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शनिवार, 11 जुलाई 2020

बागवानी के लिए उपयुक्त समय




जो भी बागवानी शुरू करना चाह रहे हैं , यही सबसे उपयुक्त समय है | शुरू हो जाइये और जो भी उगना लगाना चाह रहे हैं फ़टाफ़ट लगा दें | मानसून की बारिश इन पौधों के लिए वही काम करती है जो बच्चों के लिए बोर्नवीटा या हॉर्लिक्स करते हैं |

पौधों को खाद पानी देने का भी यही उचित समय है , अभी बारिश की बूंदों के बीच वे जड़ों और मिटटी में खूब रच बस जाएंगे और और जैसे जैसे धूप नरम पड़ती जाएगी सब कुछ गुलज़ार हो उठेगा |

जिन पुराने पौधों में कलियाँ और नए पत्ते आते नहीं दिख रहे हैं उनकी प्रूनिंग के साथ साथ निराई गुड़ाई भी समय है | मानसून में तो धरती का सीना चीर कर हरा करिश्मा बाहर निकल जाता है तो जैसे ही आप उनकी कटिंग करके छोड़ देंगे अगले महीनों में वे कमाल का रंग रूप निखार लेंगे | जिन्हें गुलाब ,आम ,नीम्बू आदि की कलम लगानी आती है उनके लिए भी यही सबसे उपयुक्त समय है |


धनिया , साग , मेथी आदि को लगाने उगाने से फिलहाल परहेज़ ही करें अन्यथा अचानक कभी भी आने वाले तेज़ बारिश आपकी मेहनत पर पानी फेर देंगे |

शुरुआत में यदि बीज से खुद पौधे उगाने में असहज महसूस कर रहे हैं तो आसपास नर्सरी से लेकर आ जाएं | इस मौसम में बेतहाशा पौधों के अपने आप उग जाने के कारण अपेक्षाकृत वे आपको सस्ते और सुन्दर पौधे भी मिल जाएंगे |

बस....तो और क्या , हो जाइये शुरू अपने आस पास खुश्बू और रंग का इंद्रधुनष उगाने के लिए | कोई जिज्ञासा हो तो बेहिचक कहिये , अपने अनुभव के आधार पर जितना जो बता सकूंगा उसके लिए प्रस्तुत हूँ |

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

नज़रिया देखने का





किसी भी बात ,घटना ,तथ्य के हमेशा ही दो पहलू होते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह आधा भरा/आधा खाली ग्लास देखने वाले के नज़रिये पर निर्भर करता है | वास्तव में भी यही होता है , नकारात्मक नज़रिये वाला व्यक्ति किसी भी बात में ,आलोचना निंदा आरोप का अवसर तलाश ही लेता और सकारात्मक नज़रिये वाला इंसान विपरीत और प्रतिकूल परिस्थतियों में भी उसके अच्छे पहलू को ढूंढ ही लेता है |

आज अवसाद और निराशा की जैसी परिस्थितियाँ बनी हुई हैं उसने पहले ही बहुत अधिक तनावपूर्ण बना रखा है | संवेदनशील इंसानों के लिए ये समय और भी अधिक नाज़ुक हो गया है | गाँव से अत्यधिक प्रेम होने के कारण , और इन दिनों की जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी में मिले अवकाश के कारण भी ,गाँव में बने महादेव के मंदिर के पुनर्निमाण के काम को करवाने की योजना बन गई |

आखिरकार ,शिव मंदिर का सारा काम पूरा हुआ और मन को तसल्ली हुई  कि कम से कम मां बाबूजी की आत्मा आज संतुष्ट हुई होगी और मुझे आत्मिक शान्ति मिली की अब अगले कई दशकों तक वो मंदिर सुरक्षित और संरक्षित रहेगा | किन्तु अचानक ही सब कुछ बदल गया |

गाँव के ही कुछ बच्चों ने आनन् फानन में , मंदिर पर (अष्टजाम ) कीर्तन जो 24 घंटे तक निर्बाध चलता है , के आयोजन का कार्यक्रम बनाया और टेंट बाजे साउंड सिस्टम के साथ तैयारी कर दी | दिल्ली से लेकर गाँव और हर जगह के हालात को देखते हुए , मुझे इस बात की बेहद चिंता हुई कि इस कीर्तन भजन के दौरान कोई गलती से भी या भूलवश भी इस बीमारी में चपेट में आ गया तो सब कुछ बेहद गलत दिशा में चला जाएगा | यही सोच कर मैंने सबको, हालातों को देखते हुए और प्रशासनिक निर्देशों के मद्देनज़र भी. थोड़ी दिन  रुक कर इसका आयोजन करने को कह दिया |

और यही सबसे बड़ा गुनाह साबित हुआ | अष्टजाम कीर्तन भजन का कार्यक्रम तो टाल दिया गया ,मगर इसे दूसरा रुप देकर | ये कह कर कि चूँकि मंदिर का निर्माण बाबूजी द्वारा करवाया गया था या कि उसकी साज़ सज़्ज़ा का काम मेरे द्वारा करवाया गया इसलिए ही मैंने ये कीर्तन रुकवा दिया | और उस समय से लेकर अब तक ये हुआ है , सबने अपने अपने स्तर से बुरा भला कह कर , मुझे कोस कर , मुझे कृतज्ञ किया | मंदिर में लगे ताला चाभी को हटा दिया गया , और वहाँ लोगों ने इसके विरोध में पूजा करना भी छोड़ दिया |

