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शनिवार, 16 जनवरी 2010
तो आखिर क्या हो पैमाना चिट्ठा चर्चा के लिए ???
सबसे पहले तो चंद जरूरी बातें , पहली ये कि झा जी कहिन नहीं बंद हुआ है , न ही वो ब्लोग कहीं जा रहा है अलबत्ता चर्चा या ब्लोग लिंक्स , आप जो भी समझें , उसे मैंने स्थाई रूप से विराम दे दिया है । दूसरी जरूरी बात ये महज एक दुख:द संयोग था कि भाई विवेक रस्तोगी जी की पोस्ट आई ,वो भी मेरी चर्चा के ठीक बाद , उसमें उनकी शिकायत , उसमें किसी भी विशेष चर्चाकार की ओर ईशारा न करना , एक चर्चाकार के रूप में और एक संवेदनशील या शायद ज्यादा ही संवेदनशील होने के और उससे भी अधिक आप में से ही एक ब्लोग्गर होने के कारण मेरा थोडा सा निराश होना और उसके बाद मेरा निर्णय । सब कुछ अपने आप ही होता गया । मगर इस प्रकरण ने फ़िर भी बहुत कुछ सोचने और सबसे बढकर आत्मविशलेषण करने का अवसर दे दिया । इस प्रकरण को मेरा टंकी पर चढने वालों को सिर्फ़ इतना बता देता हूं कि अबकी बार न तो मेरा ऐसा इरादा था और अब निर्णय लेने के बाद न ही उस पर पलट जाने का ।
इस प्रकरण और ऐसे ही अन्य प्रकरणों का एक जो प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष दुष्परिणाम निकलता है और जिसका कि मुझे सबसे ज्यादा डर था वो यही था , जैसा कि हो ही गया कि भाई ललित शर्मा जी ,जिन्होंने सिर्फ़ पिछले कुछ दिनों से ही चर्चा में हाथ आजमाया था और उतने ही दिन में ये जता/बता दिया था कि वे बहुत ही बेहतरीन चर्चाकार हैं ने भी आनन फ़ानन में एक दुखद निर्णय ले लिया । हालांकि मैं कभी नहीं चाहूंगा कि ललित भाई अपने इस निर्णय पर कायम रहें और देर सवेर उन्हें मना ही लूंगा । मगर यदि कोई भी प्रतिक्रिया न भी आती तो क्या जरूरी था कि जिस तरह से सभी एक एक करके चर्चाकारों द्वारा चर्चा में शामिल किए जाने वाले पोस्टों को लेकर अपनी नाखुशी/अपनी आपत्ति और विरोध दर्ज़ करवा रहे थे वो प्रवृत्ति और भी आगे नहीं बढती । और रही बात भाई मिथिलेश जी के कमज़ोर दिल ब्लोग्गर वाली बात की तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी ब्लोग्गर है जो इस श्रेणी में आता होगा । यदि ये शिकायत कोई नया ब्लोग्गर मित्र /या कोई अनजाना मित्र करता तो शायद झेल भी जाते , मगर जिनके बीच हमेशा ही अपने शब्दों/विचारों और टीपों के माध्यम से विचरता रहता हूं यदि उन्हें भी नीयत पर शक हो तो फ़िर ......????।यहां एक बात बताता चलूं कि सवाल जब आपकी निष्ठा/ईमानदारी/निष्पक्षता और नीयत पर उठने लगे तो ब्लोगवाणी जैसा ऐग्रीगेटर को आहत कर सकता है फ़िर तो निरे ब्लोग्गर की बिसात ही क्या ??
लेकिन जब बहस चल ही पडी है तो फ़िर आप सभी ब्लोग्गर्स ये भी तय कीजीए न कि आखिर क्या हो फ़िर इस चिट्ठा चर्चा का पैमाना ??। आखिर वो कौन सी बातें हैं जो कि चिट्ठा चर्चा कार को अपने जेहन में रखनी चाहिए ??
