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रविवार, 27 मार्च 2011

झा जी कहिन …..फ़िर चल पडी हमारी टरेन…….पोस्ट झलकियां

 

 

यूं तो इन दिनों रेल की पटरियों पर जाट भाई लोग लंबलेट पडे हुए हैं लेकिन अपनी टरेन ही क्या जो पटरियों की मोहताज हो .पटरी न सही सडक पर दौडा लेंगें ..लीजीए फ़िर से आपके बीच धडधडाती पहुंच गई है टरेन ..

 

day 25 March 2011

सिद्धान्त चौधरी उत्तराखण्ड घूमना चाहते हैं

प्रस्तुतकर्ता नीरज जाट जी

गाजियाबाद से सिद्धान्त चौधरी लिखते हैं:

"नीरज भाई नमन,
नीरज जी, मैं आपका ब्लॉग पिछले डेढ साल से पढ रहा हूं। आप जिस तरह से अपनी लेखनी प्रस्तुत करते हैं, मैं उसका काफी बडा प्रशंसक हूं। माफी चाहता हूं कि किसी कारणवश मैंने आपसे सम्पर्क करने का प्रयास नहीं किया। जब भी आप उत्तराखण्ड की यात्रा का सार प्रस्तुत करते हैं तो मुझे लगता है कि आप मुझे कुछ विशेष जानकारी दे सकते हैं।
देखिये, वैसे मैं उत्तराखण्ड कई बार गया हूं (हरिद्वार, ऋषिकेश, नीलकण्ठ, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, जोशीमठ, भीमताल, नैनीताल आदि)। मैं हमेशा अकेला ही उत्तराखण्ड के लिये घूमने निकला हूं। ज्यादातर मैं गलत सीजन में निकल जाता हूं (नवम्बर-फरवरी), इस कारण से मैं कभी ज्यादा आगे नहीं जा सका। रास्ते बन्द होते हैं और लोकल लोगों से आगे जाने के बारे में पूछता हूं तो मना कर देते हैं। एक बार इरादा भी बना लिया था कि अबकी बार दिसम्बर में बद्रीनाथ जाना है लेकिन पाण्डुकेश्वर से आगे आर्मी वालों ने मना कर दिया। वास्तव में मेरे पास टाइम भी कम होता है इसलिये मैं प्लानिंग को ठीक तरह से मैनेज और एप्लाई नहीं कर पाता। एक बात और, मैं ज्यादा से ज्यादा यात्रा को पैदल चलकर पूरा करता हूं।

 

 

 

शनिवार, २६ मार्च २०११
टीवी का दख़ल

अचरज और पाखी के पैदा होने के पहले ही शांति ने अपने बच्चों के बारे में तमाम कल्पनाएं कर रखीं थीं। और अपने बच्चों को वो क्या सिखाएगी और क्या बनाएगी, इसकी एक मोटी रूपरेखा भी उसके और अजय के ज़ेहन में थी। हालांकि बच्चों के जन्मने के बाद से उसकी काल्पनिक रूपरेखा में काफ़ी बदलाव भी आया। उसने सोचा था कि वो पाखी को संगीत ज़रूर सिखाएगी ताकि वो उसकी नानी की तरह सुरीला गा सके। हालांकि पाखी का गला अच्छा है मगर उसे संगीत में दिलचस्पी ही नहीं। उंगलियों को कीपैड पर बार-बार दबाने से जो संगीत पैदा होता है आजकल उसी से पाखी का जीवन संचालित होता है। अचरज के लिए उसने सोचा था कि वो अपने दादा की तरह अकैडमिक्स में जाए। जब अचरज पुरानी धोतियों की लंगोटियाँ ही पहन रहा था, तभी अजय और शांति ने उसकी भविष्य की छवि में मोटे चश्मे और सुलगते पाइप के तत्व जोड़ने शुरु कर दिए थे।

 

Friday, March 25, 2011
शिव ने पार्वती को चूम लिया

दक्षिण में चोल राजवंश ने ९वीं से १४वीं शताब्दी तक राज्य किया। उन्होंने गंगई कोंडा चोलापुरम में वृहद ईश्वर मंदिर बनवाया। इस चिट्ठी में, इस मन्दिर की चर्चा है।

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बृहद ईश्वर मन्दिर - चित्र विकिपीडिया से

दक्षिण में  चोल राजवंश ने ९वीं  से  १४वीं शताब्दी तक राज्य किया। ११वीं शताब्दी की शुरुवात में, राजेन्द्र चोल-I (१०१२-१०४४ ईसवी) ने वृहद ईश्वर मंदिर का निर्माण किया। इस मंदिर का निर्माण, पाला राजवंश पर जीत के स्मरणोत्सव के रूप में किया गया है। यह मंदिर शिव भगवान को अर्पित है। इसे, युनेस्को के द्वारा, विश्व धरोहर स्थान का दर्जा दिया गया है।

 

ताकत और विरोध

कुछ दिन पहले मैंने निवेदिता मेनन और आदित्य निगम की किताब, "ताकत और विरोध" (Nivedita Menon and Aditya Nigam, "Power and Contestation: India Since 1989", Halifax and Winnipeg: Fernwood Publishing; London and New York: Zed Books 2007) पढ़ी जो मुझे बहुत दिलचस्प लगी. निवेदिता जी दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र विभाग में रीडर हैं और फेमिनिस्ट विमर्ष में भी सक्रिय रही हैं, जबकि आदित्य जी दिल्ली के विकासशील समाजों के अध्ययन केन्द्र (Centre for studies of developing societies - CSDS) के संयुक्त निर्देशक हैं. यह किताब "आधुनिक विश्व इतिहास" शृँखला के अन्तर्गत छापी गयी है जिसका उद्देश्य है 1989 के शीत युग के अन्त के पश्चात बदलती हुई दुनिया के इतिहास को समझने की कोशिश करना.

मेनन और निगम भारत के आधुनिक इतिहास के विमर्ष में उत्तर राष्ट्रीयवाद, नव वामपंथ और फेमिनिस्ट दृष्टिकोणों का उपयोग करते हैं.

निवेदता मेनन ने पहले भी अन्य जगह "फेमिनिस्म के संस्थाकरण" के बारे में अपने विचार रखे हैं. उनका कहना है कि पित्रकेन्द्रित समाज में चाहे स्त्रियों से जुड़ी कोई भी बात हो, बलात्कार या हिँसा या दहेज की, लैंगिक समता के लिए लड़ने वाले गुट अब केवल कानून बदलने की बात करने तक ही सीमित रह जाते हैं कुछ यह सोच कर कि कानून बदलने से अपने आप ही समाज बदल जायेगा. वह कहती हैं कि फैमिनिस्म और लैंगिक समता की बात सोचने वालों लोगों को फैमिनिस्ट विचार विमर्श के व्यक्तिगत सशक्तिकरण के पक्ष पर ज़ोर देना चाहिये.

 

कौन बीमार औ' दवा किसकी?

वह दंपत्ति मेरे पास आया था और उनके पति अपनी पत्नी की काउंसिलिंग के लिए उन्हें लाये थे। उन्हें शिकायतथी कि वे बहुत गुमसुम रहने लगी हैं। उन्हें लगता है कि घर से बाहर और ऑफिस में खुश रहती हैं फिर घर में हीआकर क्या हो जाता है? वे इसका निदान चाहते थे और उन्होंने ये बात मुझे फ़ोन पर पहले ही बता दी थी। पति औरपत्नी दोनों ही उच्च शिक्षित और अच्छी जगह पर नौकरी कर रहे थे।
जब उन दोनों ने मेरे कमरे में प्रवेश किया तो मुझे ये समझते देर नहीं लगी कि बीमार कौन है ? जहाँघर में सिर्फ दो ही लोग रहते हों और फिर भी तनाव तो उसका कारण कोई एक तो बनता ही होगा। मैंने दोनों से हीअलग अलग बात करना चाहा तो पति से कहा कि आप बाहर बैठें , मैं इनसे अकेले में कुछ पूछना चाहती हूँ। पतिदेव बाहर चले गए।
जब पति बाहर निकल गए और दरवाजा बंद हो गया तो पत्नी ने पीछे मुड़कर देखा और एक गहरीसाँस ली। उनकी सिर्फ एक सांस ने पूरी कहानी बयान कर दी। फिर भी उनकी हिस्ट्री तो जाननी ही थी।

 

Saturday, March 26, 2011
गुमचोट
सब ठीकठाक है
बस एक तकलीफ
जब-तब जीने नहीं देती

जानता नहीं कि यह क्या है

याद से जा चुकी
या किसी और जन्म में लगी
भीतर की कोई भोथरी गुमचोट

कोई अनुपस्थिति
कोई अभाव
कोई बेचारगी कि
हम अपने खयाल को सनम समझे थे

इस खयाल का कोई क्या करे

 

Wednesday, March 23, 2011
वो कौन सा सपना था भगत?

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वह भी मार्च का कोई आज सा ही वक्त रहा होगा
जब पेड़ पलाश के सुर्ख फ़ूलों से लद रहे होंगे
गेहूँ की पकती बालियाँ
पछुआ हवाओं से सरगोशी कर रही होंगी
और चैत्र का चमकीला चांद
उनींदी हरी वादियों को
चांदनी की शुभ्र चादर से ढक रहा होगा
जब कोयल की प्यासी कूक
रात के दिल मे
किसी मीठे दर्द सी आहिस्ता उतर रही होगी

 

कोने में रखी एक किताब .......गुनाहों का देवता............भारतीनामा ( एक श्रंखला )

 

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ये महज़ एक किताब नहीं , एक पूरा युग है जिसे मैंने जियो है और अब भी जी रहा हूं    

ये इस ब्लॉग की पहली पोस्ट है । इस ब्लॉग के यहां होने की भी एक दिलचस्प वजह है । किताबें शुरू से ही बहुत लोगों की तरह में मेरे वही प्रिय दोस्त रहे हैं । ये अलग बात है कि इन किताबों के दायरे में पहले कॉमिक्स , फ़िर वेद प्रकाश शर्मा , गुलशन नंदा , और कर्नल रंजीत सरीखे लेखक आए । अपने संघर्ष के दिनों में मुझे मेरे एक सीनीयर प्रफ़ुल्ल भईया ने अचानक ही एक दिन मेरे हाथों में ये किताब रख दी । नाम था गुनाहों का देवता ..इस किताब ने हिंदी साहित्य की किताबों की तरफ़ दीवानेपन का वो दरवाज़ा मेरे भीतर खोल दिया कि आज कमोबेश मेरे पास लगभग छ सौ किताबें हैं वो भी मित्रों द्वारा पढने के बहाने टपाने के बावजूद भी ।

