Thursday, November 04, 2010
  
  
 
मेरे ब्लॉग्स के सभी चाहने वालों, तथा उनके परिजनों के लिए दीपावली का रोशनी से भरा यह पावन पर्व जीवन में ढेर सारी खुशियां और उजाले लेकर आए, यही कामना है...
निष्ठा, सार्थक, हेमा तथा विवेक रस्तोगी... 
  
  कसम खाने के लिए हमने भी दिवाली के अवसर सफाई की कुछ । बहुत मेहनत के बाद भी कुछख़ास अंतर नहीं दिखाई दिया। हमने सोचा चलो फ्रिज ही साफ़ कर लेते हैं। पुनः जुट गए सफाईअभियान में। सफाई भी हो रही थी , और कुछ चीजें खा-खा कर निपटाते भी जा रहे थे। मेरीफ्रिज तकरीबन साफ़ हो चुकी थी की तभी एक सफाई-प्रेमी , बड़ी बहन का फ़ोन आ गया । उनसेपूछा क्या समाचार है, तो पता चला लखनऊ में ठण्ड काफी पड़ रही है । और डेंगू ने भी त्रस्त कररखा है। अरे भाई, डेंगू तो दिल्ली वालों की बपौती है, ये मच्छर का क्या काम नजाकत औरनफासत के शहर लखनऊ में। खून पीने को कोई और जगह नहीं है क्या।
दिवाली सफाई से नगर-निगम वालों की याद आई। बहुत बेशरम हो गए हैं ये लोग। देश कोगन्दगी से भर रखा है। सिर्फ तनख्वाह लेते रहते हैं। काम कुछ नहीं। कहीं सीवर चोक पड़ा है, तोकहीं दुनिया जहान की गन्दगी उड़-उड़ कर पुरे गली सड़क को रंगीन कर रही है।
कल न्यूज़ में देखा तो गंगा-तट पर बेशुमार गन्दगी का ढेर लगा हुआ है । अब अपने पाप कीगठरी धोने कहाँ डुबकी लागाएं हम ? पाप तो धुल जायेंगे , लेकिन दो-चार संक्रामक रोग गले पड़जायेंगे। 
 
  
 Wednesday, November 3, 2010
  
  
 
 
रोशन है कायनात दीवाली की रात है
उल्फ़त के दीप दिल में जलाओ तो बात है 
नफ़रत की आग दिल में, जलाकर मिलेगा क्या
रोशन महल उन्हीं के हैं, जिनकी बिसात है 
  
 ०३-११-२०१०
  
  
 
 
पिछले दिनों मैंने अपने ब्लॉग के फॅलोअर लिस्ट में एक खूबसूरत सा चेहरा देखा। जब उस चेहरे के बारे में जानने के लिए मैंने उसे क्लिक किया, तो मुझे घोर निराशा हुई। कारण उस फॉलोअर ने न तो अपनी कोई प्रोफाईल को फॉलो सुविधा से जोड़ा था और न ही उसमें ब्लॉग वगैरह का लिंक दिया हुआ था।  
यदि उस फॉलोअर ने अपने फोटो के साथ अपना परिचय आदि दिया होता, तो हो सकता है कि मैं उसके ब्लॉग तक जाता। इस प्रकार उस फॉलोअर ने अपना एक संभावित कमेंट ही नहीं संभावित फॉलोअर भी खो दिया। इसे ही कहते हैं मुफ्त में किसी का ब्लॉग फॉलो करना। क्योंकि भले ही आप ऐसा करके आप अपने डैशबोर्ड में फॉलो किए हुए ब्लॉग की ताजा पोस्ट की जानकारी पा रहे हों, अपने ब्लॉग की जानकारी आप फॉलोअर लिस्ट के द्वारा दूसरों तक नहीं पहुँचा पा रहे हैं। 
  
