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मंगलवार, 11 मार्च 2025

बिहार की शराबबंदी या शराब में बिहारबंदी

 



सोच कर देखिये कितनी मजेदार बात है न जिस प्रदेश में शराब की बंदी हो और वो भी पिछले कई सालों से और सरकार ,प्रशासन पुलिस सब इस बात की ख़ुशी भी जाहिर करते हों वहां असलियत ये है कि पूरा प्रदेश ही शराब की लत में ऐसा फंसा हुआ है जिसे आप शराब में बिहार बंदी कह सकते हैं।  

कुछ वर्ष पहले दीपावली और कालीपूजा के अवसर पर गृह प्रदेश बिहार जाना हुआ तब ये सारा खेल अपनी आँखों से देख कर आया कि असल में जिस शराब के क्रय विक्रय को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने का दावा किया जा रहा है और जताया बताया दिखाया जा रहा है उससे उलट अब तो घर बैठे ही कच्ची , पक्की देसी , अंग्रेजी शराब , ठर्रा , सब उपलब्ध कराया जा रहा है।  

मुझे ये भी समझाया गया कि शराब वितरण के इस तंत्र के भी कुछ अपने कायदे और कोडिंग है , मसलन फोन पर व्हाट्सअप पर जब शराब मंगवाने के लिए ऑर्डर दिया लिया जाता है वो वो होता है चवन्नी , अठन्नी और रुपया यानी क्वार्टर , अद्धा और पूरी बोतल ,वाह कितनी नायाब तरकीब है।  इसके अलावा देसी और नकली शराब की तो पहले से ही पौ बारह है इसलिए गाहे बेगाहे नकली शराब पीकर परलोक सिधारने वाले मद्य वीरों की ख़बरें अक्सर पढ़ने देखने सुनंने को मिल ही जाती है।  

इसके अलावा जो खबर नियमित रूप से देखने पढ़ने को मिलती है वो होती है पुलिस की छापेमारी में शराब और शराब तस्करों की पकड़ा पकड़ी और गिरफ़्तारी की खबर और इसके साथ ही कहीं को कोई बड़ा अधिकारी , चिकित्सक , व्यापारी और उनके साथी जो शराब की पार्टी जलसा करते पकडे जाते हैं।  



सब के सब शामिल हैं इस कारोबार में
हर आदमी पड़ा हुआ है शराब के प्यार में 


शराब पीकर अपनी दयनीय स्थिति को और अधिक नारकीय और भयानक करता बिहार का समाज कभी अपने आप को रोग मुक्त कर पाएगा इस बात की उम्मीद दूर दूर तक नहीं दिखाई देती।  

बुधवार, 15 मार्च 2023

बिहार का दूल्हा , पंजाब की दुल्हन , चले गाँव की ओर , मगर रेल ही पलट गई

 





सच ही तो है न , इश्क मुहब्बत प्यार प्रेम , जिस नाम से इसे पुकार लीजिए , मगर ये तो धक्क से रह जाने , हाँ वही जब पहली बार आँखें मिलते ही , कई बार तो बोझिल आँखें बड़ों की मौजूदगी में एक दुसरे की नरमी गरमी महसूस भर लेते हैं , तो वो जो प्रेम है , उसका हमारे मामले में मामला कुछ ये रहा कि एक ही बैच में नियुक्त होने वाले हम मधुबनी बिहार से और हमारी सहकर्मी जालंधर पंजाब से के बीच दोस्ती , मुहब्बत से विवाह तक के निर्णय की दास्ताँ कुछ ऎसी रही की कम्बख्त अखबारों तक में छप कर बाद में भी छपती रही।

एक मई मजदूरी दिवस के दिन विवाह हुआ विवाह में शामिल होने आई हमारी दादी माँ पूरा परिवार विवाह के दो दिनों बाद वापस दल बल सहित रेल से पहुंच गया जाकर तयारी करनी थी , बिहारी मैथिल युवक अपनी गैर मैथिल पंजाब की वधू को गौना कराकर मधुबनी के एक छोटे से गाँव लेकर आने वाला था। इससे पहले श्रीमती जी के लिए रेल यात्रा का मतलब एक बार कभी किसी जनम में जालंधर से दिल्ली किसी ट्रेन में बैठ कर वे आई थीं बाकी तो बस सेवा ज़िंदाबाद।

इससे ठीक उलट हमारा जन्म ही रेल यात्राओं के लिए हुआ हो जैस , पहल पिताजी के फौजी जीवन वाली पोस्टिंग में फिर अपनी नौकरी वाली जेनरल डिब्बे वाली धधड़ाध यात्राओं ने कुल मिला कर रेल को घर आँगन जैसा ही फील देने वाला बना दिया था। मगर जब आप बात देश के किसी भी कोने से रेल से अपने बिहार जाने की बात करते हैं तो , बस भावनाओं को समझिये न , बहुत गजब ट्रेकिगं होती है रेल टिकट से लेकर आना जाना भी , तब तो और हुआ करता था।

हमें श्रमजीवी एक्सप्रेस से 11 मई को गाँव के लिए निकलने के लिए टिकट आरक्षित का एक बहुत बड़ा उपकार मिला। , पहली बार दुल्हन ससुराल चली तो जाहिर सी बात है की अटैची और नई नवेली दुल्हन के गहने जेवर मेरी इस यात्रा में इससे पहले की सारी बेफिक्री वाली यात्रा में मेरे लिए एक अलग कठिनाई कैसे बनने वाले वाले थे इसका भी रत्ती भर अंदाज़ा तब नहीं था मुझे , एक कठिनाई तो पहले ही श्रीमती जी को उनकी पहली लम्बी रेल यात्रा वो भी बीच मई की गर्मी में , खैर साथ बर्थ पर जो परिवार आया उसमें एक मेरे जैसा ही अपनी पत्नी और अपनी छोटी के बहन के साथ दरभंगा तक जाने वाला सहयात्री था।

रात तीन बजे अचानक तक आवाज़ के साथ बहुत तेज़ धमाके की आवाज , रेल गाडी इतना जोर से उछली , और घुप्प अँधेरे के बीच मची चीख पुकार , बाहर इतना गहरा अंधेरा कि की खुद ही खुद को न देख पाएं। मैं धमाके की आवाज़ के साथ ही बीच बर्थ पर सोइ श्रीमती जी को संभाल चुका था इससे पहले कि वो कुछ समझतीं मैंने उन्हें अश्वस्थ किया किया कुछ नहीं हुआ सब ठीक है। मगर बाहर चीख पुकार की आवाज़ तेज़ होने लगी थी , हमारी धड़कने तेज़ हो गई थीं इस आशंका से कि जरूर रेलगाड़ी को लूटने के मकसद से बीच जंगल यूँ रोका गया ,
मेरी कनपटी एकदम गर्म हो चुकी थी , मगर अँधेरे के कारण हमने वहीँ रुकना ठीक समझा क्यंकि सामने भी एकदम चुप्पी थी।

लेकिन शोर इधर की तरफ नहीं आया ा, हम सब डब्बे वाले रुके रहे कोई अपनी चोट सहला रहा था तो कोई फुसफुसाहट से अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिए बोल रहा रहा। अँधेरा छँटा और थोड़ा थोड़ा उजाला हुआ तो हमने सबको वहीँ रुकने कह कर दो और लोगों के साथ डब्बे के दरवाजे की और बढ़ गए , खोल कर देखा तो आगे रेल दुर्घटना के कारण डब्बे पलट गए थे। बच खुच कर लोग बाग़ आस पास के खेतों में उतरते जा रहे थे।

हमने भी आनन फानन में यही निर्णय लिया कि इस डब्बे से उतर के खेत में ही चला जाए क्यूंकि , हम अब रेल के आखिर में साबुत बचे दो डब्बों में से एक थे और कहीं पीछे से किसी रेल ने आकर हमें जादू की झप्पी दे दी तो हमार हो जाना हैप्पी बर्थ दे। इसके बाद सर पर अटैची , दोनों कन्धों पर भरी बैग , मयुर जग और साथ में दस दिन पहले की ब्याहता , पहले डेढ़ किलोमीटर तक चल कर सड़क पर पहुंचे ,.

साथ में चल रहे भाई ने खेतों में चलते हुए बात बात में चिंता जताई कि उसके बाद बहुत ज्यादा पैसे नहीं तो कैसे जा पाएंगे , उन्हें दरभंगा जाना था , मैंने मुसीबत में एक से दो भले और फिर एक जैसे ही हालात वाले दोनों भाई बंधु इसलिए मैंने कहा आप पैसों की चिंता न करें , साथ चलेंगे। लेकिन सड़क पर आते ही जो पहला काम मैंने किया वो था बूथ से अपनी श्रीमती जी के यहां फोन करके सूचित करना कि , रेल खराब हो गई है हमने रेल बदल ली है ( मुझे पता था कि उन्हें बाद में समाचारों में पता चलना था रेल दुर्घटना का और कुशलनामा न होने पर वे परेशान होते ) , लेकिन इस फोन कॉल का एक अलग ही रोल हो गया इस पूरे घटनाक्रम में।

शादी के बाद पहली बार बिहार का दूल्हा अपनी पंजाब की दुल्हन को लेकर चला अपने गाँव , और श्रीमती जी की उस पहली लंबी रेलयात्रा का संयोग ऐसा रहा कि कम्बख्त रेल दुर्घटना हो गई , और फिर चौबीस घंटों की वो रेल यात्रा पूरे 72 घंटे की कार , बस और टैक्सी यात्रा में बदल गई। पिछले पोस्ट में आप पढ़ चुके हैं कि कैसे अचानक हुए इस भयानक रेल हादसे ने हमें बुरी तरह से संकट में डाल दिया। रेल की पटरियों को छोड़ खेतों के रास्ते तीन चार किलोमीटर सारा सामान कन्धों और सर पर उठा कर सड़क मार्ग तक पहुंचे और फिर वहां एस टी डी बूथ की लम्बी लाइन में लग कर अपनी ससुराल में फोन करके सिर्फ ये सूचना दी की ट्रेन में कुछ खराबी के कारण हम दुसरे रास्ते से जा रहे हैं।

