लाया था..

नीम ये पूछे..आँगन का..

मैं किसका सरमाया था...

 

 

नींद के फेंस के इधर और उधर..     image        

No Comment - लजाइये नहीं, टिपियाइये

एक्‍चुअली किस बात से इस पूरे झमेले की शुरुआत हुई कहना मुश्किल है. पत्‍नी के बगल सोता न होता तो शायद यह दुर्दिन सामने न खुलते. लेकिन पत्‍नी को छोड़कर कहीं और सोने जाता तो फिर मेरी आदतों के बदलने का ख़तरा सिर मंड़राता. पीठ पीछे पत्‍नी शिकायत करती कि कहीं और जाकर सो रहे हैं. शायद इसीलिए कहते भी हैं आदतों से बंधा व्‍यक्ति चैन की नींद सोता है. जबकि सच्‍चाई है मैं तो सो भी नहीं रहा था. वह तो पत्‍नी करती थी, मैं छाती पर हाथ बांधे उसकी भारी सांसों का ऊपर-नीचे होना सुनता रहता. सुनते-सुनते उकताहट होने लगती तो गरदन मोड़कर चुपचाप सोती पत्‍नी को गौर से देखता रहता. कितनी रातें मैंने इस तरह सोई पत्‍नी को चुपचाप ताकते हुए गुजारी है. ऐसे मौकों पर बहुत बार कुछ वैसा दीख गया है जिसकी ओर पहले कभी ध्‍यान न गया होता. जैसे दायीं कान और गरदन के बीच पत्‍नी के एक मस्‍सा था मैं जानता नहीं था. या उसकी पसलियों के नीचे माचिस की तीली के आकार का एक कटे का निशान जिसे वह अब तक मुझसे छुपाये हुए थी. एकाएक मुझे विश्‍वास नहीं हुआ था कि माचिस की तीली के आकार के उस कटे के निशान को कमर पर सजाई हुई औरत मेरी पत्‍नी ही है. गहरे जुगुप्‍सा में मैं देर तक उस माचिस की तीली के आकार के कटे के निशान को पढ़ता रहा. पत्‍नी के चेहरे पर झुककर इसकी ताकीद की कि माचिस की तीली के आकार के कटे के निशान वाली वह स्‍त्री मेरी पत्‍नी है.

 

 

एक पोस्ट .......आम भी , और खास भी !.....अजय कुमार झा







"अहि बेर गाम में आम खूब फ़रल अईछ , भोला भईया "(इस बार गांव में आम खूब फ़ले हुए हैं , भोला भईया ), जैसे ही फ़ोन पर चचेरे भाई ने ये कहा मैं हुलस पडा , ये जानते हुए भी कि उन आमों के स्वाद तो स्वाद इस बार तो उनकी सूरत भी देखने को नसीब न हो । और इस बार ही क्यों अब तो जमाना हो गया जब आम के मौसम में गांव जाना हुआ हो । और फ़िर अब आम ही कौन सा पहले जैसे रहे , वे भी हर दूसरे साल आने की बेवफ़ाई वाली रस्म ही निभाने में लगे हुए हैं , उसकी भी कोई गारंटी नहीं है । मगर जब चचेरे अनुज ने ये कह कर छेड दिया, तो फ़िर अगले दस मिनट तक तो फ़ोन पर आमों का ही ज़ायज़ा लिया गया । किस किस बाग में कौन कौन से आम फ़ले हैं , पिछले दिनों जो अंधड तूफ़ान आया था उसमें कितना नुकसान हुआ । फ़ोन करके जब बैठा तो अनायास ही वो आमों की दुनिया और उसके बीच पहुंचा हुआ मैं , बस यही रह गए कुछ देर के लिए ।


 

क्या आप भी बनाना चाहते है इन्डली व ब्लोगिरी जैसा ब्लॉग एग्रीगेटर ?

