कौन सोच सकता था कि किसी छत को यूँ भी सँवारा जा सकता है |
पिताजी मूलतः एक कृषक परिवार से थे इसलिए अपनी फ़ौजी नौकरी के दौरान भी आवंटित फ़ौजी क्वार्टर के अहाते में हमेशा कुछ कुछ उगाते लगाते मैंने उन्हें बचपन में ही देखा था। ग्रीष्म ऋतु के अवकाशों में गाँव जाकर आम लीची केले के लदे हुए बागान ,तालाब ,नदियाँ ,खेतों ने हमेशा एक सम्मोहन सा जगाए रखा हमारे भीतर। कालचक्र ने तरुणाई और कॉलेज का सारा समय ग्राम्य जीवन में बिताने का अवसर दिया और मैंने मिट्टी ,पानी ,पेड़ ,पौधों आदि के साथ सहजीवन का अमृत पाठ वहीं बहुत करीब से देखा समझा।
अध्यन के पश्चात सरकारी सेवा में आने के बाद जो सबसे पहले साथी बने वो थे पौधे और किताबें। स्वअर्जन ने आर्थिक संबलता दे दी थी किन्तु दिल्ली जैसे ईंट पत्थर से बुरी तरह त्रस्त महानगर में स्थान की सीमितिता और किरायेदार के रूप में रहने की विवशता ने बहुत समय तक इन पौधों फूलों से मेरी दोस्ती गमलों तक सीमति रखी। लगभग पॉंच वर्ष पूर्व जब मैंने दिल्ली में छोटा सा सिर्फ 80 गज़ के क्षेत्रफल का फ़्लैट लिया तो मुझे अपने घर की खुशी उस समय दोगुनी लगी जब छत के सर्वाधिकार के साथ मुझे वो मकान मिला और यहीं से शुरू हुई ये ख्वाबों सरीखी बागवानी करने की कल्पना को साकार करने की प्रक्रिया।
शुरुआत में मिटटी , छत ,मौसम , वानरों के उत्पात आदि ने बहुत बार व्यवधान उत्पन्न किये ,मगर सब धीरे धीरे अपने आप हल होते गए और सिर्फ दस बारह गमलों से शुरू हुई ये बागवानी आज हज़ार से ऊपर पौधों , पच्चीस तरह के फल उतने ही प्रकार की सब्जियों ,सैकड़ों मौसमी व स्थाई फूलों के अनमोल उपहार के रूप में आज मेरे घर के शीर्ष पर विराजमान हैं। घर में बेकार पड़ी चीज़ों ,प्लास्टिक बोतलों , कूलर बेस ,मिक्सी ज़ार , मग सब कुछ धीरे धीरे गमलों का आकार लेने लगे और मैं छोटी से छोटी जगह पर बागवानी कैसे किसकी कब की जा सकती है इन सबमें सिद्ध हस्त होता चला गया।
छत पर बनी मेरी बैठक वाली टेबल |
कितने ही तरह के पक्षी , छोटे बड़े जीव ,तितलियाँ ,भौरें आदि अपने कलरव से इन्हे और जीवंत किये रहते हैं। आसपास के पड़ोसी ,मित्र ,सहकर्मी ,बंधु बांधव आदि इससे प्रेरित होकर अपने आसपास को और अपनी आत्मा को हरित करके तृप्त कर रहे हैं तो मेरा सुख द्विगुणित हो जाता है। पृथ्वी और प्रकृति के बीच जो सेतु है वो इंसान को बना रहना चाहिए। यही सच है आखिरी सत्य। बागवानी के विषय में सिर्फ इतना कहूँगा कि किसी भी इंसान को समझने से कहीं आसान होता है पौधों फूलों पत्तियों को समझना। आप इनसे प्यार करेंगे तो बदले में अपना सर्वाव लुटा देते हैं आप पर। देर किस बात की है कर डालिये सब कुछ हरा अपनी खिड़की ,बालकनी ,छत ,,मुंडेर सब कुछ हरा करने पर आपकी आत्मा भी हरी भरी होकर तृप्त हो जाएगी।
अब तो घर घर को इसकी जरूरत पड़ेगी....समय आने से पहले ही शुरुआत कर दी थी आपने !