ससुरालियों ने समाचार अभी तक न देखा था न सुना था इसलिए वे समझ नहीं पाए कि ये रेल खराब हो गई , दुसरे रास्ते से जा रहे हैं , मगर कुल मिलाकर मैं जो समाचार देना चाह रहा था वो ये कि हम सकुशल हैं जब रेल दुर्घटना के बारे में पता चले तो घबराएं नहीं और सब समझ जाएं। मेरे साथ ही ऐसी ही मुसीबत में पड़ा एक और परिवार जिसमे एक भाई साहब , जिनका नाम शक्ल अब मुझे रत्ती भर ही याद नहीं , वे अपनी पत्नी और छोटी बहन के साथ थे वे भी जुड़ गए , उन्हें दरभंगा जाना था मुझे मधुबनी , दो मुसीबत के मारे बन गए एक दुसरे के सहारे। उन्होंने मुझे इशारे में बताया कि उनके पास आगे जाने के लिए पर्याप्त पैसे शायद नहीं हैं लेकिन घर पहुँचते ही वे सब संभाल लेंगे। मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि चलिए साथ चलेंगे। आगे की आगे देखी जाएगी। हमने टैक्सी ली और पहुँच गए बनारस।

बनारस से पटना और फिर पटना से सड़क मार्ग से ही होते हुए अगली रात को दरभंगा और फिर बहुत जयादा रात को मधुबनी , जहां अनुज ने पहले ही हमारे रुकने ठहरने का इंतज़ाम कर रखा था। मधुबनी पहुंचते पहुँचते हमारी हालत पस्त हो चुकी थी। मई की गर्मी अपने चरम पर थी। लेकिन इस बीच जो कुछ मेरे गाँव में घट रहा था वो सब मुझे गाँव पहुँच की पता चला।

अनुज जो कि विवाह के पश्चात गौने की रस्म , रीति , भोज आदि की तैयारी में लगा हुआ था और सभी बंधू बांधवों और रिश्तेदारों को निमंत्रण देने के लिए जब मेरी नानी गाँव पहुँचा तो किसी ने पूछ लिया कि किस रेल से आ रहे हैं भैया भाभी ??

श्रमजीवी से

क्या , श्रमजीवी से , लेकिन उसका तो एक्सीडेंट हो गया है

भाई ने चौंक कर गुस्से में उससे कहा ,' क्या बकवास कर रहा है झूठ कह रहा है या सच ??

नहीं भैया , सुबह ही समाचार में बता रहे थे।

अब घबराने की बारी अनुज की थी , उसे न हमारी कुशलता की जानकारी थी न ही कोई सूचना थी। सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि , एक तरफ जहाँ घर पर सभी समारोह , और दावत अदि की तयारी चल रही थी , उन्हें कैसे रोका जाए और कैसे न रोका जाए। अनुज पिताजी और माँ को अभी नहीं बताना चाह रहा था। लेकिन इस बीच मेरे ससुराल में किए गए उस फोन कॉल जिसमें मैंने अपने सकुशल होने की सूचना दे दी थी उसी फोन ने सब कुछ संभाल लिया। अनुज मधुबनी आकर एस टी डी से काफी मशक्कत के बाद मेरी ससुराल में बात कर सका और उसे इतना तो पता चल गया कि भैया भाभी ठीक हैं लेकिन कहाँ हैं , कब आएँगे कैसे आएँगे इसकी कोई जानकारी नहीं थी। मोबाइल का ज़माना था नहीं। खैर , मधुबनी में आधी रात या शायद् उससे भी अधिक समय में अनुज और अनुज मित्र , दोनों प्रतीक्षा रत मिले।

दरभंगा में हमने साथी परिवार को भी उनके घर पर उतारा और उन्होंने घर में जाते ही , अपने माँ या पिताजी से पैसे लेकर , उस समय तक का सारा खर्च जो भी मेरी तरफ से किया गया था वो सारा मुझे वापस करके बहुत सारा धन्यवाद करके विदा हुए।

गाँव में जब दूल्हा अपनी पंजाब वाली दुल्हन को लेकर पहुंचा तो लगभग आधा गाँव उमड़ पड़ा , कोई दिल्ली /पंजाबा की दुल्हन को देखने तो कोई ये देखने कि दुर्घटना के बाद बच्चे सकुशल तो हैं , और माँ चाची दादी सभी रह रह कर एक ही बात -दुल्हन किस्मत वाली है इतने बड़े दुर्घटना में भी अपने सुहाग को बचा लाई। दुल्हन की हो गई बल्ले बल्ले। 

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

लालच और मौकापरस्ती को छोड़ कर देश के लिए खेलना भारतीय खिलाड़ियों से सीखें पाकिस्तानी खिलाड़ी : दानिश कनेरिया

 

अपने बेबाक बयानों के लिए विख्यात पाकिस्तान के लिए क्रिकेट खेलने वाले एकमात्र पाकिस्तानी हिन्दू खिलाड़ी दानिश कनेरिया ने एक बार फिर से पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को आड़े हाथों लेते हुए खूब खरी खोटी सुनाई है।  

इतना ही नहीं दानिश ने इन खिलाड़ियों को नसीहत और फटकार लगाते हुए कहा है कि अपने देश अपने राष्ट्र के लिए खेलने का जज्बा किसी भी पैसे और मौके से बहुत बड़ा होता है ये सीखने के लिए पाकिस्तानी खिलाड़ियों को भारतीय खिलाडियों से सबक और सीख लेनी चाहिए।  

असल में  पूरा मामला ये है कि , पाकिस्तान की क्रिकेट टीम और उसके खिलाड़ी इन दिनों भयंकर मुफलिसी और बेकारी के दौर से गुजर रहे हैं।  भारत के साथ क्रिकेट संबंधों पर पूरी तरह से रोक लग जाने के कारण इन खिलाडियों को इस बार इंडियन प्रीमियर  लीग में भी नहीं खिलाया गया ,जिससे दुखी होकर शाहिद अफरीदी ने उन्हें खिलाने की गुहार भी लगाई थी।  

अब पाकिस्तानी खिलाड़ी अपने घर परिवार को चलाने के लिए विवश होकर दूसरे देशों की क्रिकेट टीम के लिए खेलने के अनुबंध और करार कर रहे हैं।  हाल ही में एक पाकिस्तानी खिलाड़ी सामी असलम  ने अमेरिका की क्रिकेट टीम से खेलने के लिए घरेलु क्रिकेट को अलविदा कह दिया।  यही बात दानिश को नागवार गुजरी और उन्होंने भारतीय खिलाड़ियों का नाम और उदाहरण देते हुए पाकिस्तानियों को खूब करी खोटी सुनाई।  



बुधवार, 15 अप्रैल 2020

चीन को दण्डित किये जाने की तैयारी




इस बीच खबर ये आ रही है कि , नराधम ,कृतघ्न ,लालची और महास्वार्थी धूर्त देश चीन के विरुद्ध विश्व भर के देश लामबंद हो रहे हैं . अंतर्राष्ट्रीय अदालत में अब तक अलग अलग कुल सात देशों ने वाद संस्थापित कर दिए हैं और अमेरिका ब्रिटेन जापान दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने चीन को स्पष्ट सन्देश देने शुरू कर दिए हैं |

उधर चीन भी अपनी आदतों के अनुरूप इस बीमारी के उद्भव ,प्रसार और उसमें उसकी अपनी कारगुजारियों को छिपाने की भरसक कोशिश कर रहा है | इससे जुडी तमाम जानकारियाँ ,चिकत्सकों की रिपोर्ट ,वैज्ञानिकों के शोधपात्र पर यथासंभव पाबंदी लगा कर अपने चिर परिचित चरित्र को उजागर कर रहा है |

यह सही मौक़ा है ,इस #चायनीज़वायरस से उबरने के बाद समूचे विश्व को इस धूर्त बदमाश अपराधी देश को सामाजिक आर्थिक रूप से बिलकुल अलग थलग कर देना चाहिए | ऐसे में स्वाभाविक रूप से बड़े बाज़ार और बड़े कामगार क्षेत्र के लिए पूरे विश्व के पास सबसे बेहतर और सबसे पहला विकल्प भारत होगा |

आज जिस तरह से इस महामारी की दवाई को पूरे विश्व को उपलब्ध करवाने में भारत पूरी दुनिया के बड़े से बड़े ताकतवर विकसित देश से लेकर छोटे देश तक का तारणहार बना हुआ है उससे भी एक बार फिर भारत की छवि तारणहार की और विश्व के अगुआ की बन गई है | ऐसे में पूरे विश्व का विश्वास पूरे विश्व का यकीन अपने आप ही भारत पर बन गया है |

इस महामारी से निपटने के बाद भारत को अपने आर्थिक संकट से निकलने के लिए भी निश्चित रूप से इन स्थितियों का लाभ मिलेगा बशर्ते कि शुरू से ही गणित में कमज़ोर (यूँ भी कमज़ोर गणित वाले दिल से काम लेने वाले होते हैं और लाभ हानि से ऊपर सिर्फ दिल से ही सोचते करते हैं ) , इस सरकार के पास तब तक कोई बेहतरीन और सटीक विकल्प मिल जाए |

जो भी हो चीन को मानवता के विरुद्ध किये जा रहे इस अपराध के लिए पूरे विश्व द्वारा जलालत के साथ साथ दण्डित किये जाने की भी जरूरत है | इसके अतिरिक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे तमाम वैश्विक संगठनों को भी उनके गैर ज़िम्मेदार रवैये के लिए भरपूर लानत मलामत की जानी चाहिए |


शनिवार, 11 अप्रैल 2020

आउटडेटेड हो गई क्या ब्लॉगिंग ??







