फ़ॉलोअर

रेडियो लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रेडियो लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 10 नवंबर 2014

प्रेरित करती सबको, ये तो सबके "मन की बात"






इस बीच सोशल नेटवर्किंग साइट्स से लेकर ,समाचार माध्यमों की अति सक्रियता , या कहा जाए कि तत्परता के दोहरा प्रभाव पडता दिख रहा है । एक तरफ़ तो,टीवी, मोबाइल , इंटरनेट, व अन्य समाचार माध्यमों की सर्वसुलभता और खबरों की सतत उपलब्धता ने लोगों को इन सबका आदी बना दिया है , यानि अब लोग किसी भी छोटी बडी घटना/दुर्घटना/योजना/कानून/खबर/सुर्खी.........को जानने को उत्कट रहते हैं । दूसरी ये कि चाहे अनचाहे सरकार ,समाज, और लोगों की क्रिया/प्रतिक्रिया/आचरण/शब्द/व्यवहार/कर्म लगभग सब कुछ कहीं अधिक पारदर्शी हो गया है ।
.

नई सोच और नई दृष्टि से लबरेज़ , नवगठित सरकार के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ऐसे में , जब देश की बागडोर संभालते हैं तो देश से लेकर अमेरिका तक में सार्वजनिक रूप से ये कहते हैं कि हां अब समय आ गया है जब हमें देश में फ़ैली और फ़ैलाई जा रही गंदगी/कूडा/कचरा से निज़ात पानी ही होगी । स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत इसी उद्देश्य से की गई है कि लोगों को प्रोत्साहित किया जाए कि वे स्वच्छता के प्रति जागरूक हों । ऐसा नहीं है कि इस तरह की पहल और प्रयास पहले कभी नहीं किए गए हैं , यकीनन किए गए हैं किंतु औपचारिकता की भेंट चढी वो सारी योजनाएं और कोशिशें समय के गर्त में खुद दरकिनार हो गईं ।
.
.

छोटी सी शुरूआत भी भविष्य में बेहद प्रभावकारी साबित हो सकती है यदि उद्देश्य और नीयत दोनों ही अच्छे और स्पष्ट हों , खैर इसका आकलन तो थोडे समय के बाद ही होगा किंतु इतना तो सबको महसूस हो ही रहा है कि ,कहीं तो कुछ धीरे धीरे बदलने लगा है , कुछ तो ऐसा है जो पहले नहीं हुआ ।
.


ऐसी ही एक शुरूआत हम दोनों पिता पुत्र ने घर के साथ सटे पार्क से की , प्रात: कालीन शाखा (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा ) में नियमित रूप से जाने के कारण , शाखा लगने से पहले हम दोनों मिलकर पूरे पार्क का (waste scan) वेस्ट स्कैन कर डालते हैं , हर छोटे बडी , पॉलिथीन, रैपर, प्लास्टिक की बोतलें, ढक्कन , चाय के कप आदि तमाम कचरे को साथ लेकर जाने वाले एक छोटी बोरी में भरकर इकट्ठा कर लेते हैं , जिसे बाद में पार्क के रख रखाव में लगे कर्मचारी नियत स्थान तक पहुंचा देते हैं । इतना ही नहीं हमने शाम को पार्क में बैठे लोगों से आग्रह करना शुरू किया , जिसका लब्बो लुआब ये रहता है कि ,


स्वच्छ रहने, रखने के सिर्फ़ दो रास्ते हैं .........गंदगी मत फ़ैलाइए , सफ़ाई नहीं करनी पडेगी,
दूसरा रास्ता ,रोज़ गंदगी फ़ैलाना नहीं छोड सकते , तो रोज़ सफ़ाई करने की आदत डालिए ॥

रोकिए .............खुद को , गंदगी फ़ैलाने से ,
टोकिए.............दूसरों को , गंदगी फ़ैलाने से

स्वच्छ भारत , निर्मल भारत ॥ स्वस्थ भारत , सबल भारत ॥

 देखिए , शायद कुछ कुछ प्रभाव इसका दिखने लगा है और अब तो सुबह की सैर/टहल के लिए आए हुए स्थानीय लोग भी हमारे साथ जुटने लगे हैं , झाडू थामे/बुहारते/कचरा उठाते हुए फ़ोटो लगाने की जरूरत नहीं समझी , स्वच्छ पार्क की फ़ोटो ज्यादा सुंदर लगेगी , यही ठीक लगा ॥


