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सोमवार, 26 सितंबर 2016

निर्भया से करुणा ......



अगर गौर से सोचें तो पाएंगे कि करुणा  की हत्या तो असल में उसी दिन हो गई  थी , जिस दिन , उस व्यक्ति ने ,  बल्कि यह कहना चाहिए कि मनुष्य के रूप में हैवान के मस्तिष्क वाले ने , किसी भी समय ,किसी भी दिन और किसी भी क्षण ,जब सोचा था या फिर वह बड़ी आसानी से ये फैसला ले पाया था कि वह यूं सरेआम दिनदहाड़े करुणा को चाकुओं से गोदा लेगा |

और तब भी क्यों बल्कि उससे भी बहुत पहले ,तब जब ,आज से ठीक कुछ वर्षों पहले ,देश के सबसे वीभत्स अपराध ने पूरे देश के जनमानस को खौला कर सड़कों पर ला दिया था और लगने लगा था कि सरकार ,प्रशासन, न्यायविद ,पुलिस सभी मिलकर अब इस बात के लिए कटिबद्ध हो गए हैं कि भविष्य में इस तरह की कोई घटना दोहराई नहीं जाएगी |लेकिन ऐसा हुआ क्या ????नहीं इसके ठीक विपरीत कानूनी व्यवस्थाओं की कमियों का फ़ायदा उठाते हुए उस नृशंस अपराध का एक दोषी आज सरकार व सरकार की नीतियों से लाभान्वित होकर आराम से कहीं जीवन बसर कर रहा होगा , यकीन करिए ऐसा ही हो रहा होगा  ,व्यवस्थाएं पीड़ितों से अधिक आरोपियों  के हक़ में संवेदनशील दिखाई देती हैं  |

 सरकार मशीनरी ,प्रशासन सबके  अपने अपने स्तर पर ठोस कदम उठाए जाने के दावों के बावजूद स्थिति में कहीं कोई परिवर्तन देखने सुनने को नहीं मिल रहा है | बल्कि ऐसा लगता है मानो यह प्रवृत्ति बहुत तेजी से एक नासूर का रूप लेती जा रही है | सरकारी क्या कर रही है या पुलिस  क्या कर रही है ??? यह प्रश्न अलग है  | इससे अलग एक प्रश्न यह उठता है , कि प्रियदर्शिनी, निर्भया ,करुणा ,कौन जाने कौन कौन और कौन जाने कौन हीं , कहाँ नहीं ,घर, दफ्तर सड़क , सिनेमा , कब और कब नहीं ,कुल मिलाकर देखा जाए तो परिदृश्य ये निकलकर सामने आता है कि आज स्थिति बेहद हृदय विदारक चिंता जनक है

 एक हिंदी पत्रिका के लिए एक साप्ताहिक आलेख लिखने के दौरान अध्ययन करते समय मैंने पाया और देखकर दुखद आश्चर्य हुआ की विश्व के सबसे शक्तिशाली देश की सेना की महिला कमांडो दस्ते की लगभग 24% महिला कमांडो ने एक सर्वेक्षण के दौरान कबूला कि उन्हें उन के साथी सैनिकों ने एक बहादुर सिपाही के अलावा और भी अलग नजर से देखा || यह मेरे लिए बहुत ही दुखद आश्चर्य  देने वाला था क्योंकि अगर विश्व के सबसे शक्तिशाली सेना की महिला कमांडो भी कहीं ना कहीं उन्हीं सब परिस्थितियों और उन्हें छेड़छाड़ का शिकार हुई थी तो फिर हमें यह समझ लेना चाहिए कि कमोबेश यह स्थिति आज हर स्थान पर है ||

इस हालिया घटना और इससे पहले कि इसी तरह की घटी सारी घटनाओं में जो एक बात मुझे सबसे ज्यादा अखरती है वह कि आखिर यह लड़कियां अपने आप को इतनी आसानी से बिना प्रतिरोध बिना प्रतिवाद बिना प्रतिकार किए इतनी आराम से अपनी जान क्यों गवा देते हैं  और कई बार तो बिना शिकायत किए हुए ही ||पुरुषों  और महिलाओं के बीच बढ़ रही यह खाई इस कदर सामाजिक असंतुलन को जन्म दे रही है कि उसने अपने अंदर न्याय कानून सरकार प्रशासन सब को लपेटे में ले लिया है और उसका परिणय यह हुआ है कि कहीं भी किसी के लिए कोई भी खड़ा नहीं   होता है ||