अभी 1 मार्च को विख्यात ब्लॉगर दीदी रेखा  श्रीवास्तव जी द्वारा ब्लॉगरों के अधूरे सपनों को शब्दों के ताने बाने में बुनकर पुस्तक के रूप में संकलित कर प्रकाशन किये जाने और उसे पाठकों के लिए उपलब्ध करवाने का अनौपचारिक कार्यक्रम जब भाई राजीव तनेजा (यहाँ बिना संजू भाभी संजू तनेजा जी ,के ज़िक्र के ये बात कभी मुकम्मल नहीं हो सकती ) द्वारा शब्दों की दुनिया के दोस्तों के लिए उपलब्ध कराए गए एक प्लेटफॉर्म पर बना तो बहुत बार मेरे ऐसे किसी कार्यक्रम में शिरकत किये जाने का टाल मटोल भी ख़त्म सा हुआ और ऐसा संयोग बना की मैं देर से ही सही उस कार्यक्रम में अपनी उपस्थति दर्ज़ करवा पाया।  

मेरे पहुँचने तक क्या कैसे हो चूका था ये तो मैं नहीं जान पाया हाँ गंतव्य स्थल तक पहुँचने के लिए भाई राजीव तनेजा  जी से फोन द्वारा दिशा निर्देश लेते रहने के कारण वे तो अगुवाई करते पहले ही मिल गए। आदतन मैं आजम से सबसे पीछे बैठ कर सारा ज़ायज़ा लेने लगा। दीदी रेखा श्रीवास्तव आज के कार्यक्रम की शो स्टॉपर थीं सो एक एक आने जाने वाले पर उनकी नज़र थी।  



पोडियम पर रंजना जी , जिनसे मेरी पहली मुलाक़ात थी ,अपने रेडियो प्रस्तोता होने के कारण बहुत अधिक दक्षता से कार्यक्रम का कुशल संचालन करती दिखीं और वहीँ  हमारे सुपर स्टार ब्लॉगर ,डॉ टी एस दराल सर , भाई खुशदीप सहगल जी ,शाहनवाज़ जी ,दिगंबर नासवा जी आदि विराजे हुए थे। नज़रें घूमी तो भाभी संजू तनेजा ,दोस्त ब्लॉगर वंदना गुप्ता ,नीलीमा शर्मा ,मुकेश सिन्हा जैसे सितारे भी अपना नूर बिखेरे हुए थे। दीदी रेखा श्रीवास्तव जी के परिवार व समस्त बन्धुगण भी कार्यक्रम की शोभा बढ़ाते हुए सबको तसल्ल्ली बक्श सुन रहे थे। 

रंजना जी सबको एक एक करके आमंत्रित कर रही थीं और साथी ब्लॉगर अपने ब्लॉगिंग के अनुभवों को साझा करते चलते जा रहे थे। मुझे सालों पहले होने वाली ब्लॉग बैठकों की याद आने लगी थी। भाई खुशदीप सहगल जी ने शुरआती दिनों की ब्लॉगिंग के दिलचस्प किस्सों को साझा करते हुए बहुत से रोचक किस्से सुनाए ,चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी जैसे संकलकों की चर्चा ,उन पर चली खींचतान आदि की बाबत बातें हुईं। 



भाई शाहनवाज़ हुसैन जो अभी हमारीवाणी संकलक के संचालन का कार्य देख रहे हैं उन्होंने भी तकनीकी बातों के साथ ब्लॉगजगत के अनुभव साझा किये। दराल से ने अपने हर दिल अज़ीज़ अंदाज़ से सबको गुदगुदा दिया तो वहीँ नासवा जी ने बताया की कैसे उन्होंने कभी भी अपने ब्लॉग पोस्ट की रफ़्तार को थमने नहीं दिया। 

मुकेश सिन्हा जी ने अपने ब्लॉग्गिंग के सफर की दास्ताँ सुनाते हुए ,भाई संजय भास्कर जी का उनकी रोचक व नियमति टिप्पणियों का उल्लेख किया तो राजीव तनेजा जी ने बताया की कैसे ब्लॉगिंग ने उनकी साहित्यिक और व्यंग्य लेखन के प्रति उनकी रूचि को अंजाम तक पहुंचाने में मदद की। 

हमारी महिला ब्लॉगर में दोस्त वंदना गुप्ता जो अब एक ब्लॉगर से कहीं आगे जाकर विख्यात लेखिका बन चुकी हैं उनहोंने न सिर्फ अपने ब्लॉग लेखन के अनुभव साझा किए बल्कि ब्लॉगिंग में एक सशक्त और नियमित संकलक की जरूरत और उसके लिए कुछ किए जाने की जरूरत की ओर सबका ध्यान दिलाया। उनका साथ सिया नीलीमा शर्मा जी ने और उन्होंने भी अपने ही अंदाज़ में सबके साथ अपने अनुभव साझा किये। विख्यात ब्लॉगर कवियत्री साहित्यकार मित्र सुनीता शानू जी ने भी अपने मुस्कराहट के साथ ब्लॉगिंग के अनुभव को साझा करते हुए पुराने दिनों को याद किया साथ ही ये भी कि बेशक इसकी गति नए प्लेटफॉर्म्स के आने से थोड़ी सी कम हो गई है किन्तु उन्हें विशवास है कि सब कुछ पहले की तरह ही रफ्तार में आ जाएगा।  

दीदी रेखा श्रीवास्तव जी ने बताया की कैसे उन्हें ये ब्लॉग जगत एक परिवार की तरह अपने मोह में बांधे रखा कर ये भी कि बहुत से अन्य ब्लॉगर के सपनों को शब्द देकर अधूरे सपनों की कसक का दूसरा भाग भी वे लेकर आएंगी।  

मैंने ब्लॉगिंग के शुरआती दिनों , ब्लॉग जगत की बढ़ती हलचल ,ख्याति से न्यू मीडिया का दखल और प्रभाव उसे बाँधने की कोशिशें ,समयांतराल पर उसमें आई मंथरता , एक बेहतरीन संकलक की जरूरत आदि पर अपने विचार रखे।  बीच में ताऊ ,उनकी पहलेयाँ ,चिट्ठा चर्चा , बेनामी ,ब्लॉग वकील आदि के रोचक किस्से भी सामने आए 

रंजना  जी के कुशल मंच संचालन के कायल मुझ सहित वहाँ उपस्थित सभी साथी हुए। 

इसके उपरान्त पुस्तक के लोकार्पण ,उसकी चर्चा और गरमा गर्म भोजन के साथ भी आगे का कार्यक्रम बदस्तूर चलता रहा।  निःसंदेह ऐसे कार्यक्रम ,ऐसे बहाने ,नई ऊर्जा का संचार कर न सिर्फ ब्लॉगिंग बल्कि हम ब्लोगर्स में भी नई स्फूर्ति का संचार करते हैं।  



मुझे उम्मीद थी की पहले की तरह इस ब्लॉग बैठकी की भी रिपोर्ट लिखने के बहाने कुछ नई पोस्टें और बातें हमें और तमाम साथियों को भी मिल जाएंगी ,मगर ऐसा हुआ नहीं , और ये प्रश्न पुनः सर उठाए इधर उधर घूमता फिर रहा है कि -आउटडेटेड हो गई क्या ब्लॉगिंग  ?? इसका उत्तर हमें और आपको तलाशना है और करना भी कुछ नहीं है सिर्फ इसके सिवा कि नियमित अनियमति होकर भी ब्लॉग पोस्ट लिखते रहना है और ब्लॉग पोस्ट पढ़ते रहना है। 

रविवार, 29 मार्च 2020

महामारी में महातमाशा





पहला दिन : बंदी से पहले और बंदी वाले पहले दिन लोगों ने दुकानों पर                         मेला लगाया
दूसरा दिन : दूसरा दिन ,पुलिस ने उठक बैठक करवाते मुर्गा बनाते ,लाठी                     भाँजते करतब दिखाया
तीसरा दिन : मीडिया ने अचानक ही लोगों को भूखे मरते तड़पते बिलखते                     वाला तमाशा दिखाया
चौथा दिन :   आखिरकार जनता ने भी सब कुछ भूल भाल कर सड़कों पर                     आकर मजमा लगाया |

लब्बो लुआब ,ये देश ,प्रशासन ,व्यवस्था ,सरकारें ,स्वयं सेवक और सबसे अधिक आम लोग अभी तक भी किसी भी कैसी भी आपदा से निपटने की तैयारी ,बचाव आदि तो दूर अभी तक किसी को भी आपदा के समय किये जाने वाला व्यवहार और सचेतता का भी पता नहीं है |

पश्चिम के देश जो भौगोलिक परिवेश के कारण भारत से कहीं अधिक भयंकर प्राकृतिक आपदाएं झेलते हैं बार बार भुगतते हैं ,मगर हर बार सबक सीख कर अगली आपदा के लिए खुद को और पूरे समाज को भी तैयार करते हैं | बावजूद इसके कि उन  देशों में तकनीक और संसाधन की प्रचुर सुलभता के बावजूद वे कभी लापरवाह या उपेक्षित नहीं होते | इसके ठीक उलट भारतीय अवाम ऐसे समय भी अपने उद्दंड स्वभाव और व्यग्रता तथा अशिक्षा के कारण ,प्रशासन व सरकार द्वारा की गयी थोड़ी बहुत की गई तैयारियों को भी पलीता लगा देते हैं |

वर्तमान में सिर्फ दो ही सूरतों में इस महामारी के बड़े प्रकोप से बचने की संभावना है | पहली ये कि सैकड़ों लाखों के इस समूह में मरीज़ और पीड़ित की संख्या नगण्य हो या बहुत ज्यादा कम हो | आगे जाकर समाज में घुलमिल कर उसे और अधिक विकराल रूप में पहुंचाने से पहले ही इनकी जांच व् पहचान सुनिश्चित करना |

दूसरी ये कि फिलहाल मौसम में जो अनिश्चितता बनी हुई है वो स्थिर होकर ,सामन्यतया इस ऋतू के औसत तापमान और उससे अधिक तक जितनी जल्दी से जल्दी पहुँच सके तो इसके प्रसार की रफ़्तार और ज़द में थोड़ी मंथरता आने की संभावना है |

ये देश हमेशा से भागवान भरोसे ही छोड़ा जाता रहा है ,भगवान भरोसे ही चलता रहा है और भविष्य में भी इस स्थिति में कोई बहुत बड़ा फर्क आएगा ऐसा लगता नहीं है | आने वाले सात दिनों में स्थिति बिल्कुल स्पष्ट हो जाएगी कि हम खराब से उबर कर सब ठीक होने की हालात में जाएंगे या इससे भी बदतर हालातों में पहुंचेंगे |