 

Ratan Singh Shekhawat, Jun 30, 2010

जब से सबका चहेता और लोकप्रिय हिंदी ब्लॉग एग्रीगेटर ब्लॉगवाणी की सांसे अटकी पड़ी है तब से हर किसी के मन में हलचल मच रही है कि काश हिंदी ब्लॉग एग्रीगेटर्स की संख्या ज्यादा हो ताकि कोई एक या दो एग्रीगेटर पर निर्भर ना रहना पड़े | ब्लॉग वाणी के बंद होने के बाद इन्डलीब्लोगगिरी नाम के दो एग्रीगेटर्स का अवतार भी हो चूका है |

 

बुधवार, ३० जून २०१०

एक अदृश्य सूली

हर सुबह समेटती हूँ ऊर्जाओं के बण्डल
और हर शाम होने से पहले
छितरा दिया जाता है उन्हें
कभी परायों के
तो कभी तथाकथित अपनों के हाथों..
कई बार तो.. कई-कई बार तो
भरनी चाही उड़ान
'हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं' सुनकर
पर ना तो थे असली पर
और न हौसलों वाले ही काम आये..
सिर्फ एक अप्रकट
एक अदृश्य सूली से खुद को बंधे पाया
हौसले के परों को बिंधे पाया
फिर भी हर बार लहु-लुहान हौसले लिए
बारम्बार उगने लगती हूँ 'कैक्टस' की तरह

 

30 June 2010              image

रिटायर होते, आपके घर के यह मुखिया - सतीश सक्सेना

आदरणीय ज्ञानदत्त पाण्डेय ने कुछ समय पहले प्रवीण पाण्डेय के रूप में एक बेहतरीन सोच और समझ रखने वाले लेख़क का परिचय कराया था , उनके पहले ही लेख से यह महसूस हुआ कि ब्लागजगत में एक ईमानदार ब्लाग जन्म लेने जा रहा है जो समय के साथ सही सिद्ध हुआ !
आज उन्होंने अपनी माँ के रिटायर होने के अवसर पर एक पुत्र की ओर से एक भावुक पोस्ट लिखी है ! अधिकतर हम लोग देखते हैं कि रिटायर होते ही, देर सवेर घर के अन्य सदस्य , उन्हें घर के मुखिया पोस्ट से भी रिटायर करने की तैयारी करने लगते हैं ! बेहद पीड़ा दायक यह स्थिति, आज सामान्यतः अधिकतर घरों में देखी जा सकती है ! "रिटायर" शब्द का प्रभाव प्रभावित व्यक्ति पर इतना गहरा पड़ता है कि रिटायरमेंट के  बाद वह अक्सर बुद्धि हीन, धनहीन और हर प्रकार से अयोग्य समझा जाता है ! छोटे बच्चे को खिलाने घुमाने के अलावा दूध सब्जी लाना और घर की चौकीदारी जैसे कार्य  आम तौर पर उनके लिए सही और उचित मान लिए जाते हैं !

 

Tuesday, June 29, 2010             image

अपने मोहल्ले की लड़कियों के बारे में

लगता है कि मैं एक बार फिर कविताओं की ओर लौटने लगा हूं। यह सही हो रहा है या गलत मैं नहीं जानता, बस इतना कह सकता हूं कि एक छटपटाहट ने घेर रखा है जिससे मुक्त होना थोड़ा कठिन लग रहा है। पिछले कुछ समय से मैं लगातार बेचैन चल रहा हूं। यह कब तक  चलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता। जो लोग कविता लिखते हैं वे मेरे बारे में अपनी यह राय जरूर कायम कर सकते हैं कि एक बेवकूफ था जो इधर-उधर अपनी फजीहत करवाने के बाद घर लौटकर आ गया है।

अपने मोहल्ले की लड़कियों के बारे में

एक लड़की
सीखने जाती है
सिलाई मशीन से

घर चलाने का तरीका



एक लड़की
दिनभर सुनती है
लता मंगेशकर का गाना


 

 

हम सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं या सुविधाओं का दास बन चुके हैं?

