फ़ॉलोअर

रविवार, 17 अप्रैल 2022

गर्मियों में गमलों के पौधों के लिए बरती जाने वाली विशेष बातें : बागवानी मन्त्र

 





पूरी दुनिया में धीरे धीरे धीरे बढ़ती जंग और उनमें , धरती की छाती पर और पूरे वायुमंडल में दिन रात ज़हर घोलते बम बारूद , तेल , पेट्रोल , गैस , धुआँ , कचरा जो नास पीट रहा है वो अलग।  ऐसे में फिर यदि मार्च के अंतिम सप्ताह में सबको जून वाली तपिश और भयंकर लू का एहसास और नज़ारा देखने को मिल रहा है तो हैरानी भी आखिरकार क्यों हो ?? 

इसका सीधा असर सबसे पहले धरती की वनस्पति पर ही पड़ना शुरू होता है।  आसपास , सब्जियों , फलों और साग पात के आसमान छूते भाव से इसका अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है।  ऐसे में , इन शहरों और कस्बों में रह रहे हम जैसे लोग जो , गमलों में मिटटी डाल कर कभी छत तो कभी बालकनी में साग सब्जियों फूलों पत्तों को उगाने लगाने का जूनून पाले हैं उनके लिए कोई भी मौसम अपने चरम पर पहुँचते ही उनके पौधों के लिए दुरूह हो उठता है।  चलिए गर्मियों में बात करते हैं -पौधों को गर्मियों और तेज़ धूप से बचाने की।  मैं आपके साथ वो साझा करूँगा जो मैं करता हूँ।  



गमलों का स्थान बदलना /कम धूप वाली जगह पर : गर्मियों के आते ही मेरा सबसे काम होता है , गमलों को पूरे दिन तेज़ धूप पड़ने वाले स्थान से हटा कर कम धूप वाले स्थानों पर रखना।  यदि ये संभव नहीं हो तो फिर कोशिश ये रहती है कि सभी गमलों को , या कहा जाए की पौधों की जड़ों को आसपास बिलकुल चिपका चिपका कर रखा जाए।  गर्मियों में अधिक वाष्पीकरण होने के कारण गमलों की मिट्टी सूखने लगती है जबकि एक साथ रखने पर जड़ों में नमी काफी समय तक बनी रहती है।  मैं बड़े पौधों की जड़ों में छोटे छोटे पौधे रख देता हूँ।  



जड़ों में सूखे पत्ते , सूखी घास आदि रखना : गर्मियों में , पौधों की जड़ों और मिट्टी में नमी बनाए रखना , इसके लिए उपलब्ध बहुत सारे उपायों में से एक भी सरल और कारगर उपाय होता है।  पौधे के सूखे पत्तों ,घास को अच्छी तरह से तह बना कर पौधे की जड़ में मिटटी के ऊपर बिछा दें।  ये गीले पत्ते जड़ों की नमी को बहुत समय तक बनाए रखेंगे।  


पानी ज्यादा देना : गर्मियों में अन्य जीवों की तरह वनस्पति को पानी की अधिक जरूरत पड़ती है , विशेषकर गमलों में तो और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है।  पानी कितना कब ,कितनी बार देना ये है सब पौधे , ,मिटटी , स्थान पर की जा रही बागवानी पर निर्भर करता है , मैं कई बार दिन में चार बार और रात को सोने से पहले भी पौधों को पानी देता हूँ।  किसी भी , खाद , दवाई , देखभाल से अधिक जरूरी और कारगर पौधों को नियमित पानी देना होता है। गर्मियों में तो ये अनिवार्य हो जाता है।  

हरी शीट /जाल आदि से ढकना :यदि पौधों के ऊपर तेज़ तीखी धूप पूरे दिन पड़ती है तो निश्चित रूप से , साग , धनिया ,पुदीना के अतिरिक्त नरम स्वभाव वाले सभी फूल पौधों के लिए मुशिकल बात है।  इससे पौधों को बचाने के लिए या धूप की जलन को कम या नियंत्रित करने के लिए ,हरी शीट , जाल , त्रिपाल का प्रयोग किया जा सकता है।  मेरे बगीचे के दोनों ही हैं।  



ड्रिपिंग प्रणाली का प्रयोग करना : शीतल पेय पदार्थ तथा पानी की बोतलों को गमलों में पौधों की जड़ के पास फिक्स करके ड्रॉपिंग प्रणाली वाली तकनीक से भी जड़ों में पानी और नमी को बचाए रखने में अचूक उपाय साबित होता है।  बोतल में छिद्र के सहारे , धीरे धीरे जड़ो में रिसता पानी , पौधों को हर समय तरोताजा बनाए रखता है।  



गर्मियों में खाद दवा आदि के प्रयोग से यथा संभव बचना चाहिए और सिर्फ और सिर्फ घर के बने खाद को ही जड़ों में डाला जाना चाहिए। 

जड़ों के साथ साथ , पत्तों टहनियों और पौधे के शीर्ष पर भी पानी का छिड़काव करना चाहिए , किन्तु कलियों फ़ूलों पर पानी  डालते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।  

गर्मियों में पौधों की काट छाँट और निराई गुड़ाई का काम जरूरत के अनुसार ही करना ठीक रहता है।  

रविवार, 11 जुलाई 2021

बागवानी के इच्छुक हैं तो -यही समय है -शुरू हो जाइये




 #बागवानीमंत्र : 

बागवानी  करने और उसमें भी बागवानी शुरू करने वाले मित्रों को अब इसके लिए तत्पर हो जाना चाहिए। बागवानी के लिए वर्ष के सबसे उपयुक्त मौसम में से एक यानि बरसात और आर्द्र वातावरण बस सामने ही है।  इस मौसम में तो बेजान पेड़ पौधों में भी नवजीवन अंकुरित हो उठता है।  

बरसात में साग पात ,धनिया , पुदीना आदि को छोड़कर सभी फूल फल बीज कलम आदि की बागवानी की जा सकती है।  बीज से और कटिंग से , दोनों ही विधियों से इस मौसम में पौधे आसानी से उगाए और लगाए जा सकते हैं।  हाँ नए और नन्हें पौधों को तेज़ हवा कर ज्यादा पानी से बचाव के लिए जरूर ही सावधान रहना चाहिए।  

पहले से उपलब्ध ,पुराने बड़े पौधों की कांट छाँट , बारिश की पहली फुहारों के बाद करना बेहतर रहता है।  बरसात का भारी नमी वाला मौसम इन पौधों को फिर तेज़ी से नए पत्तों टहनियों के सात हरा भरा करने लगता है और अगले मौसम के लिए पौधे ज्यादा पुष्ट व स्वस्थ हो जाते हैं।  

बरसात में हवा में  नमी की अधिकता , कीट-पतंगों के आगमन , प्रजनन , वृद्धि का  भी समय होता है इसलिए नए पुराने हर बागबान को इन कीटों से निपटने के उपाय व औषधियों के बारे में भी थोड़ी बहुत जानकारी रखना उचित रहता है। 

बीज बोन से लेकर अकुंरण और शिशु पौधों की अवस्था तक इन्हें तेज़ बारिश से भी बचाया जाना जरूरी होता है।  ज़रा सी लापरवाही कई बार १० -२० दिनों की मेहनत पर पानी फेर सकती है।  मसलन तेज़ हवा से पौधों का गिरना या गमलों में जमा पानी से जड़ों में गलन की समस्या आदि। 



पौधों में खाद के रूप में सबसे अधिक लाभदायक होते हैं -रसोई से निकले कच्चे अपशिष्ट यानी साग सब्जियों फलों के छिलके /डंठल /बीज आदि।  सबसे सरलतम तरीके से उपयोग करने के लिए इन्हें पानी में भिगो कर 6-8 घंटे छोड़ देना चाहिए।  इसके बाद पानी को छान कर और इसमें इतना ही पानी और मिला कर सभी पौधों की जड़ों में थोड़ा थड़ा डालते रहना चाहिए। बचे हुए छिलकों को भी छोटा छोटा करके जड़ों की मिटटी में मिला देना चाहिए।  ये सदाबहार उर्वरक सबसे सरल और सबसे अधिक प्रभावी साबित होते हैं।  

इस आर्द्र मौसम में गमलों का स्थान संयोजन , पौधों के जड़ों के आसपास की मिट्टी की निराई गुड़ाई , छोटे  पौधों पर कीट पतंगों का अतिक्रमण आदि का भी विशेष ध्यान रखना ठीक रहता है।  आज के लिए इतना ही -अगले अंक में बात करेंगे -बागवानी में गमलों के स्थान संयोजन -प्रभाव और परिणाम की।  

शनिवार, 8 मई 2021

पौधों की सिंचाई -बागवानी की एक खूबसूरत कला - बागवानी मन्त्र


 




