नई सरकार के कामकाज से पहले ही जिस एक तथ्य को मुद्दा बना कर
उस पर बहस की और कराई जा रही है ,वो है नवनियुक्त सरकार के प्रधानमंत्री
द्वारा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के रूप में टीवी की मशहूर अभिनेत्री
सुश्री स्मृति जुबिन ईरानी की शैक्षणिक योग्यता जो , अंतर स्नातक बताई जा
रही है , की नियुक्ति । ज्ञात हो कि चूंकि मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत
ही शिक्षा मंत्रालय का काम भी आता है ,इसलिए इस बहस को और हवा दी जा रही
है कि इसके लिए किसी ज्यादा शिक्षित और योग्य सांसद को ये जिम्मेदारी दी
जानी चाहिए थी ।
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ऐसा शायद पहली बार ही हो रहा है कि ,किसी सांसद को सौंपे गए दायित्व को उसके हाथ में लेने से पहले ही उसकी शैक्षणिक योग्यता को लेकर उसकी काबलियत पर न सिर्फ़ शक जताया जा रहा है बल्कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा स्तरहीन छींटाकशी तक की जा रही है । इतना ही नहीं सुश्री स्मृति ईरानी द्वारा पूर्व में किए गए कार्य चाहे वो मैकडोनाल्ड में वेट्रेस की नौकरी हो या बतौर टीवी अभिनेत्री ,उनको आधारित करके उनपर निजि हमले भी किए जा रहे हैं । और दिलचस्प बात ये है कि जो पार्टी इस पूरे मुद्दे को व्यत्र में तूल दे कर एक अलग दिशा दे रही है ,खुद उसी पार्टी के दो शीर्ष राजनेता जो पूर्व प्रधानमंत्री तक का पद संभाल चुके हैं , स्वर्गीय इंदिरा गांधी और स्वर्गीय राजीव गांधी की शैक्षणिक योग्यता भी अंतरस्नातक ही थी । इत्तेफ़ाकन ये तथ्य भी उल्लेखनीय लगता है कि बिहार में एक समय ऐसा भी आया था जब मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपनी गृहिणी पत्नी जो पूरी तरह निरक्षर थीं उन्हें सीधे मुख्यमंत्री की गद्दी न सिर्फ़ सौंप दी बल्कि उनकी पत्नी राबडी देवी ने राजकाज भी देखा भी
.
जहां तक संवैधानिक स्थिति की बात है तो संविधान निर्माताओं ने कुछ सोच कर ही जनसेवा के लिए किसी की शैक्षणिक योग्यता न आडे आए ,इसलिए ही राजनीति से लेकर संवैधानिक पद के लिए कोई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं रखी ।और इतिहास इस बात का गवाह है कि बहुत बार ही कम शिक्षा प्राप्त जनसेवकों ने सिर्फ़ अपनी स्पष्ट नीयत और दृढ आत्मविश्वास से ऐसे कार्य कर दिखाए हैं जो मील का पत्थर साबित हुए हैं । हां वर्तमान परिदृश्य में इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता या आम जनमानस की ,राज़नीति व राज़नेताओं से ये अपेक्षा उचित ही लगती है कि उनके प्रतिनिधि उच्च शिक्षा प्राप्त काबिल लोग हों ,किंतु मात्र शैक्षणिक डिग्री को ही योग्यता का पैमाना माना जाए ये कहीं से भी उचित नहीं लगता ।
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यहां मुझे ब्लॉगर मित्र सुरेश चिपलूणकर जी द्वारा उपलब्ध कराया गया ये तथ्य यहां रखना समीचीन लग रहा है जिसे देखने के बाद आसानी से ये समझा जा सकता है कि एक जनप्रतिनिधि सांसद के रूप में उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन कितनी निष्ठा और शिद्धत से किया है , और स्मृति ईरानी के व्यक्तिव का आकलन करने वालों को खुदबखुद इसकी तुलना करके सारी स्थिति समझनी चाहिए ।