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Author: जी.के. अवधिया | Posted at: 10:11 AM | Filed Under: मोबाइल

घर से निकलने के कुछ देर बाद रास्ते में अचानक याद आया कि मैं अपना मोबाइल घर में ही भूल आया हूँ। एक बार सोचा कि चलो आज बगैर मोबाइल के ही काम चला लें किन्तु रह-रह कर जी छटपटाने लगा। घर से बहुत दूर तो नहीं पहुँचा था पर एकदम नजदीक भी नहीं था इसलिये घर वापस जाकर मोबाइल लाने की इच्छा नहीं हो रही थी पर मेरी छटपटाहट ने मुझे घर वापस जाकर मोबाइल लाने के लिये मुझे विवश कर दिया।
मैं सोचने लग गया कि यदि आज मेरे पास मोबाइल नहीं भी रहता तो सिर पर कौन सा पहाड़ टूट जाता? मोबाइल पर जिनसे भी और जो कुछ भी मेरी बात होती है वे कितनी आवश्यक होती हैं? क्या ललित शर्मा जी, राजकुमार सोनी जी, अजय सक्सेना जी आदि से मोबाइल में उनके पोस्ट और टिप्पणियों के बारें में बात करना बहुत ही जरूरी है? क्या एक दिन मोबाइल से अपनी पसंद के गाने सुने बिना रहा ही नहीं जा सकता?

 

Monday, June 28, 2010

चरित्र और आवरणः लवली गोस्वामी

मई 2010 की यूनिकवि प्रतियोगिता की 14वीं कविता अत्यंत सक्रिय ब्लॉगर लवली गोस्वामी की है। लवली मनोविज्ञान का गहन ज्ञान रखती हैं और उसे अपने ब्लॉग संचिका पर बाँटती भी हैं। सकारात्मक परिवर्तनों की पक्षधर लवली ने हिन्दी ब्लॉगरों को वेब-निर्माण संबंधित प्रोग्रामिंग भाषाओं, टूलों (जैसे- एचटीएमएल, सीएसएस इत्यादि) की जानकारियाँ हिन्दी में दी है। धनबाद में रहती हैं और एक तकनीकी संस्थान में कम्प्यूटर विज्ञान पढ़ाती हैं। साँपों में भी इतनी गहरी दिलचस्पी है।
कविता: चरित्र और आवरण
रंगमंच में कलाकारों के चहरे हैं...
भाव पैदा करने की कोशिश करते
वो अपनी कला का सर्वोत्तम देना चाहते हैं
इन भाव भागिमाओं से
हर दर्शक को आश्चर्य चकित कर देना चाहते हैं
सफ़ेद रोशनी में भावों की कई तहों से लिपटे चेहरों में
मुझे कोई अभिनय नजर नही आता
यह सब सच-सा लगता है
जैसे वे लोग अपने अन्दर का कुछ उड़ेल कर सामने रख देना चाहते हैं

 

ऐसे चिकित्सक को क्या दंड मिलना चाहिए?

आज अखबार में समाचार था-

एक महिला रोगी के पैर में ऑपरेशन कर रॉड डालनी थी, जिस से कि टूटी हुई हड्डी को जोड़ा जा सके। रोगी ऑपरेशन टेबल पर थी। डाक्टर ने उस के पैर का एक्स-रे देखा और पैर में ऑपरेशन कर रॉड डाल दी। बाद में पता लगा कि रॉड जिस पैर में डाली जानी थी उस के स्थान पर दूसरे पैर में डाल दी गई। 

डॉक्टर का बयान भी अखबार में था कि एक्स-रे देखने के लिए स्टैंड पर लगा हुआ था। किसी ने उसे उलट दिया जिस के कारण उस से यह गलती हो गई। 