बागवानी के अपने पिछले 15  वर्षों से अधिक के अनुभव को साझा करते हुए मैंने पिछली पोस्टों में बताया था कि , बागवानी में मौसम , मिट्टी , गमले , पौधे और निराई गुड़ाई का क्या कितना कैसा उपयोग और महत्त्व है।  आप सबके प्रश्नों , जिज्ञासाओं , समस्याओं को पढ़ते समझते उन पर विमर्श करते बहुत कुछ सीख और समझ रहा हूँ।  

चलिए साप्ताहिक पोस्ट में और बागवानी मन्त्र की इस कड़ी में हम आज बात करेंगे -सिंचाई की।  पौधों में पानी डालना।  लो बस इतने से काम के लिए क्या सीखना समझना ?? जो इस काम को इतना सा काम समझते हैं उनके लिए बस इतना ही कि , बागवानी में पौधों की देखभाल और समुचित विकास के लिए पानी डालना और वो भी संतुलित ,नियंत्रित और कायदे से डालना सबसे ज्यादा जरूरी है नहीं तो आपकी बागवानी का पूरा काम ही हो जाएगा।  

हर पौधे , गमले , स्थान ,  (धूप और छाया का अनुपात , इनडोर पौधों में तो ये सबसे ज्यादा जरुरी है ) ,मिट्टी का प्रकार, पर निर्भर करता है कि पौधे की सिंचाई में पानी की मात्रा कितनी कम या ज्यादा रखनी होगी।  ये बहुत कठिन भी नहीं है , गमले की मिटटी में नमी बनी रहे , यही बुनियादी शर्त है और इसके लिए मिटटी की निराई गुड़ाई लगातार की जानी जरूरी होती है ताकि पानी नीचे तक पहुँच सके और जड़ों को देर तक जल पोषण मिलता रहे।  

पानी देने का सर्वोत्तम समय - तेज़ , तीखी धूप को छोड़कर कभी भी। और पौधों की जरूरत के अनुरूप ही।  उदाहरण के लिए  दिल्ली में इस अत्यधिक गर्मी वाले मौसम में -चन्द्रकान्ति उर्फ़ संध्या के पौधे में मुझे चार चार बार पानी देना पड़ता है , और अक्सर मैं पौधों में रात को भी पानी डाल देता हूँ जो किसी भी तरह से बेहतर विकल्प नहीं होता ,मगर पौधों के जीवन को बचाने के लिए और सुबह तक पूरी तरह से झुलस जाने से बचाने के लिये ऐसा करना पड़ता है कई बार।  फिर भी अँधेरे में पौधों में पानी देने से यथासंभव बचना चाहिए।  

पानी हमेशा जड़ों में डालना चाहिए , अक्सर ऐसा होता है कि पानी देने वाले खड़े खड़े सीधा पाइप लेकर पौधों की जड़ों में तेज़ धार से भी पानी डालते हैं जो ठीक नहीं होता।  पानी हमेशा गमले के बिलकुल करीब जाकर और झुककर डालें।  विशेष सावधानी ये कि , कलियाँ ,फूल , फल और पौधे के शीर्ष पर पानी नहीं डाला जाना चाहिए , यदि बहुत जरुरी लगे तो छिड़काव ही किया जाना चाहिए।  

जिस तरह पानी की कमी पौधे के विकास और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है ठीक वैसा ही दुष्प्रभाव पौधे की जड़ में पानी की अधिकता के कारण भी पड़ता है।  गमलों में बागवानी करने सहित क्यारी में बागवानी करने वालों को भी इस बात की सावधानी रखनी चाहिए।  अक्सर कई मित्र भूलवश गमलों में पानी की निकासी के लिए कोई छिद्र आदि बनाना या फिर उस गमले में मिटटी भरते समय उस छिद्र पर मिट्टी पूरी तरह आ कर उसे दबा न दे इसके लिए एक गिटक का इस्तेमाल नहीं करते हैं।  नतीजा पौधे की जड़ में गलन शुरू हो जाती है।  

बहुत सारे कीटनाशक , उर्वरक आदि जो भी जल मिश्रित छिड़काव प्रणाली से दिए जाते हैं उनमें पानी के साथ उनका अनुपात और छिड़काव करते समय बरती जानी वाली सावधानियों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक होता है।  

मेरी छत पर बनी क्यारियों में पहले वर्ष इतना वर्षा जल संचयित हो गया गया कि , बहुत मुशिकल से पौधों की जान बचाई , सीलन का ख़तरा अलग बन गया।  फिर अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए क्यारियों में ड्रिलिंग करवा कर पाइप के टुकड़े लगवाए और ऊपर शेड्स भी।  

आखिर में बस ये समझिये कि , पानी पौधों के लिए सबसे अच्छा टॉनिक है , भोजन तो है ही।  आज इतना ही , अपनी जिज्ञासा आप यहां साझा कर सकते हैं।  तो बागवानी करते रहिये और हमेशा हरे भरे रहिये।  



शनिवार, 24 अप्रैल 2021

बागवानी के लिए जरूरी बातें -बागवानी मन्त्र


 

#बागवानीमन्त्र :
आज बागवानी से जुड़ी कुछ साधारण मगर जरुरी बातें करेंगे।  

बागवानी बहुत से मायनों में इंसाओं के लिए हितकर है , बल्कि बाध्यकारी भी है।  प्रकृति के साथ सहजीवन और सामंजस्य के लिए सबसे सरल साधन बागवानी ही है।  दायरा देखिए कि इंसान बाग़ बगीचे उगाएं इसके लिए प्रकृति कभी इंसाओं की मोहताज़ नहीं रही है उसे कुदरत ने ये नियामत खूब बख्शी हुई है।  तय हमें आपको करना है कि हम कितना और क्या क्या कर सकते हैं।  



बागवानी घर , बाहर जमीन पर भी छत पर भी और बालकनी में भी।  बच्चे से लेकर बूढ़े तक और धनाढ्य परिवार से लेकर साधारण व्यक्ति तक कोई भी , कभी भी कर सकता है।  शौक के रूप में शुरू की गई बागवानी इंसान के लिए तआव ख़त्म करने का एक बेहतरीन विकल्प होने के कारण जल्दी ही आदत और व्यवहार में बदल जाती है।  बागवानी शुरू करने के सबसे आसान तरीकों में से एक ये की माली से गमले सहित अपेक्षाकृत आसान और सख्तजान पौधों से शुरआत करना बेहतर होता है जैसे -गुलाब , तुलसी , एलोवेरा , गलोय।  


बागवानी के लिए मिट्टी , बीज , पौधे , मौसम पानी इन सभी बिंदुओं पर थोड़ा थोड़ा सीखते समझते रहना जरूरी होता है।  मसलन पौधों में पानी देना तक एक कला है ,विज्ञान है और उसकी कमी बेशी से भी बागवानी पर भारी असर पड़  सकता है।  बागवानी विशेषकर अपने क्षेत्र (मेरा आशय मैदानी ,पहाड़ी या रेतीली ) को ध्यान में रखते हुए सबसे पहले वहां के स्थानीय , आसानी से उपलब्ध और उगने लगने वाले पौधों को लेकर शुरुआत करना श्रेयस्कर  रहता है।  मसलन -राजस्थान में बोगनवेलिया और महाराष्ट्र में अंगूर , बिहार में आम अमरूद , उत्तर प्रदेश में गेंदा गुलाब आदि।  

बागवानी की इच्छा रखने मगर समयाभाव के कारण नहीं कर सकने वालों को पाम म क्रोटन , एलोवेरा , कैक्टस आदि और इनडोर पौधों से शुरुआत करना बेहतर रहता है क्यूंकि अपेक्षाकृत बहुत काम श्रम व् समय माँगते हैं  ये पौधे।  लम्बे समय तक हरियाली बनाए रखते हैं तथा बाहु के लिए बेहद लाभकारी होते हैं।  खिड़की व बालकनी में बागवानी करने के लिए बेलदार पौधों का भरपूर उपयोग करना बेहतर विकल है क्यूंकि इससे उनकी जड़ छाया में और बेल धूप  हवा में रह कर अच्छा विकास कर पाती है -जैसे मधुमालती ,अपराजिता आदि।  

बागवानी में सिद्धहस्त होने तक पौधे उगाने लगाने से बचते हुए पहले से विकसित पौधों की देखभाल , खाद पानी डालना , काटना छांटना निराई गुड़ाई आदि धीरे धीरे सीख कर फिर खुद उगाने लगाने की शुरुआत करनी चाहिए।  यदि फिर भी खुद करने का मन कर ही रहा है तो फिर घरेलु बागवानी के लिए धनिया ा, पालक , मेथी आदि जैसे बिलकुल सहज  साग सब्जी से शुरू करना ठीक रहता है।  





