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रविवार, 29 मार्च 2020

महामारी में महातमाशा





पहला दिन : बंदी से पहले और बंदी वाले पहले दिन लोगों ने दुकानों पर                         मेला लगाया
दूसरा दिन : दूसरा दिन ,पुलिस ने उठक बैठक करवाते मुर्गा बनाते ,लाठी                     भाँजते करतब दिखाया
तीसरा दिन : मीडिया ने अचानक ही लोगों को भूखे मरते तड़पते बिलखते                     वाला तमाशा दिखाया
चौथा दिन :   आखिरकार जनता ने भी सब कुछ भूल भाल कर सड़कों पर                     आकर मजमा लगाया |

लब्बो लुआब ,ये देश ,प्रशासन ,व्यवस्था ,सरकारें ,स्वयं सेवक और सबसे अधिक आम लोग अभी तक भी किसी भी कैसी भी आपदा से निपटने की तैयारी ,बचाव आदि तो दूर अभी तक किसी को भी आपदा के समय किये जाने वाला व्यवहार और सचेतता का भी पता नहीं है |

पश्चिम के देश जो भौगोलिक परिवेश के कारण भारत से कहीं अधिक भयंकर प्राकृतिक आपदाएं झेलते हैं बार बार भुगतते हैं ,मगर हर बार सबक सीख कर अगली आपदा के लिए खुद को और पूरे समाज को भी तैयार करते हैं | बावजूद इसके कि उन  देशों में तकनीक और संसाधन की प्रचुर सुलभता के बावजूद वे कभी लापरवाह या उपेक्षित नहीं होते | इसके ठीक उलट भारतीय अवाम ऐसे समय भी अपने उद्दंड स्वभाव और व्यग्रता तथा अशिक्षा के कारण ,प्रशासन व सरकार द्वारा की गयी थोड़ी बहुत की गई तैयारियों को भी पलीता लगा देते हैं |

वर्तमान में सिर्फ दो ही सूरतों में इस महामारी के बड़े प्रकोप से बचने की संभावना है | पहली ये कि सैकड़ों लाखों के इस समूह में मरीज़ और पीड़ित की संख्या नगण्य हो या बहुत ज्यादा कम हो | आगे जाकर समाज में घुलमिल कर उसे और अधिक विकराल रूप में पहुंचाने से पहले ही इनकी जांच व् पहचान सुनिश्चित करना |

दूसरी ये कि फिलहाल मौसम में जो अनिश्चितता बनी हुई है वो स्थिर होकर ,सामन्यतया इस ऋतू के औसत तापमान और उससे अधिक तक जितनी जल्दी से जल्दी पहुँच सके तो इसके प्रसार की रफ़्तार और ज़द में थोड़ी मंथरता आने की संभावना है |

ये देश हमेशा से भागवान भरोसे ही छोड़ा जाता रहा है ,भगवान भरोसे ही चलता रहा है और भविष्य में भी इस स्थिति में कोई बहुत बड़ा फर्क आएगा ऐसा लगता नहीं है | आने वाले सात दिनों में स्थिति बिल्कुल स्पष्ट हो जाएगी कि हम खराब से उबर कर सब ठीक होने की हालात में जाएंगे या इससे भी बदतर हालातों में पहुंचेंगे |





मंगलवार, 14 अगस्त 2018

ये कुछ दिनों की बात थी





कुछ दिनों पूर्व

समय करीब शाम के आठ बजे
स्थान : पूर्व दिल्ली की कोई गली

पुत्र आयुष को जुडो कराटे की प्रशिक्षण कक्षा से वापस लेकर लौट रहा हूँ | तीन दिनों से लगातार हो रही बूंदाबांदी ने सड़क को घिचपिच सा कर दिया है | अचानक ही स्कूटी की तेज़ लाईट में सड़क के बीचों बीच कोई औंधा पड़ा है ,रौशनी सड़क पर सिर्फ आती जाती गाड़ियों से बीच बीच में पड़ती छुपती है | लोग आ जा रहे हैं , कोई देखने की ज़हमत नहीं कर रहा |

