सच ही तो है न , इश्क मुहब्बत प्यार प्रेम , जिस नाम से इसे पुकार लीजिए , मगर ये तो धक्क से रह जाने , हाँ वही जब पहली बार आँखें मिलते ही , कई बार तो बोझिल आँखें बड़ों की मौजूदगी में एक दुसरे की नरमी गरमी महसूस भर लेते हैं , तो वो जो प्रेम है , उसका हमारे मामले में मामला कुछ ये रहा कि एक ही बैच में नियुक्त होने वाले हम मधुबनी बिहार से और हमारी सहकर्मी जालंधर पंजाब से के बीच दोस्ती , मुहब्बत से विवाह तक के निर्णय की दास्ताँ कुछ ऎसी रही की कम्बख्त अखबारों तक में छप कर बाद में भी छपती रही।
एक मई मजदूरी दिवस के दिन विवाह हुआ विवाह में शामिल होने आई हमारी दादी माँ पूरा परिवार विवाह के दो दिनों बाद वापस दल बल सहित रेल से पहुंच गया जाकर तयारी करनी थी , बिहारी मैथिल युवक अपनी गैर मैथिल पंजाब की वधू को गौना कराकर मधुबनी के एक छोटे से गाँव लेकर आने वाला था। इससे पहले श्रीमती जी के लिए रेल यात्रा का मतलब एक बार कभी किसी जनम में जालंधर से दिल्ली किसी ट्रेन में बैठ कर वे आई थीं बाकी तो बस सेवा ज़िंदाबाद।
इससे ठीक उलट हमारा जन्म ही रेल यात्राओं के लिए हुआ हो जैस , पहल पिताजी के फौजी जीवन वाली पोस्टिंग में फिर अपनी नौकरी वाली जेनरल डिब्बे वाली धधड़ाध यात्राओं ने कुल मिला कर रेल को घर आँगन जैसा ही फील देने वाला बना दिया था। मगर जब आप बात देश के किसी भी कोने से रेल से अपने बिहार जाने की बात करते हैं तो , बस भावनाओं को समझिये न , बहुत गजब ट्रेकिगं होती है रेल टिकट से लेकर आना जाना भी , तब तो और हुआ करता था।
हमें श्रमजीवी एक्सप्रेस से 11 मई को गाँव के लिए निकलने के लिए टिकट आरक्षित का एक बहुत बड़ा उपकार मिला। , पहली बार दुल्हन ससुराल चली तो जाहिर सी बात है की अटैची और नई नवेली दुल्हन के गहने जेवर मेरी इस यात्रा में इससे पहले की सारी बेफिक्री वाली यात्रा में मेरे लिए एक अलग कठिनाई कैसे बनने वाले वाले थे इसका भी रत्ती भर अंदाज़ा तब नहीं था मुझे , एक कठिनाई तो पहले ही श्रीमती जी को उनकी पहली लम्बी रेल यात्रा वो भी बीच मई की गर्मी में , खैर साथ बर्थ पर जो परिवार आया उसमें एक मेरे जैसा ही अपनी पत्नी और अपनी छोटी के बहन के साथ दरभंगा तक जाने वाला सहयात्री था।
रात तीन बजे अचानक तक आवाज़ के साथ बहुत तेज़ धमाके की आवाज , रेल गाडी इतना जोर से उछली , और घुप्प अँधेरे के बीच मची चीख पुकार , बाहर इतना गहरा अंधेरा कि की खुद ही खुद को न देख पाएं। मैं धमाके की आवाज़ के साथ ही बीच बर्थ पर सोइ श्रीमती जी को संभाल चुका था इससे पहले कि वो कुछ समझतीं मैंने उन्हें अश्वस्थ किया किया कुछ नहीं हुआ सब ठीक है। मगर बाहर चीख पुकार की आवाज़ तेज़ होने लगी थी , हमारी धड़कने तेज़ हो गई थीं इस आशंका से कि जरूर रेलगाड़ी को लूटने के मकसद से बीच जंगल यूँ रोका गया ,
मेरी कनपटी एकदम गर्म हो चुकी थी , मगर अँधेरे के कारण हमने वहीँ रुकना ठीक समझा क्यंकि सामने भी एकदम चुप्पी थी।