बागवानी में सबसे जरूरी होता है धैर्य और सबसे बड़ा सुख आता है अपने बोए बीज को अंकुरित ,पुष्पित -पल्ल्वित होते हुए देखना।  मिटटी के अनुकूल होने से लेकर पौधे के फूल फल आने की आहात तक एक खूसबूरत सफर जैसा होता है।  बागवानी धीरे धीरे मिटटी , पानी , बनस्पति , हवा , पक्षी और सुबह शाम तक से सबका परिचय करवाने का एक खूसबूरत माध्यम है।  

नए पौधों को लगाने , उगाने और स्थानांतरित करने का सबसे उपयुक्त समय शाम का होता है।  गमलों के पौधों की जड़ों में पानी देना सुरक्षित रहता है और कई बार शीर्ष पर या कलियों , फूल आदि पर पानी पड़ने /डालने से नुकसानदायक हो जाता है।  बागवानी में सबसे ज्यादा अनदेखी हो जाती है जड़ों की निराई गुड़ाई।  जबकि वास्तविकता ये है की ,जड़ों की मिट्टी को ऊपर नीचे करके , निराई गुड़ाई नियमित पानी डालने से ही आप बागवानी का आधा और जरूरी दायित्व निभा लेते हैं।  



शनिवार, 10 अप्रैल 2021

जड़ों के साँस लेने के लिए जरूरी है निराई गुड़ाई -बागवानी मन्त्र


 

बागवानी मन्त्र 

चलिए आज की इस कड़ी में हम बात करेंगे बागवानी से जुड़े उस विषय की जो होता तो सबसे जरूरी है मगर आश्चर्यजनक रूप से सबसे अधिक उपेक्षित विषय है और वो है जड़ों की निराई गुड़ाई , जड़ों की मिट्टी का ऊपर नीचे किया जाना।  पिताजी किसान थे , वे अक्सर कहा करते थे जिस तरह सुबह उठ कर फेफड़ों की सफाई के लिए श्वास नलिका और नासिका में अवरुद्ध पित्त्त कफ्फ़ को साफ़ रख कर हम नित्य उन्हें अवरोध मुक्त रखते हैं इसी तरह से पौधों की जड़ों तक हवा ,पानी ,नमी और धूप के संतुलित आहार के लिए पौधों का निराई गुड़ाई बहुत जरूरी बात है।  

मैंने अनुभव किया है और देखा पाया है कि अधिकाँश मित्र अक्सर जाने अनजाने पौधे के  ऊपरी हिस्से पर बहुत अधिक श्रम और ध्यान देते हैं मगर अपेक्षाकृत- जड़ों की तरफ उदासीनता बनी रह जाती है बेशक कई बार ये जानकारी न होने के कारण भी होता है।  

यदि मैं पूछूँ कि , आप अपने पौधों की जड़ों की मिट्टी को कितनी बार हाथ से छू कर देखते हैं , मौसम के अनुसार क्या आपको उनमें बदलाव महसूस होता है , क्या आपने सुनिश्चित किया है कि गमले में जितना पानी आप दे रहे हैं उसकी नमी उस गमले की सबसे नीचे की आखरी जड़ों और रेशों तक पहुँच रही है , जड़ों में अक्सर लग जाने वाली चीटीयों और अनेक तरह के कीटों का सबसे सटीक उपाय और इलाज - निराई गुड़ाई है।  यदि मैं कहूँ कि मैं अपने पौधों में हर दूसरे दिन निराई गुड़ाई करता हूँ और क्यारियों में हर चौथे पाँचवे दिन तो शायद बहुत से दोस्तों को नई बात लगेगी क्यूंकि बकौल उनके वे सप्ताह या पंद्रह दिन में एक बार निराई गुड़ाई करते हैं।  

निराई गुड़ाई जितनी जरूरी और लाभदायक नन्हें छोटे पौधों के लिए होती है उतनी ही जरुरी बड़े बड़े वृक्षों विशेषकर फल देने वालों के लिए भी होती है।  आम लीची केले के बागानों में अक्सर जड़ों की निराई गुड़ाई और जड़ों की मिट्ठी दुरुस्त किए जाने का काम होता है।  खीरे , कद्दू, लौकी , आदि तमाम बेलों की जड़ों पर अच्छी तरह से मिट्ठी चढ़ाते रहने का काम जरूरी होता है अन्यथा जड़ें कमज़ोर होकर गलने लगती हैं और कई बार बेलों के अकारण खिंच जाने से टूट भी जाती हैं।  

धनिया ,पुदीना , पालक आदि साग पात में निराई गुड़ाई की गुंजाइश सिर्फ क्यारियों में ही उचित होती है गमलों में नहीं और अमरूद आँवला की जड़ें रेशेदार होती हैं इसलिए खुरपी चलाते समय ये डर न हो कि मिट्टी ऊपर नीचे करते समय वो रेशे कट रहे हैं। थोड़े दिनों में वे अपने आप अपनी जगह पकड़ लेते हैं।  

खाद डालने से पहले निराई गुड़ाई उतनी ही जरुरी और लाभदायक होती है जितनी कि कोई पीने वाली दवाई की शीशी को उपयोग करने से पहले जोर जोर से हिलाना।  खाद चाहे सूखी डालनी हो या गीली घोल वाली , मिटटी की निराई गुड़ाई किए रहने से वो जड़ों तक अधिक तेज़ी और प्रभावी रूप में पहुंचती है।  

अब कुछ ध्यान देने वाली बातें , बरसातों में यथासंभव निराई गुड़ाई नहीं की जानी चाहिए जब तक कि जड़ों में अतिरिक्त पानी जमा होकर जड़ों को नुकसान पहुंचाने की संभावना न हो जाए।  निराई गुड़ाई इस तरह से बिलकुल न करें कि जड़ों में अपना घर बनाए केंचुए और जोंक सरीखे मिटटी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाले जीव जंतु परेशान हों , उन गमलों में निराई गुड़ाई की जरुरत नहीं जीव खुद ब खुद कर लेते हैं

निराई गुड़ाई करें किससे -सबसे मजेदार उत्तर।  किसी भी चीज़ से , खुरपी से लेकर चमच्च और कई बार काँटे छुरी तक से वैसे कायदे से तो ग्लव्स पहन कर पतली खुरपी से किया जाना चाहिए यही सुरक्षित भी होता है मगर जरूरी है की आप करें यदि ये न भी उपलब्ध हों तो भी 

मंगलवार, 16 मार्च 2021

चाय की टैबलेट, लिक्विड और पाउडर, महज 10 सेकेंड में चाय तैयार

 





अब तक आपने चाय की पत्ती या चाय के टी-बैग का इस्तेमाल तो किया होगा, लेकिन क्या कभी चाय की टैबलेट का सेवन किया है ? जी हां, असम के टोकलाई टी रिसर्च सेंटर ने यह कारनामा कर दिखाया है। दरअसल, चाय की टेबलेट के साथ ही रिसर्च सेंटर ने लिक्विड फॉर्म में भी चाय तैयार की है, जो कुछ ही समय में आपकी चाय तैयार कर देगी। 

 

महज 10 सेकेंड में चाय बनकर होगी तैयार


देश में चाय के शौकीनों की कमी नहीं है। इस बात का अंदाजा कोरोना काल में चाय की खपत औसत खपत से लगाया जा सकता है। दरअसल, इस अवधि में चाय की खपत बढ़कर 10 गुना ज्यादा हो गई है। ऐसे में चाय तैयार होने में लगने वाले समय को ध्यान में रखते हुए ही चाय की टेबलेट को तैयार किया गया है। आमतौर पर चाय बनाने में कुल 10 मिनट का समय तो लगता ही है, लेकिन चाय के टेबलेट से यह समय घटकर महज 10 सेकेंड हो गया है। इसे हकीकत में कर दिखाया है असम के टोकलाई टी रिसर्च सेंटर ने। 


चाय की अलग-अलग किस्में तैयार

 

यह रिसर्च सेंटर चाय की पत्ती से तरह-तरह के आविष्कार कर रहा है। सेंटर ने चाय की टेबलेट बनाई है जो कुछ ही सेकेंड में वैसी ही चाय बनाएगी जैसी आप पीते हैं। इसके साथ ही चाय की लिक्विड फॉर्म भी तैयार की गई है। इसके लिए गर्म पानी में लिक्विड को मिलाना है और चाय तैयार हो जाती है। टैबलेट और लिक्विड बिना किसी केमिकल के शुद्ध रूप से चाय है।  

 

इस संबंध में टोकलाई टी रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक बताते हैं कि चाय के कई अलग-अलग किस्मों को तैयार किया गया है, जो कम समय में चाय तैयार कर देते हैं। इसमें टैबलेट, पाउडर और लिक्विड शामिल हैं। 

 

जवानों को होगी सहूलियत 

 