मैं अचानक ही ब्रेक लगाता हूँ पुत्र आयुष अकचका कर मुझे देखता है | दो मिनट में ही समझ जाता हूँ कि इस बारिश के मौसम में कोई युवक दिन से खूब सारी शराब उड़ेल उड़ेल के खुद को ऐसा कीड़ा/केंचुआ बना चुका है की अब उसे कोई फ़िक्र नहीं नाली में हो या सड़क पर और उसे कोई फर्क भी नहीं पड़ रहा | मैं आदतन तुरंत ही दिल्ली पुलिस को फोन करके पूरी स्थिति बताता हूँ साथ ही ये ताकीद की फ़ौरन ही इसे उठा कर अस्पताल पहुँचायें || मुझे बताया जाता है की पीसीआर की एक गाड़ी उसे देखने निकल चुकी है |

थोड़ी ही देर बाद मेरे फोन पर एक आरक्षी का फोन ,वो मुझसे जगह की बाबत पूछता है और अंदाज़ ये मानो सारी झल्लाहट इस बात की जैसे कोई गुनाह कर दिया गया हो | मेरा स्वर तल्ख़ और अंदाज़ खुरदुरा हो जाता है और फिर मजबूरन "कचहरीनामा खोल"(अपना परिचय देकर ) कर उसे डांटना पड़ता है | वो सॉरी सॉरी कह कर फोन रख देता है |
1 . शहरों में समाज मर चुका है | 
२. पुलिस जो इसी समाज से है ,वर्दी पहनते ही उसकी आत्मा भी मर जाती है (अपवाद के लिए पूरी गुंजाईश है ) | 
३. शराब आज देश की रगों में तेज़ाब बन के बह रहा है |
सोच रहा हूँ की शायद अदालत में कार्यरत होने के कारण स्वाभाविक रूप से निर्भय होकर पुलिस क़ानून मीडिया को बुला कर बात कर लेता हूँ ............

शनिवार, 8 जुलाई 2017

मन खुद का मस्त रहने दो .....



बहती नदी के संग तू बहता जा ,
मन तू अपने मन की कहता जा ,
न रोक किसी को ,न टोक किसी को,
थोडा वो झेल रहे ,थोडा तू भी सहता जा ..

वर्तमान में सोशल नेट्वर्किंग साईट्स पर ,उपस्थति बनाए रखने , किसी भी वाद विवाद में पड़ने , तर्क कुतर्क के फेर में समय खराब करने से बहुत बेहतर यही है , कि हम आप जिस भी विषय अपर लिखें , वैसे , जैसा कि मित्र और तकनीक गुरु पाबला जी अक्सर कहा करते थे कि , धर्म और राजनीति दो ऐसे विषय हैं जिनपर वे लिखना कभी नहीं पसंद करते , इन दोनों ही विषय का यूं तो हमेशा से ही विमर्श में विवाद का लाजिमी होना जैसा है , किन्तु वर्तमान में तो स्थति इतनी विकट हो चुकी है कि लगता है मानो



राजनीति के तेजाबी छीटें , अवाम की ओढी केंचुली ,बखूबी उतार रहे हैं |


और इसका एक परिणाम ये हो रहा है कि ,सभी जहर उगल रहे हैं ,सभी , हो सकता है जाने अनजाने हम भी | कथ्यों और कथनों के अर्थ और अनर्थ दोनों ही इतनी तीव्र गति से तर्क कुतर्क के सहारे , भ्रामक जानकारियों और अफवाहों के रथ पर सवार होकर सिर्फ कुछ ही क्षणों में , सब कुछ तहस नहस करके विनाश का तांडव शुरू हो जाता है | उदाहरण तलाशने के लिए ज्यादा दूर और देर तक देखने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ेगी | तो फिर ,कहीं से ऐसे में मन के भीतर से ही एक आवाज़ आकर कहती है


दुनिया करे सिर्फ फुटौव्वल तो , उसको पस्त रहने दो ,
अपनी दुनिया में रमे रहो , मन खुद का मस्त रहने दो .....

सोमवार, 10 नवंबर 2014

प्रेरित करती सबको, ये तो सबके "मन की बात"






