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गुरुवार, 9 जुलाई 2020

नज़रिया देखने का





किसी भी बात ,घटना ,तथ्य के हमेशा ही दो पहलू होते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह आधा भरा/आधा खाली ग्लास देखने वाले के नज़रिये पर निर्भर करता है | वास्तव में भी यही होता है , नकारात्मक नज़रिये वाला व्यक्ति किसी भी बात में ,आलोचना निंदा आरोप का अवसर तलाश ही लेता और सकारात्मक नज़रिये वाला इंसान विपरीत और प्रतिकूल परिस्थतियों में भी उसके अच्छे पहलू को ढूंढ ही लेता है |

आज अवसाद और निराशा की जैसी परिस्थितियाँ बनी हुई हैं उसने पहले ही बहुत अधिक तनावपूर्ण बना रखा है | संवेदनशील इंसानों के लिए ये समय और भी अधिक नाज़ुक हो गया है | गाँव से अत्यधिक प्रेम होने के कारण , और इन दिनों की जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी में मिले अवकाश के कारण भी ,गाँव में बने महादेव के मंदिर के पुनर्निमाण के काम को करवाने की योजना बन गई |

आखिरकार ,शिव मंदिर का सारा काम पूरा हुआ और मन को तसल्ली हुई  कि कम से कम मां बाबूजी की आत्मा आज संतुष्ट हुई होगी और मुझे आत्मिक शान्ति मिली की अब अगले कई दशकों तक वो मंदिर सुरक्षित और संरक्षित रहेगा | किन्तु अचानक ही सब कुछ बदल गया |

गाँव के ही कुछ बच्चों ने आनन् फानन में , मंदिर पर (अष्टजाम ) कीर्तन जो 24 घंटे तक निर्बाध चलता है , के आयोजन का कार्यक्रम बनाया और टेंट बाजे साउंड सिस्टम के साथ तैयारी कर दी | दिल्ली से लेकर गाँव और हर जगह के हालात को देखते हुए , मुझे इस बात की बेहद चिंता हुई कि इस कीर्तन भजन के दौरान कोई गलती से भी या भूलवश भी इस बीमारी में चपेट में आ गया तो सब कुछ बेहद गलत दिशा में चला जाएगा | यही सोच कर मैंने सबको, हालातों को देखते हुए और प्रशासनिक निर्देशों के मद्देनज़र भी. थोड़ी दिन  रुक कर इसका आयोजन करने को कह दिया |

और यही सबसे बड़ा गुनाह साबित हुआ | अष्टजाम कीर्तन भजन का कार्यक्रम तो टाल दिया गया ,मगर इसे दूसरा रुप देकर | ये कह कर कि चूँकि मंदिर का निर्माण बाबूजी द्वारा करवाया गया था या कि उसकी साज़ सज़्ज़ा का काम मेरे द्वारा करवाया गया इसलिए ही मैंने ये कीर्तन रुकवा दिया | और उस समय से लेकर अब तक ये हुआ है , सबने अपने अपने स्तर से बुरा भला कह कर , मुझे कोस कर , मुझे कृतज्ञ किया | मंदिर में लगे ताला चाभी को हटा दिया गया , और वहाँ लोगों ने इसके विरोध में पूजा करना भी छोड़ दिया |

इस पूरे प्रकरण ने मन को बुरी तरह आहत किया और मुझे निराश होकर विवश होकर अब ये सोचना पड़ रहा है कि आखिर गलती कहाँ हुई | मंदिर के काम को हाथ में लेकर उसे पुनर्निर्मित करवाना मेरी गलती थी या गाँव में रह रहे काका काकी ,बूढ़े बुजुर्ग ,बच्चों को इस बीमारी की चपेट में आने से बचाने के लिए कीर्तन के कार्यक्रम आगे टालने के लिए कहना | आत्मा तक बुरी तरह से आहत हुई है , और भविष्य के प्रति अब कुछ भी सोचने के लिए बहुत आशंकित भी |

जो अब तक छूटा हुआ था ,अब वो सब कुछ टूटा हुआ है | सच कहते हैं कि सबसे जीत कर भी इंसान , आखिर अपने और अपनों से ही हार जाता है | हम खानाबदोश हो चुके लोगों को अब अपनी मिट्टी से मोह का भ्रम अपने मन मस्तिष्क से निकला देना चाहिए | साझा इसलिए किया क्यूंकि बिना लिखे रहता तो दो दिनों में फिर से तेज़ी से बढ़ा रक्तचाप अपने भीतर जमा हुए इस दर्द के कारण अपने चरम पर पहुँच जाता |कृपया किसी भी टिप्पणी में किसी को भी दोषी न ठहराएं आप भी | कहा जाता है की इंसान नहीं खराब होता , ये वक्त होता है जो खराब होता है और वो तो खैर खराब है ही | 

17 टिप्‍पणियां:

  1. अजय जी कभी कभी आदमी गलती से गलती कर बैठता है परंतु वक्त आने पर एहसास हॊता है l

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. पोस्ट को मान और स्थान देने के लिए आपका आभार

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  4. ऐसे ही कारणों से अब कहीं जाने की इच्छा नहीं होती

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    उत्तर
    1. सही कह रहे हैं ऐसे बातें हतोत्साहित कर देती हैं

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  5. सोचती हूँ
    सुझाव व आलोचना से बचना है तो
    कभी अच्छा नहीं करना चाहिए
    सादर नमन..

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  6. आ अजय जी, कभी - कभी मन में आये शुभ संकल्प को स्थगित कर देने से कार्य अधूरा रह जाता है। बहुत अच्छी रचना ! --साधुवाद ! ब्रजेन्द्र नाथ

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  7. गाँव अब पहले की तरह नहीं रहे। वहाँ भी अब संवेदनहीनता की स्थिति पनप चुकी है। कल्याण की बात जाने क्यों नहीं लोग समझते।

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  8. Wow this is aweosme and detailed post. Thank you so much for sharing this valuable post with us. life quotes telugu

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..

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