मुझे यह समाचार ही समझ नहीं आया। आखिर एक चिकित्सक कैसे ऐसी गलती कर सकता है कि वह जिस पैर में हड्ड़ी टूटी हो उस के स्थान पर दूसरे पैर में रॉड डाल दे। क्या चिकित्सक ने एक्स-रे देखने के उपरांत पैर को देखा ही नहीं? क्या ऑपरेशन करने के पहले उस ने भौतिक रूप से यह जानना भी उचित नहीं समझा कि वास्तव में किस पैर की हड्डी टूटी है? क्या एक स्वस्थ पैर और हड्डी टूट जाने वाले पैर को एक चिकित्सक पहचान भी नहीं सकता? या चिकित्सक इतने हृदयहीन और यांत्रिक हो गए हैं कि वे यह भी नहीं जानते कि वे एक मनुष्य की चिकित्सा कर रहे हैं किसी आम के पेड़ पर कलम नहीं बांध रहे  हैं?

 

Wednesday, June 30, 2010

लेखनी को आज ही कुदाल कीजिये....


फ़िज़ूल के न कोई अब सवाल कीजिये
कीजिये तो आज कोई कमाल कीजिये
बह गया सड़क पे देखिये वो लाल-लाल

कुछ सफ़े अब खून से भी लाल कीजिये
छुप गई उम्मीद क्यों, डरे हुए बदन

 

Wednesday, June 30, 2010

खुल गया स्कूल...

गर्मी की छुट्टियाँ ख़त्म. आज से मेरा स्कूल खुल गया. अब घुमाई कम, पढाई की बातें ज्यादा. वैसे मैंने तो इन दो महीनों में खूब इंजॉय किया. ढेर सारे आइलैंड्स की सैर, खूबसूरत बीच, रिमझिम बारिश का सुहाना मौसम. कीचड़ वाले ज्वालामुखी देखे तो INS राणा पर जाकर उसे भी नजदीक से देखा. साइंस सिटी भी गई. खूब ड्राइंग-पेंटिंग की, आपको भी दिखाउंगी. ढेर सारी मस्ती, हंगामा और शरारतें....कित्ता मजा आया. आज जब मैं स्कूल गई तो मुझे रोना आ रहा था. सही बताऊँ इत्ते दिन बाद स्कूल जाना बड़ा अटपटा सा लगा..कुछ-कुछ बोरिंग सा. 7:30 पर स्कूल है, सो सुबह ही जगना भी पड़ा. पहले कित्ता अच्छा था, देर तक सोने को मिलता. अब तो सब कम हड़बड़ी वाला लगता है. ...पर दो-चार दिन तक तो ख़राब लगता ही है, फिर सब नार्मल हो जायेगा. चलिए मेरी पहले दिन की स्कूल जाने की फोटो देखते हैं.

 

Wednesday, June 30, 2010

275 साल बाद फिर हुआ महायुद्ध...खुशदीप

जी हां, आज 93 मिनट में मैंने 275 साल पहले के काल को जिया..आप कह रहे होंगे कि क्या लंबी छोड़ने बैठ गया हूं...या मैं भी भूतकाल और आज के बीच झूलता हुआ भविष्यवक्ता बनने की राह पर चल निकला हूं...ऐसा कुछ भी नहीं है... भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट का 63 साल का इतिहास है...लेकिन मैं 63 साल की नहीं 275 साल की दुश्मनी की बात कर रहा हूं...स्पेन और पुर्तगाल भी भारत-पाकिस्तान की तरह यूरोप में दो पड़ोसी मुल्क है...और इनकी दुश्मनी का इतिहास 275 साल पुराना है..कल एक बार फिर स्पेन और पुर्तगाल आमने-सामने थे...वर्ल्ड कप फुटबॉल में सुपर एट में पहुंचने के लिए सब कुछ झोंक देने के इरादे के साथ....

 

 

Wednesday, 30 June 2010

फैशन या महंगाई ? (कार्टून धमाका)

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तो आज के लिए बस इतना ही कल फ़िर मिलते हैं ..कुछ और धमाचौकडी के लिए …

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