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सोमवार, 22 मार्च 2010

सिर्फ़ कट पेस्ट चर्चा : कुछ ब्लोग्स लिंक्स

 

आज खाली कट पिटिया चर्चा …अरे खाली कट पेस्ट यार …..का लुत्फ़ उठाईये ….बस उठाते गए ..चेपते गए …आप भी झेलते जाईये …….

यहां घोषणा हुई कि महफ़ूज़ मियां खो गए ……

कहां महफूज़ है एक स्टार ब्लॉगर...खुशदीप

कल मैनपुरी से ब्लॉगर भाई शिवम मिश्रा का फोन आया...उन्होंने बड़ी फ़िक्र जताई कि न तो ये स्टार ब्लॉगर महोदय फोन उठा रहे हैं, न ही इनका कोई अता-पता चल रहा है...मैंने भी कहा, भैया मुझसे आखिरी बार पांच छह दिन पहले जनाब ने बात की थी...आखिरी बार ये मिस्टर हैंडसम जबलपुर के ब्लॉगरों के बीच हीरो बने हुए मीडिया से मुखातिब होते हुए देखे गए...जबलपुर में ही इनकी ननिहाल है...मुझे तो पूरा शक है कि लखनऊ के इस नवाब के हाथ-पैर नीले (पीले लड़कियों के होते हैं) करने की तैयारी चल रही है...तभी ये शख्स कहीं अंडरग्राउंड हो गए हैं....

मगर शुक्र है कि जल्द ही दूसरी घोषणा भी हो गई

सुनो सुनो सुनो.....महफूज़ मियाँ मिल गए हैं...

सुनो सुनो सुनो.....

ब्लागवुड  के सभी ख़ास-ओ-आम को इतल्ला दी जाती है....गर्ल फ्रेंड नंबर ३०१ मिल गई है....

महफूज़ मियाँ को उनके साथ देखा गया है....

हमारे खोजी कैमरे ने वो चेहरा भी कैद कर लिया है.....

देख लीजिये आप भी.....

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मेरा फोटो

शेफाली पाण्डे  को
पहाड़ की औरतें उदास सी लगती हैं……………क्यों खुद पढिए

तीस की उम्र में पचास की लगती हैं  

पहाड़ की औरतें  उदास सी लगती हैं

काली हथेलियाँ, पैर बिवाइयां

पत्थर हाथ, पहाड़ जिम्मेदारियां 

चांदनी में अमावस की रात लगती हैं

कड़ी मेहनत सूखी रोटियाँ

किस माटी की हैं ये बहू, बेटियाँ

नियति का किया मज़ाक लगती हैं

 

समेटना बिखरे भावों का- भाग १image


 

pearls

उस मकां से ग्रामोफोन की आवाज़ आती है
कहते हैं वो लोग कुछ पुराने ख़्यालात के हैं..
रात भर चाँदनी सिसकती रही, छत पर उनकी
वो समझते हैं कि दिन अब भी बरसात के हैं

 

 

बबूल और बांस

Babool मेरा मुंह तिक्त है। अन्दर कुछ बुखार है। बैठे बैठे झपकी भी आ जा रही है। और मुझे कभी कभी नजर आता है बबूल। कोई भौतिक आधार नहीं है बबूल याद आने का। बबूल और नागफनी मैने उदयपुर प्रवास के समय देखे थे। उसके बाद नहीं।

कौटिल्य की सोचूं तो याद आता है बबूल का कांटा – कांटे से कांटे को निकालने की बात से सम्बद्ध। पर अब तो कौटिल्य याद नहीं आ रहे। मन शायद मुंह की तिक्तता को बबूल से जोड़ रहा है। बैठे बैठे पत्रिका में पाता हूं कौशिक बसु का उल्लेख। उनके इस पन्ने पर उनके लेख का लिंक है - "Globalization and Babool Gum: Travels through Rural Gujarat". उसमें है कि बबूल का गोंद इकठ्ठा करने में पूरी आबादी गरीबी की मानसिकता में जीती रहती है।

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जो जलाता है किसी को खुद भी जलता है जरूर ..

ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जो कभी किसी से जला न हो। वह मुझसे आगे बढ़ गया, बस हो गई जलन शुरू। मैं जिस वस्तु की चाह रखता हूँ वह किसी और को प्राप्त हो गई और मेरा उससे जलना शुरू हो गया। कई बार तो लोग दूसरों से सिर्फ इसीलिये जलते हैं वे अधिक सुखी क्यों हैं। पर जो अधिक सुखी हैं वे भी अपने से अधिक सुखी से जलते हैं।
विचित्र भावना है यह जलन अर्थात् ईर्ष्या भी! आमतौर पर जलन की यह भावना असुरक्षा, भय, नकारात्मक विचारों आदि के कारण उत्पन्न होती है। क्रोध और उदासी ईर्ष्या के मित्र हैं और इसके उत्पन्न होते ही इसके साथ आ जुड़ते हैं। ये क्रोध और उदासी फिर आदमी को भड़काने लगते हैं कि तू अकेला क्यों जले? तू जिससे जल रहा है उसे भी जला। और आदमी शुरु कर देता है दूसरों को जलाना। किसी शायर ने ठीक ही कहा हैः

 

Monday, March 22, 2010

ये भी फासिस्ट, वो भी फासिस्ट

a-villani-benito-mussolini फासिज्म चाहे आज सर्वमान्य राजनीतिक सिद्धांत न हो मगर इसका प्रेत अभी भी विभिन्न अतिवादी, चरमपंथी और उग्र विचारधाराओं में नज़र आता है। राजनीतिक शब्द के रूप में इसे स्थापित करने का श्रेय इटली के तानाशाह बैनिटो मुसोलिनी को जाता है।

फा सिज्म शब्द दुनियाभर की भाषाओं में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली राजनीतिक शब्दावली की चर्चित टर्म है। हिन्दी में इसका रूप फासीवाद है। हालांकि अंग्रेजी, इतालवी में इसका उच्चारण फैशिज़म होता है मगर हिन्दी में फासिज्म उच्चारण प्रचलित है।  फासीवादी विचारधारा को माननेवाला फासिस्ट कहलाता है। राजनीतिक दायरों में फासिस्ट कहलाने से लोग बचते हैं। आज की राजनीति में फासिस्ट या फासिज्म शब्द के साथ मनमाना बर्ताव होता है। अतिवादी विचारधारा से जुड़े लोग एक दूसरे को फासिस्ट कह कर गरियाते हैं। खुद को नायक समझनेवाला कभी नहीं चाहेगा कि उसे खलनायक की तरह देखा जाए।

 

Monday 22 March 2010

आस्था पर प्रश्न क्यों ? सतीश सक्सेनाimage

आज कल कुछ जगह हमारे कुछ शास्त्रार्थ पंडित एक दूसरे की हजारों वर्षों पुरानी आस्थाओं को अपनी  आधुनिक निगाह से देखते हुए,  जम कर प्रहार कर रहे हैं ! चूंकि दोनों पक्ष विद्वान् हैं अतः शालीनता भी भरसक दिखा कर अपने अपने जनमत की वाहवाही  लूट रहें हैं  !


पुराने धार्मिक ग्रंथों में समय समय पर लेखकों अनुवादकों की बुद्धि के हिसाब से कितने बदलाव हुए होंगे फिर भी पूर्वजों और पंडित मौलवियों के द्वारा पारिभाषित ज्ञान को बिना विज्ञान की कसौटी पर कसे, हम इज्ज़त देते हैं और उसमें ही ईश्वर को ढूँढ़ते रहते हैं और निस्संदेह हमें फल भी मिलता है !

