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गुरुवार, 21 मई 2020

कोरोना से लड़ें आत्मनिर्भर होकर



पिछले दिनों जब प्रधानम्नत्री महोदय ने ये कहा कि कोरोना के सन्दर्भ में दो बातें जाननी बहुत जरूरी हैं। 

पहली ये कि निकट भविष्य में हम इससे निजात पाने वाले नहीं हैं खासकर जब तक हमारे चिकित्सा अनुसन्धान में लगे वैज्ञानिक चिकित्सक इसके लिए को कारगर टीका दवाई इत्यादि नहीं तलाश लेते। 

दूसरी ये और बहुत जरूरी बात यह कि इस महामारी ने भारत सहित पूरे विश्व को ये सन्देश दिया है कि अब समय आ गया है की व्यक्ति से लेकर समाज और देश तक को अपने कार्य अपने व्यवहार और अपनी जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर होने की और बढ़ना चाहिए।  

इस बीमारी से बचने और बचे रहने के लिए जो सबसे कारगर उपाय है वो है इसकी चपेट में आने से बचने के लिए अपनाई गयी आदतें और सावधानियां और दूसरी है शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को विकसित करना।   

इसी सन्दर्भ में मेरा ये वीडियो आपको बताएगा की कैसे अपने घरों के पौधों के छिपे रामबाण उपाय हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में हमारी सहायता कर सकते हैं।  आप यू ट्यूब पर इस वीडियो को देख कर समझ सकते हैं कि मैं बिना घर से निकले ही कैसे , नीम ग्लोय तुलसी नीम्बू और अदरक आदि के इस्तेमाल से प्रतिरोधी क्षमता की वृद्धि में  कैसे अमृत समान काम करती है ये विधि।  आप भी देख कर मुझे बताएं की आपको कैसी लगी ये आत्मनिर्भर होकर बनाई गयी औषधि 





बुधवार, 2 जनवरी 2019

साल ये भी कुछ तो नया होगा .....





इस जीवन में यूं तो हर पल नया होता है और ये इस मायने में भी होता है कि हमारे आसपास कुछ कुछ न भी हो तो भी जो बीत जाता है वो स्वयमेव पुराना हो जाता है और स्वतः ही सब कुछ नवीन यानि नया हो जाता है | और ये उसी तरह से जरूरी भी है जिस तरह से कुछ नया याद रखने के लिए पुराना भूलना बहुत जरूरी होता है | 

यहाँ एक दिलचस्प बात भी उल्लेखनीय है कि , साल के 365 दिनों में से क्या हमें हर दिन हूबहू याद रहता है ? शायद नहीं ? यकीनन नहीं ? मानव मन अधिकांशतः अपने ज़ेहन में सिर्फ या तो बहुत अच्छी या बहुत बुरी स्मृतियाँ ही सहेज पाता है जो स्वाभाविक भी है | और ऐसा सबके साथ शायद पूरी उम्र होता है | 


नव वर्ष मनाने की परम्परा कब शुरू हुई , कैसे शुरू हुई इसकी भी बहुत सारी कहानियाँ हैं | और अलग अलग सभ्यताओं , समाजों , देशों , क्षेत्रों , ने इस रवायत को अपनी अपनी तरह से मनाना निभाना शुरू किया होगा | हालांकि पूरा विश्व जिस तारीख को नव वर्ष के रूप में मनाता है और मनाता चला आ रहा है वो अंग्रेजी कैलेण्डर के पहले महीने की पहली तारीख होता है | 

इस हिसाब से हम आप अब वर्ष 2019 में प्रवेश कर चुके हैं और बहुत से मायनों में ये साल भी हमारे आपके लिए बहुत सारे ख़ुशी,गम, साधारण , असाधारण , उत्सव , घटनाओं का समावेश लिए होगा | राजनीति , धर्म , सरकार ,प्रशासन , न्यायालय , समाज , लगभग हर क्षेत्र में बहुत सारी नवीन बातों के लिए खुद को तैयार किए रहिये और हाँ खुद को क्यूँ अछूता रखें | हमारे आपके जीवन में भी बहुत कुछ नया होगा इन आने वाले 365 दिनों में | 


तो तैयार हैं न आप इस नए साल में बहुत सारे नए के लिए ......





मंगलवार, 14 अगस्त 2018

ये कुछ दिनों की बात थी





कुछ दिनों पूर्व

समय करीब शाम के आठ बजे
स्थान : पूर्व दिल्ली की कोई गली

पुत्र आयुष को जुडो कराटे की प्रशिक्षण कक्षा से वापस लेकर लौट रहा हूँ | तीन दिनों से लगातार हो रही बूंदाबांदी ने सड़क को घिचपिच सा कर दिया है | अचानक ही स्कूटी की तेज़ लाईट में सड़क के बीचों बीच कोई औंधा पड़ा है ,रौशनी सड़क पर सिर्फ आती जाती गाड़ियों से बीच बीच में पड़ती छुपती है | लोग आ जा रहे हैं , कोई देखने की ज़हमत नहीं कर रहा |

मैं अचानक ही ब्रेक लगाता हूँ पुत्र आयुष अकचका कर मुझे देखता है | दो मिनट में ही समझ जाता हूँ कि इस बारिश के मौसम में कोई युवक दिन से खूब सारी शराब उड़ेल उड़ेल के खुद को ऐसा कीड़ा/केंचुआ बना चुका है की अब उसे कोई फ़िक्र नहीं नाली में हो या सड़क पर और उसे कोई फर्क भी नहीं पड़ रहा | मैं आदतन तुरंत ही दिल्ली पुलिस को फोन करके पूरी स्थिति बताता हूँ साथ ही ये ताकीद की फ़ौरन ही इसे उठा कर अस्पताल पहुँचायें || मुझे बताया जाता है की पीसीआर की एक गाड़ी उसे देखने निकल चुकी है |

