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गुरुवार, 29 मई 2014

पढे लिखे अशिक्षित (संदर्भ स्मृति ईरानी विवाद) -200 वीं पोस्ट






नई सरकार के कामकाज से पहले ही जिस एक तथ्य को मुद्दा बना कर उस पर बहस की और कराई जा रही है ,वो है नवनियुक्त सरकार के प्रधानमंत्री द्वारा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के रूप में टीवी की मशहूर अभिनेत्री सुश्री स्मृति जुबिन ईरानी की शैक्षणिक योग्यता जो , अंतर स्नातक बताई जा रही है , की नियुक्ति । ज्ञात हो कि चूंकि मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत ही शिक्षा मंत्रालय का काम भी आता है ,इसलिए इस बहस को और हवा दी जा रही है कि इसके लिए किसी ज्यादा शिक्षित और योग्य सांसद को ये जिम्मेदारी दी जानी चाहिए थी ।
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ऐसा शायद पहली बार ही हो रहा है कि ,किसी सांसद को सौंपे गए दायित्व को उसके हाथ में लेने से पहले ही उसकी शैक्षणिक योग्यता को लेकर उसकी काबलियत पर न सिर्फ़ शक जताया जा रहा है बल्कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा स्तरहीन छींटाकशी तक की जा रही है । इतना ही नहीं सुश्री स्मृति ईरानी द्वारा पूर्व में किए गए कार्य चाहे वो मैकडोनाल्ड में वेट्रेस की नौकरी हो या बतौर टीवी अभिनेत्री ,उनको आधारित करके उनपर निजि हमले भी किए जा रहे हैं । और दिलचस्प बात ये है कि जो पार्टी इस पूरे मुद्दे को व्यत्र में तूल दे कर एक अलग दिशा दे रही है ,खुद उसी पार्टी के दो शीर्ष राजनेता जो पूर्व प्रधानमंत्री तक का पद संभाल चुके हैं , स्वर्गीय इंदिरा गांधी और स्वर्गीय राजीव गांधी की शैक्षणिक योग्यता भी अंतरस्नातक ही थी । इत्तेफ़ाकन ये तथ्य भी उल्लेखनीय लगता है कि बिहार में एक समय ऐसा भी आया था जब मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपनी गृहिणी पत्नी जो पूरी तरह निरक्षर थीं उन्हें सीधे मुख्यमंत्री की गद्दी न सिर्फ़ सौंप दी बल्कि उनकी पत्नी राबडी देवी ने राजकाज भी देखा भी
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जहां तक संवैधानिक स्थिति की बात है तो संविधान निर्माताओं ने कुछ सोच कर ही जनसेवा के लिए किसी की शैक्षणिक योग्यता न आडे आए ,इसलिए ही राजनीति से लेकर संवैधानिक पद के लिए कोई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं रखी ।और इतिहास इस बात का गवाह है कि बहुत बार ही कम शिक्षा प्राप्त जनसेवकों ने सिर्फ़ अपनी स्पष्ट नीयत और दृढ आत्मविश्वास से ऐसे कार्य कर दिखाए हैं जो मील का पत्थर साबित हुए हैं । हां वर्तमान परिदृश्य में इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता या आम जनमानस की ,राज़नीति व राज़नेताओं से ये अपेक्षा उचित ही लगती है कि उनके प्रतिनिधि उच्च शिक्षा प्राप्त काबिल लोग हों ,किंतु मात्र शैक्षणिक डिग्री को ही योग्यता का पैमाना माना जाए ये कहीं से भी उचित नहीं लगता ।
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यहां मुझे ब्लॉगर मित्र सुरेश चिपलूणकर जी द्वारा उपलब्ध कराया गया ये तथ्य यहां रखना समीचीन लग रहा है जिसे देखने के बाद आसानी से ये समझा जा सकता है कि एक जनप्रतिनिधि सांसद के रूप में उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन कितनी निष्ठा और शिद्धत से किया है , और स्मृति ईरानी के व्यक्तिव का आकलन करने वालों को खुदबखुद इसकी तुलना करके सारी स्थिति समझनी चाहिए ।

"18 अगस्त 2011 को राज्यसभा सांसद बनने के बाद से स्मृति ईरानी ने 51 बहस में भाग लिया, 340 प्रश्न पूछे, और संसद में उनकी उपस्थिति 73% रही...
- (स्रोत राज्यसभा सचिवालय)."