गुरुवार, 5 सितंबर 2019

ये उन दिनों की बात थी -वो इंग्लिश वाली मैम



शिक्षक दिवस पर प्रकाशित एक आलेख 


शिक्षकों के लिए कक्षा में दो ही विद्यार्थी पसंदीदा होते हैं अक्सर , एक वो जो खूब पढ़ते लिखते हैं और हर पीरियड में सावधान होकर एकाग्र होकर उन शिक्षकों की बात सुनते समझते हैं और फिर परीक्षा के दिनों में उनके तैयार प्रश्नपत्रों को बड़ी ही मेहनत से हल कर अच्छे अंकों से पास होते हैं | ये वाले बच्चे कक्षा दर कक्षा शिक्षकों के प्रिय और सर्व प्रिय हो जाते हैं | इनके अलावा एक दूसरे होते हैं वो जो किसी खेल कूद में ,किसी अन्य विधा जैसे चित्र कला संगीत वाद्य आदि में निपुण होते  हैं वे भी कक्षा के अलावा पूरे स्कूल के भी प्यारे होते हैं | पहले वालों का खेल कूद आदि में बहुत कुछ न कर पाना माफ़ होता है और दूसरों वालों का पढ़ाई लिखाई में चलताऊ होना | 

इनके अलावा जो तीसरे प्रकार के होते हैं जिनकी संख्या दोनों वाली श्रेणी से अधिक होती है वे भी प्यारे होते हैं मगर एक दूसरे के | मगर कभी कभी कोई शिक्षक या शिक्षिका अपने अलग अंदाज़ के कारण अलग ही बच्चों को अपना प्रिय बना लेते हैं और उससे अधिक वो उन बच्चों के प्रिय हो जाते हैं | ऐसी ही थीं हमारी आठवी कक्षा की एडगर मैम , उनका नाम क्या था न उस समय पता था न ही आज तक पता चला | मगर अंग्रेजी भाषा के कमज़ोर विद्यार्थी उन्हें डर के मारे अजगर मैम कह कर पुकारते थे | कक्षा आठ में पहला परिचय और पहला ही पीरियड इस अंगरेजी और एडगर मैम से हुआ | हमारा और उसमें भी मेरा विशेष रूप से इसलिए हुआ कि उन बच्चों ,जो कक्षा में जोर जोर से पढ़ने के डर के मारे पसीने पसीने हो जाते थे ,उन बच्चों में से एक बच्चा मैं भी था | 

पहला सबक मिला एक डिक्शनरी खरीद कर अगले दिन से कक्षा में लाने का आदेश (डिक्शनरी अब तक मेरे पास है ,और अंग्रेजी से अंग्रेजी भाषा के शब्दार्थ वाली है ) फिर उसके बाद तो शायद ही कोई पीरियड ऐसा गुजरता हो जब बीच कक्षा में खड़े होकर ,जहाँ से मुझ से पहले वाले सहपाठी ने ख़त्म की वहीं से , पाठ को जोर जोर से पढ़ने का अनवरत अभ्यास | पहले पहल बड़े अक्षरों को एक बार में भी न पढ़ पाने ,उच्चारण का पूरा क्रिया कर्म कर डालने के कारण मनोरंजन का पात्र बने हम कब धीरे धीरे अंग्रेजी पढ़ने समझने और उसे बेहतर करने में पारंगत हुए पता ही नहीं चला | दसवीं कक्षा में आकर भी अंग्रेजी ने नहीं डराया जो हलकान किया वो कम्बख्त गणित ने ही किया | 

असली कमाल तो शुरू हुआ कक्षा 11वीं में जहां इस गणित विज्ञान के चक्रव्यूह से निकल कर अपने पसंदीदा विषयों हिंदी अंग्रेजी इतिहास अर्थशास्त्र राजनीतिशास्र व  मनोविज्ञान जैसे विषयों को पढ़ने समझने का मौक़ा मिला | ये एडगर मैम द्वारा पढ़ाए गए और उससे अधिक उनके द्वारा जगाए आत्मविश्वास का ही परिणाम था कि मेरे जैसा विद्यार्थी स्नातक में अँग्रेजी प्रतिष्ठा के साथ अपने महाविद्यालय में दूसरे स्थान पर उत्तीर्ण हो सका | आज भी मन ही मन मैं उनको बार बार प्रणाम करता हूँ और शायद ही कोई दिन जाता हो जब मैं उन्हें न याद करता होऊं | बच्चों को अपनी आठवीं कक्षा की वो डिक्शनरी दिखाते ही उनकी प्रतिक्रया देखने लायक होती है | 

ये उन दिनों की बात थी 

सोमवार, 26 अगस्त 2019

चिट्ठा चर्चा दोबारा शुरू -हिंदी ब्लॉगिंग को दोबारा लौटाने का एक प्रयास



जैसे जैसे ब्लॉगिंग की तरफ लौट रहा हूँ तो देख रहा हूँ कि हिंदी ब्लॉगिंग का प्रवाह सच में ही बहुत कम हो गया है | हालत ये है की पूरे दिन में यदि पचास पोस्टें भी नज़रों के सामने से गुज़र रही हैं तो उसमें से दस तो वही पोस्टें हैं जो इन पोस्टों के लिंक्स लगा रही हैं |   
टिप्पणियों का हाल तो और भी खस्ता है | अधिकाँश पोस्टों पर सिर्फ यही देखने पढ़ने को मिल रहा है की आपकी पोस्ट का लिंक फलाना ढिमकाना में लगाया गया है आकर जरूर देखें | जबकि पोस्टों को चुनने सहेजने वाले ब्लॉगर मित्र खुद अपनी राय तक नहीं दे रहे हैं वहां |
समाचारों को ब्लॉग पोस्ट में चस्पा करके लगातार जाने कितनी ही पोस्टों का प्रकाशन किया जा रहा है | विषयवार सामग्री तलाशने वालों के लिए ये निश्चित रूप से निराश करने वाली बात है | सभी ब्लॉगर मित्र एक साथ धीरे धीरे ही सही प्रयास शुरू करें तो ये महत्वपूर्ण विधा फिर से अपनी रफ़्तार पकड़ लेगी मुझे पूरा यकीन है |
अपने स्तम्भ ब्लॉग बातें के लिए मुझे एक विषय पर गिन कर दस पोस्टें भी पढ़ने को नहीं मिलीं | फिलहाल मैं अपने इसी ब्लॉग झा जी कहिन पर चिट्ठा चर्चा (सिर्फ पोस्टों के लिंक्स नहीं ) शुरू करने जा रहा हूँ | जहाँ पोस्टों को पढ़ कर उनका विश्लेषण व चर्चा करूँगा , एक पाठक के रूप में एक ब्लॉगर के रूप में भी और ये काम बहुत जल्द शुरू करूंगा
 आप तमाम मित्र मुझे अपने ब्लॉग के लिंक अपनी पोस्ट के लिंक और ब्लॉग से सम्बंधित कुछ भी मेरे मेल में ,मेरे फेसबुक पर ट्विट्टर कहीं भी थमा सुझा सकते हैं | इस विधा को दोबारा से अपनी रवानी में लाने के लिए निरंतर किए जाने वाले इस प्रयास में मुझे आप सबका साथ चाहिए होगा , आप देंगे न साथ मेरा
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बुधवार, 21 अगस्त 2019

दोस्ती ज़िंदगी बदल देती है




कहते हैं कि संगत का असर बहुत पड़ता है और बुरी संगत का तो और भी अधिक | बात उन दिनों की थी जब हम शहर से अचानक गाँव के वासी हो गए थे | चूंकि सब कुछ अप्रत्याशित था और बहुत अचानक हुआ था इसलिए कुछ भी व्यवस्थित नहीं था | माँ और बाबूजी पहले ही अस्वस्थ चल रहे थे | हम सब धीरे धीरे आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे और भरसक प्रयास कर रहे थे कि किसी तरह से सब कुछ बिसरा कर आगे बढ़ा जाए |
चूंकि शहर से अचानक आया था और तरुणाई की उस उम्र में वहां तब तक कोई दोस्त नहीं बन सका था | गाँव के बहुत से अनुज जिनमें बहुत से चचेरे भाई थे वे सब दोस्त की तरह होते जा रहे थे | गाँव में होने के बावजूद आदतन पहनवा आदि शहरी जैसा ही था | शर्ट को पैंट के अंदर रखना , बेल्ट लगाना , गाँव से बाहर जाते समय जूते पहनना | कुल मिलाकर कोई दूर से ही देख कर समझ सकता था कि हम ग्रामीण परिवेश से अलग हैं | यही बात उस समय गाँव के कुछ हमउम्र लड़कों को नहीं भा रही थी |
इनमें से एक युवक थे संजीव ,जिनके पिताजी उस समय गाँव के सबसे रसूखदार ,जमींदार और धनवान व्यक्ति थे | संजीव की परवरिश लाड प्यार से हुई थी और बोर्डिंग स्कूल आदि में भी रहे थे सो ज़ाहिर तौर पर बहुत अधिक शरारती , उद्दंड थे | छोटी छोटी बातों पर मारपीट कर लेना झगडा कर लेना उनकी आदत थी | हमारी निकटता की शुरुआत भी एक ऐसी ही झड़प से हुई जो मेरे लिए बिलकुल नई बात थी | संयोगवश संजीव के सबसे कनिष्ठ चाचा जी ,जिन्हें हम प्यार से भैया बुलाते थे , बात उन तक पहुँच गयी और उन्होंने संजीव को बहुत डाँट लगाई |
मगर असली कहानी तब शुरू हुई जब एक रात गाँव में पड़ी डकैती की घटना में उन भैया की ह्त्या कर दी गयी | पूरा गाँव उबाल खा गया और संजीव अब पहले से अधिक उग्र हो चुके थे | देशी कट्टे और जाने कैसे कैसे हथियार से लैस होकर बिलकुल दिशाहीन होकर पढ़ाई लिखाई त्याग कर एक अलग ही राह पर चल पड़े थे | अपने कुछ साथियों के साथ ही बिलकुल बिगड़ैल और असंतुलित | एक बहुत बड़ी दुर्घटना का शिकार भी और जान जाते जाते बची |
उनके चाचा और हमारे भैया के अचानक चले जाने के बाद हम दोनों के बीच का वैमनस्य जाता रहा | संजीव अब हमारे साथ ज्यादा समय गुजारते | हमारे मंडली में मैं और मेरे चचेरे अनुज समेत मेरे जैसे ही कुछ मित्र थे | हम शाम को बैठ कर बातें करते ,इधर उधर ,गाँव घर ,राजनीति ,समाज ,काली पूजा आदि की | धीरे धीरे संजीव ने अपने उन बिगड़ैल साथियों के साथ करीबी कम कर हमारे साथ नज़दीकी बढ़ा ली | चूंकि घर पर उनके लिए हमेशा चिंता बनी रहती थी सो हम भी यही कोशिश करते कि वो घर पर ज्यादा समय दें | हम खुद भी झिझकते हुए उनके घर पर जाने लगे | एक दिन संजीव के पिताजी (हमारे विद्या भैया ) ने कहा कि ,जब से संजीव आप लोगों के साथ समय बिताने लगा है मेरी चिंता उसको लेकर थोड़ी कम हो गई है | सच कहूं तो निश्चिंत सा रहने लगा हूँ | वो उनसे ज्यादा हमें संतोष देने वाली बात थी |
बाद में हम एक साथ काँवड़ लेकर वैद्यनाथ धाम जाते रहे तो कभी उनकी छोटी बहन के विवाह में हम सब संजीव के साथ कंधे से कन्धा मिला कर ऐसे डटे कि ग्रामीण भी भौंचक्के रह गए | उन दिनों उनके विवाह में जाने के लिए अपनी ज़िद पर वे हमारे लिए अलग से एक कार का इंतज़ाम कर बैठे | आज संजीव गृहजिले मधुबनी में एक रसूखदार भू व्यवसायी के रूप में स्थापित हैं | अपने छोटे से परिवार में दो सुपुत्रों के साथ पूर्ण गृहस्थ जीवन बिता रहे हैं | संजीव के बाबूजी हमारे विद्या भैया दस वर्षों तक गाँव के मुखिया रहे व अब संजीव की माता जी हमारे गाँव की मुखिया हैं |
संजीव की दिलेरी , साहस और जीवटता को यदि उस समय गलत दिशा में जाने से नहीं रोका जा पाता तो ये कहानी मैं आपको नहीं सुना पाता। ......... हाँ ये उन दिनों की बात थी

