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रविवार, 11 जुलाई 2021

बागवानी के इच्छुक हैं तो -यही समय है -शुरू हो जाइये




 #बागवानीमंत्र : 

बागवानी  करने और उसमें भी बागवानी शुरू करने वाले मित्रों को अब इसके लिए तत्पर हो जाना चाहिए। बागवानी के लिए वर्ष के सबसे उपयुक्त मौसम में से एक यानि बरसात और आर्द्र वातावरण बस सामने ही है।  इस मौसम में तो बेजान पेड़ पौधों में भी नवजीवन अंकुरित हो उठता है।  

बरसात में साग पात ,धनिया , पुदीना आदि को छोड़कर सभी फूल फल बीज कलम आदि की बागवानी की जा सकती है।  बीज से और कटिंग से , दोनों ही विधियों से इस मौसम में पौधे आसानी से उगाए और लगाए जा सकते हैं।  हाँ नए और नन्हें पौधों को तेज़ हवा कर ज्यादा पानी से बचाव के लिए जरूर ही सावधान रहना चाहिए।  

पहले से उपलब्ध ,पुराने बड़े पौधों की कांट छाँट , बारिश की पहली फुहारों के बाद करना बेहतर रहता है।  बरसात का भारी नमी वाला मौसम इन पौधों को फिर तेज़ी से नए पत्तों टहनियों के सात हरा भरा करने लगता है और अगले मौसम के लिए पौधे ज्यादा पुष्ट व स्वस्थ हो जाते हैं।  

बरसात में हवा में  नमी की अधिकता , कीट-पतंगों के आगमन , प्रजनन , वृद्धि का  भी समय होता है इसलिए नए पुराने हर बागबान को इन कीटों से निपटने के उपाय व औषधियों के बारे में भी थोड़ी बहुत जानकारी रखना उचित रहता है। 

बीज बोन से लेकर अकुंरण और शिशु पौधों की अवस्था तक इन्हें तेज़ बारिश से भी बचाया जाना जरूरी होता है।  ज़रा सी लापरवाही कई बार १० -२० दिनों की मेहनत पर पानी फेर सकती है।  मसलन तेज़ हवा से पौधों का गिरना या गमलों में जमा पानी से जड़ों में गलन की समस्या आदि। 



पौधों में खाद के रूप में सबसे अधिक लाभदायक होते हैं -रसोई से निकले कच्चे अपशिष्ट यानी साग सब्जियों फलों के छिलके /डंठल /बीज आदि।  सबसे सरलतम तरीके से उपयोग करने के लिए इन्हें पानी में भिगो कर 6-8 घंटे छोड़ देना चाहिए।  इसके बाद पानी को छान कर और इसमें इतना ही पानी और मिला कर सभी पौधों की जड़ों में थोड़ा थड़ा डालते रहना चाहिए। बचे हुए छिलकों को भी छोटा छोटा करके जड़ों की मिटटी में मिला देना चाहिए।  ये सदाबहार उर्वरक सबसे सरल और सबसे अधिक प्रभावी साबित होते हैं।  

इस आर्द्र मौसम में गमलों का स्थान संयोजन , पौधों के जड़ों के आसपास की मिट्टी की निराई गुड़ाई , छोटे  पौधों पर कीट पतंगों का अतिक्रमण आदि का भी विशेष ध्यान रखना ठीक रहता है।  आज के लिए इतना ही -अगले अंक में बात करेंगे -बागवानी में गमलों के स्थान संयोजन -प्रभाव और परिणाम की।  

शनिवार, 8 मई 2021

पौधों की सिंचाई -बागवानी की एक खूबसूरत कला - बागवानी मन्त्र


 




बागवानी के अपने पिछले 15  वर्षों से अधिक के अनुभव को साझा करते हुए मैंने पिछली पोस्टों में बताया था कि , बागवानी में मौसम , मिट्टी , गमले , पौधे और निराई गुड़ाई का क्या कितना कैसा उपयोग और महत्त्व है।  आप सबके प्रश्नों , जिज्ञासाओं , समस्याओं को पढ़ते समझते उन पर विमर्श करते बहुत कुछ सीख और समझ रहा हूँ।  