इन चाय की किस्मों की खास बात यह है कि सफर के दौरान भी लोगों को चाय के लिए भटकना नहीं पड़ेगा, क्योंकि चाय आपके साथ रहेगी, इसके अलावा दुर्गम स्थानों में तैनात सेना के जवानों के लिए भी काफी सहूलियत होगी क्योंकि चाय बनाने के लिए अब ज्यादा सामानों को ले जाने की जरूरत नहीं होगी। वहीं चाय की खेती करने वालों को भी काफी फायदा होगा। चाय के ऐसे नए इनोवेशन ही चाय बाजार में क्रांति ला सकते हैं और उनकी आय में काफी इजाफा हो सकता है।

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

लालच और मौकापरस्ती को छोड़ कर देश के लिए खेलना भारतीय खिलाड़ियों से सीखें पाकिस्तानी खिलाड़ी : दानिश कनेरिया

 

अपने बेबाक बयानों के लिए विख्यात पाकिस्तान के लिए क्रिकेट खेलने वाले एकमात्र पाकिस्तानी हिन्दू खिलाड़ी दानिश कनेरिया ने एक बार फिर से पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को आड़े हाथों लेते हुए खूब खरी खोटी सुनाई है।  

इतना ही नहीं दानिश ने इन खिलाड़ियों को नसीहत और फटकार लगाते हुए कहा है कि अपने देश अपने राष्ट्र के लिए खेलने का जज्बा किसी भी पैसे और मौके से बहुत बड़ा होता है ये सीखने के लिए पाकिस्तानी खिलाड़ियों को भारतीय खिलाडियों से सबक और सीख लेनी चाहिए।  

असल में  पूरा मामला ये है कि , पाकिस्तान की क्रिकेट टीम और उसके खिलाड़ी इन दिनों भयंकर मुफलिसी और बेकारी के दौर से गुजर रहे हैं।  भारत के साथ क्रिकेट संबंधों पर पूरी तरह से रोक लग जाने के कारण इन खिलाडियों को इस बार इंडियन प्रीमियर  लीग में भी नहीं खिलाया गया ,जिससे दुखी होकर शाहिद अफरीदी ने उन्हें खिलाने की गुहार भी लगाई थी।  

अब पाकिस्तानी खिलाड़ी अपने घर परिवार को चलाने के लिए विवश होकर दूसरे देशों की क्रिकेट टीम के लिए खेलने के अनुबंध और करार कर रहे हैं।  हाल ही में एक पाकिस्तानी खिलाड़ी सामी असलम  ने अमेरिका की क्रिकेट टीम से खेलने के लिए घरेलु क्रिकेट को अलविदा कह दिया।  यही बात दानिश को नागवार गुजरी और उन्होंने भारतीय खिलाड़ियों का नाम और उदाहरण देते हुए पाकिस्तानियों को खूब करी खोटी सुनाई।  



शनिवार, 11 जुलाई 2020

बागवानी के लिए उपयुक्त समय




जो भी बागवानी शुरू करना चाह रहे हैं , यही सबसे उपयुक्त समय है | शुरू हो जाइये और जो भी उगना लगाना चाह रहे हैं फ़टाफ़ट लगा दें | मानसून की बारिश इन पौधों के लिए वही काम करती है जो बच्चों के लिए बोर्नवीटा या हॉर्लिक्स करते हैं |

पौधों को खाद पानी देने का भी यही उचित समय है , अभी बारिश की बूंदों के बीच वे जड़ों और मिटटी में खूब रच बस जाएंगे और और जैसे जैसे धूप नरम पड़ती जाएगी सब कुछ गुलज़ार हो उठेगा |

जिन पुराने पौधों में कलियाँ और नए पत्ते आते नहीं दिख रहे हैं उनकी प्रूनिंग के साथ साथ निराई गुड़ाई भी समय है | मानसून में तो धरती का सीना चीर कर हरा करिश्मा बाहर निकल जाता है तो जैसे ही आप उनकी कटिंग करके छोड़ देंगे अगले महीनों में वे कमाल का रंग रूप निखार लेंगे | जिन्हें गुलाब ,आम ,नीम्बू आदि की कलम लगानी आती है उनके लिए भी यही सबसे उपयुक्त समय है |


धनिया , साग , मेथी आदि को लगाने उगाने से फिलहाल परहेज़ ही करें अन्यथा अचानक कभी भी आने वाले तेज़ बारिश आपकी मेहनत पर पानी फेर देंगे |

शुरुआत में यदि बीज से खुद पौधे उगाने में असहज महसूस कर रहे हैं तो आसपास नर्सरी से लेकर आ जाएं | इस मौसम में बेतहाशा पौधों के अपने आप उग जाने के कारण अपेक्षाकृत वे आपको सस्ते और सुन्दर पौधे भी मिल जाएंगे |

बस....तो और क्या , हो जाइये शुरू अपने आस पास खुश्बू और रंग का इंद्रधुनष उगाने के लिए | कोई जिज्ञासा हो तो बेहिचक कहिये , अपने अनुभव के आधार पर जितना जो बता सकूंगा उसके लिए प्रस्तुत हूँ |

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

नज़रिया देखने का





किसी भी बात ,घटना ,तथ्य के हमेशा ही दो पहलू होते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह आधा भरा/आधा खाली ग्लास देखने वाले के नज़रिये पर निर्भर करता है | वास्तव में भी यही होता है , नकारात्मक नज़रिये वाला व्यक्ति किसी भी बात में ,आलोचना निंदा आरोप का अवसर तलाश ही लेता और सकारात्मक नज़रिये वाला इंसान विपरीत और प्रतिकूल परिस्थतियों में भी उसके अच्छे पहलू को ढूंढ ही लेता है |

आज अवसाद और निराशा की जैसी परिस्थितियाँ बनी हुई हैं उसने पहले ही बहुत अधिक तनावपूर्ण बना रखा है | संवेदनशील इंसानों के लिए ये समय और भी अधिक नाज़ुक हो गया है | गाँव से अत्यधिक प्रेम होने के कारण , और इन दिनों की जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी में मिले अवकाश के कारण भी ,गाँव में बने महादेव के मंदिर के पुनर्निमाण के काम को करवाने की योजना बन गई |

आखिरकार ,शिव मंदिर का सारा काम पूरा हुआ और मन को तसल्ली हुई  कि कम से कम मां बाबूजी की आत्मा आज संतुष्ट हुई होगी और मुझे आत्मिक शान्ति मिली की अब अगले कई दशकों तक वो मंदिर सुरक्षित और संरक्षित रहेगा | किन्तु अचानक ही सब कुछ बदल गया |

गाँव के ही कुछ बच्चों ने आनन् फानन में , मंदिर पर (अष्टजाम ) कीर्तन जो 24 घंटे तक निर्बाध चलता है , के आयोजन का कार्यक्रम बनाया और टेंट बाजे साउंड सिस्टम के साथ तैयारी कर दी | दिल्ली से लेकर गाँव और हर जगह के हालात को देखते हुए , मुझे इस बात की बेहद चिंता हुई कि इस कीर्तन भजन के दौरान कोई गलती से भी या भूलवश भी इस बीमारी में चपेट में आ गया तो सब कुछ बेहद गलत दिशा में चला जाएगा | यही सोच कर मैंने सबको, हालातों को देखते हुए और प्रशासनिक निर्देशों के मद्देनज़र भी. थोड़ी दिन  रुक कर इसका आयोजन करने को कह दिया |

और यही सबसे बड़ा गुनाह साबित हुआ | अष्टजाम कीर्तन भजन का कार्यक्रम तो टाल दिया गया ,मगर इसे दूसरा रुप देकर | ये कह कर कि चूँकि मंदिर का निर्माण बाबूजी द्वारा करवाया गया था या कि उसकी साज़ सज़्ज़ा का काम मेरे द्वारा करवाया गया इसलिए ही मैंने ये कीर्तन रुकवा दिया | और उस समय से लेकर अब तक ये हुआ है , सबने अपने अपने स्तर से बुरा भला कह कर , मुझे कोस कर , मुझे कृतज्ञ किया | मंदिर में लगे ताला चाभी को हटा दिया गया , और वहाँ लोगों ने इसके विरोध में पूजा करना भी छोड़ दिया |

इस पूरे प्रकरण ने मन को बुरी तरह आहत किया और मुझे निराश होकर विवश होकर अब ये सोचना पड़ रहा है कि आखिर गलती कहाँ हुई | मंदिर के काम को हाथ में लेकर उसे पुनर्निर्मित करवाना मेरी गलती थी या गाँव में रह रहे काका काकी ,बूढ़े बुजुर्ग ,बच्चों को इस बीमारी की चपेट में आने से बचाने के लिए कीर्तन के कार्यक्रम आगे टालने के लिए कहना | आत्मा तक बुरी तरह से आहत हुई है , और भविष्य के प्रति अब कुछ भी सोचने के लिए बहुत आशंकित भी |

जो अब तक छूटा हुआ था ,अब वो सब कुछ टूटा हुआ है | सच कहते हैं कि सबसे जीत कर भी इंसान , आखिर अपने और अपनों से ही हार जाता है | हम खानाबदोश हो चुके लोगों को अब अपनी मिट्टी से मोह का भ्रम अपने मन मस्तिष्क से निकला देना चाहिए | साझा इसलिए किया क्यूंकि बिना लिखे रहता तो दो दिनों में फिर से तेज़ी से बढ़ा रक्तचाप अपने भीतर जमा हुए इस दर्द के कारण अपने चरम पर पहुँच जाता |कृपया किसी भी टिप्पणी में किसी को भी दोषी न ठहराएं आप भी | कहा जाता है की इंसान नहीं खराब होता , ये वक्त होता है जो खराब होता है और वो तो खैर खराब है ही | 

शनिवार, 4 जुलाई 2020

मैं किसी को नहीं बख्शता







दिन एक जुलाई समय साढ़े नौ बजे सुबह

दफ्तर के लिए निकलते हुए : " अरे हेलमेट क्यों नहीं लिया आपने ?