इन किताबों को पढने का अवसर , जी हां नियमित मैं कभी भी नहीं पढ पाता हूं ..अक्सर मुझे लंबे सफ़र में या फ़िर घर से बाहर कहीं समय बिताते समय मिल ही जाता है और कमाल दे्खिए कि इस ब्लॉग का जन्म भी हाल ही में चर्चित पुस्तक five point someone को रास्ते में पढते समय ही आया था ।

 

चंडूखाने की

हमारे देहरादून में, खास तौर पर रायपुर गांव की ओर एक मुहावरा है - चंडूखाने की। यह चंडूखाने की हर उस बात के लिए कहा जा सकता है, जिस बात का कोई ओर छोर नहीं होता, वह सच भी हो सकती है और नहीं भी। पर उसकी प्रस्तुत सच की तरह ही होती है। एक और बात- वैसे तो "चंडूखाने की" यह विशेषण जब किसी कही गयी बात को मिल रहा होता है तो उसका मतलब बहुत साफ साफ होता है कि बात में दम है। चंडूखाने की मतलब कोई ऎसी बात जो किसी बीती घटना के बारे में भी हो सकती है। पर ज्यादतर इसका संबध भविष्यवाणी के तौर पर होता है या फिर ऎसा जानिये कि इतिहास में घटी किसी घटना का वो संस्करण जिसे प्रस्तुत करने की जरूरत ही इसलिए पड़ रही है कि वह निकट भविष्य का कोई गहरा राज खोल सकती है।  मैं कई बार सोचता रहा कि यह मुहावरा देहरादून और खासतौर पर रायपुर गांव के निवासियों की जुबा में इतना आम क्यों है, जबकि आस पास भी कोई चंडू खाना मेरी जानकारी में तो नहीं  ही है।

 

संक्षिप्त नाम (Abbreviations)

प्रस्तुतकर्ता जी.के. अवधिया Sunday, March 27, 2011

AAFI
अमेच्योर एथेलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इण्डिया (Amateur Athletics Federation of India)

AASU
ऑल आसाम स्टूडेंड्स यूनियन (All Assam Students Union)

ABM
एंटी बैलेस्टिक मिसाइल (Anti Ballistic Missile)

AC
अल्टरनेट करेंट / अशोक चक्र / एयर कंडीशनर / अंटार्टिक क्लब (Alternate Current / Ashok Chakra / Air Conditioner / Antarctic Club)

ACC
एंक्ज़िलरी कैडेट कोर (Anxillary Cadet Core)

AD
एनो डोमिनी अर्थात् ईसा के जन्म के पश्चात् (Ano Domini - After the birth of Jesus)

ADB
एशियन डेव्हलपमेंट बैंक (Asian Development Bank .)

AERE
एटामिक एनर्जी रिसर्च इस्टेब्लिशमेंट (Atomic Energy Research Establishment)

 

Sunday 27 March 2011
आरक्षण लाभ के लिए जाति का निर्धारण जन्म से होगा न कि विवाह से

मथुरा (उ.प्र.) से नेम प्रकाश ने पूछा है -
.............................................................................................................

अनुसूचित जाति की कोई लड़की किसी सामान्य जाति के पुरुष से विवाह करती है, तो क्या उस लड़की की जाति शादी के बाद बदल जाती है? क्या वह सरकारी नौकरियों के लिये अपनी जाति का प्रयोग कर सकती है? कृपया उचित सलाह दें।
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Sunday, March 27, 2011
हिमाचल से ‘हिमप्रस्थ’
पत्रिका: हिमप्रस्थ, अंक: फरवरी 2011, स्वरूप: मासिक, संपादक: रणजीत सिंह राणा, पृष्ठ: 96, मूल्य: 5रू(वार्षिक 50रू.), ई मेल: himprasthahp@gmail.com , वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. नहीं, सम्पर्क: हिमाचल प्रदेश पिं्रटिंग प्रेस परिसर, घोड़ा चैकी, शिमला 5 हिमाचल प्रदेश
पत्रिका के समीक्षित अंक में प्रमुखतः विविधतापूर्ण आलेखों का प्रकाशन किया जाता है। इस अंक में शमी शर्मा, दादू राम शर्मा, ललितमोहन शर्मा, अमिता पाण्डेय, सुनीता, गोपल जी गुप्त, कंचन कुमारी तथा सिम्मी सिंह के विविध विषयों पर लिखे गए आलेखों का प्रकाशन किया गया है। सुरेन्द्र चंचल, मनोज श्रीवास्तव तथा पीयूष गुलेरी की कहानियां अच्छी व पढ़ने योग्य हैं। नरेन्द्र भारती, देशराज पुष्प तथा अखिलेश शुक्ल की लघुकथाएं समसामयिक विषयों पर संक्षिप्त किंतु सार्थक चिंतन है। स्नेहलता, नंदिता बाली, उदय ठाकुर एवं रमेश कुमार सोनी की कविताएं भी स्तरीय हैं। अशोक गौतम का व्यंग्य तथा दायकराम ठाकुर का यात्रा विवरण ठीक ठाक है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं भी रूचिपूर्ण कही जा सकती है।

 

नवकी... घर को जाने कब से बुढ़ौना लगा है!


बालम विदेस हैं। नवकी का करे?
इस उजाड़खंड बरमंड में ससुर खाँसते रहते हैं और सास सुनगुन सूँघती रहती हैं। घर को जाने कब से बुढ़ौना लगा है जब कि  पलंग रात को चररमरर चर पर करती है। नवकी अपनी ही करवट उठान लेती है, लजाती है और फिर बालम को कोसती है  - मुआँ एक किल्ला तक ठीक न करा पाया, अब नवकी का करे? इस चररमरर का का करे?
नवकी किरकेट देखती है। लागा झुलनिया के धक्का बलम कलकत्ता। अरे नाहीं रे छक्का! कोई इतनी नई मेहरारू को छोड कर जाता है भला?
चौका छक्का ना रे नवकी! सब धक्का है। तोहरी झुलनिया क नाहीं रे! माया क धक्का। देखो मोबैल पर, टीवी पर तिरकिथ धिन तिरकित धिन मधुबन में राधिका, धुत्त पगली! माया नाचे रे! बालम की मुरलिया बाजे रे। थिरकित थिरकित, छनछन न न न नोट गिरे स न न न।
कहाँ बाड़ू sss हो पतोहा? नवकी नाक सिकोड़ती है। मुसकाती है। दाँत न दिखाना, अम्मा जी कहिन। घुघ्घुट काहें तनले, रे पतोहा। पुरान जमाना गइल रे। इहाँ आव देखीं। लपर लपर। हमहूँ कहीं, ललना काहे विदेस गैल? लै लो मुँहदेखाई। वोकर त करम फूट गैल। सनीचरी जस मेहरारू।

 

साहित्य लेखन बनाम ब्लौगिंग -- स्त्री-पुरुष चर्चा भाग-११


विषय दो प्रकार के होते हैं -

पहला- विज्ञान , आविष्कार , संस्कृति , भाषा , प्रेम , जनसंख्या , बीमारियाँ , भूकंप , प्रलय , ज्योतिष , आस्था , पकृति , इतिहास , भूगोल , गणित , आंकड़े , तरक्की और विकास , मंदिर , सभ्यताएं , वेद-पुराण , धर्म , भ्रष्टाचार इत्यादि ।
दूसरा - मन के विचार , मन का कोलाहल , मन में उत्पन्न असंख्य प्रश्न , खट्टे मीठे अनुभव , विमर्श , गोष्ठी , प्रतिक्रियाएं , उपलब्धियों की अभिव्यक्ति , मन का आक्रोश , ह्रदय की चिंता या व्यथा की अभिव्यक्ति , थोडा सा खट्टा , थोडा चरपरा , अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर ,आत्मा , पुनर्जन्म , छोटी-छोटी खुशियाँ और बहुत कुछ..
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...न रन, न बिकेट......इंडिया हिट विकेट !

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चौबे जी की चौपाल
(दैनिक जनसंदेश टाईम्स/२७ मार्च २०११ )
....न रन, न बिकेट......इंडिया हिट विकेट !
आज चौपाल में काफी गहमागहमी है,वर्ल्ड कप के  उत्तेजक क्रिकेट मैच की चर्चा जो हो रही है, दालान के बाहर पाकड़ के पेंड के निचवे दरी बिछाके बईठे हैं चौबे जी महाराज और कह रहे हैं कि बटेसर ! आजकल माहौल में इत्ती गर्मी और देशभक्ति की मात्रा इत्ती ज्यादा हो गयी है कि क्रिकेटमय  हो गया है हमरा  देश  .... मैच देखने के चक्कर में हमरी  लोकल पुलिस  हफ्ता वसूली छोड़कर जेब कतरों के साथ टी वी पर अंखिया गराई  दिए  हैं , बस सारा फोकस हमरे धोनी भईया के ऊपर है, हार गए तो धोनी भईया जिम्मेदार और जीत गए तो कहेंगे अमा यार तक़दीर अच्छी थी उसकी ! जैसे हमरे देश में क्रिकेट क्रिकेट न शिला की जबानी हो गयी है, जिधर से गुजरो सारी टी वी कवरेज उसी पर फोकस हो जाती है और मुन्नी की तरह खामखा बदनाम हो जाता है बेचारा धोनी भईया !

 

 

तो आज की झलकियां फ़िलहाल इतनी ही …कल से फ़िर मिलेंगी आपको झा जी की दो पटरियों पर दौडती टरेन ..दो लाईना और एक लाईना भी

शनिवार, 1 जनवरी 2011

द फ़र्स्ट डे प्रोमो ऑफ़ २०११ , पोस्ट झलकियां ….भईया जी ..इश्माईल

 

 

आप सबको वर्ष २०११ के शुभआगमन पर बहुत बहुत शुभकामनाएं

 

 

WEDNESDAY, DECEMBER 29, 2010

'ईश्क का मंजन' गीत का भावार्थ

प्रस्तुत मादक गीत हिन्दी सिनेमा जगत की आने वाली बहुचर्चित फिल्म 'यमला पगला दीवाना' से उद्धृत है. इसमें एक युवा स्त्री के प्रेम त्रिकोण को दर्शाया गया है. एक कोण पर वह खुद है, दूसरे कोण पर एक वृद्ध आशिक और तीसरे कोण पर वृद्धावस्था की ओर अग्रसर उसके दो बेटे हैं. 

