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मंगलवार, 18 मई 2010

सिर्फ़ नाम की "हाऊसफ़ुल" : फ़िल्म समीक्षा , एक आम दर्शक की नज़र से




अभी कल परसों ही फ़ैमिली जिद पर अड गई कि पिक्चर देखने जाना है, मुझे सिर्फ़ फ़रमान सुनाया जाता है , पूछा नहीं जाता , सो सब के सब चल दिए , देखने , टिकट मुझे पहले ही लाना पडा , और इसके बाद जुल्म ये कि अगले ढाई तीन घंटे तक पूरी पिक्चर को भी झेलना पडा । बस उसी क्षण निर्णय ले लिया कि , मैं भी बदला ले ही लूंगा और जाकर एक समीक्षा तो जरूर ही लिखूंगा , वो भी अपने दर्शक अंदाज़ में , तो देखिए और पढिए , वैसे लब्बो लुआब ये कि पिक्चर हाऊसफ़ुल से ज्यादा तो "राजनीति "के प्रोमो ने ही प्रभावित किया


आज दर्शक यदि मल्टीप्लेक्स में सिनेमा देखने जाता है तो कम से कम इतना तो चाहता ही है कि जो भी पैसे टिकट के लिए उसने खर्च किए हैं वो यदि पूरी तरह से न भी सही तो कम से कम पिक्चर उतनी तो बर्दाश्त करने लायक हो ही कि ढाई तीन घंटे बिताने मुश्किल न हों । साजिद खान ने जब हे बेबी बनाई थी तो उसकी बेशक अंग्रेजी संस्करण के रीमेक के बावजूद उसकी सफ़लता ने ही बता दिया था कि दर्शकों को ये पसंद आई । और कुछ अच्छे गानों तथा फ़िल्म की कहानी के प्रवाह के कारण फ़िल्म हिट हो गई । साजिद शायद इसे ही एक सैट फ़ार्मूला समझ बैठे और कुछ अंतराल के बाद , उसी स्टार कास्ट में थोडे से बदलाव के साथ एक और पिक्चर परोस दी । मगर साजिद दो बडी भूलें कर बैठे इस पिक्चर के निर्माण में , पहली रही कमजोर पटकथा , कमजोर और मजबूत तो तब कही जाती शायद जब कोई पटकथा होती , दूसरी और फ़िल्म के न पसंद आने की एक वजह रही , बिल्कुल ही बेमजा गीत संगीत ।


बहुत कम ही पिक्चर ऐसी होती है जिसमें पहले ही दस मिनट में वो दर्शकों, को बांध कर रखने लायक दृश्य उपस्थित कर पाती हैं ,और इसी तरह कुछ पिक्चरें पहले दस मिनट में ही दर्शकों का मन उचाट कर देती हैं। फ़िल्म की शुरूआत कब हुई और अंत कब हुआ ये तो जब निर्देशक ही तय न कर पाए तो दर्शक की क्या बिसात । पूरी फ़िल्म एक ही शब्द "पनौती " के इर्दगिर्द घूमती है । इस शब्द का अर्थ वास्तव में क्या होता है ये तो नहीं पता मगर दर्शकों को भी देख कर यही लगता है जब मकाओ , और लंदन जैसी जगहों पर भी पनौती हो सकते हैं तो फ़िर भारत में ऐसा क्यों नहीं दिखता कहीं ।

फ़िल्म एक बेहद ही थके हुए बुझे हुए और शिथिल सा चेहरा बनाए व्यक्ति की है जो सिर्फ़ किस्मत का रोना रहता है । बावजूद इसके , दोस्त और उसकी पत्नी का बहुत सारा नुकसान होने के , आराम से किसी करोडपति व्यावसायी की बेटी से शादी हो जाने के , इसके बाद फ़टाफ़ट पत्नी का अलग हो जाना, दूसरी प्रेमिका का समुद्र के अंदर से निकल कर बाहर आ जाना , और तमाम मुश्किलों के बाद और प्रेमिका के कडक भाई की लाई डिटेक्टर के बावजूद उसे अपनी प्रेमिका मिल जाती है , हां नौकरी का फ़िर भी कोई पता नहीं और पनौती का लेबल लगा रहता है या हट जाता है ये तो साजिद खान के अलावा और कोई जान नहीं पाता