नहीं मास्क के साथ उसे लगाने से ये घुटन और बढ़ जाएगी | आज ऐसे ही चलते हैं |

लेकिन मास्क तो जरुरी है और हेलमेट भी , फिर अब तो आदत डालनी ही पड़ेगी | मुझे पड़ गई है न |

नहीं फिर मैं मास्क हटा कर हेलमेट पहन लेती हूँ |

मैं थोड़ा सा ठिठक जाता हूँ | दफ्तर के लिए निकलने का समय हो रहा है |

ठीक है , मास्क पहने रहो आप , हेलमेट नहीं पहनना है तो रहने दो |

दो सवारियां स्कूटी पर बैठ कर दफ्तर के निकल पड़ती हैं |

अरे ये आज इधर किधर से मोड़ लिया ?

उधर सड़क तोड़ रखी है , काम चल रहा है न इसलिए इधर से लिया है |

थोड़ी देर आगे जाते ही सामने ट्रैफिक पुलिस की पूरी टीम हाथ देती है | मैं स्कूटी आहिस्ता कर देता हूँ |

श्रीमती जी ,थोड़ा सा सकपका जाती हैं |

कांस्टेबल नजदीक आते हुए गले में लटका पहचान पत्र और नाम पट्टिका देख कर थोड़ा झिझकते हुए

अरे सर , मैडम को बिना हेलमेट क्यों लिए जा रहे हो आप ?

मैं कुछ कहूं इससे पहले ही श्रीमती जी , :
सर मास्क की वजह से और मुझे थोड़ी घुटन ज्यादा होती है |
जल्दी में निकलना था इसलिए रह गया | आगे से ध्यान रखेंगे पक्का |

पुलिस वाला थोड़ा आश्वस्त सा होता लगता है

मैं : लेकिन अब तो कैमरे में आ ही चुकी है गाड़ी सवारी और अब तो चालान करना ही पडेगा , क्यों हैं न सर ??

जी मैडम जी सर ठीक ही कह रहे हैं ,चालान मैसेज आ जाएगा अपने आप आपके फोन में |

श्रीमती जी भुनभुनाते हुए ट्रैफिक वाले को मन ही मन कोसती हैं | दफ्तर पहुँचते ही " अब बिना हेलमेट नहीं निकलेंगे कभी , बेकार में चालान हो गया |

काम ख़त्म | 24 घंटे में चालान का सन्देश आ जाता है ,1000 रूपए का जुर्माना भरना है |

न तो वो सड़क टूटी हुई थी और न ही रास्ता खराब था , उस नए रास्ते पर ट्रैफिक वाले रहते ही हैं ये सिर्फ मुझे पता था |

कहा न , मैं किसी को नहीं बख्शता , खुद को भी नहीं |

शशशशशश। .......किसी से कहियेगा मत ये बात , मुझे पता है आप नहीं बताएँगे | है न 

रविवार, 24 मई 2020

छत को कैसे बनाएं एक सुन्दर बगीचा


छत पर बनी मेरी वाटिका 


#बागवानीमंत्र

आज बागवानी से सम्बंधित कुछ बेहद साधारण मगर महत्पूर्ण बातें करेंगे |

पहली बात यदि आप बागवानी शुरू करने की शुरुआत करने की सोच रहे हैं या मन बना रहे हैं तो अभी जून तक का समय बिलकुल प्रतिकूल होने के कारण अवश्य ही रुक जाएं | बेशक इस साल बार बार बदलता मौसम और बारिश के कारण कभी कभी थोड़ी बहुत नमी बन जाती है किन्तु अगले दिन निकलने वाली तेज़ धूप आपके नन्हें पौधों के लिए घातक बन जाएगी |

बागवानी शुरू करने से पहले अपने आप से ये जरुर पूछें कि आप बागवानी करना क्यूँ चाहते हैं , शौक के लिए , आपको फूल पसंद हैं , किसी को देख कर ,प्रेरित होकर आपको लगता है की आपको भी बागवानी करनी चाहिए | ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ की यदि इन सारे प्रश्नों में से किसी का भी जवाब आपका दिल ये कह कर देता है की आपको सच में ही फूलों पौधों पत्तियों से स्नेह मुहब्बत है तो ही आप बागवानी शुरू करिए |

माली की सहायता लीजीए , शुरू में आप लगे लगाए पौधे भी ले सकते हैं , बीच बीच में खाद पानी निराई गुडाई के टिप्स भी बेशक और बेझिझक ले सकते हैं मगर भूल कर भी सिर्फ और सिर्फ मालियों के भरोसे ही बागवानी करने कराने की गलती न करें | नहीं इससे आपको बागवानी तो भरपूर होगी आपके आसपास फूल पौधे भी रहेंगे मगर वो फिर आपका एक बेहद महँगा और खर्चीला शौक भर बन कर रह जाएगा |

बागवानी शुरू करने से पहले सोचिए कि आपके पास जो भी जितनी भी जगह उपलब्ध है उसमें आप कैसी बागवानी कर सकते हैं आउटडोर इनडोर , फूलों की ,फलों की ,सब्जियों की आदि आदि | ये सब तय करने के बाद आप एकाग्र होकर उसी की बागवानी करें जो आपके मन स्थान के अनुकूल हो |

सब पौधों को बीजों से उगाने लगाने का हुनर ,  नीम्बू , आम ,संतरे ,अनार ,चीकू  आदि जैसे पौधों और कलम से ही लगाने वाले पौधों को लगाने की कला में पारंगत न होने के कारण ये पौधे मालियों से ही खरीद लें और फिर उन्हें ही देख रेख करके बड़ा करें |

मालियों से पौधे लेते समय ध्यान रहे की आपको कच्चे पौधे लेने हैं और उन पौधों को लेते और लगाते हुए उनकी जड़ें बिलकुल न हिल पायें अन्यथा पौधे कुछ ही दिनों में दम तोड़ देंगे |

पौधों को लगाने के लिए सबसे उपयुक्त समय जुलाई अगस्त का होता है बारिश के इन महीनों में लगाए पौधे बड़ी ही सुलभता से लग और बच जाते हैं |

एक आखरी बात मैं अपने यू ट्यूब चैनल पर "बागवानी करें शहरी किसान के साथ " नाम की एक श्रंखला शुरू करने जा रहा हूँ जो आपकी वीडीयो  के माध्यम से  बताएगी की आपको बिना ज़मीन के बागवानी कैसी करनी है ,कैसे कर सकते हैं और किस किस चीज़ की बागवानी कर सकते हैं |



आइये एक दूसरे के अनुभव से एक दूसरे से सीखें और सिखाएं , आइये प्रकृति को अपनाएं | 

गुरुवार, 21 मई 2020

कोरोना से लड़ें आत्मनिर्भर होकर



पिछले दिनों जब प्रधानम्नत्री महोदय ने ये कहा कि कोरोना के सन्दर्भ में दो बातें जाननी बहुत जरूरी हैं। 

पहली ये कि निकट भविष्य में हम इससे निजात पाने वाले नहीं हैं खासकर जब तक हमारे चिकित्सा अनुसन्धान में लगे वैज्ञानिक चिकित्सक इसके लिए को कारगर टीका दवाई इत्यादि नहीं तलाश लेते। 

दूसरी ये और बहुत जरूरी बात यह कि इस महामारी ने भारत सहित पूरे विश्व को ये सन्देश दिया है कि अब समय आ गया है की व्यक्ति से लेकर समाज और देश तक को अपने कार्य अपने व्यवहार और अपनी जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर होने की और बढ़ना चाहिए।  

इस बीमारी से बचने और बचे रहने के लिए जो सबसे कारगर उपाय है वो है इसकी चपेट में आने से बचने के लिए अपनाई गयी आदतें और सावधानियां और दूसरी है शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को विकसित करना।   