 Wednesday, November 3, 2010
  
फेंगशुई कैंडल्स भर देंगी घर को सकारात्मक ऊर्जा से
 फेंगशुई कैंडल्स भर देंगी घर को सकारात्मक ऊर्जा से
दीपावली पर रंगीन मोमबत्ती की सजावट का ट्रेंड आजकल जोरों पर हैं। मोमबत्तीयों की सजावट को फेंगशुई के अनुसार भी शुभ माना गया है। दीपावली पर आप अपने घर के सही कोने में सही रंग की मोमबत्ती लगाएं तो घर सकारात्मक ऊर्जा से भर जाएगा।
- घर के उत्तर-पूर्वी कोने में ग्रीन रंग की मोमबत्ती लगाएं। इससे घर में पढऩे वाले बच्चों का एकाग्रता बढ़ती है।
- ग्रीन रंग की मोमबत्ती लगाने से घर की सकारात्मक ऊर्जा मे वृद्धि होती है।
- दक्षिण पश्चिम यानी अग्रिकोण में गुलाबी और पीले रंग की मोमबत्ती जलाएं। इससे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम व सामंजस्य बढ़ेगा। 
 
 Thursday, 4 November 2010
  
 अभी उसी ही दिन तो कौस्तुभ उर्फ़ मिकी  ने बिग बास में एक  विचित्र से कुशन नुमा मोढ़े पर बैठे हुए खली द महाबली की ओर इशारा करके कहा कि पापा यह बीन बैग खरीद लीजिये न -यह बैठने में बड़ा ही आरामदायक  होता है ... मैं उस विचित्र सी संरचना को लेकर जिज्ञासु हो उठा ....क्या कहते हैं इसे ...? 
"बीन बैग"  
"यह कैसा नाम,इसे बीन बैग क्यों कहते हैं ?" 
"इसमें बीन भरी होती है "  
"मतलब ,इसमें राजमा या सेम आदि के दाने भरे होते हैं ?" 
"हाँ ..शायद ....पता नहीं .." 
"धत ,क्या फ़ालतू बात करते हो -नेट पर सर्च करो .." फिर जो जवाब आया उसे मैं आपसे यहाँ भी बांटना चाहता हूँ ... 
बीन बैग एक पोर्टेबल सोफा है जिसे आप अपनी सुविधानुसार किसी भी तरह का आकार प्रकार दे सकते हैं ,वजन में फूल की तरह हल्का ,बस विक्रम वैताल स्टाईल में कंधे पर टांग लीजिये और जहां भी चाहिए धर दीजिये और पसर जाईये ...इसमें जो कथित "बीन"  है वह दरअसल इसे ठोस आधार देने के लिए इसमें भरा जाने वाला कृत्रिम बीन-सेम या राजमा के बीज जैसी पी वी सी या पालीस्टिरीन पेलेट होती हैं जो बेहद हल्की होती हैं! वैसे  तो बीन बैग्स के बड़े उपयोग है मगर हम यहाँ इसके बैठने के कुर्सीनुमा ,सोफे के रूपों  की चर्चा कर रहे हैं .हो सकता है कि इस तरह के बैग नुमा मोढ़े के आदि स्वरुप में सचमुच सेम या अन्य बीन की फलियाँ ही स्थायित्व के लिए कभी  भरी गयी हों मगर अपने अपने हल्के फुल्के रूप ये पाली यूरीथीन फोम जैसे हल्के पदार्थ के बीन -बीज/दाने  नुमा संरचनाओं से भरी हुई १९६० -७० के दशक में अवतरित हुईं -मगर ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुईं ...और लम्बे अरसे के बाद फिर १९९० के दशक और फिर अब जाकर तो इनका तेजी से क्रेज बढ़ा है . 
 