क्या उन पोस्टों को छोड दिया जाए जो उस दिन बहुत अच्छी लिखी गई हैं , तर्क ये दिया जाता है उन पोस्टों तो स्वाभाविक रूप से पहले ही सब पढ चुके होते हैं फ़िर चर्चा में उनकी लिंक लगाने का क्या फ़ायदा ??? तो क्या उन्हें इस बात के लिए ये दंड दिया जाए कि उन्होंने उस दिन अच्छा लिखी और जब सबने वैसे ही पढ लिया तो फ़िर चर्चा क्यों हो भाई ???? ये ठीक रहेगा न ??
या फ़िर ऐसा किया जाए कि सिर्फ़ नए ब्लोग्स को , या बिल्कुल भी पढे नहीं गए ब्लोग्स को , अनछुए ब्लोग्स को उठाया जाए ,और उनकी लिंक लगा के पढाया जाए । अच्छी बात है ये तो होना ही चाहिए , बस अपने दिल पर हाथ रख के एक बात बताईये , हम में से कितने ब्लोग्गर हैं जो नियमित रूप से अपने बीच आ रहे नए ब्लोग्गर मित्रों को पढ के टीपते हैं , तो फ़िर सारी जिम्मेदारी चर्चाकार पर ही क्यों ?? यहां लगे हाथ अपने उन नए ब्लोग्गर मित्रों से भी पूछता चलूं कि आखिर एक हफ़्ते, एक महीने और कुछ समय तक की ब्लोग्गिंग में उन्हें पुराने (वरिष्ठ नहीं कहूंगा ) ब्लोग्गर्स, नियमित टिप्पणीकारों , और चर्चकारों से भी शिकायत होने लगती है ??? आखिर हममें से कोई आमिर खान , और शाहरूख तो नहीं है कि आपको टीपने के लिए लाईन लग जाए ।
कविता/कहाने/कार्टून/व्यंग्य/गंभीर आलेख/..आदि के रूप में बांट कर चर्चा की जाए .....वाह सुन कर अच्छा लगा न , मुझे भी बहुत अच्छा लगा । तो ऐसा करते हैं फ़िर एक चर्चाकार को किराए पर लाते हैं जिसे कहेंगे कि भाई जी आपने ब्लोग्गिंग नहीं करनी है सिर्फ़ चर्चा करनी है । आखिर ये तभी तो संभव है न जब वो चौबीसों घंटे बैठ कर एक एक ब्लोग पढ कर हमारे आपके लिए एक कमाल की चर्चा ले कर आये ।
और भी हैं बहुत से पैमाने , तय तो आपको करना है ?????????मगर इसके बाद आखिर क्या गारंटी है इस बात कि किसी चिट्ठाचर्चाकार पर ये तोहमत नहीं लगेगी ???? लेंगे आप ????
एक आखिरी बात जरूरी नहीं कि हर बार मेरी तरह ही टंकी पर चढा ब्लोग्गर फ़ट से नीचे भी उतर जाए ???तो कम से कम इतना तो किया ही जा सकता है कि उसकी नीयत पर सवाल न उठाया जाए ।
हां रही बात इस मुद्दे कि हमारा कैलिबर कितना है तो अब इस ब्लोग्गिंग की दुनिया में इतना तो माद्दा रखते हैं कि रोज ही पचास लिंक्स की चिट्ठा चर्चा (चिट्ठा पचासा ) के नाम से आपके सामने रख दूं , और यकीन जानिए ये बहुत मुश्किल भी नहीं है ..............बस मुझे और अन्य मित्र चर्चाकारों को भी अपने में से ही एक समझें । इश्वर करे कि ये प्रकरण , ब्लोगवाणी प्रकरण की तरह ही , नए ऐग्रीगेटर्स की भांति नए चर्चाकार मित्रों को सामने लाए ॥
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पहली बात तो मैं आप के साथ साथ सभी लोगों का धन्यवाद देना चाहूँगा जिन्होने चिट्ठा चर्चा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई..अब रही बात चर्चा की तो निसंदेह यह किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर ना होकर पूरे ब्लॉगर्स के हित में हो..महत्वपूर्ण पोस्ट के साथ साथ नये रचनाकारों का उत्साह वर्धन भी करना एक सराहनीय कार्य है ताकि रचनाकारों एवं ब्लॉगर्स का सही मार्गदर्शन हो और उन्हे एक शक्ति भी मिले अपनी बात को सभी तक पहुँचाने में..अजय जी आप की चर्चा निश्चित रूप से इन सब बातों पर फोकस करेगी और अभी तक जैसा मैं पढ़ते आता हूँ ऐसा पाया भी है...बढ़िया प्रसंग उठाया आपने..आप के इस बात से हम सब सहमत है..धन्यवाद अजय जी!!