जवाब देंहटाएंबहुत जरूरी है ये संगीता जी कि हम अपने आने वाली नस्लों को प्रकृति के साथ सामन्जस्य और सहजीवन की कला सिखा सकें। टिप्पणी के लिए आभार आपका
जवाब देंहटाएंआपकी आकाश वाटिका या कहें छत वाटिका बहुत सुन्दर है. बहुत सुन्दरता से सजाया भी है इसे, और आपका मेज तो बस कमाल का है. बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार मित्र। आजकल इसी में समय बीत रहा है
हटाएंआपका सुख द्विगुणित करने को हमने भी प्रयास शुरू कर दिए हैं.
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात क्या बात क्या बात।
हटाएंशौकीन हम भी है लेकिन वन मैन आर्मी है । गमले से लेकर खाद मिट्टी पौधों की व्यवसथा लेकर । पानी तक देना। सो उतना नहीं हो पाता । फिर भी हरा किए हैं।
जवाब देंहटाएंआप तो हमारे लिए प्रेरणा हैं दीदी। साधुवाद आपको। लगे रहिये
हटाएंबहुत खूब हमारी छज्जे पर भी बाबूजी की बगिया आबाद है। आपकी मेहनत आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है ना ऐसा नहीं हमारे लिए भी प्रेरक होने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है बधाई हो मित्र
जवाब देंहटाएंहम सब एक दूसरे से ही प्रेरणा लेते हैं ,हमेशा से। आभार गिरीश भाई
हटाएंहमारी छत भी हरी है.. पक्षियों के कलरव से भोर होती है और.फूलों के रंगों से मौसम के मिज़ाज समझ आते हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी वाटिका बहुत सुंदर है।
प्रकृति ही तो जीशन की सकारात्मकता है।
जी सच कहा आपने प्रकृति ही जीवन की सबसे बड़ी सकारात्मकता है
हटाएंप्रकृति के जितना करीब जाओ ... मन तृप्त होता है ... नए दोस्त बनते हैं जो सच्च्चे साथी होते हैं ...
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं प्रकृति का सान्निधय अनुपम है। आभार सर
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-04-2020) को "रोटियों से बस्तियाँ आबाद हैं" (चर्चा अंक-3686) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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कोरोना को घर में लॉकडाउन होकर ही हराया जा सकता है इसलिए आप सब लोग अपने और अपनों के लिए घर में ही रहें। आशा की जाती है कि अगले सप्ताह से कोरोना मुक्त जिलों में लॉकडाउन खत्म हो सकता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पोस्ट को मान व स्थान देने के लिए आपका आभार शास्त्री जी
हटाएंआपकी लगन और समर्पण को साधुवाद; सभी के बस का नहीं है इतना परिश्रम
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर इस स्नेह वचन के लिए ।
हटाएंबहुत सुन्दर है ये । मनोरम
जवाब देंहटाएंआभार आपका लतिका जी
हटाएंआकाश वाटिका बहुत सुंदर है। हो भी क्यों न...परिवार के हर सदस्य का पसीना और मेहनत जो लगी होगी। हम भी दर्शनाभिलाषी है, इस वाटिका के ।
जवाब देंहटाएंतैयार रहिए , एक छोटी सी ब्लॉग बैठकी यहीं करने की योजना है ।
हटाएंअजय भाई, हमारे यहां भी छोटा सा गार्डन हैं। फूलों के अलावा मीठा नीम पोदीना,तुलसी, पान,पालक, धनिया, अरबी के पत्ते, जाम आदि सब हैं।
जवाब देंहटाएंवाह ,बहुत बढ़िया । सुखद होता है इनका साथ ।
हटाएंमुझे भी बहुत मन है कोई ऐसा कोना मेरा भी होना
जवाब देंहटाएंअहा , तो इसमें सोचना कैसा लाइए गमले मिटटी बीज और शुरू हो जाइए आप भी
हटाएंगजब!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आकाश वाटिका भईया
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