Sunday, March 21, 2010

निजी इच्छा राष्ट्रीय इच्छा नहीं बन सकती!image

क्या किसी व्यक्ति विशेष की नितांत निजी आकांक्षा पार्टी की आकांक्षा या राष्ट्र की आकांक्षा बन सकती है? कदापि नहीं। अगर ऐसा होने लगे तब राजदलों और देश में घोर अराजक स्थिति पैदा हो जाएगी। न अनुशासन रहेगा, न राष्ट्र विकास के प्रति कोई गंभीरता। ये समझ से परे है कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के लिए परेशानियां पैदा करने की कोशिश करने वाले, जी हां, कोशिश करने वाले, इस हकीकत को क्यों नहीं समझ पा रहे। शायद वे समझना ही नहीं चाहते। कतिपय किंतु-परंतु के बावजूद भारतीय जनता पार्टी की आज भी एक विशिष्ट पहचान है तो अनुशासन और सिद्धांत के कारण। जिस दिन यह समाप्त हो गया, पार्टी खत्म हो जाएगी। क्योंकि तब लोग-बाग विकल्प की चाहत को भूल जाएंगे। गडकरी ने दो-टूक शब्दों में कह भी दिया है कि सभी को खुश करना संभव नहीं।

 

रविवार, २१ मार्च २०१०

हम कमाते क्यों हैं?image

मध्यवर्गीय नौकरीपेशा आदमी के नाते ये सवाल अक्सर मेरे ज़हन में आता है कि हम कमाते क्यों हैं? क्या हम इसलिए कमाते हैं कि अच्छा खा-पहन सकें, अच्छी जगह घूम सकें और भविष्य के लिए ढेर सारा पैसा बचा सकें। या हम इसलिए कमाते हैं कि एक तारीख को मकान मालिक को किराया दे सकें। पानी,बिजली, मोबाइल, इंटरनेट सहित आधा दर्जन बिल चुका पाएं। पांच तारीख को गाड़ी की ईएमआई दें और हर तीसरे दिन जेब खाली कर पैट्रोल टैंक फुल करवा सकें।

 

मेरा नाम केसर है!image


नाम : केसर
गाँव : मोत्वारा
जिला: अमीरपुर , मध्य प्रदेश
यह कहानी किसी छोटे से गाँव में रहने वाली अबला, मासूम याज़ुल्म की पीड़ित औरत की नहीं है बल्कि एक साधारण भेष मेंछुपी असाधारण केसर की है जो आजकल महानगर दिल्ली केकनाट प्लेस में फल बेचती है। दो दिन पहले फोटोग्राफी करतेहुए मेरी मुलाकात हुई केसर से। नौकरी छोड़ने के बाद से मैंअक्सर कनाट प्लेस चला जाया करता हूँ, सेंट्रल पार्क में बैठना और इन्नर सर्कल में घूमना अच्छा लगता है। मैं अभी भी नहींभुला सका केसर के वह प्यार भरे शब्द " बाबूजी आप गर्मीं में इतनी देर से खड़े हो, यह लो संतरा खा लो।" महानगर मेंइतने प्यार भरे लफ्ज सुनने को ज़माना हो जाता है। भागती हुई ज़िन्दगी में किसी के पास अपनों के लिए ही समय नहीं तोहमैं तोह अजनबी था। सुनके में एक पल को मन ही मन मुस्कुरा दिया। कुछ देर उसके पास खड़े रहने के बाद मैं चलने हीवाला था की उसने संतरा काट के मेरे हाथ में थमा दिया। यह देख के मुझसे रुका नहीं गया और मैंने अपना बैग वहीँ रख दिया और बैठ के संतरे का लुफ्त लेना शुरू कर दिया। वाकई संतरा बहुत ही लाजवाब था। और जैसे की मेरी दिलचस्पलोगों के बारे में जानने की आदत है, मैंने बातें शुरू कर दी।

 

रविवार, २१ मार्च २०१०

उथले हैं वे जो कहते हैंimage


किसी भी साहित्यिक रचना या रचना संग्रह को इमानदारी से पढने वाला पाठक अगर मिल जाता है और वो उस रचना पर अपनी राय भी व्यक्त कर देता है तो यह सोने पे सुहागा हो जाता है। उस संग्रह को फिर किसी दूजे पुरस्कार आदि की आवश्यकता ही नहीं होती। मेरे पूज्य पिताजी डॉ. जे पी श्रीवास्तव के काव्य खंड " रागाकाश" के प्रकाशन के लिये जब इस पर मैं वर्क कर रहा था तो कई सारी कठिनाइयां आ रही थीं। पहली तो यही थी कि मैं बगैर पिताजी की आज्ञा के उनकी धरोहर को छापना चाह रहा था। उनकी अपने दौर में लिखी गई कई सारी रचनायें, जिसमें कइयों के कागज़ भी पुराने होकर फटने लगे थे को सहेज कर मुम्बई तो ले आया था अब बस पिताजी की आज्ञा की देर थी।

 

आज मरते मरते बचे!image

 

111300836_687a54b79b मेरे मंझले साढू भाई की बिटिया की शादी तय करने के लिये आज सुबह दो कारों पर हम नौ जने आज सुबह लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा पर गये। एलप्पी में नाश्ते के लिये एक जानेमाने हॉटेल में उतरे और आर्डर दिया। हम लोग इंतजार कर रहे थे कि एकदम से खाकी वस्त्रधारी दस बारह लोग खिडकी के बाहर दौडते और फुर्ती से एक दूसरे को इशारा करते नजर आये।

 

Monday, March 22, 2010

देखें कार्टून...

 

Monday, March 22, 2010

बाबा नहीं, समाज पर कलंक है...

मनोज राठौर

ढोंगी, पाखंडी, राजीव रंजन द्विवेदी उर्फ भीमानंद जी महाराज चित्रकूट वाले बाबा...। जो भी कहा जाए वह कम है। जितना बड़ा नाम है, उसे भी बड़ा कारनामा। दिल्ली समेत देश में वेबसाइड के जरिए गंदगी फैलाने वाला भीमानंद इस समय जनता की आंख की कीचड़ बन गया है। उसके प्रति लोगों का क्या नजरिया है। यह एक अंधा व्यक्ति भी सुनकर बता सकता है। बाबा की महिमा देखने वाली है। उनके गिरोह के लोग ग्राहक को अभिनेत्रियों की सप्लाई करने तक का दावा करता है। सोच पर थू-थू।

 

Monday, March 22, 2010

अदालतें भी तो अपने गिरेबान में झांकें

क्या वह दिन आने वाला है कि जब अदालतों का कोई महत्व नहीं रह जाएगा और लोग इसके फैसलों को मनाने से इनकार कर देंगे। क्या भारत की अदालतें भी सांप्रदायिक ध्रवीकरण का शिकार हो रही हैं। इस जैसे ही कुछ और सवाल हैं जो आम आदमी के मन में इस समय कौंध रहे हैं। हाल ही में हुई कुछ घटनाओं के बाद इस तरह के सवाल उठ खड़े हुए हैं।

 

सोमवार, २२ मार्च २०१०image

विज्ञान का वास्‍तविक तौर पर प्रचार प्रसार काफी मुश्किल लगता है !!