O le gayi, le gayi, le gayi 

are baap ri, dilon ki saakhri 

zindagi le zin, karle tu jhim jhim 

maar ki chalti jaaye, dil kare haaye haaye 

jawan kar dil chali kyun kar ke tu bye bye 

garam garam tu jali jali, nari patakha kahan chali

गीत की शुरुआत किसी भी अन्य आयटम गीत की तरह होती है. दर्जनों छिछोरे एक युवा स्त्री के चारों ओर मधुमक्खियों की तरह भिनभिना रहे हैं और उसके सौंदर्य का वर्णन अपनी भाषा में कर रहे हैं. वो भांति-भांति के शब्दों से अपनी भावोदशा के बारे में भी बता रहे हैं. जब वो 'गरम गरम तू जली जली' शब्दों का प्रयोग करते हैं तो बोध होता है वो किसी ढाबे में काम करने वाले युवक हैं. 

 

JANUARY 1, 2011

थोड़ी सी शराब और बहुत सा सुकून बरसे...

ये बेदखली का साल था. हर कोई अपनी ज़िन्दगी में छुअन के नर्म अहसासों को तकनीक से रिप्लेस करता रहा. सौन्दर्यबोध भी एप्लीकेशंस का मोहताज हो गया था. हमने अपनी पसंद के भविष्यवक्ता और प्रेरणादायी वक्तव्य पहुँचाने वाली सेवाएं चुन रखी थी. सुबहें अक्सर बासी और सड़े हुए समाचारों से होती रही. शाम का सुकून भोर के पहले पहर तक दम तोड़ने की आदत से घिरा रहा. कभी किसी हसीन से दो बातें हुई तो कुछ दिन धड़कने बढ़ी फिर बीते सालों की तरह ये साल भी बिना किसी डेट के समाप्त हो गया.
पिछले साल एक किताब कभी रजाई से झांकती तो कभी उत्तर दिशा में खुलने वाली खिड़की में बैठी रहा करती. कभी ऑफिस में लेपटोप केस से बाहर निकल आती फिर कभी शामों को शराब के प्याले के पास चिंतन की मुद्रा में बैठी रहती. मैं जहां जाता उसे हर कहीं पाता था. कुछ एक पन्नों की इस किताब के एक - एक पन्ने को पढने में मुझे समय लगता जाता. आखिर दोस्त अपने परिवारों में मसरूफ़ हुए, ब्लॉग और फेसबुक पर ख़त-ओ-किताबत कम हुई और मैंने उसे पढ़ लिया. इसे पढने में मुझे कोई आठ - नौ महीने लगे हैं.

 

 

शुक्रवार, ३१ दिसम्बर २०१०

लिखते हुए साल की अंतिम कविता

प्रिये  !
लिखते हुए
साल की अंतिम कविता

याद आए मुझे

कुछ भयावह स्वप्न

जिन्हें शब्द देना 

नहीं है वश में

लग रहा है

मानो किसी प्रार्थनाघर में हूँ
मेरे चारों ओर हो रहे हैं धमाके

चीख और उसकी ख़ामोशी की सिसकियों के बीच

लहुलुहान देख रहा हूं

कुछ अजीब से चेहरे जिनकी हंसी 

लिपटी है तरह-तरह के झंडों में

 

लेंस से लद्दाख



नए साल के मौके पर आबीर की तस्वीरें मिली हैं। कस्बा पर आबीर की तस्वीरें पहले भी लगा चुका हूं। कोलकाता में पले-बढ़े आबीर अहमदाबाद के एनआईडी के छात्र रहे हैं। फिल्म निर्माण से भी जुड़े रहे हैं। फिल्मी डिज़ाइन में उनकी गहरी दिलचस्पी रहती है। लेकिन कई बार अपनी रचनात्मकता को बचाने के लिए वे खुद को रूटीन कामों से दूर कर लेते हैं और यायावरी करने लगते हैं। कई महीनों से लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को अपनी कर्मभूमि बना कर यहां काम कर रहे हैं। उम्मीद है उनकी ये तस्वीरें आपको फिर से पसंद आएंगी

 

शुक्रवार, ३१ दिसम्बर २०१०

इस साल का सर्वश्रेष्ठ भारतीय

2010 का सर्वश्रेष्ठ भारतीय -  डा. बिनायक सेन

Posted by Rangnath Singh

 

FRIDAY, DECEMBER 31, 2010

नए साल क़ी शुभकामनाएं- सर्वेश्वर


खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को,
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को,
नए साल की शुभकामनाएं.
जांतें के गीतों को, बैलों की चाल को,
करघे को, कोल्हू को, मछुओं के जाल को,
नए साल की शुभकामनाएं.
इक पकती रोटी को, बच्चों के शोर को,
चौके की गुनगुन को, चूल्हे की भोर को,
नए साल की शुभकामनाएं.
वीराने जंगल को, तारों को, रात को,
ठंढी दो बंदूकों में घर की बात को,
नए साल की शुभकामनाएं.
इस चलती आंधी में, हर बिखरे बाल को,
सिगरेट की लाशों पर फूलों से ख़्वाब को,

 

बधाईयों की किंकर्तव्यविमूढ़ता

पिछले कुछ दिनों से परेशान हूँ, सोशल नेट्वर्किंग साईट्स पर नववर्ष की शुभकामनाओं से.. ऑरकुट पर मेरे जितने भी मित्र हैं लगभग उन सभी को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ, अगर वे मेरे वर्चुअल मित्र हैं तब भी वे आम वर्चुअल मित्र की श्रेणी में नहीं आते हैं.. मगर फेसबुक पर कई लोग ऐसे हैं जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता हूँ और वे लोग ही वर्चुअल शब्द के खांचे में फिट बैठते हैं.. अब ऐसे में जब कोई नववर्ष की शुभकामनाएं भेजते हैं तो मेरे लिए यह किंकर्तव्यविमूढ़ वाली स्थिति हो जाती है.. बधाई के उत्तर में या तो सिर्फ औपचारिकता के लिए आप भी उन्हें उसी तरह कि शुभकामनाएं भेजें, अथवा कुछ भी जवाब ना देकर खुद को एक घमंडी व्यक्ति के रूप में स्थापित कर लें..
मुझसे औपचारिकता निभाना किसी भी क्षण में बेहद दुष्कर कार्य रहा है, और उससे अच्छा खुद को एक अहंकारी व्यक्ति कहलाना अधिक आसान लगता है.. मजाक में कहूँ तो, "अगर मनुष्य एक सामजिक प्राणी है तो मुझमें शत-प्रतिशत मनुष्य वाला गुण शर्तिया तौर से नहीं है.." :)

 

 

शनिवार, १ जनवरी २०११

ख़ुदा हाफ़िज़ ओ नासिर

..........ख़ुदा हाफ़िज़ ओ नासिर

__________________________


ऐ आबिद ए बीमार ख़ुदा हाफ़िज़ ओ नासिर
ऐ बेकस ओ ग़मख़्वार ख़ुदा हाफ़िज़ ओ नासिर
ऐ क़ाफ़िला सालार ख़ुदा हाफ़िज़ ओ नासिर
ऐ सब्र के मे’यार ख़ुदा हाफ़िज़ ओ नासिर

 

SATURDAY, JANUARY 1, 2011

हिंदी भाषा मेरी शान है , मेरी पहचान है -- मेरा १०० वां लेख !

अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी पर अपना शतकीय लेख लिखते हुए मन में अपार प्रसन्नता है।
हिंदी ब्लॉग जगत से जुड़ने के बाद , पहली बार हिंदी भाषा से प्रेम हुआ और मन में अपारसम्मान पैदा हुआ अपनी राष्ट्र भाषा के लिए। इसके पहले कभी सोचा ही नहीं इस था विषय पर।शायद अंग्रेजी स्कूलों में पढ़कर brainwash हो गया था , जहाँ हिंदी का एक शब्द बोलना भीगुनाह होता था और उसके उस गुनाह के लिए शिक्षकों द्वारा बेरहमी से उँगलियों के जोड़ों [knuckles ] पर, लकड़ी की मोटी पटरी से मारा जाता था। तथा प्रति शब्द एक रूपए का जुरमानादेना होता था।
इस यातना से बचने के लिए , कोई भी विद्यार्थी हिंदी बोलने का गुनाह नहीं करता था। इसेलिखते समय अपने Loreto Convent और Canossa Convent के शिक्षक [ Mother Superior, Mother terressa , sister Fillo , sister Lidwin , sister tessel ] आदि आँखों के सामने तैरगए, जिनसे बहुत बार हिंदी बोलने की सजा पायी थी। .
इसके बाद उत्तरोत्तर उच्च शिक्षा में तो हिंदी भाषा में किताबों का अकाल सा रहता है। मेडिकल केदौरान भी विदेशी लेखकों [ Davidson, Parkinson , Hutchinson ] की अंग्रेजी में लिखीकिताबों को ही पढ़कर डिग्री हासिल की।
शुक्र है माता-पिता और आस-पड़ोस वालों का जिनके कारण हिंदी में वार्तालाप का मौक़ा मिलताथा तथा हिंदी सीखने में मदद मिली। वरना कितनी शर्म की बात होती की एक हिंदी राज्य मेंरहकर और हिंदी मात्र-भाषा होने के बावजूद हिंदी नहीं आती।

 

मायके जाने का सुख

1.1.11

आप पढ़ना प्रारम्भ करें, उसके पहले ही मैं आपको पूर्वाग्रह से मुक्त कर देना चाहता हूँ। आप इसमें अपनी कथा ढूढ़ने का प्रयास न करें और मेरे सुखों की संवेदनाओं को पूर्ण रस लेकर पढ़ें। किसी भी प्रकार की परिस्थितिजन्य समानता संयोगमात्र ही है।

मायके जाना एक सामाजिक सत्य है और एक वर्ष में बार बार जाना उस सत्य की प्राण प्रतिष्ठा। पति महत्वपूर्ण है पर बिना मायके जाये सब अपूर्ण है। कहते हैं वियोगी श्रंगार रस, संयोगी श्रंगार रस से अधिक रसदायक होता है, बस इस सत्य को रह रह कर सिद्ध करने का प्रयास भर है, मायके जाना। कृष्ण के द्वारिका चले जाने का बदला सारी नारियाँ कलियुग में इस रूप में और इस मात्रा में लेंगी, यदि इसका जरा भी भान होता तो कृष्ण दयावश गोकुल में ही बस गये होते। अब जो बीत गयी, सो बीत गयी।

पुरुष हृदय कठोर होता है, नारी मन कोमल। यह सीधा सा तथ्य हमारे पूर्वज सोच लिये होते तो कभी भी उल्टे नियम नहीं बनाते और तब विवाह के पश्चात लड़के को लड़की के घर रहना पड़ता। तब मायके जाने की समस्या भी कम होती, वर्ष में बस एक बार जाने से काम चल जाता और बार बार नये बहाने बनाने में बुद्धि भी नहीं लगानी पड़ती। अपने घर में बिटिया को मान मिलता और दहेज की समस्या भी नहीं होती। लड़की को भी नये घर के सबके स्वादानुसार खाना बनाना न सीखना पड़ता। यदि खाना बनाना भी न आता तब भी कोई समस्या नहीं थी, माँ और बहनें तो होती ही सहयोग के लिये हैं। सास-बहू की खटपट के कितने ही दुखद अध्याय लिखे जाने से बच जाते। कोई बात नहीं, ऐतिहासिक भूलें कैसी भी हो, अब परम्परायें बन चुकी हैं, निर्वाह तो करना ही पड़ेगा।

 

शुक्रवार, ३१ दिसम्बर २०१०

कालो न यातो ......

