सवाल सिर्फ़ उन मुद्दों का है .....झा जी कहिन
आखिरकार न्यायपालिका ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार से पूछ ही लिया कि आखिर संविधान के किस कानून के तहत रात के एक बजे इतनी भारी पुलिस बल की सहायता से वहां चुपचाप सो रहे लोगों को मार पीट कर खदेडने की कार्यवाही की गई । ध्यान रहे कि सर्वोच्च न्यायालय भी इन दिनों उसी काले धन के मुद्दे पर बार बार सरकार को लताड लगाने में लगा हुआ है जिसकी पेशी में सरकार हर बार बेशर्मी से साष्टांग करके कह आती है कि , खाता धारकों ने नाम पता तो हैं लेकिन बता नहीं सकते अदालत को ।सरकार को इसका जवाब देते समय ये भी बताना होगा कि जो सरकार गुर्जरों द्वारा आरक्षण की मांग को लेकर पूरी उत्तर भारतीय रेल व्यवस्था तक को ठप्प किए जाने के बावजूद उन्हें टस से मस नहीं करवा पाई , एडी चोटी का जोर लगवाने के बावजूद भी पायलटों की हडताल नहीं खत्म करवा सकी उसे आखिरकार किन कारणों से ऐसा करने के लिए मजबूर होना पडा । इससे अलग जनलोकपाल बिल के लिए लड रही अन्ना टीम ने भी सरकार की इस हरकत को देखते हुए एक दिन के अनशन का ऐलान कर दिया है । अब बात रही जनता की , तो हालिया जूता प्रकरण से ये अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है कि बंद कमरों में खास इसी मकसद से पहुंचने वाले लोगों पर राजनेता अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं तो फ़िर क्या अब सार्वजनिक तौर पर उनमें आम जनता का सामना करने की हिम्मत बची है । क्या दिग्विजय सिंह और कपिल सिब्बल जैसे नेता इतनी ही बहादुरी जनता के बीच पहुंच कर भी दिखा सकते हैं ।
पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम को गौर से देखने पर कुछ बातें स्पष्ट हो जाती हैं । रामदेव बाबा ने महीनों पहले से प्रचारित कर रखा था कि रामलीला मैदान में वे और उनके साथ खडे बैठे लोग किस उद्देश्य से इकट्ठा होने जा रहे हैं । आज बेशक सरकार ये दलील दे कि उनसे अनुमति तो योग शिविर के लिए ली गई थी आमरण अनशन के लिए नहीं लेकिन क्या सरकार ये बता सकती है कि " भ्रष्टाचार मिटाओ " के पोस्टर से अटे पडे देश पर सरकार की नज़र क्यों और कैसे नहीं पडी , क्या रामदेव ने अनुलोम विलोम या कपाल भारती करने के लिए पोस्टर लगाए थे । यानि कि सरकार को बखूबी पता था कि क्या होने वाला है । सरकार की मंशा इतनी ही साफ़ थी , जैसा कि वो दिखाने जताने की कोशिश की जा रही है तो फ़िर रामदेव को होटल के बंद कमरे में बुलाकर क्यों और कैसी वार्ता की गई । सरकार ने क्यों नहीं कहा कि विदेशों में काले धन के मुद्दे से निपटने के लिए सरकार कडा कानून लाने जा रही है फ़िर चाहे उस कानून के दायरे में फ़ंस कर कोई नेता जेल जाए या या मंत्री या बाबा । कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह जैसे बडबोले नेताओं को जानबूझ कर सरकार की तरफ़ से हर बार क्यों इस तरह के मसलों से निपटने के लिए भेजा जाता है , इसका बेहतर कारण तो वही बता सकती है । बंद कमरे में एक चिट्ठी लिखवाई जाती है , इसके पीछे क्या मंशा रही हो ये तो वे ही जानें , लेकिन फ़िर उस चिट्ठी को सार्वजनिक करना वो भी ये कहते हुए कि सरकार ने तो अपना कर्तव्य निभा दिया और अब बाबा रामदेव को निभाना है । क्या उस चिट्ठी को लिखवाना जरूरी थी , और उसे सार्वजनिक करना भी जरूरी था । इसके बाद जो हुआ वो अपेक्षित ही था , और घटनाक्रम को तेज़ी से बदलने के लिए सरकार ने सोती हुई महिलाओं बच्चों तक पर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोडने जैसा नृशंस कदम भी उठा लिया । और अब जूता प्रकरण पर मची हुई हाय तौबा ।
