आज बात करते हैं गमलों की।
बागवानी विशेषकर शहरों में जहां आपको छत पर ,बालकनी में ,सीढ़ियों में और खिड़की पर जैसी जगह ही बड़ी मुश्किल से मयस्सर होती है वहां गमलों में बागवानी ही एकमात्र विकल्प बचता है इसलिए ऐसी शहरी बागवानी में गमलों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है।
गमलों का आकार प्रकार सिर्फ सिर्फ उसमें लगाए जाने वाले पौधे पर निर्भर करता है। छोटी जड़ वाले पौधे के लिए छोटे और माध्यम आकार के गमले चल सकते हैं किन्तु जिन पौधों की जड़ों को फैलाव की जरूरत होती है उनके लिए निश्चित रूप से माध्यम आकार के गमले ही चाहिए।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि मैंने बड़े छोटे पौधे नहीं कहा है बल्कि कहा है बड़ी जड़ वाले और छोटी जड़ वाले पौधे। मसलन गुलाब के पौधे बड़े होते हैं मगर जड़ छोटी इसलिए छोटे छोटे गमले में भी उग सकते हैं इसके उलट गेंदे फूल छोटे होते हैं मगर रेशेदार जड़ों को फैलाव अधिक चाहिए इसलिए यदि उन्हें आप छोटे गमले में लगा भी दें तो या तो फूल आएंगे ही नहीं या फिर फूल आकर में छोटे आएँगे।
फूलों के गमलों का आकर तो थोड़ा बहुत छोटा बड़ा फिर भी चल सकता है किन्तु फल सब्जी आदि के लिए मध्यम और बड़े आकर का गमला ही जरूरी है नहीं तो फल का आकार छोटा रह जाएगा हमेशा।
गमले मिट्टी के ,प्लास्टिक के ,लकड़ी के और ग्रो बैग भी हो सकते हैं। गमलों का चयन उन्हें रखने जाने वाले स्थान पर भी निर्भर करता है। बस ध्यान ये रखना होता है कि सभी गमलों में पानी की निकासी के लिए निर्धारित छिद्र बना हुआ हो ताकि उसमें पानी न जमा रहे और पौधों की जड़ें अधिक पानी से सड़ न जाएँ।
साग पात धनिया पुदीना मेथी पालक आदि जैसे सब्जियों के लिए चौड़े और कम गहरे गमले का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जबकि मिर्च नीम्बू संतरे चीकू अमरूद केले अनार आदि के लिए बड़े और गहरे गमले का प्रयोग उचित रहता है।
गमलों में मिट्टी कभी भी ऊपर से एक दो इंच या तीन इंच तक भी से नीचे ही रहनी चाहिए ताकि पानी डालने के बाद जड़ों तक पहुँच कर सोखने के लिए पर्याप्त पानी व समय मिल सके।
शुरुआत में बागवानी करने वालों को ,बोतलों ,ज़ार ,मग आदि को गमलों में परिवर्तित करके बागवानी में रोमांच के प्रयोग से बचना चाहिए। जब बागवानी में सिद्ध हस्त हो जाएं तो फिर चाहे वे अपनी हथेली पर भी गुलाब उगा लें।
गमलों को मौसम में गरमी सर्दी के अनुसार उनका स्थान भी बदलना जरूरी होता है। इससे एक तो पौधों को अनुकून वातावरण मिल जाएगा दूसरे अधिक समय तक एक स्थान पर पड़े रहने के कारण छत बालकनी आदि में उनसे पड़ने वाले निशान से भी बचा जा सकता है। गमलों के नीचे प्लेट रखना भी इन निशानों से बचाने का एक विकल्प होता है।
किसी भी गमले की उम्र कम से कम चार वर्ष तो रहती ही है बशर्ते कि आपसे भूलवश वो गिर कर टूट न जाए।
आज के लिए इतना ही , आप चाहें तो अपने प्रश्न यहाँ पूछ सकते हैं
गमलों से पहचान करवाती उपयोगी पोस्ट
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर । अगला भाग मिट्टी पर आधारित होगा ।
हटाएंआपकी वाटिका फले फूले...!
जवाब देंहटाएंसर आपका स्नेह है तो फिर क्या बात है
हटाएंइसको कहीं और डाला है , पहले पढ़ चुकी हूँ ।
जवाब देंहटाएंआपने फेसबुक पर पढा दीदी।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंहम जैसों के लिए सार्थक जानकारी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार राजा साहब
हटाएंअच्छी जानकारी दी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आभार अनुज। स्नेह बनाए रखिये
हटाएंउपयोगी आलेख
जवाब देंहटाएंआभार आपका शास्त्री जी
हटाएंSir mera bhi blog h poem ka. Muje apne blog ko promote krne k lie kya krna chaie. Aap kuch suggestion de.
जवाब देंहटाएंएग्रीगेटर पर सूचीबद्ध करवाइए , दूसरों को भी खूब पढ़िए और खूब लिखिए । हम पढ़ रहे हैं आपको ।
हटाएंबागवानी के लिए बहुत अच्छी जानकारी.
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया और आभार आपका जेनी जी
हटाएंआपने तो गमलों पर भी रिसर्च कर ली हिया लगता है ...
जवाब देंहटाएंउम्र भी ४ साल ... क्या बात है ... आपके गमले लाजवाब लगते हैं ...
हा हा हा हा सर शोध क्या करना बस कर कर जो सीख समझ पा रहे हैं से ही साझा करने का प्रयास करते हैं | स्नेह बनाए रखियेगा सर
हटाएंवाह! उपयोगी पोस्ट यह भी।
जवाब देंहटाएंआपका आभार पांडेय जी
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