रविवार, 19 अगस्त 2018

बुलबुल ने बचाया गोरैया को



नन्हीं गोरैया कुकू 


कल शाम तो दिल्ली में बहुत ही तेज़ बारिश हुई , हवा भी उतनी ही तेज़ होने के कारण और ज्यादा मारक साबित हुई | बारिश से हुए जलभराव ने कितना ताण्डव मचाया ये कहने सुनने की जरूरत नहीं | मगर अचानक ही बालकनी में पानी निकालते समय ,अचानक ही इस नन्हीं गोरैया पर पड़ी जो चोटिल होकर बिलकुल मरणासन्न अवस्था में थी |


घर में ढेर सारे खरगोश ,पहाड़ी मूषक ,तोतों ,और उनकी देखभाल करते रहने के कारण बिना देर किये उसे आराम से नर्म रुमाल से उठा कर ,पहले गरमाईश देने की कोशिश शुरू हुई | बुलबुल का हेयर ड्रायर इस समय बहुत काम आया चंद मिनट बाद उसने आँखें खोलीं | मगर पांव में ऊपर से गिरने के कारण ,शायद चोट लग गयी थी | उसकी तीमारदारी में पुत्र आयुष और बुलबुल (जिसने इसका नाम भी रख दिया कुकू ) भी जी जान से लगे हुए थे | अब जब ये नन्ही जान थोड़ी सी और सूख कर होश में आई तो पंख फ़ड़फडाने लगी | फ़ौरन ही इसके लिए रात में एक अस्थायी गर्म घर का इस्तेमाल किया गया और तोतों को दिया जाने वाला आहार और पानी रख दिया गया |


मैं लगभग पूरी रात ही जागता सोता रहा और इस नन्ही जान को देखता रहा | देखा तो आराम से इसी में बैठे बैठे सो गयी | सुबह अपने रंग में आ गयी थी और वही गोरैया वाली फुर्ररर फर्रर्र वाली फुर्ती | अब इसे ऊपर छत पर ले जाकर देखने का समय था | बाहर आते ही फुर्ररर , मगर फिर ठिठक कर बैठ गई | शायद इतनी ऊंची नहीं उड़ी हो ,मगर ये झिझक तोतों की किलकारी सुनते ही दूर ,और कुकू उड़ चली अपनी दुनिया में



मंगलवार, 14 अगस्त 2018

ये कुछ दिनों की बात थी





कुछ दिनों पूर्व

समय करीब शाम के आठ बजे
स्थान : पूर्व दिल्ली की कोई गली

पुत्र आयुष को जुडो कराटे की प्रशिक्षण कक्षा से वापस लेकर लौट रहा हूँ | तीन दिनों से लगातार हो रही बूंदाबांदी ने सड़क को घिचपिच सा कर दिया है | अचानक ही स्कूटी की तेज़ लाईट में सड़क के बीचों बीच कोई औंधा पड़ा है ,रौशनी सड़क पर सिर्फ आती जाती गाड़ियों से बीच बीच में पड़ती छुपती है | लोग आ जा रहे हैं , कोई देखने की ज़हमत नहीं कर रहा |

मैं अचानक ही ब्रेक लगाता हूँ पुत्र आयुष अकचका कर मुझे देखता है | दो मिनट में ही समझ जाता हूँ कि इस बारिश के मौसम में कोई युवक दिन से खूब सारी शराब उड़ेल उड़ेल के खुद को ऐसा कीड़ा/केंचुआ बना चुका है की अब उसे कोई फ़िक्र नहीं नाली में हो या सड़क पर और उसे कोई फर्क भी नहीं पड़ रहा | मैं आदतन तुरंत ही दिल्ली पुलिस को फोन करके पूरी स्थिति बताता हूँ साथ ही ये ताकीद की फ़ौरन ही इसे उठा कर अस्पताल पहुँचायें || मुझे बताया जाता है की पीसीआर की एक गाड़ी उसे देखने निकल चुकी है |

थोड़ी ही देर बाद मेरे फोन पर एक आरक्षी का फोन ,वो मुझसे जगह की बाबत पूछता है और अंदाज़ ये मानो सारी झल्लाहट इस बात की जैसे कोई गुनाह कर दिया गया हो | मेरा स्वर तल्ख़ और अंदाज़ खुरदुरा हो जाता है और फिर मजबूरन "कचहरीनामा खोल"(अपना परिचय देकर ) कर उसे डांटना पड़ता है | वो सॉरी सॉरी कह कर फोन रख देता है |
1 . शहरों में समाज मर चुका है | 
२. पुलिस जो इसी समाज से है ,वर्दी पहनते ही उसकी आत्मा भी मर जाती है (अपवाद के लिए पूरी गुंजाईश है ) | 
३. शराब आज देश की रगों में तेज़ाब बन के बह रहा है |
सोच रहा हूँ की शायद अदालत में कार्यरत होने के कारण स्वाभाविक रूप से निर्भय होकर पुलिस क़ानून मीडिया को बुला कर बात कर लेता हूँ ............

रविवार, 16 जुलाई 2017

दिल तो बच्चा है जी



शायद वर्ष 2012 , में जब अचानक की पंजाब भ्रमण के दौरान , नियमति नाई से शेव न करवाने के कारण , उसने भूलवश मेरी मूंछें साफ़ कर दीं तो ये शक्ल निकल आई | कुछ नया और अलग सा महसूस हुआ तो हमने वहीं एक पासपोर्ट सीज फोटो भी खिंचवा ली | संयोग कुछ ऐसा बना कि तब से अब तक लगभग हर जगह जहां भी जरूरत पड़ी , इसी फोटो का उपयोग हुआ | मेरे कार्यालय के नए पहचानपत्र पर भी |

अब मामला यहीं तक रुक जाता तो ठीक था , जाने कितनी ही बार की तरह , आज भी एक मित्र अधिवक्ता , जिनकी नज़र शायद अचानक ही मेरे पहचानपत्र पर पड़ी तो वे भी टोक गए | सर , क्या बचपन की फोटो लगा दी आपने | मैं भी हमेशा की तरह मुस्कुरा कर रह गया | इससे पहले भी बहुत बार , मित्र दोस्त अक्सर शिकायती और उलाहने भरे स्वर में कहे उठते हैं , आप जैसों ने तो उम्र को रोक रखा है , क्या माजरा है |

कुछ नहीं जी , पिताजी का सबसे प्रिय वाक्य था , " ज़िंदगी जिंदादिली का नाम है , मुर्दादिल क्या ख़ाक किया करते हैं " ...सच है सौ फीसदी | ज़िंदगी को भरपूर जीने वालों की नज़र और असर उम्र पर कहाँ होती है | परिश्रम आपको उर्जावान और स्फूर्तमय रखता है | और बचपन से ही खेल कूद मेरी दिनचर्या में शामिल रही है और आदतन जूनूनी होने के कारण , मैं क्रिकेट , फुटबाल , वालीबाल , हॉकी , बैडमिन्टन , के साथ साथ , तेज़ दौड़ , तैराकी , साइकिल चलाना खोखो , कबड्डी सबका खिलाड़ी रहा और इन तमाम खेलों की टीम मेरे बिना नहीं बना करती थी | क्रिकेट में मेरी फिरकी गेंदों ने कई बार विपक्षी टीमों का पूरा पुलंदा बाँध दिया था |

यहाँ दिल्ली में भी नियमति दौड़ से शुरू होकर मामला खो खो , कबड्डी और बैडमिन्टन तक सीमित हो गया , बीच बीच में तैराकी भी | पार्क में मैं बच्चों के साथ खेलना शुरू किया तो , आस पास खेल खिलाने वाले अंकल जी के रूप में बच्चे पुकारने लगे | धीरे धीरे कठिन वर्जिश की भी शुरुआत हो गयी | वर्ष में कुछ महीने शरीर को बिलकुल खुला छोड़ कर फिर अगले कुछ महीनों में खेल कूद वर्जिश से , वहीं ला कर खडा कर देना मुझे खूब भाता है ....और अब वही मौसम फिर करवट लेने लगा है ....मेरे खेलने कूदने दौड़ने भागने के दिन आ रहे हैं ......इंसान के भीतर जो एक बच्चा और बचपन होता है न उसे खुद ही जिंदा रखना होता है , अपनी जिद से और अपने जुनून से .....ज़िंदगी जिंदादिली का नाम है , मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं .....

और ऐसा मैंने आज इसलिए कहा क्योंकि अभी अभी बेटे लाल के साथ कैरम खेल कर .....आ रहा हूँ .....