इस बीच सोशल नेटवर्किंग साइट्स से लेकर ,समाचार माध्यमों की अति सक्रियता , या कहा जाए कि तत्परता के दोहरा प्रभाव पडता दिख रहा है । एक तरफ़ तो,टीवी, मोबाइल , इंटरनेट, व अन्य समाचार माध्यमों की सर्वसुलभता और खबरों की सतत उपलब्धता ने लोगों को इन सबका आदी बना दिया है , यानि अब लोग किसी भी छोटी बडी घटना/दुर्घटना/योजना/कानून/खबर/सुर्खी.........को जानने को उत्कट रहते हैं । दूसरी ये कि चाहे अनचाहे सरकार ,समाज, और लोगों की क्रिया/प्रतिक्रिया/आचरण/शब्द/व्यवहार/कर्म लगभग सब कुछ कहीं अधिक पारदर्शी हो गया है ।
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नई सोच और नई दृष्टि से लबरेज़ , नवगठित सरकार के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ऐसे में , जब देश की बागडोर संभालते हैं तो देश से लेकर अमेरिका तक में सार्वजनिक रूप से ये कहते हैं कि हां अब समय आ गया है जब हमें देश में फ़ैली और फ़ैलाई जा रही गंदगी/कूडा/कचरा से निज़ात पानी ही होगी । स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत इसी उद्देश्य से की गई है कि लोगों को प्रोत्साहित किया जाए कि वे स्वच्छता के प्रति जागरूक हों । ऐसा नहीं है कि इस तरह की पहल और प्रयास पहले कभी नहीं किए गए हैं , यकीनन किए गए हैं किंतु औपचारिकता की भेंट चढी वो सारी योजनाएं और कोशिशें समय के गर्त में खुद दरकिनार हो गईं ।
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छोटी सी शुरूआत भी भविष्य में बेहद प्रभावकारी साबित हो सकती है यदि उद्देश्य और नीयत दोनों ही अच्छे और स्पष्ट हों , खैर इसका आकलन तो थोडे समय के बाद ही होगा किंतु इतना तो सबको महसूस हो ही रहा है कि ,कहीं तो कुछ धीरे धीरे बदलने लगा है , कुछ तो ऐसा है जो पहले नहीं हुआ ।
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ऐसी ही एक शुरूआत हम दोनों पिता पुत्र ने घर के साथ सटे पार्क से की , प्रात: कालीन शाखा (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा ) में नियमित रूप से जाने के कारण , शाखा लगने से पहले हम दोनों मिलकर पूरे पार्क का (waste scan) वेस्ट स्कैन कर डालते हैं , हर छोटे बडी , पॉलिथीन, रैपर, प्लास्टिक की बोतलें, ढक्कन , चाय के कप आदि तमाम कचरे को साथ लेकर जाने वाले एक छोटी बोरी में भरकर इकट्ठा कर लेते हैं , जिसे बाद में पार्क के रख रखाव में लगे कर्मचारी नियत स्थान तक पहुंचा देते हैं । इतना ही नहीं हमने शाम को पार्क में बैठे लोगों से आग्रह करना शुरू किया , जिसका लब्बो लुआब ये रहता है कि ,


स्वच्छ रहने, रखने के सिर्फ़ दो रास्ते हैं .........गंदगी मत फ़ैलाइए , सफ़ाई नहीं करनी पडेगी,
दूसरा रास्ता ,रोज़ गंदगी फ़ैलाना नहीं छोड सकते , तो रोज़ सफ़ाई करने की आदत डालिए ॥

रोकिए .............खुद को , गंदगी फ़ैलाने से ,
टोकिए.............दूसरों को , गंदगी फ़ैलाने से

स्वच्छ भारत , निर्मल भारत ॥ स्वस्थ भारत , सबल भारत ॥

 देखिए , शायद कुछ कुछ प्रभाव इसका दिखने लगा है और अब तो सुबह की सैर/टहल के लिए आए हुए स्थानीय लोग भी हमारे साथ जुटने लगे हैं , झाडू थामे/बुहारते/कचरा उठाते हुए फ़ोटो लगाने की जरूरत नहीं समझी , स्वच्छ पार्क की फ़ोटो ज्यादा सुंदर लगेगी , यही ठीक लगा ॥


पार्क का वो हिस्सा जहां बच्चे खेलते कूदते हैं


पार्क के दूसरे हिस्से में फ़ैली हरियाली

 इसी तरह एक नई पहल करते हुए प्रधानमंत्री ने आम जनों से संवाद के लिए रेडियो को अपने माध्यम के रूप में चुना । इसके पीछे भी जरूर कोई न कोई बहुत ही सुलझी हुई सोच और दूरदृष्टियुक्त विचार ही होगा अन्यथा आज के समय में जब लोग आगे ही आगे की तरफ़ भागे जा रहे हैं और रेडियो/चिट्ठी जैसे संचार/संवाद माध्यमों को बिल्कुल आउटडेटेड मान समझ लिया गया है , किंतु सच तो ये है आज भी ग्रामीण भारत का एक बहुत बडा हिस्सा और जनमानस कंपूटर और इंटरनेट तक नहीं पहुंच पाया है , ऐसे में रेडियो को संवाद सूत्र के रूप में चुनना नि:संदेह प्रशंसनीय कदम है ।