इन परिस्थितियों में क्यों नहीं यह जरूरी हो जाता कि प्रत्येक देशवासी को अनिवार्य सैनिक शिक्षा देकर उन्हें कम से कम आत्मरक्षा आत्मविश्वास अनुशासन आपसी सहायता ,सहभागिता दृढ़ता आदि का प्रशिक्षण दिया जाए ||इसके लिए विशेष रूप से गठित एनसीसी , स्काउट गाइड व् एनएसएस  जैसी संस्थाओं को तुरंत इस बात के लिए आग्रह किया जाना चाहिए कि वह देश भर के स्कूल कॉलेजों में अपने को पुनर्स्थापित  करें | हालांकि मैं निजी रूप से इस विषय  पर एक पत्र पहले ही प्रधानमंत्री कार्यालय को लिख चुका हूं  |

अंत में उन लाखों निर्भया ,करुणाओं  और अन्य सभी लड़कियों से सिर्फ एक प्रश्न पूछना चाहता हूं कि आखिर वह अपनी लड़ाई अधूरी छोड़कर क्यों बीच में ही चली जाती है बिना उनको सजा दिए ,बिना उन उनके अपराध के लिए उनको अंजाम तक उन्हें पहुंचाए बिना और कई बार तो ये लड़कियां यूं बिना कुछ किए बिना कुछ बोले ...........आखिर क्यों इस दुनिया को छोड़ कर ...........अपने घर परिवार को छोड़कर चली जा रही हैं और बस चली जा रही हैं ,

प्रश्न विचारणीय है हमें आपको सोचना है आज और अभी सोचना है........... 

शनिवार, 13 सितंबर 2014

प्रकृति के खिलाफ़ नहीं प्रकृति के साथ चलना होगा





पिछले वर्ष जून में जब अचानक ही केदारनाथ की आपदा सब पर कयामत बनकर टूटी तो उस त्रासदी के प्रभाव से देश भर के लोगों ने झेला । कुदरत के इस कहर से जाने कितने ही परिवार हमेशा के लिए गुम हो गए , कितने बिखर कर आधे अधूरे बच गए , जाने कितने ही परिवार में बचे खुचे लोग मानसिक अवसाद से ग्रस्त होकर रुग्ण होकर रह गए । केदारनाथ त्रासदी के बाद इस दुर्घटना के कारणों पर किए गए शोध , विश्लेषण आदि से ये तथ्य निकल कर सामने आया था और यदि न भी निकलता तो भी ये तो अब खुद भी इंसान बहुत अच्छी तरह से समझ और जान रहा है कि प्रकृति द्वारा कुछ भी अनियमित करने होने घटने के पीछे सबसे बढा घटन वो मानवीय क्रियाकलाप ही होते हैं जो प्रकृति के प्रतिकूल हैं ॥
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अभी पिछला घाव ठीक से भरा भी नहीं था किस इस वर्ष फ़िर से धरती का स्वर्ग कहलाने वाला जम्मू कशमीर पिछले कई दशकों में पहली बार आई जल प्रलय के विप्लव से बुरी तरह त्रस्त हुआ है । पिछले दस दिनों से लगातार , सरकार , प्रशासन , आपदा नियंत्रक , भारतीय सेना और आर एस एस जैसे स्वयं सेवी संगठन वहां पीडित क्षेत्र में फ़ंसी हुई जिंदगियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि लोगों को काल के गाल में समा जाने से बचाया जा सके । स्थिति इतनी भयावह और विकट है कि इसे राष्ट्रीय आपदा मानते हुए पूरा देश सहायता के लिए आगे आया है ॥ एक बार पुन: वही विमर्श , वही आंकडे , आकलन ..........॥
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आखिर कब ..कब हम इस बात को अच्छी तरह समझेंगे कि हम इस प्रकृति जो कि जल , थल , वायु, अगिन , मिट्टी ,पर्वत , नदी , पेड आदि तत्वों के समन्वय से सिंचित होती रही है और लाख उन्नति और आधुनिकता के बावजूद भी , जी हां अब भी मानव/इंसान प्रकृति के उपस्थिति तत्वों में से बहुत ही सूक्ष्म और कोमल है शायद यही वजह है कि प्रकृति के हल्के से हल्के दबाव के आगे वो तिनके की तरह बिखर जाता है । 

