FRIDAY, OCTOBER 22, 2010
पक्षियों का प्रवास-१
पक्षियों का प्रवास-१
मनोज कुमार
पक्षियों की दुनियाँ वड़ी विचित्र है। पक्षी प्रकृति पदत्त सबसे सुन्दर जीवों की श्रेणी में आते हैं। इनसे मानव के साथ रिश्तों की जानकारी के उल्लेख प्राचीनतम ग्रंथों में भी मिलते हैं। किस्सा तोता मैना का तो आपने सुना ही होगा। इन किस्सों में आपने पाया होगा कि राजा के प्राण किसी तोते में बसते थे। फिर राम कथा के जटायु प्रसंग को कौन भुला सकता है। कबूतर द्वारा संदेशवाहक का काम भी लिया जाता रहा है। कहा जाता है कि मंडन मिश्र का तोता-मैना भी सस्वर वेदाच्चार करते थे। कई देवी देवताओं की सवारी पक्षी हुआ करते थे। सारांश यह कि पक्षियों का जीवन विविधताओं भरा अत्यंत ही रोचक होता है। पक्षियों के जीवन की सर्वाधिक आश्चर्यजनक घटना है उनका प्रवास। अंग्रेज़ी में इसे माइग्रेशन कहते हैं। शताब्दियों तक मनुष्य उनके इस रहष्य पर से पर्दा उठाने के लिए उलझा रहा। उत्सुकता एवं आश्चर्य से आंखें फाड़े आकाश में प्रवासी पक्षियों के समूह को बादलों की भांति उड़ते हुए देखता रहा। अनेको अनेक जीवों में प्रवास की घटना देखने को मिलती है, पर पक्षियों जैसी नहीं, जो इतनी दूर से एक देश से दूसरे देश में प्रवास कर जाते हैं। इस रहस्यमय यात्रा में पक्षी कहां जाते हैं इस कौतूहल को दूर करने के लिए मनुष्यों ने दूरबीन, रडार, टेलिस्कोप, वायुयान आदि का प्रयोग कर जानकारी एकत्र करना शुरु कर दिया।
शुक्रवार, २२ अक्तूबर २०१०
देखते हैं कब तलक तुम हमको झेले जाओगे-------->>>दीपक 'मशाल'
देखते हैं कब तलक तुम हमको झेले जाओगे
ना करें कि हाँ करें हम, तुम तो पेले जाओगे
चीर उतरा द्रोपदी का आज कान्हा गुम रहा
दांव खोकर भी सभी तुम, खेल खेले जाओगे
ओए सुन लो फालतू इतना नहीं है माल ये
एक चुटकी की जगह क्या मुठ्ठी भर ले जाओगे.
हैं खड़े इक पांव पर, ये बस भरी है भीड़ से
जो पाँव भी अपना नहीं क्या उसको ठेले जाओगे
बाप की कजूंसियों का आज ये आलम हुआ
दे चवन्नी पूछता है, तुम भी मेले जाओगे
अंग्रेजी मईया की किरपा....
इस बात में दो राय नहीं कि हिंदी की दुर्दशा दिखाई देती है, कारण सिर्फ बाजारवाद नहीं, अंग्रेजी की चमक इतनी तेज़ है कि लोग उससे बच नहीं पाते...और हमारी सरकार भी छीछा-लेदर करने से बाज़ नहीं आती, हिंदी के उत्थान की आवश्यकता, उतनी नहीं है जितनी उसे दिल से अपनाने की है, हिंदी आज शक़ के घेरे में है, हिंदी पर अब लोगों को विश्वास नहीं है,अपनी बात हिंदी में कहने में लोग कतराते हैं....उन्हें ये लगता है कि सामने वाले पर धौंस ज़माना हो, तो बात हिंदी में नहीं, अंग्रेजी में करो...और सच्चाई भी यही है...जो बात आप हिंदी में कहते हैं, वो कम असर करती, और जैसे ही आपने अंग्रेजी में बात करनी शुरू की, आपका स्तर सामने वाले की नज़र में एकदम से उछाल मारता है ...बेशक आपने अंग्रेजी की टांग ही तोड़ कर रख दी हो....ब्लॉग जगत में भी अंग्रेजी के वड्डे-वड्डे तीर चलते हुए देखा है, और लोगों को चारों खाने चित्त होते हुए भी...हाँ, तो हम बात कर रहे थे, इसी फार्मूले की...ये मेरा आजमाया हुआ फ़ॉर्मूला है...कसम से हम कहते हैं, एकदम सुपट काम करता है..