मोदी बहुत ही संतुलित भाषा में ,अपनी बात को पूरी दृढता से रखते हैं , इतना ही नहीं उसे तार्किक तरीके से विश्लेषित भी कर देते हैं , वो लोगों को प्रेरित कर रहे हैं , वे रेडियो पर नाम लेकर कहते हैं कि देश के एक नागरिक ने पत्र लिखकर मुझे ये बात बताई है । इस बार स्वच्छता को सीधे देश में आज़ादी के बाद से अब तक रोग से नासूर बन चुक जाने वाली गरीबी से जोड दिया । बात सौ फ़ीसदी सच है , गरीब गंदगी की वजह से बीमार पडता है और बीमार पडने की वजह से गरीब रह जाता है , इसलिए यदि देश से गरीबी मिटानी है तो पहले गंदगी हटानी होगी , कितनी सरल और गहरी बात है । शैली, तेवर और स्वर हूबहू वैसे जैसे कि आम भारतीय को खुद का लगता है ।

मन की बात से प्रेरित होकर चिट्ठियों का दौर यदि दोबारा से शुरू हो जाए तो ये धीरे धीरे मैसेज व्हाट्स अप में सिमट कर रह जाने वाली सिमटती जा रही पीढी को ,खत/चिट्ठी के शिल्प से रूबरू होने और उस परंपरा को बढाने का मौका मिलेगा , ये अच्छी पहल होगी , आम जनमानस का सीधे सीधे प्रधानमंत्री को संबोधित करके अपने मन की बात लिखने का , मेरे जैसे पत्र प्रेमी के लिए तो ये सोई उर्ज़ा को जगाने जैसा है , मेरी पत्र पेटिका तैयार हो गई है , मन की बात कहने और करने के लिए ।



शनिवार, 13 सितंबर 2014

प्रकृति के खिलाफ़ नहीं प्रकृति के साथ चलना होगा





पिछले वर्ष जून में जब अचानक ही केदारनाथ की आपदा सब पर कयामत बनकर टूटी तो उस त्रासदी के प्रभाव से देश भर के लोगों ने झेला । कुदरत के इस कहर से जाने कितने ही परिवार हमेशा के लिए गुम हो गए , कितने बिखर कर आधे अधूरे बच गए , जाने कितने ही परिवार में बचे खुचे लोग मानसिक अवसाद से ग्रस्त होकर रुग्ण होकर रह गए । केदारनाथ त्रासदी के बाद इस दुर्घटना के कारणों पर किए गए शोध , विश्लेषण आदि से ये तथ्य निकल कर सामने आया था और यदि न भी निकलता तो भी ये तो अब खुद भी इंसान बहुत अच्छी तरह से समझ और जान रहा है कि प्रकृति द्वारा कुछ भी अनियमित करने होने घटने के पीछे सबसे बढा घटन वो मानवीय क्रियाकलाप ही होते हैं जो प्रकृति के प्रतिकूल हैं ॥
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अभी पिछला घाव ठीक से भरा भी नहीं था किस इस वर्ष फ़िर से धरती का स्वर्ग कहलाने वाला जम्मू कशमीर पिछले कई दशकों में पहली बार आई जल प्रलय के विप्लव से बुरी तरह त्रस्त हुआ है । पिछले दस दिनों से लगातार , सरकार , प्रशासन , आपदा नियंत्रक , भारतीय सेना और आर एस एस जैसे स्वयं सेवी संगठन वहां पीडित क्षेत्र में फ़ंसी हुई जिंदगियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि लोगों को काल के गाल में समा जाने से बचाया जा सके । स्थिति इतनी भयावह और विकट है कि इसे राष्ट्रीय आपदा मानते हुए पूरा देश सहायता के लिए आगे आया है ॥ एक बार पुन: वही विमर्श , वही आंकडे , आकलन ..........॥
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आखिर कब ..कब हम इस बात को अच्छी तरह समझेंगे कि हम इस प्रकृति जो कि जल , थल , वायु, अगिन , मिट्टी ,पर्वत , नदी , पेड आदि तत्वों के समन्वय से सिंचित होती रही है और लाख उन्नति और आधुनिकता के बावजूद भी , जी हां अब भी मानव/इंसान प्रकृति के उपस्थिति तत्वों में से बहुत ही सूक्ष्म और कोमल है शायद यही वजह है कि प्रकृति के हल्के से हल्के दबाव के आगे वो तिनके की तरह बिखर जाता है । 

