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रविवार, 5 जून 2011

हां अब शुरू हुई लीला ..फ़ंस गया जनांदोलन ...





इन दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सिर्फ़ मौजमस्ती के अपडेट नहीं लिखे जा रहे हैं , बाकायदा मुहिम चल रही है , बहस और विमर्श किए जा रहे हैं । लोग न सिर्फ़ अपनी साहित्यिक काबलियत का परिचय करवा रहे हैं बल्कि अपनी  बौद्धिक सोच , और वैचारिक क्रांति को भी जम के धारदार बना रही है । अन्ना हज़ारे द्वारा किए जा रहे जनांदोलन में फ़ेसबुक पर चली और चलाई गई एक मुहिम इंडिया अगेंस्ट करपशन ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । इस जनांदोलन से जुडाव ने ही शायद बाबा रामदेव द्वारा स्थापित स्वाभिमान ट्रस्ट के मित्रों का रूख मेरी तरफ़ मोडा , और मित्रों ने ताबडतोड मुझसे सवाल किए कि , क्या मेरा समर्थन बाबा के प्रस्तावित आंदोलन को उसी रूप में है जिस रूप में मैंने अन्ना के जनादोंलन में रुचि दिखाई थी । मैं बह्त जल्दी किसी भी बात , और व्यक्ति से प्रभावित नहीं होता और यूं भी  आधुनिक भारत में बाबाओं के इतिहास ने मुझे कभी भी किसी भी बाबा का अंधभक्त बनने नहीं देता है । इसलिए पुरज़ोर तरीके से न सही किंतु मैंने अपने विचार से उन्हें अवगत करा ही दिया था कि , ये सब मुझे संतुष्टिजनक नहीं दिख लग रहा है । 



अब जबकि मामला त्रिशंकु की तरह लटक गया है तो लगा कि अब समय आ गया है कि इस नाज़ुक समय पर हर आम आदमी की तरह विचार और सोच को सामने रखना ही चाहिए । प्रबुद्ध समाज का ये दायित्व हो जाता है कि वे ऐसे समय पर जबकि पूरा देश एक परिवर्तन की लडाई लड रहा है तो उससे सहमति या असहमति, विमर्श और विचारों के सहारे समाज के सामने जरूर रखे । इतिहास गवाह रहा है कि एक व्यक्ति द्वारा संचालित कोई भी पंथ , समुदाय , आंदोलन , संस्था अक्सर बहुत सी विषम परिस्थितियों में फ़ंस जाती है और अगर किसी कारणवश उस अकेले व्यक्ति से अलग हो कुछ भी तो सब कुछ बिखर सा जाता है । बाबा रामदेव के विषय में तबसे चर्चा ज्यादा तेज़ हुई थी जबसे उन्होंने योग के अपने चमत्कारिक साधन से इतर जाकर समाज की राजनीति से होने वाली लडाई के एक सूत्रधार के रूप में ये बयान दिया कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक देश व्यापी जनांदोलन की शुरूआत करने जा रहे हैं । खासकर विदेशों में फ़ंसी हुआ भारत का काला धन लाने की उनकी मुहिम ने उन्हें देश से लेकर विदेश तक की चर्चा में ला दिया । इस समय तक बाबा अपने योग गुरूत्व के बल पर एक बहुत बडी जमात अपने अनुयायिओं और उन पर विश्वास करने वालों की खडी कर चुके थे । बाबा को पूरा यकीन था कि वे जब किसी भी जनांदोलन को प्रारंभ करेंगे तो उसमें उनका साथ देने आने वाला ये जनसमूह सरकार के लिए बडी सिरदर्दी साबित होगा । 


लेकिन इसके साथ ही बाबा के इतिहास भूगोल के पडताल की कहानी भी शुरू हो गई । तहलका समेत कई खोजी पत्रकारों ने बाबा के ज़र्रे से आसमान तक के तीव्र सफ़र का सारा राज़ अपने समाचार सूत्रों के माध्यम से कर डाला । बाबा रामदेव और उनसे जुडी हुई संस्थाओं के पास हजार करोड की अकूत संपत्ति का होना , और उनका ये कहना कि वे आगामी चुनावों में सभी सीटों से अपने प्रत्याशी खडे कर सकते हैं ने इस बात का ईशारा कर दिया था कि राजनीतिक महात्वाकांक्षा का एक पुट भी कहीं न कहीं तो पनप ही रहा है । किंतु इसके बावजूद भी जब बाबा रामदेव ने विदेशी बैंकों में जमा भारतीय काले धन को वापस लाने के अनशन की घोषणा की तो मन ही मन एक आम आदमी यही सोच रहा था कि , इस सरकार के साथ यही सलूक होना चाहिए । और इसे हर तरफ़ से घेरा जाना चाहिए । बाबा ने अन्ना के जनांदोलन से अलग अपने इस आंदोलन के लिए व्यापक तैयारी करवाई । न सिर्फ़ अनशन स्थल पर करोडों रुपए का खर्च किया गया बल्कि इस मुहिम के प्रचार के लिए भी देश को कटाआऊट और बैनरों से पाटने में भी अच्छा खासा धन लगाया गया । खैर बाबा के पास था तो उन्होंने लगाया , इसमें कोई बडी बात नहीं । 



