जी हाँ, आप सोच रहे होंगे कि अब तक तो यही सुन और देख रहे थे कि , कोई पैसे ले कर उसे दुगुना और तिगुना कर देता है ......मगर ये कौन सी अनोखी स्कीम आ गयी है जहां सौ का नोट सीधे दस रुपये के नोट में बदल जाता है.....यकीन नहीं हो रहा ...तो खुद ही देख लीजिये.....
जी ...बिलकुल ठीक समझे आप ये अनोखी स्कीम इन दिनों भारतीय रेलवे के टिकेट काउंटर पर खूब मजे में चलाई जा रही है....ख़ास कर उन स्टेशनों पर जहां लोगों की भीड़ बहुत ज्यादा है....ऐसे में राजधानी दिल्ली में तो पूछिए मत......गरीब, मजदूर, अनपढ़, और बहुत से लोग जो अचानक घर जाने (मेरा मतलब अपने मूल प्रदेशों ) का कार्यक्रम बना लेते हैं....स्टेशन पहुँच कर टिकेट की लाइन में लग जाते हैं.....घंटे दों घंटे बाद जब नंबर आता है तो जैसे ही काउंटर के अन्दर पैसे पकडाते हैं.....आवाज आती है......भाई ये क्या दे रहे हो.....वो कुछ समझे इससे पहले ही उसके सौ के नोट के बदले दस का नोट वापस देकर कहा जाता है पैसे कम हैं......लोग अक्सर पैसे गिरने के दर से नोटों को लपेट कर या मोड़ कर काउंटर में डालते हैं....और बस यही से कमाल कर देते हैं स्कीम वाले......अभी कल ही एक महिला काउंटर क्लर्क को विजिलेंस वालों ने रँगे हाथों यही कलाकारी करते पकड़ लिया ....इन महिला के खिलाफ कई दिनों से शिकायत आ रही थी...चूँकि लोगों को ट्रेन पकड़ने की जल्दी होती है इसलिए वे झगडे में पड़ने की जगह दूसरा नोट पकडाना ही बेहतर समझते हैं......फिर लाइन में लगे अन्य लोग भी उसे वहाँ ज्यादा देर तक नहीं रुकने नहीं देते.....
यदि आप भी किसी ऐसी स्थिति में पड़ते हैं तो मेरी तरफ से दों सलाह.....हमेशा नोट को खोल कर पक्दाइये...जिससे काउंटर के अन्दर कलाकारी करने वालों को मौका न मिले....यदि फिर भी ऐसा हो ही जाए तो,,,समय हो तो खुद अन्यथा जो भी आपको छोड़ने आये हों.....उस काउंटर के कलाकार की शिकायत....वो भी लिखित में....(हालाँकि इसके लिए शिकायत पुस्तिका मिलना भी किसी चमत्कार से कम नहीं होगा आपके लिए )जरूर करें....इससे किसी न किसी दिन उस रेलवे के कलाकार का नाम जरूर रोशन होगा....
कमाल है रेलवे की इतनी तन्क्वाह और ओवर टाईम के बावजूद ये स्कीम......सौ रुपये दों....दस का लो.....
ठग हर मोड़ पर जाल बिछाए बैठे हैं। पल-पल सतर्क रहने के सिवा और कोई उपाय नहीं है।
जवाब देंहटाएंजब से इंटरनेट से टिकट बुकिंग संभव हुआ है, हम इस तरह के चालबाजों से बचे हुए हैं। पर पूरी तरह से नहीं, सुना है इन ठगों के इंटरनेट संस्करण भी प्रचलन में आ गए हैं, जो क्रेडिट कार्ड के नंबर चुराकर हम पर चूना लगाते हैं।
कहीं भी मुक्ति नहीं है। घोर किलयुग, और क्या!
जवाब देंहटाएंऐसा ही कुछ कारनामा पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर ढाबों पर भी होता है जहाँ 10 रुपये. में 5 रोटी मिलती है......
पर बाद मे बिल 100 रुपये आता है...जो की एक कटोरी सब्जी का होता है....
मैने अनेक मजदूरों को ढाबा मालिकों से मार खाते देखा है.....
जो दस रुपये मे भरपेट खाने के लालच मे खाना खाते हैं...
मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ पर मुझे पढ़ा लिखा सम्झ कर मार पीट नही हुई.....
लोकल पुलिस भी इस मामले में कुछ नही करती....
आशा करता हूँ प्रशासन का ध्यान इन ढाबों पर भी जाएगा....
दिल्ली के बारे में बहुत कुछ देखा सुना उसमें यह किस्सा भी जूड़ गया.
जवाब देंहटाएंठीक बात उठाई है भाई । हमारे लोकतंत्र का यही चमत्कार है कि कदम-कदम पर लोक को ठग रहा है तंत्र । बैंकों में भी इस तरह की बद्तमीजियां बहुत हैं । कभी मौका लगा तो लिखूंगा अपने ब्लाग कोलाहल पर मैं भी । साधुवाद!
जवाब देंहटाएंअच्छा ध्यान दिलाया इस ओर......और वो ढाबे वाली बात भी सही है राज जी की.........मैंने एक बार बस से यात्रा के दौरान बस रुकने पर एक ढाबे पर खाना खाया तो कुछ ऐसे ही अनुभवों से दो-चार होना पड़ा...
जवाब देंहटाएंहर तरफ है ठगी, लूट मार की चाल.
भोली जनता है बहुत, बिछे हुए हैं जाल.
साभार
हमसफ़र यादों का.......
हर जगह की यही कहानी है......चारों ओर लूट मची हुई है.हर कोई अपने अपने तरीके से लूटने में लगा हुआ है।
जवाब देंहटाएंआप सबका पढने और विचारों से सहमती के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही फ़रमाया है! मैं दो साल दिल्ली में रह चुकी हूँ इसलिए बहुत अच्छी तरह से वाकिफ हूँ! चोरी, लूटमार तो नियमित रूप से होता है और हर किसीको सावधानी बरखनी पड़ती है वरना दिल्ली में रहना बहुत मुश्किल है!
जवाब देंहटाएं100 Main Se 99 Be-imaan...
जवाब देंहटाएंMeraa Bhaarat Mahaan!!!
भईया लालू का असर तो जाते जाते जायेगा ना.
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