ऐसा शायद पहली बार ही हो रहा है कि ,किसी सांसद को सौंपे गए दायित्व को उसके हाथ में लेने से पहले ही उसकी शैक्षणिक योग्यता को लेकर उसकी काबलियत पर न सिर्फ़ शक जताया जा रहा है बल्कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा स्तरहीन छींटाकशी तक की जा रही है । इतना ही नहीं सुश्री स्मृति ईरानी द्वारा पूर्व में किए गए कार्य चाहे वो मैकडोनाल्ड में वेट्रेस की नौकरी हो या बतौर टीवी अभिनेत्री ,उनको आधारित करके उनपर निजि हमले भी किए जा रहे हैं । और दिलचस्प बात ये है कि जो पार्टी इस पूरे मुद्दे को व्यत्र में तूल दे कर एक अलग दिशा दे रही है ,खुद उसी पार्टी के दो शीर्ष राजनेता जो पूर्व प्रधानमंत्री तक का पद संभाल चुके हैं , स्वर्गीय इंदिरा गांधी और स्वर्गीय राजीव गांधी की शैक्षणिक योग्यता भी अंतरस्नातक ही थी । इत्तेफ़ाकन ये तथ्य भी उल्लेखनीय लगता है कि बिहार में एक समय ऐसा भी आया था जब मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपनी गृहिणी पत्नी जो पूरी तरह निरक्षर थीं उन्हें सीधे मुख्यमंत्री की गद्दी न सिर्फ़ सौंप दी बल्कि उनकी पत्नी राबडी देवी ने राजकाज भी देखा भी
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जहां तक संवैधानिक स्थिति की बात है तो संविधान निर्माताओं ने कुछ सोच कर ही जनसेवा के लिए किसी की शैक्षणिक योग्यता न आडे आए ,इसलिए ही राजनीति से लेकर संवैधानिक पद के लिए कोई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं रखी ।और इतिहास इस बात का गवाह है कि बहुत बार ही कम शिक्षा प्राप्त जनसेवकों ने सिर्फ़ अपनी स्पष्ट नीयत और दृढ आत्मविश्वास से ऐसे कार्य कर दिखाए हैं जो मील का पत्थर साबित हुए हैं । हां वर्तमान परिदृश्य में इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता या आम जनमानस की ,राज़नीति व राज़नेताओं से ये अपेक्षा उचित ही लगती है कि उनके प्रतिनिधि उच्च शिक्षा प्राप्त काबिल लोग हों ,किंतु मात्र शैक्षणिक डिग्री को ही योग्यता का पैमाना माना जाए ये कहीं से भी उचित नहीं लगता ।
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यहां मुझे ब्लॉगर मित्र सुरेश चिपलूणकर जी द्वारा उपलब्ध कराया गया ये तथ्य यहां रखना समीचीन लग रहा है जिसे देखने के बाद आसानी से ये समझा जा सकता है कि एक जनप्रतिनिधि सांसद के रूप में उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन कितनी निष्ठा और शिद्धत से किया है , और स्मृति ईरानी के व्यक्तिव का आकलन करने वालों को खुदबखुद इसकी तुलना करके सारी स्थिति समझनी चाहिए ।
"18 अगस्त 2011 को राज्यसभा सांसद बनने के बाद से स्मृति ईरानी ने 51 बहस में भाग लिया, 340 प्रश्न पूछे, और संसद में उनकी उपस्थिति 73% रही...
- (स्रोत राज्यसभा सचिवालय)."
अंत में इस बहस पर एक आम भारतीय की राय के रूप में सिर्फ़ इतना ही कहना है कि मेरी तरह का आम व्यक्ति ये सोच रहा है कि जहां बहस इस बात पर होनी चाहिए थी कि इस लोकसभा में , पिछली लोकसभा से कहीं अधिक सांसद ऐसे पहुंचे हैं जिन पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज़ हैं , चिंता राजनीति के अपराधीकरण पर व्यक्त की जानी चाहिए थी , आलोचना उनकी होनी चाहिए थी जिनका दामन दागदार है न कि , बहस इस बात पर की जानी चाहिए थी कि , एक बारहवीं पास किस तरह से मानव संसाधन मंत्री के रूप में कार्य कर सकेगी॥ बहरहाल ये भारतीय राजनीति में उतर आए कुछ छिछले लोगों की ओछी सोच का परिचायक बनके आम जन के बीच उजागर हुआ है ॥
अरे हां चलते चलते याद आया कि ये इस ब्लॉग की 200वीं पोस्ट है जी ......