FRIDAY, OCTOBER 22, 2010
पिता की खाली कुर्सी...खुशदीप
एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें...बेटी ने ये भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते...
जब संत घर आए तो पिता पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे...
एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी...संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से ये कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई.
स्लॉग चिंतन
मैंने ऊपर वाले से पानी मांगा, उसने सागर दिया...
मैंने एक फूल मांगा, उसने बागीचा दिया
मैंने एक दोस्त मांगा, उसने आप सबको मुझे दिया...
भगवान की इच्छा आपको वहां कभी नहीं ले जाएगी, जहां उसका आशीर्वाद आपका बचाव न कर सकता हो...
औरत
KESAR KYARI........usha rathore..., Oct 21, 2010
दुनिया की जन्मदाता हैं औरत
हजारो वर्ष पुराने इतिहास की गाथा हैं औरत
जिस पर खड़े है हम ,वो धरती माता हैं औरत
अबला कहा जाता हैं ,वही चंडिका हैं औरत
इस जग में दुखिया का नाम है औरत
चारो धामो का धाम है औरत
भारत के हर त्यौहार का नाम है औरत
ममता का सागर है औरत
बदले की आग का आसमाँ है औरत
मोहब्बत का दरिया है औरत
नफरत का सुलगता सरिया है औरत
प्यार का घुमड़ता बादल है औरत
क्षमा सा बरसता पानी है औरत
मगर हमने इसकी कीमत ना जानी
अजीब दास्ताँ है अजब कहानी
फिर भी भगवान की महान रचना है औरत
केसर क्यारी..उषा राठौड़
बृहस्पतिवार, २१ अक्तूबर २०१०
सपनों का घर , कमाल के नन्हें पौधे ...और होशियारपुर के बारे में कुछ रोचक बातें ...पंजाब यात्रा -२
सुबह सुबह की हल्की ठंड में जब होशियारपुर बस अड्डे पर उतरा तो पौ नहीं फ़टी थी ..जैसा कि पहले ही सोच चुका था कि इस बार तो मैं हर पल को सहेजने की कोशिश जरूर करूंगा और देखिए न मेरी कोशिश का नतीजा आपके सामने है ......मैं वहां पहुंच तो चुका था मगर जाने क्या सोच कर सिर्फ़ चंद कदमों पर दूर साढू साहब के घर पर तुंरत जाने से बेहतर मुझे बस अड्डे के कोने पर बनी चाय की दुकान में सुबह की पहली चुस्की लेना बेहतर लगा । मैंने वहीं ठंडे पानी से हाथ मुंह धोया और बैठ कर चाय की चुस्कियां लेने लगा । सुबह सुबह की बस पकडने वाले , दिल्ली के लिए जो बसें निकलने वाली थीं ..उनमें दिल्ली दिल्ली की आवाज लगने लगी थी ।
THURSDAY, OCTOBER 21, 2010
' लंगोटिया यार ! ' : हास्य-कविता
एक थे लम्बूद्दीन 'लंब',
हम कहते नहीं है दंभ,
थे वो इस कदर लंबे,
पाँव जैसे खंबे !
हाथ जैसे कानून,
ये लंबे, ये ssss लंबे !
एक थे मोटूराम 'मोटी',
हम देतें नहीं गोटी,
तोंद उनके ये मोटी,
ये ssss भयंकर मोटी,
की साक्षात 'मोटा' शब्द,
उनके समक्ष लगता था दुबला !
हर तबीयत, हर तंदरुस्ती,
उनके सामने थी खोटी !
Friday 22 October 2010
हर किसी को "और" चाहिए......... यह दिल मांगे मोर .
आज अगर हम चारो ओर देखें तो कोई भी अपनी जिंदगी से संतुष्ट दिखाई ही नहीं देगा. हमारे पास जो है वह कम ही मालूम पड़ता है. हर किसी को "और" चाहिए......... यह दिल मांगे मोर .