अभिनय के मामले में , बेशक अक्षय ने अपनी हंसोड छवि से परे हटकर खुद को पेश किया है मगर लगता है कि उनके चिपके बालों के साथ वाला लुक भी उनकी छवि को चिप्पू सा ही छोड गया है । रितेश खुद को रिपीट करते ही लगते हैं और शायद इसमें वे स्वाभाविक से ही दिखते हैं । लारा जहां रितेश से बडी दिखीं हैं वहीं दीपिका खूबसूरत तो दिखी हैं , मगर पूरी फ़िल्म में यदि एक भी दृश्य में पूरे कपडे पहने हुए दिख जाती तों शायद कुछ अलग टेस्ट भी मिलता । इनके अलावा , बहुत समय बाद पर्दे पर दिखाई देने वाले रणधीर कपूर , के अलावा , छोटी भूमिकाओं वाले सभी कलाकार जैसे चंकी पांडे, जिया खान , अर्जुन रामपाल , बोमन ईरानी आदि ने अपनी भूमिका को रूटीन अंदाज़ में ही निभाया है । वैसे ऐसी कहानियों में अभिनय क्षमता दिखाने की गुंजाईश जरा कम ही रहती है । पिक्चर में तीन जीव तोते, शेर और बंदर , फ़िल्म के प्रोमो में देखने में जितने असरदार लग रहे थे उतने ही बेकार पिक्चर में देखने में लगे । कुछ दृश्य जरूर ही हंसाने वाले रहे हैं । गाने सभी भी बेस्वाद , और जबरन सुनाए जैसे लगे । "तुझे हैवेन दिखाऊंगी "जैसे गानों को जहां वाहियात गानों की श्रेणी में रखा जा सकता है तो वहीं फ़ुल वोल्यूम में गाये गाने , "वोल्यूम कम कर " बस एवें ही था । जो गाना थोडा बहुत पसंद किया जा रहा है वो भी रिमेक ही है "अपनी तो जैसे तैसे कट जाएगी " । विदेशी लोकेशन्स पर शूट करने में जितना मजा कलाकारों को आया होगा उतना ही कैमरे को भी आया है , फ़ोटोग्राफ़ी सुंदर बन पडी है । कुल मिलाकर ऐसी फ़िल्मों के लिए आपको ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पडता है क्योंकि येकुछ दिनों में ही , ये किसी किसी चैनल पर दिखाई जाएगी

8 टिप्‍पणियां:

  1. भाई अजय, अब कोई हाउस फ़ुल्ल नाम भी ना रखे का फ़िलम का.
    सार्थल लेखन को बढावा दे और ऊल जुलूल पोस्टो पर प्रतिक्रिया से बचे.
    सादर
    हरि शर्मा
    http://hariprasadsharma.blogspot.com/
    http://koideewanakahatahai.blogspot.com/
    http://sharatkenaareecharitra.blogspot.com

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  2. जानकारी के लिये ओर हमारा पैसा ओर समय बचाने के लिये धन्यवाद

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  3. अजय भाई , आपने हमारे जो पैसे बचा दिए , उसमे से आधे आपके हुए ।
    साभार ।

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  4. समय और पैसा दोनों बचा लिया...आभार.


    ________________________
    'शब्द-शिखर' पर ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!

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  5. पुत्र
    तू कुछ दिनो से उदास लग रहा है
    बेमतलब की फ़िल्मे मत देखा कर,मन विचलित हो जाता है
    पापा जी

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..

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