कितना सही कहा गया है --कालों न यातो-वयमेव याता. अर्थात समय नहीं जाता हम लोग जाते हैं.यह जीवन कीसचाई है इससे हममुह नहीं मोड़ सकते.इतनी खरी-खरी बात अभी नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आयोजित एक पार्टी में अपने समय की एक मशहूरहस्ती नें, नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित हम लोंगों के साथ कही.मुझे अचानक यह बात सुखद मौके पर बड़ी अटपटी सीलगी ,माहौल बोझिल लगनें लगा लेकिन बाद में मैंने सोचा तो लगा यार बात तो सौ टके की सही है.प्रतिवर्ष नव वर्ष का इन्तजारकरते-करते हम यह नहीं सोचते कि हम कितनें बरस के हो गये.और हर साल हमे क्या दे रहा है केवल नई-नई चुनौतियाँ -नये-नये समीकरणों के साथ तालमेल,नई जिम्मेदारियां.यानि कि अब शंख वाले-पंख वाले दिन कहाँ गये.उन दिनों, कल की कभीचिंता नहीं होती थी,केवल और केवल चिंता यह होती थी कि नववर्ष की पूर्व संध्या और नव वर्ष का दिन कहाँ-किन मित्रों के साथमनाना है.अब तो लगता है इतनी जल्दी-जल्दी क्यूँ आ रहा है यह नया साल.साल दर साल बीत रहे हैं और हम एक सुखमय समयकी प्रतीक्षा में चुक रहे है जो मृगतृष्णा के रूप में है-नहीं मिल रही है.

 

नए साल की कुछ नई कसमे - - - - - - - - -mangopeople

                                  लो जी कल से नया साल शुरू हो जायेगा कुछ लोगों के लिए तो बस तारीख बदलने वाली है पर कुछ महान, सामर्थवान, हिम्मत वाले लोगों के लिए ये एक नई शुरुआत है असल में हर साल वो एक नई शुरुआत करते है | ये वो विशेष लोग है जो हर साल नवम्बर से ही कुछ कसमे वादे खाने की रस्म खुद से परिवार से दोस्तों से करना शुरू कर देते है कि अगले साल से मै अपनी एक बुरी आदत छोड़ दूंगा या कुछ नया शुरू करूँगा | सभी अपने हिसाब से एक कसम खाते है जैसे
सिगरेट पीना छोड़ दूंगा या
शराब पीना छोड़ दूंगा या
जिम जाना शुरू कर दूंगा  |
रोज सुबह जागिंग शुरू करूँगा |
घर पर ही कसरत शुरू कर दूंगा  |
मीठा, तला भुना, जंक फ़ूड खाना बंद कर दूंगा  |
अब से जम कर पढाई करूँगा |
जीवन को और कैरियर को गंभीरता से लूँगा |
सारा समय घर गृहस्थी में बर्बाद हो जाता है इस बार जरुर कुछ नया सीखूंगी  |
इस साल छुट्टियों में हम कही जरुर घूमने जायेंगे |
इस साल से फिजूल खर्ची नहीं करूँगा कुछ बचत भी करूँगा |

 

Friday, December 31, 2010

मुश्किल है जीना उम्मीद के बिना...


मुश्किल है जीना उम्मीद के बिना
थोड़े से सपने सजायें
थोड़ा सा रूमानी हो जाएँ...

2010 की आख़िरी शाम बैठ के बीते साल पे नज़र दौडाती हूँ... सोचती हूँ... कितना कुछ बीता, कितना कुछ बदला इस बीते साल में... हमारे आस पास... हमारे साथ... हमारे अपनों के साथ... कुछ नये दोस्त मिले, कुछ बिछड़े... कुछ नाम के रिश्ते टूटे... कुछ बेनाम रिश्ते जिये... बहुत कुछ बदला... वक़्त बदला... हालात बदले... ख़ुशी और प्यार का पैमाना भी... हाँ, कुछ हादसों और कुछ हौसलों के बीच कुछ नहीं बदला तो वो है "उम्मीद"... उम्मीद, की वो इंतज़ार है जिसका वो सहर कभी तो आएगी... वो सहर जब धुएँ और धूल से दूषित इस वातावरण में भी सूरज की किरणें हम तक अपनी रश्मियों की मुलायमियत पहुँचायेंगी... जब लोग यू.वी. और अल्ट्रा रेड किरणों के डर के बिना धूप सेक सकेंगे, एक बार फिर... वो सहर जब सपने नींद से निकल कर साकार होंगे... वो सहर जब हम रिश्तों और भावनाओं की तिजारत बन्द कर देंगे... प्यार करने से पहले उसके साइड इफेक्ट्स के बारे में सोचना बन्द कर देंगे... वो सहर जब दिमाग़, दिल का रास्ता काटना छोड़ देगा... हर फैसले से पहले...

 

2011: फिर नया साल और पुराना मैं

फिर नया साल और पुराना मैं

फिर चला लेके ताना बाना मैं ...

मैंने आखिर भुला दिया है सब

तेरे सजने की कवायद की खनक

तेरी परियों की सजावट सी चमक

तेरी खामोश निगाही का सबब

तेरी दस्तक की ज़बां का मतलब

मैंने आखिर भुला दिया है सब

यूँ भी थोडा ही तुझको जाना मैं

फिर चला लेके ताना बाना मैं

फिर नया साल और पुराना मैं ...

 

 

SATURDAY, JANUARY 1, 2011

छह साल से लिया है शब्दों से पंगा

baljeet-basi_thumb6_thumb... सफ़र के पाठक बलजीत बासी को सिर्फ़ एक साथी के तौर पर जानते हैं। बासी जी मूलतः पंजाबी के कोशकार हैं। पंजाब विश्वविद्यालय के अंतर्गत पंजाबी-अंग्रेजी कोश की एक बड़ी परियोजना से दो दशकों तक जुड़े रहे। ज़ाहिर है शब्द व्युत्पत्ति में उनकी गहन रुचि है।बाद में वह प्रोजेक्ट पूरा हो जाने पर वे अमेरिका के मिशिगन स्टेट में जा बसे। अब कभी कभार ही इधर आना होता है। वहाँ भी वे अपना शौक बरक़रार रखे हैं। अमेरिका में खासी तादाद में पंजाबीभाषी बसे हैं और इसीलिए वहाँ कई अख़बार, मैग़ज़ीन आदि इस भाषा में निकलते हैं। इनमें से एक है शिकागो, न्यूयॉर्क औरसैनफ्रान्सिस्को से प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक पंजाब टाइम्स, जिसमें वे नियमित स्तम्भ लिखते हैं। बासी जी ने इसके ताज़ा अंक में सफ़र के पुस्तकाकार आने के संदर्भ में एक परिचयात्मक आलेख लिखा है जिसका गुरुमुखी से देवनागरी में किया मशीनी अनुवाद खुद उन्होंने हमें भेजा है। उन्होंने ताक़ीद किया है कि इसमें से हम जो चाहें काट सकते हैं, सिवाय उन अल्फ़ाज़ के जो उन्होंने हमारी तारीफ़ में कहे हैं। हम पूरा आलेख दो किस्तों में छाप रहे हैं। आप समझ ही गए होंगे क्यों। अब सेल्फ प्रमोशन और मार्केटिंग का ज़माना है, सो हम भी पूरी बेशर्मी से अपने ही ब्लॉग पर मियाँ मिट्ठू बनने की हिमाक़त दिखा रहे हैं। पिछली कड़ी आपने पढ़ी-अमेरिकी पंजाबी पत्रिका में शब्दों का सफ़र अब अगली कड़ी पेशे ख़िदमत है।

 

शब्दों का मुसाफ़िर-2/बलजीत बासी

जीव-विकास सिद्धांत के अनुसार आदिकाल में सारी मानवजाति की एक ही भाषा होनी चाहिए। निरुक्त विषय ही ऐसा है, इसका साधक एक समय-स्थान पर स्थिर हो गया, समझो गया। वडनेरकर जाति का ब्राह्मण है और उसका मानना है कि ब्राह्मणों का असली काम ज्ञान ढूँढना और आम लोगों में बाँटना है। वह रात एक बजे ड्यूटी से फ़ारिग होते सीधे घर पहुंचता है जहाँ मेज़ पर खुले दो दरजन कोश और ढेर सारी और पुस्तकें उसका इन्तज़ार रही होती हैं। वह पाँच बजे तक लिखता है और फिर सफ़र की ताज़ा कड़ी ब्लॉग के हवाले करता है। फिर दस-ग्यारह बजे उठकर पोस्टिंग की कमियाँ दूर करता है। बस, इस के बाद घंटा डेढ़ घंटा और सो कर परिवार के साथ खाना खाता और फिर दफ़्तर दौड़ जाता है। टुकड़ों में बँटी नींद कभी पूरी नहीं होती। 'शहर सूता, ब्रह्म जागे' वाली नाथों-जोगियों वाली कहावत उस पर लागू होती है।

डनेरकर ने शब्दों का यह पंगा कोई छह साल से लिया हुआ है जब से दैनिक भास्कर में उस का यह कालम लगातार छप रहा है। उस का कहना है-

 

ब्लॉगवुड के लिए नववर्ष पर 12 कामनाएं...खुशदीप

 खुशदीप,

पहले इन तारीखों पर गौर करिए...
1.1.11,
11.1.11,
1.11.11,
11.11.11,
ये सब तारीखें इसी साल आनी है...