भारतवर्ष में फैले अंधविश्‍वास को देखते हुए बहुत सारे लोगों , बहुत सारी संस्‍थाओं का व्‍यक्तिगत प्रयास अंधविश्‍वास को दूर करते हुए विज्ञान का प्रचार प्रसार करना हो गया है। मैं उनके इस प्रयास की सराहना करती हूं , पर जन जन तक विज्ञान का प्रचार प्रसार कर पाना इतना आसान नहीं दिखता। पहले हमारे यहां 7वीं कक्षा तक  विज्ञान की पढाई अनिवार्य थी , पर अब सरकार ने 10वीं कक्षा तक विज्ञान की पढाई को अनिवार्य बना दिया है । 10वीं कक्षा के विद्यार्थियों को पढाने वाले एक शिक्षक का मानना है कि कुछ विद्यार्थी ही गणित और विज्ञान जैसे विषय को अच्‍छी तरह समझने में कामयाब है,  बहुत सारे विद्यार्थी विज्ञान की नैय्या को भी अन्‍य विषयों की तरह रटकर ही पार लगाते हैं । उनका मानना है कि एक शिक्षक को भी बच्‍च्‍े के दिमाग के अनुरूप ही गणित और विज्ञान जैसे विषय को पढाना चाहिए। जो विज्ञान के एक एक तह की जानकारी के लिए उत्‍सुक और उपयुक्‍त हों , उन्‍हें अलग ढंग से पढाया जाना चाहिए, जबकि अन्‍य बच्‍चों को रटे रटाए तरीके से ही परीक्षा में पास करवाने भर की जिम्‍मेदारी लेनी चाहिए।उनका कहना मुझे इसलिए गलत नहीं लगता , क्‍यूंकि एक एक मानव की मस्तिष्‍क की बनावट अलग अलग है।

 

गहराइयाँ लबालब -----image

किसी की निगाहों से उतर गया पानी
किसी की निगाहों में ठहर गया पानी
कतरा-कतरा ओस मोती बन गया था
हवा के एक झोके से बिखर गया पानी

कब तक रहोगे हालात के गिरफ्त में
उठो, देखो तो सर से ऊपर गया पानी

 

दैनिक जागरण में 'अनिल पुसदकर'

 

बस जी ई कटपिटिया चर्चा समाप्त हुई …….ई तो ससुर एकदम ईजी था जी ….हमको जादे मजा नहीं आया …ऊ झाजी वाला टच नहीं न दिए

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

एक और चर्चा झेलिए …..झाजी चर्चा वाले …..

 

मुझे क्या पता था कि पिछला ट्रेलर आप सबको खूब पसंद आएगा ..हम तो सोच रहे थे कि सब कहेंगे कि अरे कहां फ़ंस गए झाजी ..आप तो बस अपनी टरेन दौडाईये ….धडाधड पटरी बिछा के …और हमको भी ई ससुर लाईव राईटर के स्यापे से मुक्ति मिलेगी …अरे ई इतना स्लो है कि का बताएं यार ..इत्ते में तो हम जैसा ब्लोग्गर ..पचास पोस्ट के पेट में घुस के निकल आए ….मुदा आप लोग तो खूबे न बदमाश हैं जी …मार का का तो बोल के चढा दिए …कि हमको अगला ट्रेलरवा ले कर आना ही पडा । चर्चा झेलिए इसलिए कह दिए हैं ..काहे से कि सुने हैं कि आजकल चर्चा को भी लोग बाग ओतना ही डेडिकेशन से झेल रहे हैं जितना डेडिकेशन से पोस्ट सबको झेलते हैं ….फ़िर ई भी बताना जरूरी हो गया है कि …हम झाजी चर्चा वाले हैं ….नक्कालों से सावधान रहिएगा …..तो झेला जाए जी

 

इन दिनों सरकार के कामकाज की खूबे तारीफ़ हो रही है ..और ब्लोग्गर अपनी पोस्टों से सरकार के कामों की असली समीक्षा कर रही है ….बताईये इस काम के लिए हर साल ई विपक्ष में बैठे लोग संसद में बैठ कर जाने कित्ता पैसा फ़ूंकते हैं और कुछ कहते करते भी नहीं …देखिए आज सुश्री अनु चौधरी क्या ठोक के सरकार की नई शिक्षा नीति का खुलासा कर रही हैं

जनतंत्र पर अनु सिंह चौधरी image

अमीर छात्रों के लिए काम कर रहे हैं अमीर कपिल सिब्बल

लेखक: अनु सिंह चौधरी  |  March 18, 2010  |  हक़ की आवाज़   |  

सरकार ने भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए दरवाज़े खोल दिए हैं। हर सिक्के के दो पहलुओं की तरह इस फैसले के भी दोनों पहलू समझ में आ रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि इससे शिक्षा के क्षेत्र में नए विकल्प खुलेंगे, शिक्षा की गुणवत्ता शायद बेहतर होगी और हो सकता है, देशी-विदेशी विश्वविद्यालयों की इस प्रतिस्पर्द्धा का फायदा उन शिक्षकों को भी मिले जो सालों से कम वेतन का रोना रो रहे हैं।

लेकिन ये तो तय है कि भारत में कैंपस स्थापित करने का सबसे बड़ा फायदा विदेशी विश्वविद्यालयों को ही मिलेगा। शिक्षा के क्षेत्र में भी भारत दुनिया के सबसे बड़े बाज़ारों में से है। भारत से हर साल तकरीबन 1.20 लाख छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशों का रूख करते हैं, जिसमें से अधिकांश छात्रों की मंज़िल अमेरिका होती है। मानव संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक विदेशी संस्थानों में पढ़ने के लिए छात्र और अभिभावक सालाना 4 बिलियन डॉलर (तकरीबन 180.2 अरब रुपये) खर्च करते हैं। हैरानी नहीं कि अटलांटा की जॉर्जिया टेक यूनिवर्सिटी ने 2008 में ही भारत में कैंपस खोलने के लिए हैदराबाद में 250 एकड़ ज़मीन खरीद ली थी।

 

कुछ घटनाएं इस तरह से घटती है कि वे प्रेरक प्रसंग बन जाती हैं ..और जितनी बार भी उनके बारे में पढा सुना जाए …जाने कितनी हिम्मत मिलती है …तो पढिए आज एक ऐसा ही प्रसंग ….

श्री यू पी सिंह फ़रमाते हैं

फर्श से अर्श तक

लोकोपदेशक प्रसंग


   एक स्कॉटिश लड़का अमेरिका में छोटा-मोटा काम करने के लिए आया. कुछ सालों की मेहनत से उसने तत्कालीन(सन 1870  के आसपास ) विश्व का स्टील का सबसे बड़ा व्यापारिक साम्राज्य खड़ा कर दिखाया.
उसकी गिनती आधुनिक विश्व के उन पहले धनकुबेरों में होती है जिन्होंने फुटपाथ से जिन्दगी की शुरुआत की थी. और    एक समय ऐसा भी था जब एंड्र्यू कार्नेगी के नीचे 43 लखपति कार्मिक काम करते थे. इतिहास के पन्नो में जॉन डी रौकफेलर के बाद इस दुनिया का दूसरा  सबसे धनी आदमी कहलाया.
आज से सौ-सवा सौ  साल पहले एक लाख डॉलर बहुत बड़ी रकम होती थी. आज भी यह बड़ी रकम है. किसी ने एक बार कार्नेगी से पूछा की वे अपने साथ काम करने के लिए सर्वश्रेष्ठ लोगों को कैसे खोज निकालते हैं. कार्नेगी ने कहा – “सबसे अच्छे कार्मिकों का चयन करना सोने की खान से सोना निकालने जैसा काम है. एक तोला सोना प्राप्त करने के लिए टनों मिट्टी को खंगालना पड़ता है लेकिन जब आप खुदाई करते हैं तो आपकी नज़र मिट्टी को नहीं बल्कि सोने को टटोलती हैं.” फर्श से अर्श तक

 

 

कवियत्रि बीना शर्मा जी बडी ही सरलता से कुछ आसान शब्दों में कविता का एक संसार बसा लेती है आज देखिए न फ़िर उनकी कविता का ये अंश….और बांकी की उनकी मर्जी आप उनकी पोस्ट पर बांचिए …..