पार्क का वो हिस्सा जहां बच्चे खेलते कूदते हैं


पार्क के दूसरे हिस्से में फ़ैली हरियाली

 इसी तरह एक नई पहल करते हुए प्रधानमंत्री ने आम जनों से संवाद के लिए रेडियो को अपने माध्यम के रूप में चुना । इसके पीछे भी जरूर कोई न कोई बहुत ही सुलझी हुई सोच और दूरदृष्टियुक्त विचार ही होगा अन्यथा आज के समय में जब लोग आगे ही आगे की तरफ़ भागे जा रहे हैं और रेडियो/चिट्ठी जैसे संचार/संवाद माध्यमों को बिल्कुल आउटडेटेड मान समझ लिया गया है , किंतु सच तो ये है आज भी ग्रामीण भारत का एक बहुत बडा हिस्सा और जनमानस कंपूटर और इंटरनेट तक नहीं पहुंच पाया है , ऐसे में रेडियो को संवाद सूत्र के रूप में चुनना नि:संदेह प्रशंसनीय कदम है ।

मोदी बहुत ही संतुलित भाषा में ,अपनी बात को पूरी दृढता से रखते हैं , इतना ही नहीं उसे तार्किक तरीके से विश्लेषित भी कर देते हैं , वो लोगों को प्रेरित कर रहे हैं , वे रेडियो पर नाम लेकर कहते हैं कि देश के एक नागरिक ने पत्र लिखकर मुझे ये बात बताई है । इस बार स्वच्छता को सीधे देश में आज़ादी के बाद से अब तक रोग से नासूर बन चुक जाने वाली गरीबी से जोड दिया । बात सौ फ़ीसदी सच है , गरीब गंदगी की वजह से बीमार पडता है और बीमार पडने की वजह से गरीब रह जाता है , इसलिए यदि देश से गरीबी मिटानी है तो पहले गंदगी हटानी होगी , कितनी सरल और गहरी बात है । शैली, तेवर और स्वर हूबहू वैसे जैसे कि आम भारतीय को खुद का लगता है ।

मन की बात से प्रेरित होकर चिट्ठियों का दौर यदि दोबारा से शुरू हो जाए तो ये धीरे धीरे मैसेज व्हाट्स अप में सिमट कर रह जाने वाली सिमटती जा रही पीढी को ,खत/चिट्ठी के शिल्प से रूबरू होने और उस परंपरा को बढाने का मौका मिलेगा , ये अच्छी पहल होगी , आम जनमानस का सीधे सीधे प्रधानमंत्री को संबोधित करके अपने मन की बात लिखने का , मेरे जैसे पत्र प्रेमी के लिए तो ये सोई उर्ज़ा को जगाने जैसा है , मेरी पत्र पेटिका तैयार हो गई है , मन की बात कहने और करने के लिए ।



रविवार, 29 जनवरी 2012

सतियानासी मोबाइलवा










उस दिन एक ठो सहकर्मी दोस कहे कि चलिए एक ठो नयका मॉडल का मोबाइल दिलवाइए , हम कहे कि तो ई में हमको काहे ले जा रहे हैं महाराज , हम तो टेक्नीकली एतना स्ट्रॉंग हैं कि कै मर्तबे तो अपना मोबाइल का मॉडल का नाम ही भूल जाते हैं । खैर उनके साथ हम भी लद के दुकान तक चल दिए । उहां मित्र जी मोबाइल दिखाने वाली बालिका से मित्र ने फ़ोन खरीदने से पहिले टोटल जानकारी मांग लिया ,कैमरा , एफ़एम ,इंटरनेट , जीपीएस , जीपीआरएस , और जाने कौन कौन आईएएस आईपीएस तक सब कुछ , बालिका भी हुलस के सब को एकदम डिटेल में समझा बुझा दी । मित्र से हम धीरे से बोले , अमां ई तो पूछो बे कि फ़ोन से फ़ोन तो किया सुना जा सकेगा न बढियां से , दोस हमको ई निगाह से देखे मानो कह रहे हों ...इह्ह्ह्ह! रहिएगा झा जी के झा जी न । अरे ई कौनो पूछने वाला बात है जी । आगे हम चिंतन मोड में चले गए 