चलिए साप्ताहिक पोस्ट में और बागवानी मन्त्र की इस कड़ी में हम आज बात करेंगे -सिंचाई की।  पौधों में पानी डालना।  लो बस इतने से काम के लिए क्या सीखना समझना ?? जो इस काम को इतना सा काम समझते हैं उनके लिए बस इतना ही कि , बागवानी में पौधों की देखभाल और समुचित विकास के लिए पानी डालना और वो भी संतुलित ,नियंत्रित और कायदे से डालना सबसे ज्यादा जरूरी है नहीं तो आपकी बागवानी का पूरा काम ही हो जाएगा।  

हर पौधे , गमले , स्थान ,  (धूप और छाया का अनुपात , इनडोर पौधों में तो ये सबसे ज्यादा जरुरी है ) ,मिट्टी का प्रकार, पर निर्भर करता है कि पौधे की सिंचाई में पानी की मात्रा कितनी कम या ज्यादा रखनी होगी।  ये बहुत कठिन भी नहीं है , गमले की मिटटी में नमी बनी रहे , यही बुनियादी शर्त है और इसके लिए मिटटी की निराई गुड़ाई लगातार की जानी जरूरी होती है ताकि पानी नीचे तक पहुँच सके और जड़ों को देर तक जल पोषण मिलता रहे।  

पानी देने का सर्वोत्तम समय - तेज़ , तीखी धूप को छोड़कर कभी भी। और पौधों की जरूरत के अनुरूप ही।  उदाहरण के लिए  दिल्ली में इस अत्यधिक गर्मी वाले मौसम में -चन्द्रकान्ति उर्फ़ संध्या के पौधे में मुझे चार चार बार पानी देना पड़ता है , और अक्सर मैं पौधों में रात को भी पानी डाल देता हूँ जो किसी भी तरह से बेहतर विकल्प नहीं होता ,मगर पौधों के जीवन को बचाने के लिए और सुबह तक पूरी तरह से झुलस जाने से बचाने के लिये ऐसा करना पड़ता है कई बार।  फिर भी अँधेरे में पौधों में पानी देने से यथासंभव बचना चाहिए।  

पानी हमेशा जड़ों में डालना चाहिए , अक्सर ऐसा होता है कि पानी देने वाले खड़े खड़े सीधा पाइप लेकर पौधों की जड़ों में तेज़ धार से भी पानी डालते हैं जो ठीक नहीं होता।  पानी हमेशा गमले के बिलकुल करीब जाकर और झुककर डालें।  विशेष सावधानी ये कि , कलियाँ ,फूल , फल और पौधे के शीर्ष पर पानी नहीं डाला जाना चाहिए , यदि बहुत जरुरी लगे तो छिड़काव ही किया जाना चाहिए।  

जिस तरह पानी की कमी पौधे के विकास और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है ठीक वैसा ही दुष्प्रभाव पौधे की जड़ में पानी की अधिकता के कारण भी पड़ता है।  गमलों में बागवानी करने सहित क्यारी में बागवानी करने वालों को भी इस बात की सावधानी रखनी चाहिए।  अक्सर कई मित्र भूलवश गमलों में पानी की निकासी के लिए कोई छिद्र आदि बनाना या फिर उस गमले में मिटटी भरते समय उस छिद्र पर मिट्टी पूरी तरह आ कर उसे दबा न दे इसके लिए एक गिटक का इस्तेमाल नहीं करते हैं।  नतीजा पौधे की जड़ में गलन शुरू हो जाती है।  

बहुत सारे कीटनाशक , उर्वरक आदि जो भी जल मिश्रित छिड़काव प्रणाली से दिए जाते हैं उनमें पानी के साथ उनका अनुपात और छिड़काव करते समय बरती जानी वाली सावधानियों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक होता है।  

मेरी छत पर बनी क्यारियों में पहले वर्ष इतना वर्षा जल संचयित हो गया गया कि , बहुत मुशिकल से पौधों की जान बचाई , सीलन का ख़तरा अलग बन गया।  फिर अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए क्यारियों में ड्रिलिंग करवा कर पाइप के टुकड़े लगवाए और ऊपर शेड्स भी।  

आखिर में बस ये समझिये कि , पानी पौधों के लिए सबसे अच्छा टॉनिक है , भोजन तो है ही।  आज इतना ही , अपनी जिज्ञासा आप यहां साझा कर सकते हैं।  तो बागवानी करते रहिये और हमेशा हरे भरे रहिये।  



शनिवार, 24 अप्रैल 2021

बागवानी के लिए जरूरी बातें -बागवानी मन्त्र


 