थोड़ी ही देर बाद मेरे फोन पर एक आरक्षी का फोन ,वो मुझसे जगह की बाबत पूछता है और अंदाज़ ये मानो सारी झल्लाहट इस बात की जैसे कोई गुनाह कर दिया गया हो | मेरा स्वर तल्ख़ और अंदाज़ खुरदुरा हो जाता है और फिर मजबूरन "कचहरीनामा खोल"(अपना परिचय देकर ) कर उसे डांटना पड़ता है | वो सॉरी सॉरी कह कर फोन रख देता है |
1 . शहरों में समाज मर चुका है | 
२. पुलिस जो इसी समाज से है ,वर्दी पहनते ही उसकी आत्मा भी मर जाती है (अपवाद के लिए पूरी गुंजाईश है ) | 
३. शराब आज देश की रगों में तेज़ाब बन के बह रहा है |
सोच रहा हूँ की शायद अदालत में कार्यरत होने के कारण स्वाभाविक रूप से निर्भय होकर पुलिस क़ानून मीडिया को बुला कर बात कर लेता हूँ ............

शनिवार, 17 सितंबर 2016

जीवन को नहीं जीवन संस्कृति को समझें





आप कभी छत पर सोए हैं ???

रात में जब आप छत पर आकाश की ओर मुंह करके ऊपर अनंत की ओर देखने की कोशिश करें तो एक अद्भुत संसार ,सोचता हूँ उसे संसार भी कहना ठीक होगा क्या ,मगर ये जो आदि से लेकर अनंत तक दिखाई देता है वो सिर्फ एक अनुभूति है । अक्सर ये कहते हुए सुना है कि मरने के बाद सब तारा बन जाते हैं |विज्ञान कहता है नहीं बकवास है ये ,गैस के गोले हैं सब बस ..मगर फिर विज्ञान ये भी नहीं बताता कि अगर अभी के बाद तारा नहीं बनता तो फिर क्या बनता है कुछ  बनता भी है या नहीं पता नहीं है | खैर ,हम इस मौत की बातें क्यों करें हम तो जीवन और जीवन संस्कृति की बातें करने चले थे तो उसी की बातें करते हैं ।।


 संस्कृति यानि संस्कारों से युक्त दिनचर्या ऐसी आदर्श स्थिति जिसका निर्वाह करते हुए मनुष्य पूरे जीवन चक्र को बिता कर सिर्फ इसलिए भी उस जीवन चक्र से बाहर निकलने का हकदार हो जाता है | क्योंकि उसका जन्म संस्कारों को ग्रहण कर जीवन को संस्कृति में बदलने के लिए ही हुआ है ||संस्कृति मिलती है या कहे पनपती है संस्कारों से संस्कार आते हैं शिक्षा से शिक्षा वह हमें तब मिलती है जब हमारे अंदर ज्ञान की अनुभूति हो और ज्ञान की अनुभूति करने वाला और कोई नहीं वह गुरु होता है गुरु ऐसा होना चाहिए जो इंसान से भी ज्यादा अच्छा इंसान हो |कहने का तात्पर्य यह है हमारे जैसा आप के जैसा उनके  आदर्शों में ,व्यवहार में ,चरित्र में ,वाणी में ,जीवन शैली में ,हर दृष्टिकोण में मानवता को  स्थापित करने वाला वह गुरु कहलाने का हकदार है फिर चाहे वह ईश्वर हो या मानव के रुप में जन्म देने वाली कोई  आत्मा ||

सबसे दिलचस्प बात यह है कि अपने भीतर समेट कर रखने यवाले ईश्वर को ना पहचानने वाला इंसान ही सबसे ज्यादा उसकी तलाश में यहां वहां मारा मारा फिरता है | विज्ञान की खोजें  की जा रही  हैं ,योग मनोयोग शारीरिक मानसिक सामाजिक जाने कैसे-कैसे प्रयोजनों से इन सब को साधने की कवायद की जा रही है जबकि जीवन संस्कृति को समझने का सबसे सरल उपाय है कि आप मनुष्य जीवन को समझ और जब गुरु को तलाशते हैं तो फिर तो प्रकृति में आपके आसपास मौजूद हरण आपसे ज्यादा श्रेष्ठ और आपसे ज्यादा आदरणीय माना जाना चाहिए ।।


ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि यह खुद बखुद समय में इतिहास में प्रमाणित किया हुआ है और जिन की बात कर रहा हूं उन्होंने खुद भी साबित  किया हुआ है| आप अपने आसपास देखिए क्या दिखाई देता है |आकाश धरती मिट्टी पानी इनमें से कौन सी ऐसी चीज है जिसे आप अपना गुरु नहीं मान सकते हैं | जिसे इष्ट नहीं  समझ सकते जिसमें ईश्वर का निवास नहीं मान सकते तो फिर इन सब को अपना दोस्त , मित्र , सखा , परिवार , और ईष्ट मानकर उनकी यथावत सेवा करने की बजाए हम उनमें यथेष्ट प्रकार से विषाक्त पदार्थों को सिर्फ इसलिए घोल रहे हैं कि हम मानव विकास और विज्ञान के नाम पर साधक से उपभोगी  बन कर रह जाएं और सच में देखा जाए तो यही है भी..........शेष चर्चा ............


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