हम सोच रहे थे कि अब ई ससुरा मोबाइल खाली दूरभाष नय रहा । बल्कि ई कहें कि दूरभाष के अलावे ही सब कुछ हो गया तो साईत ठीक रहेगा । माथा को थोडा डोलाके जब विसराम पोजीसन में लाकर हिसाब किताब लगाए तो देखे कि अरिस्स सरबा ई मोबाईलवा तो बहुत कुछ को लील गया जी । एक समय हुआ करता था , चिट्ठी पत्री वाला जमाना ऊ में भी हमारे जैसा चिट्ठकडा । एक लंबर के चिट्ठी लिखडुआ बन गए थे । हालत ई कि नौ ठो पत्र मित्र के अलावे रेडियो, समाचारपत्र , पत्रिका आदि में घनघोर रूप से चिट्ठई चलता था । गाम में मां को लिखी चिट्ठी अब भी उनका बक्सा में धरल है ।जानते हैं कि मां एक एक चिट्ठी को पचास पचास बार बढ जाती थी । पहिले फ़ोन फ़िर ई मोबाईल पूरे रामखटोला को बंद कर दिया । फ़ोनवे पर परनामपाती हाल समाचार डायरेक्ट फ़ेस टू फ़ेस ,बस हो गिया बंटाधार लेकिन कभी मोबाइल पर मां से ऊ बात सब नय कह सके जो चिट्ठी में तफ़सील से कहते थे । 

अरे चिट्ठी आ पेजर को मारिए गोली ई मोबाइलवा तो ट्रिन ट्रिन वाला फ़ोनवो को डुबा दिहिस । घनन घनन वाला गोलका डायल वाला मोटका फ़ोन त अब खाली इश्टार गोल्ड का पुरना सिनेमा में ही दिखाई देता है । आ फ़ोनवा के साथ एक टैम में खूबे चला फ़ोन घर अरे पीसीओ महाराज , एक एक रुपैय्या डाल के बतियाने वाला भी आ फ़ोटो स्टेट के साथ एक दू फ़ोन रखके बतियाए वाला निजि पीसीओ । अरे मानिएगा , कै मर्तबा तो लाईन लगाना पडता था । त ई मोबाइल पीसीओ , जेसीओ आऊर जेतना भी ओ था सबको गीर गया , आप लोग के इंग्लिश में बोले तो दे वर डंप्ड । लेकिन आह ,क्या मजा आता था एक रुपये का सिक्का डाल के तीन मिनट का कॉल करने में आ फ़िर आखिर का आधा मिनट में टूं .टूं ..टूं  , माने कि जो ई गपियाना चालू रखना है तो दक्षिणा बढाओ तात । और जब कौनो आसिक अपनी मसूका , रूठी हुई मासूका , सोचिए कि सुपरलेटिव डिग्री का इंतहा है ई पोजीसन मासूका का , उसको फ़ोन अप्र दुनिया के तमाम परपोगेंडा करके मनाने के लिए एक दर्ज़न सिका मुट्ठी में धर के आपसे अगिला नंबर पे टकर जाए तो तीन सिक्का के बाद आप दुनिया के तमाम लैला मजनूं को भरपेट गरियाए बिना नहीं रह सकते थे । आज ई मोबाईलवापे तो परेम संदेस को भी फ़ारवर्ड टू ऑल करके पूरे परेम का फ़ेम बजा डाला है रे बबा । 