विश्व में बढती प्राकृतिक आपदाओंने इंसानों को बहुत कुछ सिखाया जिसमें से सबसे अधिक ये कि बदलती हुई पारिस्थितिकी के अनुसार मानव जीवन ने अपने आपको बदला और ढाला , और ये प्रक्रिया युगों युगों से सतत चलती चली आ रही है । अब तो भू विज्ञानियों , प्राणी विज्ञानियों और बहुत से संबंधित विज्ञानों ने निरंतर खोज़ कर ऐसे साक्ष्य जुटा लिए हैं जो स्पष्टत: ये प्रमाणित करता है कि इंसानी सभ्यता बहुत ही प्राचीन समय से प्रकृति के साथ संघर्षरत होते हुए भी उसके साथ बराबर तालमेल बिठाती आई है । और इतिहास इस बात का भी गवाह रहा है कि जब जब इंसान ने अपनी जिद , अपने अन्वेषण , अपनी आवश्यकता के कारण , प्रकृति की नैसर्गिक  व्यवस्था में सेंध लगाने की कोशिश की है , प्रकृति खुद उसे संतुलित कर लेती है ॥
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प्रकृतिशास्त्री पिछले दो दशकों से ,या शायद तभी जब से इंसान ने अपनी सुविधा के लिए प्रकृति के मिज़ाज़ के खिलाफ़ जाकर छेडछाड शुरू की तभी से बार बार इस  बात पर चिंता जताते हुए नसीहत स्वरूप ये कहते रहे हैं कि जीवन जीने के रास्ते  प्रकृति के खिलाफ़ नहीं प्रकृति के साथ तलाशे जाने चाहिए । इतने बरसों बाद भी जहां एक तरफ़ हम इंसान , न तो प्रकृति के तत्वों का सम्मान करते हैं और न ही  उन्हें सहेजने और संरक्षित करने के लिए रत्ती भर  भी गंभीर है । विशेषकर पश्चिमी देशों की तुलना में अभी देश में कुछ भी नहीं सोचा किया गया है अब ये तो खुद सरकार , समाज , और आपको हमें तय करना है कि हमें भविष्य में ऐसी त्रासदियों के लिए तैयार रहना चाहिए या हमें अभी से चेत कर प्रकृति के साथ सहजीवन पद्धति का विकास करना चाहिए ....प्रकृति सोच चुकी है , अब सोचना आपको और हमें है ............

रविवार, 7 सितंबर 2014

करवट बदलता एक देश ..........सामयिक टिप्पणी






वर्ष २०१४ केआम चुनावों से पहले ही संभावित जीत के प्रति आश्वस्त से लगते प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने लिए अगले साठ महीनों की प्रशासनिक सेवा देने का अवसर जिस आत्मविश्वास से मांगा था उसी समय कयास लगाए जाने लगे थे कि आगामी सरकार बहुत सारे नए विकल्पों , विचारों , कार्यप्रणाली , प्रतिबद्धता व परिवर्तन लेकर आएगी ॥
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नई केंद्र सरकार को सत्ता संभाले अभी इतना समय नहीं हुआ है कि उनके कार्यों ,निर्णयों व पहल का विश्लेषण किया जाए किंतु न सिर्फ़ भारतीय राज़नीति , प्रशासन , विधायिका , कार्यपालिका , न्यायपालिका , वैश्विक अर्थ जगत सहित अंतर्राष्ट्रय कूटनीइक जगत में भी आज नई केंद्र सरकार की स्पष्ट नीति व जनकल्याण की चर्चा हो रही है । नई सरकार के अगुआ के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  के रूप में आज देश के पास एक अनुशासित , अनुभवी , कर्मशील व करिश्माई व्यक्ति का नाम सामने आ चुका है ॥
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पिछले एक दशक में विकास होते रहने के बावजूद भी सियासत व आम लोगों के बीच सामंजस्य की भावना निरंतर क्षीण होती गई । नई सरकार ने इस नकारात्मक माहौल को पूरी तरह बदलते हुए न सिर्फ़ अपनी बल्कि देश की छवि को नए दृष्टिकोण से सामने रखा ॥
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नई सरकार ने तीव्र गति से कार्य करते हुए एक साथ बहुत मोर्चों पर अपनी कवायद तेज़ की । मंत्रालय के शीर्ष मंत्रियों , अधिकारियों, कर्मचारियों को अधिक श्रमशील होकर कार्य करने के निर्देश, सूचना संचार , व समाचार माध्यमों की ताकत को पहचाने हुए उनका भलीभांति उपयोग की शुरूआत , अर्थनीति , विदेशनीति, रक्षा , पर्यावरण , शिक्षा आदि सभी विषयों पर मंथन , विमर्श तथा योजनाओं की रूपरेखा की तैयारी , वर्षों से मृतप्राय या औचित्यहीन हो चुकी संस्थाएं व कानूनों की समीक्षा आदि मुद्दों पर सरकार न सिर्फ़ तेज़ी से फ़ैसले ले रही है बल्कि उन्हें अमली जामा भी पहनाया जा रहा है ॥ ..