विश्व में बढती प्राकृतिक आपदाओंने इंसानों को बहुत कुछ सिखाया जिसमें से सबसे अधिक ये कि बदलती हुई पारिस्थितिकी के अनुसार मानव जीवन ने अपने आपको बदला और ढाला , और ये प्रक्रिया युगों युगों से सतत चलती चली आ रही है । अब तो भू विज्ञानियों , प्राणी विज्ञानियों और बहुत से संबंधित विज्ञानों ने निरंतर खोज़ कर ऐसे साक्ष्य जुटा लिए हैं जो स्पष्टत: ये प्रमाणित करता है कि इंसानी सभ्यता बहुत ही प्राचीन समय से प्रकृति के साथ संघर्षरत होते हुए भी उसके साथ बराबर तालमेल बिठाती आई है । और इतिहास इस बात का भी गवाह रहा है कि जब जब इंसान ने अपनी जिद , अपने अन्वेषण , अपनी आवश्यकता के कारण , प्रकृति की नैसर्गिक  व्यवस्था में सेंध लगाने की कोशिश की है , प्रकृति खुद उसे संतुलित कर लेती है ॥
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प्रकृतिशास्त्री पिछले दो दशकों से ,या शायद तभी जब से इंसान ने अपनी सुविधा के लिए प्रकृति के मिज़ाज़ के खिलाफ़ जाकर छेडछाड शुरू की तभी से बार बार इस  बात पर चिंता जताते हुए नसीहत स्वरूप ये कहते रहे हैं कि जीवन जीने के रास्ते  प्रकृति के खिलाफ़ नहीं प्रकृति के साथ तलाशे जाने चाहिए । इतने बरसों बाद भी जहां एक तरफ़ हम इंसान , न तो प्रकृति के तत्वों का सम्मान करते हैं और न ही  उन्हें सहेजने और संरक्षित करने के लिए रत्ती भर  भी गंभीर है । विशेषकर पश्चिमी देशों की तुलना में अभी देश में कुछ भी नहीं सोचा किया गया है अब ये तो खुद सरकार , समाज , और आपको हमें तय करना है कि हमें भविष्य में ऐसी त्रासदियों के लिए तैयार रहना चाहिए या हमें अभी से चेत कर प्रकृति के साथ सहजीवन पद्धति का विकास करना चाहिए ....प्रकृति सोच चुकी है , अब सोचना आपको और हमें है ............

रविवार, 5 जून 2011

हां अब शुरू हुई लीला ..फ़ंस गया जनांदोलन ...





इन दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सिर्फ़ मौजमस्ती के अपडेट नहीं लिखे जा रहे हैं , बाकायदा मुहिम चल रही है , बहस और विमर्श किए जा रहे हैं । लोग न सिर्फ़ अपनी साहित्यिक काबलियत का परिचय करवा रहे हैं बल्कि अपनी  बौद्धिक सोच , और वैचारिक क्रांति को भी जम के धारदार बना रही है । अन्ना हज़ारे द्वारा किए जा रहे जनांदोलन में फ़ेसबुक पर चली और चलाई गई एक मुहिम इंडिया अगेंस्ट करपशन ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । इस जनांदोलन से जुडाव ने ही शायद बाबा रामदेव द्वारा स्थापित स्वाभिमान ट्रस्ट के मित्रों का रूख मेरी तरफ़ मोडा , और मित्रों ने ताबडतोड मुझसे सवाल किए कि , क्या मेरा समर्थन बाबा के प्रस्तावित आंदोलन को उसी रूप में है जिस रूप में मैंने अन्ना के जनादोंलन में रुचि दिखाई थी । मैं बह्त जल्दी किसी भी बात , और व्यक्ति से प्रभावित नहीं होता और यूं भी  आधुनिक भारत में बाबाओं के इतिहास ने मुझे कभी भी किसी भी बाबा का अंधभक्त बनने नहीं देता है । इसलिए पुरज़ोर तरीके से न सही किंतु मैंने अपने विचार से उन्हें अवगत करा ही दिया था कि , ये सब मुझे संतुष्टिजनक नहीं दिख लग रहा है । 



अब जबकि मामला त्रिशंकु की तरह लटक गया है तो लगा कि अब समय आ गया है कि इस नाज़ुक समय पर हर आम आदमी की तरह विचार और सोच को सामने रखना ही चाहिए । प्रबुद्ध समाज का ये दायित्व हो जाता है कि वे ऐसे समय पर जबकि पूरा देश एक परिवर्तन की लडाई लड रहा है तो उससे सहमति या असहमति, विमर्श और विचारों के सहारे समाज के सामने जरूर रखे । इतिहास गवाह रहा है कि एक व्यक्ति द्वारा संचालित कोई भी पंथ , समुदाय , आंदोलन , संस्था अक्सर बहुत सी विषम परिस्थितियों में फ़ंस जाती है और अगर किसी कारणवश उस अकेले व्यक्ति से अलग हो कुछ भी तो सब कुछ बिखर सा जाता है । बाबा रामदेव के विषय में तबसे चर्चा ज्यादा तेज़ हुई थी जबसे उन्होंने योग के अपने चमत्कारिक साधन से इतर जाकर समाज की राजनीति से होने वाली लडाई के एक सूत्रधार के रूप में ये बयान दिया कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक देश व्यापी जनांदोलन की शुरूआत करने जा रहे हैं । खासकर विदेशों में फ़ंसी हुआ भारत का काला धन लाने की उनकी मुहिम ने उन्हें देश से लेकर विदेश तक की चर्चा में ला दिया । इस समय तक बाबा अपने योग गुरूत्व के बल पर एक बहुत बडी जमात अपने अनुयायिओं और उन पर विश्वास करने वालों की खडी कर चुके थे । बाबा को पूरा यकीन था कि वे जब किसी भी जनांदोलन को प्रारंभ करेंगे तो उसमें उनका साथ देने आने वाला ये जनसमूह सरकार के लिए बडी सिरदर्दी साबित होगा । 