 

‘हीरो’ फ़िल्म के बारे में

किशोरावस्था में मार्शल आर्ट फिल्मों से पहला परिचय हुआ था और ब्रूस ली एवं जैकी चैन की बहुत फ़िल्में देखीं. बाद में उनसे उकताहट होने लगी क्योंकि सभी में एक जैसी कलाबाजियों वाली फाईट देखकर मन भर गया. जेट ली की कोई फिल्म हाल तक नहीं देखी थी क्योंकि उसकी फिल्मों में भी वही हू-हा उछलकूद रहती है, कहानी भी हर फ़िल्म की एक-सी ही होती है.

इस तरह पिछले दस सालों में न तो सिनेमाहाल में और न ही घर में मार्शल आर्ट की कोई फिल्म देखी. कुछ दिनों पहले एक मित्र ने जेट ली की वर्ष 2000 में बनी फिल्म ‘हीरो’ देखने के लिए बहुत जोर डाला. उसने यह कहा कि यह फिल्म मार्शल आर्ट की होने के बाद भी गहन दार्शनिक प्रश्नों को बूझती है. मैंने यह फिल्म देखी और मुझे यह बहुत अच्छी लगी. इसी फिल्म के बारे में इस पोस्ट में चर्चा की गयी है जिसके लिए इसकी विकीपीडिया प्रविष्टि और रोज़र ईबर्ट के रिव्यू को आधार बनाया गया है.

हीरो का निर्माण चीन/हौंगकौंग के निर्देशक झांग ज़िमोऊ ने किया था. इसकी केन्द्रीय भूमिका जेट ली ने निभाई है. फिल्म ईसापूर्व वर्ष 227 में चीन के क़िन प्रांत के शासक जिंग की हत्या के प्रयासों पर आधारित है. हीरो उस वक़्त तक चीन में बनी सबसे महंगी फिल्म थी और आज तक यह सबसे ज्यादा कमाई करनेवाली चीनी फिल्म है. फिल्म में संवाद अधिक नहीं है और इसे अंग्रेजी सबटाइटल्स में देखा जा सकता है.

 

सुप्रीम कोर्ट की महिला जज के लिए बोझ हैं बेटियां?

Wednesday, December 29, 2010 इस कार्यवाही को पेश करने वाले: लोकेश Lokesh

एक चौंकाने वाली घटना में सुप्रीम कोर्ट की जज ज्ञान सुधा मिश्रा ने अपनी बेटियों को खुद पर जिम्मेदारी बताया है। जस्टिस मिश्रा ने अपनी 2 कुंआरी बेटियों को साल 2010 के दायित्वों में गिनाया है। जस्टिस मिश्रा ने बेटियों की शिक्षा के लिए लिए गए शिक्षा ॠण को भी जिम्मेदारी में गिनाया है। इसके अलावा जस्टिस मिश्रा ने रिटायरमेंट के बाद मकान बनाने की योजना को भी अपना दायित्व बताया है। गौरतलब है कि ज्ञान सुधा मिश्रा वर्तमान समय में सुप्रीम कोर्ट में इकलौती महिला जस्टिस हैं।
मिश्रा की ओर से सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जारी संपत्ति के ब्योरे में यह जानकारी दी गई है। ज्ञान सुधा मिश्रा की यह सोच भारतीय मिडिल क्लास की पारंपरिक मानसिकता को दर्शाता है।
जस्टिस मिश्रा का यह रवैया दर्शाता है कि वह बेटियों की शादी में होने वाले खर्च (दान-दहेज सहित अन्य खर्च) से परेशान हैं। गौरतलब है कि इनको खत्म करने के लिए सरकार कानून के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने लिए भी अभियान चला रही

 

Friday, December 31, 2010

कैरेक्टर्स आल्सो ब्रीद एंड फील

हम जब पढ़ रहे होते है, तो अपने भौतिक जीवन के समानांतर, दरअसल एक दूसरी दुनिया भी गढ़ रहे होते हैं। उस गढ़ी दुनिया में फूल, बारिशें, चौराहे, दुख-दर्द सब होते हैं, और हकीकत की ही तरह जीवंत भी। मतलब ‘कैरेक्टर्स आल्सो ब्रीद एंड फील’। ‘भाषासेतु’ के इस नए स्तंभ में विश्व साहित्य के ऐसे यादगार किरदारों पर लिखे जाने की योजना है। जिसकी पहली किस्त में ‘लीविंग लीजेंड’ मार्केस के सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यास ‘एकांत के सौ वर्ष’ की नायिका ‘उर्सुला’ पर लिख रहे हैं ‘अनिल’। अनिल बिना लाग लपेट के सीधी बात करने वाली प्रजाति के तेज तर्रार युवा पत्रकार हैं, साहित्य से भी खासा लगाव रखते हैं। ‘नए साल की शुरुआत नई चीज़ के साथ’ करने की हमारी सोच को कार्यरूप देने में सहयोग के लिए अनिल का आभार। सभी पाठकों को ‘भाषासेतु’ की तरफ से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

 

SATURDAY, JANUARY 1, 2011

नया-पुराना साल

बड़ा पक्षपाती है, यह काल का पहिया, जिसे चाहे अल्पावधि में उन्नति के शिखर पर ले जाकर बिठा दे और जिसे चाहे, पतन के गर्त में गिराकर नेस्तनाबूद कर दे, किन्तु इसकी निर्लिप्तता भी प्रशंसनीय है, इसके नीचे चाहे कोई भी आए, बिना चिन्ता किए उसके ऊपर से गुजर जाएगा और इसकी निर्बाध गति को देखिए तो बड़ा अनुशासित और नियमबद्ध जान पड़ता है, किसी की चिरौरी-विनती से यह अपनी गति न बढ़ा सकता और न ही किसी की दुआ-बद्‌दुआ से गति कम ही करता। वह तो घूम रहा है, घूमता रहेगा।

क्या हमारी यही नियति है कि काल-चक्र के नीचे आकर पिसते रहें? नहीं, ऐसा सोचना अज्ञानता का परिचायक होगा। काल-चक्र की गति अपने साथ चलने की सीख देती है और अपनी अवज्ञा के प्रतिक्रियास्वरूप कभी-कभार हमारे कान भी उमेठ दिया करती है। जीवन को गतिमान रखने के लिए, काल-चक्र के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए ही हमारे आदि-गुरुओं ने ज्ञान दिया है -

कलिः शयानो भवति, संजिहानस्तु द्वापरः।

उत्तिष्ठस्त्रेता भवति, कृत सपद्यते, चरश्चरैवेति चरैवेति ...

 

SATURDAY, JANUARY 1, 2011

कौन होगा जो सूरज के रथ को फिर से साधने का मन बनाएंगा? - अजित गुप्‍ता

समय दौड़ रहा है। आज सूरज ने भी अपनी रजाई फेंक दी है। किरणों ने वातायन पर दस्‍तक दी है। हमने भी खिड़की के पर्दे हटा दिए हैं। दरवाजे भी खोल दिए हैं। सुबह की धूप कक्ष में प्रवेश कर चुकी है। फोन की घण्‍टी चहकने लगी है। नव वर्ष की शुभकामनाएं ली और दी जा रही हैं। हम भारतीयों के जीवन में ऐसे अवसर वर्ष में कई बार आ ही जाते हैं। कभी दीवाली पर हम बेहतर जीवन की आशा लगाए दीप जला लेते हैं तो कभी होली पर रंगीन सपने सजाते हुए रंगों से सरोबार हो जाते हैं। कभी कोई पुरुष-हाथ भाई बनकर बहन के सामने रक्षा सूत्र की कामना से आगे बढ़ जाता है। कभी हम बुराइयों का रावण जला लेते हैं। कभी गणगौर की सवारी निकलाते हैं तो कभी शीतला माता को ठण्‍डा खिलाते हैं। ना जाने कितनी बार हम एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं?

बस उस पल में हम अपनों का स्‍मरण कर लेते हैं। न जाने कितने कुनबे बनाकर हम जीते हैं? सारी अला-बला से बचते हुए अपने-अपने सुरक्षा कवचों के साथ जीवन जीने का प्रयास करते रहते हैं। सब कुछ अच्‍छा ही हो इसकी सभी के लिए कामना भी करते रहते हैं। हमारी वाणी में शब्‍द-ब्रह्म आकर बैठ जाता है। सम्‍पूर्ण वर्ष हमें यही शब्‍द अनुप्राणित करते हैं, दिग-दिगन्‍त में गुंजायमान होते रहते हैं।

 

साल सदियों पुराना पक्का घर है

साल,
दिखता नहीं पर पक्का घर है
हवा में झूलता रहता है
तारीखों पर पाँव रख के
घड़ी पे घूमता रहता है

बारह महीने और छह मौसम हैं
आना जाना रहता है
एक ही कुर्सी है घर में
एक उठता है इक बैठता है

जनवरी फ़रवरी बचपन ही से
भाई बहन से लगते हैं
ठण्ड बहुत लगती है उन को
कपड़े गर्म पहनते हैं

जनवरी का कद ऊँचा है कुछ
फरवरी थोड़ी दबती है,
जनवरी बात करे तो मुँह से
धुएँ की रेल निकलती है

 

एक ब्लॉग संकलक

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" on Friday, December 31, 2010

मित्रों!आज पूरा ब्लॉगजगत संकलक (एग्रीगेटर) खोज रहा है! मैंने भी वर्ष-2011 की पूर्व संध्या पर एग्रीगेटर का विकल्प खोजने का यह प्रयास किया है!मुझे आशा ही नहीं अपितु विश्वास भी है कि आप अपने ब्लॉग का यू.आर.एल. मुझे मेल...

 

नई प्रविष्टियाँ

  • नजरिया

    कामना शुभकामना... -नूतन वर्ष की इस सुप्रभातकारी बेला में *'नजरिया'* परिवार की ओर से अपने सभी पाठकों, समर्थकों, प्रचारकों व अपने परिचित-अपरिचित साथियों को इस नूतन वर्ष ...

    31 minutes ago

  • ज़ख्म…जो फूलों ने दिये

    शैशवावस्था में हूँ ........... - आज मै दस की हो ली अब ग्यारहवें वर्ष में प्रवेश किया है चाहती हूँ आप सभी इस आने वाले मेरे दशक में मेरे साथी बनें ये मेरे जीवन का एक बहुत ही उन्नत का...

    5 hours ago

  • ताऊ डाट इन

    ताऊ पहेली - 107 -प्रिय बहणों और भाईयों, भतिजो और भतीजियों आप सबको शनिवार की घणी राम राम और साथ ही आज नये साल 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं. साल 2011 की प्रथम और ताऊ पहेली के...