अंत में इस बहस पर एक आम भारतीय की राय के रूप में सिर्फ़ इतना ही कहना है कि मेरी तरह का आम व्यक्ति ये सोच रहा है कि जहां बहस इस बात पर होनी चाहिए थी कि इस लोकसभा में , पिछली लोकसभा से कहीं अधिक सांसद ऐसे पहुंचे हैं जिन पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज़ हैं , चिंता राजनीति के अपराधीकरण पर व्यक्त की जानी चाहिए थी , आलोचना  उनकी होनी चाहिए थी जिनका दामन दागदार है न कि , बहस इस बात पर की जानी चाहिए थी कि , एक बारहवीं पास किस तरह से मानव संसाधन मंत्री के रूप में कार्य कर सकेगी॥ बहरहाल ये भारतीय राजनीति में उतर आए कुछ छिछले लोगों की ओछी सोच का परिचायक बनके आम जन के बीच उजागर हुआ है ॥
अरे हां चलते चलते याद आया कि ये इस ब्लॉग की 200वीं पोस्ट है जी ......

रविवार, 16 फ़रवरी 2014

ये दिल्ली के लौंडे ....कुछ फ़ुटकर नोट्स



http://www.aamaadmiparty.org/sites/default/files/styles/670_x_270/public/jhadu%20chalao.jpg


आज साठ सालों के बावजूद भी अब तक क्यों नहीं ऐसा कोई कानून पहले के राजनैतिक दलो और उनके अगुआओं ने लाने का प्रयास , संजीदा प्रयास किया ..सारी जिम्मेदारी आम आदमी के कंधों पर ही । चुनाव लडने की चुनौती फ़िर जीतने के बाद सबके डर कर पीछे भागने और पहले आप पहले आप वाला नया फ़ार्मूला लगा कर पुन: आम आदमी के कंधे पर ही बोझ लादा गया कि , पुलिस , प्रशासन , कानून , व्यवस्था राजनीति और खुद आम लोगों के विरोध और असहयोग के बावजूद भी सिर्फ़ पचास दिनों में पांच सौ रिपोर्ट कार्ड भी तैयार कर दिए ...अजी छोडिए , लात मारिए इस सरकार को , हम भी यही कह रहे हैं ...लेकिन सिर्फ़ , इतना और भी बताते जाइए कि आखिर बाकी बची हुई पार्टियों को क्यों नहीं ये जिम्मेदारी दी जा रही है कि वे आएं और लाएं न वैसा मजबूत कानून , जो आपके अनुसार ही संवैधानिक और शायद कारगर भी होगा ...बात को घुमा फ़िरा कर कहना मुझे भी नहीं आता इसलिए सीधा और सपाट कहता हूं ....हां भाषाई मर्यादा का ख्याल जरूर रखने का प्रयास करता हूं । शेष सबके अपने अपने मत और अपनी अपनी विचारधारा है जिसका सदैव स्वागत किया जाना चाहिए , आप जिसे भगोडा कह रहे हैं उसे हमने मलाईदार नौकरियों के बाद मलाईदार कुर्सी को भी ठेंगा दिखाते हुए देख लिया है ....अभी तो अपनी बस थोडी सी ...इत्ती सी समझ पे यकीन रखने का मन है वही कर रहे हैं ..
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दिल्ली की नए नए लौंडों द्वारा बनाई गई अराजक सरकार औंधें मुंह गिर गई , चलो अच्छा हुआ ।ये सत्ताइस बावले अब जो मर्ज़ी करते रहें , बांकी के मिल कर देश के विकास और समस्याओं के लिए यकीनन ही कुछ बेहतर और बडा करके दिखाएंगे , हमें भी पूरा विश्वास है ...और ये बिल था क्या जी ???? फ़ालतू के क्लॉज़ ....पकडे जाने पर सारा माल जब्त ..नौकर चाकर रिश्तेदारों तक की जांच कराने का प्रावधान , कहां अभी साल छ: महीने की सज़ा , जमानत और कहां उम्र कैद ..अबे ऐसा होता है क्या ..दिस इज़ डेमोक्रेटिक कंटरी मैन

