आज खाली कट पिटिया चर्चा …अरे खाली कट पेस्ट यार …..का लुत्फ़ उठाईये ….बस उठाते गए ..चेपते गए …आप भी झेलते जाईये …….
यहां घोषणा हुई कि महफ़ूज़ मियां खो गए ……
कहां महफूज़ है एक स्टार ब्लॉगर...खुशदीप
कल मैनपुरी से ब्लॉगर भाई शिवम मिश्रा का फोन आया...उन्होंने बड़ी फ़िक्र जताई कि न तो ये स्टार ब्लॉगर महोदय फोन उठा रहे हैं, न ही इनका कोई अता-पता चल रहा है...मैंने भी कहा, भैया मुझसे आखिरी बार पांच छह दिन पहले जनाब ने बात की थी...आखिरी बार ये मिस्टर हैंडसम जबलपुर के ब्लॉगरों के बीच हीरो बने हुए मीडिया से मुखातिब होते हुए देखे गए...जबलपुर में ही इनकी ननिहाल है...मुझे तो पूरा शक है कि लखनऊ के इस नवाब के हाथ-पैर नीले (पीले लड़कियों के होते हैं) करने की तैयारी चल रही है...तभी ये शख्स कहीं अंडरग्राउंड हो गए हैं....
मगर शुक्र है कि जल्द ही दूसरी घोषणा भी हो गई
सुनो सुनो सुनो.....महफूज़ मियाँ मिल गए हैं...
सुनो सुनो सुनो.....
ब्लागवुड के सभी ख़ास-ओ-आम को इतल्ला दी जाती है....गर्ल फ्रेंड नंबर ३०१ मिल गई है....
महफूज़ मियाँ को उनके साथ देखा गया है....
हमारे खोजी कैमरे ने वो चेहरा भी कैद कर लिया है.....
देख लीजिये आप भी.....
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- शेफाली पाण्डे को
पहाड़ की औरतें उदास सी लगती हैं……………क्यों खुद पढिए
तीस की उम्र में पचास की लगती हैं
पहाड़ की औरतें उदास सी लगती हैं
काली हथेलियाँ, पैर बिवाइयां
पत्थर हाथ, पहाड़ जिम्मेदारियां
चांदनी में अमावस की रात लगती हैं
कड़ी मेहनत सूखी रोटियाँ
किस माटी की हैं ये बहू, बेटियाँ
नियति का किया मज़ाक लगती हैं
समेटना बिखरे भावों का- भाग १
उस मकां से ग्रामोफोन की आवाज़ आती है
कहते हैं वो लोग कुछ पुराने ख़्यालात के हैं..
रात भर चाँदनी सिसकती रही, छत पर उनकी
वो समझते हैं कि दिन अब भी बरसात के हैं
बबूल और बांस
मेरा मुंह तिक्त है। अन्दर कुछ बुखार है। बैठे बैठे झपकी भी आ जा रही है। और मुझे कभी कभी नजर आता है बबूल। कोई भौतिक आधार नहीं है बबूल याद आने का। बबूल और नागफनी मैने उदयपुर प्रवास के समय देखे थे। उसके बाद नहीं।
कौटिल्य की सोचूं तो याद आता है बबूल का कांटा – कांटे से कांटे को निकालने की बात से सम्बद्ध। पर अब तो कौटिल्य याद नहीं आ रहे। मन शायद मुंह की तिक्तता को बबूल से जोड़ रहा है। बैठे बैठे पत्रिका में पाता हूं कौशिक बसु का उल्लेख। उनके इस पन्ने पर उनके लेख का लिंक है - "Globalization and Babool Gum: Travels through Rural Gujarat". उसमें है कि बबूल का गोंद इकठ्ठा करने में पूरी आबादी गरीबी की मानसिकता में जीती रहती है।
जो जलाता है किसी को खुद भी जलता है जरूर ..
ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जो कभी किसी से जला न हो। वह मुझसे आगे बढ़ गया, बस हो गई जलन शुरू। मैं जिस वस्तु की चाह रखता हूँ वह किसी और को प्राप्त हो गई और मेरा उससे जलना शुरू हो गया। कई बार तो लोग दूसरों से सिर्फ इसीलिये जलते हैं वे अधिक सुखी क्यों हैं। पर जो अधिक सुखी हैं वे भी अपने से अधिक सुखी से जलते हैं।
विचित्र भावना है यह जलन अर्थात् ईर्ष्या भी! आमतौर पर जलन की यह भावना असुरक्षा, भय, नकारात्मक विचारों आदि के कारण उत्पन्न होती है। क्रोध और उदासी ईर्ष्या के मित्र हैं और इसके उत्पन्न होते ही इसके साथ आ जुड़ते हैं। ये क्रोध और उदासी फिर आदमी को भड़काने लगते हैं कि तू अकेला क्यों जले? तू जिससे जल रहा है उसे भी जला। और आदमी शुरु कर देता है दूसरों को जलाना। किसी शायर ने ठीक ही कहा हैः
Monday, March 22, 2010
ये भी फासिस्ट, वो भी फासिस्ट
फासिज्म चाहे आज सर्वमान्य राजनीतिक सिद्धांत न हो मगर इसका प्रेत अभी भी विभिन्न अतिवादी, चरमपंथी और उग्र विचारधाराओं में नज़र आता है। राजनीतिक शब्द के रूप में इसे स्थापित करने का श्रेय इटली के तानाशाह बैनिटो मुसोलिनी को जाता है।
फा सिज्म शब्द दुनियाभर की भाषाओं में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली राजनीतिक शब्दावली की चर्चित टर्म है। हिन्दी में इसका रूप फासीवाद है। हालांकि अंग्रेजी, इतालवी में इसका उच्चारण फैशिज़म होता है मगर हिन्दी में फासिज्म उच्चारण प्रचलित है। फासीवादी विचारधारा को माननेवाला फासिस्ट कहलाता है। राजनीतिक दायरों में फासिस्ट कहलाने से लोग बचते हैं। आज की राजनीति में फासिस्ट या फासिज्म शब्द के साथ मनमाना बर्ताव होता है। अतिवादी विचारधारा से जुड़े लोग एक दूसरे को फासिस्ट कह कर गरियाते हैं। खुद को नायक समझनेवाला कभी नहीं चाहेगा कि उसे खलनायक की तरह देखा जाए।
Monday 22 March 2010
आस्था पर प्रश्न क्यों ? सतीश सक्सेना
आज कल कुछ जगह हमारे कुछ शास्त्रार्थ पंडित एक दूसरे की हजारों वर्षों पुरानी आस्थाओं को अपनी आधुनिक निगाह से देखते हुए, जम कर प्रहार कर रहे हैं ! चूंकि दोनों पक्ष विद्वान् हैं अतः शालीनता भी भरसक दिखा कर अपने अपने जनमत की वाहवाही लूट रहें हैं !
पुराने धार्मिक ग्रंथों में समय समय पर लेखकों अनुवादकों की बुद्धि के हिसाब से कितने बदलाव हुए होंगे फिर भी पूर्वजों और पंडित मौलवियों के द्वारा पारिभाषित ज्ञान को बिना विज्ञान की कसौटी पर कसे, हम इज्ज़त देते हैं और उसमें ही ईश्वर को ढूँढ़ते रहते हैं और निस्संदेह हमें फल भी मिलता है !
Sunday, March 21, 2010
निजी इच्छा राष्ट्रीय इच्छा नहीं बन सकती!
क्या किसी व्यक्ति विशेष की नितांत निजी आकांक्षा पार्टी की आकांक्षा या राष्ट्र की आकांक्षा बन सकती है? कदापि नहीं। अगर ऐसा होने लगे तब राजदलों और देश में घोर अराजक स्थिति पैदा हो जाएगी। न अनुशासन रहेगा, न राष्ट्र विकास के प्रति कोई गंभीरता। ये समझ से परे है कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के लिए परेशानियां पैदा करने की कोशिश करने वाले, जी हां, कोशिश करने वाले, इस हकीकत को क्यों नहीं समझ पा रहे। शायद वे समझना ही नहीं चाहते। कतिपय किंतु-परंतु के बावजूद भारतीय जनता पार्टी की आज भी एक विशिष्ट पहचान है तो अनुशासन और सिद्धांत के कारण। जिस दिन यह समाप्त हो गया, पार्टी खत्म हो जाएगी। क्योंकि तब लोग-बाग विकल्प की चाहत को भूल जाएंगे। गडकरी ने दो-टूक शब्दों में कह भी दिया है कि सभी को खुश करना संभव नहीं।
रविवार, २१ मार्च २०१०
हम कमाते क्यों हैं?
