आज
साठ सालों के बावजूद भी अब तक क्यों नहीं ऐसा कोई कानून पहले के राजनैतिक
दलो और उनके अगुआओं ने लाने का प्रयास , संजीदा प्रयास किया ..सारी
जिम्मेदारी आम आदमी के कंधों पर ही । चुनाव लडने की चुनौती फ़िर जीतने के
बाद सबके डर कर पीछे भागने और पहले आप पहले आप वाला नया फ़ार्मूला लगा कर
पुन: आम आदमी के कंधे पर ही बोझ लादा गया कि , पुलिस , प्रशासन , कानून ,
व्यवस्था राजनीति और खुद आम लोगों के विरोध और असहयोग के बावजूद भी सिर्फ़
पचास दिनों में पांच सौ रिपोर्ट कार्ड भी तैयार कर दिए ...अजी छोडिए , लात
मारिए इस सरकार को , हम भी यही कह रहे हैं ...लेकिन सिर्फ़ , इतना और भी
बताते जाइए कि आखिर बाकी बची हुई पार्टियों को क्यों नहीं ये जिम्मेदारी दी
जा रही है कि वे आएं और लाएं न वैसा मजबूत कानून , जो आपके अनुसार ही
संवैधानिक और शायद कारगर भी होगा ...बात को घुमा फ़िरा कर कहना मुझे भी नहीं
आता इसलिए सीधा और सपाट कहता हूं ....हां भाषाई मर्यादा का ख्याल जरूर
रखने का प्रयास करता हूं । शेष सबके अपने अपने मत और अपनी अपनी विचारधारा
है जिसका सदैव स्वागत किया जाना चाहिए , आप जिसे भगोडा कह रहे हैं उसे हमने
मलाईदार नौकरियों के बाद मलाईदार कुर्सी को भी ठेंगा दिखाते हुए देख लिया
है ....अभी तो अपनी बस थोडी सी ...इत्ती सी समझ पे यकीन रखने का मन है वही
कर रहे हैं ..
.
दिल्ली
की नए नए लौंडों द्वारा बनाई गई अराजक सरकार औंधें मुंह गिर गई , चलो
अच्छा हुआ ।ये सत्ताइस बावले अब जो मर्ज़ी करते रहें , बांकी के मिल कर देश
के विकास और समस्याओं के लिए यकीनन ही कुछ बेहतर और बडा करके दिखाएंगे ,
हमें भी पूरा विश्वास है ...और ये बिल था क्या जी ???? फ़ालतू के क्लॉज़
....पकडे जाने पर सारा माल जब्त ..नौकर चाकर रिश्तेदारों तक की जांच कराने
का प्रावधान , कहां अभी साल छ: महीने की सज़ा , जमानत और कहां उम्र कैद
..अबे ऐसा होता है क्या ..दिस इज़ डेमोक्रेटिक कंटरी मैन
...हां
संसद ने इससे पहले एक बिल पास किया तो आस्तीन चढा के छोकरे ने कैमरे के
सामने ही नानसेंस कहके फ़ाड के फ़ेंक दिया ...सुना एक अलग वाले को लेकर तो
चक्कूबाज़ी और मरचाई बम तक चला पाल्लामेंट में ............अरे ऊ ई नहीं
किया , ऊ नहीं किया , भगोडा निकला , बेकार था , वोट बेकार गया
...........अब हो गया न ई तो ...चलिए अब आप काम पर लगिए न ...पास करिए
लोकपाल विधेयक , महिला आरक्षण विधेयक , न्यायिक सुधार अधिनियम , जित्ते भी
हैं फ़ाईल में ..और हां पकड पकड के ठूंसिए जेल में साले चोरों को ,घपले
घोटालेबाजों को , हाकिमों और दारोगाओं को ............और नहीं करने का
माद्दा है तो ..........तो फ़िर आप गरियाते रहिए ...हर नई सोच , हर नए
विकल्प और हर नए प्रयास को
.
आगामी
लोकसभा चुनावों में यदि फ़िर से कोई राहु केतु धूमकेतु तीसरा चौथा पांचवा
मोर्चा टाईप , भाजपा की कुंडली में आकर नहीं बैठ गई तो यकीनन अगली केंद्र
सरकार चलाने की बागडोर भाजपा के जिम्मे ही आएगी , ये दिख और महसूस भी हो
रहा है किंतु आजकल जिस तरह से देख रहा हूं ,कि भाजपा के प्रबल समर्थक अपने
मिशन 2014 के लिए सकारात्मक और उर्ज़ावान माहौल बनाने की बजाय , जिस तरह से
अपनी पूरी ताकत , अपनी पूरी सोच , अपनी पूरा ध्यान सिर्फ़ आलोचना में , वो
भी अपने चिर प्रतिद्वंदी कांग्रेस की नहीं बल्कि देश में सिर्फ़ सत्ताइस
..सिर्फ़ सत्ताइस विधायकों वाली पार्टी पर निशाना लगा रहा है उससे तो लगने
लगा है मानो भारत चीन पाकिस्तान से मुकाबले की बात छोड कर श्रीलंका भूटान
को अखाडे में चुनौती देने की कवायद कर रहा हो .........