जवाब देंहटाएंअजय भईया''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
जवाब देंहटाएंमेरा ये तनीक भी ना कहना था कि आप कमजोत ब्लोगर हैं ये उसकी श्रेणी में आते है, मेरा उससे तात्पर्य बस ये था कि आप संवेदनशील व्यक्ति है , शायद आपने मेरा पूरा लेख पढा नहीं , अगर आप पढंगे तो पायेंगे कि मैंने कमजोर क्यों और कैसे कहा । फिर भी मैं आपसे उम्मीद करता हूँ कि आप जल्द से जल्द ब्लोगिंग चर्चा करेंगे , और आप खुद निर्णय करेंगे कि आप किसे ज्यादा महत्व देते है, वे जो आपसे बहुत प्यार करते हैं या वे जो आपकी खिलाफत करते है । और आप ध्यान रखियेगा कि आप के साथ-साथ और बहुत से चोट्ठा चर्चा करने वाले दांव पर लगे है।।।
और क्या होगा पैमाना, मुझे नहीं लगता कि आप लोगो से बेहतर कोई जानता हो इसके बारे में ।
मैं तो यही कहूंगी कि चिट्ठा चर्चा करना बहुत कठिन काम है .. पर उतना कठिन भी नहीं .. जितना एक ज्योतिष का ब्लॉग चलाना .. मुझे मालूम है .. आप जल्द ही चिट्ठा चर्चा अवश्य शुरू करेंगे !!
जवाब देंहटाएंअजय जी...आपका यूँ अचानक चिट्ठाचर्चा से मुँह मोड लेना दुखद है लेकिन मैं आपके मन की व्यथा भी समझ रहा हूँ...इसलिए आपके निर्णय को सम्मान देते हुए मैं बस इतना ही कहूँगा कि हमें आपकी वापसी...एक ज़ोरदार वापसी का इंतज़ार रहेगा ...वैसे एक सुझाव भी है मेरे पास कि क्यों न 'जुगलबंदी' या किसी अन्य उचित नाम से एक सांझा ब्लॉग शुरू किया जाए...जिसमें सभी ब्लॉगर साझेदार हों...जिसको जो पोस्ट अच्छी लगे...वो उसका लिंक उसमें खुद जोड़ सके.. यहाँ ये उसके विवेक पर निर्भर करेगा कि वो खुद अपनी पोस्ट को उसमें ना जोड़े
जवाब देंहटाएंअजय भाई,
जवाब देंहटाएंआप क्यों इतना दिल पर लगाए हैं...आप से बड़ा दिल वाला मुझे तो इस ब्लॉगवुड में और कोई नज़र नहीं आया..आप जो काम करते है साफ़ दिल से करते हैं, डंके की चोट पर करते हैं...ये इसलिए कह रहा हूं कि मैं आपसे दो बार रू-ब-रू होकर घंटों बात कर चुका हूं...इसलिए जो आपसे बिना मिले ही आपके बारे में कुछ लिख रहे हैं, उनके बारे में क्या कहा जा सकता है...आप भी जानते हैं, ललित भाई भी जानते हैं, मैं भी जानता हूं कि हमारे बीच आपस में निर्मल हास्य की तरह चुटकियों का आदान-प्रदान होता रहता है...इस सेंस ऑफ ह्यूमर को कोई नहीं पकड़ सकता तो ये उसकी नादानी है...मैंने आज आपसे फोन पर भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन स्विच ऑफ आ रहा था...बस शेर की तरह ऐसे ही दहाड़ते रहिए कि आप की भलमनसाहत को कमज़ोरी समझने वाले फिर ये पूछने की ज़ुर्रत न करें....हम झा जी से चर्चा की क्लोरोमिंट क्यों खाते हैं...