प्रयास में बीना शर्मा image

Thursday, March 18, 2010

तुम्हारी मर्जी है|

न जाने 

समय की मार 

हमें कहाँ ले जायेगी

और बुदबुदाते हुए हम

गुदगुदाए जाने पर भी

लंबे सोच में बैठे रह जायेगे 

अपनी पीड़ा को ना भूल पायेंगे|

 

अपने कुलवंत भाई ने अपनी फ़ोटो की जगह एक अनजानी से छवि चेप रखी थी …हमही कौन कम थे ..हमने उनका फ़ेसबुक ही उठा लिया …कैसे मजे से खडे हैं देखिए …अरे हां इसके बाद इनकी पोस्ट को पढिए ,और मजे उठाईये …जैसे हमने उठाए

भाई कुलवंत हैप्पी image अपनी खुली खिडकी में कहते हैं

Friday, March 19, 2010

कुछ दिन पहले बठिंडा से मेरे घर अतिथि आए थे, वो मेरे खास अपने ही थे, लेकिन अतिथि इसलिए क्योंकि वो मुझे पहले सूचना दिए बगैर आए थे, और कमबख्त इस शहर में कौएं भी नहीं, जो अतिथि के आने का संदेश मुंढेर पर आकर सुना जाएं। वो आए भी, उस वक्त जब मैं बिस्तर में था, अगर खाना बना रहा होता तो शायद प्रांत (आटा गूँदने का बर्तन) में से आटा तिड़क कर बाहर गिर जाता तो पता चल जाता कोई आने को है। वो कुछ दिन यहाँ रहे, मुझे अच्छा लगा, लगता भी क्यों ना, तीन साल में पहली बार तो कोई बठिंडा से आया था, जो मेरे घर रुका। आने वाले अतिथियों में मेरी मौसी, मौसी की पोती यानी मेरी भतीजी, मौसेरा भाई और उसकी पत्नी। मौसेरा भाई अपना सामान और कुछ अन्य काम निपटाने आया था, और इस दौरान सैर सपाटा तो होना ही था, जो हुआ।

 

जागरण जंक्शन इन दिनों ब्लोग्गिंग के एक तेजी से उभरते मंच के रूप में आगे आ रहा है ,,,,,आखिर हो भी क्यों न ..जागरण मंच ने ब्लोग्गिंग को प्रोत्साहित करने के लिए के खासमखास प्रतियोगिता भी रख दी है ….आप भी फ़टाफ़ट बनाईये ब्लोगअऔर जीतिए ……मगर आज तो देखिए कि वहां मालावती जी पर क्या कौन कह रहा है ?

श्री वी कुमार जी image आऊटर सिगनल पर कहते हैं

माला नहीं, पढ़ें मानसिकता

पोस्टेड ओन: March,19 2010 जनरल डब्बा में

 

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने रैली के तीसरे दिन जब दूसरी बार नोटों की माला पहनी तो बात साफ हो गई कि हजारी नोटों की पहली माला मंत्रियों-विधायकों या कार्यकर्ताओं की ओर से आकस्मिक तुच्छ भेंट नहीं थी। सर्वजन को चौंकाने वाली थी लेकिन योजना के मुताबिक नोट गुंथे गए थे। विपक्ष चिढ़ता है तो और चिढ़े, मनुवादी मीडिया (मायावती के शब्दों में) जितनी आलोचना करेगा वोट बैंक जय बोलेगा। वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने दो कदम आगे बढ़कर भविष्य में भी नोटों की माला पहनाने की घोषणा कर डाली, सच मानें, यही है बहुजन हिताय का सारतत्व। बहन जी खुश, मंत्री-विधायक खुश तो प्रदेश की जनता भी खुशहाल।
माला-माल होने के बाद बसपा सुप्रीमो ने प्रदेश में चुनाव की डुगडुगी पीट दी, समय कम है कार्यकर्ता चुनाव में जुट जाएं। झंडा बैनर निकाल लें, आंदोलन करें, जिला मुख्यालयों पर धरना दें, जुलूस निकालें। क्यों, आखिर किसलिए? जनहित में या सरकार के सत्कर्म गिनाने के लिए ? जी नहीं, विपक्ष का पर्दाफाश करने के लिए। सत्ता में तो आप हैं विपक्ष ने क्या गलती कर दी? रैली को असफल बनाने का प्रयास किया, माला की तारीफ के बजाय उसका अपमान किया, जांच की मांग उठा रहे (जो कभी नहीं होने वाली)। फैशन के हिसाब से एक मुद्दा महंगाई भी है लेकिन सत्ता दल और उसके कारिंदे जब महंगाई के विरोध में आंदोलन करें तो जनता किसके द्वार जाएगी। खासतौर से वे पार्जीजन जो माला में हजार-हजार के करेंसी गुंथने की कूबत रखते हों। महंगाई किसकी देन है?

 

कुछ ब्लोग्स की रूपरेखा ..ओह मतलब रंगरूप ही इतना मनमोहक लगता कि बरबस ही मन खिंच जाता है ..ऐसा ही हुआ जब हम रूपम जी के इस ब्लोग पर पहुंचे …बकिया सब और टनाटन हुआ जब उनकी धुन पर मन थिरकने लगा ..आप भी थिरकिए न …

भाई रूपम जी image  प्रेम धुन गाते हुए …

Friday, 19 March 2010

क्षितिज ने पहली बार चादर हटाई है

दिल में अजीब सी उलझन है

पर लगता यूँ है ,कुछ उम्मीद नजर आई है.

सब कुछ भुला देने को मन करता है,

तो ऐसी कौन सी बात याद आई है.

नजरों के सामने भीड़ दिखाई पड़ती है,

पर अन्दर तो दिखती तन्हाई है.

अँधेरा भी है और सन्नाटा भी,

पर देखा तो लगा, कोयल गयी है.

मौसम थमा सा और खुला सा दिखाई देता है,

फिर कहाँ से बिजली कि चमक आई है.

तन में थकन और आँखों में नीद है,

पर होंटों पर जागृत सी मुस्कान उभर आई है.

दिमाग ने मन ही लिया था इसे उदासी,

पर दिल ने कहा खुशी की झलक पाई है.

धरातल भी दिखाई पड़ता है, और आसमां भी,

क्षितिज ने पहली बार चादर हटाई है..........

बहुत कम ही ऐसे ब्लोग्गर हैं आज इस ब्लोगजगत में जो ब्रांड नेम की तरह स्थापित हो चुके हैं उनमें से ही एक हैं हमारे ताऊ जी …इत्ते सारे प्रोजेक्ट ले रखे हैं हाथ में कि कौन सा कब शुरू हो जाए कहा नहीं जा सकता …..कभी पिक्चर , तो कभी ,सम्मेलन ..कभी पहेली तो कभी भजल कीलतन ….तो आज की कीलतन का मजा लिया जाए ….