.
एक
दिलचस्प बात ये है कि दिल्ली की नई राजनैतिक सोच और विकल्प बनकर उभरने को
लेकर अन्य राज्यों के मित्र इतने व्यग्र हैं कि मानो अपने राज्यों में हो
रहे नकारात्मक सकारात्मक को छोड कर सिर्फ़ और सिर्फ़ फ़िरती हुई झाडू पर नज़र
गडाए बैठे हैं , इत्तेफ़ाकन कि हम जैसे दिल्ली में बैठे , हम जैसे दोस्त
फ़र्क को महसूसते हुए इस परिवर्तन के प्रयास को निरंतर बल दे रहे हैं वहीं
अन्य प्रांतों के मित्र भी लगातार ही दिल्ली राजनीति के इस नए प्रयोग को
पूरी तरह फ़ेल करार देने के लिए उद्धत हैं , अच्छा है , अगर ये प्रयास पूरी
तरह से दम भी तोड देता है तो भी ये कम से कम इतना तो स्पष्ट कर ही देगा कि
अब इस देश में सियासत की सूरत बदलने की सोच रखना बेमानी साबित होगा , वे
कुछ भी नहीं हारेंगे , उन्होंने जीता ही क्या अब तक ..............
.
मैं
हमेशा इस बात में यकीन रखता हूं कि यदि हमें किसी बात ,व्यक्ति , व्यवस्था
, आदि का विरोध करना है तो बेशक करना ही चाहिए , लेकिन क्या ये जरूरी है
कि हम उसमें लेखकीय भाषा की थोडी सी भी गरिमा तो बनाए रखें , आखिर हम यहां
उस अंतर्जाल पर लिख पढ रहे हैं जहां हिंदी में जो थोडा बहुत लिखा जो लिखा
जा रहा है हम भी उसका एक हिस्सा हैं , गरियाने का मतलब ये थोडी है कि आप
गली मोहल्ले को यहीं खडा कर लें ।
और हां किसी भी बहस से परे और
बहुत सारी बहस के बावजूद मैं आपसे यही कहूंगा कि यदि व्यवस्था में रहकर ,
व्यवस्था से लडने वाले इन जैसे कुछ पागलों , बावलों पर आप यकीन नहीं करेंगे
, और कोई जबरन नहीं कहेगा यकीन करने को ये तय है , तो फ़िर निश्चित रूप से
आपको ये अधिकारपूर्वक कहना ही होगा कि व्यवस्था दूषित और भ्रष्ट नहीं है ,
बल्कि हम सब ही धूर्त , झूठे और भ्रष्ट होने को तत्पर हैं ।
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कुछ
अराजकतावादियों द्वारा पेश किया गया अंसवैधानिक बिल के पेश ही न हो पाने
से ये हुआ है कि अब दिल्ली वालों बिजली पानी के सारे अंबानी मार्का
संवैधानिक बिल मिल सकेंगे , जल्दी ही प्रदेश पूरी तरह से संवैधानिक
व्यवस्था से चुस्त दुरूस्त दिखाई देगा , कोई छापेमारी , कोई स्टिंग फ़िटिंग
का चक्कर नहीं , दरोगा जी भी खुश और हाकिम भी ,,,..बकिया बचा आम आदमी
..........ऊ झाडू लगाएगा , लगाते रहो
......
जरा
उन लोगों को भी याद दिलाता चलूं कि इन सबके बीच उस गृहिणी की भी सोचिए कि
जिसके पति पर बडका बंगला मांगने के बाद छोटका में रहने के लिए अभी जुम्मे
जुम्मे आठ दिन भी तो नहीं हुए और वही क्यों पूरी बटालियन ही तो अभी शिफ़्ट
हुई , अभी तो सामान जमाया भी नहीं होगा ठीक से , फ़िर वापस ....ई नाजुक
जिगरे वाले के बस का नय है जी ..ई बौरहवा सब इकट्ठा हो रहा है ....भारी
.............बहुत भारी पडने वाला है
.
चलिए
तो फ़िर आज ये भी खुल्लम खुल्ला तय करते है सचमुच ही सियासत चाहती है कि अब
सडक पे रहने मरने वाला हर आम आदमी खुद उससे पंजा लडाए तो यही सही, दिल्ली
को गरियाने वाले तमाम दोस्तों को पुन: आमंत्रण कि देखिए ,अगले फ़िर मैदान
में आ गए हैं .....जम के गरियाइए
.