...हां संसद ने इससे पहले एक बिल पास किया तो आस्तीन चढा के छोकरे ने कैमरे के सामने ही नानसेंस कहके फ़ाड के फ़ेंक दिया ...सुना एक अलग वाले को लेकर तो चक्कूबाज़ी और मरचाई बम तक चला पाल्लामेंट में ............अरे ऊ ई नहीं किया , ऊ नहीं किया , भगोडा निकला , बेकार था , वोट बेकार गया ...........अब हो गया न ई तो ...चलिए अब आप काम पर लगिए न ...पास करिए लोकपाल विधेयक , महिला आरक्षण विधेयक , न्यायिक सुधार अधिनियम , जित्ते भी हैं फ़ाईल में ..और हां पकड पकड के ठूंसिए जेल में साले चोरों को ,घपले घोटालेबाजों को , हाकिमों और दारोगाओं को ............और नहीं करने का माद्दा है तो ..........तो फ़िर आप गरियाते रहिए ...हर नई सोच , हर नए विकल्प और हर नए प्रयास को
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आगामी लोकसभा चुनावों में यदि फ़िर से कोई राहु केतु धूमकेतु तीसरा चौथा पांचवा मोर्चा टाईप , भाजपा की कुंडली में आकर नहीं बैठ गई तो यकीनन अगली केंद्र सरकार चलाने की बागडोर भाजपा के जिम्मे ही आएगी , ये दिख और महसूस भी हो रहा है किंतु आजकल जिस तरह से देख रहा हूं ,कि भाजपा के प्रबल समर्थक अपने मिशन 2014 के लिए सकारात्मक और उर्ज़ावान माहौल बनाने की बजाय , जिस तरह से अपनी पूरी ताकत , अपनी पूरी सोच , अपनी पूरा ध्यान सिर्फ़ आलोचना में , वो भी अपने चिर प्रतिद्वंदी कांग्रेस की नहीं बल्कि देश में सिर्फ़ सत्ताइस ..सिर्फ़ सत्ताइस विधायकों वाली पार्टी पर निशाना लगा रहा है उससे तो लगने लगा है मानो भारत चीन पाकिस्तान से मुकाबले की बात छोड कर श्रीलंका भूटान को अखाडे में चुनौती देने की कवायद कर रहा हो .........
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एक दिलचस्प बात ये है कि दिल्ली की नई राजनैतिक सोच और विकल्प बनकर उभरने को लेकर अन्य राज्यों के मित्र इतने व्यग्र हैं कि मानो अपने राज्यों में हो रहे नकारात्मक सकारात्मक को छोड कर सिर्फ़ और सिर्फ़ फ़िरती हुई झाडू पर नज़र गडाए बैठे हैं , इत्तेफ़ाकन कि हम जैसे दिल्ली में बैठे , हम जैसे दोस्त फ़र्क को महसूसते हुए इस परिवर्तन के प्रयास को निरंतर बल दे रहे हैं वहीं अन्य प्रांतों के मित्र भी लगातार ही दिल्ली राजनीति के इस नए प्रयोग को पूरी तरह फ़ेल करार देने के लिए उद्धत हैं , अच्छा है , अगर ये प्रयास पूरी तरह से दम भी तोड देता है तो भी ये कम से कम इतना तो स्पष्ट कर ही देगा कि अब इस देश में सियासत की सूरत बदलने की सोच रखना बेमानी साबित होगा , वे कुछ भी नहीं हारेंगे , उन्होंने जीता ही क्या अब तक ..............
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मैं हमेशा इस बात में यकीन रखता हूं कि यदि हमें किसी बात ,व्यक्ति , व्यवस्था , आदि का विरोध करना है तो बेशक करना ही चाहिए , लेकिन क्या ये जरूरी है कि हम उसमें लेखकीय भाषा की थोडी सी भी गरिमा तो बनाए रखें , आखिर हम यहां उस अंतर्जाल पर लिख पढ रहे हैं जहां हिंदी में जो थोडा बहुत लिखा जो लिखा जा रहा है हम भी उसका एक हिस्सा हैं , गरियाने का मतलब ये थोडी है कि आप गली मोहल्ले को यहीं खडा कर लें ।