 
 ये बीन बैग्स हैं बीन बैग्स  
  
 बृहस्पतिवार, ४ नवम्बर २०१०
  
  बुझावान : ये बताइए कि भविष्यवाणी करने वाला ऑक्टोपस कैसे मरा?
बुझावान : ये बताइए कि भविष्यवाणी करने वाला ऑक्टोपस कैसे मरा? 
 बतावन : हर्ट अटैक से!
 बतावन : हर्ट अटैक से! 
 बुझावान : क्यॊं हुआ हर्ट अटैक?
 बुझावान : क्यॊं हुआ हर्ट अटैक? 
 बतावन : किसी भारतीय ने ऑक्टोपस से पूछ लिया था – कि भारत फुटबॉल वर्ल्डकप कब जीतेगा?
 बतावन : किसी भारतीय ने ऑक्टोपस से पूछ लिया था – कि भारत फुटबॉल वर्ल्डकप कब जीतेगा? 
 
  
 WEDNESDAY, NOVEMBER 3, 2010
  
 अबकी दिवाली ना जाए खाली
मुझको तारो से सजा दो
तारे गर हो दूर बहुत तो
दो चार हीरे ही तुम ला दो
दीप सजे तो रात सुनहरी
दीपमालिका मुझे बना दो
लौ से मैं कहीं झुलस ना जाऊं
सोने के कंगन गड़वा दो
जगमग जगमग हर घर आँगन
द्वार द्वार पर सजी रंगोली
रंग अगर मिटने डर हो
सतरंगी चूनर दिलवा दो
जितना चाहूं उतना पाऊं 
  
THURSDAY, NOVEMBER 4, 2010
  
 कल मेरी पोस्ट पर हरकीरत हीर जी ने प्यारी सी शिकायत की...
"आजकल आप अधिक व्यस्त हो गए लगते हैं ....
वो हंसी मजाक भी छूट गया लगता है ....??"
हीर जी, न तो मैं ओबामा हुआ हूं कि खुद भी व्यस्त रहूं और दुनिया को भी खाली-पीली व्यस्त रखूं...और न ही मेरे मक्खन-ढक्कन घर छोड़ कर भाग गए हैं जो मेरा हंसी मज़ाक का स्टॉक चूक गया हो...हां, मैंने ब्लॉगिंग में अब कुछ सतर्कता बरतना ज़रूर शुरू कर दिया है...न जाने निर्मल हास्य के तहत ही कही गई कोई बात किसी को चुभ जाए...इसलिए ललिता जी ठीक कहती हैं के सर्फ स्टाइल में सावधानी में ही समझदारी है...लेकिन आज यहां सिर्फ हंसने-हंसाने की बात ही करूंगा...
बॉस एक ही रहेगा
  
   
 
कुछ रोज पहले किशोर दिवसे जी का एक आलेख पढ़ रहा था जिसका शीर्षक देख लगा कि इस पर तो पूरी गज़ल की बनती है, तो बस प्रस्तुत है एकदम ताजी गज़ल दीपावली पर खास आपके लिए: 
लाखों रावण गली गली हैं,
इतने राम कहाँ से लाऊं? 
चीर हरण जो रोक सकेगा
वो घनश्याम कहाँ से लाऊँ? 
बापू सा जो पूजा जाये
प्यारा  नाम कहाँ से लाऊँ 
श्रद्धा से खुद शीश नवा दूँ
अब वो धाम कहाँ से लाऊँ? 
  
  केशू से पूछे गए कुछ सवाल के जवाब (केशू के बारे में जानने के लिए यहाँ देखें): 
प्रश्न : केछू के पास कितना हाथ है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के पास कितना पैर है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के नाक में कितना छेद है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के कितने आईज हैं?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू कि कितनी दीदी है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के पास कितने कान हैं?
उत्तर : टू!
  
  
  >> बृहस्पतिवार, ४ नवम्बर २०१०
 
आज, 4 नवम्बर को 
का जनमदिन है 
  
 11/03/2010
  
एक ठो लघु कुत्ता कथा......
  