ताऊ अपने अनेक रूपों में से एक और रूप में भजल कीलतन कलते हुए

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इस भजल प्रस्तुति के बाद माता रामप्यारीजी ने पधार कर सभी को आशीर्वाद दिया. तत्पश्चात माता रामप्यारी जी के सानिंध्य में भजल कीर्तन का आयोजन हुआ. नीचे उसी अवसर का चित्र और तत्पश्चात भजल कीर्तन.

ऊपर चित्र में कीर्तन करते हुये... बांये से दांये : परमपूज्य माता रामप्यारी जी, तबले पर संगत करती हूई मिस. समीरा टेढी, सिंथेसाईजर पर श्री ललित शर्मा, हारमोनियम पर प्रख्यात भजलगायक ताऊ रामपुरिया, चिमटा बजाते हुये मिस. राजी भाटिया, झांझ बजाते हुये बालक मकरंद, हारमोनियम पर मिस. अजया कुमारी झा और कार्यक्रम के निर्देशन की कमान संभाले हुये श्री खुशदीप सहगल.

 

ललित जी की जितनी बडी मूंछे हैं उतना ही बडा दिल भी है जो चौबीसों घंटे ब्लोगजगत पर हरा होकर टंगा रहता है ..चर्चा के मामले में तो इन्होंने ऐसा कमाल कर दिया है कि सुना है कि चिट्ठाजगत ने एक बंदा एक्स्ट्रा रखा है कि भाई शर्मा जी से पूछ लो आज कित्ते हवाले लगाने हैं …चार सौ या पांच सौ ….मगर आज इनकी तस्वीर ने जाने क्या क्या कह दिया ..

ललित जी मूंछों वाले आज देखिए तो क्या दिखा रहे हैं image

आजादी को छ: दशक बीत चुके हैं, प्रतिवर्ष बजट मे नयी-नयी योजनाओं का आगाज होता है। फ़िर वही नारे लगते हैं गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ। मानवाधिकार की बाते गर्माती हैं वातावरण को 2 रु किलो गेंहुँ-चावल बांटने की योजना का शुभारंभ होता है, कोई भुखा नही मरेगा। सबको रोटी कपड़ा मकान उपलब्ध होगा। कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली मे उग आई हैं स्वयं सेवी संस्थाएं। जिसे NGO कहा जाता है। सेवा के नाम पर नोट बटोरे जा रहे हैं। वृद्धाश्रम भी खोले जा रहे हैं, जहां पर निराश्रित वृद्ध रह कर अपने जीवन के बाकी दिन काट सकें। लेकिन यह सब सेवा कागजों मे ही हो जाती  है। मानव और पशु मे कोई अंतर नही है। इसका एक उदाहरण मैने रायपु्र रेल्वे स्टेशन मे देखा जहाँ एक वृद्ध महिला प्लेटफ़ार्म पे पड़ी थी और गाय उसको चाट रही थी और वह गाय को। लोग भीड़ लगा कर इस दृष्य को देख रहे थे। इन्सान और जानवर मे फ़र्क करना मुस्किल था। यह जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन है।

 

 

बीबीसी हिंदी ब्लोग मंच पर बीबीसी हिंदी रेडियो सेवा के संवेदनशील पत्रकार मित्र सामयिक घटनाओं पर बेबाकी और संजीदगी से अपनी बात रखते हैं आप भी यहां पहुंच कर उन पोस्टों को पढ के न सिर्फ़ उन तक बल्कि पूरी दुनिया तक अपना मत वहां रख सकते हैं …आज भाई जुबैर अहमद कह रहे हैं

मोरा गोरा रंग लइ ले!

ज़ुबैर अहमद ज़ुबैर अहमद | शुक्रवार, 19 मार्च 2010, 10:49 IST

मुंबई में रहने वाले हिंदी भाषी उत्तर भारतीय इन दिनों राहत की सांस ले रहे हैं क्योंकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के 'देश भक्त' अभियान का निशाना वो नहीं बल्कि बॉलीवुड में काम करने वाले विदेशी कलाकार बन रहे हैं.

बॉलीवुड में लगभग एक हज़ार विदेशी जूनियर कलाकार काम करते हैं. जिनमें से अधिकतर गोरी नस्ल की यूरोपीय लड़कियां होती हैं.

पिछले हफ़्ते राज ठाकरे के अभियान की शुरुआत हुई फ़िल्म क्रूकेड के सेट पर. इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन भी हैं और 136 विदेशी जूनियर अभिनेत्रियाँ और डांसर काम रही हैं.

एमएनएस के कार्यकर्ता सेट पर गए और विदेशी कलाकारों से भारत में क़ानूनी तौर पर काम करने के दस्तावेज़ दिखने की मांग की. पार्टी का दावा है कि ये विदेशी जूनियर आर्टिस्ट स्थानीय लोगों की नौकरियां छीन रहे हैं इस लिए इन्हें बॉलीवुड में काम करने की इजाज़त नहीं होगी.

 

इन्होंने अपना नाम अपने ब्लोग पर लिखा हुआ है direct from heart …तो हमने भी दिल लगा के पढ लिया और ले आए आपके लिए उनकी ये पोस्ट बांचिए …..

डायरेक्ट दिल से image जी को पढिए …..

उसका आना

वो आये और आ कर रह जाए
तो उसका आना सर आँखों पर
दुनिया की रस्मों को तोड़ कर आये
तो उसके आने की नवाज़िश
वो आये केवल मेरा मन रखने के लिए
तो मैं उसके बिना ही जी लूँगा
वो आये मेरी बन कर रहने के लिए
तो दुनिया भूला दूंगा
वो आये मोहब्बत के एहसास के लिए
तो उसकी चाहत में सब लूटा दूंगा!!!

देखिए जी …ई लाईव राईटरवा एकदम सुस्त है …कम से कम हमारी धुंआधार टाइपिंग को तो नहींये झेल पाता है ..टाईप करते करते बीच बीच में इससे पूछना पडता है …का हो राईटर …स्पीड ठीक है न …बताईये राईटर नाम रखने से कौनो राईटर हो जाता है का ??