#बागवानीमन्त्र :
आज बागवानी से जुड़ी कुछ साधारण मगर जरुरी बातें करेंगे।  

बागवानी बहुत से मायनों में इंसाओं के लिए हितकर है , बल्कि बाध्यकारी भी है।  प्रकृति के साथ सहजीवन और सामंजस्य के लिए सबसे सरल साधन बागवानी ही है।  दायरा देखिए कि इंसान बाग़ बगीचे उगाएं इसके लिए प्रकृति कभी इंसाओं की मोहताज़ नहीं रही है उसे कुदरत ने ये नियामत खूब बख्शी हुई है।  तय हमें आपको करना है कि हम कितना और क्या क्या कर सकते हैं।  



बागवानी घर , बाहर जमीन पर भी छत पर भी और बालकनी में भी।  बच्चे से लेकर बूढ़े तक और धनाढ्य परिवार से लेकर साधारण व्यक्ति तक कोई भी , कभी भी कर सकता है।  शौक के रूप में शुरू की गई बागवानी इंसान के लिए तआव ख़त्म करने का एक बेहतरीन विकल्प होने के कारण जल्दी ही आदत और व्यवहार में बदल जाती है।  बागवानी शुरू करने के सबसे आसान तरीकों में से एक ये की माली से गमले सहित अपेक्षाकृत आसान और सख्तजान पौधों से शुरआत करना बेहतर होता है जैसे -गुलाब , तुलसी , एलोवेरा , गलोय।  


बागवानी के लिए मिट्टी , बीज , पौधे , मौसम पानी इन सभी बिंदुओं पर थोड़ा थोड़ा सीखते समझते रहना जरूरी होता है।  मसलन पौधों में पानी देना तक एक कला है ,विज्ञान है और उसकी कमी बेशी से भी बागवानी पर भारी असर पड़  सकता है।  बागवानी विशेषकर अपने क्षेत्र (मेरा आशय मैदानी ,पहाड़ी या रेतीली ) को ध्यान में रखते हुए सबसे पहले वहां के स्थानीय , आसानी से उपलब्ध और उगने लगने वाले पौधों को लेकर शुरुआत करना श्रेयस्कर  रहता है।  मसलन -राजस्थान में बोगनवेलिया और महाराष्ट्र में अंगूर , बिहार में आम अमरूद , उत्तर प्रदेश में गेंदा गुलाब आदि।  

बागवानी की इच्छा रखने मगर समयाभाव के कारण नहीं कर सकने वालों को पाम म क्रोटन , एलोवेरा , कैक्टस आदि और इनडोर पौधों से शुरुआत करना बेहतर रहता है क्यूंकि अपेक्षाकृत बहुत काम श्रम व् समय माँगते हैं  ये पौधे।  लम्बे समय तक हरियाली बनाए रखते हैं तथा बाहु के लिए बेहद लाभकारी होते हैं।  खिड़की व बालकनी में बागवानी करने के लिए बेलदार पौधों का भरपूर उपयोग करना बेहतर विकल है क्यूंकि इससे उनकी जड़ छाया में और बेल धूप  हवा में रह कर अच्छा विकास कर पाती है -जैसे मधुमालती ,अपराजिता आदि।  

बागवानी में सिद्धहस्त होने तक पौधे उगाने लगाने से बचते हुए पहले से विकसित पौधों की देखभाल , खाद पानी डालना , काटना छांटना निराई गुड़ाई आदि धीरे धीरे सीख कर फिर खुद उगाने लगाने की शुरुआत करनी चाहिए।  यदि फिर भी खुद करने का मन कर ही रहा है तो फिर घरेलु बागवानी के लिए धनिया ा, पालक , मेथी आदि जैसे बिलकुल सहज  साग सब्जी से शुरू करना ठीक रहता है।  





बागवानी में सबसे जरूरी होता है धैर्य और सबसे बड़ा सुख आता है अपने बोए बीज को अंकुरित ,पुष्पित -पल्ल्वित होते हुए देखना।  मिटटी के अनुकूल होने से लेकर पौधे के फूल फल आने की आहात तक एक खूसबूरत सफर जैसा होता है।  बागवानी धीरे धीरे मिटटी , पानी , बनस्पति , हवा , पक्षी और सुबह शाम तक से सबका परिचय करवाने का एक खूसबूरत माध्यम है।  