(फेसबुक  पर लिखी गयी एक टिप्पणी )

गुरुवार, 29 मई 2014

पढे लिखे अशिक्षित (संदर्भ स्मृति ईरानी विवाद) -200 वीं पोस्ट






नई सरकार के कामकाज से पहले ही जिस एक तथ्य को मुद्दा बना कर उस पर बहस की और कराई जा रही है ,वो है नवनियुक्त सरकार के प्रधानमंत्री द्वारा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के रूप में टीवी की मशहूर अभिनेत्री सुश्री स्मृति जुबिन ईरानी की शैक्षणिक योग्यता जो , अंतर स्नातक बताई जा रही है , की नियुक्ति । ज्ञात हो कि चूंकि मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत ही शिक्षा मंत्रालय का काम भी आता है ,इसलिए इस बहस को और हवा दी जा रही है कि इसके लिए किसी ज्यादा शिक्षित और योग्य सांसद को ये जिम्मेदारी दी जानी चाहिए थी ।
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ऐसा शायद पहली बार ही हो रहा है कि ,किसी सांसद को सौंपे गए दायित्व को उसके हाथ में लेने से पहले ही उसकी शैक्षणिक योग्यता को लेकर उसकी काबलियत पर न सिर्फ़ शक जताया जा रहा है बल्कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा स्तरहीन छींटाकशी तक की जा रही है । इतना ही नहीं सुश्री स्मृति ईरानी द्वारा पूर्व में किए गए कार्य चाहे वो मैकडोनाल्ड में वेट्रेस की नौकरी हो या बतौर टीवी अभिनेत्री ,उनको आधारित करके उनपर निजि हमले भी किए जा रहे हैं । और दिलचस्प बात ये है कि जो पार्टी इस पूरे मुद्दे को व्यत्र में तूल दे कर एक अलग दिशा दे रही है ,खुद उसी पार्टी के दो शीर्ष राजनेता जो पूर्व प्रधानमंत्री तक का पद संभाल चुके हैं , स्वर्गीय इंदिरा गांधी और स्वर्गीय राजीव गांधी की शैक्षणिक योग्यता भी अंतरस्नातक ही थी । इत्तेफ़ाकन ये तथ्य भी उल्लेखनीय लगता है कि बिहार में एक समय ऐसा भी आया था जब मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपनी गृहिणी पत्नी जो पूरी तरह निरक्षर थीं उन्हें सीधे मुख्यमंत्री की गद्दी न सिर्फ़ सौंप दी बल्कि उनकी पत्नी राबडी देवी ने राजकाज भी देखा भी
.


जहां तक संवैधानिक स्थिति की बात है तो संविधान निर्माताओं ने कुछ सोच कर ही जनसेवा के लिए किसी की शैक्षणिक योग्यता न आडे आए ,इसलिए ही राजनीति से लेकर संवैधानिक पद के लिए कोई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं रखी ।और इतिहास इस बात का गवाह है कि बहुत बार ही कम शिक्षा प्राप्त जनसेवकों ने सिर्फ़ अपनी स्पष्ट नीयत और दृढ आत्मविश्वास से ऐसे कार्य कर दिखाए हैं जो मील का पत्थर साबित हुए हैं । हां वर्तमान परिदृश्य में इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता या आम जनमानस की ,राज़नीति व राज़नेताओं से ये अपेक्षा उचित ही लगती है कि उनके प्रतिनिधि उच्च शिक्षा प्राप्त काबिल लोग हों ,किंतु मात्र शैक्षणिक डिग्री को ही योग्यता का पैमाना माना जाए ये कहीं से भी उचित नहीं लगता ।
.


यहां मुझे ब्लॉगर मित्र सुरेश चिपलूणकर जी द्वारा उपलब्ध कराया गया ये तथ्य यहां रखना समीचीन लग रहा है जिसे देखने के बाद आसानी से ये समझा जा सकता है कि एक जनप्रतिनिधि सांसद के रूप में उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन कितनी निष्ठा और शिद्धत से किया है , और स्मृति ईरानी के व्यक्तिव का आकलन करने वालों को खुदबखुद इसकी तुलना करके सारी स्थिति समझनी चाहिए ।

"18 अगस्त 2011 को राज्यसभा सांसद बनने के बाद से स्मृति ईरानी ने 51 बहस में भाग लिया, 340 प्रश्न पूछे, और संसद में उनकी उपस्थिति 73% रही...
- (स्रोत राज्यसभा सचिवालय)."

अंत में इस बहस पर एक आम भारतीय की राय के रूप में सिर्फ़ इतना ही कहना है कि मेरी तरह का आम व्यक्ति ये सोच रहा है कि जहां बहस इस बात पर होनी चाहिए थी कि इस लोकसभा में , पिछली लोकसभा से कहीं अधिक सांसद ऐसे पहुंचे हैं जिन पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज़ हैं , चिंता राजनीति के अपराधीकरण पर व्यक्त की जानी चाहिए थी , आलोचना  उनकी होनी चाहिए थी जिनका दामन दागदार है न कि , बहस इस बात पर की जानी चाहिए थी कि , एक बारहवीं पास किस तरह से मानव संसाधन मंत्री के रूप में कार्य कर सकेगी॥ बहरहाल ये भारतीय राजनीति में उतर आए कुछ छिछले लोगों की ओछी सोच का परिचायक बनके आम जन के बीच उजागर हुआ है ॥
अरे हां चलते चलते याद आया कि ये इस ब्लॉग की 200वीं पोस्ट है जी ......

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

आज चर्चियाया जाए (चिट्ठाचर्चा)




मुझे लगता है कि अब पाठकों के पास ब्लॉग पोस्टों को पढने , साझा करने और उन्हें सहेज़ने के लिए एग्रीगेटर्स की निर्भरता बहुत हद तक कम हो गई है या कि अब शायद उतनी कमी महसूस नहीं की जा  रही है , सबने अपने अपने ठिकाने और रास्ते गढ और तलाश लिए हैं , मेरे लिए तो गूगल प्लस , ब्लॉगर डैशबोर्ड के अलावा बहुत से एग्रीगेटरनुमा ब्लॉगों और नि:संदेह हमारीवाणी भी बहुत बडा स्रोत रहा है ,जहां से मैं ब्लॉगों तक पहुंचता हूं वैसे जब अपने स्टैट पर नज़र डालता हूं तो देखता हूं कि पाठकों का एक बहुत बडा वर्ग गूगल सर्च इंज़न से चला आ रहा है । ब्लॉग पोस्टों की लिंक को एक पन्ने पर सहेज़ कर पढने के लिए उपलब्ध कराने वाले सारे प्रयास भी नि:संदेह बहुत ही प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं , ऐसे में अनायास ही पुराने दिन याद हो आए ।

यहीं इस ब्लॉग पर अर्से तक हमने भी पोस्ट लिंक्स के साथ तुकबंदी करके एक पंक्ति जोड कर खूब रेल दौडाई थी जिसे पाठक मित्रों ने सराहा और स्नेह दिया था । सोचा आज अर्से के बाद आपको फ़िर से कुछ पोस्टों से मिलवाया जाए । गूगल प्लस पर पाठकों की टिप्पणी के साथ साझा होती पोस्टों पर नज़र स्वत: ही चली जाती हैं , ऐसे ही पहली पोस्ट जो मिली वो थी ,बेहद खूबसूरत कलेवर वाला ब्लॉग राजे , शीर्षक अजब सी कैद है , पढके हमें तो यही लगा कि हो न हो ये जरूर संजू बाबा के भौजी स्वास्थ्य समस्या के कारण लगाता पेरोल मिलते जाने वाली ही कैद होगी , ससुरी अजब गजब कैद तो आजकल यही चल रही है , मगर रचना बहुत संज़ीदा और गहरी निकली ,

अज़ब सी कैद है..


अज़ब सी कैद है..
अंदर हूं तो भी डर लगता है
और बाहर जाने के ख्याल से भी
कि भला होता नहीं
और सकुचा हूं
किसी बुरे के मलाल से भी

अज़ब सी कैद है..
चुकानी हैं अभी
पालने—झूलने--
कच्ची उम्र की यादों की
किश्तें
कि.. और संजो लिये
नर्म रूई.. फाहे से रिश्ते
बुलाए हैं निर्दोष फरिश्ते

अज़ब सी कैद है..
एक—एक सलाख
बड़े जतन से बनाई है
लोहे,सोने—चांदी की जंजीरे सजाई हैं

आज की तारीख में पोस्टों और टिप्पणियों में निरंतरता बनाए रखने में सफ़ल ब्लॉगर मित्रों में श्री प्रवीण पांडेय जी का नाम उल्लेखनीय है । उनकी पोस्टों में शामिल विषयों का इंद्रधनुषी फ़लक और उनकी कमाल की शैली , बहुत सारे क्लिष्ट विषयों को भी एकदम सरल बना देती है । आज कल टरेन बाबू आर्युवेद पढाने समझाने में लगे हैं , आज अपनी पोस्ट में कफ़ वात और पित्त पर घनघोर क्लास ले डाली है उन्होंने हमारे जैसे भुसकोल ब्लॉगरों की ,

"कफ, वात और पित्त, ये तीन तत्व हैं जो शरीर में होते है और कार्यरत रहते हैं। कहने को तो इनको और भी विभाजित किया जा सकता था, पर ये तत्व भौतिक दृष्टि से दिखते भी हैं और गुण की दृष्टि से परिभाषित भी किये जा सकते हैं। शरीर की क्रियाशीलता में हम इनका अनुभव कर सकते हैं। कफ का अनुभव हमें अधिक ठंड में होता है। पित्त नित ही हमारे पाचन में सहयोग करता है। वात हमारे वेगों और तन्त्रिका संकेतों को संचालित करता है। यही कारण रहा होगा कि शरीर को विश्लेषित करने के लिये इनको आयुर्वेद में आधार माना गया है।"