गाम में होते थे तो कनपट्टी से रेडियो सटले रहता था हर हमेसा ही । पूरा दिन आ रात एवररेडी मनोरंजन समाचार सबे कुछ । दिल्ली आए तो पता चला कि एन्ने शर्ट वेव कौनो बनमानुस आउर एम एम घरेलू बुझाता है ।खैर बहुत समय तक कीन कीन कर रेडियो सुनते रहे । अब ई मोबाईल पांडे का भीतर एक दर्ज़न से जादे एफ़एम चैनल धर लेता है , आ कमाल ई है कि चौबीसों घंटा बौखता रहता है । कान में कनट्ठुस्सी लगाए गर्दन टेढा किए मोटरगाडी को चलाते बतियाते दिख जाएं तो समझ जाइए कि मोबाइलीटाईटिस से पीडित हैं कौनो । कैमरा का हाल तो पूछिए मत ,ओईसे तो डिजिटल कैमरा आ मूवी कैम जैईसन इनका अपना वसंज सब ही पुरना कैमरा का बेडा गर्क किया है अब त सुने हैं कोडक वाला सब दिवालिया घोषित हो गिया बेचारे सब , लेकिन मोबाइल के हाथ में आने से कुकर्म से सुकर्म टाईम का तमाम चित्रकारी आ भित्तिकला से ससिकला तक का पिरदरसन कर रहा है भाई लोग । मोबाइलवा का कैमरा देख के ही पहली बार जाने बूझे कि मेगा पिक्सल भी कोई चीज़ होता है आऊर ऊ गाडी के एक्सल से अलग होता है । 

चलिए एतना सब तो झेला जाता है फ़िर भी लेकिन ई मोबाइलवा जौन ची सबसे जादे खतम हो गया ऊ है अपना आज़ादी , अपना एकांत , अपना सुकून ..जब देखो तब टूं टूं टूंटूटूटू ..कन्ने हैं का कर रहे हैं , का करने जा रहे हैं , का कर के आ रे हैं , बिल्लैय्या रे बिल्लैय्या ..अबे ई मोबाईल हौ कि जसूस रे । कै बार तो मन किया  कि उठा के फ़ेंक दें टेंटुआ दबा के इसका लेकिन अब तो कंपलसरी सबजेक्ट हो गया ही सतियानासी मोबाइलवा । जादे लिखेंगे न तो सोनी का किराईम पेट्रोल वाला सब आ जाएगा लडने ,काहे से कि उ सबका टोटले केस मोबाईले से सुलझा लेता है । 

रविवार, 9 मई 2010

"ब्लोग बोलता है" : ब्लोग + रेडियो : व्हाट एन आईडिया सर जी !


कल जब इस पोस्ट पर भाई खुशदीप ने टिप्पणी की कि , क्या मैंने कभी रेडियो प्रसारण सेवा में हाथ आजमाने की नहीं सोची तो मुझे बताना पडा कि एक दशक पहले जब मेरा अंतरिम चयन पटना औल इंडिया रेडियो के लिए समाचार वाचक /अनुवादक के पद पर हुआ था , मगर अंतिम चयन नहीं हो पाया । इसी तरह बैठे बैठे अचानक एक धमाकेदार ख्याल आया जिसपर यूं तो मैंने बात आगे बढा दी है , मगर सोचा कि आप सबकी राय भी लेता चलूं ।


तो आईडिया ये है कि , ब्लोग पोस्टों की , ब्लोग पर हो रही दिलचस्प बहसों की , ब्लोग पर लिखी जा रही कविताओं ,गज़लों,शेरों, कहानियों और सभी कुछ को रेडियो कार्यक्रमों के साथ जोडा जाए तो । हालांकि इस विषय पर कुछ न कुछ तो रेडियो पर होता ही रहता है । जैसा कि एक वर्ष पहले रेडियो जर्मनी हिंदी सेवा ने ब्लोग्गिंग पर एक प्रस्तुति भी की थी । और इतना ही नहीं एफ़ एम रेडियो के उदघोषक भी अपने कार्यक्रमों में अपने ब्लोगस की चर्चा करते रहते हैं । इसके लिए फ़िलहाल तो मैंने सभी हिंदी प्रसारण सेवाओं को पत्र लिख कर आग्रह किया है कि यदि ऐसा संभव हो सकता है कि ऐसे किसी कार्यक्रम की शुरूआत ,की जा सकती है तो मैं खुद ही इसे तैयार करके भिजवा सकता हूं । अन्यथा ये बडी आसानी से खुद उनके प्रसारक कर सकते हैं ।


इसके साथ ही ये योजना भी है कि सभी एम एम रेडियो चैनलों से भी आग्रह किया जाएगा कि वे जब भी किसी सामयिक विषय पर कोई कार्यक्रम कर रहे होते हैं तो इन ब्लोग पोस्टों में कही गई बातों को बहसों को और टिप्पणियों का भी उपयोग कर सकते हैं


तो तैयार हैं आप सब रेडियो ब्लोग्गिंग के लिए ........................................
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...