यानि कुलमिलाकर ये कि सरकार को अब किसी को कोई लिखित आश्वासन दिए जाने की जरूरत नहीं है कि वो स्विस जैसे काले धन को वापस लाए जाने के लिए क्या , कब और कैसे कोई कानून बनाने जा रही है । और वो मुद्दा पीछे चला गया , कम से कम फ़िलहाल तो जरूर ही सरकार ने लोगों का ध्यान उससे हटाकर अन्य बातों की तरफ़ मोड दिया है । अब इससे पीछे चलें तो जनलोकपाल बिल के लिए जब अन्ना हज़ारे ने जनांदोलन शुरू किया था तो सरकार ने अपने सारे दांव चलने के बाद एक आश्वासन देकर जान तो छुडा ली , किंतु अगले ही दिन से सीडी प्रकरण , अन्ना हज़ारे के ट्रस्ट पर उठने वाले सवाल जैसे कदम उठाने लगी । उद्देश्य स्पष्ट था कि किसी भी तरह से सरकार लोगों का ध्यान वास्तविक मुद्दे से भटका कर कहीं और ले जाया जाए । अब जबकि अन्ना टीम ने बैठक का बहिष्कार का निर्णय ले लिया है तो फ़िरसे सरकार मन ही मन जरूर राहत महसूस कर रही होगी कि उसे वो कानून बनाने से फ़िलहाल तो मुक्ति मिल ही गई है जिसे आधार बना कर न सिर्फ़ सरकार को बल्कि पूरी भारतीय राजनीति और राजनेताओं को जनसेवा का असली मकसद जनता समझा सकती थी । सरकार सूचना का अधिकार कानून पास करके खुद को फ़ंस जाने देने की एक गलती पहले ही कर चुकी है इसलिए अब वो जल्दी उसे दोहराने से बचना चाहेगी ।
सरकार इन सारे घटनाक्रमों में जो एक बात नहीं समझ रही है कि , अन्ना हज़ारे या बाबा रामदेव से लोगों के जुडने का कारण सिर्फ़ उनकी अंधभक्ति या उनपर अटूट विश्वास जैसा कारण ही नहीं है बल्कि जनता अब चाहती है कि उन मुद्दों को आगे लाया जाए , उनपर बहस हो , उन पर कानून बने और ये स्थिति बदले । कल एक आम आदमी के आक्रोश का शिकार होते होते बचे राजनेता को देख कर सरकार को अब ये एहसास होना चाहिए कि जनता के दिमाग में क्या चल रहा है । पूरा देश अलग अलग तरह से अपनी प्रतिक्रिया दे रहा है लेकिन उद्देश्य एक ही है कि सरकार की नीयत और आचरण में बहुत खोट है । तमाम तर्कों , बहसों और आंदोलनों पर एक मिनट में ब्रेक लग जाएगा , आम लोग भी चुप्पी साध लेंगे अगर सरकार फ़ौरन ही विशेष सत्र बुलाकर इन तमाम कानूनों को बनाए क्योंकि असली मुद्दा यही है , लेकिन क्या सरकार ऐसा कर पाएगी ? बस इसी लेकिन ने आज अन्ना हज़ारे , बाबा रामदेव और जाने कितने आक्रोशित मन को हवा दे दी है ।
भाई,सरकार और बाबा दोनों को अपनी-अपनी फिकर थी,सौदेबाजी में थोड़ा फेरबदल हुआ कि मोहरे और चालें बदल गईं !
जवाब देंहटाएंहमें पता है कि आपकी रिपोर्ट को ही न्यायालय ने संज्ञान में लिया होगा !
चलो,वहीँ से शायद कोई राह निकले !
जवाब कौन देगा? क्योंकि मुखिया को तो कुछ पता होता नहीं। शीलाजी ने भी हाथ झाड़े हुए हैं। खोज का विषय यह है कि पुलिस को निर्देश किसने दिया?
जवाब देंहटाएंअजय भाई यह सब नूरा कुश्ती के सिवा कुछ नहीं है... जब सरकार ही नहीं बाबा को भी पता था कि वहां एक लाख से ज्यादा लोग पहुँचने वाले हैं तो क्यों पुलिस को 5000 बताया गया? और जब सबको पहले ही पता था कि अनशन करना है तो क्यों योग शिविर कहा गया??? क्या यहाँ केवल "दूसरों को नसीहत" वाली कहावत नहीं चरितार्थ हो रही है? क्या बिना खुद को बदले भ्रष्टाचार मिटाया जा सकता है?
जवाब देंहटाएंप्रेमरस
ऐसा क्यो करेगी सरकार अजय जी…………आप तो बैठे बैठाये उसकी लुटिया डुबोने पर लगे हैं आखिर फ़ंसेंगे तो उसके ही अपने ना……………ना ना ऐसा जुल्म मत कीजिये जनाब
जवाब देंहटाएंनतीजा कही ढाक के तीन पात न हों!
जवाब देंहटाएंबात दर-अस्ल मुद्दों को भटकाने की ही है... अब देखिये न हमारे शाह नवाज जी भी इसी में भटक गये. यही कामयाबी है सरकार की..
जवाब देंहटाएंआपका विश्लेषण और निष्कर्ष बिल्कुल सही है..
एक ब्लॉगर ने कहा है कि अगर सारे कानून ठीक से लागू हों,तो पूरा देश जेल में होगा। इतने भ्रष्टाचार के बीच,थोड़ी बहुत उम्मीद भी सिर्फ न्यायपालिका से ही लगाई जा सकती है।
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