देखिए
जी अगर समाज से गंदगी को काटकर फ़ेंकना चाहते हैं तो फ़िर तेवर तेज़ाब सा
रखना ही होगा , तेल लेने जाए कुर्सी और पोस्ट , सरकारी नौकर को खूब पता
होता है छोटी बडी नौकरी का फ़र्क , ये नौकर हैं , मालिक नहीं हैं , इसलिए
निश्चित रूप से यदि व्यवस्था ओह , मेरा मतलब संवैधिनिक व्यवस्था को ऐसा लग
रहा था कि सिर्फ़ जांच की बात कह जाना और जांच की आंच को धधकाए रखना सरासर
अराजक है तो फ़िर ऐसे नौकरों को यकीनन ही अब पद को ना कह देना ही श्रेयस्कर
है .....आम आदमी को अब ये भी दिखा देना चाहिए कि हमारे ठैंगे से ..लो रखो
अपनी कुर्सी और खेलो सरकार सरकार
.
चलिए
जी तो अब ये लगभग तय हो गया है और जैसा कि मैं अपने स्टेटस में इस सरकार
के बनने के पहले दिन से कहता आ रहा हूं कि इस सरकार द्वारा धडाधड दर्ज़ कराई
जा रही वैधानिक और सही शिकायतें, जिनके बारे में निश्चित रूप से हर भारतीय
थोडा बहुत जानता है या अंदाज़ा लगा लेता है , जितनी पैनी होती जाएगी इस
सरकार की मैय्यत का दिन उतना करीब होता जाएगा , तो अब ये तय हो गया कि आज
और अभी के बाद से दिल्ली में कुछ भी अराजक नहीं हो पाएगा , सब कुछ 42 घनघोर
संवैधानिक लोगों के हाथ में बागडोर आ गई है , हद है साला अईसा भी कोई करता
है क्या कि सोटा ऐसा तैयार किया जाए कि जिसे शक्लों और रुतबों की पहचान ही
न हो और हो तो उलटा बिफ़र के दुगने वेग से पीठ पर पडे ..........कल से सब
कुछ संवैधानिक होगा लेकिन ई भांड मीडिया को देखिए , अजबे बाजीगरी है , साला
आज टोटल बहस चरस में बह गया जईसे , सब झाडू खाने वहीं पहुंचा हुआ है , अबे
साले इत्ते बेसरम हो कईसे बे , एक्के घंटा पहिले गरियाते हो अगले में सीधा
दंडवत दिखते हो
...माने सब कुछ मार्केटवे तय कर रहा है क्या बे
.
हम
आज साला उस जगह को पक्का खोज के ही दम लेंगे जहां से ई रोजिन्ना का "डे"
सब डिकलियर किया जाता है , अरे हद है जी , हम लोग को अपना डे मनाने का साला
चांसे नय दे रहा है ...नाखून डे से लेकर दातुन डे तक धडाधड मन रहा रोज़ के
रोज़ लोगबाग इत्ते बिज़ी हो चले हैं ..हमसे तो रोज़ छूट जा रहा है ..नौकरी डे आ
घर का ड्यूटी डे गजब बजाते हैं रोज़ ...हर डे डिफ़रैंट होता है ..हर डे एकदम
खास होता है , जैसा पहले कभी नहीं होता न बाद में होता है ...............
.
ऑन
ए सीरीयस नोट मुझे ऐसे वक्त पे एक खास बात जो ध्यान आती है वो ये कि आखिर
आज़ादी के साठ बरस बाद भी हमें सर्वोच्च न्याय पाने के लिए बहुत ही कम
फ़ैसलेकार अब तक मिल रहे हैं और ठीक ऐसा ही कुछ जनप्रतिनिधियों के मैथ का भी
है ..अबे इतने बडे पेट वाले देश के पास सोचने करने के लिए क्या सिर्फ़ और
सिर्फ़ साढे पांच सौ लोग ही होने चाहिए , क्यों नहीं पांच हज़ार या शायद उससे
भी ज्यादा...........कम लोगों पर कुछ ज्यादा दबाव डाल कर हम उनपर कुछ
ज्यादा ही डिपेंडेंट नहीं हो गए हैं ......साला नौकरी सरकारी है , वो भी
सिर्फ़ पांच साल की ..और कमाल देखिए कि ..भाई लोगों ने पुश्तैनी बना डाला है
...........मिर्ची और चाकू ..धंधे में ही चलाए जाते हैं ...नौकरियों में
चाकूबाजी नहीं हुआ करती ..............और हां एक आखिरी बात ..अराजकता इसे
कहते हैं .......माने कि ओसहिं बताए हैं
कितना कुछ होता देशक्षेत्रे, छोटा छोटा मिलाकर पूरा भोजन हो जाता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक टिप्पणी जी । शुक्रिया और आभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (18-02-2014) को "अक्ल का बंद हुआ दरवाज़ा" (चर्चा मंच-1527) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पोस्ट को मान व स्थान देने के लिए आपका आभार और शुक्रिया
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