चाहे किसी प्राप्य को प्राप्त करने कि मेरी औकात नहीं होगी तो भी बस मैं उसके लिए छटपटाता रहूँगा, बस एक धुन सवार हो जाएगी कि बस कैसे भी हो मुझे यह हासिल करना है.
अरे भाई हासिल करना है, तक तो ठीक है पर यह लोभ इतना भयंकर हो जाता है कि फिर ना किसी मर्यादा कि परवाह......... जाये चाहे सारे कानून-कायदे भाड़ में.
और आज चारों तरफ देख लीजिये कि जो मर्यादाओं को तार - तार किये दें रहें है उन्ही की यश-गाथाएं गाई जाती है. हम सब इस लोभ के मोह में वशीभूत हुए वहशीपन कि हद तक गिर चुके है. किसी भी नैतिक प्रतिमान को तोड़ने में हमें कोई हिचक नहीं होती.
या फिर आप खड़े रहिये नैतिकता का झुनझुना लिए, कोई आपके पास फटकेगा भी नहीं.
ना तो कर्म-अकर्म कि भावना रही ना उनके परिणामों कि चिंता. और चिंता होगी भी क्यों हमारे सारे सिद्धांतो को तो हम तृष्णा के पीछे भागते कभी के बिसरा चुके हैं. अहंकार आदि सभी तरीके के नशों को दूर करने वाले धर्म को ही अफीम कि गोली मानकर कामनाओं कि नदी में प्रवाहित कर चुकें है.
अमिताभ बच्चन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह की रिहर्सल में
>> शुक्रवार, २२ अक्तूबर २०१०
पिछले दिनों खूब सारी व्यस्तता के बीच कल शाम को विज्ञान भवन सभागार में अमिताभ बच्चन जी से मुलाकात हुई तो सारी थकान कानों के रास्ते बाहर निकल गई। उन्होंने विज्ञान भवन सभागार में जब प्रवेश किया तो सीमित प्रवेश के बावजूद उनके प्रशंसकों की भीड़ लग गई। सब ही उनसे मिलने को आतुर। मैं भी उनमें से एक। वे पुरस्कार विजेता ब्लॉक के एक कोने पर और दूसरे कोने पर मैं। बीच में अधिकतम 5 फीट का फासला।
अमिताभ भाई से मिलना सदैव एक रोमांचक अनुभव होता है। उनसे अब तक कई बार अनेक नेक अवसरों पर मुलाकात हो चुकी है। पर उनसे जाने कितने हजारों लोग रोजाना मिलते हैं ।
FRIDAY, OCTOBER 22, 2010
चाँद और मैं …
ये अनकही बातें बोलती हैं,मैंने इनको सुना है,समुद्र की लहरों सी होती हैं,शाख से कोई पत्ता गिरे ,ऐसा लगता है,ये अनकही बातें ,दिल की गहराई तक दस्तक देती हैं.......तुम इनको अनसुना नहीं कर सकते,ये दस्तक देती रहती है,मन की सांकलों को खोलो,सुनो.......अनकही बातें बोलती हैं!
10/22/10
जाना था जापान पहुंच गए चीन
जाना था जापान पहुंच गए चीन वाह भई वाह... साला ये जहाज ना हुआ टेम्पो हो गया. अभी तक ये तो देखा और सुना था कि गलत ट्रेन में बैठ कर कोलकात्ता के बजाय मुंबई पहुंच गए. बनारस में था तो एक दोस्त लाला को लखनऊ के लिए वरुणा पकडऩी थी. लाला चार बजे उनीदा सा उठा. उसे किसी तरह रिक्शा करवाया और मैं सो गया. एक घंटे बाद दरवाजा खटका तो देखा लाला लुंगी लपेटे अटैची लिए खड़ा है. क्या बे लाला, ट्रेन छूट गई क्या? नहीं यार नीद मैं वरुणा के बजाय बक्सर वाली पैसेंजर में बैठ गया था. मुगलसराय से आ रहा हूं्. गलत बस भी लोग पकड़ लेते हैं और टेम्पो सवारियां तो रोज ही रूट को लेकर झिक झिक करती हैं. बस या रेल से आप रास्ते में उतर सकते हैं लेकिन हवाई लहाज से कैसे कूदेंगे. शुक्रवार को तो लखनऊ के अमौसी एअरपोर्ट पर गजबै हो गया. गो एअर के जहाज में पटना के बजाय दिल्ली के यात्रियों को बैठा दिया गया. जब पटना में लैडिंग हुई तो यात्री चकराए कि गुरू ये तो दिल्ली नहीं है. फिर शुरू हुआ हंगामा. सडक़ और रेल पर होते तो स्टेशन और कस्बा पहचान का हल्ला मचाते. अब हवा में कैसे पहचाने के ये पटना वाला रूट है या दिल्ली वाला. और अगर पता भी लग गया कि गलत बैठ गए हैं तो पायलट से भी नहीं कह सकते कि ..अबे उधर कहां ले जा रहा है. और जबरिया रास्ते में उतर भी तो नहीं सकते. धन्य है गो एअर और धन्य हैं यात्री.
