कहते हैं कि संगत का असर बहुत पड़ता है और बुरी संगत का तो और भी अधिक | बात उन दिनों की थी जब हम शहर से अचानक गाँव के वासी हो गए थे | चूंकि सब कुछ अप्रत्याशित था और बहुत अचानक हुआ था इसलिए कुछ भी व्यवस्थित नहीं था | माँ और बाबूजी पहले ही अस्वस्थ चल रहे थे | हम सब धीरे धीरे आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे और भरसक प्रयास कर रहे थे कि किसी तरह से सब कुछ बिसरा कर आगे बढ़ा जाए |
चूंकि शहर से अचानक आया था और तरुणाई की उस उम्र में वहां तब तक कोई दोस्त नहीं बन सका था | गाँव के बहुत से अनुज जिनमें बहुत से चचेरे भाई थे वे सब दोस्त की तरह होते जा रहे थे | गाँव में होने के बावजूद आदतन पहनवा आदि शहरी जैसा ही था | शर्ट को पैंट के अंदर रखना , बेल्ट लगाना , गाँव से बाहर जाते समय जूते पहनना | कुल मिलाकर कोई दूर से ही देख कर समझ सकता था कि हम ग्रामीण परिवेश से अलग हैं | यही बात उस समय गाँव के कुछ हमउम्र लड़कों को नहीं भा रही थी |
इनमें से एक युवक थे संजीव ,जिनके पिताजी उस समय गाँव के सबसे रसूखदार ,जमींदार और धनवान व्यक्ति थे | संजीव की परवरिश लाड प्यार से हुई थी और बोर्डिंग स्कूल आदि में भी रहे थे सो ज़ाहिर तौर पर बहुत अधिक शरारती , उद्दंड थे | छोटी छोटी बातों पर मारपीट कर लेना झगडा कर लेना उनकी आदत थी | हमारी निकटता की शुरुआत भी एक ऐसी ही झड़प से हुई जो मेरे लिए बिलकुल नई बात थी | संयोगवश संजीव के सबसे कनिष्ठ चाचा जी ,जिन्हें हम प्यार से भैया बुलाते थे , बात उन तक पहुँच गयी और उन्होंने संजीव को बहुत डाँट लगाई |
मगर असली कहानी तब शुरू हुई जब एक रात गाँव में पड़ी डकैती की घटना में उन भैया की ह्त्या कर दी गयी | पूरा गाँव उबाल खा गया और संजीव अब पहले से अधिक उग्र हो चुके थे | देशी कट्टे और जाने कैसे कैसे हथियार से लैस होकर बिलकुल दिशाहीन होकर पढ़ाई लिखाई त्याग कर एक अलग ही राह पर चल पड़े थे | अपने कुछ साथियों के साथ ही बिलकुल बिगड़ैल और असंतुलित | एक बहुत बड़ी दुर्घटना का शिकार भी और जान जाते जाते बची |
उनके चाचा और हमारे भैया के अचानक चले जाने के बाद हम दोनों के बीच का वैमनस्य जाता रहा | संजीव अब हमारे साथ ज्यादा समय गुजारते | हमारे मंडली में मैं और मेरे चचेरे अनुज समेत मेरे जैसे ही कुछ मित्र थे | हम शाम को बैठ कर बातें करते ,इधर उधर ,गाँव घर ,राजनीति ,समाज ,काली पूजा आदि की | धीरे धीरे संजीव ने अपने उन बिगड़ैल साथियों के साथ करीबी कम कर हमारे साथ नज़दीकी बढ़ा ली | चूंकि घर पर उनके लिए हमेशा चिंता बनी रहती थी सो हम भी यही कोशिश करते कि वो घर पर ज्यादा समय दें | हम खुद भी झिझकते हुए उनके घर पर जाने लगे | एक दिन संजीव के पिताजी (हमारे विद्या भैया ) ने कहा कि ,जब से संजीव आप लोगों के साथ समय बिताने लगा है मेरी चिंता उसको लेकर थोड़ी कम हो गई है | सच कहूं तो निश्चिंत सा रहने लगा हूँ | वो उनसे ज्यादा हमें संतोष देने वाली बात थी |
बाद में हम एक साथ काँवड़ लेकर वैद्यनाथ धाम जाते रहे तो कभी उनकी छोटी बहन के विवाह में हम सब संजीव के साथ कंधे से कन्धा मिला कर ऐसे डटे कि ग्रामीण भी भौंचक्के रह गए | उन दिनों उनके विवाह में जाने के लिए अपनी ज़िद पर वे हमारे लिए अलग से एक कार का इंतज़ाम कर बैठे | आज संजीव गृहजिले मधुबनी में एक रसूखदार भू व्यवसायी के रूप में स्थापित हैं | अपने छोटे से परिवार में दो सुपुत्रों के साथ पूर्ण गृहस्थ जीवन बिता रहे हैं | संजीव के बाबूजी हमारे विद्या भैया दस वर्षों तक गाँव के मुखिया रहे व अब संजीव की माता जी हमारे गाँव की मुखिया हैं |
संजीव की दिलेरी , साहस और जीवटता को यदि उस समय गलत दिशा में जाने से नहीं रोका जा पाता तो ये कहानी मैं आपको नहीं सुना पाता। ......... हाँ ये उन दिनों की बात थी
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 21 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद
शुक्रिया और आभार
हटाएंबहुत सुंदर संस्मरण।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया और आभार मित्र
हटाएंबहुत सुंदर! अच्छी संगत जिंदगी बदल देती है ।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया और आभार मित्र | प्रतिक्रया से उत्साह बढ़ता है
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 24वीं पुण्यतिथि - सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबुलेटिन टीम का आभार हर्ष | पोस्ट को मान व स्थान देने के लिए शुक्रिया
हटाएंअच्छी मित्रता बड़ी अनमोल होती है.. बहुत सुन्दर संस्मरण ।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया और आपका आभार मीना जी
हटाएंकोई शक नहीं !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर
हटाएंarrey waah...acchi sangat he aapki yaani ke
जवाब देंहटाएंachhi sangat beth ke sangi bdle roop...jaise mil ke aam se meethi ho gyi dhoop..
acche lekhan ke liye bdhaayi...
mere blog tak aane aur chay ki saraahnaa ke liye aabhar aapkaa
acchaaiye yuhin bikherte rahiye...
इतनी प्यारी सी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार और स्नेह मित्र | स्नेह और साथ बनाए रखियेगा | शुक्रिया
हटाएंसच संगति अच्छी हो तो उसका फल सुखदायी ही होता है, संजीव को अच्छी संगति मिली इसलिए कहानी प्रेरक और अनुकरणीय बनी. लड़कपन्न में जिसने भी सही राह पकड़ी वह तर गया समझो
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
बहुत बहुत शुक्रिया कविता जी | टिप्पणियां उत्साह बढ़ाती हैं और लिखने को भी प्रेरित करती हैं | स्नेह बनाए रखियेगा
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