बागवानी के अपने पिछले 15 वर्षों से अधिक के अनुभव को साझा करते हुए मैंने पिछली पोस्टों में बताया था कि , बागवानी में मौसम , मिट्टी , गमले , पौधे और निराई गुड़ाई का क्या कितना कैसा उपयोग और महत्त्व है। आप सबके प्रश्नों , जिज्ञासाओं , समस्याओं को पढ़ते समझते उन पर विमर्श करते बहुत कुछ सीख और समझ रहा हूँ।
चलिए साप्ताहिक पोस्ट में और बागवानी मन्त्र की इस कड़ी में हम आज बात करेंगे -सिंचाई की। पौधों में पानी डालना। लो बस इतने से काम के लिए क्या सीखना समझना ?? जो इस काम को इतना सा काम समझते हैं उनके लिए बस इतना ही कि , बागवानी में पौधों की देखभाल और समुचित विकास के लिए पानी डालना और वो भी संतुलित ,नियंत्रित और कायदे से डालना सबसे ज्यादा जरूरी है नहीं तो आपकी बागवानी का पूरा काम ही हो जाएगा।
हर पौधे , गमले , स्थान , (धूप और छाया का अनुपात , इनडोर पौधों में तो ये सबसे ज्यादा जरुरी है ) ,मिट्टी का प्रकार, पर निर्भर करता है कि पौधे की सिंचाई में पानी की मात्रा कितनी कम या ज्यादा रखनी होगी। ये बहुत कठिन भी नहीं है , गमले की मिटटी में नमी बनी रहे , यही बुनियादी शर्त है और इसके लिए मिटटी की निराई गुड़ाई लगातार की जानी जरूरी होती है ताकि पानी नीचे तक पहुँच सके और जड़ों को देर तक जल पोषण मिलता रहे।
पानी देने का सर्वोत्तम समय - तेज़ , तीखी धूप को छोड़कर कभी भी। और पौधों की जरूरत के अनुरूप ही। उदाहरण के लिए दिल्ली में इस अत्यधिक गर्मी वाले मौसम में -चन्द्रकान्ति उर्फ़ संध्या के पौधे में मुझे चार चार बार पानी देना पड़ता है , और अक्सर मैं पौधों में रात को भी पानी डाल देता हूँ जो किसी भी तरह से बेहतर विकल्प नहीं होता ,मगर पौधों के जीवन को बचाने के लिए और सुबह तक पूरी तरह से झुलस जाने से बचाने के लिये ऐसा करना पड़ता है कई बार। फिर भी अँधेरे में पौधों में पानी देने से यथासंभव बचना चाहिए।
पानी हमेशा जड़ों में डालना चाहिए , अक्सर ऐसा होता है कि पानी देने वाले खड़े खड़े सीधा पाइप लेकर पौधों की जड़ों में तेज़ धार से भी पानी डालते हैं जो ठीक नहीं होता। पानी हमेशा गमले के बिलकुल करीब जाकर और झुककर डालें। विशेष सावधानी ये कि , कलियाँ ,फूल , फल और पौधे के शीर्ष पर पानी नहीं डाला जाना चाहिए , यदि बहुत जरुरी लगे तो छिड़काव ही किया जाना चाहिए।
जिस तरह पानी की कमी पौधे के विकास और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है ठीक वैसा ही दुष्प्रभाव पौधे की जड़ में पानी की अधिकता के कारण भी पड़ता है। गमलों में बागवानी करने सहित क्यारी में बागवानी करने वालों को भी इस बात की सावधानी रखनी चाहिए। अक्सर कई मित्र भूलवश गमलों में पानी की निकासी के लिए कोई छिद्र आदि बनाना या फिर उस गमले में मिटटी भरते समय उस छिद्र पर मिट्टी पूरी तरह आ कर उसे दबा न दे इसके लिए एक गिटक का इस्तेमाल नहीं करते हैं। नतीजा पौधे की जड़ में गलन शुरू हो जाती है।
बहुत सारे कीटनाशक , उर्वरक आदि जो भी जल मिश्रित छिड़काव प्रणाली से दिए जाते हैं उनमें पानी के साथ उनका अनुपात और छिड़काव करते समय बरती जानी वाली सावधानियों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक होता है।
मेरी छत पर बनी क्यारियों में पहले वर्ष इतना वर्षा जल संचयित हो गया गया कि , बहुत मुशिकल से पौधों की जान बचाई , सीलन का ख़तरा अलग बन गया। फिर अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए क्यारियों में ड्रिलिंग करवा कर पाइप के टुकड़े लगवाए और ऊपर शेड्स भी।
आखिर में बस ये समझिये कि , पानी पौधों के लिए सबसे अच्छा टॉनिक है , भोजन तो है ही। आज इतना ही , अपनी जिज्ञासा आप यहां साझा कर सकते हैं। तो बागवानी करते रहिये और हमेशा हरे भरे रहिये।
जानकारीयुक्त उम्दा पोस्ट !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया👌
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