 
फोटो साभार : www.wheelchairsfordogs.com 
जंगल में एक हरे भरे जगह पर कुकर सभी इक्कट्ठा हैं........ मौका है - नया सरदार चुनने  की रस्म पूर्ति करने का ....... 
वैसे तो कुक्कर स्वाभाव से ही स्वामिभक्त होते है और ये चुनाव वगैरा में मन नहीं लगाते  - पर क्या है कि इस जंगल में लोकतंत्र की रावायत चली हुई है....... इसलिय दिखाने को ही सही... सभी कुक्कर चुनाव में भाग लेते हैं व् अगले तील साल के लिए सरदारी तय करते हैं.... वैसे ये सरदारी भी एक ही वंश के अधीन है........ शुरू से ही इस वंश को सरदारी करने का शौंक रहा था..... इसके लिए जंगल भी बाँट डाला गया...... ताकि अपनी सरदारी कायम रहे...... उसके बाद जो पुश्ते हुई .... उन्होंने और इस सरदारी को पुख्ता किया..... 
  
 Wednesday, November 3, 2010
  
 
 
 
दिवाली की रौनक फिज़ाओं में घुलने लगी है... वो मिठाइयाँ, वो पटाखे, वो दिये, वो रौशनी, वो सारी ख़ुशियाँ बस दस्तख़ देने ही वाली हैं... भाई-बहनों, दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ मिल के वो सारा-सारा दिन हँसी-ठिठोली, वो मौज-मस्ती, वो धमा-चौकड़ी, वो हो-हल्ला... सच हमारे त्योहारों की बात ही अलग होती है... हमारी संस्कृति की यही चमक दमक... ये रौनक... बरसों से लोगों की इसकी ओर आकर्षित करती आयी है... 
आजकल तो बाजारों की रौनक भी बस देखते ही बनती है... दुकानें तो लगता है जैसे आपको रिझाने के लिये ब्यूटी पार्लर से सज-धज के आयी हैं... इतनी भीड़ भाड़ के बीच तो लगता है ये महंगाई का रोना जो रोज़ न्यूज़ चैनल्स और अखबारों की सुर्खियाँ में रहता है मात्र दिखावा है... अगर महंगाई सच में बढ़ी है, तो खरीदारों की ये भीड़ क्यूँ और कैसे... सच तो ये है की महंगाई और व्यावसायिकता तो बढ़ी ही है साथ ही साथ लोगों की "बाईंग कपैसिटी" भी बढ़ी है... और दिखावा भी, नहीं थोड़ा सोफिस्टीकेटेड तरीके से कहें तो सो कॉल्ड "सोशल स्टेटस" मेन्टेन करने की चाह भी... 
  
 THURSDAY, NOVEMBER 4, 2010
  
 तुम्हारे पास लकड़ी की नाव नहीं ,
निराशा कैसी?
कागज़ के पन्ने तो हैं !
नाव बनाओ और पूरी दुनिया की सैर करो..........
हर खोज,हर आविष्कार तुम्हारे भीतर है ,
अन्धकार को दूर करने का चिराग भी तुम्हारे भीतर है
तुम डरते हो कागज़ की नाव डूब जायेगी , पर
अपने आत्मविश्वास की पतवार से उसे चलाओ तो
हर लहरें तुम्हारा साथ दें
  