Friday, October 22, 2010
ये चीन की तरक्की की असली कहानी है
चीन में इस महिला के 8 महीने बच्चे की हत्या कर दी गई
इस तरह की कहानी चीन से निकलकर कम ही आती है। लेकिन, इसे पूरी दुनिया को जानना बेहद जरूरी है। चीन की तरक्की की कहानी दुनिया अकसर कहती रहती है। लेकिन, ये किस कीमत पर मिल रही है ये कभी-कभी ही चर्चा में आता है। कभी-कभी भारत में भी हम लोग ये कहकर कि चीन जैसी तरक्की हो तो, तानाशाही में भी क्या दिक्कत है। हम तरक्की तो कर लेंगे। लेकिन, इस तरह की चीनी तरक्की के फॉर्मूले को समझकर शायद हममें से जो, लोग चीन की तरह बनने-बनाने का सपना देख रहे हैं वो, थोड़ा दूसरा सपना देखना शुरू कर दें।
Friday, October 22, 2010
जुगाड़ से बनाये पेन रकने का डिब्बा
क्या चहिये:- सिम कार्ड निकालने के बाद बचे 5 कार्ड,चिपकाने के लिये टेप ,कैंची|
क्या करे:-4 कार्डो को चित्रानुसार जोड़ ले|
बीबीसी ब्लॉग्स से देखिए आज ब्रजेश उपाध्याय की ये पोस्ट
बिहारी होने के नाते
ब्रजेश उपाध्याय | सोमवार, 18 अक्तूबर 2010, 04:43 IST
बारह-तेरह साल पहले जानेमाने लेखक और पत्रकार अरविंद एन दास ने लिखा था, 'बिहार विल राइज़ फ़्रॉम इट्स ऐशेज़' यानी बिहार अपनी राख में से उठ खड़ा होगा.
एक बिहारी की नज़र से उसे पढ़ें तो वो एक भविष्यवाणी नहीं एक प्रार्थना थी.
लेकिन उनकी मृत्यु के चार सालों के बाद यानी 2004 में बिहार गया तो यही लगा मानो वहां किसी बदलाव की उम्मीद तक करने की इजाज़त दूर-दूर तक नहीं थी.
मैं 2004 के बिहार की तुलना सम्राट अशोक और शेरशाह सूरी के बिछाए राजमार्गों के लिए मशहूर बिहार से या कभी शिक्षा और संस्कृति की धरोहर के रूप में विख्यात बिहार से नहीं कर रहा था.
पटना से सहरसा की यात्रा के दौरान मैं तो ये नहीं समझ पा रहा था कि सड़क कहां हैं और खेत कहां.
सरकारी अस्पताल में गया तो ज़्यादातर बिस्तर खाली थे, इसलिए नहीं कि लोग स्वस्थ हैं बल्कि इसलिए कि जिसके पास ज़रा भी कुव्वत थी वो निजी डॉक्टरों के पास जा रहे थे.
मेरे मन की मौज !... अब तुमको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?
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मेरे 'मनमौजी' मित्रों,
आज का यह संवाद उनके लिये है जिन्हें कुछ ज्यादा ही जोर की मिर्ची लगी है शायद...