    6 hours ago

 

शुभकामनायें चवन्नी छाप नहीं

...कल रात जहाँ भी शुभकामना सन्देश देने के लिए ट्राई किया, या तो बी एस एन एल साहब ने इनकार कर दिया या मोबाइल उठा भी तो शोर शराबा और हेलो, हेलो ...कट। बन्दों ने पलट कर काल करने की जहमत नहीं उठाई। एस एम एस से मेरी बनती नहीं। बाद में खयाल आया कि उनके मौजा ही मौजा में मैं मूर्ख बेफिजूल हीखलल डाल रहा था। आलसी महराज! तुम्हें रात की पार्टी सार्टी के समय ही सूझी? ग़लत समय पर नेक इरादे!

... मैं तो आज के दिन याद ही करता रह जाता हूँ कि यार! लास्ट टैम इसे कब सेलीब्रेट किया था? याद ही नहीं आता। Such a dull, insipid, bore man!

हाँ, कुछ ग्रीटिंग कार्ड, कुछ फूल, कुछ मुस्कुराहटें अवश्य याद आती हैं। 

 

 

शुक्रवार, ३१ दिसम्बर २०१०

अलविदा वर्ष २०१० , अब अगले साल से नए अड्डे पर मिला करेंगे ......अजय कुमार झा

जी हां आज जब इस ब्लॉग पर ये पोस्ट लिखने बैठा हूं तो समझ ही नहीं पा रहा हूं कि मन कैसा सा हो रहा है । नहीं इसलिए नहीं कि अब इस वर्ष की ब्लॉग की पढाई लिखाई और टिपाई भी तो हो गई ..अब चलें देखें कि अगले बरस क्या नया , और क्या पुराना ही नए चेहरे के साथ सामने आता है । हां फ़िलहाल जिस दौर से हिंदी ब्लॉगजगत गुज़र रहा है उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाला समय इस समय से जरूर ही बेहतर होगा । और देखिए न जिस तरह से जरूरत रास्ता खुद ब खुद बना लेती है । आज हिंदी ब्लॉगजगत के पास कोई भी ऐसा एग्रीगेटर नहीं है जो हिंदी ब्लॉग पोस्ट को अपने आप पाठकों के पास ले आए । मगर फ़िर भी पाठक पढ रहे हैं , और क्या खूब पढ रहे हैं कुछ भी आसामान्य नहीं लग रहा है । लेकिन जरूरी नहीं कि सबके साथ ही ऐसा हो लेकिन बहुत जल्दी ही आप इस समस्या से भी पार पा ही लेंगे या तो एग्रीगेटर्स पुन: आ जाएंगे , पुराने न सही नए ही सही ....या फ़िर बुरी से बुरी परिस्थितियों में क्या होगा ..आपको तलाश तलाश कर पढने की आदत लग जाएगी ।


इसलिए सबसे पहले तो आप सबसे यही आग्रह करूंगा कि , मेरे इस नए पन्ने पर पहुंचे और उसके साथी (फ़ौलोवर ) बन कर अपनी अंतर्जालीय पसंद में स्थान देने की कृपा करें , ताकि कम से कम आप मुझे अपने डैशबोर्ड पर सीधे ही पा सकें ।
फ़िलहाल तो इसी आग्रह के साथ यहां से विदा चाहता हूं कि , इस पगडंडी तक आने के बाद आप उस कच्चे रास्ते पर चले ही आएंगे ..आएंगे न ??

आप सबको नव वर्ष के शुभआगमन पर बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

  और ये है हमारा नया अड्डा …नीचे देखिए न ..

उस मां ने कहा , हां मुझ जैसी ही कोई मेरी कोख में है…..

Posted By अजय कुमार झा On December 30th 2010. Under रद्दी की टोकरी

वो कांप गया जालिम, कत्ल करने से पहले , गिरेबान पकड के जब .
उस मां ने कहा , हां मुझ जैसी ही कोई मेरी कोख में है…..

.

जरूर इस बार अवाम बदल देगी सत्ता की सूरत सीरत,
आरक्षण, भ्रष्टाचार के नाम सडक पर खडी जनता बडे जोश में है …

.

सवाल ये नहीं कि क्या किया , या क्या करोगे अभी ,
मुद्दा तो ये है की , क्यों नीयत तुम्हारी खोट में है .???

 

तो बस आज के लिए इतना ही फ़िल मिलता हूं जल्दी ही ..शुक्रिया । साथ और स्नेह बनाए रखिएगा ..

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

मुलाकात करिए एक ब्लॉगर ..उप्स ..नहीं फ़ेसबुकिए से ..पंकज नारायण ..jha ji introducing pankaj narayan




नाम पंकज नारायण , इस युवा मित्र से जब पिछले दिनों समीर लाल जी वाले कार्यक्रम में एक छोटी सी मुलाकात हुई तो इस मासूम चेहरे के पीछे एक बेहद शर्मीला दिल भी दिखा मुझे । इन्होंने कहा कि ये अक्सर अपने फ़ेसबुक स्टेटस पर अपनी बातें लिखते हैं । आकर जब फ़ेसबुक टटोला तो क्या मिला देखा ,आप भी देखिए


किसी की बहुत याद आती है, तब रात मेरे साथ मॉर्निंग वॉक पर निकलती है।दिन जब अपना होश खो देता है तब सूरज मेरे साथ उन यादों का पीछा करता है।रात और दिन की इस हरकत से पता चलता है कि ज़िंदगी गोल है, क्योंकि धरती होती यादें साथ घुमती हैं और बना देती है मुझे भी किसी की याद। यादों से जुड़ी हिचकियों के मुहावरे सच होते हैं, इसीलिए मेरी बातों में तारे टूट-टूट कर गिरते हैं और कहीं कोई टूटते तारों को देखकर अपनी मन्नते पूरी करता है।



तुम्हारी बातों में दो खूबसूरत आंखें थी, जो रात भर एकटक देखती रहीं मुझे। सच तो यह है कि मेरी आंखों से भी बातें बरसती रही रात भर। एक गीली रात के लिए शुक्रिया... नींद हराम करने के लिए शुक्रिया...




हमें जन्म लेना नहीं आता था... फिर भी हम पैदा हुए। हम मरना नहीं चाहते... फिर भी हम मरते हैं। हमारे पास कल भी एक 'आज' था। हमारे पास आज भी एक 'आज' है। हमारे पास कल भी एक 'आज' होगा।

तुम्हारी खुली हंसी में मेरी ज़िंदगी चैन की सांस लेती है। आना कभी मेरी मीठी बातों में अपना घर बनाने। मैं खुलता दरवाज़ा और तुम बंद होती खिड़की। पलंग पर सलीके से इंतज़ार करते दो तकीये की तरह हमारा होना। साफ-सुथड़े कमरे के दो कोने को गप्पे लड़ाते सुनने वाली एक खूबसूरत पेंटिंग की तरह शांत होकर महसूस करें एक-दूजे को। वहां जरूर आना, जहां 'तुम' तुम रहो और मैं एक खुला हुआ कमरा।


किसी की बहुत याद आती है, तब रात मेरे साथ मॉर्निंग वॉक पर निकलती है। दिन जब अपना होश खो देता है तब सूरज मेरे साथ उन यादों का पीछा करता है। रात और दिन की इस हरकत से पता चलता है कि ज़िंदगी गोल है, क्योंकि धरती होती यादें मेरे साथ घुमती हैं और बना देती है मुझे भी किसी की याद। यादों से जुड़ी हिचकियों की माने तो मेरी बातों में तारे टूट-टूट कर गिरते हैं और कहीं कोई टूटते तारों को देखकर अपनी मन्नते पूरी करता है।


हमारी तपती जुबां पर रोटियां सेक कर, हमारी खुलती आंखों पर अचानक से तेज रोशनी मार कर और अपने माथे पर लाल रोशनी घुमा कर चला गया अपने ही बीच से एक आदमी। सफेद कुर्ते, सफेद गाड़ी और काली दुनिया में घुस जाने के बाद भी उसे गांधी की पेंटिंग और गरीब आदमी का पोस्टर अच्छा लगता है। उसे याद है कि हमने कहा था कि दोस्त तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है। जीतेगा भई जीतेगा...वगैरह वगैरह। एक बिन मांगी दुआ उसे लगी और अचानक से उसके वादों की उमर लंबी होती गई और हम किसी उपन्यास के लास्ट चैप्टर बन गए...


ख़्वाबों को पर्यटन स्थल समझने वाले सभी मित्रों को मेरा नमस्कार। जानकारी के लिए बता रहा हूं- अब वह जगह कई सुविधाओं से लैस है, जैसे इतिहासों की नंगी टांगे, वर्तमान के खूबसूरत पांव और भविष्य का जोशीला कदम। अपने ख्वाबों को हक़ीक़त के बाज़ार में सौदा के लिए भेजने से पहले अपनी अंतरात्मा के फ़र्श पर लिटाएं और उसे अपने आप से कुछ पूछने दें। ज़िंदगी का समाचार समाप्त होने से पहले ख्वाबों का ब्रेकिंग न्यूज़ बनना ज़रूरी है।


अरे रे रे ..सब यहीं पढ लेंगे तो फ़िर बांकी ....अरे यहां जाईये न उनके फ़ेसबुक प्रोफ़ाईल पर

पाबला जी के कहे अनुसार जब जांचा तो पाया कि पंकज भाई का ब्लॉग ये है देखिए

शनिवार, 27 नवंबर 2010

लीजीए हमने बिछा दी फ़िर से दो लाईनों की पटरियां ....jha ji on track





तो लीजीए इस सफ़र के पहली पटरी है तैयार ,



फ़ुर्सत के क्षणों में अच्छी बातें भी पढ लिया करो ॥


राम जी नाम केवल सच्चा लगता है ,



एक राम के बाद मिलिए एक और राम से ,



तुम बजाओ अपनी ढपली , हम अपनी हरमुनिया ,


शनिवार को गूगल का होवे है बुरा हाल


गिरिश भाई नित नए करते हैं प्रयोग ,



ब्लॉगजगत में अमन चैन का फ़ैल रहा पैगाम ,



यूं तो रोहतक मिलन का पढ पढ के आप हो गए बोर ,



फ़ुलमतिया के प्रश्न से , खदेरन हुआ परेशान ,



पढिए देखिए , झकझोर गया तन मन ॥



नशामुक्त बन सके , समाज , ग्राम और देश ॥



कह रही हैं वंदना , अब भी तुम्हारी बहुत याद आती है ,



प्रवीण जी को पढना ,एक अनुभव है , बात हमारी मानिए ॥


कह रही है अंजना हल्की होती बात जो कही जाए बार बार ,



श्याम जी देखिए बिना किए अब देर ,



विवेक भाई के साथ करिए मुंबई का एक सफ़र ,



देखिए कि पोस्ट पर आज क्या पढा रहे हैं



प्रतिभा जी डायरीनुमा ले के आईं कुछ अगडम बगडम ,



ये दिल मेरा मेरे खुदा ,न दर्द की खिताब हो ,




तो आज के लिए इतना ही इजाजत दीजीए ....मैं पुराने रंग मैं लौट रहा हूं आहिस्ता आहिस्ता ...