और हां किसी भी बहस से परे और बहुत सारी बहस के बावजूद मैं आपसे यही कहूंगा कि यदि व्यवस्था में रहकर , व्यवस्था से लडने वाले इन जैसे कुछ पागलों , बावलों पर आप यकीन नहीं करेंगे , और कोई जबरन नहीं कहेगा यकीन करने को ये तय है , तो फ़िर निश्चित रूप से आपको ये अधिकारपूर्वक कहना ही होगा कि व्यवस्था दूषित और भ्रष्ट नहीं है , बल्कि हम सब ही धूर्त , झूठे और भ्रष्ट होने को तत्पर हैं ।
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कुछ अराजकतावादियों द्वारा पेश किया गया अंसवैधानिक बिल के पेश ही न हो पाने से ये हुआ है कि अब दिल्ली वालों बिजली पानी के सारे अंबानी मार्का संवैधानिक बिल मिल सकेंगे , जल्दी ही प्रदेश पूरी तरह से संवैधानिक व्यवस्था से चुस्त दुरूस्त दिखाई देगा , कोई छापेमारी , कोई स्टिंग फ़िटिंग का चक्कर नहीं , दरोगा जी भी खुश और हाकिम भी ,,,..बकिया बचा आम आदमी ..........ऊ झाडू लगाएगा , लगाते रहो