नए पौधों को लगाने , उगाने और स्थानांतरित करने का सबसे उपयुक्त समय शाम का होता है।  गमलों के पौधों की जड़ों में पानी देना सुरक्षित रहता है और कई बार शीर्ष पर या कलियों , फूल आदि पर पानी पड़ने /डालने से नुकसानदायक हो जाता है।  बागवानी में सबसे ज्यादा अनदेखी हो जाती है जड़ों की निराई गुड़ाई।  जबकि वास्तविकता ये है की ,जड़ों की मिट्टी को ऊपर नीचे करके , निराई गुड़ाई नियमित पानी डालने से ही आप बागवानी का आधा और जरूरी दायित्व निभा लेते हैं।  



शनिवार, 10 अप्रैल 2021

जड़ों के साँस लेने के लिए जरूरी है निराई गुड़ाई -बागवानी मन्त्र


 

बागवानी मन्त्र 

चलिए आज की इस कड़ी में हम बात करेंगे बागवानी से जुड़े उस विषय की जो होता तो सबसे जरूरी है मगर आश्चर्यजनक रूप से सबसे अधिक उपेक्षित विषय है और वो है जड़ों की निराई गुड़ाई , जड़ों की मिट्टी का ऊपर नीचे किया जाना।  पिताजी किसान थे , वे अक्सर कहा करते थे जिस तरह सुबह उठ कर फेफड़ों की सफाई के लिए श्वास नलिका और नासिका में अवरुद्ध पित्त्त कफ्फ़ को साफ़ रख कर हम नित्य उन्हें अवरोध मुक्त रखते हैं इसी तरह से पौधों की जड़ों तक हवा ,पानी ,नमी और धूप के संतुलित आहार के लिए पौधों का निराई गुड़ाई बहुत जरूरी बात है।  

मैंने अनुभव किया है और देखा पाया है कि अधिकाँश मित्र अक्सर जाने अनजाने पौधे के  ऊपरी हिस्से पर बहुत अधिक श्रम और ध्यान देते हैं मगर अपेक्षाकृत- जड़ों की तरफ उदासीनता बनी रह जाती है बेशक कई बार ये जानकारी न होने के कारण भी होता है।  

यदि मैं पूछूँ कि , आप अपने पौधों की जड़ों की मिट्टी को कितनी बार हाथ से छू कर देखते हैं , मौसम के अनुसार क्या आपको उनमें बदलाव महसूस होता है , क्या आपने सुनिश्चित किया है कि गमले में जितना पानी आप दे रहे हैं उसकी नमी उस गमले की सबसे नीचे की आखरी जड़ों और रेशों तक पहुँच रही है , जड़ों में अक्सर लग जाने वाली चीटीयों और अनेक तरह के कीटों का सबसे सटीक उपाय और इलाज - निराई गुड़ाई है।  यदि मैं कहूँ कि मैं अपने पौधों में हर दूसरे दिन निराई गुड़ाई करता हूँ और क्यारियों में हर चौथे पाँचवे दिन तो शायद बहुत से दोस्तों को नई बात लगेगी क्यूंकि बकौल उनके वे सप्ताह या पंद्रह दिन में एक बार निराई गुड़ाई करते हैं।  

निराई गुड़ाई जितनी जरूरी और लाभदायक नन्हें छोटे पौधों के लिए होती है उतनी ही जरुरी बड़े बड़े वृक्षों विशेषकर फल देने वालों के लिए भी होती है।  आम लीची केले के बागानों में अक्सर जड़ों की निराई गुड़ाई और जड़ों की मिट्ठी दुरुस्त किए जाने का काम होता है।  खीरे , कद्दू, लौकी , आदि तमाम बेलों की जड़ों पर अच्छी तरह से मिट्ठी चढ़ाते रहने का काम जरूरी होता है अन्यथा जड़ें कमज़ोर होकर गलने लगती हैं और कई बार बेलों के अकारण खिंच जाने से टूट भी जाती हैं।  

धनिया ,पुदीना , पालक आदि साग पात में निराई गुड़ाई की गुंजाइश सिर्फ क्यारियों में ही उचित होती है गमलों में नहीं और अमरूद आँवला की जड़ें रेशेदार होती हैं इसलिए खुरपी चलाते समय ये डर न हो कि मिट्टी ऊपर नीचे करते समय वो रेशे कट रहे हैं। थोड़े दिनों में वे अपने आप अपनी जगह पकड़ लेते हैं।  