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

झा जी कहिन फ़िर लौटा पोस्टों की झलकियां लेके ..

 

 

जी हां , अब कल से कोशिश करूंगा कि वही पुराने अंदाज़ में आपको दो लाईनों में पोस्टों तक पहुंचाने का सूत्र पकडाता चलूं ..निरंतर और निर्बाध …

 

Thursday, November 25, 2010

दुनिया की १० सबसे खतरनाक और जटिल सडकें :-१

आज अपनी हर पोस्ट से अलग हटकर मैं आपके समक्ष लाया हूँ कुछ तस्वीरें, ये तस्वीरें हैं दुनिया की १० सबसे खतरनाक और जटिल सड़कों की, इस पोस्ट को दो भागों में प्रकाशित किया जायेगा | तो आज कोई चिंतन नहीं, कोई काव्य नहीं बस पेश है दुनिया की ५ सबसे खतरनाक और जटिल सडकें |
१. इस सूची में पहले स्थान पर है फ़्रांस में आल्पस पर्वत श्रंखला पर स्थित Col-De-Turini .. ये सड़क समुद्रतल से २० मीटर ऊपर से प्रारंभ होकर १६७० मीटर तक जाती है |

------------------------------------------------------------------------------------------------------------                       २... दूसरे स्थान पर है इटली स्थित stelvio-pass , और ये भी आल्पस की पर्वत श्रृंखला पर ही स्थित है |

------------------------------------------------------------------------------------------------------------                       ३... तीसरे स्थान पर नाम आता हैभारत का | हिमाचल प्रदेश में लेह-मनाली मार्ग | इस सड़क के खतरनाक होने का मुख्य कारण है यहाँ होने वाली बर्फ़बारी और भूस्खलन | इस सड़क की देखभाल पूरी तरह से भारतीय सेना की जिम्मेदारी है |

 

 

दिल्ली में मिले दिल वालों से..१३ नवम्बर, २०१०

इतना सारा स्नेह, इतना सम्मान-ढेरों रिपोर्टिंग.

आनन्द आ गया दिल्ली मिलन समारोह में.

अक्षरम हिंदी संसार और प्रवासी टुडे से जुडे अनिल जोशी जी एवं अविनाश वाचस्पति जी जिस दिन मैं दिल्ली पहुँचा, उसके अगले दिन ही आकर मिले. बहुत देर चर्चा हुई, चाय के दौर चले और तय पाया कि सभी ब्लॉगर मित्र कनाट प्लेस में मुलाकात करेंगे. १३ तारीख को शाम ३ बजे मिलना तय पाया.

१३ तारीख को सतीश सक्सेना जी का फोन आया और उन्होंने मुझे अपने साथ चलने का ऑफर दिया. अंधा क्या चाहे, दो आँख. मैं तुरंत तैयार हो गया मगर जब बाद में पता चला कि वह मुझे लेने नोयडा से दिल्ली विश्व विद्यालय नार्थ कैम्पस तक आये हैं और उसकी दूरी और ट्रेफिक को जाना तो लगा कि काश!! मैं खुद से चला जाता तो उन्हें इतना परेशान न होना पड़ता.

कनाट प्लेस जैन मंदिर सभागर में बहुत बड़ी तादाद में ब्लॉगर मित्र पधारे थे, सभी के नाम आप विभिन्न रिपोर्टों में पढ़ ही चुके हैं उन सबके साथ साथ वहाँ प्रसिद्ध व्यंग्यकार मान. प्रेम जनमजेय जी को पाकर मन प्रफुल्लित हो उठा. फिर पाया कि वहाँ मीडिया रिसर्च स्कॉलर श्री सुधीर जी के साथ अनेक बच्चे मीडिया शिक्षार्थी ब्लॉगिंग के विषय में कुछ जानने समझने आए हैं. बहुत अद्भुत नजारा था सब का मिलना. इन्हीं शिक्षार्थियों में एक छात्रा रिया नागपाल जिसने हिंदी ब्लॉगिंग को ही शोध के विषय के रूप में चुना है, से मुलाकात हुई और उसने मुझे याद दिलाया कि एक बार वह मेरा इसी विषय पर कनाडा से साक्षात्कार ले चुकी है. बहुत अच्छा लगा सबसे मिलकर.

 

 

THURSDAY, NOVEMBER 25, 2010

मुझसे भी तो बाटों चाँद   [DSC00705.JPG]

पतला पतला काटों चाँद

मुझसे भी तो बाटों चाँद

ओस बन टपके आंसूं
ऐसे तो ना डाटों चाँद
सिन्दूरी सुबह कजरारी रात
अपना रंग भी छाटों चाँद
करवा चौथ पे तू भी देखे
इस धरती पर कितने चाँद
बरसे जो सिक्को की माफिक
बारातों में लूटो चाँद
लटके लटके थके नहीं तुम

कभी तो नभ से टूटो चाँद

 

 

THURSDAY, NOVEMBER 25, 2010

रूल्स जो भारतीय फॉलो करते हैं...खुशदीप

मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं...मेरी मर्ज़ी...क्या हम भारतीयों के अंदर कोई आइडेंटिकल और टिपीकल जींस पाए जाते हैं...पृथ्वी सूरज का चक्कर काटना छोड़ सकती है लेकिन मज़ाल है कि राइट टू मिसरूल के हमारे जींस अपने कर्मपथ से कभी विचलित हों...अब दिल थाम कर इसे पढ़िए और दिल से ही बताइए कि क्या आप इन रूल्स (मिसरुल्स) का पालन नहीं करते...
रूल नंबर 1
अगर मेरी साइड पर ट्रैफिक जैम है तो मैं बिना एक मिनट गंवाए साथ वाली रॉन्ग साइड पकड़ लूंगा...मानो सामने से आने वाली सभी गाड़ियों को बाइपास की तरफ़ डाइवर्ट कर दिया जाएगा...

 

 

बीबीसी हिंदी ब्लॉग्स पर देखिए क्या पढा लिखा जा रहा है

 

 

बेईमानों के बीच ईमानदार

विनोद वर्मा विनोद वर्मा |

मैं एक प्रशासनिक अधिकारी को जानता हूँ जिनकी ईमानदारी की लोग मिसालें देते हैं.

वे एक राज्य के मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव थे लेकिन लोकल ट्रेन की यात्रा करके कार्यालय पहुँचते थे. वे मानते थे कि उन्हें पेट्रोल का भत्ता इतना नहीं मिलता जिससे कि वे कार्यालय से अपने घर तक की यात्रा रोज़ अपनी सरकारी कार से कर सकें.

वे ब्रैंडेड कपड़े ख़रीदने की बजाय बाज़ार से सादा कपड़ा ख़रीदकर अपनी कमीज़ें और पैंट सिलवाते थे.

जिन दिनों वे मुख्यमंत्री के सचिव रहे उन दिनों सरकार पर घपले-घोटालों के बहुत आरोप लगे. उनके मंत्रियों पर घोटालों के आरोप लगे. लोकायुक्त की जाँच भी हुई. कई अधिकारियों पर उंगलियाँ उठीं.विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त भी हुई. कहते हैं कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को अच्छा चंदा भी पहुँचता रहा.

लेकिन वे ईमानदार बने रहे. मेरी जानकारी में वे अब भी उतने ही ईमानदार हैं.

उनकी इच्छा नहीं रही होगी लेकिन वे बेईमानी के हर फ़ैसले में मुख्यमंत्री के साथ ज़रुर खड़े थे. भले ही उन्होंने इसकी भनक किसी को लगने नहीं दी लेकिन उनके हर काले-पीले कारनामों की छींटे उनके कपड़ों पर भी आए होंगे.

 

WEDNESDAY, NOVEMBER 24, 2010[rk.jpg]

हिन्दी मे लिखने का प्रथम प्रयास - "भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मेरी लड़ाई"

हिन्दी मे लिखने का प्रथम प्रयास -

विगत काफ़ी समय से श्री विवेक रस्तोगी जी चाह्ते थे कि हमे भी हिन्दी ब्लॉग में शामिल होना चाहिए, सोचाशुरुआत करे। काफ़ी विचार करने के बाद मैंने पहले विषय के रूप में "भ्रष्टाचार" का चयन किया।

भ्रष्टाचार, मैं इसे "नैतिक पतन" कहना ज्यादा उचित समझता हू । यह हमारे-आपके, हम सबके घरो से शुरूहोता है, उदाहरणार्थ अगर हमारा बच्चा नहीं पढ़ रहा है तो हम कहते हैं, अगर आप समय पर अपना काम खत्मकरेगे तो आप को कुछ खिलौना या chocklet मिल सकती है....इस तरह हम उसे जाने अनजाने नैतिक पतन कापाठ सिखा रहे होते है। बच्चा तो यही समझता है कि ये सब सही है....और धीरे धीरे ये उसकी आदत मे आ जाताहै....और जब वह बड़ा होता है तो वो भी यही सब करता है और बाद मै हम इसी भ्रष्टाचार को ले कर परेशान होते है।

 

THURSDAY, NOVEMBER 25, 2010

हर फिकराकस की एक औक़ात होती है....!!

 

मसक जातीं हैं,
अस्मतें,

किसी के फ़िकरों
की चुभन से,

बसते हैं मुझमें भी
हया में सिमटे

आदम और हव्वा,

 

जो है सो है

जब सरकार ही ब्लैकमेलिंग पर उतर आए...

राजेश कालरा Thursday November 25, 2010

इस देश में ईमानदारी के तेजी से गिरते मापदंडों के बावजूद, पिछले दिनों देश के उच्चतम न्यायालय और अटॉर्नी जनरल (AG) के बीच सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर (CVC) के तौर पर  पी. जे. थॉमस की नियुक्ति पर तीखी बातचीत एकदम अभूतपूर्व है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस तरफ ध्यान खींचा, जो कि सही भी था, कि अगर सीवीसी के खिलाफ ही आपराधिक मामला लंबित पड़ा है, तो उनसे यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह राष्ट्र के टॉप विजिलेंस कमिश्नर के तौर पर अपना काम सही ढंग से कर पाएंगे। कोर्ट ने यह कहा:  क्या यह सीवीसी के लिए शर्मिंदगी भरा नहीं होगा जब लोग उनसे जांच करने के अधिकार पर ही सवालिया निशान खड़े करेंगे, क्योंकि वह खुद एक आरोपी हैं?