अगर नेट पर और फ़िर ब्लॉग्स पर आप मय श्रीमती जी के डटे हों तो फ़िर तो क्या टैंशन है जी ,कम से कम ज्यादा पोस्टें लिखने , टिप्पणियां लिखने या नेट पर ज्यादा समय देने वाले सारे इल्ज़ाम आधे आधे बांटे जा सकते हैं फ़िर जब बात मित्र अमित श्रीवास्तव और उनकी श्रीमती निवेदिता श्रीवास्तव जी की हो तो कहना ही क्या , दोनों जन ने क्या खूब जम के एक दुसरका को समर्पित पोस्ट लगाई है , अमित भाई जहां फ़ोन में कबूतर उडाते पाए गए , तो वहीं निवेदिता भाभी ने भी फ़िर अपने झरोखे में बैरी नेटवा के बहाने बैरी पिया को ही घेर लिया देखिए ,


    ( अमित जी अपने बक्से ,बोले तो डेस्कटॉप के साथ )
इधर जैसे जैसे मौसम चुनावी होता जा रहा है वैसे वैसे ही सियासी उठापटक भी तेज़ हो गई है । ऐसे में दिल्ली की प्रयोगवादी सियासत और उस पर कोई पोस्ट/प्रतिक्रिया न देखने पढने को मिले ऐसा तो हो ही नहीं सकता । हमारी ब्लॉग मास्टरनी शेफ़ाली पांडे जी जब अपनी लेखनी के तीखे बाण वो भी व्यंग्य के बारूद से लैस करके चलाती हैं तो वो बिल्कुल कईयों के कलेजे भेद कर आरपार उतर लेते हैं , अपनी ताज़ा पोस्ट में बखिया उधेडते हुए वे कहती हैं

"आपकी पार्टी की नीतियां स्पष्ट नहीं है । विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय नीति, कश्मीर समस्या, पकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी के साथ सम्बन्ध, आर्थिक नीतियां, आतंकवाद, अमेरिका, विकास दर, नक्सल समस्या, माओवाद, जैसे अनेकानेक मुद्दे थे, जिन पर आप जनता को सालों तक उलझा सकते थे । आप आम आदमी की समस्याएं लेकर बैठ गए । जबकि आम आदमी ने अपनी समस्याओं को समस्या मानना ही छोड़ दिया था । ये आपकी ही गलती थी कि आपने उसे याद दिलाया कि जिन्हें वह महबूब के प्रेमपत्रों की तरह सीने से लगाए हुए है उसे समस्या कहते हैं ।"

चलिए समस्याओं से तो निपटते ही रहेंगे ,फ़िलहाल विवेक रस्तोगी जी घर से आटे सब्जी लेने के लिए निकले हुए हैं मगर बीच में ही रुककर वे प्रेमी युगल को निहारने लगे , जिन्हें निहार रहे थे उन्हें कैसा फ़ील हुआ देखिए  ,

"हम अपनी बिल्डिंग की पार्किंग में खड़े होकर सभ्यता से यह सब देख रहे थे, पर उन लड़कों को यह अच्छा नहीं लग रहा था, खैर जब हम गाड़ी से चाट वाले के सामने से निकले तो भी वे सब हमें घूर ही रहे थे, यह सब वैसे हमें पहले से ही पसंद नहीं है, जब हम उज्जैन में थे तब हमारी कालोनी में भी यही राग रट्टा चलता था, फ़िर हमने अपना प्रशासन का डंडा दिखाया तो बस इन लोगों के लिये कर्फ़्यू ही लग गया था।"
पत्रकार ब्लॉगर रविश कुमार इन दिनों छुट्टी पर थे , लौटे तो स्वाभाविक रूप से इस बीच उनकी तरफ़ उछाले गए प्रश्नों का जवाब लेकर ,अपनी इस पोस्ट में वे कहते हैं

"
छुट्टी पर होने के कारण इस्तीफ़े से जुड़ी ख़बरों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन आप को लेकर लोगों की इस तरह की प्रतिक्रिया बढ़ती जा रही है । आप में से कई कह रहे थे कि मेरा नज़रिया क्या है। इसीलिए नहीं लिखा क्योंकि टीवी देखा न पेपर पढ़ा । जिस दिन अरविंद इस्तीफ़ा दे रहे थे उसी वक्त मुंबई से दिल्ली उतरा था । हवाई अड्डे पर लगे टीवी सेट पर सुरक्षाकर्मी और एयरपोर्ट स्टाफ़ और कर्मचारी जुटे हुए थे । इस तबके में अरविंद की गहरी पैठ हैं । ज़्यादातर ने कहा कि सही किया है । एक सिपाही ने कहा कि इनको ज़रा बाँदा ले आइये । वहाँ भी ज़रूरत है । अगले दिन ब्रेड लेने निकला तो दुकान पर सब पेपर पढ़ रहे थे । इस तबके की यही राय थी कि कांग्रेस बीजेपी की मिल़ीभगत से बंदा लड़ रहा है । रिलायंस की राजनीतिक छवि के कारण अंबानी पर हमला करने से इस तबके में पार्टी की छवि मज़बूत हुई है लेकिन मध्यमवर्गीय तबके के एक हिस्से को यही अच्छा नहीं लगा । अगर नीचला तबक़ा अरविंद के साथ खड़ा रह गया तभी वे अपने आधार का बचाव या विस्तार कर पायेंगे लेकिन अरविंद उस तबके के प्रति उदासीन नहीं हो सकते जिसका उन पर से विश्वास हिला है ।"

हो सकता है कि अरविंद ने अपनी बात लोगों तक न पहुँचाई हो कि क्यों इस्तीफ़ा दिया । लेकिन इन लोगों की दिलचस्पी कारण में ही नहीं है। दूसरा इनमें से कई मोदी समर्थक भी हैं । जिन्हें अरविंद को एक बार के लिए मौक़ा देना था । लोकसभा में वे मोदी को देंगे । साफ़ साफ़ नहीं कहते मगर यह ज़रूर गिनाते हैं कि आप से क्यों निराशा हुई । इसलिए दूसरा चांस नहीं देंगे । "



चलिए अब कुछ वन लाइनर लिंक्स भी देखना/बांचना चाहें तो

क्या अरविंद केजरीवाल राजनीतिक हो चले हैं  :  रैली तो कर ही रहे हैं 

मंत्रीजी के नाम खत : वाया पब्लिक एंड ब्लॉग

सूरज और मैं :  अक्सर ये बातें करते हैं

हंसे जा रहा है , हंसे जा रहा है : लिखे जा रहा है , लिखे जा रहा है

जीवन संगीत : निरंतर बहता रहे

मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद :   नई हुंकार के साथ

एक चीज़ मिलेगी वंडरफ़ुल :और अगर दो चाहिए हों तो

गांव:   शहर से बहुत दूर हैं जी अब भी

अगर वह बच्चा होता : तो इस तरह ब्लॉग लिख पाता क्या

क्या कर सकता हूं :पोस्ट तो लिख ही डाली है

संविधान की प्रस्तावना : और हमारे राजनीतिज्ञों की भावना (अनुलोम विलोम)

और अब चलते चलते काजल भाई का कार्टून



रविवार, 16 फ़रवरी 2014

ये दिल्ली के लौंडे ....कुछ फ़ुटकर नोट्स



http://www.aamaadmiparty.org/sites/default/files/styles/670_x_270/public/jhadu%20chalao.jpg


आज साठ सालों के बावजूद भी अब तक क्यों नहीं ऐसा कोई कानून पहले के राजनैतिक दलो और उनके अगुआओं ने लाने का प्रयास , संजीदा प्रयास किया ..सारी जिम्मेदारी आम आदमी के कंधों पर ही । चुनाव लडने की चुनौती फ़िर जीतने के बाद सबके डर कर पीछे भागने और पहले आप पहले आप वाला नया फ़ार्मूला लगा कर पुन: आम आदमी के कंधे पर ही बोझ लादा गया कि , पुलिस , प्रशासन , कानून , व्यवस्था राजनीति और खुद आम लोगों के विरोध और असहयोग के बावजूद भी सिर्फ़ पचास दिनों में पांच सौ रिपोर्ट कार्ड भी तैयार कर दिए ...अजी छोडिए , लात मारिए इस सरकार को , हम भी यही कह रहे हैं ...लेकिन सिर्फ़ , इतना और भी बताते जाइए कि आखिर बाकी बची हुई पार्टियों को क्यों नहीं ये जिम्मेदारी दी जा रही है कि वे आएं और लाएं न वैसा मजबूत कानून , जो आपके अनुसार ही संवैधानिक और शायद कारगर भी होगा ...बात को घुमा फ़िरा कर कहना मुझे भी नहीं आता इसलिए सीधा और सपाट कहता हूं ....हां भाषाई मर्यादा का ख्याल जरूर रखने का प्रयास करता हूं । शेष सबके अपने अपने मत और अपनी अपनी विचारधारा है जिसका सदैव स्वागत किया जाना चाहिए , आप जिसे भगोडा कह रहे हैं उसे हमने मलाईदार नौकरियों के बाद मलाईदार कुर्सी को भी ठेंगा दिखाते हुए देख लिया है ....अभी तो अपनी बस थोडी सी ...इत्ती सी समझ पे यकीन रखने का मन है वही कर रहे हैं ..
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दिल्ली की नए नए लौंडों द्वारा बनाई गई अराजक सरकार औंधें मुंह गिर गई , चलो अच्छा हुआ ।ये सत्ताइस बावले अब जो मर्ज़ी करते रहें , बांकी के मिल कर देश के विकास और समस्याओं के लिए यकीनन ही कुछ बेहतर और बडा करके दिखाएंगे , हमें भी पूरा विश्वास है ...और ये बिल था क्या जी ???? फ़ालतू के क्लॉज़ ....पकडे जाने पर सारा माल जब्त ..नौकर चाकर रिश्तेदारों तक की जांच कराने का प्रावधान , कहां अभी साल छ: महीने की सज़ा , जमानत और कहां उम्र कैद ..अबे ऐसा होता है क्या ..दिस इज़ डेमोक्रेटिक कंटरी मैन