मध्यवर्गीय नौकरीपेशा आदमी के नाते ये सवाल अक्सर मेरे ज़हन में आता है कि हम कमाते क्यों हैं? क्या हम इसलिए कमाते हैं कि अच्छा खा-पहन सकें, अच्छी जगह घूम सकें और भविष्य के लिए ढेर सारा पैसा बचा सकें। या हम इसलिए कमाते हैं कि एक तारीख को मकान मालिक को किराया दे सकें। पानी,बिजली, मोबाइल, इंटरनेट सहित आधा दर्जन बिल चुका पाएं। पांच तारीख को गाड़ी की ईएमआई दें और हर तीसरे दिन जेब खाली कर पैट्रोल टैंक फुल करवा सकें।
मेरा नाम केसर है!
नाम : केसर
गाँव : मोत्वारा
जिला: अमीरपुर , मध्य प्रदेश
यह कहानी किसी छोटे से गाँव में रहने वाली अबला, मासूम याज़ुल्म की पीड़ित औरत की नहीं है बल्कि एक साधारण भेष मेंछुपी असाधारण केसर की है जो आजकल महानगर दिल्ली केकनाट प्लेस में फल बेचती है। दो दिन पहले फोटोग्राफी करतेहुए मेरी मुलाकात हुई केसर से। नौकरी छोड़ने के बाद से मैंअक्सर कनाट प्लेस चला जाया करता हूँ, सेंट्रल पार्क में बैठना और इन्नर सर्कल में घूमना अच्छा लगता है। मैं अभी भी नहींभुला सका केसर के वह प्यार भरे शब्द " बाबूजी आप गर्मीं में इतनी देर से खड़े हो, यह लो संतरा खा लो।" महानगर मेंइतने प्यार भरे लफ्ज सुनने को ज़माना हो जाता है। भागती हुई ज़िन्दगी में किसी के पास अपनों के लिए ही समय नहीं तोहमैं तोह अजनबी था। सुनके में एक पल को मन ही मन मुस्कुरा दिया। कुछ देर उसके पास खड़े रहने के बाद मैं चलने हीवाला था की उसने संतरा काट के मेरे हाथ में थमा दिया। यह देख के मुझसे रुका नहीं गया और मैंने अपना बैग वहीँ रख दिया और बैठ के संतरे का लुफ्त लेना शुरू कर दिया। वाकई संतरा बहुत ही लाजवाब था। और जैसे की मेरी दिलचस्पलोगों के बारे में जानने की आदत है, मैंने बातें शुरू कर दी।
रविवार, २१ मार्च २०१०
उथले हैं वे जो कहते हैं
किसी भी साहित्यिक रचना या रचना संग्रह को इमानदारी से पढने वाला पाठक अगर मिल जाता है और वो उस रचना पर अपनी राय भी व्यक्त कर देता है तो यह सोने पे सुहागा हो जाता है। उस संग्रह को फिर किसी दूजे पुरस्कार आदि की आवश्यकता ही नहीं होती। मेरे पूज्य पिताजी डॉ. जे पी श्रीवास्तव के काव्य खंड " रागाकाश" के प्रकाशन के लिये जब इस पर मैं वर्क कर रहा था तो कई सारी कठिनाइयां आ रही थीं। पहली तो यही थी कि मैं बगैर पिताजी की आज्ञा के उनकी धरोहर को छापना चाह रहा था। उनकी अपने दौर में लिखी गई कई सारी रचनायें, जिसमें कइयों के कागज़ भी पुराने होकर फटने लगे थे को सहेज कर मुम्बई तो ले आया था अब बस पिताजी की आज्ञा की देर थी।
आज मरते मरते बचे!
मेरे मंझले साढू भाई की बिटिया की शादी तय करने के लिये आज सुबह दो कारों पर हम नौ जने आज सुबह लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा पर गये। एलप्पी में नाश्ते के लिये एक जानेमाने हॉटेल में उतरे और आर्डर दिया। हम लोग इंतजार कर रहे थे कि एकदम से खाकी वस्त्रधारी दस बारह लोग खिडकी के बाहर दौडते और फुर्ती से एक दूसरे को इशारा करते नजर आये।
Monday, March 22, 2010
देखें कार्टून...
Monday, March 22, 2010
बाबा नहीं, समाज पर कलंक है...