इसी सन्दर्भ में मेरा ये वीडियो आपको बताएगा की कैसे अपने घरों के पौधों के छिपे रामबाण उपाय हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में हमारी सहायता कर सकते हैं।  आप यू ट्यूब पर इस वीडियो को देख कर समझ सकते हैं कि मैं बिना घर से निकले ही कैसे , नीम ग्लोय तुलसी नीम्बू और अदरक आदि के इस्तेमाल से प्रतिरोधी क्षमता की वृद्धि में  कैसे अमृत समान काम करती है ये विधि।  आप भी देख कर मुझे बताएं की आपको कैसी लगी ये आत्मनिर्भर होकर बनाई गयी औषधि 





सोमवार, 18 मई 2020

कोरोना ने दिया नया मकसद





गाँव की एक खुबसूरत भोर 

मैंने अपने जीवन में बहुत पहले ही ये अनुभव कर लिया था कि अपना समाज अक्सर भीड़ बन कर पीछे चलने में ही खुद को सहज महसूस करता है | वक्त ,हालात और परिस्थतियों ने जाने कब मुझे ये विश्वास और ताकत दे दी कि लिखने बोलने कहने और करने में भी मैं पूरी निडरता और से अपना निर्णय लेता गया और अक्सर आगे की पंक्ति या कहूँ की अगुआ बनता गया |


बचपन में ही पड़ी ये आदत बाद में संस्कार में शामिल हो गई | माँ सरस्वती , लक्ष्मी और सबसे अधिक माँ संतोषी की असीम कृपा की त्रिवेणी ने कालान्तर में इसे और भी पुख्ता किया | आज भी कार्यालय तक में अपने सबसे शीर्ष अधिकारियों से मैं पूरी निडरता से वो सब कह जाता हूँ वो कर जाता हूँ जिसकी बाबत बहुत से सहकर्मी सोचने से भी डरते हैं |

पिछले कुछ दिनों में अचानक से शहरों ने मजदूरों के पलायन ने मेरी छठी चेतना को जाग्रत किया और मैंने तुरत फुरत में ग्राम समाज के लिए यहाँ से जो भी जैसे भी संभव था काम करना शुरू कर दिया | सोशल नेट्वर्किंग के जमाने में गाँव में रह रहे बच्चों और युवाओं की मदद और स्नेह से ये बहुत ज्यादा कठिन नहीं था |

गाँव का वो आँगन 
इसका परिणाम ये हुआ है कि पिछले तीन चार दिनों गाँव के विभिन्न क्रियाकलापों से जुड़े समूहों से जुड़ कर बहुत सी जानकारी बातें साझा की बल्कि अपने टोल (गाँव का मुहल्ला ) के लिए खुद ही एक समूह बना कर काम शुरू कर दिया | इस समूह में गाँव के सभी मेरे जैसे प्रवासी बंधु बांधवों को आनन फानन में जोड़ कर हमने एक सूत्र में सबको पिरो दिया।दिल्ली ,कोलकाता ,मुम्बई ,सूरत ,अहमदाबाद आदि तमाम शहरों में रह रहे हम सब एक साथ एक ही समूह में आ गए |


गाँव का तालाब 

गाँव की पुरानी यादों बातों सुख दुःख को साझा करने के अतिरिक्त , तुरंत किये जाने वाले कई महत्वपूर्ण काम और भविष्य में किये जाने वाले कामों की रूप रेखा बनाई जाने लगी | हमारे जनप्रतिनिधियों का भी स्नेह हमसे जुड़ जाने से ये और अधिक सार्थक और उपयोगी साबित हुआ है |

महादेव स्थान 

अब विभिन्न फेसबुक पेज और व्हाट्सएप समूह के माध्यम से न सिर्फ हम पूरी तरह ग्राम समाज के सुख दुख के साझीदार हैं बल्कि कदम दर कदम साथ चल रहे हैं । अगले कुछ वर्षों में गाँव मे बहुत सारे बड़े परिवर्तन के लिए कमर कस कर और प्रति वर्ष एक बड़ी राशि के सहयोग से उसे अमली जामा पहनाने का संकल्प , ने मुझे अब एक नया ही मकसद दे दिया है ज़िन्दगी का ।

महादेव मंदिर में चलता कीर्तन 
                                                                              

मेरे श्रम , अर्थ और समय का बहुत बड़ा हिस्सा अब गाँव को समर्पित होगा । ईश्वर मुझे शक्ति दें ।

मंगलवार, 5 मई 2020

बागवानी के लिए जरूरी है मिटटी की पहचान





#बागवानीमंत्र

पिछली पोस्ट में जब मैंने गमलों के बारे में बताया था तो आप सबने जिज्ञासा की थी कि ,बागवानी के लिए मिट्टी ,कैसी हो ,उसे तैयार कैसे किया जाए आदि के बारे में भी कुछ बताऊँ | कुछ भी साझा करने से पहले दो बातें स्पष्ट कर दूँ , मैं कहीं से भी कैसे भी बागवानी का विशेषज्ञ नहीं हूँ , माली भी नहीं हूँ बिलकुल आपके जैसा ही एक नौकरीपेशा व्यक्ति हूँ दूसरी बात ये कि इसलिए ही मैं आपको अपने अनुभव के आधार पर ही जो समझ पाया सीख पाया हूँ वो बताता और साझा करता हूँ |

तो आज बात करते हैं मिट्टी की | मिट्टी के बारे में जानना यूँ तो आज उनके लिए भी जरूरी है जिन्हें बागवानी में की रूचि नहीं क्यूंकि खुद प्रकृति ने बता दिया है कि हे इंसान तू युगों युगों से सिर्फ और सिर्फ मिटटी का बना हुआ था और मिट्टी का ही बना रहेगा | खैर , तो मिट्टी बागवानी का सबसे जरुरी तत्व है | विशेषकर जब आप शहरी क्षेत्रों में और वो भी गमलों में बागवानी करने जा रहे हैं तो |

बागवानी के लिए सर्वथा उपयुक्त मैदानी यानि साधारण काली मिट्टी होती है | साधारण से मेरा आशय है , जो मिटटी,  बलुई या रेतीली  , कीच , ऊसर , शुष्क , पथरीली ,पीली  आदि नहीं है और जिसमें नमी बनाए रखने के लिए कोई अतिरिक्त श्रम न करना पड़े वो ही साधारण मैदानी मिट्टी है जो कि साधारणतया आपने अपने आस पास के पार्क मैदान और खेतों में देखी होगी | इस मिट्टी में पानी न तो बहुत ज्यादा ठहर कर रुक कर कीचड का रूप लेता है न ही तुरंत हवा बन कर हवा हो जाता है और न ही पानी सूखते ही मिट्टी बहुत कड़ी होकर पत्थर जैसी हो जाती है जिससे की जड़ों में श्वास लेने हेतु पर्याप्त गुंजाईश बनी रहती है |

इससे ठीक उलट कीच वाली में , रेतीली मिट्टी में और शुष्क पीली मिटटी में कुछ विशेष पौधों को छोड कर आपको अन्य कोई भी पौधा लगाने उगाने में बहुत अधिक कठिनाई होगी | बागवानी के प्रारम्भिक दिनों में मुझे खुद इस परेशानी का सामना करना पडा था और मेरे बहुत से पौधे उसी पीली मिट्टी में थोड़े थोड़े दिनों बाद अपना दम तोड़ गए | इसके बाद मुझे यमुना के पुश्ते से वो काली उपजाऊ मिट्टी मंगवानी पड़ी | 

मुझे मिलने वाली आपकी बहुत सारी जिज्ञासाओं के जवाब में मेरा सबसे पहला जवाब होता है गमले और जड़ की फोटो भेजें तो असल में मैं उनकी मिटटी ही देखना चाहता हूँ | यदि मिटटी में कोई गड़बड़ है तो पहले उसी का निदान किया जाना जरुरी है | 

चलिए अब मिट्टी यदि बहुत अच्छी नहीं है तो फिर उसे कम से कम बागवानी के लायक कैसे बनाएं वो जानते हैं | कम गुणवत्ता वाली मिट्टी में , अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी , खाद , कोकोपीट को मिला कर भी उसकी गुणवत्ता को ठीक कर सकते हैं | बस ध्यान रे रखें कि मिट्टी कम से कम उस लायक जरूर बन जाए कि उसमें कम से कम तीन चार घंटे या उससे अधिक नमी जरुर बनी रहे | 

यहाँ मिट्टी की उपलब्धता के लिए जो परेशान हो रहे हों उनके लिए एक जानकारी ये है कि आज सब कुछ , पानी को छोड़कर , अंतर्जाल पर उपलब्ध है , जी हाँ मिट्टी भी | 


अब एक आखिरी बात , मिट्टी को उपजाऊ बनाने का सबसे सरल उपाय और घरेलू भी | चाय की पत्ती जो आप चाय पीने के बाद छान कर फेंक देते हैं उन्हें रख लें | तेज़ धूप में सुखा लें और फिर उन्हें मिक्सी में बारीक पीस कर मिट्टी में मिला लें | फल सब्जियों के बचे हुए छिलके ,गूदे ,बीज आदि को भी आप सुखा कर और पीस कर उनका उपयोग भी आप मिट्टी को ठीक करने में और खाद की तरह ही इस्तेमाल कर सकते हैं | 