रविवार, 14 मार्च 2010

आज तो पोस्टों की चर्चा …हां चर्चा कर ही ली …(पोस्टों की चर्चा )

 

ओईसे तो ब्लोग पटरी बिछाने का काम हमारा खूब जम जमा के चल रहा था पर सोचे कि बहुत लोग कह रहे हैं कि का जी ..ई आप लोग सब संगी साथी मिल के खाली लिंक पटक कर कहते रहिएगा कि चर्चा कर दिए हैं । अरे चर्च का मतलब तनिक चर्चियाईये भी …तो हम सोचे कि जब ई गूगल बाबा सबको एक ठो नयका कैमरा थमा दिए हैं ..अपना अपना ब्लोग का थोबडा सुंदर करने के लिए और हमने भी फ़्री सेवा का सुनते ही फ़ौरन उसका लाभ उठाते हुए ..इसका रंग रूप बदला है ..तो काहे नहीं तनिक स्टाईल भी बदला जाए   तो लीजीये …बामुलाहिजा …बाअदब …होशियार ..खबरदार ….चर्चा शुरू  होती है …

भाई मिथिलेश दूबे को पिछले दिनों ……एक ही विषय पर खूब पेन रगड रगड के लिखने के कारण ….संसद तक से नोटिस आ गया कि …भाई अब तो उनको भी तैंतीस नंबर …यानि पासिंग मार्क्स मिल गया है ,…तो आप काहे नहीं गाडी आगे बढाते हैं ….हमने भी फ़ौरन उन्हें ..ललकारा ..कि चलिए ..अब फ़टाक से कुछ अईसन लिख डालिए कि ..लोग कह उठें ..दूबे दुने चौबे ….लिख रहा है गजबे …..और देखिए कमाल …का लिखे हैं

भाई मिथिलेश दूबे अपनी इस पोस्ट में पूछ रहे हैं कि  image

'हिन्दू' शब्द मानवता का मर्म सँजोया है। अनगिनत मानवीय भावनाएँ इसमे पिरोयी है। सदियों तक उदारता एवं सहिष्णुता का पर्याय बने रहे इस शब्द को कतिपय अविचारी लोगों नें विवादित कर रखा है। इस शब्द की अभिव्यक्ति 'आर्य' शब्द से होती है। आर्य यानि कि मानवीय श्रेष्ठता का अटल मानदण्ड। या यूँ कहें विविध संसकृतियाँ भारतीय श्रेष्ठता में समाती चली गयीं और श्रेष्ठ मनुष्यों सुसंस्कृत मानवों का निवास स्थान अपना देश अजनामवर्ष, आर्याव्रत, भारतवर्ष कहलाने लगा और यहाँ के निवासी आर्या, भारतीय और हिन्दू कहलाए। पण्डित जवाहर लाल नेहरु अपनी पुस्तक 'डिस्कवरी आफ इण्डिया' मे जब यह कहते है कि हमारे पुराने साहित्य मे तो हि्दू शब्द तो आता ही नहीं है, तो वे हिन्दूत्व में समायी भावनाओं का विरोध नहीं करते। मानवीय श्रेष्ठता के मानक इस शब्द का भला कौन विरोध कर सकता है और कौन करेगा।

 

इधर हमको लगने लगा है कि कुछ मित्र लोग आभासी दुनिया ..आभासी दुनिया कर के छाती पीट रहे हैं …उतने ही डबल स्पीड से ब्लोग्गर मीट का आयोजन हो रहा है । जबलपुर में भाई महेन्द्र मिश्रा जी ने एक धमाकेदार मीट कर डाली । और सबसे बढिया बात ई रही कि लखनऊ से महफ़ूज़ जी भी बिना टरेन मिस किए ….इस मीट के लिए भर भर के मीट मसाला लेकर पहुंचे ….फ़ोटो शोटो का मजा उठाईये

भाई महेन्द्र मिश्र जी ने जबलपुर ब्लोग्गर मीट की रंगारंग फ़ोटो शूट पेश किया है image


ब्लागरो के समक्ष मीडिया ...

 

पिछले दिनों श्री रवि रतलामी ने दैनिक जागरण के नए ब्लोग्गिंग प्लेट्फ़ार्म जागरण जंक्शन के बारे में बताया था और हमने भी वहां ब्लोग बकबक के नाम से अकाऊंट खुलवा लिया …..बहुत बढिया मंच है …आज उसी मंच पर भाई संजय जी एक घटना का जिक्र करते हुए देखिए क्या बता रहे हैं

संजय उपाध्याय जी image

जागरण जंक्शन पर अपने ब्लोग में बता रहे हैं कि आज किस तरह से इंसान, समाज,और दोनों की फ़ितरत बदल गई है

 

आदमी। फितरत। समाज। तीनों बेहतर हो तो फिर मान लीजिए कि जीवन धन्य हुआ और आप जीवन की जंग जीत गए। लेकिन ऐसा अब शायद ही कहीं होता है। होता भी है कि नहीं यकीन से कोई नहीं कह सकता। मैने देखा है कि जवानी की दहलीज को कैसे बेकरार मुसाफिर पार करते हैं और न जाने कितनी सांसे थम जाती है। यदि किसी कि सांस बची तो जिल्लत भरी। आह भरी। दर्द की याद भरी। उपर से हर उस सफर की निशानी से जूझने की जिद से लहूलुहान जिगर के साथ। यह कैसी सांस और यह कैसा जीवन। बात उस प्यार के सफर की और यार की बेकरारी की जो अचानक से जीने का मतलब ही छीन लेता है। वर्तमान में हम जिस दुनियां में जीते हैं। हर दिन नई चुनौती है। कहीं गरीबी है तो कहीं यारी है। कही चैन है तो कहीं बेकरारी है। इसी बेकरारी से जूझता एक प्रसंग बताता हूं बिहार के पश्चिम चम्पारण जिलान्तर्गत चौतरवा थाना के अधीन है एक गांव कौलाची। गांव में एक बिन ब्याही मां है, जो अपनी लाड़ली को बाप का नाम दिलाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री तक का दरवाजा खटखटा चुकी है। उसके चेहरे पर बेबसी साफ दिखती है। सीने से अपनी बच्ची को लगाए एक झोपड़े में अपने उस प्यार के बेकरार सफर में खोयी रहती है। कोई बोलता है तो बोलती है वरना खामोशी को ही अब अपना हमसफर मान बैठी है। ऐसा नहीं है कि इस युवती ने अपने प्यार को यूं ही छोड़ दिया। जब यार ने उसे प्यार के सफर से निकाल फेंका तो उसने अबला होने का भ्रम तोड़ा न्यायालय गई। सीएम के दरवाजे गई। यार जेल गया और फिर पुलिस ने कोरम पूरा किया। अर्थात् यह अबला एक बार फिर अबला हो गई और अपनी बच्ची के लिए बस बाप का नाम ढूंढते चल रही है। ऐसे में एक बार फिर आदमी, समाज और उसकी फितरत का घिनौना रुप दिखा है। अब देखना यह है कि कबतक समाज के लोग महिलाओं को अपनी बेकरार सफर का रास्त बनाएंगे।

 

बीबीसी हिंदी सेवा से हमारा नाता एक श्रोता के रूप में पिछले लगभग बाईस सालों से है ..अब नेट पर भी उनसे बतियाते रहते हैं …बीबीसी ब्लोग के मंच पर बीबीसी संवाददाता राजेश जी हाल ही में पाकिस्तान क्रिकेट खिलाडियों पर गिरी गाज के मामले पर कुछ बता रहे हैं

 

अच्छी-ख़ासी टीम का यूँ बिखरना....

पंकज प्रियदर्शी पंकज प्रियदर्शी | गुरुवार, 11 मार्च 2010, 11:08 IST

पाकिस्तान क्रिकेट में जो भी हो रहा है, उसे आप बवाल कहें, खलबली कहें या फिर सनसनी, एक क्रिकेट प्रेमी होने के नाते मुझे बहुत अफ़सोस है.

अफ़सोस इसलिए नहीं कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के कुछ नामी-गिरामी चेहरे पर पाबंदी लगाई गई है. बल्कि इसलिए क्योंकि क्रिकेट के शीर्ष पर पहुँचने का दम रखने वाली इस टीम का क्या हाल हो गया है.

एक समय घातक तेज़ गेंदबाज़ी और मैदान पर आक्रामकता का दंभ एशियाई देशों में नहीं दिखता था. ये वो दौर था जब मैदान पर घायल होने वाले एशियाई खिलाड़ियों की सूची काफ़ी लंबी थी.