 

बृहस्पतिवार, २५ नवम्बर २०१०

पुराने स्वेटर

आज
माँ उधेड़ रही है
पुराने स्वेटर
भीगी आँखों से
और एक चलचित्र चल रहा है
उसके भीतर 

कैसे माँ बुनती थी
स्वेटर
जाग कर 

रात रात भर

सोच सोच कर 

खुश हो रही आज 

 

HURSDAY, NOVEMBER 25, 2010

माँ की बाँहों में


माँ - सुबह का अजान
माँ- रात की लोरी
माँ- जब कहीं कोई राह नहीं तो माँ एक हौसला
माँ कितनी भी कमज़ोर हो जाये , ऊँगली नहीं छोडती
हर दिन नज़र से उतार
एक नया दिन दे जाती है.......
दिखे ना दिखे
माँ साथ चलती है ..........

रश्मि प्रभा

 

बुधवार, २४ नवम्बर २०१०[15851_100730153284245_100000417829415_17814_1531418_n.jpg]

आदमी से छाँव होता जा रहा है

देख कब से धूप से बतिया रहा है,
आदमी से छाँव होता जा रहा है ।
दिल है के उलझा हुआ है मस’अलों में,
इल्म वो मुद्दे सभी सुलझा रहा है ।
खो गया हूँ बारहा बातों में उसकी,
उसके लहज़े में घना कोहरा रहा है ।
है बहुत बेचैन मंजिल पर पहुँच कर,
याद उसको रास्ता अब आ रहा है ।
कब तलक आखिर रहे वो साथ खुद के,
अब वो अपने आप से उकता रहा है ।

 

बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम पर परिचर्चा


राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जिसमें जदयू और भाजपा शामिल है, ने बिहार विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार जीत का परचम लहरा दिया है। 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में राजग को तीन चौथाई बहुमत मिला है। उसके 206 उम्मीदवार जीत गये हैं। चुनाव आयोग की ओर से घोषित नतीजों के अनुसार, जनता दल यूनाइटेड 115 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। उसकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी को 91 सीटें मिली हैं। 2005 के विधानसभा चुनाव के हिसाब से सबसे ज्यादा फायदे में भारतीय जनता पार्टी रही। उसे पिछली विधानसभा के 55 सीटों के मुकाबले 36 अतिरिक्त सीटें मिली हैं। पिछली बार के मुकाबले नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने अपनी सीटों में 27 की बढ़ोतरी की। लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल की सीटें 54 से घटकर 22 हो गई हैं। राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को 7 सीटों का नुकसान हुआ और वह 10 से 3 पर आ गए। कांग्रेस 9 से 4 पर आ गई जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी अपने दो विधायकों से हाथ धो बैठी. उसे सिर्फ 1 सीट मिली है।

बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम की कुछ विशेष बातें-

-गुजरात के बाद दूसरी बार जनता ने विकास के लिए मतदान किया।

-बिहार चुनाव का संदेश-जो विकास करेगा, वही जीतेगा।

-बिहार के महारोग जातिवाद को ध्‍वस्‍त करते हुए जात-पांत से ऊपर उठकर मतदान किया।

 

एक और व्यंग्य ग़ज़ल----(विनोद कुमार पांडेय) [Image072.jpg]

व्यंग्य ग़ज़लों का सिलसिला जारी रखते हुए अपने सीधे-सादे लहजे में प्रस्तुत करता हूँ एक और ग़ज़ल|आप सब के आशीर्वाद का आपेक्षी हूँ.


चारो ओर मचा है शोर
सब अपनें-अपनों में भोर
बच कर के रहना रे भाई
बना आदमी आदमख़ोर
इंसानों ने सिद्ध कर दिए
रिश्तों की नाज़ुक है डोर
नज़र उठा कर देखो तो
है ग़रीब,सबसे कमजोर

 

 

Thursday, November 25, 2010

सबसे युवा कबाड़ी का स्वागत


नीरज बसलियाल सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं. पूना में रहते हैं. उनके ब्लॉग कांव कांव पब्लिकेशन्स लिमिटेड की कुछेक पोस्ट्स ने मेरा ध्यान खींचा था. उन्हें कबाड़ख़ाने का सदस्य बनाने की नीयत से मैंने उन्हें एक मेल लिखी और कल रात टेलीफ़ोन पर कुछ देर बात भी की. थोड़ा सा शर्मीला सा लगने वाला यह नजवान अभी फ़क़त पच्चीस साल का है. कबाड़ख़ाना अपने सबसे युवा साथी का इस्तकबाल करता है और यह उम्मीद भी कि उनके बेबाक और अनूठे गद्य का रसपान करने का हमें यहां भी मौका मिलेगा. फ़िलहाल प्रस्तुत है उनकी नवीनतम पोस्ट उन्हीं के ब्लॉग से:

 

बृहस्पतिवार, २५ नवम्बर २०१०

जब जुड़ना ही है तो.....ब्रेक के बाद क्यूँ?

चोपडाओं और जोहरों का फिल्म बनाने का अपना तरीका है। इसमें वह दर्शकों को आकर्षित कर पाने में सफल भी होते रहे हैं, इसलिए वह अपनी इस शैली पर खुद ही फ़िदा हैं। अब ये बात दीगर है कि इन फिल्मकारों की इस घिसी पिटी शैली से दर्शक ऊबने लगे हैं। यश चोपड़ा की प्यार इम्पोसिबिल तथा जोहर की वी आर फॅमिली और आइ हेट लव स्टोरीज की असफलता इसका प्रमाण है। कुनाल कोहली भी इसी स्कूल से हैं। इसी लिए उनकी नयी फिल्म ब्रेक के बाद में चोपडाओं और जोहरों की झलक नज़र आती है। अभय गुलाटी और आलिया खान बचपन से साथ पले बढे हैं। अभय आलिया से प्रेम करता है और शायद आलिया भी। पर ना जाने क्यूँ आलिया ब्रेक लेना चाहती है और अभय इसे मान भी लेता है।क्यूँ ? यह कुनाल जाने। आलिया ऑस्ट्रेलिया चली जाती है। अभय भी पीछे पीछे जाता है।

 

THURSDAY, NOVEMBER 25, 2010

२६/११ की बरसी पर विशेष - एक रि पोस्ट
बताओ करें तो करें क्या ...................??????

हाँ हाँ यादो में है अब भी ,
क्या सुरीला वो जहाँ था ,
हमारे हाथो में रंगीन गुब्बारे थे
और दिल में महेकता समां था ..........


वो खवाबो की थी दुनिया ..........
वो किताबो की थी दुनिया ..................
साँसों में थे मचलते ज़लज़ले और
आँखों में 'वो' सुहाना नशा था |

 

 

जानिये नये-नये ब्लॉग पते

Posted by जयराम "विप्लव" on November 25, 2010 in ब्लॉग हलचल | 1 Comment

हर रोज नये -नये ब्लॉग अवतरित हो रहे हैं | एक ब्लोगवाणी था जो ब्लॉग पाठकों को इन नवागंतुकों की जानकारी देता रहता था अब थोड़ा बहुत काम चिट्ठाजगत कर रहा है | जनोक्ति पर “ब्लॉग-हलचल” स्तम्भ में हर रोज जानिये नये-नये ब्लॉग पते |

1. ANJANA SAMAJ (http://aanjana.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Sanwal Ram Choudhary

 

बृहस्पतिवार, २५ नवम्बर २०१०

इंडिया माता

भारत माता की जय के नारे लगाते हुए बचपन से जवान हुए। यह एक ऐसा नारा है जो दिलों में जोश और खून में रवानगी पैदा करता है। भारतमाता की जय बोलते हुए देश का भौगोलिक नक्शा हमारी आँखों के सामने घूम जाता है। जो बताता है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक देश का हर नागरिक विभिन्न जाति धर्म और सम्प्रदाय का होते हुए भी भारत का नागरिक है। भारत जो हमारे दिलों में बसता है। भारत जिसके दर्शन लहलहाते खेतों, खिलखिलाते बच्चो, जिंदगी से हार न मान कर सतत संघर्ष करते लोगों में हमें रोज होते हैं।
एक बंटवारा अंग्रेजों ने किया था। एक बंटवारा हम भारतीयों ने कर डाला। भारत को इंडिया बनाकर। राहुल गांधी की बात माने तो इंडिया प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है, पर भारत कहीं पीछे छूट गया। वो भारत जो गावों में बसता है जो इंडिया के लिए रोटी पैदा करता है, पर उसके भाग्य में अक्सर दो जून की रोटी मयस्सर नहीं होती। यह भारत अक्सर इन तथाकथित इंडियन्स के हाथों दुत्कारा जाता है क्योंकि ये इनके लकदक सफेद कपड़ों और चमचमाती कारों के बीच बदनुमा धब्बे सा घूमता रहता है इसलिए जब विदेशी मेहमान शहर में तफरीफ लाते हैं या कॉमनवेल्थ खेल जैसे समारोह होते हैं तो या तो इनके बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है या इनसे निजात पाने के लिए इन्हें शहर से ही खदेड़ दिया जाता है।

 

 

तो आज के लिए इतना ही …

शनिवार, 13 नवंबर 2010

दिल्ली ब्लॉगर संगोष्टी एवं विमर्श ..उडनतश्तरी उतरी राजधानी में ..just a photo shoot ...झा जी के कैमरे से



अभी अभी दिल्ली ब्लॉगर संगोष्ठी एवं विमर्श से लौटा हूं ...मन और तन दोनों ही पुलकित हैं ..क्या क्या हुआ किसने क्या कहा ..किसने क्या सुना ...किसने क्या देखा .....अरे रे रे आप तो जल्दी मचाने लगे ...भाई ..इतनी जल्दी भी क्या है ...अभी सिर्फ़ चंद फ़ोटो शूट देखिए । आपको तफ़सील से पूरी रपट पढवाएंगे । फ़ोटो भी सिर्फ़ कुछ ही दिखा रहा हूं ....तब तक मुंह का स्वाद बनाईये ...पूरा पकवान मैं धीरे धीरे तैयार करता हूं । अरे यार लगभग पचास से भी अधिक मित्र साथी थे , सबकी बातें हैं यादें हैं ..और हमारे सुपर स्टार ..उडनतश्तरी जी , बालेन्दु दधीच जी ..और भी हैं भई .....















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