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जरा उन लोगों को भी याद दिलाता चलूं कि इन सबके बीच उस गृहिणी की भी सोचिए कि जिसके पति पर बडका बंगला मांगने के बाद छोटका में रहने के लिए अभी जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी तो नहीं हुए और वही क्यों पूरी बटालियन ही तो अभी शिफ़्ट हुई , अभी तो सामान जमाया भी नहीं होगा ठीक से , फ़िर वापस ....ई नाजुक जिगरे वाले के बस का नय है जी ..ई बौरहवा सब इकट्ठा हो रहा है ....भारी .............बहुत भारी पडने वाला है
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चलिए तो फ़िर आज ये भी खुल्लम खुल्ला तय करते है सचमुच ही सियासत चाहती है कि अब सडक पे रहने मरने वाला हर आम आदमी खुद उससे पंजा लडाए तो यही सही, दिल्ली को गरियाने वाले तमाम दोस्तों को पुन: आमंत्रण कि देखिए ,अगले फ़िर मैदान में आ गए हैं .....जम के गरियाइए
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देखिए जी अगर समाज से गंदगी को काटकर फ़ेंकना चाहते हैं तो फ़िर तेवर तेज़ाब सा रखना ही होगा , तेल लेने जाए कुर्सी और पोस्ट , सरकारी नौकर को खूब पता होता है छोटी बडी नौकरी का फ़र्क , ये नौकर हैं , मालिक नहीं हैं , इसलिए निश्चित रूप से यदि व्यवस्था ओह , मेरा मतलब संवैधिनिक व्यवस्था को ऐसा लग रहा था कि सिर्फ़ जांच की बात कह जाना और जांच की आंच को धधकाए रखना सरासर अराजक है तो फ़िर ऐसे नौकरों को यकीनन ही अब पद को ना कह देना ही श्रेयस्कर है .....आम आदमी को अब ये भी दिखा देना चाहिए कि हमारे ठैंगे से ..लो रखो अपनी कुर्सी और खेलो सरकार सरकार
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चलिए जी तो अब ये लगभग तय हो गया है और जैसा कि मैं अपने स्टेटस में इस सरकार के बनने के पहले दिन से कहता आ रहा हूं कि इस सरकार द्वारा धडाधड दर्ज़ कराई जा रही वैधानिक और सही शिकायतें, जिनके बारे में निश्चित रूप से हर भारतीय थोडा बहुत जानता है या अंदाज़ा लगा लेता है , जितनी पैनी होती जाएगी इस सरकार की मैय्यत का दिन उतना करीब होता जाएगा , तो अब ये तय हो गया कि आज और अभी के बाद से दिल्ली में कुछ भी अराजक नहीं हो पाएगा , सब कुछ 42 घनघोर संवैधानिक लोगों के हाथ में बागडोर आ गई है , हद है साला अईसा भी कोई करता है क्या कि सोटा ऐसा तैयार किया जाए कि जिसे शक्लों और रुतबों की पहचान ही न हो और हो तो उलटा बिफ़र के दुगने वेग से पीठ पर पडे ..........कल से सब कुछ संवैधानिक होगा लेकिन ई भांड मीडिया को देखिए , अजबे बाजीगरी है , साला आज टोटल बहस चरस में बह गया जईसे , सब झाडू खाने वहीं पहुंचा हुआ है , अबे साले इत्ते बेसरम हो कईसे बे , एक्के घंटा पहिले गरियाते हो अगले में सीधा दंडवत दिखते हो
...माने सब कुछ मार्केटवे तय कर रहा है क्या बे
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हम आज साला उस जगह को पक्का खोज के ही दम लेंगे जहां से ई रोजिन्ना का "डे" सब डिकलियर किया जाता है , अरे हद है जी , हम लोग को अपना डे मनाने का साला चांसे नय दे रहा है ...नाखून डे से लेकर दातुन डे तक धडाधड मन रहा रोज़ के रोज़ लोगबाग इत्ते बिज़ी हो चले हैं ..हमसे तो रोज़ छूट जा रहा है ..नौकरी डे आ घर का ड्यूटी डे गजब बजाते हैं रोज़ ...हर डे डिफ़रैंट होता है ..हर डे एकदम खास होता है , जैसा पहले कभी नहीं होता न बाद में होता है ...............
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ऑन ए सीरीयस नोट मुझे ऐसे वक्त पे एक खास बात जो ध्यान आती है वो ये कि आखिर आज़ादी के साठ बरस बाद भी हमें सर्वोच्च न्याय पाने के लिए बहुत ही कम फ़ैसलेकार अब तक मिल रहे हैं और ठीक ऐसा ही कुछ जनप्रतिनिधियों के मैथ का भी है ..अबे इतने बडे पेट वाले देश के पास सोचने करने के लिए क्या सिर्फ़ और सिर्फ़ साढे पांच सौ लोग ही होने चाहिए , क्यों नहीं पांच हज़ार या शायद उससे भी ज्यादा...........कम लोगों पर कुछ ज्यादा दबाव डाल कर हम उनपर कुछ ज्यादा ही डिपेंडेंट नहीं हो गए हैं ......साला नौकरी सरकारी है , वो भी सिर्फ़ पांच साल की ..और कमाल देखिए कि ..भाई लोगों ने पुश्तैनी बना डाला है ...........मिर्ची और चाकू ..धंधे में ही चलाए जाते हैं ...नौकरियों में चाकूबाजी नहीं हुआ करती ..............और हां एक आखिरी बात ..अराजकता इसे कहते हैं .......माने कि ओसहिं बताए हैं

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

बिहरिया पोलटिस स्टोरी -(ग्राम यात्रा -IV )





बिहार के लोगबाग राजनीतिक रूप से इतने अधिक जागरूक और सचेत होते हैं कि चाहे आज अपने अलग अलग किए प्रयोगों के कारण बिहार की ये स्थिति हो गई है कि आज प्रांत का मुखिया देश की सरकार के सामने बहुत सारा पैसा मांग रहा है ताकि सूबे को पटरी पे लाया जा सके । बडी सरकार छोटे सूबेदार के बदलते पलटते तेवर और अपने खजाने को देखते हुए उनकी इस मांग को कितना मांगेगी ये तो भविष्य की बात है मगर मेरे कहने का मतलब ये था कि , कोई भी चौक चौराहा , बाज़ार , हाट , दालान , और खेत तक राजनीति की बातों से पटे और भरे हुए होते हैं । और कमाल की बात ये है कि ग्राम स्तर की राजनीति से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों , परिवर्तनों पर अपनी टिप्पणियां जरूर करते हैं , बहस करते हैं , और एक दूसरे को बाकायदा अपने तर्क से खुद को पराजित करने की चुनौती देते हैं ।


