शायद वर्ष 2012 , में जब अचानक की पंजाब भ्रमण के दौरान , नियमति नाई से शेव न करवाने के कारण , उसने भूलवश मेरी मूंछें साफ़ कर दीं तो ये शक्ल निकल आई | कुछ नया और अलग सा महसूस हुआ तो हमने वहीं एक पासपोर्ट सीज फोटो भी खिंचवा ली | संयोग कुछ ऐसा बना कि तब से अब तक लगभग हर जगह जहां भी जरूरत पड़ी , इसी फोटो का उपयोग हुआ | मेरे कार्यालय के नए पहचानपत्र पर भी |
अब मामला यहीं तक रुक जाता तो ठीक था , जाने कितनी ही बार की तरह , आज भी एक मित्र अधिवक्ता , जिनकी नज़र शायद अचानक ही मेरे पहचानपत्र पर पड़ी तो वे भी टोक गए | सर , क्या बचपन की फोटो लगा दी आपने | मैं भी हमेशा की तरह मुस्कुरा कर रह गया | इससे पहले भी बहुत बार , मित्र दोस्त अक्सर शिकायती और उलाहने भरे स्वर में कहे उठते हैं , आप जैसों ने तो उम्र को रोक रखा है , क्या माजरा है |
कुछ नहीं जी , पिताजी का सबसे प्रिय वाक्य था , " ज़िंदगी जिंदादिली का नाम है , मुर्दादिल क्या ख़ाक किया करते हैं " ...सच है सौ फीसदी | ज़िंदगी को भरपूर जीने वालों की नज़र और असर उम्र पर कहाँ होती है | परिश्रम आपको उर्जावान और स्फूर्तमय रखता है | और बचपन से ही खेल कूद मेरी दिनचर्या में शामिल रही है और आदतन जूनूनी होने के कारण , मैं क्रिकेट , फुटबाल , वालीबाल , हॉकी , बैडमिन्टन , के साथ साथ , तेज़ दौड़ , तैराकी , साइकिल चलाना खोखो , कबड्डी सबका खिलाड़ी रहा और इन तमाम खेलों की टीम मेरे बिना नहीं बना करती थी | क्रिकेट में मेरी फिरकी गेंदों ने कई बार विपक्षी टीमों का पूरा पुलंदा बाँध दिया था |
यहाँ दिल्ली में भी नियमति दौड़ से शुरू होकर मामला खो खो , कबड्डी और बैडमिन्टन तक सीमित हो गया , बीच बीच में तैराकी भी | पार्क में मैं बच्चों के साथ खेलना शुरू किया तो , आस पास खेल खिलाने वाले अंकल जी के रूप में बच्चे पुकारने लगे | धीरे धीरे कठिन वर्जिश की भी शुरुआत हो गयी | वर्ष में कुछ महीने शरीर को बिलकुल खुला छोड़ कर फिर अगले कुछ महीनों में खेल कूद वर्जिश से , वहीं ला कर खडा कर देना मुझे खूब भाता है ....और अब वही मौसम फिर करवट लेने लगा है ....मेरे खेलने कूदने दौड़ने भागने के दिन आ रहे हैं ......इंसान के भीतर जो एक बच्चा और बचपन होता है न उसे खुद ही जिंदा रखना होता है , अपनी जिद से और अपने जुनून से .....ज़िंदगी जिंदादिली का नाम है , मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं .....
और ऐसा मैंने आज इसलिए कहा क्योंकि अभी अभी बेटे लाल के साथ कैरम खेल कर .....आ रहा हूँ .....
(फेसबुक पर लिखी गयी एक टिप्पणी )
(फेसबुक पर लिखी गयी एक टिप्पणी )
जी हाँ ज़िन्दगी जिंदादिली का ही नाम है ...........देखिये दराल साहब को वो भी तो उम्र को पीछे धकेल रहे हैं ............बस ऐसी ही सोच बनी रहे
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रया के लिए आपका आभार वंदना गुप्ता जी |
हटाएंयूँ ही आनन्द लेते रहें।
जवाब देंहटाएंजी वही कोशिश चल रही है देवेन्द्र जी | आभार आपका
हटाएंबहुत सटीक कहा, जिंदादिली बनि रहनी चाहिये.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत शुक्रिया और आभार ताऊ जी | और ये हैश टैग का बोझा उतार दें , कोई लाभ होता नहीं दिख रहा है
हटाएंचर्चा मंच का शुक्रिया और आभार शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बात, हर उम्र को जियो जी भरके पर साथ बना रहे बचपन का .... मैंने भी खेल को नहीं छोड़ा अभी ...
जवाब देंहटाएंयह तो है कि वाक़ई ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है, यह पोस्ट पढ़कर तो अब मेरा भी दिल कर रहा है कि छोडो भागदौड़, अब बच्चों के साथ भी थोड़ा खेलों में समय बिताया जाए :)
जवाब देंहटाएंWe are urgently in need of kidney donors in Kokilaben Hospital India for the sum of $450,000,00,For more info
जवाब देंहटाएंEmail: kokilabendhirubhaihospital@gmail.com
WhatsApp +91 779-583-3215
अधिक जानकारी के लिए हमें कोकिलाबेन अस्पताल के भारत में गुर्दे के दाताओं की तत्काल आवश्यकता $ 450,000,00 की राशि के लिए है
ईमेल: kokilabendhirubhaihospital@gmail.com
व्हाट्सएप +91 779-583-3215