न जाने क्यों आज एक गीत, और वह भी गोविंदा द्वारा अभिनीत कुछ बदलाव कर गुनगुनाने का मन कर रहा है...
गाना कुछ इस तरह का है...
" मैं तो भेल पूरी खा रहा था...
बाजा बजा रहा था...
बृहस्पतिवार, २१ अक्तूबर २०१०
नंबर एक
मैने कहा तू कौन है
कहने लगा बकवास जी
मैने कहा करता है क्या
उसने कहा तीन-पांच जी
मैने कहा चाहता है क्या
उसने कहा दस्सी-पंजी
मैने कहा चलते नही
उसने कहा हमसे क्या जी
मैंने कहा उस्तादी क्यों
बोला मेरी फितरत है जी
21 October, 2010
वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला का पोस्टमार्टम -4
इस बार बात की जाये मुम्बई की अनीता कुमार की लिखी दो पोस्तों की। उन्होने साफ लिख दिया कि
इससे पता चलता है कि आमंत्रण निमंत्रण भेजा गया था,जिसे सभी सज्जन झूठा बताते हुये कह रहे हैं कि ये तो ओपन सम्मेलन था। किसी को बुलाया नहीं गया था।
लेकिन यह बात कौन बतायेगा कि जब वर्धा का विश्वविद्यालय कहता है कि
FRIDAY, OCTOBER 22, 2010
चलो किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए ...
THURSDAY 21 OCTOBER 2010
उच्च रक्तचाप
आधुनिक जीवनशैली आहिस्ते से कब हमें कई गंभीर व घातक बीमारियों का शिकार बना देती है, पता ही नहीं चलता। ऐसी ही एक प्राणघातक बीमारी है ‘हाई ब्लड प्रेशर’, जिसे ‘साइलेंट किलर’ भी कहते हैं। जानकारी के अभाव में हम न तो समय पर इसकी जांच करा पाते हैं और न ही इलाज। परिणामस्वरूप हमें हार्ट अटैक, स्ट्रोक, किडनी फेल्योर, गुर्दे की बीमारी, दृष्टि संबंधी दोष और पैरों में रक्त प्रवाह रुकने जैसी समस्याएं आ घेरती हैं। समय पर जांचः नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर (डॉ़) कामेश्वर प्रसाद के अनुसार यूं तो हमारे देश में 25साल से अधिक उम्र के लोगों को साल में एक बार बीपी चेक करवाने की सलाह दी जाती है,लेकिन आज की जीवनशैली को ध्यान में रखते हुए बेहतर होगा कि 18 की उम्र से ही लोग इसकी जांच करवाना शुरू कर दें। इसके अलावा, यदि आपकी उम्र 25 से ज्यादा है तो साल में दो बार, 35 से ज्यादा है तो तीन बार, 45 से ज्यादा है तो चार बार और 55 से ज्यादा है तो पांच बार बीपी की जांच करवाएं। यदि आप 65साल से अधिक उम्र के हैं तो जब भी अस्पताल जाएं या डॉक्टर से मिलें, यह जांच अवश्य करा लें।
शुक्रवार, २२ अक्तूबर २०१०
रिश्ते में तो हम हिन्दी के बेटे हैं और नाम है माणिक मृगेश
आइये मित्रो !
आज मैं आपको मिलवाता हूँ एक ऐसे महान हिन्दी सेवक से
जिनकी पूरी की पूरी जीवनचर्या अपने दैनंदिन रिदम के साथ
लगातार हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में
जुटी है ।
अनेकानेक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त यह हस्ती पिछले दिनों
एक और बड़े सम्मान से सम्मानित हुई । आइये अपनी बधाइयों
और मंगल कामनाओं के साथ मिलें इण्डियन आयल में सतत
सेवारत, बड़ौदा निवासी एक ज़बरदस्त कलमकार डॉ माणिक
मृगेश जी से.........................