सरकार के अस्तित्व में आने के ठीक अगले ही पल से जो कार्य होने लगा वह था सभी मित्र देशों के साथ सामंजस्य व साझेदारी के नए रिश्तों के युग का आरंभ । वैश्विक राज़नीति पर अपनी नज़र बनाए रखने वाले विश्लेषकों ने भारत की तरफ़ से सभी मित्र देशों को मित्रता का आग्रह संप्रेषण पूर्व के ऐसे सभी प्रयासों से कहीं अधिक गरिमापूर्ण व ओज़ भरा महसूस किया । इसका सकारात्मक परिणाम व प्रभाव यह रहा कि पिछले तीन महीने की अवधि में ही भारत अब तक अपने मित्र देशों से सौ से अधिक करार कर चुका है ॥
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चिर प्रतिद्वंदी पडोसी के साथ भी ऐसी ही एक नई पहल का प्रयास किया गया किंतु पिछले कुछ घटनाक्रमों के बाद फ़ौरन ही कठोर संदेश देते हुए वार्ता निलंबित भी कर दी गई । वैश्विक परिदृश्य बेहद तीव्र गति से परिवर्तित हो रहा है । संसाधनों पर आधिपत्य के वर्चस्व का संघर्ष अब उग्र होता जा रहा है । अस्थिर व निरंकुश शासन व्यवस्थाओं की निकटता किसी भी राज्य की सुरक्षा व्यवस्था और अंतत: मनुष्य सभ्यता के अस्तित्व के लिए सदैव खतरा उत्पन्न करते है । इन बदली हुई परिस्थितियों में अमन चैन विकास और सृजन के पक्षधर वैश्विक देशों को भी संगठित होना होगा । नई सरकार के सारे वरिष्ठ सेवक अपने-अपने क्षेत्रों के लिए मित्रों का चयन व गठन कर रहे हैं ॥
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पिछले दो दशकों में देश के राजनीतिक चरित्र व कार्यपालिका की अकर्मठता के अपने चरम पर पहुंच जाने का एक बडा दुष्परिणाम ये निकल कर सामने आया कि न्यायपालिका को अति सक्रियता व अतिक्रमण के इतने सारे अवसर उपलब्ध करा दिए कि समाज में व्याप्त दुर्गुणों व दुर्बलताओं से ग्रस्त होकर खुद न्यायपालिका रुग्ण सी हो गई । भ्रष्टाचार से लेकर यौन उत्पीडन और पक्षपात से लेकर पदलोलुपता तक के आरोप सहित वरिष्ठतम न्यायविदों द्वारा दर्ज़ की जा रही टिप्पणियों आदि ने नई सरकार , जो कि प्रचंड बहुमत से सरकार में है को प्रोत्साहित किया कि वे बेझिझक न्यायिक सुधारों को लागू करे सरकार दो बडे निर्णय, कोलेजियम व्यवस्था में परिवर्तन एक वैकल्पिक व्यवस्था का प्रारंभ तथा उच्च न्यायालयों में पच्चीस फ़ीसदी नई अदालतों/ पदों का सृजन । न्यायिक सुधारों के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होने की बात कही जा रही है ।
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आम लोगों से सीधे संवाद स्थापित करती यह सरकार "जनधन योजना" "डिजिटल इंडिया" जैसी छोटी छोटी किंतु बेहद प्रभावकारी योजनाओं के साथ , गंगा नदी को पुनर्जीवन देने के लिए विशेष प्रयास , कागज़ातों को सत्यापित कराये जाने की अनिवार्यता की समाप्ति जैसी प्रक्रियात्मक राहत आदि कुल मिला कर ऐसा महसूस किया जा रहा है जैसे देश एक अलग दिशा में जा रहा है । शायद अच्छे दिन आने वाले हैं ॥

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