लेकिन शोर इधर की तरफ नहीं आया ा, हम सब डब्बे वाले रुके रहे कोई अपनी चोट सहला रहा था तो कोई फुसफुसाहट से अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिए बोल रहा रहा। अँधेरा छँटा और थोड़ा थोड़ा उजाला हुआ तो हमने सबको वहीँ रुकने कह कर दो और लोगों के साथ डब्बे के दरवाजे की और बढ़ गए , खोल कर देखा तो आगे रेल दुर्घटना के कारण डब्बे पलट गए थे। बच खुच कर लोग बाग़ आस पास के खेतों में उतरते जा रहे थे।
हमने भी आनन फानन में यही निर्णय लिया कि इस डब्बे से उतर के खेत में ही चला जाए क्यूंकि , हम अब रेल के आखिर में साबुत बचे दो डब्बों में से एक थे और कहीं पीछे से किसी रेल ने आकर हमें जादू की झप्पी दे दी तो हमार हो जाना हैप्पी बर्थ दे। इसके बाद सर पर अटैची , दोनों कन्धों पर भरी बैग , मयुर जग और साथ में दस दिन पहले की ब्याहता , पहले डेढ़ किलोमीटर तक चल कर सड़क पर पहुंचे ,.
साथ में चल रहे भाई ने खेतों में चलते हुए बात बात में चिंता जताई कि उसके बाद बहुत ज्यादा पैसे नहीं तो कैसे जा पाएंगे , उन्हें दरभंगा जाना था , मैंने मुसीबत में एक से दो भले और फिर एक जैसे ही हालात वाले दोनों भाई बंधु इसलिए मैंने कहा आप पैसों की चिंता न करें , साथ चलेंगे। लेकिन सड़क पर आते ही जो पहला काम मैंने किया वो था बूथ से अपनी श्रीमती जी के यहां फोन करके सूचित करना कि , रेल खराब हो गई है हमने रेल बदल ली है ( मुझे पता था कि उन्हें बाद में समाचारों में पता चलना था रेल दुर्घटना का और कुशलनामा न होने पर वे परेशान होते ) , लेकिन इस फोन कॉल का एक अलग ही रोल हो गया इस पूरे घटनाक्रम में।
शादी के बाद पहली बार बिहार का दूल्हा अपनी पंजाब की दुल्हन को लेकर चला अपने गाँव , और श्रीमती जी की उस पहली लंबी रेलयात्रा का संयोग ऐसा रहा कि कम्बख्त रेल दुर्घटना हो गई , और फिर चौबीस घंटों की वो रेल यात्रा पूरे 72 घंटे की कार , बस और टैक्सी यात्रा में बदल गई। पिछले पोस्ट में आप पढ़ चुके हैं कि कैसे अचानक हुए इस भयानक रेल हादसे ने हमें बुरी तरह से संकट में डाल दिया। रेल की पटरियों को छोड़ खेतों के रास्ते तीन चार किलोमीटर सारा सामान कन्धों और सर पर उठा कर सड़क मार्ग तक पहुंचे और फिर वहां एस टी डी बूथ की लम्बी लाइन में लग कर अपनी ससुराल में फोन करके सिर्फ ये सूचना दी की ट्रेन में कुछ खराबी के कारण हम दुसरे रास्ते से जा रहे हैं।