राशि लग्नानुसार शनि की लघु कल्याणी अढैया और साढे साती विचार : आसमानी बाबा
कुछ भक्तजनों द्वारा आसमान में हमको अनगिनत संदेश भेजे गये. और बताया गया कि आजकल ब्लागाव्रत मे घोर अव्यस्था फ़ैली हुई है. एक अखण्ड ब्लागाव्रत की अवधारणा को कुछ तुच्छ मानसिकता वाले स्वयं भू क्षत्रपों ने खंडित कर दिया है. फ़लस्वरूप छोटे छोटे मोहल्ले जैसे ग्रूप बन गये हैं. आज तक एक क्षत्रप को छोडकर कोई भी सौ गांवो (टिप्पणियों) से ज्यादा का जमींदार नही बन पाया . बाकी सब दस बीस ज्यादा से ज्यादा पच्चीस गांव के छोटे मोटे जमींदार ही रह गये हैं. एवम अन्य सब दो पांच गांव के लोगों ने भी अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया है.
जगत कल्याणकारी सिद्ध ताऊ आसमानी बाबा
हमने तो कभी का यह धरा धाम छोड कर आसमान में रहने का फ़ैसला कर लिया था पर आप सबको इस हाल में देखकर वापस पृथ्वी पर प्रकटे हैं, ज्योतिष का परम ज्ञान देने के लिये. आज उपरोक्त स्थितियों के मद्देनजर कुछ चालू टाईप के लोग अपना साम्राज्य बढाने के लिये उल्टी सीधी सलाह देकर बहुत नाजायज फ़ायदा उठा रहे हैं और ब्लागाव्रत में यह जो क्लेश और वैमनस्य का राज्य भी सब उन्हीं की कृपा का फ़ल है. अत: आप सबसे निवेदन है कि आप उनके जाल में ना फ़से और हमारी ज्योतिषिय सेवाओं से लाभ उठायें.
Oct 21, 2010
नापचबना
सफर में हो?...
सफर में हो? कहाँ हो? और कैसे? यार बाजीमार,
तनिक फुर्सत तो आओ, बैठ लें, हो बात दो से चार.
अमां हो किस जहां? वैसे ही क्या धुनधार करते हो?
सरचढ़ी गड़बड़ी, धड़ फक्कड़ी लठमार करते हो?
मजलिस है मियाँ वैसी, कि बैठक है अलग इस बार?
सुनते हो किसी की, या खुदी दरकार करते हो?
नुक्ता मत पकड़ना, गलतियां तो, और भी भरमार,
बढ़ती जा रहीं जस उम्र, तस सर बाल चांदी तार.
हमको लगता है कि आज के लिए एतना कटपिटिया बहुत होगा ..आप लोग निहारिए ..और हां सिर्फ़ ये झांक कर न जाएं कि कौन कौन सी पोस्ट है ..जिस पर मन करे क्लिक करें और पढें ….आपको पसंद आएंगी नि:संदेह
बढ़िया स्टाइल से की गई सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंये तो बहुत ही मेराथान चर्चा क्या चर्चा का बाप पोस्ट है. जरा शांति पूर्वक पढना पडेगा. आपके दिमाग में ये नये नये आईडिये आते कहां से हैं?
जवाब देंहटाएंरामराम.
शानदार माल लाये हैं..
जवाब देंहटाएंआपका अंदाज निराला
जवाब देंहटाएंकितनों को लपेट डाला....
बहुत अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएं‘देखते हैं कब तलक तुम हमको झेले जाओगे’
जवाब देंहटाएंहम नहीं सुधरेंगे :)
इन नकली उस्ताद जी से पूछा जाये कि ये कौन बडा साहित्य लिखे बैठे हैं जो लोगों को नंबर बांटते फ़िर रहे हैं? अगर इतने ही बडे गुणी मास्टर हैं तो सामने आकर मूल्यांकन करें।
जवाब देंहटाएंस्वयं इनके ब्लाग पर कैसा साहित्य लिखा है? यही इनके गुणी होने की पहचान है। अब यही लोग छदम आवरण ओढे हुये लोग हिंदी की सेवा करेंगे?
ये चर्चा का अंदाज़ भी पसंद आया ... निराला अंदाज ..
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य-सबके लिए ब्लॉग की पोस्ट लेने के लिए आभार। काफी दिनों बाद आया आपके ब्लॉग पर। पाया कि इस बीच मैंने बहुत कुछ मिस किया।
जवाब देंहटाएंTitanic Jahaj
जवाब देंहटाएंCat in Hindi
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