 THURSDAY 4 NOVEMBER 2010
  
 दीपावली में शुगरफ्री मिठाई के नाम पर कालाजाम, कराची हलवा, मोतीपाक लड्डू, डोडा बरफी, पनीर लड्डू, संदेश, क्रीम लड्डू, क्रीम बर्फी, क्रीम रोल, बॉर्नवीटा बर्फी, कैडबरी रोल, जीनी लड्डू जैसी कई वैरायटी पेश की गई हैं। मिठाइयों के अलावा शुगर-फ्री ड्रिंक, चॉकलेट, जैम, केक जैसी तमाम चीजें भी मार्किट में उपलब्ध हैं। 
इन चीजों को बनाने में शुगर के अलावा घी, खोया जैसी बाकी वे सारी चीजें उतनी ही होती हैं, जितनी आम मिठाइयों में, लेकिन लोग शुगर फ्री के नाम पर जमकर खा लेते हैं और बाकी चीजें उनका कोलेस्ट्रॉल, ब्लड शुगर सब बढ़ा देती हैं। यह स्थिति जानलेवा भी बन सकती है। इनमें आर्टिफिशल स्वीटनर्स डाले जाते हैं, जिन्हें लंबे वक्त तक इस्तेमाल करना नुकसानदेह हो सकता है। 
शुगर-फ्री कैलोरी-फ्री नहीं अक्सर लोग शुगर-फ्री को कैलोरी फ्री मानते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। अक्सर एक के बजाय लोग दो-तीन डाइट कोक पी जाते हैं, जबकि इनमें सोडियम और फॉस्फोरस ज्यादा होता है। ये हड्डियों के लिए नुकसानदेह हैं। फॉस्फोरस बॉडी में से कैलशियम रिप्लेस करता है। ऐसे में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा, अनिद्रा, अवसाद और पेट की तमाम बीमारियां हो सकती हैं। 
  
बुधवार, ३ नवम्बर २०१०
  
  मैं कभी बाजार का विरोधी नहीं रहा। मुझे बाजार के बीच रहकर अजीब-से सुख की प्राप्ति होती है। मैं चाहता हूं कि बाजार हमेशा मेरे आसपास ही रहे। कसम से, संबंधों-रिश्तों से कहीं ज्यादा मैं 'बाजार की निष्ठा' पर विश्वास करता हूं। इस बाजार से मुझे कितना कुछ मिला है क्या बताऊं?
मैं कभी बाजार का विरोधी नहीं रहा। मुझे बाजार के बीच रहकर अजीब-से सुख की प्राप्ति होती है। मैं चाहता हूं कि बाजार हमेशा मेरे आसपास ही रहे। कसम से, संबंधों-रिश्तों से कहीं ज्यादा मैं 'बाजार की निष्ठा' पर विश्वास करता हूं। इस बाजार से मुझे कितना कुछ मिला है क्या बताऊं? 
  
  
बृहस्पतिवार, ४ नवम्बर २०१०
  
 एक पुरानी कविता 
आज सुबह-सुबह श्रीमती ने  जगाया
हाथ में चाय का कप थमाया
तो मैंने  पूछा- क्या टाइम हुआ है?
मुझे लगता नहीं कि अभी सबेरा हुआ है
बोली ब्रम्ह मुहूर्त का समय है,चार बजे हैं
और आप अभी तक खाट पर पडे हैं
मालूम नहीं आज नरक चौदस है
आज जो ब्रम्ह मुहूर्त में स्नान करता है
वो सीधा स्वर्ग में जाता है
वहां परम पद को पता है
जो सूर्योदय के बाद स्नान करता है
वो सारे नरकों को भोगता है
चलो उठो और नहाओ 
  
   
KESAR KYARI........usha rathore..., Nov 4, 2010 

ममता बरसाती बारिश सी है माँ
सागर मे उफनती लहरों सी है माँ 
पानी की बूंद को तरसते बच्चो के लिए दुध की धार सी है माँ
अपनी ममता की रक्षा के लिए तलवार सी है माँ 
ना इसकी ममता की सीमा है ना इसके प्यार की हद है
मई जून की गर्मी में जाड़े की धुप सी है माँ 
कभी उफनते दुध सी है माँ
बस अनन्त अनमोल है माँ 
हम सब के लिए रब का वरदान है माँ
हम तेरे कर्जदार कद्रदान है माँ 
अंधेरो जलती शंमा सी है माँ
रोग मे दवा सी मुसीबत मे दुआ सी हैं माँ 
केशर क्यारी......... उषा राठौड़ 
   
बुधवार, ३ नवम्बर २०१०
  
 
 