इन दिनों फ़िर से संकंलकों के मुख्य पृष्ठों पर धर्म संप्रदाय के चेहरे चमकने लगे हैं और इन बातों पर बहस भी खूब चल रही है । मुझे कोफ़्त तब होती है जब कुछ लोग दूसरों को गलत साबित करने की कीमत पर खुद को सही साबित करने की कोशिश करते हैं । खैर उनका शायद यही रास्ता हो । मगर भाई रत्नेश बहुत सशक्त ढंग से कुछ प्रश्नों के द्वारा सरकार , समाज और सबके सामने कुछ सवाल रख रहे हैं …

 

रत्नेश त्रिपाठी image

अपनी इस पोस्ट में गजब के प्रश्नों को उठा रहे हैं …आप भी देखिए

 अफजल गुरू देशभक्त है, भगत सिंह व साध्वी आतंकवादी है।
 सिमी, इंडियन मुजाइद्दीन समाज सेवा में लगे संगठन है, वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विष्व हिन्दू परिषद आतंकवादी संगठन है।
 गोधरा-कांड एक दुघर्टना है, गुजरात दंगे सुनियोजित हैं।
 15 प्रतिशत मुसलमान इंसान है, 85 प्रतिशत हिन्दू कूड़ा-कचरा हैं।
 मालेगांव धमाके ही सच्चे धमाके हैं, अन्य जगहों पर हुए धमाके दिवाली के पटाखे हैं।
 मालेगांव में 5 मुसलमानों की मौत बहुत बड़ी घटना है, दूसरे स्थलों पर सहस्रों की संख्या में मौत के शिकार हिन्दू केकड़े हैं।
 मुसलमानों के लिए आरक्षण, हिन्दुओं के लिए धमाके।
 हज के लिए करोड़ो रूपये, अमरनाथ यात्रा के लिए फूटी कौड़ाी नहीं।
 इस्लामी आतंकवाद का समर्थन धर्मनिरपेक्षता है, भारतीय को मारना देशप्रेम हैं।
 बाबरी ढ़ांचे का गिराया जाना एक मुद्दा है, सैकड़ौं हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त करना विकास कार्य है।
 मुसलमान की मौत मृत्यु है, हिन्दू की मौत नियति हैं।
 हिन्दुओं को नियमों का पालन करना चाहिए, मुसलमानों के लिए कोई नियम नहीं।
 अल्लाह परमेश्वर है, राम एक काल्पनिक पात्र है।
 क्या यह हमारे सपनों का भारत हैं।
वाकई क्या ये हमारे सपनों का भारत है ?

पता नहीं ये इस देश की बदकिस्मती है कि यहां के लोगों की नियति …किसी न किसी वजह से आम अवाम झुलसती ही रहती है , कभी हादसे , कभी दंगे ..तो कभी कुछ और …बरेली इन दिनों अशांत चल रहा है …और उसी के बारे में बात करते हुए अजय सिंह कहते हैं कि

 

भाई अजय सिंह image

अपने ब्लोग में बरेली में फ़ैली आग पर कुछ कह रहे हैं

 

बरेली की सूरमई पहचान  पिछले 13  दिनों से दंगों की आग में झुलस रही है। इस आग पर काबू पाने के लिए शासन स्‍तर पर लगातार तमात कवायदें ही जा रही हैं लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिली। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्‍या वहां का लोकल प्रशासन बेहद कमजोर है या पब्लिक में उसके मंसूबों की गलत छवि घर कई है। पुराने अधिकारी बदल गये और जो नये पहुंचे उनके सामने इन दो अहम सवालों का जवाब ढूढ़ने की चुनौती है। नये अधिकारियों की ओर से लगातार कोशिशें चल रही हैं और शासन के अधिकारी आसमान के जरिये हालात की निगरानी कर रहे हैं। इसके बावजूद हिंसा की चिंगारी रह-रह कर भड़क रही है। इन हालातों में यह जरूरी हो गया है कि दंगे पर काबू करने के प्रयासों के साथ ही नागरिकों के दिलों को जीता जाय। इसके लिए दोनों पक्षों के मानिन्‍द लोगों के साथ बैठक कर उन्‍हें अमन और भाईचारा बढ़ाने के लिए आवास से अपील की जाय। हर किसी को इस बात का भान कराया जाय कि प्रशासन और शासन किसी के पक्ष में नहीं बल्कि निष्‍पक्ष भावना से शांति बहाली के प्रयास में लगा है। इस कार्य में हिन्‍दू-मुस्लिम, सिख, इसाई सभी धर्र्मो के धर्मगुरुओं को भी आगे आने की जरूरत है। वहीं सभी राजनीतक दलों को एक मंच पर आकर अमन का पैगाम देना चाहिए न कि उन्‍माद को बढ़ाने के लिए हवा।

कहते हैं कि जब शब्द नहीं बोलते तस्वीर बोलती हैं …कल विवेक भाई के हाथ में नोटों के असंख्य बंडल से भरा हुआ गेराज आ गया था आज बंडल बंडल अमिताभ बच्चन आ गए ….हमारे लिए तो दोनों ही बंडल एक से …भारी भरकम दूर दूर से निहारते रहे …..आप भी अपने नैन जुराईये ..

 

विवेक भाई image

आजकल खूब फ़ोटो शोटो दिखा रहे हैं ….कल नोटों के बंडल लगाए थे आज अमिताभ बच्चन के बंडल लगा दिए हैं

अपने देश में हुए बम धमाकों की प्रतिक्रिया में तो हमारी कलम खूब चलती है मगर ऐस बहुत कम होता है कि पडोस में हुए किसी ऐसी घटना पर हम कभी कुछ ज्यादा कहते हों …भाई सूर्यकांत गुप्ता जी इसी बात पर  गौर फ़रमाने की बात अपनीइस  कविता में कह रहे हैं

 

श्री सूर्यकांत गुप्ता जीimage

 कुछ गौर करने को कह रहे हैं

 

इस बात पे हम सभी करें गौर

अभी अभी देख रहा था दूरदर्शन समाचार 

बताया जा रहा था, पकिस्तान में बम विस्फोट से

तकरीबन 47 लोग मारे गए व कई घायल हो गए 

मगर वहाँ के ऊंचे ओहदे वाले कह रहे हैं इसमें भारत का हाथ है 

तत्काल मन में विचार घुमड़ा;

इस बात पे हम सभी करें गौर 

पनाह लिए हुए हैं "पाक" में ही आतंकवाद के

बड़े बड़े सिरमौर, 

यह जानते हुए भी वहाँ के कर्णधार 

छोड़ दिए हैं आरोपों का दौर

 

आगे की कविता उनके ब्लोग पर पढिए ..

आज सुबह से ही संकंलकों के पहले पन्ने पर दर्ज़ इस खबर भी सबकी नज़र जा रही है और हम तो लोट लोट कर मरे जा रहे हैं जबसे पता चला है कि किसी ब्लोग्गर को तीस करोड हिंट भी मिलता है । अब इत्ते बडी जनसंख्या का फ़ायदा  आप ओलंपिक में उठा लो कोई गम नहीं …..मगर यार ब्लोग्गिंग में भी …तीस करोड हिंट पाने वाला ब्लोग्गर …..छोडो या र था तो था ..हमें नहीं पता था तो सोच कर फ़ूल रहे थे कि ओह आज तो पोस्ट को पढने वालों की संख्या सौ के पार हो गई ...मगर श्री जगदीश्वर चतुर्वेदी जी ने सारा भ्रम तोड कर रक दिया …..कैसे अरे नीचे पढिए न ?