ढोंगी, पाखंडी, राजीव रंजन द्विवेदी उर्फ भीमानंद जी महाराज चित्रकूट वाले बाबा...। जो भी कहा जाए वह कम है। जितना बड़ा नाम है, उसे भी बड़ा कारनामा। दिल्ली समेत देश में वेबसाइड के जरिए गंदगी फैलाने वाला भीमानंद इस समय जनता की आंख की कीचड़ बन गया है। उसके प्रति लोगों का क्या नजरिया है। यह एक अंधा व्यक्ति भी सुनकर बता सकता है। बाबा की महिमा देखने वाली है। उनके गिरोह के लोग ग्राहक को अभिनेत्रियों की सप्लाई करने तक का दावा करता है। सोच पर थू-थू।
Monday, March 22, 2010
अदालतें भी तो अपने गिरेबान में झांकें
क्या वह दिन आने वाला है कि जब अदालतों का कोई महत्व नहीं रह जाएगा और लोग इसके फैसलों को मनाने से इनकार कर देंगे। क्या भारत की अदालतें भी सांप्रदायिक ध्रवीकरण का शिकार हो रही हैं। इस जैसे ही कुछ और सवाल हैं जो आम आदमी के मन में इस समय कौंध रहे हैं। हाल ही में हुई कुछ घटनाओं के बाद इस तरह के सवाल उठ खड़े हुए हैं।
सोमवार, २२ मार्च २०१०
विज्ञान का वास्तविक तौर पर प्रचार प्रसार काफी मुश्किल लगता है !!
भारतवर्ष में फैले अंधविश्वास को देखते हुए बहुत सारे लोगों , बहुत सारी संस्थाओं का व्यक्तिगत प्रयास अंधविश्वास को दूर करते हुए विज्ञान का प्रचार प्रसार करना हो गया है। मैं उनके इस प्रयास की सराहना करती हूं , पर जन जन तक विज्ञान का प्रचार प्रसार कर पाना इतना आसान नहीं दिखता। पहले हमारे यहां 7वीं कक्षा तक विज्ञान की पढाई अनिवार्य थी , पर अब सरकार ने 10वीं कक्षा तक विज्ञान की पढाई को अनिवार्य बना दिया है । 10वीं कक्षा के विद्यार्थियों को पढाने वाले एक शिक्षक का मानना है कि कुछ विद्यार्थी ही गणित और विज्ञान जैसे विषय को अच्छी तरह समझने में कामयाब है, बहुत सारे विद्यार्थी विज्ञान की नैय्या को भी अन्य विषयों की तरह रटकर ही पार लगाते हैं । उनका मानना है कि एक शिक्षक को भी बच्च्े के दिमाग के अनुरूप ही गणित और विज्ञान जैसे विषय को पढाना चाहिए। जो विज्ञान के एक एक तह की जानकारी के लिए उत्सुक और उपयुक्त हों , उन्हें अलग ढंग से पढाया जाना चाहिए, जबकि अन्य बच्चों को रटे रटाए तरीके से ही परीक्षा में पास करवाने भर की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।उनका कहना मुझे इसलिए गलत नहीं लगता , क्यूंकि एक एक मानव की मस्तिष्क की बनावट अलग अलग है।
गहराइयाँ लबालब -----
किसी की निगाहों से उतर गया पानी
किसी की निगाहों में ठहर गया पानी
कतरा-कतरा ओस मोती बन गया था
हवा के एक झोके से बिखर गया पानी
कब तक रहोगे हालात के गिरफ्त में
उठो, देखो तो सर से ऊपर गया पानी
दैनिक जागरण में 'अनिल पुसदकर'
बस जी ई कटपिटिया चर्चा समाप्त हुई …….ई तो ससुर एकदम ईजी था जी ….हमको जादे मजा नहीं आया …ऊ झाजी वाला टच नहीं न दिए
जब कट-पेश्त का ई आलम है तो ...
जवाब देंहटाएंबिन कट-पेश्त का क्या होगा अजी क्या होगा...:)
ई अदा बहन का कमेंट समझ मे नही आया।
जवाब देंहटाएंआज हिंदी में कमेंट किये हैं।
हमारे ब्लाग पे रोमन मे करती हैं।
क्या बात है?
बहुत बढिया चर्चा आभार
ललित भईया..
जवाब देंहटाएंहमरे कहने का मतलब ई है की जब झा जी अपना रेसेपी नहीं डाले तो इतना खूबसूरत चर्चा बन गया कहीं जो अपना आइडिया भी डाले होते तो का होता बाबा...!!!