मामला तब दुविधा में फ़ंसने जैसा हो गया जब समाचार माध्यमों में खबर आई कि अनशन शुरू होने से पहले ही सरकारी मंत्रियों ने सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए बहुत सी मांगों पर सहमति दे दी है । आगे का चिट्ठी प्रकरण , सरकार का आश्वासन , कपिल सिब्बल की राजनीतिक धूर्तता और बाबा का अब इस विकट स्थिति में फ़ंसने की सारी घटनाएं जितनी तेज़ी से घटी हैं पिछले कुछ घंटों में उससे एक अजीब ही हालात बन गए हैं । बाबा खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं । पूरे देश से आई हुई भारी जनता , जाने कहां कहां बैठे सहयोगी और अनशनकर्ता आंदोलन खुद ही दुविधा में फ़ंस गए हैं । उधर सरकार अलग ताल ठोंक रही है कि जब मांगे मान ही लीं तो फ़िर अनशन क्यों ?? मामला अब ज्यादा संगीन हो गया है और स्थिति ज्यादा नाज़ुक । सरकार की बेशर्मी का आलम तो देखिए कि केंद्रीय मंत्री कितनी बेशर्मी से कहते हैं कि बाबा की मांगों को मान लेने का मतलब ये कतई न लगाया जाए कि सरकार कमज़ोर है इसलिए झुक जाती है । वो सरकार जिससे पिछ्ले कई सालों से अफ़ज़ल गुरू और कसाब जैसे आतंकियों को फ़ांसी पर चढाने की भी हिम्मत नहीं है , वो सरकार जो चुप होकर अपने मंत्रियों को पूरा देश लूटते हुए देख रही है वो सरकार भी ऐसे दावे करती है । अब ये जनांदोलन क्या रूप लेगा ये तो भविष्य की बात है किंतु इतना तय है कि सरकार इस बात को अच्छी तरफ़ समझ रही है कि आम अवाम जो आए दिनों भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनसैलाब की तरह उमड जा रही है वो सरकार की सेहत के लिए खतरे की घंटी है । रही बात अन्ना और बाबा के जनांदोलनों और अनशन पर सवाल उठाने वालों की , तो जिस दिन कोई भी राजनेता अपने दम पर इतने सारे आम लोगों को अपने साथ खडा होने के लिए सहमत कर लेगा उस दिन गैर राजनितिक लोगों को ये बागडोर अपने हाथों में उठाने की कोई जरूरत नहीं पडेगी । फ़िलहाले तो जनता यही चाहेगी कि , ये जनांदोलन भी सरकार के ताबूत में एक कील की तरह ठुक जाए । 

13 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसी हरकत कर के कांग्रेस ने अपनी कब्र खोद ली है.

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  2. कोई दुविधा में नहीं है, और सिब्बल जी ने जो दिखाया उसमें कहीं भी फिक्सिंग जैसा कुछ भी नहीं है जैसा प्रोजेक्ट किया जा रहा है...
    इनसे तो बात ही नहीं करना चाहिये थी..

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  3. जिस दिन कोई भी राजनेता अपने दम पर इतने सारे आम लोगों को अपने साथ खडा होने के लिए सहमत कर लेगा उस दिन गैर राजनितिक लोगों को ये बागडोर अपने हाथों में उठाने की कोई जरूरत नहीं पडेगी ।

    -बिल्कुल जी!!

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  4. काहे टेंसन ले रहे हैं झा जी, इ वही है उकील है, जो सांसद खरीदी में पैरवी करे रहे । इनका बात को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए ना।

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  5. " sahemat ... रही बात अन्ना और बाबा के जनांदोलनों और अनशन पर सवाल उठाने वालों की , तो जिस दिन कोई भी राजनेता अपने दम पर इतने सारे आम लोगों को अपने साथ खडा होने के लिए सहमत कर लेगा उस दिन गैर राजनितिक लोगों को ये बागडोर अपने हाथों में उठाने की कोई जरूरत नहीं पडेगी । फ़िलहाले तो जनता यही चाहेगी कि , ये जनांदोलन भी सरकार के ताबूत में एक कील की तरह ठुक जाए । ..ek jabardast post sir .

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  6. हमारे यहाँ एक कहावत है कि- "कमजोर आदमी की बीबी को कोई भी भाभी बना लेता है |"
    अन्ना व बाबा के अनशन से यह बात तो स्पष्ट हो गयी कि "ये सरकार उस कमजोर पति की औरत के समान है जिसे हर कोई एरा गैरा आकर भाभी पुकार दे |"

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  7. विचारोत्तेजक आलेख। सहमत हूं, आपके विचारों से।

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  8. काश सरकार भी इतना सोच पाती

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  9. लगभग आप जैसी ही सोच मेरी भी रही इस आन्दोलन को लेकर ! बाबा ने इसे शुरू करने के पहले 'जन लोक पाल ' के बारे में जो बयान दिया था उससे उनकी विश्वसनीयता कम हो गई थी.सबको लगने लगा था कि सरकार से अंदरखाने उनकी सौदेबाजी चल रही थी !

    अब जब यह लीला 'विनाश लीला' में बदल चुकी है,बाबा को समझ में आ गया होगा कि राजनीति को आलिंगन करने का नफा भी और नुकसान भी होता है !
    इतने बड़े पैमाने पर जो पैसा उन्होंने बहाया है वह कहाँ से सफ़ेद हुआ ?

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  10. इस सरकार ने अपने लिये खुद ही खाई खोद ली, अब बस उस मे जाने की देर हे... चोर की अम्मा कब तक खेर मनायेगी?

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  11. बाबा वोट बैंक हथियाने की फ़िराक़ में नज़र आया तो पंगा हो ही गया न

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  12. बहुत ही बढ़िया, पर टेंशन किस बात का, दंगल देखिये और मजा लीजिये, न तो सर्कार और ना हे बाबा में से कोइ भी ईमानदार है,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  13. सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता तो बनी रहे।

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..

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