खाद डालने से पहले निराई गुड़ाई उतनी ही जरुरी और लाभदायक होती है जितनी कि कोई पीने वाली दवाई की शीशी को उपयोग करने से पहले जोर जोर से हिलाना।  खाद चाहे सूखी डालनी हो या गीली घोल वाली , मिटटी की निराई गुड़ाई किए रहने से वो जड़ों तक अधिक तेज़ी और प्रभावी रूप में पहुंचती है।  

अब कुछ ध्यान देने वाली बातें , बरसातों में यथासंभव निराई गुड़ाई नहीं की जानी चाहिए जब तक कि जड़ों में अतिरिक्त पानी जमा होकर जड़ों को नुकसान पहुंचाने की संभावना न हो जाए।  निराई गुड़ाई इस तरह से बिलकुल न करें कि जड़ों में अपना घर बनाए केंचुए और जोंक सरीखे मिटटी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाले जीव जंतु परेशान हों , उन गमलों में निराई गुड़ाई की जरुरत नहीं जीव खुद ब खुद कर लेते हैं

निराई गुड़ाई करें किससे -सबसे मजेदार उत्तर।  किसी भी चीज़ से , खुरपी से लेकर चमच्च और कई बार काँटे छुरी तक से वैसे कायदे से तो ग्लव्स पहन कर पतली खुरपी से किया जाना चाहिए यही सुरक्षित भी होता है मगर जरूरी है की आप करें यदि ये न भी उपलब्ध हों तो भी 

मंगलवार, 16 मार्च 2021

चाय की टैबलेट, लिक्विड और पाउडर, महज 10 सेकेंड में चाय तैयार

 





अब तक आपने चाय की पत्ती या चाय के टी-बैग का इस्तेमाल तो किया होगा, लेकिन क्या कभी चाय की टैबलेट का सेवन किया है ? जी हां, असम के टोकलाई टी रिसर्च सेंटर ने यह कारनामा कर दिखाया है। दरअसल, चाय की टेबलेट के साथ ही रिसर्च सेंटर ने लिक्विड फॉर्म में भी चाय तैयार की है, जो कुछ ही समय में आपकी चाय तैयार कर देगी। 

 

महज 10 सेकेंड में चाय बनकर होगी तैयार


देश में चाय के शौकीनों की कमी नहीं है। इस बात का अंदाजा कोरोना काल में चाय की खपत औसत खपत से लगाया जा सकता है। दरअसल, इस अवधि में चाय की खपत बढ़कर 10 गुना ज्यादा हो गई है। ऐसे में चाय तैयार होने में लगने वाले समय को ध्यान में रखते हुए ही चाय की टेबलेट को तैयार किया गया है। आमतौर पर चाय बनाने में कुल 10 मिनट का समय तो लगता ही है, लेकिन चाय के टेबलेट से यह समय घटकर महज 10 सेकेंड हो गया है। इसे हकीकत में कर दिखाया है असम के टोकलाई टी रिसर्च सेंटर ने। 


चाय की अलग-अलग किस्में तैयार

 

यह रिसर्च सेंटर चाय की पत्ती से तरह-तरह के आविष्कार कर रहा है। सेंटर ने चाय की टेबलेट बनाई है जो कुछ ही सेकेंड में वैसी ही चाय बनाएगी जैसी आप पीते हैं। इसके साथ ही चाय की लिक्विड फॉर्म भी तैयार की गई है। इसके लिए गर्म पानी में लिक्विड को मिलाना है और चाय तैयार हो जाती है। टैबलेट और लिक्विड बिना किसी केमिकल के शुद्ध रूप से चाय है।  

 

इस संबंध में टोकलाई टी रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक बताते हैं कि चाय के कई अलग-अलग किस्मों को तैयार किया गया है, जो कम समय में चाय तैयार कर देते हैं। इसमें टैबलेट, पाउडर और लिक्विड शामिल हैं। 

 

जवानों को होगी सहूलियत 

 

इन चाय की किस्मों की खास बात यह है कि सफर के दौरान भी लोगों को चाय के लिए भटकना नहीं पड़ेगा, क्योंकि चाय आपके साथ रहेगी, इसके अलावा दुर्गम स्थानों में तैनात सेना के जवानों के लिए भी काफी सहूलियत होगी क्योंकि चाय बनाने के लिए अब ज्यादा सामानों को ले जाने की जरूरत नहीं होगी। वहीं चाय की खेती करने वालों को भी काफी फायदा होगा। चाय के ऐसे नए इनोवेशन ही चाय बाजार में क्रांति ला सकते हैं और उनकी आय में काफी इजाफा हो सकता है।

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