जगदीश्वर चतुर्वेदी जी image

अपनी पोस्ट में मिलवा रहे हैं देखिए किनसे

विश्व के श्रेष्ठतम ब्लॉगर की चुनौती बोलो चीनी शासको बोलो

(विश्व का श्रेष्ठतम ब्लॉगर हन हन)

अरविंद मिश्रा जी ने टिप्पणी मिटौव्वल के मुद्दे पर एक बहस छेड दी , इसकी शुरूआत तो कल की पोस्ट से हुई थी , मगर कल पंचायत का फ़ैसला नहीं आ सका …आज उसकी प्रति हासिल हो गई है ….सो उन्होंने उसे सबके सामने रख दिया है …लगता है बहस पार्ट टू चालू हो गई है …आप खुदे देखिए ….तब तकले अरविंद जी जरा ई पुस्तक बांच लें ….ई लोकस पर अरविंद जी जाने कित्ते बरस से फ़ोकस किए हुए हैं …पता करते हैं कि …आखिर है का ई मैगजीन में ..???

 

अरविंद मिश्रा जी ने image

अपनी पोस्ट में टिप्पणी को सहेजने/मिटाने के मुद्दे को आगे बढाते हुए कहा कि

 

टिप्पणियाँ चिट्ठाकार को भी नियमित और मर्यादित करने/रखने /रहने  की क्षमता रखती हैं -कहीं  अंकुश  बनती हैं तो कहीं सचेतक भी लगती हैं .नहीं तो कई चिट्ठाकार निरंकुश ही न होते  जायं? मेरी दो टिप्पणियाँ ब्लॉग मालिको पर इतनी भारी पड़ गयीं कि उन्हें अपनी पूरी पोस्ट ही डिलीट करनी पड़ गयी -अब पुनः संदर्भ देकर मैं कोई वितंडावाद नहीं शुरू करना चाहता मगर मुझे इस बात का अफ़सोस जरूर हैं  कि मेरे पास अब वे ऐतिहासिक  टिप्पणियाँ(बात रखने के लिए निर्लज्ज आत्मप्रशंसा ही सही )  सुरक्षित नहीं हैं,याद कर भी उन्हें वापस लाना मुश्किल हैं - गेहूं के साथ घुन बन पिस गयीं वें ! मगर हाँ इसी विमर्श से उन्मुक्त जी द्वारा यह एक साईट सुझा दी गयी है जिसे मैंने अपना भी लिया है और जोरदार सिफारिश है कि जो भी अपनी टिप्पणियों पर जान  छिडकते हैं उन्हें इस साईट पर जाकर पंजीकरण करा लेना चाहिए! समीर भाई तो संत हैं! नेकी कर दरिया में डाल और परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर वाली परम्परा के सचमुच !

 

तो आज के लिए एतना  ही तनिक बताया जाए कि ई ट्रायल कैसा रहा ….???????

आगे का पूरा ट्रेवेल ट्रिप उसी पर डिपेंडेड है सो जान लीजीए …….

रविवार, 7 मार्च 2010

कुछ नई रेलों की नई पटरियां (ब्लोग लिंक्स , दो लाईना , और क्या )




आज बहुत दिनों बाद फ़िर पटरियां बिछाने का मन हुआ , मगर जब स्टेशन पर पहुंचा तो सोचा कि , सभी सुपर फ़ास्ट, शताब्दी , राजधानी, गरीब रथ , दोरांतो तो धडाधड दौडी जा रही हैं , कुछ छोटी छोटी सुंदर सी रेलें इंतजार करती रह जाती हैं कब पटरी बिछें और उन्हें भी दौडने का मौका मिले तो सोचा आज क्यों उन्हीं , अनछुई , अनपढी , रेल पोस्टों को आपसे मिलवाया जाए........तो मिलिए न



पढने बैठा तो पहली पोस्ट यही पढी है आज,
इस पोस्ट को देखिए कौन सा खोल रहे हैं राज ॥




इतनी सुंदर बात भला कौन कहां कह पाता ,
पढिए और बताईये इसको क्या कहा है जाता ॥



कुछ सोच कर ही हमने इनको भी चुना है ,
आप भी सुनिए कि इन्होंने क्या सुना है ॥




बस देखता हूं पोस्टें नहीं देखता नाम ,
देखिए इन्होंने कब से नहीं देखी ऐसा शाम ॥




इस पोस्ट को भी देखिए सुन हमारी फ़रियाद,
पढिए और जानिए ये कर रहे हैं किसको याद ॥




इहां पूछ रहे सचिन जी कईसे भरेंगे जखम ,
आप ही कुछ बतलाईये, का बतलाएं हम ॥



इहां पर बुकनु के तमाशे का मजा लीजीए ,

रूटीन से हट कर भी तो पढा कीजीए ॥



बीमार पडो तो कभी न लो पंगे ,
क्रोसिन खाओ और हो जाओ चंगे ॥



प्रेम का पाठ,इहां पढाया जा रहा है,
पोस्ट पर पहुंचिए देखिए कौन पढा रहा है ॥



गर्भ में कविता एक पल रही है ,
देखिए यहां लव की कलम खूब चल रही है ॥



सचिन यहां करा रहे पास फ़ेल की पढाई,
अरे नहीं यार ये तो है कुछ तैंतीस प्रतिशत की लडाई



पढते पढते ये पोस्ट भी मुझे मिली थी आज ,
इस पोस्ट के अलग हैं अंदाज और मिज़ाज़ ॥





यहां अमित जी किसकी जवाबदेही तय कर रहे हैं ,
ब्लोग्गिंग को एक दिशा देने का काम यह कर रहे हैं ॥



इन्होंने सोचा कि ये उनके बिन जी न पाएगा ,
सारी बात उसे पता चलेगी , जो यहां पर जाएगा ॥




अनकही बातों में आज बिखरा है प्रीत का रंग ,
हमने पढ ली आप भी पढिए मन को करिए चंग ॥



पूनम जी ने इस पोस्ट में संदेश दिया बेजोड,
देखिए कौन कहां पर हिंदी को चला है छोड ॥



यहां पर देखिए क्या होता है ज्यादा पैसे का नतीजा ,
किस्सा बताया गया है , एक था चाचा , एक भतीजा ॥

सोमवार, 1 मार्च 2010

होली है भई होली है ...अब है तो है .....और अब तो हो .ली ..ताजा समाचार ..

बस देखिए जी अभी अभी के ताज़े समाचारों के अनुसार ..झाजी की होली ..कुछ यूं ....होली ..आप खुदे देखिए ..


(बुलबुल ....रंग गुलाल को ...... चैक करते हुए कि आखिर इस पैकेट मे था ऐसा क्या....जो इसने ...हमारे दोनों झाजी ..........भैया और पापा का ऐसा हाल कर दिया .....




(बुलबुल बडे झाजी ...अपने पापा को नजदीक से निहारते हुए ....ओह पापा आप तो भांग खा के पूरे भांग के गोले की तरह लग रहे हो..............)

(छोटे झाजी .....गोलू जी ..........ओह जब तक पापा पानी गरम करते हैं ...ऐसे ही बैठ कर डोरेमोन,और टौम एंड जैरी को हैप्पी होली बोल देता हूं ।
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