लेकिन इसके साथ ही बाबा के इतिहास भूगोल के पडताल की कहानी भी शुरू हो गई । तहलका समेत कई खोजी पत्रकारों ने बाबा के ज़र्रे से आसमान तक के तीव्र सफ़र का सारा राज़ अपने समाचार सूत्रों के माध्यम से कर डाला । बाबा रामदेव और उनसे जुडी हुई संस्थाओं के पास हजार करोड की अकूत संपत्ति का होना , और उनका ये कहना कि वे आगामी चुनावों में सभी सीटों से अपने प्रत्याशी खडे कर सकते हैं ने इस बात का ईशारा कर दिया था कि राजनीतिक महात्वाकांक्षा का एक पुट भी कहीं न कहीं तो पनप ही रहा है । किंतु इसके बावजूद भी जब बाबा रामदेव ने विदेशी बैंकों में जमा भारतीय काले धन को वापस लाने के अनशन की घोषणा की तो मन ही मन एक आम आदमी यही सोच रहा था कि , इस सरकार के साथ यही सलूक होना चाहिए । और इसे हर तरफ़ से घेरा जाना चाहिए । बाबा ने अन्ना के जनांदोलन से अलग अपने इस आंदोलन के लिए व्यापक तैयारी करवाई । न सिर्फ़ अनशन स्थल पर करोडों रुपए का खर्च किया गया बल्कि इस मुहिम के प्रचार के लिए भी देश को कटाआऊट और बैनरों से पाटने में भी अच्छा खासा धन लगाया गया । खैर बाबा के पास था तो उन्होंने लगाया , इसमें कोई बडी बात नहीं । 



मामला तब दुविधा में फ़ंसने जैसा हो गया जब समाचार माध्यमों में खबर आई कि अनशन शुरू होने से पहले ही सरकारी मंत्रियों ने सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए बहुत सी मांगों पर सहमति दे दी है । आगे का चिट्ठी प्रकरण , सरकार का आश्वासन , कपिल सिब्बल की राजनीतिक धूर्तता और बाबा का अब इस विकट स्थिति में फ़ंसने की सारी घटनाएं जितनी तेज़ी से घटी हैं पिछले कुछ घंटों में उससे एक अजीब ही हालात बन गए हैं । बाबा खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं । पूरे देश से आई हुई भारी जनता , जाने कहां कहां बैठे सहयोगी और अनशनकर्ता आंदोलन खुद ही दुविधा में फ़ंस गए हैं । उधर सरकार अलग ताल ठोंक रही है कि जब मांगे मान ही लीं तो फ़िर अनशन क्यों ?? मामला अब ज्यादा संगीन हो गया है और स्थिति ज्यादा नाज़ुक । सरकार की बेशर्मी का आलम तो देखिए कि केंद्रीय मंत्री कितनी बेशर्मी से कहते हैं कि बाबा की मांगों को मान लेने का मतलब ये कतई न लगाया जाए कि सरकार कमज़ोर है इसलिए झुक जाती है । वो सरकार जिससे पिछ्ले कई सालों से अफ़ज़ल गुरू और कसाब जैसे आतंकियों को फ़ांसी पर चढाने की भी हिम्मत नहीं है , वो सरकार जो चुप होकर अपने मंत्रियों को पूरा देश लूटते हुए देख रही है वो सरकार भी ऐसे दावे करती है । अब ये जनांदोलन क्या रूप लेगा ये तो भविष्य की बात है किंतु इतना तय है कि सरकार इस बात को अच्छी तरफ़ समझ रही है कि आम अवाम जो आए दिनों भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनसैलाब की तरह उमड जा रही है वो सरकार की सेहत के लिए खतरे की घंटी है । रही बात अन्ना और बाबा के जनांदोलनों और अनशन पर सवाल उठाने वालों की , तो जिस दिन कोई भी राजनेता अपने दम पर इतने सारे आम लोगों को अपने साथ खडा होने के लिए सहमत कर लेगा उस दिन गैर राजनितिक लोगों को ये बागडोर अपने हाथों में उठाने की कोई जरूरत नहीं पडेगी । फ़िलहाले तो जनता यही चाहेगी कि , ये जनांदोलन भी सरकार के ताबूत में एक कील की तरह ठुक जाए । 
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