जय हिंद...
अरे अजय भाई, बात किसी और संदर्भ में की गई थी और बात किसी ओर ही संदर्भ में ली जा रही है या समझी जा रही है।
जवाब देंहटाएंखैर,
अब मैं कुछ नहीं बोलूँगा...
क्योंकि
हम बोलेगा तो बोलेगे कि बोलता है..
हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है.
जवाब देंहटाएंअभी तो नहीं उठी किन्तु ऐसे कार्यों में कभी यदा कदा हल्की फुल्की शिकायतें सीधे भी उठ सकती हैं. कोई शायद नियत पर प्रश्न नहीं उठाना चाहता पर उसका उद्देश्य अपनी तरफ ध्यान दिलाना होता है.
जवाब देंहटाएंपैमाना तो चर्चाकार को ही तय करना होता हैऔर नित एक ही पैमाने पर चले, यह भी जरुरी नहीं. बदलाव अच्छा लगता है.
देखना बस यह है कि चर्चाकार निष्पक्ष रहे.
ऐसे मंच से, जो सब ध्यान से पढ़ते हैं-किसी की बेईज्जती न करे, किसी का बेवजह मजाक न उठाये और विवाद मचवाने का उद्देश्य न हो. बस!!!
शालीनता से चर्चा की जाये. कभी बिना उद्देश्य किसी का दिल दुख जाये तो गल्ती मान ली जाये-फिर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? सभी समझदार है, बात समझते हैं और सीमाएँ भी-किन्तु साथ ही, अगर मंच का इस्तेमाल व्यक्तिगत हितों और स्वार्थवश किसी को नीचा दिखाने या नजर अंदाज करने के लिए किया जा रहा है, तो वो भी तो लोग समझ ही जाते हैं.
खैर, आज तक आपकी चर्चा देखते रहे. आदत सी बन गई. अब नहीं दिखेगी तो थोड़ी तकलीफ होना भी स्वभाविक है.
आपने निर्णय लिया है. सोच समझ कर लिया होगा. फैसला निश्चित ही आपका है. हम पहले भी आपके साथ थे, आज भी हैं. शुभकामनाएँ तो साथ हैं ही.
यदि आप समझते हैं कि आप ने जो चर्चा की है वह सम्यक है। तो लोगों को कहने दीजिए। आप तो चर्चा कीजिए।
जवाब देंहटाएंपैमाना चर्चाकार का अपना होना चाहिए। सबकी पसंद एक सी नहीं हो सकती। और यदि सबके पसंद का ही लिखा तो चर्चा क्या हुआ? आप लिखें और ज़रूर लिखें।
जवाब देंहटाएंअजय भाई यह चिट्ठा चर्चा आप अपनी मर्जी से करते है, जेसे हम अपना लेख अपनी मर्जी से करते है फ़िर यह सब क्यो ??मस्त रहे ओर आंईदा भी मस्ती से लिखे
जवाब देंहटाएंराजीव तनेजा जी ने अच्छा सुझाव दिया है
जवाब देंहटाएंवैसे एक जिज्ञासा है , क्या ऐसी ब्लॉग चर्चा अन्य भाषाओं में भी होती है
जवाब देंहटाएंपहले आप नीचे तो उतरिये,
बसँती आपकी थी और आपही की रहेगी ।
आप ऊपर चढ़े हैं, तो अकेला वीरू क्या कर लेगा ?
ब्लॉगगढ़ वालों को अमज़द से कौन बचायेगा, जो बीच नींद में भी जम्हाई लेते हुये पूछता है," कितने ब्लॉगर हैं रे ?"
इस प्रकरण को इन्टरवल समझ कर हम मूँगफली खा कर निकाल लेंगे । आप नीचे उतरो, अभी पूरी फ़िल्म मय क्लाईमेक्स बाकी है !