मिट्टी की उर्वरा शक्ति को ठीक रखने के लिए गमलों की निराई गुडाई करते रहना बहुत जरूरी है इससे मिट्टी ऊपर नीचे होने से संतुलित रहेगी और साथ ही पौधों की जड़ो तक हवा पानी भी पहुंचता रहेगा | 


मिट्टी से अगर आप इश्क कर बैठे तो फिर पौधे तो यूं ही महबूब हो जायेंगे आपके | अपनी जिज्ञासा आप यहाँ रख सकते हैं , मैं यथासंभव उनका निवारण करने का प्रयास करूंगा | 

शुक्रवार, 1 मई 2020

बागवानी के लिए जरूरी हैं गमले





आज बात करते हैं गमलों की।
बागवानी विशेषकर शहरों में जहां आपको छत पर ,बालकनी में ,सीढ़ियों में और खिड़की पर जैसी जगह ही बड़ी मुश्किल से मयस्सर होती है वहां गमलों में बागवानी ही एकमात्र विकल्प बचता है इसलिए ऐसी शहरी बागवानी में गमलों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है।
गमलों का आकार प्रकार सिर्फ सिर्फ उसमें लगाए जाने वाले पौधे पर निर्भर करता है। छोटी जड़ वाले पौधे के लिए छोटे और माध्यम आकार के गमले चल सकते हैं किन्तु जिन पौधों की जड़ों को फैलाव की जरूरत होती है उनके लिए निश्चित रूप से माध्यम आकार के गमले ही चाहिए।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि मैंने बड़े छोटे पौधे नहीं कहा है बल्कि कहा है बड़ी जड़ वाले और छोटी जड़ वाले पौधे। मसलन गुलाब के पौधे बड़े होते हैं मगर जड़ छोटी इसलिए छोटे छोटे गमले में भी उग सकते हैं इसके उलट गेंदे फूल छोटे होते हैं मगर रेशेदार जड़ों को फैलाव अधिक चाहिए इसलिए यदि उन्हें आप छोटे गमले में लगा भी दें तो या तो फूल आएंगे ही नहीं या फिर फूल आकर में छोटे आएँगे।
फूलों के गमलों का आकर तो थोड़ा बहुत छोटा बड़ा फिर भी चल सकता है किन्तु फल सब्जी आदि के लिए मध्यम और बड़े आकर का गमला ही जरूरी है नहीं तो फल का आकार छोटा रह जाएगा हमेशा।
गमले मिट्टी के ,प्लास्टिक के ,लकड़ी के और ग्रो बैग भी हो सकते हैं। गमलों का चयन उन्हें रखने जाने वाले स्थान पर भी निर्भर करता है। बस ध्यान ये रखना होता है कि सभी गमलों में पानी की निकासी के लिए निर्धारित छिद्र बना हुआ हो ताकि उसमें पानी न जमा रहे और पौधों की जड़ें अधिक पानी से सड़ न जाएँ।
साग पात धनिया पुदीना मेथी पालक आदि जैसे सब्जियों के लिए चौड़े और कम गहरे गमले का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जबकि मिर्च नीम्बू संतरे चीकू अमरूद केले अनार आदि के लिए बड़े और गहरे गमले का प्रयोग उचित रहता है।
गमलों में मिट्टी कभी भी ऊपर से एक दो इंच या तीन इंच तक भी से नीचे ही रहनी चाहिए ताकि पानी डालने के बाद जड़ों तक पहुँच कर सोखने के लिए पर्याप्त पानी व समय मिल सके।
शुरुआत में बागवानी करने वालों को ,बोतलों ,ज़ार ,मग आदि को गमलों में परिवर्तित करके बागवानी में रोमांच के प्रयोग से बचना चाहिए। जब बागवानी में सिद्ध हस्त हो जाएं तो फिर चाहे वे अपनी हथेली पर भी गुलाब उगा लें।
गमलों को मौसम में गरमी सर्दी के अनुसार उनका स्थान भी बदलना जरूरी होता है। इससे एक तो पौधों को अनुकून वातावरण मिल जाएगा दूसरे अधिक समय तक एक स्थान पर पड़े रहने के कारण छत बालकनी आदि में उनसे पड़ने वाले निशान से भी बचा जा सकता है। गमलों के नीचे प्लेट रखना भी इन निशानों से बचाने का एक विकल्प होता है।
किसी भी गमले की उम्र कम से कम चार वर्ष तो रहती ही है बशर्ते कि आपसे भूलवश वो गिर कर टूट न जाए।
आज के लिए इतना ही , आप चाहें तो अपने प्रश्न यहाँ पूछ सकते हैं

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

आकाश वाटिका ; आप भी बनाइये न



कौन सोच सकता था कि किसी छत को यूँ भी सँवारा जा सकता है 

पिताजी मूलतः एक कृषक परिवार से थे इसलिए अपनी फ़ौजी नौकरी के दौरान भी आवंटित फ़ौजी क्वार्टर के अहाते में हमेशा कुछ कुछ उगाते लगाते मैंने उन्हें बचपन में ही देखा था।  ग्रीष्म ऋतु के अवकाशों में गाँव जाकर आम लीची केले के लदे हुए बागान ,तालाब ,नदियाँ ,खेतों ने हमेशा एक सम्मोहन सा जगाए रखा हमारे भीतर।  कालचक्र ने तरुणाई और कॉलेज का सारा समय ग्राम्य जीवन में बिताने का अवसर दिया और मैंने मिट्टी ,पानी ,पेड़ ,पौधों आदि के साथ सहजीवन का अमृत पाठ वहीं बहुत करीब से देखा समझा। 

अध्यन के पश्चात सरकारी सेवा में आने के बाद जो सबसे पहले साथी बने वो थे पौधे और किताबें। स्वअर्जन ने आर्थिक संबलता दे दी थी किन्तु दिल्ली जैसे ईंट पत्थर से बुरी तरह त्रस्त महानगर में स्थान की सीमितिता और किरायेदार के रूप में रहने की विवशता ने बहुत समय तक इन पौधों फूलों से मेरी दोस्ती गमलों तक सीमति रखी।  लगभग पॉंच वर्ष पूर्व जब मैंने दिल्ली में छोटा सा सिर्फ 80 गज़ के क्षेत्रफल का फ़्लैट लिया तो मुझे अपने घर की खुशी उस समय दोगुनी लगी जब छत के सर्वाधिकार के साथ मुझे वो मकान मिला और यहीं से शुरू हुई ये ख्वाबों सरीखी बागवानी करने की कल्पना को साकार करने की प्रक्रिया। 

छत पर खुले आसमान के नीचे सोने का नैसर्गिक आनंद होता है 

शुरुआत में मिटटी , छत ,मौसम , वानरों के उत्पात आदि ने बहुत बार व्यवधान उत्पन्न किये ,मगर सब धीरे धीरे अपने आप हल होते गए और सिर्फ दस बारह गमलों से शुरू हुई ये बागवानी आज हज़ार से ऊपर पौधों , पच्चीस तरह के फल उतने ही प्रकार की सब्जियों ,सैकड़ों मौसमी व स्थाई फूलों के अनमोल उपहार के रूप में आज मेरे घर के शीर्ष पर विराजमान हैं। घर में बेकार पड़ी चीज़ों ,प्लास्टिक बोतलों , कूलर बेस ,मिक्सी ज़ार , मग सब कुछ धीरे धीरे गमलों का आकार लेने लगे और मैं छोटी से छोटी जगह पर बागवानी कैसे किसकी कब की जा सकती है इन सबमें सिद्ध हस्त होता चला गया।

छत पर बनी मेरी बैठक वाली टेबल 

 कितने ही तरह के पक्षी , छोटे बड़े जीव ,तितलियाँ ,भौरें आदि अपने कलरव से इन्हे और जीवंत किये रहते हैं।  आसपास के पड़ोसी ,मित्र ,सहकर्मी ,बंधु बांधव आदि इससे प्रेरित होकर अपने आसपास को और अपनी आत्मा को हरित करके तृप्त कर रहे हैं तो मेरा सुख द्विगुणित हो जाता है।  पृथ्वी और प्रकृति के बीच जो सेतु है वो इंसान को बना रहना चाहिए।  यही सच है आखिरी सत्य।  बागवानी के विषय में सिर्फ इतना कहूँगा कि किसी भी इंसान को समझने से कहीं आसान होता है पौधों फूलों पत्तियों को समझना।  आप इनसे प्यार करेंगे तो बदले में अपना सर्वाव लुटा देते हैं आप पर।  देर किस बात की है कर डालिये सब कुछ हरा अपनी खिड़की ,बालकनी ,छत ,,मुंडेर सब कुछ हरा करने पर आपकी आत्मा भी हरी भरी होकर तृप्त हो जाएगी। 