और हाँ हमरा गूगल बाबा गुसियाये हुए थे ...ऊ तो कहिये पाबला बाबा जी की किरपा हुई तो रूठे गूगल बाबा माने हैं...
अब हम रोम से वापिस आ गए हैं....शिकाईत का मौका नहीं देवेंगे...
हा हा हा मैं कुछ कहता इससे पहले ही आप दोनों भाई बहन सब कह गए ...बहुत बहुत शुक्रिया आप दोनों का ..और हां अदा जी रेसिपी अगली तक के लिए मुल्तवी की जाती है ...पुन: आभार ..साथ और स्नेह बनाए रखिएगा ...
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
बहुत ही बढिया लगी आज की आप की चर्चा जी
जवाब देंहटाएंलड्डू जी मैं अमूमन चर्चा करते समय ये नहीं देखता कि आज जल दिवस है या गौरया दिवस ...मगर जल पर वर्मा जी की लिखी एक खूबसूरत कविता पर आपकी नज़र नहीं गई शायद ....आगे से आपकी सलाह पर गौर करूंगा ..शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
गुरु इतनी ज़बर्दस्त लिन्क को सिर्फ़ कह रहे हो
जवाब देंहटाएंचलो इस पोस्ट के माध्यम से मह्फूज के मिलने की खबर तो मिली. और फिर मिले कहाँ --- खो जाने के कगार पर.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
बेहतरीन कट पेस्ट है भई...बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएं--
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
cut paste bhi bahut dhaansu hai jee....
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा सबसे सुंदरतम चर्चा है, बधाई ले लिजिये फ़ट से और अगली चर्चा भी ऐसी ही किजियेगा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आज की चर्चा सबसे सुंदरतम चर्चा है, बधाई ले लिजिये फ़ट से और अगली चर्चा भी ऐसी ही किजियेगा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ही बढिया चर्चा………………आभार्।
जवाब देंहटाएंयदि कट-पेस्ट ऐसा गजब का है तो प्रभु करे कि आप का कट-पेस्ट ऐसा ही चलता रहे !!
जवाब देंहटाएंसस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
http://www.Sarathi.info
आपका कटर और पेस्टर दोनों ही धारदार है...
जवाब देंहटाएंहां, ये महफूज़ का नाम मेरे साथ जु़ड़ा है तो हर खास-ओ-आम के लिए इत्तला है कि महफूज़ मियां जहां कहीं भी हैं पूरी तरह महफूज़ है...इंशा अल्ला जल्दी ही हमारे बीच होंगे...शायद एक हफ्ते में ही...और हां हसीना जैसा भी कोई चक्कर नहीं है...हमारे मित्रवत चैनल अदा ड्रामा कंपनी ने जिस मोहतरमा को महफूज़ की शरीके-हयात होने की बात कही थी, वो फ्रॉड निकली...महफूज़ को कुछ सुंघा भी दिया था...ये तो अच्छा हुआ महफूज़ सही वक्त पर होश में आ गए और अपनी दौलत लूटे जाने से बच गए...इसलिए सब कुछ ठीक-ठाक है, ब्लॉगर बिरादरी बेफ़िक्र रहे...
जय हिंद...
कोई बात नहीं अजय जी,
जवाब देंहटाएंकभी कभी मन नहीं भी करता है
अगली बार कुछ झाड़-पोंछ कर दीजिएगा :-)
मन खिल उठेगा
बी एस पाबला
नाम : केसर
जवाब देंहटाएंगाँव : मोत्वारा
जिला: अमीरपुर , मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश मे अमीरपुर जिला।
अगर मैं सही हूं तो यह गलत है।
अजय जी, लेखक को इस और ध्यान दिलाइयेगा, या फिर मेरी जानकारी को अपडेट किजीयेगा।
mast charchaa
जवाब देंहटाएंगज़ब की रंगीन चर्चा की है अजय भाई ! बेहतरीन लिंक कलेक्शन किया है आपने , तमाम अच्छे अच्छे लोगों के साथ हमारा फोटो भी इतने खूबसूरत ब्लाग पर लगा दिया !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
बिना कटाई किये बहुत बढ़िया छंटाई अररर कट पेस्ट किया है भाई। बधाई।
जवाब देंहटाएंबिलकुल शानदार चर्चा । यह कट-पेस्ट भी चलेगा !
जवाब देंहटाएं