इस पूरे प्रकरण ने मन को बुरी तरह आहत किया और मुझे निराश होकर विवश होकर अब ये सोचना पड़ रहा है कि आखिर गलती कहाँ हुई | मंदिर के काम को हाथ में लेकर उसे पुनर्निर्मित करवाना मेरी गलती थी या गाँव में रह रहे काका काकी ,बूढ़े बुजुर्ग ,बच्चों को इस बीमारी की चपेट में आने से बचाने के लिए कीर्तन के कार्यक्रम आगे टालने के लिए कहना | आत्मा तक बुरी तरह से आहत हुई है , और भविष्य के प्रति अब कुछ भी सोचने के लिए बहुत आशंकित भी |

जो अब तक छूटा हुआ था ,अब वो सब कुछ टूटा हुआ है | सच कहते हैं कि सबसे जीत कर भी इंसान , आखिर अपने और अपनों से ही हार जाता है | हम खानाबदोश हो चुके लोगों को अब अपनी मिट्टी से मोह का भ्रम अपने मन मस्तिष्क से निकला देना चाहिए | साझा इसलिए किया क्यूंकि बिना लिखे रहता तो दो दिनों में फिर से तेज़ी से बढ़ा रक्तचाप अपने भीतर जमा हुए इस दर्द के कारण अपने चरम पर पहुँच जाता |कृपया किसी भी टिप्पणी में किसी को भी दोषी न ठहराएं आप भी | कहा जाता है की इंसान नहीं खराब होता , ये वक्त होता है जो खराब होता है और वो तो खैर खराब है ही | 

शनिवार, 4 जुलाई 2020

मैं किसी को नहीं बख्शता







दिन एक जुलाई समय साढ़े नौ बजे सुबह

दफ्तर के लिए निकलते हुए : " अरे हेलमेट क्यों नहीं लिया आपने ?

नहीं मास्क के साथ उसे लगाने से ये घुटन और बढ़ जाएगी | आज ऐसे ही चलते हैं |

लेकिन मास्क तो जरुरी है और हेलमेट भी , फिर अब तो आदत डालनी ही पड़ेगी | मुझे पड़ गई है न |

नहीं फिर मैं मास्क हटा कर हेलमेट पहन लेती हूँ |

मैं थोड़ा सा ठिठक जाता हूँ | दफ्तर के लिए निकलने का समय हो रहा है |

ठीक है , मास्क पहने रहो आप , हेलमेट नहीं पहनना है तो रहने दो |

दो सवारियां स्कूटी पर बैठ कर दफ्तर के निकल पड़ती हैं |

अरे ये आज इधर किधर से मोड़ लिया ?

उधर सड़क तोड़ रखी है , काम चल रहा है न इसलिए इधर से लिया है |

थोड़ी देर आगे जाते ही सामने ट्रैफिक पुलिस की पूरी टीम हाथ देती है | मैं स्कूटी आहिस्ता कर देता हूँ |

श्रीमती जी ,थोड़ा सा सकपका जाती हैं |

कांस्टेबल नजदीक आते हुए गले में लटका पहचान पत्र और नाम पट्टिका देख कर थोड़ा झिझकते हुए

अरे सर , मैडम को बिना हेलमेट क्यों लिए जा रहे हो आप ?

मैं कुछ कहूं इससे पहले ही श्रीमती जी , :
सर मास्क की वजह से और मुझे थोड़ी घुटन ज्यादा होती है |
जल्दी में निकलना था इसलिए रह गया | आगे से ध्यान रखेंगे पक्का |

पुलिस वाला थोड़ा आश्वस्त सा होता लगता है

मैं : लेकिन अब तो कैमरे में आ ही चुकी है गाड़ी सवारी और अब तो चालान करना ही पडेगा , क्यों हैं न सर ??

जी मैडम जी सर ठीक ही कह रहे हैं ,चालान मैसेज आ जाएगा अपने आप आपके फोन में |

श्रीमती जी भुनभुनाते हुए ट्रैफिक वाले को मन ही मन कोसती हैं | दफ्तर पहुँचते ही " अब बिना हेलमेट नहीं निकलेंगे कभी , बेकार में चालान हो गया |

काम ख़त्म | 24 घंटे में चालान का सन्देश आ जाता है ,1000 रूपए का जुर्माना भरना है |

न तो वो सड़क टूटी हुई थी और न ही रास्ता खराब था , उस नए रास्ते पर ट्रैफिक वाले रहते ही हैं ये सिर्फ मुझे पता था |

कहा न , मैं किसी को नहीं बख्शता , खुद को भी नहीं |

शशशशशश। .......किसी से कहियेगा मत ये बात , मुझे पता है आप नहीं बताएँगे | है न 
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