 
 
 
 
खबर :-सवाल पूछने पर बरस पडे ओबामा 
 
नज़र -हां तो ऊ कभियो बरस सकते हैं कि साला कौनो इंडिया का बादल है कि जौन दिन प्रेडिक्शन करता है भारतीय मौसम विभाग ऊ दिन को छोड के कहियो बरस जाता है ,.....इसलिए ऊ बरस सकते हैं ..सवाल पूछने पर बरसे तो अच्छा ही है ..मुदा सवाल था का ..का कहे ..कौनो पूछ दिया कि ..का ई बात सच है कि ..चिंचपोकली में एक ठो देसी ठर्रा केंद्र ..ओबामा ओसामा के ज्वाइंट पार्टनरशिप में खुला हुआ है ..बताओ ई तो सवाल बरसने वाला था ही ...अरे जादे से जादे एतना हिम्मत किया जा सकता था कि ई पूछ लिया जाता कि ,सर आपको यदि कभी अंटे पे उडाना हो ..तो जुतवा कौन मॉडल का पसंद करेंगे .... 
 
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खबर :-प्रयोगशाला में विकसित किया मानव लीवर 
 
नज़र - लो एक तो साला ई प्रयोग का साला ...में हमेसा की कुछ न कुछ पकते ही रहता है ......लेकिन तुम लोग एतना मुसकिल से ई मानव लीवर तैयार किया होगा ...हम लोग फ़टाक से एक ठो मराठी को पकडे ..उनका अंदर एतना हिंदी ठूंसे कि ..थोडे दिन के बाद ऊ जॉनी लीवर हो कर सामने आए । अईसन कमाल का हिंदी कॉमेडियन ऊ बने कि कौनो कह नहीं सकता था कि ....इनका पर राज ठाकरे का तनिको ...रिएक्शन हुआ पाया गया है ....
 Tuesday, November 2, 2010
  
बिहारी जी.पी.एस सेवा
विज्ञान की अनगिनत सुविधाओं में से एक है जी.पी.एस. जहाँ जाना हो वहां का पता उसमे डालिए, सैटेलाईट की मदद से जी.पी.एस आपको मार्ग-दर्शन करवाएगा. ऐसी सेवा भारत के बड़े राज्यों में शुरू कर दी गयी है, लेकिन मैं सोच रही थी की यही सेवा अगर बिहार में बिहार के ही अनूठे अंदाज़ में शुरू की जायेगी तो कैसा रहेगा? हमें किस किस तरह मार्ग दर्शन करवाएगा?
जी.पी.एस ऑन करते ही कुछ आवाज़ आएगी - "कहाँ जाना है जी? आएँ?? चिरइयांटाड? आच्छा"
   
 WEDNESDAY, NOVEMBER 3, 2010
  
 हम रोज़ाना चौंकने के लिए खरीदते हैं अखबार,
हम मुस्कुराते हैं एक-दूजे से मिलजुलकर,
पल भर को...
जैसे आदमी नहीं चुटकुले हो गए हैं सब...
सबसे निजी क्षणों को तोड़ने के लिए
हमने बनाई मीठी धुनें,
सबसे हसीन सपनों को उजाड़ दिया,
अलार्म घड़ी की कर्कश आवाज़ों ने...
जिन मुद्दों पर तुरंत लेने थे फैसले,
चाय की चुस्कियों से आगे नहीं बढ़े हम..
शोर में आंखें नहीं बन पाईं सूत्रधार,
नहीं लिखी गईं मौन की कुंठाएं,
नहीं लिखे गए पवित्र प्रेम के गीत,
इतना बतियाए, इतना बतियाए
अपनी प्रेमिकाओं से हम...
उन्हीं पीढ़ियों को देते रहे,
संसार की सबसे भद्दी गालियां,
जिनकी उपज थे हम...
जिन पीढ़ियों ने नहीं भोगा देह का सुख,
किसी कवच की मौजूदगी में... 
 