...हां संसद ने इससे पहले एक बिल पास किया तो आस्तीन चढा के छोकरे ने कैमरे के सामने ही नानसेंस कहके फ़ाड के फ़ेंक दिया ...सुना एक अलग वाले को लेकर तो चक्कूबाज़ी और मरचाई बम तक चला पाल्लामेंट में ............अरे ऊ ई नहीं किया , ऊ नहीं किया , भगोडा निकला , बेकार था , वोट बेकार गया ...........अब हो गया न ई तो ...चलिए अब आप काम पर लगिए न ...पास करिए लोकपाल विधेयक , महिला आरक्षण विधेयक , न्यायिक सुधार अधिनियम , जित्ते भी हैं फ़ाईल में ..और हां पकड पकड के ठूंसिए जेल में साले चोरों को ,घपले घोटालेबाजों को , हाकिमों और दारोगाओं को ............और नहीं करने का माद्दा है तो ..........तो फ़िर आप गरियाते रहिए ...हर नई सोच , हर नए विकल्प और हर नए प्रयास को
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आगामी लोकसभा चुनावों में यदि फ़िर से कोई राहु केतु धूमकेतु तीसरा चौथा पांचवा मोर्चा टाईप , भाजपा की कुंडली में आकर नहीं बैठ गई तो यकीनन अगली केंद्र सरकार चलाने की बागडोर भाजपा के जिम्मे ही आएगी , ये दिख और महसूस भी हो रहा है किंतु आजकल जिस तरह से देख रहा हूं ,कि भाजपा के प्रबल समर्थक अपने मिशन 2014 के लिए सकारात्मक और उर्ज़ावान माहौल बनाने की बजाय , जिस तरह से अपनी पूरी ताकत , अपनी पूरी सोच , अपनी पूरा ध्यान सिर्फ़ आलोचना में , वो भी अपने चिर प्रतिद्वंदी कांग्रेस की नहीं बल्कि देश में सिर्फ़ सत्ताइस ..सिर्फ़ सत्ताइस विधायकों वाली पार्टी पर निशाना लगा रहा है उससे तो लगने लगा है मानो भारत चीन पाकिस्तान से मुकाबले की बात छोड कर श्रीलंका भूटान को अखाडे में चुनौती देने की कवायद कर रहा हो .........
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एक दिलचस्प बात ये है कि दिल्ली की नई राजनैतिक सोच और विकल्प बनकर उभरने को लेकर अन्य राज्यों के मित्र इतने व्यग्र हैं कि मानो अपने राज्यों में हो रहे नकारात्मक सकारात्मक को छोड कर सिर्फ़ और सिर्फ़ फ़िरती हुई झाडू पर नज़र गडाए बैठे हैं , इत्तेफ़ाकन कि हम जैसे दिल्ली में बैठे , हम जैसे दोस्त फ़र्क को महसूसते हुए इस परिवर्तन के प्रयास को निरंतर बल दे रहे हैं वहीं अन्य प्रांतों के मित्र भी लगातार ही दिल्ली राजनीति के इस नए प्रयोग को पूरी तरह फ़ेल करार देने के लिए उद्धत हैं , अच्छा है , अगर ये प्रयास पूरी तरह से दम भी तोड देता है तो भी ये कम से कम इतना तो स्पष्ट कर ही देगा कि अब इस देश में सियासत की सूरत बदलने की सोच रखना बेमानी साबित होगा , वे कुछ भी नहीं हारेंगे , उन्होंने जीता ही क्या अब तक ..............
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मैं हमेशा इस बात में यकीन रखता हूं कि यदि हमें किसी बात ,व्यक्ति , व्यवस्था , आदि का विरोध करना है तो बेशक करना ही चाहिए , लेकिन क्या ये जरूरी है कि हम उसमें लेखकीय भाषा की थोडी सी भी गरिमा तो बनाए रखें , आखिर हम यहां उस अंतर्जाल पर लिख पढ रहे हैं जहां हिंदी में जो थोडा बहुत लिखा जो लिखा जा रहा है हम भी उसका एक हिस्सा हैं , गरियाने का मतलब ये थोडी है कि आप गली मोहल्ले को यहीं खडा कर लें ।

और हां किसी भी बहस से परे और बहुत सारी बहस के बावजूद मैं आपसे यही कहूंगा कि यदि व्यवस्था में रहकर , व्यवस्था से लडने वाले इन जैसे कुछ पागलों , बावलों पर आप यकीन नहीं करेंगे , और कोई जबरन नहीं कहेगा यकीन करने को ये तय है , तो फ़िर निश्चित रूप से आपको ये अधिकारपूर्वक कहना ही होगा कि व्यवस्था दूषित और भ्रष्ट नहीं है , बल्कि हम सब ही धूर्त , झूठे और भ्रष्ट होने को तत्पर हैं ।
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कुछ अराजकतावादियों द्वारा पेश किया गया अंसवैधानिक बिल के पेश ही न हो पाने से ये हुआ है कि अब दिल्ली वालों बिजली पानी के सारे अंबानी मार्का संवैधानिक बिल मिल सकेंगे , जल्दी ही प्रदेश पूरी तरह से संवैधानिक व्यवस्था से चुस्त दुरूस्त दिखाई देगा , कोई छापेमारी , कोई स्टिंग फ़िटिंग का चक्कर नहीं , दरोगा जी भी खुश और हाकिम भी ,,,..बकिया बचा आम आदमी ..........ऊ झाडू लगाएगा , लगाते रहो

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जरा उन लोगों को भी याद दिलाता चलूं कि इन सबके बीच उस गृहिणी की भी सोचिए कि जिसके पति पर बडका बंगला मांगने के बाद छोटका में रहने के लिए अभी जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी तो नहीं हुए और वही क्यों पूरी बटालियन ही तो अभी शिफ़्ट हुई , अभी तो सामान जमाया भी नहीं होगा ठीक से , फ़िर वापस ....ई नाजुक जिगरे वाले के बस का नय है जी ..ई बौरहवा सब इकट्ठा हो रहा है ....भारी .............बहुत भारी पडने वाला है
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चलिए तो फ़िर आज ये भी खुल्लम खुल्ला तय करते है सचमुच ही सियासत चाहती है कि अब सडक पे रहने मरने वाला हर आम आदमी खुद उससे पंजा लडाए तो यही सही, दिल्ली को गरियाने वाले तमाम दोस्तों को पुन: आमंत्रण कि देखिए ,अगले फ़िर मैदान में आ गए हैं .....जम के गरियाइए
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देखिए जी अगर समाज से गंदगी को काटकर फ़ेंकना चाहते हैं तो फ़िर तेवर तेज़ाब सा रखना ही होगा , तेल लेने जाए कुर्सी और पोस्ट , सरकारी नौकर को खूब पता होता है छोटी बडी नौकरी का फ़र्क , ये नौकर हैं , मालिक नहीं हैं , इसलिए निश्चित रूप से यदि व्यवस्था ओह , मेरा मतलब संवैधिनिक व्यवस्था को ऐसा लग रहा था कि सिर्फ़ जांच की बात कह जाना और जांच की आंच को धधकाए रखना सरासर अराजक है तो फ़िर ऐसे नौकरों को यकीनन ही अब पद को ना कह देना ही श्रेयस्कर है .....आम आदमी को अब ये भी दिखा देना चाहिए कि हमारे ठैंगे से ..लो रखो अपनी कुर्सी और खेलो सरकार सरकार
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चलिए जी तो अब ये लगभग तय हो गया है और जैसा कि मैं अपने स्टेटस में इस सरकार के बनने के पहले दिन से कहता आ रहा हूं कि इस सरकार द्वारा धडाधड दर्ज़ कराई जा रही वैधानिक और सही शिकायतें, जिनके बारे में निश्चित रूप से हर भारतीय थोडा बहुत जानता है या अंदाज़ा लगा लेता है , जितनी पैनी होती जाएगी इस सरकार की मैय्यत का दिन उतना करीब होता जाएगा , तो अब ये तय हो गया कि आज और अभी के बाद से दिल्ली में कुछ भी अराजक नहीं हो पाएगा , सब कुछ 42 घनघोर संवैधानिक लोगों के हाथ में बागडोर आ गई है , हद है साला अईसा भी कोई करता है क्या कि सोटा ऐसा तैयार किया जाए कि जिसे शक्लों और रुतबों की पहचान ही न हो और हो तो उलटा बिफ़र के दुगने वेग से पीठ पर पडे ..........कल से सब कुछ संवैधानिक होगा लेकिन ई भांड मीडिया को देखिए , अजबे बाजीगरी है , साला आज टोटल बहस चरस में बह गया जईसे , सब झाडू खाने वहीं पहुंचा हुआ है , अबे साले इत्ते बेसरम हो कईसे बे , एक्के घंटा पहिले गरियाते हो अगले में सीधा दंडवत दिखते हो
...माने सब कुछ मार्केटवे तय कर रहा है क्या बे
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हम आज साला उस जगह को पक्का खोज के ही दम लेंगे जहां से ई रोजिन्ना का "डे" सब डिकलियर किया जाता है , अरे हद है जी , हम लोग को अपना डे मनाने का साला चांसे नय दे रहा है ...नाखून डे से लेकर दातुन डे तक धडाधड मन रहा रोज़ के रोज़ लोगबाग इत्ते बिज़ी हो चले हैं ..हमसे तो रोज़ छूट जा रहा है ..नौकरी डे आ घर का ड्यूटी डे गजब बजाते हैं रोज़ ...हर डे डिफ़रैंट होता है ..हर डे एकदम खास होता है , जैसा पहले कभी नहीं होता न बाद में होता है ...............
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ऑन ए सीरीयस नोट मुझे ऐसे वक्त पे एक खास बात जो ध्यान आती है वो ये कि आखिर आज़ादी के साठ बरस बाद भी हमें सर्वोच्च न्याय पाने के लिए बहुत ही कम फ़ैसलेकार अब तक मिल रहे हैं और ठीक ऐसा ही कुछ जनप्रतिनिधियों के मैथ का भी है ..अबे इतने बडे पेट वाले देश के पास सोचने करने के लिए क्या सिर्फ़ और सिर्फ़ साढे पांच सौ लोग ही होने चाहिए , क्यों नहीं पांच हज़ार या शायद उससे भी ज्यादा...........कम लोगों पर कुछ ज्यादा दबाव डाल कर हम उनपर कुछ ज्यादा ही डिपेंडेंट नहीं हो गए हैं ......साला नौकरी सरकारी है , वो भी सिर्फ़ पांच साल की ..और कमाल देखिए कि ..भाई लोगों ने पुश्तैनी बना डाला है ...........मिर्ची और चाकू ..धंधे में ही चलाए जाते हैं ...नौकरियों में चाकूबाजी नहीं हुआ करती ..............और हां एक आखिरी बात ..अराजकता इसे कहते हैं .......माने कि ओसहिं बताए हैं
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