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

आइये टमाटर उगाते हैं










 आज बात करते हैं टमाटरों की।  आप सबने पिछले कई दिनों में जिज्ञासा ज़ाहिर की है कि टमाटरों के लिए क्या कैसे करना चाहिए तो मैं जो करता हूँ वो आप के साथ साझा करता हूँ। 




टमाटर के लिए आवश्यक 

गमला ; छोटा न हो , माध्यम आकार का हो तो उत्तम और बड़ा हो तो सर्वोत्तम
मिट्टी ; अच्छी हो तो उत्तम और बढ़िया नमी रखने वाली काली मिट्टी हो तो सर्वोत्तम
बीज ; दो तरह के मिलते हैं बाज़ार में ,देसी और हाइब्रिड ,दोनों ही अच्छा काम करती हैं
मौसम ; बहुत अधिक गर्मी और बहुत अधिक सर्दी के मौसम को छोड़कर साल भर


टमाटर के बीजों को छिड़क कर [यदि आपके पास बीजों के  लिए अलग से सीड्स बेड बने हुए हैं तो ] ऊपर से मिटटी की हलकी परत से ढक कर पानी के हलके छींटें मार दें।  यदि सीधा गमलों में ही उगाना चाह रहे हैं तो एक गमले में सिर्फ एक बीज डालें।  ध्यान रहे कि पानी बहुत ज्यादा नहीं डालना है उतना ही कि मिट्टी सूखी भी न रहे और बहुत गीली तो कतई न रहे।  


पौधों के निकलने पर उन्हें सीड्स बेड से सावधानी से बिना जड़ हिलाए गमलों में स्थानांन्तरित कर लें। गमलों में ही हैं पहले से तो फिर जरूरत नहीं है कुछ भी करने की।

पानी देते समय ध्यान ये रखने  की योग्य बात है कि छोटे पौधे बहुत ही नाजुक होते हैं इनके ,तो न तो ये झुकने पाएं न ही इनका शीर्ष मुड़ने पाए। सहारे के लिए छोटी से बेंत ,सींक आदि का इस्तेमाल करने से बेहतर रहता है और पौधे भी सुरक्षित रहते हैं।

40-50 दिनों के अंदर इनकी फुनगी पर पीले फूल चमकने लगेंगे और उसके 7 दिनों के अंदर ही नन्हें टमाटर दिखने लगेंगे।

अब सबसे जरूरी काम ये करना होगा कि इनके शीर्ष को ,और उनको विशेषकर जिन पर टमाटर दिखने लगे हैं उन्हें सावधानी से पतले धागे डोरी आदि से सहारे के लिए लगाई हुई सींक\बेंत आदि से इस तरह से स्ट्रिंग कर दें यानि बाँध दें ताकि टमाटर का भार पड़ने पर भी वो शीर्ष झुक कर टमाटर के विकास को रोक न दे।  




पत्तों के पीले पड़ने के साथ ही हरे टमाटर अपने आप सुर्ख लाल और खाने लायक हो जाएंगे।  टमाटरों को बड़ा ,रसीला रखने के लिए उनकी जड़ों में हमेशा नमी बने रहना जरूरी है किन्तु ये भी सावधानी रखनी जरुरी है कि पानी इतना अधिक न हो कि जड़ ही गलने लगे। 

बस फिर क्या शुरू हो जाइये ,उगाइये अपने हरे और लाल टमाटर। 


रविवार, 19 अप्रैल 2020

ज़िदंगी का फ्लैश बैक देखने को ;चाहिए एक रिवाइंड बटन









कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि कभी ऐसा भी दिन आएगा जब अचानक से कुदरत कहेगी , स्टैच्यू और हम सब ठिठक कर एक जगह रुक जाएंगे जो जहां है वहीं जड़ होकर रह जाएगा।  मैं और मेरी या मेरे से ज्यादा उम्र के सबके पास अपनी बीती हुई ज़िंदगी के एल्बम में से कितनी ही यादें ,कितनी ही बातें सबने अपने ज़ेहन में बसा कर छुपा कर रखी होंगी।  और इससे बेहतर और क्या वक्त हो सकता है उन पन्नों को पलटने का।  देख रहा हूँ मित्र अपनी बरसों पुरानी तस्वीरें ,अपनों के साथ की फोटो यहां अंतरजाल पर साझा कर के सहेज रहे हैं।  अच्छा ही है कल को जब हम न होंगे तो हमारी आने वाली नस्लें ,और उनके बाद वाले भी ये सब यदि बचा खुचा रह गया तो देख पढ़ पाएंगे और कम से कम समझ सकेंगे कि हमने अपनी ज़िंदगी में कौन कौन से रंग देखे थे।

हम बहुत ही खुशकिस्मत रहे हैं ,हम कंचे पतंगों लट्टू , से भी पहले सायकल के पुराने टायर और माचिस की डिब्बी के कवर से ढेरम ढेर खेलने वाली दुनिया से शुरू होकर आज एंग्री बर्ड्स और पब जी तक का सफर तय कर चुकने वालों में से रहे हैं। ये हम ही हैं जिसने दुनिया में रेडियो ,टीवी ,फ्रिज ,कुकर ,स्कूटर ,कंप्यूटर ,मोबाईल को अवतरित होते देखा है और जाने अभी और क्या क्या देखेंगे।  तो हम तो बहुत सारे मायनों में एकमात्र ऐसी नस्ल रहे और रहेंगे जिन्होंने दुनिया में वो देखा और देख चुके जो कल के इतिहास में किसी अजूबे से कम नहीं होगा।

मुझे याद है बाबूजी के साथ गर्मियों की छुट्टियों का वो कोयले के इंजन वाली रेल में किया हुआ साधारण डब्बों का यादगार सफर जब रास्ते में माँ के हाथ के बने भरवां करेले और पराठे के साथ सुराही का मीठा पानी कई दिनों के लम्बे रेल के सफर को भी ज़िंदगी के कुछ अनमोल दिनों में बदल देता था। मुझे याद है गाँव का वो कच्चा घर जहां दादी हमारे पहुँचते ही जाने क्या क्या मीठा खाने को और शरबत लेकर दालान पर ही अपना स्नेह लुटाने चली आती थी और मिनटों में ही पूरा टोला हमें देखने खैरियत पूछने चला आता था।


मुझे याद है सरस्वती पूजा , दुर्गा पूजा ,इंद्र पूजा ,जन्माष्टमी में लगने वाले वो छोटे छोटे मेले और उनमें गोले में पार्ले जी के बिस्किट को फंसाना ,गेंद मार कर स्टील के भारी ग्लास गिरा कर तालियाँ बटोरना ,मुझे याद है गाँव की काली पूजा में खेले गए नाटक में अभिनय करने वाले हम कुल 16 युवकों में अपने द्वारा निभाया गया  युवती का एक अकेला किरदार।  मुझे याद है गाँव की वो सत्यनारायण भगवान की पूजा में चावल और केले का मिलने वाला चौरठ प्रसाद भी और गाँव में केले के पत्तों पर खाए गए भोज भात का स्वाद भी।

मुझे याद है तीसरी कक्षा के दोस्त संजय सुथार के लखनऊ के तोपखाना बाज़ार में स्थित स्टूडियो के सामने की वो किताबों की दूकान जिसमें ऊपर रखी हुई ज्योमेट्री बॉक्स को स्कूल से आते जाते निहारना। मुझे याद है मेरे स्कूल में आने वाले जादू दिखाने वाले और स्कूल के रास्ते में कभी भालू कभी बन्दर और कभी सपेरे के इर्द गिर्द गोल खडी भीड़ में खुद को खड़ा देखना।  मुझे सर्कस याद है ,पटना जंक्शन से स्टीमर पकड़ कर गंगा पार करना भी याद है। मधुबनी रेलवे जंक्शन से गाँव तक ले जाने वाला ताँगा भी और दादी गाँव से मौसी के गाँव तक जाने वाली बैलगाड़ी भी। 


मुझे याद है मौसियों के साथ उनकी उंगलियां थामे पूरे ननिहाल के एक एक घर आँगन का चक्कर भी जिसमें जाने कितने प्यार करने वाले हाथ आशीर्वाद देने वाले हाथ एक साथ उठ जाते थे और बस माँ का नाम लेकर कहते ये निर्जला के बेटे हैं न। 

क्या क्या याद करूँ , आँखों के आँसू इस यादों के एलबम को बार बार धुँधला कर दे रहे हैं।  लेकिन मैं फिर लौटूंगा बार बार लौटूंगा इस एल्बम को लेकर इसके रंगों को लेकर ताकि मेरे जीवन का ये इंद्रधनुष उगता रहे हर दिन उगता रहे।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...