  
 WEDNESDAY, NOVEMBER 3, 2010
  
 आवश्यक सामग्री  
आधा कप बेसन  
2 कप खट्टा दही  
आधा छोटा चम्मच हल्दी पाउडर 
2 छोटे चम्मच नमक स्वादानुसार 
चौथाई छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर (स्वाद के अनुसार) 
अन्य सामग्री 2 बड़े चम्मच तेल 
आधा छोटा चम्मच जीरा  
आधा छोटा चम्मच मैथीदाना  
1 बड़ी इलायची # 2 लौंग 
3-4 सूखी लाल मिर्च पकौड़े की सामग्री 
1 कप बेसन, 
पौन कप पानी- लगभग एक बड़ा प्याज- बारीक कटा 
1 छोटा आलू- बारीक कटा 
डेढ़ इंच टुकड़ा अदरक बारीक कटी 
2 हरीमिर्च- बारीक कटी  
आधा छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर 
चौथाई छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर  
तलने के लिए तेल 
विधि 
खट्टी दही, बेसन, नमक, लालमिर्च पाउडर और 4 कप पानी मिलाएं। अच्छी तरह फेटें जिससे गांठें न रह जाएं। भारी पेंदे के गहरे बर्तन में तेल गर्म करें और उसमें जीरा, मेथीदाना, बड़ी इलायची और लौंग डाल दें। इसी के साथ साबुत लालमिर्च भी उसी में डाल दें। 
  
THURSDAY, NOVEMBER 04, 2010
  
 राजधानी के एक बड़े होटल बेबीलोन इन का हाल यह है कि वहां पर लोगों को झुठे गिलास में पानी दिया जाता है। एक कार्यक्रम में इस बात का खुलासा हमारे एक फोटोग्राफर मित्र ने किया।
इस होटल में एक कार्यक्रम के सिलसिले में जाना हुआ तो वहां खाना-खाने के बाद जो भी गिलास रखे जा रहे थे उन गिलासों को वेटर बिना धोये ही टेबल के नीचे से पानी भरकर टेबल के ऊपर रख दे रहे थे। हमारे फोटोग्राफर मित्र किशन लोखंडे लगातार देख रहे थे अंत उन्होंने जाकर वेटरों को जमकर फटकारा और उनसे कहा कि ये क्या कर रहे हैं। गिलास थोये क्यों नहीं जा रहे है। वेटर घबरा गए। जब फोटोग्राफर ने कहा कि होटल के मैनेजर को बुलाए तो वेटर हाथ-पैर जोडऩे लगे।
इस एक वाक्ये ये यह पता चलता है कि बड़े होटलों में क्या होता है। जिस होटल में एक व्यक्ति के खाने के लिए 400 रुपए से लेकर एक हजार से भी ज्यादा रुपए वसूले जाते हैं, उन होटलों में अगर गिलास ही न धोये जाए तो ऐसे होटलों में जाने का क्या मतलब है। हमारे फोटोग्राफर मित्र ने कहा कि इससे तो अच्छे सड़क के किनारे ठेले लगाने वाले होते हैं, कम से कम एक बाल्टी पानी में वे प्लेट और गिलासों को धोते तो हैं, अब यह बात अलग है कि हर प्लेट और गिलास को उसी में धोने की वजह से दूसरे की जुठन तो उसमें भी लग जाती है। 
 
 THURSDAY, NOVEMBER 4, 2010
  
  
 
  
  
Thursday, November 04, 2010
  
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नृत्य कर उठे 
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दीवाली की 
रात मनोहर 
जब आई तो, 
नृत्य कर उठे 
नन्हे दीपक 
ठुम्मक-ठुम्मक! 
  
चलिए आप लोग तब तक ई पोस्ट सब को निहारिए ..हम और मसाला तैयार करते हैं …..आज टिप्पी का टिप्पा आने की खबर है …