Ajay bhaia ab main nipat kya aapko samjhaaun... yahi kahoonga ki-
जवाब देंहटाएं'karmandeywadhikariste mafaleshu kadachanam'
ya kuchh to log kahenge.... kogon ka kaam hai kahna
Jai Hind...
इन्द्रपुरी में जश्न हो रहा है ......और हम दूर से देख रहे हैं ....
जवाब देंहटाएंअगर छोड़ना ही है तो हम चर्चा करे ही क्यूं ?
मिथिलेश भाई क्या पहले ही यह अनुमान नहीं था की यह बहुत जिम्मेदारी का और
कठिन काम है -इसी जुडी बहुत सी बाते भी हैं ...
निन्दन्ति नीति निपुण यदि व स्तवन्तु
अद्येव मरणमस्तु युगान्तरे वा ....
लक्ष्मी समाविशतु गच्छत व यथेष्टं
न्यायत पथम प्रविचलन्ति पदम् न धीरा
(आज का होमवर्क है आपका अर्थ अगर पहले से न जानते हों तो आस पास से अता पता करके काम पर लौटिये }
अपना तो भई एक ही फंडा है
जवाब देंहटाएं"कुछ बी दिल पे नईं लेने का, बाॅस्स"
जहां तक मैंने आपकी चर्चा मे पाया है कि यहां ना तो कभी किसी का मखोल उडाया गया और ना ही कभी किसी की बेइज्जती करने की कोशीश की गई.
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा क्युं कि एक बिल्कुल ही अलग और मौलिक स्वरुप मे थी. अत: वो जल्द ही लोगों के बीच अपनी पहचान बना बैठी.
झा जी, आपको जो रुचिकर लगता हो वही किजिये पर एक बात का खयाल रखिये कि जैसे तपस्वियों की तपस्या भंग करने के लिये इंद्र अप्सराएं भेजता था उसी तरह यहां भी कुछ विघ्न संतोषी तत्व हैं जो फ़ूफ़े बनकर उत्पात करते हैं.
आप इस पर ना जाये और आपमे एक जो नैसर्गिक प्रतिभा मौजूद है उसको पनपने दें.
शेष जैसी आपकी इच्छा सर्वोपरी रहनी चाहिये!
रामराम.
अजय जी, जहाँ चार बर्तन होते हैं वहाँ आवाज तो हो ही जाती है। हम सभी मिलकर एक परिवार हैं और परिवार में कभी कभी गलतफ़हमियाँ हो ही जाती हैं किन्तु उनके दूर हो जाने पर फिर कुछ अच्छा हो जाता है। आपसे आग्रह है कि आप अपनी चर्चा जारी रखें। मिथिलेश जी भी आपके अनुज ही हैं और अपनी टिप्पणी में उन्होंने भी आपसे चर्चा जारी रखने का अनुग्रह किया है।
जवाब देंहटाएंएक बात हम सभी को याद रखना आवश्यक है कि कभी भी एक साथ सभी को खुश नहीं किया जा सकता, इसलिये किसी बात पर असंतोष करना व्यर्थ है।
चर्चा का सिर्फ एक पैमाना हो
जवाब देंहटाएंजो कहा जाए सबने माना हो
जो माना जाएगा वही पहचाना जाएगा
ब्लॉगर चर्चा करके सिर्फ गाना गाएगा।
आप नि:शुल्क और नि:स्वार्थ भाव से चिट्ठा चर्चा करते हैं । किसी की तरफदारी करके आप को क्या फायदा होगा , अगर किसी को आपत्ति है तो वो अपनी चिट्ठा चर्चा करने को स्वतंत्र है । आप अपना समय लगा कर विभिन्न चिट्ठों को पढ़ते हैं और चर्चा करते हैं , मैं तो आभार व्यक्त करता हूं सभी चिट्ठाकारों का जो चिट्ठा चर्चा करते हैं ।
जवाब देंहटाएंमैं तो एक बात ही जानता हूँ, जो काम करता है, उसी की आलोचना होती है।
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भातीय सेना में भी है दम, देखिए कितना सही कहते हैं हम।