दिल्ली से मधुबनी के रेल सफ़र में , मुझे एक मंडल जी (उन्होंने पूरी यात्रा में बार बार यही कहा कि किसी से भी मेरे बारे में पूछिएगा कि मंडल जी के यहां जाना है वो बता देगा ) ने पूरी यात्रा में न सिर्फ़ राजनीति ,समाज , अपने परिवार और बाल बच्चों की बात में बहुत सी बातें साझा कीं । जैसे कि उन्होंने बताया कि रेल सफ़र के दौरान आप आसानी से उत्तर प्रदेश से बिहार की सीमा में प्रवेश करने का फ़र्क महसूस सकते हैं , मुझे जानकर विस्मय और हर्ष हुआ जब उन्होंने बताया कि जहां से आपको कृषि भूमि कम और वनस्पति ज्यादा सघन दिखाई देने लगे समझ जाइए कि आप बिहार की सीमा में प्रवेश करने जा रहे हैं ।

बात राजनीति की चल निकली , मंडल जी पुराने कांग्रेसी थे उनके पास एक बडी ही मजेदार दलील थी जिसे उन्होंने पूरे सफ़र के दौरान बहुत बार दोहराया कि जो भी कहिए सरकार तो कांग्रेस को ही चलानी आती है ...............आखिरी बार मुझसे नहीं रहा गया और मुझे उनकी बात काटते हुए कहना ही पडा कि " हां सरकार तो कांग्रेस चला ही लेती है , मगर देश उससे नहीं चलाया जाता "।बात दिल्ली की नए नवेले राजनीतिक  प्रयोग से शुरू होकर आगामी  लोकसभा चुनावों पर जाकर अटक गई । रेल से शुरू हुई ये बहस , आगे गांव के चौराहे और दालानों तक भी खूब चली ।

बडे बूढे बुजुर्ग तक की पूरी राजनीतिक चर्चा का सार यही था इस बार मोदी ही राष्ट्रीय राजनीति के एकमात्र अगुआ साबित होंगे , और वे मुझसे इस तरह से पूछ रहे थे मानो सिर्फ़ आश्वस्त होना चाह रहे हों , बाकी उन्हें पता तो है कि होगा यही । जहां तक बिहार की वर्तमान प्रादेशिक सरकार और उसके राजनीतिक दृष्टिकोण पर मेरा मानना ये था कि नीतिश कुमार की टाइमिंग बहुत ही गलत रही , समर्थन वापस भी लिया तो उस पार्टी से जिसका भविष्य आगामी राष्ट्रीय राजनीति में सबसे प्रबल है , समर्थन वापस भी लिया तो किस मुद्दे पर , नरेंद्र मोदी को आगामी प्रधानमंत्री के रूप में नामित करने के कारण , दूसरी तरफ़ जिस केंद्रीय सरकार की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष छवि के साथ अपनी छवि चमकाने की कोशिश वे कर रहे हैं और जिस बडे खजाने को पाने के लिए कह और कर रहे हैं वो फ़िलहाल उन्हें मिलता नहीं दिख रहा है ।
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यहां बिहार में दिखते विकास और परिवर्तन को महसूसते हुए भी जो दो बातें मुझे अखर रही थीं वो ये थीं अब तक भी राज्य में औद्योगीकरण व व्यापार को वो दिशा दशा नहीं मिल पाई थी जो शायद एक बडा बदलाव ला सके । आज भी प्रांत के लोगों की पूरे देश में जाकर वहां काम करने , पढने , मजदूरी करने के लिए जाने को विवश होना पड रहा है , पलायन तो अब भी बदस्तूर जारी है , क्यों नहीं आज तक प्रांत के मुखियाओं ने पूरे देश से हिम्मत करके कहा कि ये जो हमारे लोग , आपके सबके प्रदेशों में , राजधानियों से लेकर छोटे मोटे शहरों में , बैंक , दफ़्तर , दुकान से लेकर सडकों तक पर अपनी मेहनत और अपने बूते पर अपना सर्वस्व आपको दे रहे हैं तो फ़िर क्यों नहीं उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए बनिस्पत इसके कि उन्हें क्षेत्रीयता और भाषाई निशाने पर रखा  जाए ।


ग्राम यात्रा सीरीज़ की आखिरी पोस्ट भी जल्दी ही पढवाऊंगा आपको .................
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