अपने खटिए के नीचे कोई सोटा घुमा के नहीं देखता
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने सर
हटाएंशुक्रिया और आभार हर्ष ।
जवाब देंहटाएंलोगों का काम है कहना...
जवाब देंहटाएंहां सच कहा आपने
हटाएंकांग्रेस के लोग हताशा में कुछ भी कह सकते हैं। उसका संज्ञान नहीं लेना चाहिए। बल्कि मानसिक अवसाद से बचाने के लिए उन्हें चिकित्सीय परामर्श उपलब्ध कराना चाहिए।
जवाब देंहटाएंकांग्रेस के लोग हताशा में कुछ भी कह सकते हैं। उसका संज्ञान नहीं लेना चाहिए। बल्कि मानसिक अवसाद से बचाने के लिए उन्हें चिकित्सीय परामर्श उपलब्ध कराना चाहिए।
जवाब देंहटाएंआप की यह टिप्पणी बड़ी सन्तुलित है । राजनीति में कोई न्यूनतम योग्यता रखी जानी चाहिये , पर जब तक ऐसा नहीं होता स्मृति ईरानी की योग्यता को चुनौती देना ग़लत है । मैं उन का प्रशंसक हूँ ।
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया और सहमति के लिए शुक्रिया और आभार आपका सुधेश जी
हटाएंआपका आभार और शुक्रिया शास्त्री जी , पोस्ट को मान व स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी
हटाएंअजयजी मौज़ू मुद्दा उठाया है आपने। निश्चय ही पढ़े से गुना (गुणी ,गुणवान व्यक्ति )अच्छा होता है। भारतीय परम्परा स्वाध्याय है। परीक्षा पास करके महज़ डिग्रीशुदा होने की नहीं रही है। कबीर -तुलसी किस स्कूल में पढ़े। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एवं आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी स्वाध्याय से अर्जित ज्ञान के बल पर ही बनारस एवं पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में क्रमश :प्रोफ़ेसर नियुक्त किये गए। विरोध तब भी हुआ था।
जवाब देंहटाएंकबीर को तो फिर साहित्यिक कूड़ेदान में ही फैंक देना होगा।
वैसे शहज़ादे भी कोई कम नहीं हैं बीएससी आनर्ज़ (फस्ट ईयर )सैंट स्टीवंस से किया था। कब कहाँ से ग्रेजुएशन किया इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं है एमफिल का ज़िक्र है।
अजयमाकन जी ने हंस राज कालिज से इतनी लचर परम्परा तो अर्जित नहीं ही की होगी जिसका वह परिचय दे रहे हैं।
रविन्द्रनाथ टैगोर स्कूल ड्राप आउट थे बिल गेट्स भी उसी परम्परा की कड़ी रहे हैं डिज़्नी भी। अब्राहम लिंकन भी।थॉमस अल्वा एडिसन भी। अनेक नामचीन लोग हैं जिनपे मंद बुद्धि होने का ठप्पा लग चुका है इनमें जेकृष्णा मूर्ती और आइंस्टाइन भी शामिल हैं।
अब काम देखो चाय वाले का मकडानल्ड में पौछा लगाने वाली स्मृति दीदी का ,भारतीय मूल की शुद्ध बहु का।
विस्तार से प्रतिक्रिया देने के लिए आपका शुक्रिया और आभार विरेंद्र जी
हटाएंमुद्दा शायद चुनाव में गलत डिक्लेरेशन का है। पर इस चुनाव (जब डिक्लेरेशन पर सख्ती आयी है) के पहले के डिक्लेरेशन्स को टार्गेट करना व्यर्थ है।
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