ससुरालियों ने समाचार अभी तक न देखा था न सुना था इसलिए वे समझ नहीं पाए कि ये रेल खराब हो गई , दुसरे रास्ते से जा रहे हैं , मगर कुल मिलाकर मैं जो समाचार देना चाह रहा था वो ये कि हम सकुशल हैं जब रेल दुर्घटना के बारे में पता चले तो घबराएं नहीं और सब समझ जाएं। मेरे साथ ही ऐसी ही मुसीबत में पड़ा एक और परिवार जिसमे एक भाई साहब , जिनका नाम शक्ल अब मुझे रत्ती भर ही याद नहीं , वे अपनी पत्नी और छोटी बहन के साथ थे वे भी जुड़ गए , उन्हें दरभंगा जाना था मुझे मधुबनी , दो मुसीबत के मारे बन गए एक दुसरे के सहारे। उन्होंने मुझे इशारे में बताया कि उनके पास आगे जाने के लिए पर्याप्त पैसे शायद नहीं हैं लेकिन घर पहुँचते ही वे सब संभाल लेंगे। मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि चलिए साथ चलेंगे। आगे की आगे देखी जाएगी। हमने टैक्सी ली और पहुँच गए बनारस।
बनारस से पटना और फिर पटना से सड़क मार्ग से ही होते हुए अगली रात को दरभंगा और फिर बहुत जयादा रात को मधुबनी , जहां अनुज ने पहले ही हमारे रुकने ठहरने का इंतज़ाम कर रखा था। मधुबनी पहुंचते पहुँचते हमारी हालत पस्त हो चुकी थी। मई की गर्मी अपने चरम पर थी। लेकिन इस बीच जो कुछ मेरे गाँव में घट रहा था वो सब मुझे गाँव पहुँच की पता चला।
अनुज जो कि विवाह के पश्चात गौने की रस्म , रीति , भोज आदि की तैयारी में लगा हुआ था और सभी बंधू बांधवों और रिश्तेदारों को निमंत्रण देने के लिए जब मेरी नानी गाँव पहुँचा तो किसी ने पूछ लिया कि किस रेल से आ रहे हैं भैया भाभी ??
श्रमजीवी से
क्या , श्रमजीवी से , लेकिन उसका तो एक्सीडेंट हो गया है
भाई ने चौंक कर गुस्से में उससे कहा ,' क्या बकवास कर रहा है झूठ कह रहा है या सच ??
नहीं भैया , सुबह ही समाचार में बता रहे थे।
अब घबराने की बारी अनुज की थी , उसे न हमारी कुशलता की जानकारी थी न ही कोई सूचना थी। सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि , एक तरफ जहाँ घर पर सभी समारोह , और दावत अदि की तयारी चल रही थी , उन्हें कैसे रोका जाए और कैसे न रोका जाए। अनुज पिताजी और माँ को अभी नहीं बताना चाह रहा था। लेकिन इस बीच मेरे ससुराल में किए गए उस फोन कॉल जिसमें मैंने अपने सकुशल होने की सूचना दे दी थी उसी फोन ने सब कुछ संभाल लिया। अनुज मधुबनी आकर एस टी डी से काफी मशक्कत के बाद मेरी ससुराल में बात कर सका और उसे इतना तो पता चल गया कि भैया भाभी ठीक हैं लेकिन कहाँ हैं , कब आएँगे कैसे आएँगे इसकी कोई जानकारी नहीं थी। मोबाइल का ज़माना था नहीं। खैर , मधुबनी में आधी रात या शायद् उससे भी अधिक समय में अनुज और अनुज मित्र , दोनों प्रतीक्षा रत मिले।
दरभंगा में हमने साथी परिवार को भी उनके घर पर उतारा और उन्होंने घर में जाते ही , अपने माँ या पिताजी से पैसे लेकर , उस समय तक का सारा खर्च जो भी मेरी तरफ से किया गया था वो सारा मुझे वापस करके बहुत सारा धन्यवाद करके विदा हुए।
गाँव में जब दूल्हा अपनी पंजाब वाली दुल्हन को लेकर पहुंचा तो लगभग आधा गाँव उमड़ पड़ा , कोई दिल्ली /पंजाबा की दुल्हन को देखने तो कोई ये देखने कि दुर्घटना के बाद बच्चे सकुशल तो हैं , और माँ चाची दादी सभी रह रह कर एक ही बात -दुल्हन किस्मत वाली है इतने बड़े दुर्घटना में भी अपने सुहाग को बचा लाई। दुल्हन की हो गई बल्ले बल्ले।