वर्ष
२०१४ केआम चुनावों से पहले ही संभावित जीत के प्रति आश्वस्त से लगते
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने लिए अगले साठ महीनों की प्रशासनिक
सेवा देने का अवसर जिस आत्मविश्वास से मांगा था उसी समय कयास लगाए जाने लगे
थे कि आगामी सरकार बहुत सारे नए विकल्पों , विचारों , कार्यप्रणाली ,
प्रतिबद्धता व परिवर्तन लेकर आएगी ॥
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नई केंद्र सरकार को सत्ता
संभाले अभी इतना समय नहीं हुआ है कि उनके कार्यों ,निर्णयों व पहल का
विश्लेषण किया जाए किंतु न सिर्फ़ भारतीय राज़नीति , प्रशासन , विधायिका ,
कार्यपालिका , न्यायपालिका , वैश्विक अर्थ जगत सहित अंतर्राष्ट्रय कूटनीइक
जगत में भी आज नई केंद्र सरकार की स्पष्ट नीति व जनकल्याण की चर्चा हो रही
है । नई सरकार के अगुआ के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में
आज देश के पास एक अनुशासित , अनुभवी , कर्मशील व करिश्माई व्यक्ति का नाम
सामने आ चुका है ॥
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पिछले एक दशक में विकास होते रहने के
बावजूद भी सियासत व आम लोगों के बीच सामंजस्य की भावना निरंतर क्षीण होती
गई । नई सरकार ने इस नकारात्मक माहौल को पूरी तरह बदलते हुए न सिर्फ़ अपनी
बल्कि देश की छवि को नए दृष्टिकोण से सामने रखा ॥
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नई सरकार ने
तीव्र गति से कार्य करते हुए एक साथ बहुत मोर्चों पर अपनी कवायद तेज़ की ।
मंत्रालय के शीर्ष मंत्रियों , अधिकारियों, कर्मचारियों को अधिक श्रमशील
होकर कार्य करने के निर्देश, सूचना संचार , व समाचार माध्यमों की ताकत को
पहचाने हुए उनका भलीभांति उपयोग की शुरूआत , अर्थनीति , विदेशनीति, रक्षा ,
पर्यावरण , शिक्षा आदि सभी विषयों पर मंथन , विमर्श तथा योजनाओं की
रूपरेखा की तैयारी , वर्षों से मृतप्राय या औचित्यहीन हो चुकी संस्थाएं व
कानूनों की समीक्षा आदि मुद्दों पर सरकार न सिर्फ़ तेज़ी से फ़ैसले ले रही है
बल्कि उन्हें अमली जामा भी पहनाया जा रहा है ॥ ..
सरकार के
अस्तित्व में आने के ठीक अगले ही पल से जो कार्य होने लगा वह था सभी मित्र
देशों के साथ सामंजस्य व साझेदारी के नए रिश्तों के युग का आरंभ । वैश्विक
राज़नीति पर अपनी नज़र बनाए रखने वाले विश्लेषकों ने भारत की तरफ़ से सभी
मित्र देशों को मित्रता का आग्रह संप्रेषण पूर्व के ऐसे सभी प्रयासों से
कहीं अधिक गरिमापूर्ण व ओज़ भरा महसूस किया । इसका सकारात्मक परिणाम व
प्रभाव यह रहा कि पिछले तीन महीने की अवधि में ही भारत अब तक अपने मित्र
देशों से सौ से अधिक करार कर चुका है ॥
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चिर प्रतिद्वंदी
पडोसी के साथ भी ऐसी ही एक नई पहल का प्रयास किया गया किंतु पिछले कुछ
घटनाक्रमों के बाद फ़ौरन ही कठोर संदेश देते हुए वार्ता निलंबित भी कर दी गई
। वैश्विक परिदृश्य बेहद तीव्र गति से परिवर्तित हो रहा है । संसाधनों पर
आधिपत्य के वर्चस्व का संघर्ष अब उग्र होता जा रहा है । अस्थिर व निरंकुश
शासन व्यवस्थाओं की निकटता किसी भी राज्य की सुरक्षा व्यवस्था और अंतत:
मनुष्य सभ्यता के अस्तित्व के लिए सदैव खतरा उत्पन्न करते है । इन बदली हुई
परिस्थितियों में अमन चैन विकास और सृजन के पक्षधर वैश्विक देशों को भी
संगठित होना होगा । नई सरकार के सारे वरिष्ठ सेवक अपने-अपने क्षेत्रों के
लिए मित्रों का चयन व गठन कर रहे हैं ॥
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पिछले दो दशकों में
देश के राजनीतिक चरित्र व कार्यपालिका की अकर्मठता के अपने चरम पर पहुंच
जाने का एक बडा दुष्परिणाम ये निकल कर सामने आया कि न्यायपालिका को अति
सक्रियता व अतिक्रमण के इतने सारे अवसर उपलब्ध करा दिए कि समाज में व्याप्त
दुर्गुणों व दुर्बलताओं से ग्रस्त होकर खुद न्यायपालिका रुग्ण सी हो गई ।
भ्रष्टाचार से लेकर यौन उत्पीडन और पक्षपात से लेकर पदलोलुपता तक के आरोप
सहित वरिष्ठतम न्यायविदों द्वारा दर्ज़ की जा रही टिप्पणियों आदि ने नई
सरकार , जो कि प्रचंड बहुमत से सरकार में है को प्रोत्साहित किया कि वे
बेझिझक न्यायिक सुधारों को लागू करे सरकार दो बडे निर्णय, कोलेजियम
व्यवस्था में परिवर्तन एक वैकल्पिक व्यवस्था का प्रारंभ तथा उच्च
न्यायालयों में पच्चीस फ़ीसदी नई अदालतों/ पदों का सृजन । न्यायिक सुधारों
के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होने की बात कही जा रही है ।
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आम
लोगों से सीधे संवाद स्थापित करती यह सरकार "जनधन योजना" "डिजिटल इंडिया"
जैसी छोटी छोटी किंतु बेहद प्रभावकारी योजनाओं के साथ , गंगा नदी को
पुनर्जीवन देने के लिए विशेष प्रयास , कागज़ातों को सत्यापित कराये जाने की
अनिवार्यता की समाप्ति जैसी प्रक्रियात्मक राहत आदि कुल मिला कर ऐसा महसूस
किया जा रहा है जैसे देश एक अलग दिशा में जा रहा है । शायद अच्छे दिन आने
वाले हैं ॥
सही है. बढिया विश्लेषण करती पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया और आभार
हटाएंबहुत बढ़िया सामयिक चिंतन प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार कविता जी
हटाएंशुक्रिया चन्द्र भूषण मिश्र जी
जवाब देंहटाएंसंतुलित विश्लेषण ......
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